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1. |
हा मीम |
2. |
(इस) किताब (कुरान) का नाज़िल करना (ख़ास बारगाहे) ख़ुदा से है जो (सबसे) ग़ालिब बड़ा वाक़िफ़कार है |
3. |
गुनाहों का बख्शने वाला और तौबा का क़ुबूल करने वाला
सख्त अज़ाब देने वाला साहिबे फज़ल व करम है
उसके सिवा कोई माबूद नहीं उसी की तरफ (सबको) लौट कर जाना है |
4. |
ख़ुदा की आयतों में बस वही लोग झगड़े पैदा करते हैं जो काफिर हैं
तो (ऐ रसूल) उन लोगों का शहरों (शहरों) घूमना फिरना और माल हासिल करना तुम्हें इस धोखे में न डाले (कि उन पर आज़ाब न होगा) |
5. |
इन के पहले नूह की क़ौम ने और उन के बाद और उम्मतों ने (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया
और हर उम्मत ने अपने पैग़म्बरों के बारे में यही ठान लिया कि उन्हें गिरफ्तार कर (के क़त्ल कर डालें)
और बेहूदा बातों की आड़ पकड़ कर लड़ने लगें - ताकि उसके ज़रिए से हक़ बात को उखाड़ फेंकें तो मैंने, उन्हें गिरफ्तार कर लिया
फिर देखा कि उन पर मेरा अज़ाब कैसा (सख्त हुआ) |
6. |
और इसी तरह तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब का हुक्म (उन) काफ़िरों पर पूरा हो चुका है कि यह लोग यक़ीनी जहन्नुमी हैं |
7. |
जो (फ़रिश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के गिर्दा गिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं
और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआएं माँगा करते हैं
कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा इल्म हर चीज़ पर अहाता किए हुए हैं,
तो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख्श दे और उनको जहन्नुम के अज़ाब से बचा ले |
8. |
ऐ हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वायदा किया है दाख़िल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवीयों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हो उनको (भी बख्श दें)
बेशक तू ही ज़बरदस्त (और) हिकमत वाला है |
9. |
और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफूज़ रख
और जिसको तूने उस दिन (कयामत) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया
और यही तो बड़ी कामयाबी है |
10. |
(हाँ) जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उनसे पुकार कर कह दिया जाएगा
कि जितना तुम (आज) अपनी जान से बेज़ार हो उससे बढ़कर ख़ुदा तुमसे बेज़ार था जब तुम ईमान की तरफ बुलाए जाते थे तो कुफ्र करते थे |
11. |
वह लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार तू हमको दो बार मार चुका और दो बार ज़िन्दा कर चुका
तो अब हम अपने गुनाहों का एक़रार करते हैं तो क्या (यहाँ से) निकलने की भी कोई सबील है |
12. |
ये इसलिए कि जब तन्हा ख़ुदा पुकारा जाता था तो तुम ईन्कार करते थे
और अगर उसके साथ शिर्क किया जाता था तो तुम मान लेते थे
तो (आज) ख़ुदा की हुकूमत है जो आलीशान (और) बुर्ज़ुग है |
13. |
वही तो है जो तुमको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रोज़ी नाज़िल करता है
और नसीहत तो बस वही हासिल करता है जो (उसकी तरफ) रूज़ू करता है |
14. |
पस तुम लोग ख़ुदा की इबादत को ख़ालिस करके उसी को पुकारो अगरचे कुफ्फ़ार बुरा मानें |
15. |
ख़ुदा तो बड़ा आली मरतबा अर्श का मालिक है,
वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अपने हुक्म से 'वही' नाज़िल करता है ताकि (लोगों को) मुलाकात (क़यामत) के दिन से डराएं |
16. |
जिस दिन वह लोग (क़ब्रों) से निकल पड़ेंगे (और) उनको कोई चीज़ ख़ुदा से पोशीदा नहीं रहेगी
(और निदा आएगी) आज किसकी बादशाहत है
(फिर ख़ुदा ख़वद कहेगा) ख़ास ख़ुदा की जो अकेला (और) ग़ालिब है |
17. |
आज हर शख्स को उसके किए का बदला दिया जाएगा,
आज किसी पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है |
18. |
(ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उस दिन से डराओ जो अनक़रीब आने वाला है जब लोगों के कलेजे घुट घुट के (मारे डर के) मुँह को आ जाएंगें
(उस वक्त) न तो सरकशों का कोई सच्चा दोस्त होगा और न कोई ऐसा सिफारिशी जिसकी बात मान ली जाए |
19. |
ख़ुदा तो ऑंखों की दुज़दीदा (ख़यानत की) निगाह को भी जानता है और उन बातों को भी जो (लोगों के) सीनों में पोशीदा है |
20. |
और ख़ुदा ठीक ठीक हुक्म देता है, और उसके सिवा जिनकी ये लोग इबादत करते हैं वह तो कुछ भी हुक्म नहीं दे सकते,
इसमें शक नहीं कि ख़ुदा सुनने वाला देखने वाला है |
21. |
क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या हुआ
(हालाँकि) वह लोग कुवत (शान और उम्र सब) में और ज़मीन पर अपनी निशानियाँ (यादगारें इमारतें) वग़ैरह छोड़ जाने में भी उनसे कहीं बढ़ चढ़ के थे
तो ख़ुदा ने उनके गुनाहों की वजह से उनकी ले दे की, और ख़ुदा (के ग़ज़ब से) उनका कोई बचाने वाला भी न था |
22. |
ये इस सबब से कि उनके पैग़म्बरान उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए इस पर भी उन लोगों ने न माना तो ख़ुदा ने उन्हें ले डाला
इसमें तो शक ही नहीं कि वह क़वी (और) सख्त अज़ाब वाला है |
23. |
और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और रौशन दलीलें देकर भेजा |
24. |
फिरऔन और हामान और क़ारून के पास
तो वह लोग कहने लगे कि (ये तो) एक बड़ा झूठा (और) जादूगर है |
25. |
ग़रज़ जब मूसा उन लोगों के पास हमारी तरफ से सच्चा दीन ले कर आये
तो वह बोले कि जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उनके बेटों को तो मार डालों और उनकी औरतों को (लौन्डिया बनाने के लिए) ज़िन्दा रहने दो
और काफ़िरों की तद्बीरें तो बे ठिकाना होती हैं |
26. |
और फिरऔन कहने लगा मुझे छोड़ दो कि मैं मूसा को तो क़त्ल कर डालूँ, और (मैं देखूँ) अपने परवरदिगार को तो अपनी मदद के लिए बुलालें
(भाईयों) मुझे अन्देशा है कि (मुबादा) तुम्हारे दीन को उलट पुलट कर डाले या मुल्क में फसाद पैदा कर दें |
27. |
और मूसा ने कहा कि मैं तो हर मुताकब्बिर से जो हिसाब के दिन (क़यामत पर ईमान नहीं लाता) अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह ले चुका हूं |
28. |
और फिरऔन के लोगों में एक ईमानदार शख्स (हिज़कील) ने जो अपने ईमान को छिपाए रहता था (लोगों से कहा)
कि क्या तुम लोग ऐसे शख्स के क़त्ल के दरपै हो जो (सिर्फ) ये कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है
हालाँकि वह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आया
और अगर (बिल ग़रज़) ये शख्स झूठा है तो इसके झूठ का बवाल इसी पर पड़ेगा
और अगर यह कहीं सच्चा हुआ तो जिस (अज़ाब की) तुम्हें ये धमकी देता है उसमें से कुछ तो तुम लोगों पर ज़रूर वाकेए होकर रहेगा
बेशक ख़ुदा उस शख्स की हिदायत नहीं करता जो हद से गुज़रने वाला (और) झूठा हो |
29. |
ऐ मेरी क़ौम आज तो (बेशक) तुम्हारी बादशाहत है (और) मुल्क में तुम्हारा ही बोल बाला है
लेकिन (कल) अगर ख़ुदा का अज़ाब हम पर आ जाए तो हमारी कौन मदद करेगा
फिरऔन ने कहा मैं तो वही बात समझाता हूँ जो मैं ख़वद समझता हूँ और वही राह दिखाता हूँ जिसमें भलाई है |
30. |
तो जो शख्स (दर पर्दा) ईमान ला चुका था कहने लगा, भाईयों मुझे तो तुम्हारी निस्बत भी और उम्मतों की तरह रोज़ (बद) का अन्देशा है |
31. |
(कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो) जैसा कि नूह की क़ौम और आद समूद और उनके बाद वाले लोगों का हाल हुआ
और ख़ुदा तो बन्दों पर ज़ुल्म करना चाहता ही नहीं |
32. |
और ऐ हमारी क़ौम मुझे तो तुम्हारी निस्बत कयामत के दिन का अन्देशा है |
33. |
जिस दिन तुम पीठ फेर कर (जहन्नुम) की तरफ चल खड़े होगे तो ख़ुदा के (अज़ाब) से तुम्हारा बचाने वाला न होगा,
और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई रूबराह करने वाला नहीं |
34. |
और (इससे) पहले यूसुफ़ भी तुम्हारे पास मौजिज़े लेकर आए थे तो जो जो लाए थे तुम लोग उसमें बराबर शक ही करते
रहे यहाँ तक कि जब उन्होने वफात पायी तो तुम कहने लगे कि अब उनके बाद ख़ुदा हरगिज़ कोई रसूल नहीं भेजेगा
जो हद से गुज़रने वाला और शक करने वाला है ख़ुदा उसे यू हीं गुमराही में छोड़ देता है |
35. |
जो लोग बगैर इसके कि उनके पास कोई दलील आई हो ख़ुदा की आयतों में (ख्वाह मा ख्वाह) झगड़े किया करते हैं
वह ख़ुदा के नज़दीक और ईमानदारों के नज़दीक सख्त नफरत खेज़ हैं,
यूँ ख़ुदा हर मुतकब्बिर सरकश के दिल पर अलामत मुक़र्रर कर देता है |
36. |
और फिरऔन ने कहा ऐ हामान हमारे लिए एक महल बनवा दे ताकि (उस पर चढ़ कर) रसतों पर पहुँच जाऊ |
37. |
(यानि) आसमानों के रसतों पर
फिर मूसा के ख़ुदा को झांक कर (देख) लूँ और मैं तो उसे यक़ीनी झूठा समझता हूँ,
और इसी तरह फिरऔन की बदकिरदारयाँ उसको भली करके दिखा दी गयीं थीं और वह राहे रास्ता से रोक दिया गया था,
और फिरऔन की तद्बीर तो बस बिल्कुल ग़ारत गुल ही थीं |
38. |
और जो शख्स (दर पर्दा) ईमानदार था कहने लगा भाईयों मेरा कहना मानों मैं तुम्हें हिदायत के रास्ते दिख दूंगा |
39. |
भाईयों ये दुनियावी ज़िन्दगी तो बस (चन्द रोज़ा) फ़ायदा है और आखेरत ही हमेशा रहने का घर है |
40. |
जो बुरा काम करेगा तो उसे बदला भी वैसा ही मिलेगा,
और जो नेक काम करेगा मर्द हो या औरत मगर ईमानदार हो तो ऐसे लोग बेहिश्त में दाख़िल होंगे
वहाँ उन्हें बेहिसाब रोज़ी मिलेगी |
41. |
और ऐ मेरी क़ौम मुझे क्या हुआ है कि मैं तुमको नजाद की तरफ बुलाता हूँ और तुम मुझे दोज़ख़ की तरफ बुलाते हो |
42. |
तुम मुझे बुलाते हो कि मै ख़ुदा के साथ कुफ्र करूं और उस चीज़ को उसका शरीक बनाऊ जिसका मुझे इल्म में भी नहीं,
और मैं तुम्हें ग़ालिब (और) बड़े बख्शने वाले ख़ुदा की तरफ बुलाता हूँ |
43. |
बेशक तुम जिस चीज़ की तरफ़ मुझे बुलाते हो वह न तो दुनिया ही में पुकारे जाने के क़ाबिल है और न आख़िरत में
और आख़िर में हम सबको ख़ुदा ही की तरफ लौट कर जाना है और इसमें तो शक ही नहीं कि हद से बढ़ जाने वाले जहन्नुमी हैं |
44. |
तो जो मैं तुमसे कहता हूँ अनक़रीब ही उसे याद करोगे
और मैं तो अपना काम ख़ुदा ही को सौंपे देता हूँ
कुछ शक नहीं की ख़ुदा बन्दों (के हाल) को ख़ूब देख रहा है |
45. |
तो ख़ुदा ने उसे उनकी तद्बीरों की बुराई से महफूज़ रखा
और फिरऔनियों को बड़े अज़ाब ने (हर तरफ) से घेर लिया |
46. |
और अब तो कब्र में दोज़ख़ की आग है कि वह लोग (हर) सुबह व शाम उसके सामने ला खड़े किए जाते हैं
और जिस दिन क़यामत बरपा होगी (हुक्म होगा) फिरऔन के लोगों को सख्त से सख्त अज़ाब में झोंक दो |
47. |
और ये लोग जिस वक्त ज़हन्नुम में बाहम झगड़ेंगें तो कम हैसियत लोग बड़े आदमियों से कहेंगे कि
हम तुम्हारे ताबे थे तो क्या तुम इस वक्त (दोज़ख़ की) आग का कुछ हिस्सा हमसे हटा सकते हो |
48. |
तो बड़े लोग कहेंगें (अब तो) हम (तुम) सबके सब आग में पड़े हैं ख़ुदा (को) तो बन्दों के बारे में (जो कुछ) फैसला (करना था) कर चुका |
49. |
और जो लोग आग में (जल रहे) होंगे जहन्नुम के दरोग़ाओं से दरख्वास्त करेंगे कि
अपने परवरदिगार से अर्ज़ करो कि एक दिन तो हमारे अज़ाब में तख़फ़ीफ़ कर दें |
50. |
वह जवाब देंगे कि क्या तुम्हारे पास तुम्हारे पैग़म्बर साफ व रौशन मौजिज़े लेकर नहीं आए थे
वह कहेंगे (हाँ) आए तो थे,
तब फरिश्ते तो कहेंगे फिर तुम ख़वद (क्यों) न दुआ करो, हालाँकि काफ़िरों की दुआ तो बस बेकार ही है |
51. |
हम अपने पैग़म्बरों की और ईमान वालों की दुनिया की ज़िन्दगी में भी ज़रूर मदद करेंगे और जिस दिन गवाह (पैग़म्बर फरिश्ते गवाही को) उठ खड़े होंगे |
52. |
(उस दिन भी) जिस दिन ज़ालिमों को उनकी माज़ेरत कुछ भी फायदे न देगी और उन पर फिटकार (बरसती) होगी और उनके लिए बहुत बुरा घर (जहन्नुम) है |
53. |
और हम ही ने मूसा को हिदायत (की किताब तौरेत) दी और बनी इसराईल को (उस) किताब का वारिस बनाया |
54. |
जो अक्लमन्दों के लिए (सरतापा) हिदायत व नसीहत है |
55. |
(ऐ रसूल) तुम (उनकी शरारत) पर सब्र करो बेशक ख़ुदा का वायदा सच्चा है,
और अपने (उम्मत की) गुनाहों की माफी माँगो और सुबह व शाम अपने परवरदिगार की हम्द व सना के साथ तसबीह करते रहो |
56. |
जिन लोगों के पास (ख़ुदा की तरफ से) कोई दलील तो आयी नहीं और (फिर) वह ख़ुदा की आयतों में (ख्वाह मा ख्वाह) झगड़े निकालते हैं, उनके दिल में बुराई (की बेजां हवस) के सिवा कुछ नहीं हालाँकि वह लोग उस तक कभी पहुँचने वाले नहीं
तो तुम बस ख़ुदा की पनाह माँगते रहो बेशक वह बड़ा सुनने वाला (और) देखने वाला है |
57. |
सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करना लोगों के पैदा करने की ये निस्बत यक़ीनी बड़ा (काम) है
मगर अक्सर लोग (इतना भी) नहीं जानते |
58. |
और अंधा और ऑंख वाला (दोनों) बराबर नहीं हो सकते और न मोमिनीन जिन्होने अच्छे काम किए और न बदकार (ही) बराबर हो सकते हैं
बात ये है कि तुम लोग बहुत कम ग़ौर करते हो |
59. |
कयामत तो ज़रूर आने वाली है इसमें किसी तरह का शक नहीं मगर अक्सर लोग (इस पर भी) ईमान नहीं रखते |
60. |
और तुम्हारा परवरदिगार इरशाद फ़रमाता है कि तुम मुझसे दुआएं माँगों मैं तुम्हारी (दुआ) क़ुबूल करूँगा
जो लोग हमारी इबादत से अकड़ते हैं वह अनक़रीब ही ज़लील व ख्वार हो कर यक़ीनन जहन्नुम वासिल होंगे |
61. |
ख़ुदा ही तो है जिसने तुम्हारे वास्ते रात बनाई ताकि तुम उसमें आराम करो और दिन को रौशन (बनाया) तकि काम करो
बेशक ख़ुदा लोगों परा बड़ा फज़ल व करम वाला है, मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं अदा करते |
62. |
यही ख़ुदा तुम्हारा परवरदिगार है जो हर चीज़ का ख़ालिक़ है, और उसके सिवा कोई माबूद नहीं,
फिर तुम कहाँ बहके जा रहे हो |
63. |
जो लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार रखते थे वह इसी तरह भटक रहे थे |
64. |
अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे वास्ते ज़मीन को ठहरने की जगह और आसमान को छत बनाया
और उसी ने तुम्हारी सूरतें बनायीं तो अच्छी सूरतें बनायीं और उसी ने तुम्हें साफ सुथरी चीज़ें खाने को दीं
यही अल्लाह तो तुम्हारा परवरदिगार है
तो ख़ुदा बहुत ही मुतबर्रिक है जो सारे जहाँन का पालने वाला है |
65. |
वही (हमेशा) ज़िन्दा है और उसके सिवा कोई माबूद नहीं तो निरी खरी उसी की इबादत करके उसी से ये दुआ माँगो,
सब तारीफ ख़ुदा ही को सज़ावार है और जो सारे जहाँन का पालने वाला है |
66. |
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तो मुझे इस बात की मनाही कर दी गयी है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिनको तुम पूजते हो मैं उनकी परसतिश करूँ जब मेरे पास मेरे परवरदिगार की बारगाह से खुले हुए मौजिज़े आ चुके
और मुझे तो यह हुक्म हो चुका है कि मैं सारे जहाँन के पालने वाले का फरमाबरदार बनु |
67. |
वही वह ख़ुदा है जिसने तुमको पहले (पहल) मिटटी से पैदा किया
फिर नुत्फे से, फिर जमे हुए ख़ून फिर तुमको बच्चा बनाकर (माँ के पेट) से निकलता है (ताकि बढ़ों)
फिर (ज़िन्दा रखता है) ताकि तुम अपनी जवानी को पहुँचो फिर (और ज़िन्दा रखता है) ताकि तुम बूढ़े हो जाओ
और तुममें से कोई ऐसा भी है जो (इससे) पहले मर जाता है
ग़रज़ (तुमको उस वक्त तक ज़िन्दा रखता है) की तुम (मौत के) मुकर्रर वक्त तक पहुँच जाओ और ताकि तुम (उसकी क़ुदरत) को समझो |
68. |
वह वही (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है,
फिर जब वह किसी काम का करना ठान लेता है तो बस उससे कह देता है कि 'हो जा' तो वह फ़ौरन हो जाता है (ऐ रसूल) क्या तुमने उन लोगों (की हालत) |
69. |
पर ग़ौर नहीं किया जो ख़ुदा की आयतों में झगड़े निकाला करते हैं
ये कहाँ भटके चले जा रहे हैं |
70. |
जिन लोगों ने किताबे (ख़ुदा) और उन बातों को जो हमने पैग़म्बरों को देकर भेजा था झुठलाया
तो बहुत जल्द उसका नतीजा उन्हें मालूम हो जाएगा |
71. |
जब (भारी भारी) तौक़ और ज़ंजीरें उनकी गर्दनों में होंगी घसीटे जाएँगे |
72. |
(पहले) खौलते हुए पानी में फिर (जहन्नुम की) आग में झोंक दिए जाएँगे |
73. |
फिर उनसे पूछा जाएगा कि जिनको (ख़ुदा का) शरीक बनाते थे (इस वक्त) क़हाँ हैं |
74. |
ख़ुदा के सिवा
वह कहेंगे अब तो वह हमसे जाते रहे बल्कि (सच यूँ है कि) हम तो पहले ही से (ख़ुदा के सिवा) किसी चीज़ की परसतिश न करते थे
यूँ ख़ुदा काफिरों को बौखला देगा (कि कुछ समझ में न आएगा) |
75. |
ये उसकी सज़ा है कि तुम दुनिया में नाहक (बात पर) निहाल थे और इसकी सज़ा है कि तुम इतराया करते थे |
76. |
अब जहन्नुम के दरवाज़े में दाख़िल हो जाओ (और) हमेशा उसी में (पड़े) रहो,
ग़रज़ तकब्बुर करने वालों का भी (क्या) बुरा ठिकाना है |
77. |
तो (ऐ रसूल) तुम सब्र करो ख़ुदा का वायदा यक़ीनी सच्चा है
तो जिस (अज़ाब) की हम उन्हें धमकी देते हैं अगर हम तुमको उसमें कुछ दिखा दें या तुम ही को (इसके क़ब्ल) दुनिया से उठा लें
तो (आख़िर फिर) उनको हमारी तरफ लौट कर आना है, |
78. |
और तुमसे पहले भी हमने बहुत से पैग़म्बर भेजे उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके हालात हमने तुमसे बयान कर दिए, और कुछ ऐसे हैं जिनके हालात तुमसे नहीं दोहराए
और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि ख़ुदा के ऐख्तेयार दिए बग़ैर कोई मौजिज़ा दिखा सकें
फिर जब ख़ुदा का हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा तो ठीक ठीक फैसला कर दिया गया और अहले बातिल ही इस घाटे में रहे, |
79. |
ख़ुदा ही तो वह है जिसने तुम्हारे लिए चारपाए पैदा किए ताकि तुम उनमें से किसी पर सवार होते हो और किसी को खाते हो |
80. |
और तुम्हारे लिए उनमें (और भी) फायदे हैं और ताकि तुम उन पर (चढ़ कर) अपनी दिली मक़सद तक पहुँचो
और उन पर और (नीज़) कश्तियों पर सवार फिरते हो |
81. |
और वह तुमको अपनी (कुदरत की) निशानियाँ दिखाता है तो तुम ख़ुदा की किन किन निशानियों को न मानोगे |
82. |
तो क्या ये लोग रूए ज़मीन पर चले फिरे नहीं, तो देखते कि जो लोग इनसे पहले थे उनका क्या अंजाम हुआ,
जो उनसे (तादाद में) कहीं ज्यादा थे और क़ूवत और ज़मीन पर (अपनी) निशानियाँ (यादगारें) छोड़ने में भी कहीं बढ़ चढ़ कर थे
तो जो कुछ उन लोगों ने किया कराया था उनके कुछ भी काम न आया |
83. |
फिर जब उनके पैग़म्बर उनके पास वाज़ेए व रौशन मौजिज़े ले कर आए तो जो इल्म (अपने ख्याल में) उनके पास था उस पर नाज़िल हुए
और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाते थे उसी ने उनको चारों तरफ से घेर लिया |
84. |
तो जब इन लोगों ने हमारे अज़ाब को देख लिया तो कहने लगे, हम यकता ख़ुदा पर ईमान लाए और जिस चीज़ को हम उसका शरीक बनाते थे हम उनको नहीं मानते |
85. |
तो जब उन लोगों ने हमारा (अज़ाब) आते देख लिया तो अब उनका ईमान लाना कुछ भी फायदेमन्द नहीं हो सकता
(ये) ख़ुदा की आदत (है) जो अपने बन्दों के बारे में (सदा से) चली आती है
और काफ़िर लोग इस वक्त घाटे मे रहे ********* |
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