Quran Hindi Translation

Surah Al Zumar

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

تَنْزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ

(इस) किताब (क़ुरान) का नाज़िल करना उस खुदा की बारगाह से है जो (सब पर) ग़ालिब हिकमत वाला है

2

 إِنَّا أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ

(ऐ रसूल) हमने किताब (कुरान) को बिल्कुल ठीक नाज़िल किया है

فَاعْبُدِ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ

तो तुम इबादत को उसी के लिए निरा खुरा करके खुदा की बन्दगी किया करो

3

أَلَا لِلَّهِ الدِّينُ الْخَالِصُ ۚ

आगाह रहो कि इबादत तो ख़ास खुदा ही के लिए है

 وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ أَوْلِيَاءَ مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَا إِلَى اللَّهِ زُلْفَى

और जिन लोगों ने खुदा के सिवा (औरों को अपना) सरपरस्त बना रखा है और कहते हैं कि हम तो उनकी परसतिश सिर्फ़ इसलिए करते हैं कि ये लोग खुदा की बारगाह में हमारा तक़र्रब बढ़ा देगें

إِنَّ اللَّهَ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ فِي مَا هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ ۗ

इसमें शक नहीं कि जिस बात में ये लोग झगड़ते हैं (क़यामत के दिन) खुदा उनके दरमियान इसमें फैसला कर देगा

إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ كَاذِبٌ كَفَّارٌ

बेशक खुदा झूठे नाशुक्रे को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता

4

لَوْ أَرَادَ اللَّهُ أَنْ يَتَّخِذَ وَلَدًا لَاصْطَفَى مِمَّا يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ ۚ

अगर खुदा किसी को (अपना) बेटा बनाना चाहता तो अपने मख़लूक़ात में से जिसे चाहता मुन्तखिब कर लेता

سُبْحَانَهُ ۖ هُوَ اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ

(मगर) वह तो उससे पाक व पाकीज़ा है वह तो यकता बड़ा ज़बरदस्त अल्लाह है

5

خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ ۖ

उसी ने सारे आसमान और ज़मीन को बजा (दुरूस्त) पैदा किया

يُكَوِّرُ اللَّيْلَ عَلَى النَّهَارِ وَيُكَوِّرُ النَّهَارَ عَلَى اللَّيْلِ ۖ

वही रात को दिन पर ऊपर तले लपेटता है और वही दिन को रात पर तह ब तह लपेटता है

وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُسَمًّى ۗ

और उसी ने आफताब और महताब को अपने बस में कर लिया है कि ये सबके सब अपने (अपने) मुक़रर्र वक्त चलते रहेगें

أَلَا هُوَ الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ

आगाह रहो कि वही ग़ालिब बड़ा बख्शने वाला है

6

خَلَقَكُمْ مِنْ نَفْسٍ وَاحِدَةٍ ثُمَّ جَعَلَ مِنْهَا زَوْجَهَا

उसी ने तुम सबको एक ही शख्स से पैदा किया फिर उस (की बाक़ी मिट्टी) से उसकी बीबी (हौव्वा) को पैदा किया

وَأَنْزَلَ لَكُمْ مِنَ الْأَنْعَامِ ثَمَانِيَةَ أَزْوَاجٍ ۚ

और उसी ने तुम्हारे लिए आठ क़िस्म के चारपाए पैदा किए

يَخْلُقُكُمْ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ خَلْقًا مِنْ بَعْدِ خَلْقٍ فِي ظُلُمَاتٍ ثَلَاثٍ ۚ

वही तुमको तुम्हारी माँओं के पेट में एक क़िस्म की पैदाइश के बाद दूसरी क़िस्म (नुत्फे जमा हुआ खून लोथड़ा) की पैदाइश से तेहरे तेहरे अंधेरों (पेट) रहम और झिल्ली में पैदा करता है

ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۖ

वही अल्लाह तुम्हारा परवरदिगार है उसी की बादशाही है

لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ ۖ  فَأَنَّى تُصْرَفُونَ

उसके सिवा माबूद नहीं तो तुम लोग कहाँ फिरे जाते हो  

7

إِنْ تَكْفُرُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ عَنْكُمْ ۖ  وَلَا يَرْضَى لِعِبَادِهِ الْكُفْرَ ۖ

अगर तुमने उसकी नाशुक्री की तो (याद रखो कि) खुदा तुमसे बिल्कुल बेपरवाह है

وَإِنْ تَشْكُرُوا يَرْضَهُ لَكُمْ ۗ

और अपने बन्दों से कुफ्र और नाशुक्री को पसन्द नहीं करता

وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى ۗ

और अगर तुम शुक्र करोगे तो वह उसको तुम्हारे वास्ते पसन्द करता है

ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ مَرْجِعُكُمْ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ ۚ

और (क़यामत में) कोई किसी (के गुनाह) का बोझ (अपनी गर्दन पर) नहीं उठाएगा

फिर तुमको अपने परवरदिगार की तरफ लौटना है तो (दुनिया में) जो कुछ (भला बुरा) करते थे वह तुम्हें बता देगा

إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ

वह यक़ीनन दिलों के राज़ (तक) से खूब वाक़िफ है  

8

وَإِذَا مَسَّ الْإِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَا رَبَّهُ مُنِيبًا إِلَيْهِ

और आदमी (की हालत तो ये है कि) जब उसको कोई तकलीफ पहुँचती है तो उसी की तरफ रूजू करके अपने परवरदिगार से दुआ करता है

 ثُمَّ إِذَا خَوَّلَهُ نِعْمَةً مِنْهُ نَسِيَ مَا كَانَ يَدْعُو إِلَيْهِ مِنْ قَبْلُ

(मगर) फिर जब खुदा अपनी तरफ से उसे नेअमत अता फ़रमा देता है तो जिस काम के लिए पहले उससे दुआ करता था उसे भुला देता है

وَجَعَلَ لِلَّهِ أَنْدَادًا لِيُضِلَّ عَنْ سَبِيلِهِ ۚ

और बल्कि खुदा का शरीक बनाने लगता है ताकि (उस ज़रिए से और लोगों को भी) उसकी राह से गुमराह कर दे

 قُلْ تَمَتَّعْ بِكُفْرِكَ قَلِيلًا ۖ إِنَّكَ مِنْ أَصْحَابِ النَّارِ

(ऐ रसूल ऐसे शख्स से) कह दो कि थोड़े दिनों और अपने कुफ्र (की हालत) में चैन कर लो (आख़िर) तू यक़ीनी जहन्नुमियों में होगा

9

أَمَّنْ هُوَ قَانِتٌ آنَاءَ اللَّيْلِ سَاجِدًا وَقَائِمًا يَحْذَرُ الْآخِرَةَ وَيَرْجُو رَحْمَةَ رَبِّهِ ۗ

क्या जो शख्स रात के अवक़ात में सजदा करके और खड़े-खड़े (खुदा की) इबादत करता हो और आख़ेरत से डरता हो अपने परवरदिगार की रहमत का उम्मीदवार हो (नाशुक्रे) काफिर के बराबर हो सकता है

قُلْ هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ وَالَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ ۗ

(ऐ रसूल) तुम पूछो तो कि भला कहीं जानने वाले और न जाननेवाले लोग बराबर हो सकते हैं

إِنَّمَا يَتَذَكَّرُ أُولُو الْأَلْبَابِ‏

(मगर) नसीहत इबरतें तो बस अक्लमन्द ही लोग मानते हैं

10

قُلْ يَا عِبَادِ الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا رَبَّكُمْ ۚ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे ईमानदार बन्दों अपने परवरदिगार (ही) से डरते रहो

لِلَّذِينَ أَحْسَنُوا فِي هَذِهِ الدُّنْيَا حَسَنَةٌ ۗ وَأَرْضُ اللَّهِ وَاسِعَةٌ ۗ

(क्योंकि) जिन लोगों ने इस दुनिया में नेकी की उन्हीं के लिए (आख़ेरत में) भलाई है और खुदा की ज़मीन तो कुशादा है (जहाँ इबादत न कर सको उसे छोड़ दो)

إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُونَ أَجْرَهُمْ بِغَيْرِ حِسَابٍ

सब्र करने वालों ही की तो उनका भरपूर बेहिसाब बदला दिया जाएगा

11

قُلْ إِنِّي أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ اللَّهَ مُخْلِصًا لَهُ الدِّينَ

Say: "Verily, I am commanded to serve Allah with sincere devotion;

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं इबादत को उसके लिए ख़ास करके खुदा ही की बन्दगी करो

12

وَأُمِرْتُ لِأَنْ أَكُونَ أَوَّلَ الْمُسْلِمِينَ  

और मुझे तो ये हुक्म दिया गया है कि मैं सबसे पहल मुसलमान हूँ

13

قُلْ إِنِّي أَخَافُ إِنْ عَصَيْتُ رَبِّي عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं अपने परवरदिगार की नाफरमानी करूँ तो मैं एक बड़ी (सख्त) दिन (क़यामत) के अज़ाब से डरता हूँ

14

قُلِ اللَّهَ أَعْبُدُ مُخْلِصًا لَهُ دِينِي

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं अपनी इबादत को उसी के वास्ते ख़ालिस करके खुदा ही की बन्दगी करता हूँ

15

فَاعْبُدُوا مَا شِئْتُمْ مِنْ دُونِهِ ۗ

(अब रहे तुम) तो उसके सिवा जिसको चाहो पूजो

قُلْ إِنَّ الْخَاسِرِينَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ وَأَهْلِيهِمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि फिल हक़ीक़त घाटे में वही लोग हैं जिन्होंने अपना और अपने लड़के वालों का क़यामत के दिन घाटा किया

أَلَا ذَلِكَ هُوَ الْخُسْرَانُ الْمُبِينُ

आगाह रहो कि सरीही (खुल्लम खुल्ला) घाटा यही है

16

لَهُمْ مِنْ فَوْقِهِمْ ظُلَلٌ مِنَ النَّارِ وَمِنْ تَحْتِهِمْ ظُلَلٌ ۚ

कि उनके लिए उनके ऊपर से आग ही के ओढ़ने होगें और उनके नीचे भी (आग ही के) बिछौने

ذَلِكَ يُخَوِّفُ اللَّهُ بِهِ عِبَادَهُ ۚ

ये वह अज़ाब है जिससे खुदा अपने बन्दों को डराता है

يَا عِبَادِ فَاتَّقُونِ

तो ऐ मेरे बन्दों मुझी से डरते रहो

17

وَالَّذِينَ اجْتَنَبُوا الطَّاغُوتَ أَنْ يَعْبُدُوهَا وَأَنَابُوا إِلَى اللَّهِ لَهُمُ الْبُشْرَى ۚ

और जो लोग बुतों से उनके पूजने से बचे रहे और ख़ुदा ही की तरफ रूजु की उनके लिए (जन्नत की) ख़ुशख़बरी है

فَبَشِّرْ عِبَادِ

तो (ऐ रसूल) तुम मेरे (ख़ास) बन्दों को खुशख़बरी दे दो

18

الَّذِينَ يَسْتَمِعُونَ الْقَوْلَ فَيَتَّبِعُونَ أَحْسَنَهُ ۚ

जो बात को जी लगाकर सुनते हैं और फिर उसमें से अच्छी बात पर अमल करते हैं

أُولَئِكَ الَّذِينَ هَدَاهُمُ اللَّهُ ۖ وَأُولَئِكَ هُمْ أُولُو الْأَلْبَابِ

यही वह लोग हैं जिनकी खुदा ने हिदायत की और यही लोग अक्लमन्द हैं

19

أَفَمَنْ حَقَّ عَلَيْهِ كَلِمَةُ الْعَذَابِ أَفَأَنْتَ تُنْقِذُ مَنْ فِي النَّارِ

तो (ऐ रसूल) भला जिस शख्स पर अज़ाब का वायदा पूरा हो चुका हो तो क्या तुम उस शख्स की ख़लासी दे सकते हो जो आग में (पड़ा) हो

20

لَكِنِ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ لَهُمْ غُرَفٌ  مِنْ فَوْقِهَا غُرَفٌ مَبْنِيَّةٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ

मगर जो लोग अपने परवरदिगार से डरते रहे उनके ऊँचे-ऊँचे महल हैं (और) बाला ख़ानों पर बालाख़ाने बने हुए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं

وَعْدَ اللَّهِ ۖ  لَا يُخْلِفُ اللَّهُ الْمِيعَادَ  

ये खुदा का वायदा है (और) वायदा ख़िलाफी नहीं किया करता

21

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَسَلَكَهُ يَنَابِيعَ فِي الْأَرْضِ

क्या तुमने इस पर ग़ौर नहीं किया कि खुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में चश्में बनाकर जारी किया

ثُمَّ يُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهُ

फिर उसके ज़रिए से रंग बिरंग (के गल्ले) की खेती उगाता है

ثُمَّ يَهِيجُ فَتَرَاهُ مُصْفَرًّا ثُمَّ يَجْعَلُهُ حُطَامًا ۚ

फिर (पकने के बाद) सूख जाती है तो तुम को वह ज़र्द दिखायी देती है फिर खुदा उसे चूर-चूर भूसा कर देता है

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَذِكْرَى لِأُولِي الْأَلْبَابِ

बेशक इसमें अक्लमन्दों के लिए (बड़ी) इबरत व नसीहत है

22

أَفَمَنْ شَرَحَ اللَّهُ صَدْرَهُ لِلْإِسْلَامِ فَهُوَ عَلَى نُورٍ مِنْ رَبِّهِ ۚ

तो क्या वह शख्स जिस के सीने को खुदा ने (क़ुबूल) इस्लाम के लिए कुशादा कर दिया है तो वह अपने परवरदिगार (की हिदायत) की रौशनी पर (चलता) है मगर गुमराहों के बराबर हो सकता है

فَوَيْلٌ لِلْقَاسِيَةِ قُلُوبُهُمْ مِنْ ذِكْرِ اللَّهِ ۚ

अफसोस तो उन लोगों पर है जिनके दिल खुदा की याद से (ग़ाफ़िल होकर) सख्त हो गए हैं

أُولَئِكَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ

ये लोग सरीही गुमराही में (पड़े) हैं

23

اللَّهُ نَزَّلَ أَحْسَنَ الْحَدِيثِ كِتَابًا مُتَشَابِهًا مَثَانِيَ

ख़ुदा ने बहुत ही अच्छा कलाम (यावी ये) किताब नाज़िल फरमाई (जिसकी आयतें) एक दूसरे से मिलती जुलती हैं और (एक बात कई-कई बार) दोहराई गयी है

تَقْشَعِرُّ مِنْهُ جُلُودُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ ثُمَّ تَلِينُ جُلُودُهُمْ وَقُلُوبُهُمْ إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ ۚ

उसके सुनने से उन लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं जो अपने परवरदिगार से डरते हैं

फिर उनके जिस्म नरम हो जाते हैं और उनके दिल खुदा की याद की तरफ बा इतमेनान मुतावज्जे हो जाते हैं

ذَلِكَ هُدَى اللَّهِ يَهْدِي بِهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ

ये खुदा की हिदायत है इसी से जिसकी चाहता है हिदायत करता है

وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ  

और खुदा जिसको गुमराही में छोड़ दे तो उसको कोई राह पर लाने वाला नहीं

24

أَفَمَنْ يَتَّقِي بِوَجْهِهِ سُوءَ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ

तो क्या जो शख्स क़यामत के दिन अपने मुँह को बड़े अज़ाब की सिपर बनाएगा (नाज़ी के बराबर हो सकता है)

وَقِيلَ لِلظَّالِمِينَ ذُوقُوا مَا كُنْتُمْ تَكْسِبُونَ

और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनिया में) जैसा कुछ करते थे अब उसके मज़े चखो

25

كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ  فَأَتَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ

जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया तो उन पर अज़ाब इस तरह आ पहुँचा कि उन्हें ख़बर भी न हुई

26

فَأَذَاقَهُمُ اللَّهُ الْخِزْيَ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَكْبَرُ ۚ

तो खुदा ने उन्हें (इसी) दुनिया की ज़िन्दगी में रूसवाई की लज्ज़त चखा दी और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनी उससे कहीं बढ़कर है

لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ

काश ये लोग ये बात जानते

27

وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَذَا الْقُرْآنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ  

और हमने तो इस क़ुरान में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मिसाल बयान कर दी है ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें

28

قُرْآنًا عَرَبِيًّا غَيْرَ ذِي عِوَجٍ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ

(हम ने तो साफ और सलीस) एक अरबी कुरान (नाज़िल किया) जिसमें ज़रा भी कजी (पेचीदगी) नहीं ताकि ये लोग (समझकर) खुदा से डरे

29

ضَرَبَ اللَّهُ مَثَلًا رَجُلًا فِيهِ شُرَكَاءُ مُتَشَاكِسُونَ وَرَجُلًا سَلَمًا لِرَجُلٍ هَلْ يَسْتَوِيَانِ مَثَلًا ۚ

ख़ुदा ने एक मिसाल बयान की है

कि एक शख्स (ग़ुलाम) है जिसमें कई झगड़ालू साझी हैं और एक ज़ालिम है कि पूरा एक शख्स का है उन दोनों की हालत यकसाँ हो सकती हैं (हरगिज़ नहीं)

الْحَمْدُ لِلَّهِ ۚ بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

अल्हमदोलिल्लाह मगर उनमें अक्सर इतना भी नहीं जानते

30

إِنَّكَ مَيِّتٌ وَإِنَّهُمْ مَيِّتُونَ

(ऐ रसूल) बेशक तुम भी मरने वाले हो और ये लोग भी यक़ीनन मरने वाले हैं

31

ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عِنْدَ رَبِّكُمْ تَخْتَصِمُونَ

फिर तुम लोग क़यामत के दिन अपने परवरदिगार की बारगाह में बाहम झगड़ोगे

32

‏ فَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ كَذَبَ عَلَى اللَّهِ  وَكَذَّبَ بِالصِّدْقِ إِذْ جَاءَهُ ۚ

तो इससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो ख़ुदा पर झूठ (तूफान) बाँधे और जब उसके पास सच्ची बात आए तो उसको झुठला दे

أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْكَافِرِينَ  

क्या जहन्नुम में काफिरों का ठिकाना नहीं है

33

وَالَّذِي جَاءَ بِالصِّدْقِ وَصَدَّقَ بِهِ ۙ أُولَئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ

(ज़रूर है) और याद रखो कि जो शख्स (रसूल) सच्ची बात लेकर आया वह और जिसने उसकी तसदीक़ की यही लोग तो परहेज़गार हैं

34

لَهُمْ مَا يَشَاءُونَ عِنْدَ رَبِّهِمْ ۚ

ये लोग जो चाहेंगे उनके लिए परवर दिगार के पास (मौजूद) है,

ذَلِكَ جَزَاءُ الْمُحْسِنِينَ  

ये नेकी करने वालों की जज़ाए ख़ैर है

35

لِيُكَفِّرَ اللَّهُ عَنْهُمْ أَسْوَأَ الَّذِي عَمِلُوا  وَيَجْزِيَهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ الَّذِي كَانُوا يَعْمَلُونَ

ताकि ख़ुदा उन लोगों की बुराइयों को जो उन्होने की हैं दूर कर दे

और उनके अच्छे कामों के एवज़ जो वह कर चुके थे उसका अज्र (सवाब) अता फरमाए

36

أَلَيْسَ اللَّهُ بِكَافٍ عَبْدَهُ ۖ وَيُخَوِّفُونَكَ بِالَّذِينَ مِنْ دُونِهِ ۚ

क्या ख़ुदा अपने बन्दों (की मदद) के लिए काफ़ी नहीं है और (ऐ रसूल) तुमको लोग ख़ुदा के सिवा (दूसरे माबूदों) से डराते हैं

وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ

और ख़ुदा जिसे गुमराही में छोड़ दे तो उसका कोई राह पर लाने वाला नहीं है

37

وَمَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ مُضِلٍّ ۗ

और जिस शख्स की हिदायत करे तो उसका कोई गुमराह करने वाला नहीं।

أَلَيْسَ اللَّهُ بِعَزِيزٍ ذِي انْتِقَامٍ  

क्या ख़दा ज़बरदस्त और बदला लेने वाला नहीं है (ज़रूर है)

38

وَلَئِنْ سَأَلْتَهُمْ مَنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ لَيَقُولُنَّ اللَّهُ ۚ

और (ऐ रसूल) अगर तुम इनसे पूछो कि सारे आसमान व ज़मीन को किसने पैदा किया तो ये लोग यक़ीनन कहेंगे कि ख़ुदा ने,

قُلْ أَفَرَأَيْتُمْ مَا تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ أَرَادَنِيَ اللَّهُ بِضُرٍّ هَلْ هُنَّ كَاشِفَاتُ ضُرِّهِ

तुम कह दो कि तो क्या तुमने ग़ौर किया है कि ख़ुदा को छोड़ कर जिन लोगों की तुम इबादत करते हो अगर ख़ुदा मुझे कोई तक़लीफ पहुँचाना चाहे तो क्या वह लोग उसके नुक़सान को (मुझसे) रोक सकते हैं

أَوْ أَرَادَنِي بِرَحْمَةٍ هَلْ هُنَّ مُمْسِكَاتُ رَحْمَتِهِ ۚ

या अगर ख़ुदा मुझ पर मेहरबानी करना चाहे तो क्या वह लोग उसकी मेहरबानी रोक सकते हैं

قُلْ حَسْبِيَ اللَّهُ ۖ  عَلَيْهِ يَتَوَكَّلُ الْمُتَوَكِّلُونَ  

(ऐ रसूल) तुम कहो कि ख़ुदा मेरे लिए काफ़ी है उसी पर भरोसा करने वाले भरोसा करते हैं

39

قُلْ يَا قَوْمِ اعْمَلُوا عَلَى مَكَانَتِكُمْ إِنِّي عَامِلٌ ۖ فَسَوْفَ تَعْلَمُونَ  

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरी क़ौम तुम अपनी जगह (जो चाहो) अमल किए जाओ मै भी (अपनी जगह) कुछ कर रहा हूँ,

फिर अनक़रीब ही तुम्हें मालूम हो जाएगा

40

مَنْ يَأْتِيهِ عَذَابٌ يُخْزِيهِ وَيَحِلُّ عَلَيْهِ عَذَابٌ مُقِيمٌ  

कि किस पर वह आफत आती है जो उसको (दुनिया में) रूसवा कर देगी और (आख़िर में) उस पर दायमी अज़ाब भी नाज़िल होगा

41

إِنَّا أَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْكِتَابَ لِلنَّاسِ بِالْحَقِّ ۖ

(ऐ रसूल) हमने तुम्हारे पास (ये) किताब (क़ुरान) सच्चाई के साथ लोगों (की हिदायत) के वास्ते नाज़िल की है,

فَمَنِ اهْتَدَى فَلِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۖ

पस जो राह पर आया तो अपने ही (भले के) लिए और जो गुमराह हुआ तो उसकी गुमराही का वबाल भी उसी पर है

وَمَا أَنْتَ عَلَيْهِمْ بِوَكِيلٍ

और फिर तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार तो हो नहीं

42

اللَّهُ يَتَوَفَّى الْأَنْفُسَ حِينَ مَوْتِهَا وَالَّتِي لَمْ تَمُتْ فِي مَنَامِهَا ۖ

ख़ुदा ही लोगों के मरने के वक्त उनकी रूहें (अपनी तरफ़) खींच बुलाता है और जो लोग नहीं मरे (उनकी रूहें) उनकी नींद में (खींच ली जाती हैं)

فَيُمْسِكُ الَّتِي قَضَى عَلَيْهَا الْمَوْتَ وَيُرْسِلُ الْأُخْرَى إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى ۚ

बस जिन के बारे में ख़ुदा मौत का हुक्म दे चुका है उनकी रूहों को रोक रखता है और बाक़ी (सोने वालों की रूहों) को फिर एक मुक़र्रर वक्त तक के वास्ते भेज देता है

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَتَفَكَّرُونَ  

जो लोग (ग़ौर) और फिक्र करते हैं उनके लिए (क़ुदरते ख़ुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं  

43

أَمِ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ شُفَعَاءَ ۚ

क्या उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा (दूसरे) सिफारिशी बना रखे है

قُلْ أَوَلَوْ كَانُوا لَا يَمْلِكُونَ شَيْئًا وَلَا يَعْقِلُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगरचे वह लोग न कुछ एख़तेयार रखते हों न कुछ समझते हों

44

قُلْ لِلَّهِ الشَّفَاعَةُ جَمِيعًا ۖ

(तो भी सिफारिशी बनाओगे) तुम कह दो कि सारी सिफारिश तो ख़ुदा के लिए ख़ास है-

لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ

सारे आसमान व ज़मीन की हुकूमत उसी के लिए ख़ास है, फिर तुम लोगों को उसकी तरफ लौट कर जाना है  

45

وَإِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَحْدَهُ اشْمَأَزَّتْ قُلُوبُ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ ۖ

और जब सिर्फ अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते उनके दिल मुतनफ़िफ़र हो जाते हैं

وَإِذَا ذُكِرَ الَّذِينَ مِنْ دُونِهِ إِذَا هُمْ يَسْتَبْشِرُونَ  

और जब ख़ुदा के सिवा और (माबूदों) का ज़िक्र किया जाता है तो बस फौरन उनकी बाछें खिल जाती हैं

46

قُلِ اللَّهُمَّ فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ عَالِمَ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ ख़ुदा (ऐ) सारे आसमान और ज़मीन पैदा करने वाले, ज़ाहिर व बातिन के जानने वाले

أَنْتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبَادِكَ فِي مَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ  

हक़ बातों में तेरे बन्दे आपस में झगड़ रहे हैं तू ही उनके दरमियान फैसला कर देगा

47

وَلَوْ أَنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا مَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا وَمِثْلَهُ مَعَهُ

لَافْتَدَوْا بِهِ مِنْ سُوءِ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ

और अगर नाफरमानों के पास रूए ज़मीन की सारी काएनात मिल जाएग बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी हो तो क़यामत के दिन ये लोग यक़ीनन सख्त अज़ाब का फ़िदया दे निकलें (और अपना छुटकारा कराना चाहें)

وَبَدَا لَهُمْ مِنَ اللَّهِ مَا لَمْ يَكُونُوا يَحْتَسِبُونَ  

और (उस वक्त) उनके सामने ख़ुदा की तरफ से वह बात पेश आएगी जिसका उन्हें वहम व गुमान भी न था

48

وَبَدَا لَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَحَاقَ بِهِمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ

और जो बदकिरदारियाँ उन लोगों ने की थीं (वह सब) उनके सामने खुल जाएँगीं और जिस (अज़ाब) पर यह लोग क़हक़हे लगाते थे वह उन्हें घेरेगा

49

فَإِذَا مَسَّ الْإِنْسَانَ ضُرٌّ دَعَانَا ثُمَّ إِذَا خَوَّلْنَاهُ نِعْمَةً مِنَّا قَالَ إِنَّمَا أُوتِيتُهُ عَلَى عِلْمٍ ۚ

इन्सान को तो जब कोई बुराई छू गयी बस वह लगा हमसे दुआएँ माँगने,

फिर जब हम उसे अपनी तरफ़ से कोई नेअमत अता करते हैं तो कहने लगता है कि ये तो सिर्फ (मेरे) इल्म के ज़ोर से मुझे दिया गया है

بَلْ هِيَ فِتْنَةٌ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ  

(ये ग़लती है) बल्कि ये तो एक आज़माइश है मगर उन में के अक्सर नहीं जानते हैं  

50

قَدْ قَالَهَا الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْفَمَا أَغْنَى عَنْهُمْ مَا كَانُوا يَكْسِبُونَ  

जो लोग उनसे पहले थे वह भी ऐसी बातें बका करते थे फिर (जब हमारा अज़ाब आया) तो उनकी कारस्तानियाँ उनके कुछ भी काम न आई

51

فَأَصَابَهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا ۚ

ग़रज़ उनके आमाल के बुरे नतीजे उन्हें भुगतने पड़े

وَالَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْ هَؤُلَاءِ سَيُصِيبُهُمْ سَيِّئَاتُ مَا كَسَبُوا وَمَا هُمْ بِمُعْجِزِينَ  

और उन (कुफ्फ़ारे मक्का) में से जिन लोगों ने नाफरमानियाँ की हैं उन्हें भी अपने अपने आमाल की सज़ाएँ भुगतनी पड़ेंगी

और ये लोग (ख़ुदा को) आजिज़ नहीं कर सकते

52

أَوَلَمْ يَعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ

क्या उन लोगों को इतनी बात भी मालूम नहीं कि ख़ुदा ही जिसके लिए चाहता है रोज़ी फराख़ करता है और (जिसके लिए चाहता है) तंग करता है

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ  

इसमें शक नहीं कि क्या इसमें ईमानदार लोगों के (कुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं

53

قُلْ يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَى أَنْفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِنْ رَحْمَةِ اللَّهِ ۚ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ मेरे (ईमानदार) बन्दों जिन्होने (गुनाह करके) अपनी जानों पर ज्यादतियाँ की हैं तुम लोग ख़ुदा की रहमत से नाउम्मीद न होना

إِنَّ اللَّهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا ۚ

बेशक ख़ुदा (तुम्हारे) कुल गुनाहों को बख्श देगा

إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ  

वह बेशक बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

54

وَأَنِيبُوا إِلَى رَبِّكُمْ وَأَسْلِمُوا لَهُ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ ثُمَّ لَا تُنْصَرُونَ

और अपने परवरदिगार की तरफ रूजू करो और उसी के फरमाबरदार बन जाओ (मगर) उस वक्त क़े क़ब्ल ही कि तुम पर जब अज़ाब आ नाज़िल हो

(और) फिर तुम्हारी मदद न की जा सके

55

وَاتَّبِعُوا أَحْسَنَ مَا أُنْزِلَ إِلَيْكُمْ مِنْ رَبِّكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ الْعَذَابُ بَغْتَةً  وَأَنْتُمْ لَا تَشْعُرُونَ  

और जो जो अच्छी बातें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम पर नाज़िल हई हैं उन पर चलो (मगर) उसके क़ब्ल कि तुम पर एक बारगी अज़ाब नाज़िल हो और तुमको उसकी ख़बर भी न हो

56

‏أَنْ تَقُولَ نَفْسٌ يَا حَسْرَتَا عَلَى مَا فَرَّطْتُ فِي جَنْبِ اللَّهِ وَإِنْ كُنْتُ لَمِنَ  السَّاخِرِينَ  

(कहीं ऐसा न हो कि) तुममें से कोई शख्स कहने लगे कि हाए अफ़सोस मेरी इस कोताही पर जो मैने ख़ुदा (की बारगाह) का तक़र्रुब हासिल करने में की और मैं तो बस उन बातों पर हँसता ही रहा

57

أَوْ تَقُولَ لَوْ أَنَّ اللَّهَ هَدَانِي لَكُنْتُ مِنَ الْمُتَّقِينَ

या ये कहने लगे कि अगर ख़ुदा मेरी हिदायत करता तो मैं ज़रूर परहेज़गारों में से होता

58

أَوْ تَقُولَ حِينَ تَرَى الْعَذَابَ لَوْ أَنَّ لِي كَرَّةً فَأَكُونَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ

या जब अज़ाब को (आते) देखें तो कहने लगे कि काश मुझे (दुनिया में) फिर दोबारा जाना मिले तो मैं नेकी कारों में हो जाऊँ

59

بَلَى قَدْ جَاءَتْكَ آيَاتِي فَكَذَّبْتَ بِهَا وَاسْتَكْبَرْتَ وَكُنْتَ مِنَ الْكَافِرِينَ

उस वक्त ख़ुदा कहेगा (हाँ) हाँ तेरे पास मेरी आयतें पहुँची तो तूने उन्हें झुठलाया और शेख़ी कर बैठा और तू भी काफिरों में से था (अब तेरी एक न सुनी जाएगी)

60

وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ تَرَى الَّذِينَ كَذَبُوا عَلَى اللَّهِ وُجُوهُهُمْ مُسْوَدَّةٌ ۚ

और जिन लोगों ने ख़ुदा पर झूठे बोहतान बाँधे - तुम क़यामत के दिन देखोगे उनके चेहरे सियाह होंगे

أَلَيْسَ فِي جَهَنَّمَ مَثْوًى لِلْمُتَكَبِّرِينَ

क्या गुरूर करने वालों का ठिकाना जहन्नुम में नहीं है (ज़रूर है)

61

وَيُنَجِّي اللَّهُ الَّذِينَ اتَّقَوْا بِمَفَازَتِهِمْ لَا يَمَسُّهُمُ السُّوءُ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

और जो लोग परहेज़गार हैं ख़ुदा उन्हें उनकी कामयाबी (और सआदत) के सबब निजात देगा

कि उन्हें तकलीफ छुएगी भी नहीं और न यह लोग (किसी तरह) रंजीदा दिल होंगे

62

اللَّهُ خَالِقُ كُلِّ شَيْءٍ ۖ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ وَكِيلٌ  

ख़ुदा ही हर चीज़ का जानने वाला है और वही हर चीज़ का निगेहबान है

63

لَهُ مَقَالِيدُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ

सारे आसमान व ज़मीन की कुन्जियाँ उसके पास है

وَالَّذِينَ كَفَرُوا بِآيَاتِ اللَّهِ أُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ  

और जो लोग उसकी आयतों से इन्कार कर बैठें वही घाटे में रहेगें

64

قُلْ أَفَغَيْرَ اللَّهِ تَأْمُرُونِّي أَعْبُدُ أَيُّهَا الْجَاهِلُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि नादानों भला तुम मुझसे ये कहते हो कि मैं ख़ुदा के सिवा किसी दूसरे की इबादत करूँ

65

وَلَقَدْ أُوحِيَ إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكَ

और (ऐ रसूल) तुम्हारी तरफ और उन (पैग़म्बरों) की तरफ जो तुमसे पहले हो चुके हैं यक़ीनन ये वही भेजी जा की हैकि

لَئِنْ أَشْرَكْتَ لَيَحْبَطَنَّ عَمَلُكَ وَلَتَكُونَنَّ مِنَ الْخَاسِرِينَ

अगर (कहीं) शिर्क किया तो यक़ीनन तुम्हारे सारे अमल अकारत हो जाएँगे और तुम तो ज़रूर घाटे में आ जाओगे

66

بَلِ اللَّهَ فَاعْبُدْ وَكُنْ مِنَ الشَّاكِرِينَ

बल्कि तुम ख़ुदा ही कि इबादत करो और शुक्र गुज़ारों में हो

67

وَمَا قَدَرُوا اللَّهَ حَقَّ قَدْرِهِ

और उन लोगों ने ख़ुदा की जैसी क़द्र दानी करनी चाहिए थी उसकी (कुछ भी) कद्र न की

وَالْأَرْضُ جَمِيعًا قَبْضَتُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَالسَّمَاوَاتُ مَطْوِيَّاتٌ بِيَمِينِهِ ۚ

हालाँकि (वह ऐसा क़ादिर है कि) क़यामत के दिन सारी ज़मीन (गोया) उसकी मुट्ठी में होगी और सारे आसमान उसके दाहिने हाथ में लिपटे हुए हैं

سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ

जिसे ये लोग उसका शरीक बनाते हैं वह उससे पाकीज़ा और बरतर है

68

وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَصَعِقَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَنْ شَاءَ اللَّهُ ۖ

और जब (पहली बार) सूर फँका जाएगा तो जो लोग आसमानों में हैं और जो लोग ज़मीन में हैं (मौत से) बेहोश होकर गिर पड़ेंगें) मगर (हाँ) जिस को ख़ुदा चाहे वह अलबत्ता बच जाएगा

ثُمَّ نُفِخَ فِيهِ أُخْرَى فَإِذَا هُمْ قِيَامٌ يَنْظُرُونَ

फिर जब दोबारा सूर फूँका जाएगा तो फौरन सब के सब खड़े हो कर देखने लगेंगें

69

وَأَشْرَقَتِ الْأَرْضُ بِنُورِ رَبِّهَا

और ज़मीन अपने परवरदिगार के नूर से जगमगा उठेगी

وَوُضِعَ الْكِتَابُ وَجِيءَ بِالنَّبِيِّينَ وَالشُّهَدَاءِ

और (आमाल की) किताब (लोगों के सामने) रख दी जाएगी और पैग़म्बर और गवाह ला हाज़िर किए जाएँगे

وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ

और उनमें इन्साफ के साथ फैसला कर दिया जाएगा और उन पर (ज़र्रा बराबर) ज़ुल्म नहीं किया जाएगा

70

وَوُفِّيَتْ كُلُّ نَفْسٍ مَا عَمِلَتْ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَا يَفْعَلُونَ

और जिस शख्स ने जैसा किया हो उसे उसका पूरा पूरा बदला मिल जाएगा,

और जो कुछ ये लोग करते हैं वह उससे ख़ूब वाक़िफ है

71

وَسِيقَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِلَى جَهَنَّمَ زُمَرًا ۖ

और जो लोग काफिर थे उनके ग़ोल के ग़ोल जहन्नुम की तरफ हॅकाए जाएँगे

حَتَّى إِذَا جَاءُوهَا فُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا  

और यहाँ तक की जब जहन्नुम के पास पहुँचेगें तो उसके दरवाज़े खोल दिए जाएगें

أَلَمْ يَأْتِكُمْ رُسُلٌ مِنْكُمْ يَتْلُونَ عَلَيْكُمْ آيَاتِ رَبِّكُمْ  وَيُنْذِرُونَكُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا ۚ

और उसके दरोग़ा उनसे पूछेंगे कि क्या तुम लोगों में के पैग़म्बर तुम्हारे पास नहीं आए थे जो तुमको तुम्हारे परवरदिगार की आयतें पढ़कर सुनाते और तुमको इस रोज़ (बद) के पेश आने से डराते

قَالُوا بَلَى

वह लोग जवाब देगें कि हाँ (आए तो थे) मगर (हमने न माना)

وَلَكِنْ حَقَّتْ كَلِمَةُ الْعَذَابِ عَلَى الْكَافِرِينَ

और अज़ाब का हुक्म काफिरों के बारे में पूरा हो कर रहेगा

72

قِيلَ ادْخُلُوا أَبْوَابَ جَهَنَّمَ خَالِدِينَ فِيهَا ۖ  فَبِئْسَ مَثْوَى الْمُتَكَبِّرِينَ

(तब उनसे) कहा जाएगा कि जहन्नुम के दरवाज़ों में धँसो और हमेशा इसी में रहो

ग़रज़ तकब्बुर करने वाले का (भी) क्या बुरा ठिकाना है

73

وَسِيقَ الَّذِينَ اتَّقَوْا رَبَّهُمْ إِلَى الْجَنَّةِ زُمَرًا ۖ

और जो लोग अपने परवरदिगार से डरते थे वह गिर्दो गिर्दा (गिरोह गिरोह) बेहिश्त की तरफ़ (एजाज़ व इकराम से) बुलाए जाएगें

حَتَّى إِذَا جَاءُوهَا وَفُتِحَتْ أَبْوَابُهَا وَقَالَ لَهُمْ خَزَنَتُهَا سَلَامٌ عَلَيْكُمْ طِبْتُمْ

यहाँ तक कि जब उसके पास पहुँचेगें और बेहिश्त के दरवाज़े खोल दिये जाएँगें

और उसके निगेहबान उन से कहेंगें सलाम अलैकुम तुम अच्छे रहे,

فَادْخُلُوهَا خَالِدِينَ

तुम बेहिश्त में हमेशा के लिए दाख़िल हो जाओ

74

وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي صَدَقَنَا وَعْدَهُ  وَ أَوْرَثَنَا الْأَرْضَ نَتَبَوَّأُ مِنَ الْجَنَّةِ حَيْثُ نَشَاءُ ۖ

और ये लोग कहेंगें ख़ुदा का शुक्र जिसने अपना वायदा हमसे सच्चा कर दिखाया

और हमें (बेहिश्त की) सरज़मीन का मालिक बनाया कि हम बेहिश्त में जहाँ चाहें रहें

فَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ

तो नेक चलन वालों की भी क्या ख़ूब (खरी) मज़दूरी है

75

وَتَرَى الْمَلَائِكَةَ حَافِّينَ مِنْ حَوْلِ الْعَرْشِ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ ۖ

और (उस दिन) फरिश्तों को देखोगे कि अर्श के गिर्दा गिर्द घेरे हुए डटे होंगे और अपने परवरदिगार की तारीफ की (तसबीह) कर रहे होंगे

और लोगों के दरमियान ठीक फैसला कर दिया जाएगा

وَقُضِيَ بَيْنَهُمْ بِالْحَقِّ وَقِيلَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

और (हर तरफ से यही) सदा बुलन्द होगी अल्हमदो लिल्लाहे रब्बिल आलेमीन

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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