Quran Hindi TranslationSurah SaadTranslation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan |
1 |
ص ۚ وَالْقُرْآنِ ذِي الذِّكْرِ सआद नसीहत करने वाले कुरान की क़सम (तुम बरहक़ नबी हो) |
2 |
بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا فِي عِزَّةٍ وَشِقَاقٍ मगर ये कुफ्फ़ार (ख्वाहमख्वाह) तकब्बुर और अदावत में (पड़े अंधे हो रहें) हैं |
3 |
كَمْ أَهْلَكْنَا مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ قَرْنٍ हमने उन से पहले कितने गिरोह हलाक कर डाले فَنَادَوْا وَلَاتَ حِينَ مَنَاصٍ तो (अज़ाब के वक्त) ये लोग चीख़ उठे मगर छुटकारे का वक्त ही न रहा था |
4 |
وَعَجِبُوا أَنْ جَاءَهُمْ مُنْذِرٌ مِنْهُمْ ۖ और उन लोगों ने इस बात से ताज्जुब किया कि उन्हीं में का (अज़ाबे खुदा से) एक डरानेवाला (पैग़म्बर) उनके पास आया وَقَالَ الْكَافِرُونَ هَذَا سَاحِرٌ كَذَّابٌ और काफिर लोग कहने लगे कि ये तो बड़ा (खिलाड़ी) जादूगर और पक्का झूठा है |
5 |
أَجَعَلَ الْآلِهَةَ إِلَهًا وَاحِدًا ۖ إِنَّ هَذَا لَشَيْءٌ عُجَابٌ भला (देखो तो) उसने तमाम माबूदों को (मटियामेट करके बस) एक ही माबूद क़ायम रखा ये तो यक़ीनी बड़ी ताज्जुब खेज़ बात है |
6 |
وَانْطَلَقَ الْمَلَأُ مِنْهُمْ أَنِ امْشُوا وَاصْبِرُوا عَلَى آلِهَتِكُمْ ۖ और उनमें से चन्द रवादार लोग (मजलिस व अज़ा से) ये (कह कर) चल खड़े हुए कि (यहाँ से) चल दो और अपने माबूदों की इबादत पर जमे रहो إِنَّ هَذَا لَشَيْءٌ يُرَادُ यक़ीनन इसमें (उसकी) कुछ ज़ाती ग़रज़ है |
7 |
مَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي الْمِلَّةِ الْآخِرَةِ إِنْ هَذَا إِلَّا اخْتِلَاقٌ हम लोगों ने तो ये बात पिछले दीन में कभी सुनी भी नहीं हो न हो ये उसकी मन गढ़ंत है |
8 |
أَأُنْزِلَ عَلَيْهِ الذِّكْرُ مِنْ بَيْنِنَا ۚ क्या हम सब लोगों में बस (मोहम्मद ही क़ाबिल था कि) उस पर कुरान नाज़िल हुआ, بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِنْ ذِكْرِي ۖ नहीं बात ये है कि इनके (सिरे से) मेरे कलाम ही में शक है कि मेरा है या नहीं بَلْ لَمَّا يَذُوقُوا عَذَابِ बल्कि असल ये है कि इन लोगों ने अभी तक अज़ाब के मज़े नहीं चखे |
9 |
أَمْ عِنْدَهُمْ خَزَائِنُ رَحْمَةِ رَبِّكَ الْعَزِيزِ الْوَهَّابِ (ऐ रसूल) तुम्हारे ज़बरदस्त फ़य्याज़ परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने क्या इनके पास हैं |
10 |
أَمْ لَهُمْ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا ۖ या सारे आसमान व ज़मीन और उन दोनों के दरमियान की सलतनत इन्हीं की ख़ास है فَلْيَرْتَقُوا فِي الْأَسْبَابِ तब इनको चाहिए कि रास्ते या सीढियाँ लगाकर (आसमान पर) चढ़ जाएँ और इन्तेज़ाम करें |
11 |
جُنْدٌ مَا هُنَالِكَ مَهْزُومٌ مِنَ الْأَحْزَابِ (ऐ रसूल उन पैग़म्बरों के साथ झगड़ने वाले) गिरोहों में से यहाँ तुम्हारे मुक़ाबले में भी एक लशकर है जो शिकस्त खाएगा |
12 |
كَذَّبَتْ قَبْلَهُمْ قَوْمُ نُوحٍ وَعَادٌ وَفِرْعَوْنُ ذُو الْأَوْتَادِ उनसे पहले नूह की क़ौम और आद और फिरऔन मेंख़ों वाला (पैग़म्बरों को) झुठला चुकी हैं |
13 |
وَثَمُودُ وَقَوْمُ لُوطٍ وَأَصْحَابُ الْأَيْكَةِ أُولَئِكَ الْأَحْزَابُ और समूद और लूत की क़ौम और जंगल के रहने वाले (क़ौम शुऐब ये सब) यही वह गिरोह है (जो शिकस्त खा चुके) |
14 |
إِنْ كُلٌّ إِلَّا كَذَّبَ الرُّسُلَ فَحَقَّ عِقَابِ सब ही ने तो पैग़म्बरों को झुठलाया तो हमारा अज़ाब ठीक आ नाज़िल हुआ |
15 |
وَمَا يَنْظُرُ هَؤُلَاءِ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً مَا لَهَا مِنْ فَوَاقٍ और ये (काफिर) लोग बस एक चिंघाड़ (सूर के मुन्तज़िर हैं जो फिर उन्हें) चश्में ज़दन की मोहलत न देगी |
16 |
وَقَالُوا رَبَّنَا عَجِّلْ لَنَا قِطَّنَا قَبْلَ يَوْمِ الْحِسَابِ और ये लोग (मज़ाक से) कहते हैं कि परवरदिगार हिसाब के दिन (क़यामत के) क़ब्ल ही (जो) हमारी क़िस्मत को लिखा (हो) हमें जल्दी दे दे |
17 |
اصْبِرْ عَلَى مَا يَقُولُونَ وَاذْكُرْ عَبْدَنَا دَاوُودَ ذَا الْأَيْدِ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ (ऐ रसूल) जैसी जैसी बातें ये लोग करते हैं उन पर सब्र करो और हमारे बन्दे दाऊद को याद करो जो बड़े कूवत वाले थे बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े रूजू करने वाले थे |
18 |
إِنَّا سَخَّرْنَا الْجِبَالَ مَعَهُ يُسَبِّحْنَ بِالْعَشِيِّ وَالْإِشْرَاقِ हमने पहाड़ों को भी ताबेदार बना दिया था कि उनके साथ सुबह और शाम (खुदा की) तस्बीह करते थे |
19 |
وَالطَّيْرَ مَحْشُورَةً ۖ كُلٌّ لَهُ أَوَّابٌ और परिन्दे भी (यादे खुदा के वक्त सिमट) आते और उनके फरमाबरदार थे |
20 |
وَشَدَدْنَا مُلْكَهُ وَآتَيْنَاهُ الْحِكْمَةَ وَفَصْلَ الْخِطَابِ और हमने उनकी सल्तनत को मज़बूत कर दिया और हमने उनको हिकमत और बहस के फैसले की कूवत अता फरमायी थी |
21 |
وَهَلْ أَتَاكَ نَبَأُ الْخَصْمِ إِذْ تَسَوَّرُوا الْمِحْرَابَ (ऐ रसूल) क्या तुम तक उन दावेदारों की भी ख़बर पहुँची है कि जब वह हुजरे (इबादत) की दीवार फाँद पडे |
22 |
إِذْ دَخَلُوا عَلَى دَاوُودَ فَفَزِعَ مِنْهُمْ ۖ (और) जब दाऊद के पास आ खड़े हुए तो वह उनसे डर गए قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ उन लोगों ने कहा कि आप डरें नहीं خَصْمَانِ بَغَى بَعْضُنَا عَلَى بَعْضٍ فَاحْكُمْ بَيْنَنَا بِالْحَقِّ وَلَا تُشْطِطْ وَاهْدِنَا إِلَى سَوَاءِ الصِّرَاطِ (हम दोनों) एक मुक़द्दमें के फ़रीकैन हैं कि हम में से एक ने दूसरे पर ज्यादती की है तो आप हमारे दरमियान ठीक-ठीक फैसला कर दीजिए और इन्साफ से ने गुज़रिये और हमें सीधी राह दिखा दीजिए |
23 |
إِنَّ هَذَا أَخِي لَهُ تِسْعٌ وَتِسْعُونَ نَعْجَةً وَلِيَ نَعْجَةٌ وَاحِدَةٌ (मुराद ये हैं कि) ये (शख्स) मेरा भाई है और उसके पास निनान्नवे दुम्बियाँ हैं और मेरे पास सिर्फ एक दुम्बी है فَقَالَ أَكْفِلْنِيهَا وَعَزَّنِي فِي الْخِطَابِ उस पर भी ये मुझसे कहता है कि ये दुम्बी भी मुझी को दे दें और बातचीत में मुझ पर सख्ती करता है |
24 |
قَالَ لَقَدْ ظَلَمَكَ بِسُؤَالِ نَعْجَتِكَ إِلَى نِعَاجِهِ ۖ दाऊद ने (बग़ैर इसके कि मुदा आलैह से कुछ पूछें) कह दिया कि ये जो तेरी दुम्बी माँग कर अपनी दुम्बियों में मिलाना चाहता है وَإِنَّ كَثِيرًا مِنَ الْخُلَطَاءِ لَيَبْغِي بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ तो ये तुझ पर ज़ुल्म करता है और अक्सर शुरका (की) यकीनन (ये हालत है कि) एक दूसरे पर जुल्म किया करते हैं إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَقَلِيلٌ مَا هُمْ ۗ मगर जिन लोगों ने (सच्चे दिल से) ईमान कुबूल किया और अच्छे (अच्छे) काम किए (वह ऐसा नहीं करते) और ऐसे लोग बहुत ही कम हैं (ये सुनकर दोनों चल दिए) وَظَنَّ دَاوُودُ أَنَّمَا فَتَنَّاهُ فَاسْتَغْفَرَ رَبَّهُ وَخَرَّ رَاكِعًا وَأَنَابَ ۩ और अब दाऊद ने समझा कि हमने उनका इमितेहान लिया (और वह ना कामयाब रहे) फिर तो अपने परवरदिगार से बख्शिश की दुआ माँगने लगे और सजदे में गिर पड़े और (मेरी) तरफ रूजू की (सजदा) |
25 |
فَغَفَرْنَا لَهُ ذَلِكَ ۖ وَإِنَّ لَهُ عِنْدَنَا لَزُلْفَى وَحُسْنَ مَآبٍ तो हमने उनकी वह ग़लती माफ कर दी और इसमें शक नहीं कि हमारी बारगाह में उनका तक़र्रुब और अन्जाम अच्छा हुआ |
26 |
يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ فَاحْكُمْ بَيْنَ النَّاسِ بِالْحَقِّ وَلَا تَتَّبِعِ الْهَوَى فَيُضِلَّكَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ ۚ (हमने फरमाया) ऐ दाऊद हमने तुमको ज़मीन में (अपना) नाएब क़रार दिया तो तुम लोगों के दरमियान बिल्कुल ठीक फैसला किया करो और नफ़सियानी ख्वाहिश की पैरवी न करो बसा ये पीरों तुम्हें ख़ुदा की राह से बहका देगी إِنَّ الَّذِينَ يَضِلُّونَ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ بِمَا نَسُوا يَوْمَ الْحِسَابِ इसमें शक नहीं कि जो लोग खुदा की राह में भटकते हैं उनकी बड़ी सख्त सज़ा होगी क्योंकि उन लोगों ने हिसाब के दिन (क़यामत) को भुला दिया |
27 |
وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاءَ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا بَاطِلًا ۚ और हमने आसमान और ज़मीन और जो चीज़ें उन दोनों के दरमियान हैं बेकार नहीं पैदा किया ذَلِكَ ظَنُّ الَّذِينَ كَفَرُوا ۚ ये उन लोगों का ख्याल है فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مِنَ النَّارِ जो काफ़िर हो बैठे तो जो लोग दोज़ख़ के मुनकिर हैं उन पर अफ़सोस है |
28 |
أَمْ نَجْعَلُ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ كَالْمُفْسِدِينَ فِي الْأَرْضِ क्या जिन लोगों ने ईमान कुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उनको हम (उन लोगों के बराबर) कर दें जो रूए ज़मीन में फसाद फैलाया करते हैं أَمْ نَجْعَلُ الْمُتَّقِينَ كَالْفُجَّارِ या हम परहेज़गारों को मिसल बदकारों के बना दें |
29 |
كِتَابٌ أَنْزَلْنَاهُ إِلَيْكَ مُبَارَكٌ لِيَدَّبَّرُوا آيَاتِهِ وَلِيَتَذَكَّرَ أُولُو الْأَلْبَابِ (ऐ रसूल) किताब (कुरान) जो हमने तुम्हारे पास नाज़िल की है (बड़ी) बरकत वाली है ताकि लोग इसकी आयतों में ग़ौर करें और ताकि अक्ल वाले नसीहत हासिल करें |
30 |
وَوَهَبْنَا لِدَاوُودَ سُلَيْمَانَ ۚ और हमने दाऊद को सुलेमान (सा बेटा) अता किया نِعْمَ الْعَبْدُ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ (सुलेमान भी) क्या अच्छे बन्दे थे बेशक वह हमारी तरफ रूजू करने वाले थे |
31 |
إِذْ عُرِضَ عَلَيْهِ بِالْعَشِيِّ الصَّافِنَاتُ الْجِيَادُ इत्तोफाक़न एक दफ़ा तीसरे पहर को ख़ासे के असील घोड़े उनके सामने पेश किए गए |
32 |
فَقَالَ إِنِّي أَحْبَبْتُ حُبَّ الْخَيْرِ عَنْ ذِكْرِ رَبِّي حَتَّى تَوَارَتْ بِالْحِجَابِ तो देखने में उलझे के नवाफिल में देर हो गयी जब याद आया तो बोले कि मैंने अपने परवरदिगार की याद पर माल की उलफ़त को तरजीह दी यहाँ तक कि आफ़ताब (मग़रिब के) पर्दे में छुप गया |
33 |
رُدُّوهَا عَلَيَّ ۖ (तो बोले अच्छा) इन घोड़ों को मेरे पास वापस लाओ فَطَفِقَ مَسْحًا بِالسُّوقِ وَالْأَعْنَاقِ (जब आए) तो (देर के कफ्फ़ारा में) घोड़ों की टाँगों और गर्दनों पर हाथ फेर (काट) ने लगे |
34 |
وَلَقَدْ فَتَنَّا سُلَيْمَانَ وَأَلْقَيْنَا عَلَى كُرْسِيِّهِ جَسَدًا ثُمَّ أَنَابَ और हमने सुलेमान का इम्तेहान लिया और उनके तख्त पर एक बेजान धड़ लाकर गिरा दिया फिर (सुलेमान ने मेरी तरफ) रूजू की |
35 |
قَالَ رَبِّ اغْفِرْ لِي وَهَبْ لِي مُلْكًا لَا يَنْبَغِي لِأَحَدٍ مِنْ بَعْدِي ۖإِنَّكَ أَنْتَ الْوَهَّابُ (और) कहा परवरदिगार मुझे बख्श दे और मुझे वह मुल्क अता फरमा जो मेरे बाद किसी के वास्ते शायाँह न हो इसमें तो शक नहीं कि तू बड़ा बख्शने वाला है |
36 |
فَسَخَّرْنَا لَهُ الرِّيحَ تَجْرِي بِأَمْرِهِ رُخَاءً حَيْثُ أَصَابَ तो हमने हवा को उनका ताबेए कर दिया कि जहाँ वह पहुँचना चाहते थे उनके हुक्म के मुताबिक़ धीमी चाल चलती थी |
37 |
وَالشَّيَاطِينَ كُلَّ بَنَّاءٍ وَغَوَّاصٍ और (इसी तरह) जितने शयातीन (देव) थे इमारत बनाने वाले और ग़ोता लगाने वाले सबको (ताबेए कर दिया) |
38 |
وَآخَرِينَ مُقَرَّنِينَ فِي الْأَصْفَادِ (और इसके अलावा) दूसरे देवों को भी जो ज़ंज़ीरों में जकड़े हुए थे |
39 |
هَذَا عَطَاؤُنَا فَامْنُنْ أَوْ أَمْسِكْ بِغَيْرِ حِسَابٍ ऐ सुलेमान ये हमारी बेहिसाब अता है पस (उसे लोगों को देकर) एहसान करो या (सब) अपने ही पास रखो |
40 |
وَإِنَّ لَهُ عِنْدَنَا لَزُلْفَى وَحُسْنَ مَآبٍ और इसमें शक नहीं कि सुलेमान की हमारी बारगाह में कुर्ब व मज़ेलत और उमदा जगह है |
41 |
وَاذْكُرْ عَبْدَنَا أَيُّوبَ إِذْ نَادَى رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الشَّيْطَانُ بِنُصْبٍ وَعَذَابٍ और (ऐ रसूल) हमारे (ख़ास) बन्दे अय्यूब को याद करो जब उन्होंने अपने परवरदिगार से फरियाद की कि मुझको शैतान ने बहुत अज़ीयत और तकलीफ पहुँचा रखी है |
42 |
ارْكُضْ بِرِجْلِكَ ۖ هَذَا مُغْتَسَلٌ بَارِدٌ وَشَرَابٌ तो हमने कहा कि अपने पाँव से (ज़मीन को) ठुकरा दो और चश्मा निकाला तो हमने कहा (ऐ अय्यूब) तुम्हारे नहाने और पीने के वास्ते ये ठन्डा पानी (हाज़िर) है |
43 |
وَوَهَبْنَا لَهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُمْ مَعَهُمْ رَحْمَةً مِنَّا وَذِكْرَى لِأُولِي الْأَلْبَابِ और हमने उनको और उनके लड़के वाले और उनके साथ उतने ही और अता किए अपनी ख़ास मेहरबानी से और अक्लमंदों के लिए इबरत व नसीहत (क़रार दी) |
44 |
وَخُذْ بِيَدِكَ ضِغْثًا فَاضْرِبْ بِهِ وَلَا تَحْنَثْ ۗ और हमने कहा ऐ अय्यूब तुम अपने हाथ से सींको का मट्ठा लो (और उससे अपनी बीवी को) मारो अपनी क़सम में झूठे न बनो إِنَّا وَجَدْنَاهُ صَابِرًا ۚ हमने अय्यूब को यक़ीनन साबिर पाया نِعْمَ الْعَبْدُ ۖ إِنَّهُ أَوَّابٌ वह क्या अच्छे बन्दे थे बेशक वह हमारी बारगाह में बड़े झुकने वाले थे |
45 |
وَاذْكُرْ عِبَادَنَا إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ أُولِي الْأَيْدِي وَالْأَبْصَارِ और (ऐ रसूल) हमारे बन्दों में इबराहीम और इसहाक़ और याकूब को याद करो जो कुवत और बसीरत वाले थे |
46 |
إِنَّا أَخْلَصْنَاهُمْ بِخَالِصَةٍ ذِكْرَى الدَّارِ हमने उन लोगों को एक ख़ास सिफत आख़ेरत की याद से मुमताज़ किया था |
47 |
وَإِنَّهُمْ عِنْدَنَا لَمِنَ الْمُصْطَفَيْنَ الْأَخْيَارِ और इसमें शक नहीं कि ये लोग हमारी बारगाह में बरगुज़ीदा और नेक लोगों में हैं |
48 |
وَاذْكُرْ إِسْمَاعِيلَ وَالْيَسَعَ وَذَا الْكِفْلِ ۖ وَكُلٌّ مِنَ الْأَخْيَارِ और (ऐ रसूल) इस्माईल और अलयसा और जुलकिफ़ल को (भी) याद करो और (ये) सब नेक बन्दों में हैं |
49 |
هَذَا ذِكْرٌ ۚ ये एक नसीहत है وَإِنَّ لِلْمُتَّقِينَ لَحُسْنَ مَآبٍ और इसमें शक नहीं कि परहेज़गारों के लिए (आख़ेरत में) यक़ीनी अच्छी आरामगाह है |
50 |
جَنَّاتِ عَدْنٍ مُفَتَّحَةً لَهُمُ الْأَبْوَابُ (यानि) हमेशा रहने के (बेहिश्त के) सदाबहार बाग़ात जिनके दरवाज़े उनके लिए (बराबर) खुले होगें |
51 |
مُتَّكِئِينَ فِيهَا يَدْعُونَ فِيهَا بِفَاكِهَةٍ كَثِيرَةٍ وَشَرَابٍ और ये लोग वहाँ तकिये लगाए हुए (चैन से बैठे) होगें वहाँ (खुद्दामे बेहिश्त से) कसरत से मेवे और शराब मँगवाएँगे |
52 |
وَعِنْدَهُمْ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ أَتْرَابٌ और उनके पहलू में नीची नज़रों वाली (शरमीली) कमसिन बीवियाँ होगी |
53 |
هَذَا مَا تُوعَدُونَ لِيَوْمِ الْحِسَابِ (मोमिनों) ये वह चीज़ हैं जिनका हिसाब के दिन (क़यामत) के लिए तुमसे वायदा किया जाता है |
54 |
إِنَّ هَذَا لَرِزْقُنَا مَا لَهُ مِنْ نَفَادٍ बेशक ये हमारी (दी हुई) रोज़ी है जो कभी तमाम न होगी |
55 |
هَذَا ۚ وَإِنَّ لِلطَّاغِينَ لَشَرَّ مَآبٍ ये (परहेज़गारों का अन्जाम) है और सरकशों का तो यक़ीनी बुरा ठिकाना है |
56 |
جَهَنَّمَ يَصْلَوْنَهَا فَبِئْسَ الْمِهَادُ जहन्नुम जिसमें उनको जाना पड़ेगा तो वह क्या बुरा ठिकाना है |
57 |
هَذَا فَلْيَذُوقُوهُ حَمِيمٌ وَغَسَّاقٌ ये खौलता हुआ पानी और पीप और इस तरह अनवा अक़साम की दूसरी चीज़े हैं |
58 |
وَآخَرُ مِنْ شَكْلِهِ أَزْوَاجٌ और इस तरह अनवा अक़साम की दूसरी चीज़े हैं |
59 |
هَذَا فَوْجٌ مُقْتَحِمٌ مَعَكُمْ ۖ لَا مَرْحَبًا بِهِمْ ۚ (कुछ लोगों के बारे में) बड़ों से कहा जाएगा ये (तुम्हारी चेलों की) फौज भी तुम्हारे साथ ही ढूँसी जाएगी उनका भला न हो إِنَّهُمْ صَالُو النَّارِ ये सब भी दोज़ख़ को जाने वाले हैं |
60 |
قَالُوا بَلْ أَنْتُمْ لَا مَرْحَبًا بِكُمْ ۖ أَنْتُمْ قَدَّمْتُمُوهُ لَنَا ۖ तो चेले कहेंगें (हम क्यों) बल्कि तुम (जहन्नुमी हो) तुम्हारा ही भला न हो तो तुम ही लोगों ने तो इस (बला) से हमारा सामना करा दिया فَبِئْسَ الْقَرَارُ तो जहन्नुम भी क्या बुरी जगह है |
61 |
قَالُوا رَبَّنَا مَنْ قَدَّمَ لَنَا هَذَا فَزِدْهُ عَذَابًا ضِعْفًا فِي النَّارِ (फिर वह) अर्ज़ करेगें परवरदिगार जिस शख्स ने हमारा इस (बला) से सामना करा दिया तो तू उस पर हमसे बढ़कर जहन्नुम में दो गुना अज़ाब कर |
62 |
وَقَالُوا مَا لَنَا لَا نَرَى رِجَالًا كُنَّا نَعُدُّهُمْ مِنَ الْأَشْرَارِ और (फिर) खुद भी कहेगें हमें क्या हो गया है कि हम जिन लोगों को (दुनिया में) शरीर शुमार करते थे हम उनको यहाँ (दोज़ख़) में नहीं देखते |
63 |
أَتَّخَذْنَاهُمْ سِخْرِيًّا أَمْ زَاغَتْ عَنْهُمُ الْأَبْصَارُ क्या हम उनसे (नाहक़) मसखरापन करते थे या उनकी तरफ से (हमारी) ऑंखे पलट गयी हैं |
64 |
إِنَّ ذَلِكَ لَحَقٌّ تَخَاصُمُ أَهْلِ النَّارِ इसमें शक नहीं कि जहन्नुमियों का बाहम झगड़ना ये बिल्कुल यक़ीनी ठीक है |
65 |
قُلْ إِنَّمَا أَنَا مُنْذِرٌ ۖ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस (अज़ाबे खुदा से) डराने वाला हूँ وَمَا مِنْ إِلَهٍ إِلَّا اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ और यकता क़हार खुदा के सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं |
66 |
رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا الْعَزِيزُ الْغَفَّارُ सारे आसमान और ज़मीन का और जो चीज़े उन दोनों के दरमियान हैं (सबका) परवरदिगार ग़ालिब बड़ा बख्शने वाला है |
67 |
قُلْ هُوَ نَبَأٌ عَظِيمٌ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये (क़यामत) एक बहुत बड़ा वाक़िया है |
68 |
أَنْتُمْ عَنْهُ مُعْرِضُونَ जिससे तुम लोग (ख्वाहमाख्वाह) मुँह फेरते हो |
69 |
مَا كَانَ لِيَ مِنْ عِلْمٍ بِالْمَلَإِ الْأَعْلَى إِذْ يَخْتَصِمُونَ आलम बाला के रहने वाले (फरिश्ते) जब वाहम बहस करते थे उसकी मुझे भी ख़बर न थी |
70 |
إِنْ يُوحَى إِلَيَّ إِلَّا أَنَّمَا أَنَا نَذِيرٌ مُبِينٌ मेरे पास तो बस वही की गयी है कि मैं (खुदा के अज़ाब से) साफ-साफ डराने वाला हूँ |
71 |
إِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي خَالِقٌ بَشَرًا مِنْ طِينٍ (वह बहस ये थी कि) जब तुम्हारे परवरदिगार ने फरिश्तों से कहा कि मैं गीली मिट्टी से एक आदमी बनाने वाला हूँ |
72 |
فَإِذَا سَوَّيْتُهُ وَنَفَخْتُ فِيهِ مِنْ رُوحِي فَقَعُوا لَهُ سَاجِدِينَ तो जब मैं उसको दुरूस्त कर लूँ और इसमें अपनी (पैदा) की हुई रूह फूँक दो तो तुम सब के सब उसके सामने सजदे में गिर पड़ना |
73 |
فَسَجَدَ الْمَلَائِكَةُ كُلُّهُمْ أَجْمَعُونَ तो सब के सब कुल फरिश्तों ने सजदा किया |
74 |
إِلَّا إِبْلِيسَ اسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ मगर (एक) इबलीस ने कि वह शेख़ी में आ गया और काफिरों में हो गया |
75 |
قَالَ يَا إِبْلِيسُ مَا مَنَعَكَ أَنْ تَسْجُدَ لِمَا خَلَقْتُ بِيَدَيَّ ۖ ख़ुदा ने (इबलीस से) फरमाया कि ऐ इबलीस जिस चीज़ को मैंने अपनी ख़ास कुदरत से पैदा किया (भला) उसको सजदा करने से तुझे किसी ने रोका أَسْتَكْبَرْتَ أَمْ كُنْتَ مِنَ الْعَالِينَ क्या तूने तक़ब्बुर किया या वाकई तू बड़े दरजे वालें में है |
76 |
قَالَ أَنَا خَيْرٌ مِنْهُ ۖ خَلَقْتَنِي مِنْ نَارٍ وَخَلَقْتَهُ مِنْ طِينٍ इबलीस बोल उठा कि मैं उससे बेहतर हूँ तूने मुझे आग से पैदा किया और इसको तूने गीली मिट्टी से पैदा किया (कहाँ आग कहाँ मिट्टी) |
77 |
قَالَ فَاخْرُجْ مِنْهَا فَإِنَّكَ رَجِيمٌ खुदा ने फरमाया कि तू यहाँ से निकल (दूर हो) तू यक़ीनी मरदूद है |
78 |
وَإِنَّ عَلَيْكَ لَعْنَتِي إِلَى يَوْمِ الدِّينِ और तुझ पर रोज़ जज़ा (क़यामत) तक मेरी फिटकार पड़ा करेगी |
79 |
قَالَ رَبِّ فَأَنْظِرْنِي إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ शैतान ने अर्ज़ की परवरदिगार तू मुझे उस दिन तक की मोहलत अता कर जिसमें सब लोग (दोबारा) उठा खड़े किए जायेंगे |
80 |
قَالَ فَإِنَّكَ مِنَ الْمُنْظَرِينَ फरमाया तुझे मोहलत दी गयी |
81 |
إِلَى يَوْمِ الْوَقْتِ الْمَعْلُومِ एक वक्त मुअय्यन के दिन तक की |
82 |
قَالَ فَبِعِزَّتِكَ لَأُغْوِيَنَّهُمْ أَجْمَعِينَ वह बोला तेरी ही इज्ज़त व जलाल की क़सम सब के सब को ज़रूर गुमराह करूँगा |
83 |
إِلَّا عِبَادَكَ مِنْهُمُ الْمُخْلَصِينَ सिवा उनमें से तेरे ख़ालिस बन्दों के |
84 |
قَالَ فَالْحَقُّ وَالْحَقَّ أَقُولُ खुदा ने फरमाया तो (हम भी) हक़ बात (कहे देते हैं) और मैं तो हक़ ही कहा करता हूँ |
85 |
لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنْكَ وَمِمَّنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ أَجْمَعِينَ कि मैं तुझसे और जो लोग तेरी ताबेदारी करेंगे उन सब से जहन्नुम को ज़रूर भरूँगा |
86 |
قُلْ مَا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُتَكَلِّفِينَ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो तुमसे न इस (तबलीग़े रिसालत) की मज़दूरी माँगता हूँ और न मैं (झूठ मूठ) बनावट करने वाला हूँ |
87 |
إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِلْعَالَمِينَ ये (क़ुरान) तो बस सारे जहाँन के लिए नसीहत है |
88 |
وَلَتَعْلَمُنَّ نَبَأَهُ بَعْدَ حِينٍ और कुछ दिनों बाद तुमको इसकी हक़ीकत मालूम हो जाएगी ********* |
© Copy Rights: Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana, Lahore, Pakistan Email: cmaj37@gmail.com |
Visits wef June 2024 |