Quran Hindi TranslationSurah YasinTranslation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan |
1 |
يس यासीन |
2 |
وَالْقُرْآنِ الْحَكِيمِ इस पुरअज़ हिकमत कुरान की क़सम |
3 |
إِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ (ऐ रसूल) तुम बिलाशक यक़ीनी पैग़म्बरों में से हो |
4 |
عَلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ (और दीन के बिल्कुल) सीधे रास्ते पर (साबित क़दम) हो |
5 |
تَنْزِيلَ الْعَزِيزِ الرَّحِيمِ जो बड़े मेहरबान (और) ग़ालिब (खुदा) का नाज़िल किया हुआ (है) |
6 |
لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أُنْذِرَ آبَاؤُهُمْ فَهُمْ غَافِلُونَ ताकि तुम उन लोगों को (अज़ाबे खुदा से) डराओ जिनके बाप दादा (तुमसे पहले किसी पैग़म्बर से) डराए नहीं गए तो वह दीन से बिल्कुल बेख़बर हैं |
7 |
لَقَدْ حَقَّ الْقَوْلُ عَلَى أَكْثَرِهِمْ فَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ उन में अक्सर तो (अज़ाब की) बातें यक़ीनन बिल्कुल ठीक पूरी उतरे ये लोग तो ईमान लाएँगे नहीं |
8 |
إِنَّا جَعَلْنَا فِي أَعْنَاقِهِمْ أَغْلَالًا فَهِيَ إِلَى الْأَذْقَانِ فَهُمْ مُقْمَحُونَ हमने उनकी गर्दनों में (भारी-भारी लोहे के) तौक़ डाल दिए हैं और ठुड्डियों तक पहुँचे हुए हैं कि वह गर्दनें उठाए हुए हैं (सर झुका नहीं सकते) |
9 |
وَجَعَلْنَا مِنْ بَيْنِ أَيْدِيهِمْ سَدًّا وَمِنْ خَلْفِهِمْ سَدًّا हमने एक दीवार उनके आगे बना दी है और एक दीवार उनके पीछे فَأَغْشَيْنَاهُمْ فَهُمْ لَا يُبْصِرُونَ फिर ऊपर से उनको ढाँक दिया है तो वह कुछ देख नहीं सकते |
10 |
وَسَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ और (ऐ रसूल) उनके लिए बराबर है ख्वाह तुम उन्हें डराओ या न डराओ ये (कभी) ईमान लाने वाले नहीं हैं |
11 |
إِنَّمَا تُنْذِرُ مَنِ اتَّبَعَ الذِّكْرَ وَخَشِيَ الرَّحْمَنَ بِالْغَيْبِ ۖ तुम तो बस उसी शख्स को डरा सकते हो जो नसीहत माने और बेदेखे भाले खुदा का ख़ौफ़ रखे فَبَشِّرْهُ بِمَغْفِرَةٍ وَأَجْرٍ كَرِيمٍ give such a one, therefore, good tidings, of Forgiveness and a Reward most generous. तो तुम उसको (गुनाहों की) माफी और एक बाइज्ज़त (व आबरू) अज्र की खुशख़बरी दे दो |
12 |
إِنَّا نَحْنُ نُحْيِي الْمَوْتَى وَنَكْتُبُ مَا قَدَّمُوا وَآثَارَهُمْ ۚ हम ही यक़ीनन मुर्दों को ज़िन्दा करते हैं और जो कुछ लोग पहले कर चुके हैं (उनको) और उनकी (अच्छी या बुरी बाक़ी माँदा) निशानियों को लिखते जाते हैं وَكُلَّ شَيْءٍ أَحْصَيْنَاهُ فِي إِمَامٍ مُبِينٍ और हमने हर चीज़ का एक सरीह व रौशन पेशवा में घेर दिया है |
13 |
وَاضْرِبْ لَهُمْ مَثَلًا أَصْحَابَ الْقَرْيَةِ إِذْ جَاءَهَا الْمُرْسَلُونَ और (ऐ रसूल) तुम (इनसे) मिसाल के तौर पर एक गाँव (अता किया) वालों का क़िस्सा बयान करो जब वहाँ (हमारे) पैग़म्बर आए |
14 |
إِذْ أَرْسَلْنَا إِلَيْهِمُ اثْنَيْنِ فَكَذَّبُوهُمَا فَعَزَّزْنَا بِثَالِثٍ فَقَالُوا إِنَّا إِلَيْكُمْ مُرْسَلُونَ इस तरह कि जब हमने उनके पास दो (पैग़म्बर योहना और यूनुस) भेजे तो उन लोगों ने दोनों को झुठलाया जब हमने एक तीसरे (पैग़म्बर शमऊन) से (उन दोनों को) मद्द दी तो इन तीनों ने कहा कि हम तुम्हारे पास खुदा के भेजे हुए (आए) हैं |
15 |
قَالُوا مَا أَنْتُمْ إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُنَا وَمَا أَنْزَلَ الرَّحْمَنُ مِنْ شَيْءٍ إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا تَكْذِبُونَ वह लोग कहने लगे कि तुम लोग भी तो बस हमारे ही जैसे आदमी हो और खुदा ने कुछ नाज़िल (वाज़िल) नहीं किया है तुम सब के सब बस बिल्कुल झूठे हो |
16 |
قَالُوا رَبُّنَا يَعْلَمُ إِنَّا إِلَيْكُمْ لَمُرْسَلُونَ तब उन पैग़म्बरों ने कहा हमारा परवरदिगार जानता है कि हम यक़ीनन उसी के भेजे हुए (आए) हैं और (तुम मानो या न मानो) |
17 |
وَمَا عَلَيْنَا إِلَّا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ हम पर तो बस खुल्लम खुल्ला एहकामे खुदा का पहुँचा देना फर्ज़ है |
18 |
قَالُوا إِنَّا تَطَيَّرْنَا بِكُمْ ۖ वह बोले हमने तुम लोगों को बहुत नहस क़दम पाया कि (तुम्हारे आते ही क़हत में मुबतेला हुए) لَئِنْ لَمْ تَنْتَهُوا لَنَرْجُمَنَّكُمْ وَلَيَمَسَّنَّكُمْ مِنَّا عَذَابٌ أَلِيمٌ तो अगर तुम (अपनी बातों से) बाज़ न आओगे तो हम लोग तुम्हें ज़रूर संगसार कर देगें और तुमको यक़ीनी हमारा दर्दनाक अज़ाब पहुँचेगा |
19 |
قَالُوا طَائِرُكُمْ مَعَكُمْ ۚ पैग़म्बरों ने कहा कि तुम्हारी बद शुगूनी (तुम्हारी करनी से) तुम्हारे साथ है أَئِنْ ذُكِّرْتُمْ ۚ क्या जब नसीहत की जाती है (तो तुम उसे बदफ़ाली कहते हो नहीं) بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ مُسْرِفُونَ बल्कि तुम खुद (अपनी) हद से बढ़ गए हो |
20 |
وَجَاءَ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَى قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ और (इतने में) शहर के उस सिरे से एक शख्स (हबीब नज्जार) दौड़ता हुआ आया और कहने लगा कि ऐ मेरी क़ौम (इन) पैग़म्बरों का कहना मानो |
21 |
اتَّبِعُوا مَنْ لَا يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُمْ مُهْتَدُونَ ऐसे लोगों का (ज़रूर) कहना मानो जो तुमसे (तबलीख़े रिसालत की) कुछ मज़दूरी नहीं माँगते और वह लोग हिदायत याफ्ता भी हैं |
22 |
وَمَا لِيَ لَا أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ और मुझे क्या (ख़ब्त) हुआ है कि जिसने मुझे पैदा किया है उसकी इबादत न करूँ हालाँकि तुम सब के बस (आख़िर) उसी की तरफ लौटकर जाओगे |
23 |
أَأَتَّخِذُ مِنْ دُونِهِ آلِهَةً क्या मैं उसे छोड़कर दूसरों को माबूद बना लूँ إِنْ يُرِدْنِ الرَّحْمَنُ بِضُرٍّ لَا تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلَا يُنْقِذُونِ अगर खुदा मुझे कोई तकलीफ पहुँचाना चाहे तो न उनकी सिफारिश ही मेरे कुछ काम आएगी और न ये लोग मुझे (इस मुसीबत से) छुड़ा ही सकेंगें |
24 |
إِنِّي إِذًا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ (अगर ऐसा करूँ) तो उस वक्त मैं यक़ीनी सरीही गुमराही में हूँ |
25 |
إِنِّي آمَنْتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ मैं तो तुम्हारे परवरदिगार पर ईमान ला चुका हूँ मेरी बात सुनो और मानो; (मगर उन लोगों ने उसे संगसार कर डाला) |
26 |
قِيلَ ادْخُلِ الْجَنَّةَ तब उसे खुदा का हुक्म हुआ कि बेहिश्त में जा قَالَ يَا لَيْتَ قَوْمِي يَعْلَمُونَ (उस वक्त भी उसको क़ौम का ख्याल आया तो कहा) काश इसको मेरी क़ौम के लोग जान लेते (और ईमान लाते) |
27 |
بِمَا غَفَرَ لِي رَبِّي وَجَعَلَنِي مِنَ الْمُكْرَمِينَ मेरे परवरदिगार ने जो मुझे बख्श दिया और मुझे बुर्ज़ुग लोगों में शामिल कर दिया |
28 |
وَمَا أَنْزَلْنَا عَلَى قَوْمِهِ مِنْ بَعْدِهِ مِنْ جُنْدٍ مِنَ السَّمَاءِ وَمَا كُنَّا مُنْزِلِينَ और हमने उसके मरने के बाद उसकी क़ौम पर उनकी तबाही के लिए न तो आसमान से कोई लशकर उतारा और न हम कभी इतनी सी बात के वास्ते लशकर उतारने वाले थे |
29 |
إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ خَامِدُونَ वह तो सिर्फ एक चिंघाड थी (जो कर दी गयी बस) फिर तो वह फौरन चिराग़े सहरी की तरह बुझ के रह गए |
30 |
يَا حَسْرَةً عَلَى الْعِبَادِ ۚ हाए अफसोस बन्दों के हाल पर مَا يَأْتِيهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ कि कभी उनके पास कोई रसूल नहीं आया मगर उन लोगों ने उसके साथ मसख़रापन ज़रूर किया |
31 |
أَلَمْ يَرَوْا كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنَ الْقُرُونِ क्या उन लोगों ने इतना भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला أَنَّهُمْ إِلَيْهِمْ لَا يَرْجِعُونَ और वह लोग उनके पास हरगिज़ पलट कर नहीं आ सकते |
32 |
وَإِنْ كُلٌّ لَمَّا جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ (हाँ) अलबत्ता सब के सब इकट्ठा हो कर हमारी बारगाह में हाज़िर किए जाएँगे |
33 |
وَآيَةٌ لَهُمُ الْأَرْضُ الْمَيْتَةُ और उनके (समझने) के लिए मेरी कुदरत की एक निशानी मुर्दा (परती) ज़मीन है कि हमने उसको (पानी से) ज़िन्दा कर दिया أَحْيَيْنَاهَا وَأَخْرَجْنَا مِنْهَا حَبًّا فَمِنْهُ يَأْكُلُونَ और हम ही ने उससे दाना निकाला तो उसे ये लोग खाया करते हैं |
34 |
وَجَعَلْنَا فِيهَا جَنَّاتٍ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ وَفَجَّرْنَا فِيهَا مِنَ الْعُيُونِ और हम ही ने ज़मीन में छुहारों और अंगूरों के बाग़ लगाए और हमही ने उसमें पानी के चशमें जारी किए |
35 |
لِيَأْكُلُوا مِنْ ثَمَرِهِ وَمَا عَمِلَتْهُ أَيْدِيهِمْ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ ताकि लोग उनके फल खाएँ और कुछ उनके हाथों ने उसे नहीं बनाया बल्कि खुदा ने) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते |
36 |
سُبْحَانَ الَّذِي خَلَقَ الْأَزْوَاجَ كُلَّهَا مِمَّا تُنْبِتُ الْأَرْضُ وَمِنْ أَنْفُسِهِمْ وَمِمَّا لَا يَعْلَمُونَ वह (हर ऐब से) पाक साफ है जिसने ज़मीन से उगने वाली चीज़ों और खुद उन लोगों के और उन चीज़ों के जिनकी उन्हें ख़बर नहीं सबके जोड़े पैदा किए |
37 |
وَآيَةٌ لَهُمُ اللَّيْلُ نَسْلَخُ مِنْهُ النَّهَارَ فَإِذَا هُمْ مُظْلِمُونَ और मेरी क़ुदरत की एक निशानी रात है जिससे हम दिन को खींच कर निकाल लेते (जाएल कर देते) हैं तो उस वक्त ये लोग अंधेरे में रह जाते हैं |
38 |
وَالشَّمْسُ تَجْرِي لِمُسْتَقَرٍّ لَهَا ۚ और (एक निशानी) आफताब है जो अपने एक ठिकाने पर चल रहा है ذَلِكَ تَقْدِيرُ الْعَزِيزِ الْعَلِيمِ ये (सबसे) ग़ालिब वाक़िफ (खुदा) का (बाँद्दा हुआ) अन्दाज़ा है |
39 |
وَالْقَمَرَ قَدَّرْنَاهُ مَنَازِلَ حَتَّى عَادَ كَالْعُرْجُونِ الْقَدِيمِ और हमने चाँद के लिए मंज़िलें मुक़र्रर कर दीं हैं यहाँ तक कि हिर फिर के (आख़िर माह में) खजूर की पुरानी टहनी का सा (पतला टेढ़ा) हो जाता है |
40 |
لَا الشَّمْسُ يَنْبَغِي لَهَا أَنْ تُدْرِكَ الْقَمَرَ وَلَا اللَّيْلُ سَابِقُ النَّهَارِ ۚ न तो आफताब ही से ये बन पड़ता है कि वह माहताब को जा ले और न रात ही दिन से आगे बढ़ सकती है وَكُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ (चाँद, सूरज, सितारे) हर एक अपने-अपने आसमान (मदार) में चक्कर लगा रहें हैं |
41 |
وَآيَةٌ لَهُمْ أَنَّا حَمَلْنَا ذُرِّيَّتَهُمْ فِي الْفُلْكِ الْمَشْحُونِ और उनके लिए (मेरी कुदरत) की एक निशानी ये है कि उनके बुर्ज़ुगों को (नूह की) भरी हुई कश्ती में सवार किया |
42 |
وَخَلَقْنَا لَهُمْ مِنْ مِثْلِهِ مَا يَرْكَبُونَ और उस कशती के मिसल उन लोगों के वास्ते भी वह चीज़े (कशतियाँ) जहाज़ पैदा कर दी जिन पर ये लोग सवार हुआ करते हैं |
43 |
وَإِنْ نَشَأْ نُغْرِقْهُمْ فَلَا صَرِيخَ لَهُمْ وَلَا هُمْ يُنْقَذُونَ और अगर हम चाहें तो उन सब लोगों को डुबा मारें फिर न कोई उन का फरियाद रस होगा और न वह लोग छुटकारा ही पा सकते हैं |
44 |
إِلَّا رَحْمَةً مِنَّا وَمَتَاعًا إِلَى حِينٍ मगर हमारी मेहरबानी से और चूँकि एक (ख़ास) वक्त तक (उनको) चैन करने देना (मंज़ूर) है |
45 |
وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّقُوا مَا بَيْنَ أَيْدِيكُمْ وَمَا خَلْفَكُمْ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ और जब उन कुफ्फ़ार से कहा जाता है कि इस (अज़ाब से) बचो (हर वक्त तुम्हारे साथ-साथ) तुम्हारे सामने और तुम्हारे पीछे (मौजूद) है ताकि तुम पर रहम किया जाए (तो परवाह नहीं करते) |
46 |
وَمَا تَأْتِيهِمْ مِنْ آيَةٍ مِنْ آيَاتِ رَبِّهِمْ إِلَّا كَانُوا عَنْهَا مُعْرِضِينَ और उनकी हालत ये है कि जब उनके परवरदिगार की निशानियों में से कोई निशानी उनके पास आयी तो ये लोग मुँह मोड़े बग़ैर कभी नहीं रहे |
47 |
وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ أَنْفِقُوا مِمَّا رَزَقَكُمُ اللَّهُ And when they are told, "Spend ye of (the bounties) with which Allah has provided you." قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا أَنُطْعِمُ مَنْ لَوْ يَشَاءُ اللَّهُ أَطْعَمَهُ और जब उन (कुफ्फ़ार) से कहा जाता है कि (माले दुनिया से) जो खुदा ने तुम्हें दिया है उसमें से कुछ (खुदा की राह में भी) ख़र्च करो तो (ये) कुफ्फ़ार ईमानवालों से कहते हैं कि भला हम उस शख्स को खिलाएँ जिसे (तुम्हारे ख्याल के मुवाफ़िक़) खुदा चाहता तो उसको खुद खिलाता कि إِنْ أَنْتُمْ إِلَّا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ तुम लोग बस सरीही गुमराही में (पड़े हुए) हो |
48 |
وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ और कहते हैं कि (भला) अगर तुम लोग (अपने दावे में सच्चे हो) तो आख़िर ये (क़यामत का) वायदा कब पूरा होगा |
49 |
مَا يَنْظُرُونَ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً تَأْخُذُهُمْ وَهُمْ يَخِصِّمُونَ (ऐ रसूल) ये लोग एक सख्त चिंघाड़ (सूर) के मुनतज़िर हैं जो उन्हें (उस वक्त) ले डालेगी जब ये लोग बाहम झगड़ रहे होगें |
50 |
فَلَا يَسْتَطِيعُونَ تَوْصِيَةً وَلَا إِلَى أَهْلِهِمْ يَرْجِعُونَ फिर न तो ये लोग वसीयत ही करने पायेंगे और न अपने लड़के बालों ही की तरफ लौट कर जा सकेगें |
51 |
وَنُفِخَ فِي الصُّورِ فَإِذَا هُمْ مِنَ الْأَجْدَاثِ إِلَى رَبِّهِمْ يَنْسِلُونَ और फिर (जब दोबारा) सूर फूँका जाएगा तो उसी दम ये सब लोग (अपनी-अपनी) क़ब्रों से (निकल-निकल के) अपने परवरदिगार की बारगाह की तरफ चल खड़े होगे |
52 |
قَالُوا يَا وَيْلَنَا مَنْ بَعَثَنَا مِنْ مَرْقَدِنَا ۜ ۗ और (हैरान होकर) कहेगें हाए अफसोस हम तो पहले सो रहे थे हमें ख्वाबगाह से किसने उठाया هَذَا مَا وَعَدَ الرَّحْمَنُ وَصَدَقَ الْمُرْسَلُونَ (जवाब आएगा) कि ये वही (क़यामत का) दिन है जिसका खुदा ने (भी) वायदा किया था |
53 |
إِنْ كَانَتْ إِلَّا صَيْحَةً وَاحِدَةً فَإِذَا هُمْ جَمِيعٌ لَدَيْنَا مُحْضَرُونَ और पैग़म्बरों ने भी सच कहा था (क़यामत तो) बस एक सख्त चिंघाड़ होगी फिर एका एकी ये लोग सब के सब हमारे हुजूर में हाज़िर किए जाएँगे |
54 |
فَالْيَوْمَ لَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا وَلَا تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ फिर आज (क़यामत के दिन) किसी शख्स पर कुछ भी ज़ुल्म न होगा और तुम लोगों को तो उसी का बदला दिया जाएगा जो तुम लोग (दुनिया में) किया करते थे |
55 |
إِنَّ أَصْحَابَ الْجَنَّةِ الْيَوْمَ فِي شُغُلٍ فَاكِهُونَ बेहश्त के रहने वाले आज (रोजे क़यामत) एक न एक मशग़ले में जी बहला रहे हैं |
56 |
هُمْ وَأَزْوَاجُهُمْ فِي ظِلَالٍ عَلَى الْأَرَائِكِ مُتَّكِئُونَ वह अपनी बीवियों के साथ (ठन्डी) छाँव में तकिया लगाए तख्तों पर (चैन से) बैठे हुए हैं |
57 |
لَهُمْ فِيهَا فَاكِهَةٌ وَلَهُمْ مَا يَدَّعُونَ बेहिश्त में उनके लिए (ताज़ा) मेवे (तैयार) हैं और जो वह चाहें उनके लिए (हाज़िर) है |
58 |
سَلَامٌ قَوْلًا مِنْ رَبٍّ رَحِيمٍ मेहरबान परवरदिगार की तरफ से सलाम का पैग़ाम आएगा |
59 |
وَامْتَازُوا الْيَوْمَ أَيُّهَا الْمُجْرِمُونَ और (एक आवाज़ आएगी कि) ऐ गुनाहगारों तुम लोग (इनसे) अलग हो जाओ |
60 |
أَلَمْ أَعْهَدْ إِلَيْكُمْ يَا بَنِي آدَمَ أَنْ لَا تَعْبُدُوا الشَّيْطَانَ ۖ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ ऐ आदम की औलाद क्या मैंने तुम्हारे पास ये हुक्म नहीं भेजा था कि (ख़बरदार) शैतान की परसतिश न करना वह यक़ीनी तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है |
61 |
وَأَنِ اعْبُدُونِي ۚ هَذَا صِرَاطٌ مُسْتَقِيمٌ और ये कि (देखो) सिर्फ मेरी इबादत करना यही (नजात की) सीधी राह है |
62 |
وَلَقَدْ أَضَلَّ مِنْكُمْ جِبِلًّا كَثِيرًا ۖ أَفَلَمْ تَكُونُوا تَعْقِلُونَ और (बावजूद इसके) उसने तुममें से बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते थे |
63 |
هَذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ ये वही जहन्नुम है जिसका तुमसे वायदा किया गया था |
64 |
اصْلَوْهَا الْيَوْمَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ तो अब चूँकि तुम कुफ्र करते थे इस वजह से आज इसमें (चुपके से) चले जाओ |
65 |
الْيَوْمَ نَخْتِمُ عَلَى أَفْوَاهِهِمْ وَتُكَلِّمُنَا أَيْدِيهِمْ وَتَشْهَدُ أَرْجُلُهُمْ بِمَا كَانُوا يَكْسِبُونَ आज हम उनके मुँह पर मुहर लगा देगें और (जो) कारसतानियाँ ये लोग दुनिया में कर रहे थे खुद उनके हाथ हमको बता देगें और उनके पाँव गवाही देगें |
66 |
وَلَوْ نَشَاءُ لَطَمَسْنَا عَلَى أَعْيُنِهِمْ فَاسْتَبَقُوا الصِّرَاطَ فَأَنَّى يُبْصِرُونَ और अगर हम चाहें तो उनकी ऑंखों पर झाडू फेर दें तो ये लोग राह को पड़े चक्कर लगाते ढूँढते फिरें मगर कहाँ देख पाँएगे |
67 |
وَلَوْ نَشَاءُ لَمَسَخْنَاهُمْ عَلَى مَكَانَتِهِمْ فَمَا اسْتَطَاعُوا مُضِيًّا وَلَا يَرْجِعُونَ और अगर हम चाहे तो जहाँ ये हैं (वहीं) उनकी सूरतें बदल (करके पत्थर मिट्टी बना) दें फिर न तो उनमें आगे जाने का क़ाबू रहे और न (घर) लौट सकें |
68 |
وَمَنْ نُعَمِّرْهُ نُنَكِّسْهُ فِي الْخَلْقِ ۖ أَفَلَا يَعْقِلُونَ और हम जिस शख्स को (बहुत) ज्यादा उम्र देते हैं तो उसे ख़िलक़त में उलट (कर बच्चों की तरह मजबूर कर) देते हैं तो क्या वह लोग समझते नहीं |
69 |
وَمَا عَلَّمْنَاهُ الشِّعْرَ وَمَا يَنْبَغِي لَهُ ۚ और हमने न उस (पैग़म्बर) को शेर की तालीम दी है और न शायरी उसकी शान के लायक़ है إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ وَقُرْآنٌ مُبِينٌ ये (किताब) तो बस (निरी) नसीहत और साफ-साफ कुरान है |
70 |
لِيُنْذِرَ مَنْ كَانَ حَيًّا وَيَحِقَّ الْقَوْلُ عَلَى الْكَافِرِينَ ताकि जो ज़िन्दा (दिल आक़िल) हों उसे (अज़ाब से) डराए और काफ़िरों पर (अज़ाब का) क़ौल साबित हो जाए (और हुज्जत बाक़ी न रहे) |
71 |
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا خَلَقْنَا لَهُمْ مِمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَا أَنْعَامًا فَهُمْ لَهَا مَالِكُونَ क्या उन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हमने उनके फायदे के लिए चारपाए उस चीज़ से पैदा किए जिसे हमारी ही क़ुदरत ने बनाया तो ये लोग (ख्वाहमाख्वाह) उनके मालिक बन गए |
72 |
وَذَلَّلْنَاهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ और हम ही ने चार पायों को उनका मुतीय बना दिया तो बाज़ उनकी सवारियां हैं और बाज़ को खाते हैं |
73 |
وَلَهُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَمَشَارِبُ ۖ أَفَلَا يَشْكُرُونَ और चार पायों में उनके (और) बहुत से फायदे हैं और पीने की चीज़ (दूध) तो क्या ये लोग (इस पर भी) शुक्र नहीं करते |
74 |
وَاتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ آلِهَةً لَعَلَّهُمْ يُنْصَرُونَ और लोगों ने ख़ुदा को छोड़कर (फर्ज़ी) माबूद बनाए हैं ताकि उन्हें उनसे कुछ मद्द मिले |
75 |
لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَهُمْ وَهُمْ لَهُمْ جُنْدٌ مُحْضَرُونَ हालाँकि वह लोग उनकी किसी तरह मद्द कर ही नहीं सकते और ये कुफ्फ़ार उन माबूदों के लशकर हैं (और क़यामत में) उन सबकी हाज़िरी ली जाएगी |
76 |
فَلَا يَحْزُنْكَ قَوْلُهُمْ ۘ إِنَّا نَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ तो (ऐ रसूल) तुम इनकी बातों से आज़ुरदा ख़ातिर (पेरशान) न हो जो कुछ ये लोग छिपा कर करते हैं और जो कुछ खुल्लम खुल्ला करते हैं-हम सबको यक़ीनी जानते हैं |
77 |
أَوَلَمْ يَرَ الْإِنْسَانُ أَنَّا خَلَقْنَاهُ مِنْ نُطْفَةٍ فَإِذَا هُوَ خَصِيمٌ مُبِينٌ क्या आदमी ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम ही ने इसको एक ज़लील नुत्फे से पैदा किया फिर वह यकायक (हमारा ही) खुल्लम खुल्ला मुक़ाबिल (बना) है |
78 |
وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًا وَنَسِيَ خَلْقَهُ ۖ और हमारी निसबत बातें बनाने लगा और अपनी ख़िलक़त (की हालत) भूल गया قَالَ مَنْ يُحْيِي الْعِظَامَ وَهِيَ رَمِيمٌ और कहने लगा कि भला जब ये हड्डियां (सड़गल कर) ख़ाक हो जाएँगी तो (फिर) कौन (दोबारा) ज़िन्दा कर सकता है |
79 |
قُلْ يُحْيِيهَا الَّذِي أَنْشَأَهَا أَوَّلَ مَرَّةٍ ۖ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि उसको वही ज़िन्दा करेगा जिसने उनको (जब ये कुछ न थे) पहली बार ज़िन्दा कर (रखा) وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌ और वह हर तरह की पैदाइश से वाक़िफ है |
80 |
الَّذِي جَعَلَ لَكُمْ مِنَ الشَّجَرِ الْأَخْضَرِ نَارًا فَإِذَا أَنْتُمْ مِنْهُ تُوقِدُونَ जिसने तुम्हारे वास्ते (मिर्ख़ और अफ़ार के) हरे दरख्त से आग पैदा कर दी फिर तुम उससे (और) आग सुलगा लेते हो |
81 |
أَوَلَيْسَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِقَادِرٍ عَلَى أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ ۚ (भला) जिस (खुदा) ने सारे आसमान और ज़मीन पैदा किए क्या वह इस पर क़ाबू नहीं रखता कि उनके मिस्ल (दोबारा) पैदा कर दे بَلَى وَهُوَ الْخَلَّاقُ الْعَلِيمُ हाँ (ज़रूर क़ाबू रखता है) और वह तो पैदा करने वाला वाक़िफ़कार है |
82 |
إِنَّمَا أَمْرُهُ إِذَا أَرَادَ شَيْئًا أَنْ يَقُولَ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ उसकी शान तो ये है कि जब किसी चीज़ को (पैदा करना) चाहता है तो वह कह देता है कि ''हो जा'' तो (फौरन) हो जाती है |
83 |
فَسُبْحَانَ الَّذِي بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ तो वह ख़ुद (हर नफ्स से) पाक साफ़ है जिसके क़ब्ज़े कुदरत में हर चीज़ की हिकमत है और तुम लोग उसी की तरफ लौट कर जाओगे ********* |
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