Quran Hindi Translation

Surah Fussilat

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

حم

हा मीम

2

تَنْزِيلٌ مِنَ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

(ये किताब) रहमान व रहीम ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुई है

3

كِتَابٌ فُصِّلَتْ آيَاتُهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ

जिसकी आयतें तफ़सील से बयान कर दी गयीं हैं

ये (वह) किताब अरबी क़ुरान है समझदार लोगें के वास्ते

4

بَشِيرًا وَنَذِيرًا

(नेको कारों को) ख़वशख़बरी देने वाली और (बदकारों को) डराने वाली है

فَأَعْرَضَ أَكْثَرُهُمْ فَهُمْ لَا يَسْمَعُونَ

इस पर भी उनमें से अक्सर ने मुँह फेर लिया और वह सुनते ही नहीं

5

وَقَالُوا قُلُوبُنَا فِي أَكِنَّةٍ مِمَّا تَدْعُونَا إِلَيْهِ

और कहने लगे जिस चीज़ की तरफ तुम हमें बुलाते हो उससे तो हमारे दिल पर्दों में हैं

(कि दिल को नहीं लगती)

وَفِي آذَانِنَا وَقْرٌ وَمِنْ بَيْنِنَا وَبَيْنِكَ حِجَابٌ فَاعْمَلْ إِنَّنَا عَامِلُونَ

और हमारे कानों में गिर्दानी (बहरापन है) कि कुछ सुनायी नहीं देता और हमारे तुम्हारे दरमियान एक पर्दा (हायल) है

तो तुम (अपना) काम करो हम (अपना) काम करते हैं  

6

قُلْ إِنَّمَا أَنَا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يُوحَى إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ فَاسْتَقِيمُوا إِلَيْهِ وَاسْتَغْفِرُوهُ ۗ

(ऐ रसूल) कह दो कि मैं भी बस तुम्हारा ही सा आदमी हूँ (मगर फ़र्क ये है कि) मुझ पर 'वही' आती है कि तुम्हारा माबूद बस (वही) यकता ख़ुदा है

तो सीधे उसकी तरफ मुतावज्जे रहो और उसी से बख़शिश की दुआ माँगो,

وَوَيْلٌ لِلْمُشْرِكِينَ

और मुशरेकों पर अफसोस है

7

الَّذِينَ لَا يُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ

जो ज़कात नहीं देते और आखेरत के भी क़ायल नहीं

8

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ

बेशक जो लोग ईमान लाए और अच्छे अच्छे काम करते रहे और उनके लिए वह सवाब है जो कभी ख़त्म होने वाला नहीं

9

قُلْ أَئِنَّكُمْ لَتَكْفُرُونَ بِالَّذِي خَلَقَ الْأَرْضَ فِي يَوْمَيْنِ وَتَجْعَلُونَ لَهُ أَنْدَادًا ۚ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि क्या तुम उस (ख़ुदा) से इन्कार करते हो जिसने ज़मीन को दो दिन में पैदा किया और तुम (औरों को) उसका हमसर बनाते हो,

ذَلِكَ رَبُّ الْعَالَمِينَ‏

यही तो सारे जहाँ का सरपरस्त है

10

وَجَعَلَ فِيهَا رَوَاسِيَ مِنْ فَوْقِهَا وَبَارَكَ فِيهَا

और उसी ने ज़मीन में उसके ऊपर से पहाड़ पैदा किए और उसी ने इसमें बरकत अता की

وَقَدَّرَ فِيهَا أَقْوَاتَهَا فِي أَرْبَعَةِ أَيَّامٍ سَوَاءً لِلسَّائِلِينَ

और उसी ने एक मुनासिब अन्दाज़ पर इसमें सामाने माईशत का बन्दोबस्त किया (ये सब कुछ) चार दिन में और तमाम तलबगारों के लिए बराबर है

11

ثُمَّ اسْتَوَى إِلَى السَّمَاءِ وَهِيَ دُخَانٌ

फिर आसमान की तरफ मुतावज्जे हुआ और (उस वक्त) धुएँ (का सा) था

فَقَالَ لَهَا وَلِلْأَرْضِ ائْتِيَا طَوْعًا أَوْ كَرْهًا

उसने उससे और ज़मीन से फरमाया कि तुम दोनों आओ ख़वशी से ख्वाह कराहत से,

قَالَتَا أَتَيْنَا طَائِعِينَ

दोनों ने अर्ज़ की हम ख़वशी ख़वशी हाज़िर हैं (और हुक्म के पाबन्द हैं)

12

فَقَضَاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ فِي يَوْمَيْنِ وَأَوْحَى فِي كُلِّ سَمَاءٍ أَمْرَهَا ۚ

फिर उसने दोनों में उस (धुएँ) के सात आसमान बनाए और हर आसमान में उसके (इन्तेज़ाम) का हुक्म (कार कुनान कज़ा व क़दर के पास) भेज दिया

وَزَيَّنَّا السَّمَاءَ الدُّنْيَا بِمَصَابِيحَ وَحِفْظًا ۚ

और हमने नीचे वाले आसमान को (सितारों के) चिराग़ों से मज़य्यन किया और (शैतानों से) महफूज़ रखा

ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ

ये वाक़िफ़कार ग़ालिब ख़ुदा के (मुक़र्रर किए हुए) अन्दाज़ हैं

13

فَإِنْ أَعْرَضُوا فَقُلْ أَنْذَرْتُكُمْ صَاعِقَةً مِثْلَ صَاعِقَةِ عَادٍ وَثَمُودَ

फिर अगर हम पर भी ये कुफ्फार मुँह फेरें तो कह दो कि मैं तुम को ऐसी बिजली गिरने (के अज़ाब से) डराता हूँ जैसी क़ौम आद व समूद की बिजली की कड़क

14

إِذْ جَاءَتْهُمُ الرُّسُلُ مِنْ بَيْنِ أَيْدِيهِمْ وَمِنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ ۖ

जब उनके पास उनके आगे से और पीछे से पैग़म्बर (ये ख़बर लेकर) आए कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो

قَالُوا لَوْ شَاءَ رَبُّنَا لَأَنْزَلَ مَلَائِكَةً فَإِنَّا بِمَا أُرْسِلْتُمْ بِهِ كَافِرُونَ 

तो कहने लगे कि अगर हमारा परवरदिगार चाहता तो फ़रिश्ते नाज़िल करता और जो (बातें) देकर तुम लोग भेजे गए हो हम तो उसे नहीं मानते

15

فَأَمَّا عَادٌ فَاسْتَكْبَرُوا فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَقَالُوا مَنْ أَشَدُّ مِنَّا قُوَّةً ۖ

तो आद नाहक़ रूए ज़मीन में ग़ुरूर करने लगे और कहने लगे कि हम से बढ़ के क़ूवत में कौन है,

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَهُمْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۖ

क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर न किया कि ख़ुदा जिसने उनको पैदा किया है वह उनसे क़ूवत में कहीं बढ़ के है,

وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ

ग़रज़ वह लोग हमारी आयतों से इन्कार ही करते रहे

16

فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا صَرْصَرًا فِي أَيَّامٍ نَحِسَاتٍ لِنُذِيقَهُمْ عَذَابَ الْخِزْيِ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ

तो हमने भी (तो उनके) नहूसत के दिनों में उन पर बड़ी ज़ोरों की ऑंधी चलाई

ताकि दुनिया की ज़िन्दगी में भी उनको रूसवाई के अज़ाब का मज़ा चखा दें

وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَخْزَى ۖ وَهُمْ لَا يُنْصَرُونَ

और आखेरत का अज़ाब तो और ज्यादा रूसवा करने वाला ही होगा

और (फिर) उनको कहीं से मदद भी न मिलेगी

17

وَأَمَّا ثَمُودُ فَهَدَيْنَاهُمْ فَاسْتَحَبُّوا الْعَمَى عَلَى الْهُدَى

और रहे समूद तो हमने उनको सीधा रास्ता दिखाया, मगर उन लोगों ने हिदायत के मुक़ाबले में गुमराही को पसन्द किया

فَأَخَذَتْهُمْ صَاعِقَةُ الْعَذَابِ الْهُونِ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ

तो उन की करतूतों की बदौलत ज़िल्लत के अज़ाब की बिजली ने उनको ले डाला

18

وَنَجَّيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ

और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते थे उनको हमने (इस) मुसीबत से बचा लिया

19

وَيَوْمَ يُحْشَرُ أَعْدَاءُ اللَّهِ إِلَى النَّارِ فَهُمْ يُوزَعُونَ

और जिस दिन ख़ुदा के दुशमन दोज़ख़ की तरफ हकाए जाएँगे तो ये लोग तरतीब वार खड़े किए जाएँगे

20

حَتَّى إِذَا مَا جَاءُ وهَا شَهِدَ عَلَيْهِمْ سَمْعُهُمْ وَأَبْصَارُهُمْ وَجُلُودُهُمْ بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ  

यहाँ तक की जब सब के सब जहन्नुम के पास जाएँगे तो उनके कान और उनकी ऑंखें और उनके (गोश्त पोस्त) उनके ख़िलाफ उनके मुक़ाबले में उनकी कारस्तानियों की गवाही देगें

21

وَقَالُوا لِجُلُودِهِمْ لِمَ شَهِدْتُمْ عَلَيْنَا ۖ

और ये लोग अपने आज़ा से कहेंगे कि तुमने हमारे ख़िलाफ क्यों गवाही दी

قَالُوا أَنْطَقَنَا اللَّهُ الَّذِي أَنْطَقَ كُلَّ شَيْءٍ

तो वह जवाब देंगे कि जिस ख़ुदा ने हर चीज़ को गोया किया उसने हमको भी (अपनी क़ुदरत से) गोया किया

وَهُوَ خَلَقَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ

और उसी ने तुमको पहली बार पैदा किया था और (आख़िर) उसी की तरफ लौट कर जाओगे

22

وَمَا كُنْتُمْ تَسْتَتِرُونَ أَنْ يَشْهَدَ عَلَيْكُمْ سَمْعُكُمْ وَلَا أَبْصَارُكُمْ وَلَاجُلُودُكُمْ

और (तुम्हारी तो ये हालत थी कि) तुम लोग इस ख्याल से (अपने गुनाहों की) पर्दा दारी भी तो नहीं करते थे कि तुम्हारे कान और तुम्हारी ऑंखे और तुम्हारे आज़ा तुम्हारे बरख़िलाफ गवाही देंगे

وَلَكِنْ ظَنَنْتُمْ أَنَّ اللَّهَ لَا يَعْلَمُ كَثِيرًا مِمَّا تَعْمَلُونَ

बल्कि तुम इस ख्याल मे (भूले हुए) थे कि ख़ुदा को तुम्हारे बहुत से कामों की ख़बर ही नहीं

23

وَذَلِكُمْ ظَنُّكُمُ الَّذِي ظَنَنْتُمْ بِرَبِّكُمْ أَرْدَاكُمْ فَأَصْبَحْتُمْ مِنَ الْخَاسِرِينَ  

और तुम्हारी इस बदख्याली ने जो तुम अपने परवरदिगार के बारे में रखते थे तुम्हें तबाह कर छोड़ा

आख़िर तुम घाटे में रहे  

24

فَإِنْ يَصْبِرُوا فَالنَّارُ مَثْوًى لَهُمْ ۖ

फिर अगर ये लोग सब्र भी करें तो भी इनका ठिकाना दोज़ख़ ही है

وَإِنْ يَسْتَعْتِبُوا فَمَا هُمْ مِنَ الْمُعْتَبِينَ

और अगर तौबा करें तो भी इनकी तौबा क़ुबूल न की जाएगी

25

وَقَيَّضْنَا لَهُمْ قُرَنَاءَ فَزَيَّنُوا لَهُمْ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ

और हमने (गोया ख़ुद शैतान को) उनका हमनशीन मुक़र्रर कर दिया था तो उन्होने उनके अगले पिछले तमाम उमूर उनकी नज़रों में भले कर दिखाए

وَحَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ ۖ

तो जिन्नात और इन्सानो की उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी थीं उनके शुमूल (साथ) में (अज़ाब का) वायदा उनके हक़ में भी पूरा हो कर रहा

إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ

बेशक ये लोग अपने घाटे के दरपै थे

26

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لَا تَسْمَعُوا لِهَذَا الْقُرْآنِ وَالْغَوْا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَغْلِبُونَ

और कुफ्फ़ार कहने लगे कि इस क़ुरान को सुनो ही नहीं

और जब पढ़ें (तो) इसके (बीच) में ग़ुल मचा दिया करो ताकि (इस तरकीब से) तुम ग़ालिब आ जाओ

27

فَلَنُذِيقَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا عَذَابًا شَدِيدًا وَلَنَجْزِيَنَّهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ

तो हम भी काफ़िरों को सख्त अज़ाब के मज़े चखाएँगे

और इनकी कारस्तानियों की बहुत बड़ी सज़ा देंगे

28

ذَلِكَ جَزَاءُ أَعْدَاءِ اللَّهِ النَّارُ ۖ

ख़ुदा के दुशमनों का बदला है ये दोज़ख़

لَهُمْ فِيهَا دَارُ الْخُلْدِ ۖ جَزَاءً بِمَا كَانُوا بِآيَاتِنَا يَجْحَدُونَ

उनके लिए उसमें हमेशा (रहने) का घर है,

कि वह जो हमरी आयतों से इन्कार करते थे उसकी सज़ा है

29

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا رَبَّنَا أَرِنَا اللَّذَيْنِ أَضَلَّانَا مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ

और (क़यामत के दिन) कुफ्फ़ार कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार जिनों और इन्सानों में से जिन लोगों ने हमको गुमराह किया था (एक नज़र) उनको हमें दिखा दे

نَجْعَلْهُمَا تَحْتَ أَقْدَامِنَا لِيَكُونَا مِنَ الْأَسْفَلِينَ

कि हम उनको पाँव तले (रौन्द) डालें ताकि वह ख़ूब ज़लील हों

30

إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا تَتَنَزَّلُ عَلَيْهِمُ الْمَلَائِكَةُ

और जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) कहा कि हमारा परवरदिगार तो (बस) ख़ुदा है, फिर वह उसी पर भी क़ायम भी रहे उन पर मौत के वक्त (रहमत के) फ़रिश्ते नाज़िल होंगे

أَلَّا تَخَافُوا وَلَا تَحْزَنُوا وَأَبْشِرُوا بِالْجَنَّةِ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ

(और कहेंगे) कि कुछ ख़ौफ न करो और न ग़म खाओ और जिस बेहिश्त का तुमसे वायदा किया गया था उसकी ख़ुशियां मनाओ

31

نَحْنُ أَوْلِيَاؤُكُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَفِي الْآخِرَةِ ۖ

हम दुनिया की ज़िन्दगी में तुम्हारे दोस्त थे और आखेरत में भी तुम्हारे (रफ़ीक़) हैं

وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَشْتَهِي أَنْفُسُكُمْ وَلَكُمْ فِيهَا مَا تَدَّعُونَ

और जिस चीज़ का भी तुम्हार जी चाहे बेहिश्त में तुम्हारे वास्ते मौजूद है और जो चीज़ तलब करोगे वहाँ तुम्हारे लिए (हाज़िर) होगी

32

نُزُلًا مِنْ غَفُورٍ رَحِيمٍ

(ये) बख्शने वाले मेहरबान (ख़ुदा) की तरफ़ से (तुम्हारी मेहमानी है)

33

وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلًا مِمَّنْ دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِينَ

और इस से बेहतर किसकी बात हो सकती है जो (लोगों को) ख़ुदा की तरफ बुलाए

और अच्छे अच्छे काम करे और कहे कि मैं भी यक़ीनन (ख़ुदा के) फरमाबरदार बन्दों में हूं

34

وَلَا تَسْتَوِي الْحَسَنَةُ وَلَا السَّيِّئَةُ ۚ

और भलाई बुराई (कभी) बराबर नहीं हो सकती

ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ فَإِذَا الَّذِي بَيْنَكَ وَبَيْنَهُ عَدَاوَةٌ كَأَنَّهُ وَلِيٌّ حَمِيمٌ  

तो (सख्त कलामी का) ऐसे तरीके से जवाब दो जो निहायत अच्छा हो

(ऐसा करोगे) तो (तुम देखोगे) जिस में और तुममें दुशमनी थी गोया वह तुम्हारा दिल सोज़ दोस्त है

35

وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الَّذِينَ صَبَرُوا وَمَا يُلَقَّاهَا إِلَّا ذُو حَظٍّ عَظِيمٍ

ये बात बस उन्हीं लोगों को हासिल हुईहै जो सब्र करने वाले हैं

और उन्हीं लोगों को हासिल होती है जो बड़े नसीबवर हैं

36

وَإِمَّا يَنْزَغَنَّكَ مِنَ الشَّيْطَانِ نَزْغٌ فَاسْتَعِذْ بِاللَّهِ ۖ

और अगर तुम्हें शैतान की तरफ से वसवसा पैदा हो तो ख़ुदा की पनाह माँग लिया करो

إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

बेशक वह (सबकी) सुनता जानता है

37

وَمِنْ آيَاتِهِ اللَّيْلُ وَالنَّهَارُ وَالشَّمْسُ وَالْقَمَرُ ۚ

और उसकी (कुदरत की) निशानियों में से रात और दिन और सूरज और चाँद हैं

لَا تَسْجُدُوا لِلشَّمْسِ وَلَا لِلْقَمَرِ وَاسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي خَلَقَهُنَّ إِنْ كُنْتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ  

तो तुम लोग न सूरज को सजदा करो और न चाँद को,

और अगर तुम ख़ुदा ही की इबादत करनी मंज़ूर रहे तो बस उसी को सजदा करो जिसने इन चीज़ों को पैदा किया है

38

فَإِنِ اسْتَكْبَرُو ا فَالَّذِينَ عِنْدَ رَبِّكَ يُسَبِّحُونَ لَهُ بِاللَّيْلِ وَ النَّهَارِ وَهُمْ لَا يَسْأَمُونَ ۩

पस अगर ये लोग सरकशी करें तो (ख़ुदा को भी उनकी परवाह नहीं)

वो लोग (फ़रिश्ते) तुम्हारे परवरदिगार की बारगाह में हैं वह रात दिन उसकी तसबीह करते रहते हैं और वह लोग उकताते भी नहीं

39

وَمِنْ آيَاتِهِ أَنَّكَ تَرَى الْأَرْضَ خَاشِعَةً فَإِذَا أَنْزَلْنَا عَلَيْهَا الْمَاءَ اهْتَزَّتْ وَرَبَتْ ۚ

उसकी क़ुदरत की निशानियों में से एक ये भी है कि तुम ज़मीन को शुष्क और बेआब ओ गयाह देखते हो

फिर जब हम उस पर पानी बरसा देते हैं तो लहलहाने लगती है और फूल जाती है

إِنَّ الَّذِي أَحْيَاهَا لَمُحْيِي الْمَوْتَى ۚ

जिस ख़ुदा ने (मुर्दा) ज़मीन को ज़िन्दा किया वह यक़ीनन मुर्दों को भी जिलाएगा

إِنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ  

बेशक वह हर चीज़ पर क़ादिर है

40

إِنَّ الَّذِينَ يُلْحِدُونَ فِي آيَاتِنَا لَا يَخْفَوْنَ عَلَيْنَا ۗ

जो लोग हमारी आयतों में हेर फेर पैदा करते हैं वह हरगिज़ हमसे पोशीदा नहीं हैं

أَفَمَنْ يُلْقَى فِي النَّارِ خَيْرٌ أَمْ مَنْ يَأْتِي آمِنًا يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ

भला जो शख्स दोज़ख़ में डाला जाएगा वह बेहतर है या वह शख्स जो क़यामत के दिन बेख़ौफ व ख़तर आएगा

اعْمَلُوا مَا شِئْتُمْ ۖ إِنَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ  

(ख़ैर) जो चाहो सो करो

(मगर) जो कुछ तुम करते हो वह (ख़ुदा) उसको देख रहा है

41

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِالذِّكْرِ لَمَّا جَاءَهُمْ ۖ

जिन लोगों ने नसीहत को जब वह उनके पास आयी न माना

(वह अपना नतीजा देख लेंगे)

وَإِنَّهُ لَكِتَابٌ عَزِيزٌ

और ये (क़ुरान) तो यक़ीनी एक आली मरतबा किताब है

42

لَا يَأْتِيهِ الْبَاطِلُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَلَا مِنْ خَلْفِهِ ۖ

कि झूठ न तो उसके आगे फटक सकता है और न उसके पीछे से

تَنْزِيلٌ مِنْ حَكِيمٍ حَمِيدٍ  

और खूबियों वाले दाना (ख़ुदा) की बारगाह से नाज़िल हुई है

43

مَا يُقَالُ لَكَ إِلَّا مَا قَدْ قِيلَ لِلرُّسُلِ مِنْ قَبْلِكَ ۚ

(ऐ रसूल) तुमसे से भी बस वही बातें कहीं जाती हैं जो तुमसे और रसूलों से कही जा चुकी हैं

إِنَّ رَبَّكَ لَذُو مَغْفِرَةٍ وَذُو عِقَابٍ أَلِيمٍ  

बेशक तुम्हारा परवरदिगार बख्शने वाला भी है और दर्दनाक अज़ाब वाला भी है

44

وَلَوْ جَعَلْنَاهُ قُرْآنًا أَعْجَمِيًّا لَقَالُوا لَوْلَا فُصِّلَتْ آيَاتُهُ ۖ

और अगर हम इस क़ुरान को अरबी ज़बान के सिवा दूसरी ज़बान में नाज़िल करते तो ये लोग ज़रूर कह न बैठते कि इसकी आयतें (हमारी) ज़बान में क्यों तफ़सीलदार बयान नहीं की गयी

أَأَعْجَمِيٌّ وَعَرَبِيٌّ ۗ

क्या (खूब क़ुरान तो) अजमी और (मुख़ातिब) अरबी

قُلْ هُوَ لِلَّذِينَ آمَنُوا هُدًى وَشِفَاءٌ ۖ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ईमानदारों के लिए तो ये (कुरान अज़सरतापा) हिदायत और (हर मर्ज़ की) शिफ़ा है

وَالَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ فِي آذَانِهِمْ وَقْرٌ وَهُوَ عَلَيْهِمْ عَمًى ۚ

और जो लोग ईमान नहीं रखते उनके कानों (के हक़) में गिरानी (बहरापन) है और वह (कुरान) उनके हक़ में नाबीनाई (का सबब) है

أُولَئِكَ يُنَادَوْنَ مِنْ مَكَانٍ بَعِيدٍ

तो गिरानी की वजह से गोया वह लोग बड़ी दूर की जगह से पुकारे जाते है (और नहीं सुनते)

45

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَاخْتُلِفَ فِيهِ ۗ

और हम ही ने मूसा को भी किताब (तौरैत) अता की थी तो उसमें भी इसमें एख्तेलाफ किया गया

وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَبِّكَ لَقُضِيَ بَيْنَهُمْ ۚ

और अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से एक बात पहले न हो चुकी होती तो उनमें कब का फैसला कर दिया गया होता,

وَإِنَّهُمْ لَفِي شَكٍّ مِنْهُ مُرِيبٍ  

और ये लोग ऐसे शक़ में पड़े हुए हैं जिसने उन्हें बेचैन कर दिया है

46

مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِنَفْسِهِ ۖ

जिसने अच्छे अच्छे काम किये तो अपने नफे क़े लिए

وَمَنْ أَسَاءَ فَعَلَيْهَا ۗ

और जो बुरा काम करे उसका वबाल भी उसी पर है

وَمَا رَبُّكَ بِظَلَّامٍ لِلْعَبِيدِ 

और तुम्हारा परवरदिगार तो बन्दों पर (कभी) ज़ुल्म करने वाला नहीं

47

إِلَيْهِ يُرَدُّ عِلْمُ السَّاعَةِ ۚ

क़यामत के इल्म का हवाला उसी की तरफ है (यानि वही जानता है)

وَمَا تَخْرُجُ مِنْ ثَمَرَاتٍ مِنْ أَكْمَامِهَا وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنْثَى وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ

और बगैर उसके इल्म व (इरादे) के न तो फल अपने पौरों से निकलते हैं और न किसी औरत को हमल रखता है और न वह बच्चा जनती है

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ أَيْنَ شُرَكَائِي  قَالُوا آذَنَّاكَ مَا مِنَّا مِنْ شَهِيدٍ  

और जिस दिन (ख़ुदा) उन (मुशरेकीन) को पुकारेगा और पूछेगा कि मेरे शरीक कहाँ हैं- वह कहेंगे हम तो तुझ से अर्ज़ कर चूके हैं कि हम में से कोई (उनसे) वाकिफ़ ही नहीं

48

وَضَلَّ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يَدْعُونَ مِنْ قَبْلُ ۖ وَظَنُّوا مَا لَهُمْ مِنْ مَحِيصٍ

और इससे पहले जिन माबूदों की परसतिश करते थे वह ग़ायब हो गये

और ये लोग समझ जाएगें कि उनके लिए अब मुख़लिसी नहीं

49

لَا يَسْأَمُ الْإِنْسَانُ مِنْ دُعَاءِ الْخَيْرِ وَإِنْ مَسَّهُ الشَّرُّ فَيَئُوسٌ قَنُوطٌ  

इन्सान भलाई की दुआए मांगने से तो कभी उकताता नहीं और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाए तो (फौरन) न उम्मीद और बेआस हो जाता है

50

وَلَئِنْ أَذَقْنَاهُ رَحْمَةً مِنَّا مِنْ بَعْدِ ضَرَّاءَ مَسَّتْهُ

और अगर उसको कोई तकलीफ पहुँच जाने के बाद हम उसको अपनी रहमत का मज़ा चखाएँ तो यक़ीनी कहने लगता है कि ये तो मेरे लिए ही है

لَيَقُولَنَّ هَذَا لِي وَمَا أَظُنُّ السَّاعَةَ قَائِمَةً وَلَئِنْ رُجِعْتُ إِلَى رَبِّي إِنَّ لِي عِنْدَهُ لَلْحُسْنَى ۚ

और मैं नहीं ख़याल करता कि कभी क़यामत बरपा होगी

और अगर (क़यामत हो भी और) मैं अपने परवरदिगार की तरफ़ लौटाया भी जाऊँ तो भी मेरे लिए यक़ीनन उसके यहाँ भलाई ही तो है

فَلَنُنَبِّئَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بِمَا عَمِلُوا وَلَنُذِيقَنَّهُمْ مِنْ عَذَابٍ غَلِيظٍ  

जो आमाल करते रहे हम उनको (क़यामत में) ज़रूर बता देंगें और उनको सख्त अज़ाब का मज़ा चख़ाएगें

51

وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنْسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَى بِجَانِبِهِ

(वह अलग) और जब हम इन्सान पर एहसान करते हैं तो (हमारी तरफ से) मुँह फेर लेता है और मुँह बदलकर चल देता है

وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ فَذُو دُعَاءٍ عَرِيضٍ 

और जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है तो लम्बी चौड़ी दुआएँ करने लगता है

52

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِاللَّهِ ثُمَّ كَفَرْتُمْ بِهِ

مَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ هُوَ فِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ 

(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला देखो तो सही कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की बारगाह से (आया) हो और फिर तुम उससे इन्कार करो तो जो (ऐसे) परले दर्जे की मुख़ालेफत में (पड़ा) हो उससे बढ़कर और कौन गुमराह हो सकता है

53

سَنُرِيهِمْ آيَاتِنَا فِي الْآفَاقِ وَفِي أَنْفُسِهِمْ حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَهُمْ أَنَّهُ الْحَقُّ ۗ

हम अनक़रीब ही अपनी (क़ुदरत) की निशानियाँ अतराफ (आलम) में और ख़वद उनमें भी दिखा देगें यहाँ तक कि उन पर ज़ाहिर हो जाएगा कि वही यक़ीनन हक़ है

أَوَلَمْ يَكْفِ بِرَبِّكَ أَنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ  

क्या तुम्हारा परवरदिगार इसके लिए काफी नहीं कि वह हर चीज़ पर क़ाबू रखता है

54

أَلَا إِنَّهُمْ فِي مِرْيَةٍ مِنْ لِقَاءِ رَبِّهِمْ ۗ

देखो ये लोग अपने परवरदिगार के रूबरू हाज़िर होने से शक़ में (पड़े) हैं

أَلَا إِنَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ مُحِيطٌ

सुन रखो वह हर चीज़ पर हावी है

*********


© Copy Rights:

Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

Email: cmaj37@gmail.com

Visits wef June 2024