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1. |
ऐ ईमानदारों ख़ुदा और उसके रसूल के सामने किसी बात में आगे न बढ़ जाया करो
और ख़ुदा से डरते रहो
बेशक ख़ुदा बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है |
2. |
ऐ ईमानदारों (बोलने में) अपनी आवाज़े पैग़म्बर की आवाज़ से ऊँची न किया करो
और जिस तरह तुम आपस में एक दूसरे से ज़ोर (ज़ोर) से बोला करते हो उनके रूबरू ज़ोर से न बोला करो (ऐसा न हो कि) तुम्हारा किया कराया सब अकारत हो जाए और तुमको ख़बर भी न हो |
3. |
बेशक जो लोग रसूले ख़ुदा के सामने अपनी आवाज़ें धीमी कर लिया करते हैं यही लोग हैं जिनके दिलों को ख़ुदा ने परहेज़गारी के लिए जाँच लिया है
उनके लिए (आख़ेरत में) बख़्शिस और बड़ा अज्र है |
4. |
(ऐ रसूल) जो लोग तुमको हुजरों के बाहर से आवाज़ देते हैं उनमें के अक्सर बे अक्ल हैं |
5. |
और अगर ये लोग इतना ताम्मुल करते कि तुम ख़ुद निकल कर उनके पास आ जाते (तब बात करते) तो ये उनके लिए बेहतर था
और ख़ुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
6. |
ऐ ईमानदारों अगर कोई बदकिरदार तुम्हारे पास कोई ख़बर लेकर आए तो ख़ूब तहक़ीक़ कर लिया करो
(ऐसा न हो) कि तुम किसी क़ौम को नादानी से नुक़सान पहुँचाओ फिर अपने किए पर नादिम हो |
7. |
और जान रखो कि तुम में ख़ुदा के पैग़म्बर (मौजूद) हैं
बहुत सी बातें ऐसी हैं कि अगर रसूल उनमें तुम्हारा कहा मान लिया करें तो (उलटे) तुम ही मुश्किल में पड़ जाओ
लेकिन ख़ुदा ने तुम्हें ईमान की मोहब्बत दे दी है और उसको तुम्हारे दिलों में उमदा कर दिखाया है
और कुफ़्र और बदकारी और नाफ़रमानी से तुमको बेज़ार कर दिया है
यही लोग राहे हिदायत पर हैं |
8. |
ख़ुदा के फ़ज़ल व एहसान से
और ख़ुदा तो बड़ा वाक़िफ़कार और हिकमत वाला है |
9. |
और अगर मोमिनीन में से दो फिरक़े आपस में लड़ पड़े तो उन दोनों में सुलह करा दो
फिर अगर उनमें से एक (फ़रीक़) दूसरे पर ज्यादती करे तो जो (फिरक़ा) ज्यादती करे तुम (भी) उससे लड़ो यहाँ तक वह ख़ुदा के हुक्म की तरफ रूझू करे
फिर जब रूजू करे तो फरीकैन में मसावात के साथ सुलह करा दो और इन्साफ़ से काम लो
बेशक ख़ुदा इन्साफ़ करने वालों को दोस्त रखता है |
10. |
मोमिनीन तो आपस में बस भाई भाई हैं तो अपने दो भाईयों में मेल जोल करा दिया करो
और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम पर रहम किया जाए |
11. |
ऐ ईमानदारों
(तुम किसी क़ौम का) कोई मर्द दूसरी क़ौम के मर्दों की हँसी न उड़ाये मुमकिन है कि वह लोग (ख़ुदा के नज़दीक) उनसे अच्छे हों
और न औरते औरतों से (तमसख़ुर करें) क्या अजब है कि वह उनसे अच्छी हों
और तुम आपस में एक दूसरे को मिलने न दो न एक दूसरे का बुरा नाम धरो
ईमान लाने के बाद बदकारी (का) नाम ही बुरा है
और जो लोग बाज़ न आएँ तो ऐसे ही लोग ज़ालिम हैं |
12. |
ऐ ईमानदारों
बहुत से गुमान (बद) से बचे रहो क्यों कि बाज़ बदगुमानी गुनाह हैं
और आपस में एक दूसरे के हाल की टोह में न रहा करो और न तुममें से एक दूसरे की ग़ीबत करे
क्या तुममें से कोई इस बात को पसन्द करेगा कि अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए
तो तुम उससे (ज़रूर) नफरत करोगे
और ख़ुदा से डरो,
बेशक ख़ुदा बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान है |
13. |
लोगों हमने तो तुम सबको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और हम ही ने तुम्हारे कबीले और बिरादरियाँ बनायीं ताकि एक दूसरे की शिनाख्त करे
इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सबमें बड़ा इज्ज़तदार वही है जो बड़ा परहेज़गार हो
बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार ख़बरदार है |
14. |
अरब के देहाती कहते हैं कि हम ईमान लाए
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम ईमान नहीं लाए बल्कि (यूँ) कह दो कि इस्लाम लाए हालॉकि ईमान का अभी तक तुम्हारे दिल में गुज़र हुआ ही नहीं
और अगर तुम ख़ुदा की और उसके रसूल की फरमाबरदारी करोगे तो ख़ुदा तुम्हारे आमाल में से कुछ कम नहीं करेगा –
बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है |
15. |
(सच्चे मोमिन) तो बस वही हैं जो ख़ुदा और उसके रसूल पर ईमान लाए
फिर उन्होंने उसमें किसी तरह का शक़ शुबह न किया और अपने माल से और अपनी जानों से ख़ुदा की राह में जेहाद किया
यही लोग (दावाए ईमान में) सच्चे हैं |
16. |
(ऐ रसूल इनसे) पूछो तो कि क्या तुम ख़ुदा को अपनी दीदारी जताते हो
और ख़ुदा तो जो कुछ आसमानों मे है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) जानता है
और ख़ुदा हर चीज़ से ख़बरदार है |
17. |
(ऐ रसूल) तुम पर ये लोग (इसलाम लाने का) एहसान जताते हैं
तुम (साफ़) कह दो कि तुम अपने इसलाम का मुझ पर एहसान न जताओ
(बल्कि) अगर तुम (दावाए ईमान में) सच्चे हो तो समझो कि, ख़ुदा ने तुम पर एहसान किया कि उसने तुमको ईमान का रास्ता दिखाया |
18. |
बेशक ख़ुदा तो सारे आसमानों और ज़मीन की छिपी हुई बातों को जानता है
और जो तुम करते हो ख़ुदा उसे देख रहा है ********* |
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