हा Surah Shura, Arabic with Hindi translation, Free download

Quran Hindi Translation

Surah Al Shura

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

حم

हा मीम

2

عسق

ऐन सीन काफ़

3

كَذَلِكَ يُوحِي إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

(ऐ रसूल) ग़ालिब व दाना ख़ुदा तुम्हारी तरफ़ और जो (पैग़म्बर) तुमसे पहले गुज़रे उनकी तरफ यूँ ही वही भेजता रहता है

4

لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है ग़रज़ सब कुछ उसी का है

और वह तो (बड़ा) आलीशान (और) बुर्ज़ुग है

5

تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِنْ فَوْقِهِنَّ ۚ

(उनकी बातों से) क़रीब है कि सारे आसमान (उसकी हैबत के मारे) अपने ऊपर वार से फट पड़े

وَالْمَلَائِكَةُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِمَنْ فِي الْأَرْضِ ۗ

और फ़रिश्ते तो अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और जो लोग ज़मीन में हैं उनके लिए (गुनाहों की) माफी माँगा करते हैं

أَلَا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ

सुन रखो कि ख़ुदा ही यक़ीनन बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

6

وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ أَوْلِيَاءَ اللَّهُ حَفِيظٌ عَلَيْهِمْ وَمَا أَنْتَ عَلَيْهِمْ بِوَكِيلٍ

और जिन लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर (और) अपने सरपरस्त बना रखे हैं ख़ुदा उनकी निगरानी कर रहा है

(ऐ रसूल) तुम उनके निगेहबान नहीं हो

7

وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِتُنْذِرَ أُمَّ الْقُرَى وَمَنْ حَوْلَهَا وَتُنْذِرَ يَوْمَ الْجَمْعِ لَا رَيْبَ فِيهِ ۚ

और हमने तुम्हारे पास अरबी क़ुरान यूँ भेजा ताकि तुम मक्का वालों को और जो लोग इसके इर्द गिर्द रहते हैं उनको डराओ

और (उनको) क़यामत के दिन से भी डराओ जिस (के आने) में कुछ भी शक़ नहीं

فَرِيقٌ فِي الْجَنَّةِ وَفَرِيقٌ فِي السَّعِيرِ

(उस दिन) एक फरीक़ (मानने वाला) जन्नत में होगा और फरीक़ (सानी) दोज़ख़ में

8

وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَجَعَلَهُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً وَلَكِنْ يُدْخِلُ مَنْ يَشَاءُ فِي رَحْمَتِهِ ۚ

और अगर ख़ुदा चाहता तो इन सबको एक ही गिरोह बना देता मगर

वह तो जिसको चाहता है (हिदायत करके) अपनी रहमत में दाख़िल कर लेता है

وَالظَّالِمُونَ مَا لَهُمْ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ

और ज़ालिमों का तो (उस दिन) न कोई यार है और न मददगार  

9

أَمِ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ أَوْلِيَاءَ ۖ

क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) कारसाज़ बनाए हैं

فَاللَّهُ هُوَ الْوَلِيُّ وَهُوَ يُحْيِي الْمَوْتَى وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ‏

तो कारसाज़ बस ख़ुदा ही है

और वही मुर्दों को ज़िन्दा करेगा और वही हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है

10

وَمَا اخْتَلَفْتُمْ فِيهِ مِنْ شَيْءٍ فَحُكْمُهُ إِلَى اللَّهِ ۚ

और तुम लोग जिस चीज़ में बाहम एख्तेलाफ़ात रखते हो उसका फैसला ख़ुदा ही के हवाले है

ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبِّي عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَإِلَيْهِ أُنِيبُ

वही ख़ुदा तो मेरा परवरदिगार है मैं उसी पर भरोसा रखता हूँ और उसी की तरफ रूजू करता हूँ

11

فَاطِرُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ

सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करने वाला (वही) है

جَعَلَ لَكُمْ مِنْ أَنْفُسِكُمْ أَزْوَاجًا وَمِنَ الْأَنْعَامِ أَزْوَاجًا ۖ يَذْرَؤُكُمْ فِيهِ ۚ

उसी ने तुम्हारे लिए तुम्हारी ही जिन्स के जोड़े बनाए और चारपायों के जोड़े भी (उसी ने बनाए) उस (तरफ) में तुमको फैलाता रहता है

لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ

कोई चीज़ उसकी मिसल नहीं और वह हर चीज़ को सुनता देखता है

12

لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ

सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास हैं

يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ

जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ कर देता है (जिसके लिए) चाहता है तंग कर देता है

إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ

बेशक वह हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है

13

شَرَعَ لَكُمْ مِنَ الدِّينِ مَا وَصَّى بِهِ نُوحًا

उसने तुम्हारे लिए दीन का वही रास्ता मुक़र्रर किया जिस (पर चलने का) नूह को हुक्म दिया था

وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ وَمَا وَصَّيْنَا بِهِ إِبْرَاهِيمَ وَمُوسَى وَعِيسَى ۖ

और (ऐ रसूल) उसी की हमने तुम्हारे पास वही भेजी है

और उसी का इब्राहीम और मूसा और ईसा को भी हुक्म दिया था

أَنْ أَقِيمُوا الدِّينَ وَلَا تَتَفَرَّقُوا فِيهِ ۚ

(वह) ये (है कि) दीन को क़ायम रखना और उसमें तफ़रक़ा न डालना

كَبُرَ عَلَى الْمُشْرِكِينَ مَا تَدْعُوهُمْ إِلَيْهِ ۚ

जिस दीन की तरफ तुम मुशरेकीन को बुलाते हो वह उन पर बहुत शाक़ ग़ुज़रता है

اللَّهُ يَجْتَبِي إِلَيْهِ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي إِلَيْهِ مَنْ يُنِيبُ

ख़ुदा जिसको चाहता है अपनी बारगाह का बरगुज़ीदा कर लेता है

और जो उसकी तरफ रूजू करे अपनी तरफ़ (पहुँचने) का रास्ता दिखा देता है

14

وَمَا تَفَرَّقُوا إِلَّا مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَهُمُ الْعِلْمُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ ۚ

और ये लोग मुतफ़र्रिक़ हुए भी तो इल्म (हक़) आ चुकने के बाद और (वह भी) महज़ आपस की ज़िद से

وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَبِّكَ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ

और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से एक वक्ते मुक़र्रर तक के लिए (क़यामत का) वायदा न हो चुका होता तो उनमें कबका फैसला हो चुका होता

وَإِنَّ الَّذِينَ أُورِثُوا الْكِتَابَ مِنْ بَعْدِهِمْ لَفِي شَكٍّ مِنْهُ مُرِيبٍ

और जो लोग उनके बाद (ख़ुदा की) किताब के वारिस हुए वह उसकी तरफ से बहुत सख्त शुबहे में (पड़े हुए) हैं

15

فَلِذَلِكَ فَادْعُ ۖ وَاسْتَقِمْ كَمَا أُمِرْتَ ۖ وَلَا تَتَّبِعْ أَهْوَاءَهُمْ ۖ

तो (ऐ रसूल) तुम (लोगों को) उसी (दीन) की तरफ बुलाते रहे

जो और जैसा तुमको हुक्म हुआ है उसी पर क़ायम रहो और उनकी नफ़सियानी ख्वाहिशों की पैरवी न करो

وَقُلْ آمَنْتُ بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ مِنْ كِتَابٍ ۖ وَأُمِرْتُ لِأَعْدِلَ بَيْنَكُمُ ۖ

और साफ़ साफ़ कह दो कि जो किताब ख़ुदा ने नाज़िल की है उस पर मैं ईमान रखता हूँ

और मुझे हुक्म हुआ है कि मैं तुम्हारे एख्तेलाफात के (दरमेयान) इन्साफ़ (से फ़ैसला) करूँ

اللَّهُ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ ۖ

ख़ुदा ही हमारा भी परवरदिगार है और वही तुम्हारा भी परवरदिगार है

لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ ۖ لَا حُجَّةَ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمُ ۖ

हमारी कारगुज़ारियाँ हमारे ही लिए हैं और तुम्हारी कारस्तानियाँ तुम्हारे वास्ते

हममें और तुममें तो कुछ हुज्जत (व तक़रार की ज़रूरत) नहीं

اللَّهُ يَجْمَعُ بَيْنَنَا ۖ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ

ख़ुदा ही हम (क़यामत में) सबको इकट्ठा करेगा और उसी की तरफ लौट कर जाना है

16

وَالَّذِينَ يُحَاجُّونَ فِي اللَّهِ مِنْ بَعْدِ مَا اسْتُجِيبَ لَهُ حُجَّتُهُمْ دَاحِضَةٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ

और जो लोग उसके मान लिए जाने के बाद ख़ुदा के बारे में (ख्वाहमख्वाह) झगड़ा करते हैं उनके परवरदिगार के नज़दीक उनकी दलील लग़ो बातिल है

وَعَلَيْهِمْ غَضَبٌ وَلَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ

और उन पर (ख़ुदा का) ग़ज़ब और उनके लिए सख्त अज़ाब है

17

اللَّهُ الَّذِي أَنْزَلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ وَالْمِيزَانَ ۗ

ख़ुदा ही तो है जिसने सच्चाई के साथ किताब नाज़िल की और अदल व इन्साफ़ (भी नाज़िल किया)

وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ قَرِيبٌ

और तुमको क्या मालूम यायद क़यामत क़रीब ही हो

(फिर ये ग़फ़लत कैसी)

18

يَسْتَعْجِلُ بِهَا الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِهَا ۖ

जो लोग इस पर ईमान नहीं रखते वह तो इसके लिए जल्दी कर रहे हैं

وَالَّذِينَ آمَنُوا مُشْفِقُونَ مِنْهَا وَيَعْلَمُونَ أَنَّهَا الْحَقُّ ۗ

और जो मोमिन हैं वह उससे डरते हैं और जानते हैं कि क़यामत यक़ीनी बरहक़ है

أَلَا إِنَّ الَّذِينَ يُمَارُونَ فِي السَّاعَةِ لَفِي ضَلَالٍ بَعِيدٍ

आगाह रहो कि जो लोग क़यामत के बारे में शक़ किया करते हैं वह बड़े परले दर्जे की गुमराही में हैं

19

اللَّهُ لَطِيفٌ بِعِبَادِهِ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ ۖ وَهُوَ الْقَوِيُّ الْعَزِيزُ

और ख़ुदा अपने बन्दों (के हाल) पर बड़ा मेहरबान है जिसको (जितनी) रोज़ी चाहता है देता है

वह ज़ोर वाला ज़बरदस्त है  

20

مَنْ كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الْآخِرَةِ نَزِدْ لَهُ فِي حَرْثِهِ ۖ

जो शख़्श आखेरत की खेती का तालिब हो हम उसके लिए उसकी खेती में अफ़ज़ाइश करेंगे

وَمَنْ كَانَ يُرِيدُ حَرْثَ الدُّنْيَا نُؤْتِهِ مِنْهَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ نَصِيبٍ

और दुनिया की खेती का ख़ास्तगार हो तो हम उसको उसी में से देंगे मगर आखेरत में फिर उसका कुछ हिस्सा न होगा

21

أَمْ لَهُمْ شُرَكَاءُ شَرَعُوا لَهُمْ مِنَ الدِّينِ مَا لَمْ يَأْذَنْ بِهِ اللَّهُ ۚ

क्या उन लोगों के (बनाए हुए) ऐसे शरीक हैं जिन्होंने उनके लिए ऐसा दीन मुक़र्रर किया है जिसकी ख़ुदा ने इजाज़त नहीं दी

وَلَوْلَا كَلِمَةُ الْفَصْلِ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ وَإِنَّ الظَّالِمِينَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ ۗ

और अगर फ़ैसले (के दिन) का वायदा न होता तो उनमें यक़ीनी अब तक फैसला हो चुका होता

और ज़ालिमों के वास्ते ज़रूर दर्दनाक अज़ाब है  

22

تَرَى الظَّالِمِينَ مُشْفِقِينَ مِمَّا كَسَبُوا وَهُوَ وَاقِعٌ بِهِمْ ۗ

(क़यामत के दिन) देखोगे कि ज़ालिम लोग अपने आमाल (के वबाल) से डर रहे होंगे और वह उन पर पड़ कर रहेगा

وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فِي رَوْضَاتِ الْجَنَّاتِ ۖ

और जिन्होने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे काम किए वह बेहिश्त के बाग़ों में होंगे

لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ ۚ

वह जो कुछ चाहेंगे उनके लिए उनके परवरदिगार की बारगाह में (मौजूद) है

ذَلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ

यही तो (ख़ुदा का) बड़ा फज़ल है

23

ذَلِكَ الَّذِي يُبَشِّرُ اللَّهُ عِبَادَهُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ ۗ

यही (ईनाम) है जिसकी ख़ुदा अपने उन बन्दों को ख़ुशख़बरी देता है जो ईमान लाए और नेक काम करते रहे

قُلْ لَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرًا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْبَى ۗ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं इस (तबलीग़े रिसालत) का अपने क़रातबदारों (अहले बैत) की मोहब्बत के सिवा तुमसे कोई सिला नहीं मांगता

وَمَنْ يَقْتَرِفْ حَسَنَةً نَزِدْ لَهُ فِيهَا حُسْنًا ۚ

और जो शख़्श नेकी हासिल करेगा हम उसके लिए उसकी ख़ूबी में इज़ाफा कर देंगे

إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ شَكُورٌ  

बेशक वह बड़ा बख्शने वाला क़दरदान है

24

أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا ۖ

क्या ये लोग (तुम्हारी निस्बत) कहते हैं कि इस (रसूल) ने ख़ुदा पर झूठा बोहतान बाँधा है

فَإِنْ يَشَإِ اللَّهُ يَخْتِمْ عَلَى قَلْبِكَ ۗ

तो अगर (ऐसा होता तो) ख़ुदा चाहता तो तुम्हारे दिल पर मोहर लगा देता

(कि तुम बात ही न कर सकते)

وَيَمْحُ اللَّهُ الْبَاطِلَ وَيُحِقُّ الْحَقَّ بِكَلِمَاتِهِ ۚ

और ख़ुदा तो झूठ को नेस्तनाबूद और अपनी बातों से हक़ को साबित करता है

إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ

वह यक़ीनी दिलों के राज़ से ख़ूब वाक़िफ है

25

وَهُوَ الَّذِي يَقْبَلُ التَّوْبَةَ عَنْ عِبَادِهِ وَيَعْفُو عَنِ السَّيِّئَاتِ وَيَعْلَمُ مَا تَفْعَلُونَ

और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा क़ुबूल करता है और गुनाहों को माफ़ करता है

और तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह जानता है

26

وَيَسْتَجِيبُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَيَزِيدُهُمْ مِنْ فَضْلِهِ ۚ

और जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे उनकी (दुआ) क़ुबूल करता है फज़ल व क़रम से उनको बढ़ कर देता है

وَالْكَافِرُونَ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ

और काफिरों के लिए सख्त अज़ाब है

27

وَلَوْ بَسَطَ اللَّهُ الرِّزْقَ لِعِبَادِهِ لَبَغَوْا فِي الْأَرْضِ وَلَكِنْ يُنَزِّلُ بِقَدَرٍ مَا يَشَاءُ ۚ

और अगर ख़ुदा ने अपने बन्दों की रोज़ी में फराख़ी कर दे तो वह लोग ज़रूर (रूए) ज़मीन से सरकशी करने लगें

मगर वह तो बाक़दरे मुनासिब जिसकी रोज़ी (जितनी) चाहता है नाज़िल करता है

إِنَّهُ بِعِبَادِهِ خَبِيرٌ بَصِيرٌ

वह बेशक अपने बन्दों से ख़बरदार (और उनको) देखता है

28

وَهُوَ الَّذِي يُنَزِّلُ الْغَيْثَ مِنْ بَعْدِ مَا قَنَطُوا وَيَنْشُرُ رَحْمَتَهُ ۚ

और वही तो है जो लोगों के नाउम्मीद हो जाने के बाद मेंह बरसाता है और अपनी रहमत (बारिश की बरकतों) को फैला देता है

وَهُوَ الْوَلِيُّ الْحَمِيدُ

और वही कारसाज़ (और) हम्द व सना के लायक़ है

29

وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَثَّ فِيهِمَا مِنْ دَابَّةٍ ۚ

और उसी की (क़ुदरत की) निशानियों में से सारे आसमान व ज़मीन का पैदा करना और उन जानदारों का भी जो उसने आसमान व ज़मीन में फैला रखे हैं

وَهُوَ عَلَى جَمْعِهِمْ إِذَا يَشَاءُ قَدِيرٌ

and He has power to gather them together when He wills.

और जब चाहे उनके जमा कर लेने पर (भी) क़ादिर है  

30

وَمَا أَصَابَكُمْ مِنْ مُصِيبَةٍ فَبِمَا كَسَبَتْ أَيْدِيكُمْ وَيَعْفُو عَنْ كَثِيرٍ

और जो मुसीबत तुम पर पड़ती है वह तुम्हारे अपने ही हाथों की करतूत से

और (उस पर भी) वह बहुत कुछ माफ कर देता है

31

وَمَا أَنْتُمْ بِمُعْجِزِينَ فِي الْأَرْضِ ۖ وَمَا لَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ

और तुम लोग ज़मीन में (रह कर) तो ख़ुदा को किसी तरह हरा नहीं सकते

और ख़ुदा के सिवा तुम्हारा न कोई दोस्त है और न मददगार  

32

وَمِنْ آيَاتِهِ الْجَوَارِ فِي الْبَحْرِ كَالْأَعْلَامِ  

और उसी की (क़ुदरत) की निशानियों में से समन्दर में (चलने वाले) बादबानी जहाज़ है जो गोया पहाड़ हैं

33

إِنْ يَشَأْ يُسْكِنِ الرِّيحَ فَيَظْلَلْنَ رَوَاكِدَ عَلَى ظَهْرِهِ ۚ

अगर ख़ुदा चाहे तो हवा को ठहरा दे तो जहाज़ भी समन्दर की सतह पर (खड़े के खड़े) रह जाएँ

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِكُلِّ صَبَّارٍ شَكُورٍ

34

أَوْ يُوبِقْهُنَّ بِمَا كَسَبُوا وَيَعْفُ عَنْ كَثِيرٍ  

Or He can cause them to perish because of the (evil) which (the men) have earned: but much doth He forgive.

(या वह चाहे तो) उनको उनके आमाल (बद) के सबब तबाह कर दे

और वह बहुत कुछ माफ़ करता है

35

وَيَعْلَمَ الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آيَاتِنَا مَا لَهُمْ مِنْ مَحِيصٍ

और जो लोग हमारी निशानियों में (ख्वाहमाख्वाह) झगड़ा करते हैं

वह अच्छी तरह समझ लें कि उनको किसी तरह (अज़ाब से) छुटकारा नहीं

36

فَمَا أُوتِيتُمْ مِنْ شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ

(लोगों) तुमको जो कुछ (माल) दिया गया है वह दुनिया की ज़िन्दगी का (चन्द रोज़) साज़ोसामान है

وَمَا عِنْدَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَى

और जो कुछ ख़ुदा के यहाँ है वह कहीं बेहतर और पायदार है

لِلَّذِينَ آمَنُوا وَعَلَى رَبِّهِمْ يَتَوَكَّلُونَ

(मगर ये) ख़ास उन ही लोगों के लिए है जो ईमान लाए और अपने परवरदिगार पर भरोसा रखते हैं

37

وَالَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ

और जो लोग बड़े बड़े गुनाहों और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं

وَإِذَا مَا غَضِبُوا هُمْ يَغْفِرُونَ  

और ग़ुस्सा आ जाता है तो माफ कर देते हैं

38

وَالَّذِينَ اسْتَجَابُوا لِرَبِّهِمْ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ

और जो अपने परवरदिगार का हुक्म मानते हैं और नमाज़ पढ़ते हैं

وَأَمْرُهُمْ شُورَى بَيْنَهُمْ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ  

और उनके कुल काम आपस के मशवरे से होते हैं

और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (राहे ख़ुदा में) ख़र्च करते हैं

39

وَالَّذِينَ إِذَا أَصَابَهُمُ الْبَغْيُ هُمْ يَنْتَصِرُونَ  

और (वह ऐसे हैं) कि जब उन पर किसी किस्म की ज्यादती की जाती है तो बस वाजिबी बदला ले लेते हैं

40

وَجَزَاءُ سَيِّئَةٍ سَيِّئَةٌ مِثْلُهَا ۖ

और बुराई का बदला तो वैसी ही बुराई है

فَمَنْ عَفَا وَأَصْلَحَ فَأَجْرُهُ عَلَى اللَّهِ ۚ

उस पर भी जो शख्स माफ कर दे और (मामले की) इसलाह कर दें तो इसका सवाब ख़ुदा के ज़िम्मे है

إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الظَّالِمِينَ  

बेशक वह ज़ुल्म करने वालों को पसन्द नहीं करता

41

وَلَمَنِ انْتَصَرَ بَعْدَ ظُلْمِهِ فَأُولَئِكَ مَا عَلَيْهِمْ مِنْ سَبِيلٍ

और जिस पर ज़ुल्म हुआ हो अगर वह उसके बाद इन्तेक़ाम ले तो ऐसे लोगों पर कोई इल्ज़ाम नहीं

42

إِنَّمَا السَّبِيلُ عَلَى الَّذِينَ يَظْلِمُونَ النَّاسَ وَيَبْغُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ ۚ

इल्ज़ाम तो बस उन्हीं लोगों पर होगा जो लोगों पर ज़ुल्म करते हैं और रूए ज़मीन में नाहक़ ज्यादतियाँ करते फिरते हैं

أُولَئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ  

उन्हीं लोगों के लिए दर्दनाक अज़ाब है

43

وَلَمَنْ صَبَرَ وَغَفَرَ إِنَّ ذَلِكَ لَمِنْ عَزْمِ الْأُمُورِ  

और जो सब्र करे और कुसूर माफ़ कर दे तो बेशक ये बड़े हौसले के काम हैं

44

وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ وَلِيٍّ مِنْ بَعْدِهِ ۗ

और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके बाद उसका कोई सरपरस्त नहीं

وَتَرَى الظَّالِمِينَ لَمَّا رَأَوُا الْعَذَابَ يَقُولُونَ هَلْ إِلَى مَرَدٍّ مِنْ سَبِيلٍ

और तुम ज़ालिमों को देखोगे कि जब (दोज़ख़) का अज़ाब देखेंगे तो कहेंगे कि भला (दुनिया में) फिर लौट कर जाने की कोई सबील है

45

وَتَرَاهُمْ يُعْرَضُونَ عَلَيْهَا خَاشِعِينَ مِنَ الذُّلِّ يَنْظُرُونَ مِنْ طَرْفٍ خَفِيٍّ ۗ

और तुम उनको देखोगे कि दोज़ख़ के सामने लाए गये हैं (और) ज़िल्लत के मारे कटे जाते हैं (और) कनक्खियों से देखे जाते हैं

وَقَالَ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ

और मोमिनीन कहेंगे कि हकीक़त में वही बड़े घाटे में हैं जिन्होने क़यामत के दिन अपने आप को और अपने घर वालों को ख़सारे में डाला

أَلَا إِنَّ الظَّالِمِينَ فِي عَذَابٍ مُقِيمٍ

देखो ज़ुल्म करने वाले दाएमी अज़ाब में रहेंगे

46

وَمَا كَانَ لَهُمْ مِنْ أَوْلِيَاءَ يَنْصُرُونَهُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ ۗ

और ख़ुदा के सिवा न उनके सरपरस्त ही होंगे जो उनकी मदद को आएँ

وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ سَبِيلٍ

और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसके लिए (हिदायत की) कोई राह नहीं

47

اسْتَجِيبُوا لِرَبِّكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ يَوْمٌ لَا مَرَدَّ لَهُ مِنَ اللَّهِ ۚ

(लोगों) उस दिन के पहले जो ख़ुदा की तरफ से आयेगा और किसी तरह (टाले न टलेगा) अपने परवरदिगार का हुक्म मान लो

مَا لَكُمْ مِنْ مَلْجَإٍ يَوْمَئِذٍ وَمَا لَكُمْ مِنْ نَكِيرٍ  

(क्यों कि) उस दिन न तो तुमको कहीं पनाह की जगह मिलेगी और न तुमसे (गुनाह का) इन्कार ही बन पड़ेगा

48

فَإِنْ أَعْرَضُوا فَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ حَفِيظًا ۖ

फिर अगर मुँह फेर लें तो (ऐ रसूल) हमने तुमको उनका निगेहबान बनाकर नहीं भेजा

إِنْ عَلَيْكَ إِلَّا الْبَلَاغُ ۗ

तुम्हारा काम तो सिर्फ (एहकाम का) पहुँचा देना है

وَإِنَّا إِذَا أَذَقْنَا الْإِنْسَانَ مِنَّا رَحْمَةً فَرِحَ بِهَا ۖ

और जब हम इन्सान को अपनी रहमत का मज़ा चखाते हैं तो वह उससे ख़ुश हो जाता है

وَإِنْ تُصِبْهُمْ سَيِّئَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَإِنَّ الْإِنْسَانَ كَفُورٌ

और अगर उनको उन्हीं के हाथों की पहली करतूतों की बदौलत कोई तकलीफ पहुँचती (सब एहसान भूल गए)

बेशक इन्सान बड़ा नाशुक्रा है

49

لِلَّهِ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ

सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत ख़ास ख़ुदा ही की है

يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ

जो चाहता है पैदा करता है

يَهَبُ لِمَنْ يَشَاءُ إِنَاثًا وَيَهَبُ لِمَنْ يَشَاءُ الذُّكُورَ  

(और) जिसे चाहता है (फ़क़त) बेटियाँ देता है और जिसे चाहता है (महज़) बेटा अता करता है

50

أَوْ يُزَوِّجُهُمْ ذُكْرَانًا وَإِنَاثًا ۖ وَيَجْعَلُ مَنْ يَشَاءُ عَقِيمًا ۚ

या उनको बेटे बेटियाँ (औलाद की) दोनों किस्में इनायत करता है

और जिसको चाहता है बांझ बना देता है

إِنَّهُ عَلِيمٌ قَدِيرٌ  

बेशक वह बड़ा वाकिफ़कार क़ादिर है

51

وَمَا كَانَ لِبَشَرٍ أَنْ يُكَلِّمَهُ اللَّهُ إِلَّا وَحْيًا أَوْ مِنْ وَرَاءِ حِجَابٍ

और किसी आदमी के लिए ये मुमकिन नहीं कि ख़ुदा उससे बात करे मगर वही के ज़रिए से (जैसे दाऊद) परदे के पीछे से जैसे (मूसा)

أَوْ يُرْسِلَ رَسُولًا فَيُوحِيَ بِإِذْنِهِ مَا يَشَاءُ ۚ

या कोई फ़रिश्ता भेज दे (जैसे मोहम्मद) ग़रज़ वह अपने एख्तेयार से जो चाहता है पैग़ाम भेज देता है

إِنَّهُ عَلِيٌّ حَكِيمٌ

बेशक वह आलीशान हिकमत वाला है  

52

وَكَذَلِكَ أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ رُوحًا مِنْ أَمْرِنَا ۚ

और इसी तरह हमने अपने हुक्म को रूह (क़ुरान) तुम्हारी तरफ 'वही' के ज़रिए से भेजे

مَا كُنْتَ تَدْرِي مَا الْكِتَابُ وَلَا الْإِيمَانُ

तो तुम न किताब ही को जानते थे कि क्या है और न ईमान को

وَلَكِنْ جَعَلْنَاهُ نُورًا نَهْدِي بِهِ مَنْ نَشَاءُ مِنْ عِبَادِنَا ۚ

मगर इस (क़ुरान) को एक नूर बनाया है कि इससे हम अपने बन्दों में से जिसकी चाहते हैं हिदायत करते हैं

وَإِنَّكَ لَتَهْدِي إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ

और इसमें शक़ नहीं कि तुम (ऐ रसूल) सीधा ही रास्ता दिखाते हो

53

صِرَاطِ اللَّهِ الَّذِي لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ

(यानि) उसका रास्ता कि जो आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है

أَلَا إِلَى اللَّهِ تَصِيرُ الْأُمُورُ

सुन रखो सब काम ख़ुदा ही की तरफ रूजू होंगे और वही फैसला करेगा

*********


© Copy Rights:

Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

Email: cmaj37@gmail.com

Visits wef June 2024