Quran Hindi Translation

Surah Al Fatir

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

الْحَمْدُ لِلَّهِ فَاطِرِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ  جَاعِلِ الْمَلَائِكَةِ رُسُلًا أُولِي أَجْنِحَةٍ مَثْنَى وَثُلَاثَ وَرُبَاعَ ۚ

हर तरह की तारीफ खुदा ही के लिए (मख़सूस) है जो सारे आसमान और ज़मीन का पैदा करने वाला फरिश्तों का (अपना) क़ासिद बनाने वाला है

जिनके दो-दो और तीन-तीन और चार-चार पर होते हैं

 يَزِيدُ فِي الْخَلْقِ مَا يَشَاءُ ۚ

(मख़लूक़ात की) पैदाइश में जो (मुनासिब) चाहता है बढ़ा देता है

إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर (व तवाना है)

2

مَا يَفْتَحِ اللَّهُ لِلنَّاسِ مِنْ رَحْمَةٍ فَلَا مُمْسِكَ لَهَا ۖ

लोगों के वास्ते जब (अपनी) रहमत (के दरवाजे) ख़ोल दे तो कोई उसे जारी नहीं कर सकता

وَمَا يُمْسِكْ فَلَا مُرْسِلَ لَهُ مِنْ بَعْدِهِ ۚ

और जिस चीज़ को रोक ले उसके बाद उसे कोई रोक नहीं सकता

وَهُوَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

और वही हर चीज़ पर ग़ालिब और दाना व बीना हकीम है  

3

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ ۚ

लोगों खुदा के एहसानात को जो उसने तुम पर किए हैं याद करो

هَلْ مِنْ خَالِقٍ غَيْرُ اللَّهِ يَرْزُقُكُمْ مِنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۚ

क्या खुदा के सिवा कोई और ख़ालिक है जो आसमान और ज़मीन से तुम्हारी रोज़ी पहुँचाता है

 لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ ۖ  فَأَنَّى تُؤْفَكُونَ

उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं फिर तुम किधर बहके चले जा रहे हो

4

وَإِنْ يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِنْ قَبْلِكَ ۚ

और (ऐ रसूल) अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो (कुढ़ो नहीं) तुमसे पहले बहुतेरे पैग़म्बर (लोगों के हाथों) झुठलाए जा चुके हैं

 وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ

और (आख़िर) कुल उमूर की रूजू तो खुदा ही की तरफ है

5

يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ ۖ

लोगों खुदा का (क़यामत का) वायदा यक़ीनी बिल्कुल सच्चा है

فَلَا تَغُرَّنَّكُمُ الْحَيَاةُ الدُّنْيَا ۖ وَلَا يَغُرَّنَّكُمْ بِاللَّهِ الْغَرُورُ

तो (कहीं) तुम्हें दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी फ़रेब में न लाए

(ऐसा न हो कि शैतान) तुम्हें खुदा के बारे में धोखा दे

6

إِنَّ الشَّيْطَانَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا ۚ

बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है तो तुम भी उसे अपना दुशमन बनाए रहो

إِنَّمَا يَدْعُو حِزْبَهُ لِيَكُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِيرِ

वह तो अपने गिरोह को बस इसलिए बुलाता है कि वह लोग (सब के सब) जहन्नुमी बन जाएँ

7

الَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ

जिन लोगों ने (दुनिया में) कुफ्र इख़तेयार किया उनके लिए (आखेरत में) सख्त अज़ाब है

 وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ مَغْفِرَةٌ وَأَجْرٌ كَبِيرٌ

और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए उनके लिए (गुनाहों की) मग़फेरत और निहायत अच्छा बदला (बेहश्त) है

8

أَفَمَنْ زُيِّنَ لَهُ سُوءُ عَمَلِهِ فَرَآهُ حَسَنًا ۖ

तो भला वह शख्स जिसे उस का बुरा काम शैतानी (अग़वॉ से) अच्छा कर दिखाया गया है औ वह उसे अच्छा समझने लगा है

(कभी मोमिन नेकोकार के बराबर हो सकता है हरगिज़ नहीं)

فَإِنَّ اللَّهَ يُضِلُّ مَنْ يَشَاءُ وَيَهْدِي مَنْ يَشَاءُ ۖ

तो यक़ीनी (बात) ये है कि ख़ुदा जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है राहे रास्त पर आने (की तौफ़ीक़) देता है

فَلَا تَذْهَبْ نَفْسُكَ عَلَيْهِمْ حَسَرَاتٍ ۚ

तो (ऐ रसूल कहीं) उन (बदबख्तों) पर अफसोस कर करके तुम्हारे दम न निकल जाए

إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ بِمَا يَصْنَعُونَ

जो कुछ ये लोग करते हैं ख़ुदा उससे खूब वाक़िफ़ है  

9

وَاللَّهُ الَّذِي أَرْسَلَ الرِّيَاحَ  فَتُثِيرُ سَحَابًا

और ख़ुदा ही वह (क़ादिर व तवाना) है जो हवाओं को भेजता है

 فَسُقْنَاهُ إِلَى بَلَدٍ مَيِّتٍ  فَأَحْيَيْنَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَا ۚ

तो हवाएँ बादलों को उड़ाए-उड़ाए फिरती है फिर हम उस बादल को मुर्दा (उफ़तादा) शहर की तरफ हका देते हैं

फिर हम उसके ज़रिए से ज़मीन को उसके मर जाने के बाद शादाब कर देते हैं

كَذَلِكَ النُّشُورُ

यूँ ही मुर्दों को (क़यामत में) जी उठना होगा  

10

مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْعِزَّةَ فَلِلَّهِ الْعِزَّةُ جَمِيعًا ۚ

जो शख्स इज्ज़त का ख्वाहाँ हो तो ख़ुदा से माँगे क्योंकि सारी इज्ज़त खुदा ही की है

إِلَيْهِ يَصْعَدُ الْكَلِمُ الطَّيِّبُ وَالْعَمَلُ الصَّالِحُ يَرْفَعُهُ ۚ

उसकी बारगाह तक अच्छी बातें (बुलन्द होकर) पहुँचतीं हैं और अच्छे काम को वह खुद बुलन्द फरमाता है

وَالَّذِينَ يَمْكُرُونَ السَّيِّئَاتِ لَهُمْ عَذَابٌ شَدِيدٌ ۖ

और जो लोग (तुम्हारे ख़िलाफ) बुरी-बुरी तदबीरें करते रहते हैं उनके लिए क़यामत में सख्त अज़ाब है

 وَمَكْرُ أُولَئِكَ هُوَ يَبُورُ

और (आख़िर) उन लोगों की तदबीर मटियामेट हो जाएगी

11

وَاللَّهُ خَلَقَكُمْ مِنْ تُرَابٍ ثُمَّ مِنْ نُطْفَةٍ ثُمَّ جَعَلَكُمْ أَزْوَاجًا ۚ

और खुदा ही ने तुम लोगों को (पहले पहल) मिट्टी से पैदा किया फिर नतफ़े से फिर तुमको जोड़ा (नर मादा) बनाया

وَمَا تَحْمِلُ مِنْ أُنْثَى وَلَا تَضَعُ إِلَّا بِعِلْمِهِ ۚ

और बग़ैर उसके इल्म (इजाज़त) के न कोई औरत हमेला होती है और न जनती है

وَمَا يُعَمَّرُ مِنْ مُعَمَّرٍ وَلَا يُنْقَصُ مِنْ عُمُرِهِ إِلَّا فِي كِتَابٍ ۚ

और न किसी शख्स की उम्र में ज्यादती होती है और न किसी की उम्र से कमी की जाती है मगर वह किताब (लौहे महफूज़) में (ज़रूर) है

إِنَّ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ

बेशक ये बात खुदा पर बहुत ही आसान है

12

وَمَا يَسْتَوِي الْبَحْرَانِ  هَذَا عَذْبٌ فُرَاتٌ سَائِغٌ شَرَابُهُ وَهَذَا مِلْحٌ أُجَاجٌ ۖ

(उसकी कुदरत देखो) दो समन्दर बावजूद मिल जाने के यकसाँ नहीं हो जाते

ये (एक तो) मीठा खुश ज़ाएका कि उसका पीना सुवारत (ख़ुश्गवार) है और ये (दूसरा) खारी कड़ुवा है

 وَمِنْ كُلٍّ تَأْكُلُونَ لَحْمًا طَرِيًّا وَتَسْتَخْرِجُونَ حِلْيَةً تَلْبَسُونَهَا ۖ

और (इस इख़तेलाफ पर भी) तुम लोग दोनों से (मछली का) तरो ताज़ा गोश्त (यकसाँ) खाते हो और अपने लिए ज़ेवरात (मोती वग़ैरह) निकालते हो जिन्हें तुम पहनते हो

وَتَرَى الْفُلْكَ فِيهِ مَوَاخِرَ لِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

और तुम देखते हो कि कश्तियां दरिया में (पानी को) फाड़ती चली जाती हैं ताकि उसके फज्ल (व करम तिजारत) की तलाश करो

और ताकि तुम लोग शुक्र करो

13

يُولِجُ اللَّيْلَ فِي النَّهَارِ وَيُولِجُ النَّهَارَ فِي اللَّيْلِ وَسَخَّرَ الشَّمْسَ وَالْقَمَرَ كُلٌّ يَجْرِي لِأَجَلٍ مُسَمًّى ۚ

वही रात को (बढ़ा के) दिन में दाख़िल करता है (तो रात बढ़ जाती है) और वही दिन को (बढ़ा के) रात में दाख़िल करता है (तो दिन बढ़ जाता है)

और उसी ने सूरज और चाँद को अपना मुतीइ बना रखा है कि हर एक अपने (अपने) मुअय्यन (तय) वक्त पर चला करता है

ذَلِكُمُ اللَّهُ رَبُّكُمْ لَهُ الْمُلْكُ ۚ

वही खुदा तुम्हारा परवरदिगार है उसी की सलतनत है

وَالَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ مَا يَمْلِكُونَ مِنْ قِطْمِيرٍ

और उसे छोड़कर जिन माबूदों को तुम पुकारते हो वह छुवारों की गुठली की झिल्ली के बराबर भी तो इख़तेयार नहीं रखते

14

إِنْ تَدْعُوهُمْ لَا يَسْمَعُوا دُعَاءَكُمْ وَلَوْ سَمِعُوا مَا اسْتَجَابُوا لَكُمْ ۖ

अगर तुम उनको पुकारो तो वह तुम्हारी पुकार को सुनते नहीं अगर (बिफ़रज़े मुहाल) सुनों भी तो तुम्हारी दुआएँ नहीं कुबूल कर सकते

وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يَكْفُرُونَ بِشِرْكِكُمْ ۚ

और क़यामत के दिन तुम्हारे शिर्क से इन्कार कर बैठेंगें

وَلَا يُنَبِّئُكَ مِثْلُ خَبِيرٍ

और वाक़िफकार (शख्स की तरह कोई दूसरा उनकी पूरी हालत) तुम्हें बता नहीं सकता

15

يَا أَيُّهَا النَّاسُ أَنْتُمُ الْفُقَرَاءُ إِلَى اللَّهِ ۖ وَاللَّهُ هُوَ الْغَنِيُّ الْحَمِيدُ

लोगों तुम सब के सब खुदा के (हर वक्त) मोहताज हो

और (सिर्फ) खुदा ही (सबसे) बेपरवा सज़ावारे हम्द (व सना) है

16

إِنْ يَشَأْ يُذْهِبْكُمْ وَيَأْتِ بِخَلْقٍ جَدِيدٍ

अगर वह चाहे तो तुम लोगों को (अदम के पर्दे में) ले जाए और एक नयी ख़िलक़त ला बसाए

17

وَمَا ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ بِعَزِيزٍ

और ये कुछ खुदा के वास्ते दुशवार नहीं

18

وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى ۚ

और याद रहे कि कोई शख्स किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा

وَإِنْ تَدْعُ مُثْقَلَةٌ إِلَى حِمْلِهَا لَا يُحْمَلْ مِنْهُ شَيْءٌ وَلَوْ كَانَ ذَا قُرْبَى ۗ

और अगर कोई (अपने गुनाहों का) भारी बोझ उठाने वाला अपना बोझ उठाने के वास्ते (किसी को) बुलाएगा तो उसके बारे में से कुछ भी उठाया न जाएगा अगरचे (कोई किसी का) कराबतदार ही (क्यों न) हो

إِنَّمَا تُنْذِرُ الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ ۚ

(ऐ रसूल) तुम तो बस उन्हीं लोगों को डरा सकते हो जो बे देखे भाले अपने परवरदिगार का ख़ौफ रखते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं

وَمَنْ تَزَكَّى فَإِنَّمَا يَتَزَكَّى لِنَفْسِهِ ۚ

और (याद रखो कि) जो शख्स पाक साफ रहता है वह अपने ही फ़ायदे के वास्ते पाक साफ रहता है

وَإِلَى اللَّهِ الْمَصِيرُ

और (आख़िरकार सबको हिरफिर के) खुदा ही की तरफ जाना है

19

وَمَا يَسْتَوِي الْأَعْمَى وَالْبَصِيرُ

और अन्धा (क़ाफिर) और ऑंखों वाला (मोमिन किसी तरह) बराबर नहीं हो सकते

20

وَلَا الظُّلُمَاتُ وَلَا النُّورُ

और न अंधेरा (कुफ्र) और उजाला (ईमान) बराबर है

21

وَلَا الظِّلُّ وَلَا الْحَرُورُ

और न छाँव (बेहिश्त) और धूप (दोज़ख़ बराबर है)

22

وَمَا يَسْتَوِي الْأَحْيَاءُ وَلَا الْأَمْوَاتُ ۚ

और न ज़िन्दे (मोमिनीन) और न मुर्दें (क़ाफिर) बराबर हो सकते हैं

إِنَّ اللَّهَ يُسْمِعُ مَنْ يَشَاءُ ۖ  وَمَا أَنْتَ بِمُسْمِعٍ مَنْ فِي الْقُبُورِ

और खुदा जिसे चाहता है अच्छी तरह सुना (समझा) देता है

और (ऐ रसूल) जो (कुफ्फ़ार मुर्दों की तरह) क़ब्रों में हैं उन्हें तुम अपनी (बातें) नहीं समझा सकते हो

23

إِنْ أَنْتَ إِلَّا نَذِيرٌ

तुम तो बस (एक खुदा से) डराने वाले हो

24

إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۚ

हम ही ने तुमको यक़ीनन कुरान के साथ खुशख़बरी देने वाला और डराने वाला (पैग़म्बर) बनाकर भेजा

وَإِنْ مِنْ أُمَّةٍ إِلَّا خَلَا فِيهَا نَذِيرٌ

और कोई उम्मत (दुनिया में) ऐसी नहीं गुज़री कि उसके पास (हमारा) डराने वाला पैग़म्बर न आया हो

25

وَإِنْ يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ جَاءَتْهُمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ وَبِالزُّبُرِ وَبِالْكِتَابِ الْمُنِيرِ

और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाएँ तो कुछ परवाह नहीं करो क्योंकि इनके अगलों ने भी (अपने पैग़म्बरों को) झुठलाया है

(हालाँकि) उनके पास उनके पैग़म्बर वाज़ेए व रौशन मौजिजे और सहीफ़े और रौशन किताब लेकर आए थे

26

ثُمَّ أَخَذْتُ الَّذِينَ كَفَرُوا ۖ فَكَيْفَ كَانَ نَكِيرِ

फिर हमने उन लोगों को जो काफ़िर हो बैठे ले डाला

तो (तुमने देखाकि) मेरा अज़ाब (उन पर) कैसा सख्त हुआ  

27

أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ أَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ ثَمَرَاتٍ مُخْتَلِفًا أَلْوَانُهَا ۚ

अब क्या तुमने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि यक़ीनन खुदा ही ने आसमान से पानी बरसाया

फिर हम (खुदा) ने उसके ज़रिए से तरह-तरह की रंगतों के फल पैदा किए

وَمِنَ الْجِبَالِ جُدَدٌ بِيضٌ وَحُمْرٌ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهَا وَغَرَابِيبُ سُودٌ

और पहाड़ों में क़तआत (टुकड़े रास्ते) हैं जिनके रंग मुख़तलिफ है कुछ तो सफेद (बुर्राक़) और कुछ लाल (लाल) और कुछ बिल्कुल काले सियाह

28

وَمِنَ النَّاسِ وَالدَّوَابِّ وَالْأَنْعَامِ مُخْتَلِفٌ أَلْوَانُهُ كَذَلِكَ ۗ

और इसी तरह आदमियों और जानवरों और चारपायों की भी रंगते तरह-तरह की हैं

إِنَّمَا يَخْشَى اللَّهَ مِنْ عِبَادِهِ الْعُلَمَاءُ ۗ

उसके बन्दों में ख़ुदा का ख़ौफ करने वाले तो बस उलेमा हैं

إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ غَفُورٌ

बेशक खुदा (सबसे) ग़ालिब और बख्शने वाला है

29

إِنَّ الَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَابَ اللَّهِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَأَنْفَقُوا مِمَّا رَزَقْنَاهُمْ سِرًّا وَعَلَانِيَةً  يَرْجُونَ تِجَارَةً لَنْ تَبُورَ

बेशक जो लोग खुदा की किताब पढ़ा करते हैं और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ते हैं और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से छिपा के और दिखा के (खुदा की राह में) देते हैं

वह यक़ीनन ऐसे व्यापार का आसरा रखते हैं

30

لِيُوَفِّيَهُمْ أُجُورَهُمْ وَيَزِيدَهُمْ مِنْ فَضْلِهِ ۚ

जिसका कभी टाट न उलटेगा ताकि खुदा उन्हें उनकी मज़दूरियाँ भरपूर अता करे बल्कि अपने फज़ल (व करम) से उसे कुछ और बढ़ा देगा

إِنَّهُ غَفُورٌ شَكُورٌ

बेशक वह बड़ा बख्शने वाला है (और) बड़ा क़द्रदान है

31

وَالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ هُوَ الْحَقُّ  مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ ۗ

और हमने जो किताब तुम्हारे पास ''वही'' के ज़रिए से भेजी वह बिल्कुल ठीक है और जो (किताबें इससे पहले की) उसके सामने (मौजूद) हैं उनकी तसदीक़ भी करती हैं –

إِنَّ اللَّهَ بِعِبَادِهِ لَخَبِيرٌ بَصِيرٌ

बेशक खुदा अपने बन्दों (के हालात) से खूब वाक़िफ है (और) देख रहा है

32

ثُمَّ أَوْرَثْنَا الْكِتَابَ الَّذِينَ اصْطَفَيْنَا مِنْ عِبَادِنَا ۖ

फिर हमने अपने बन्दगान में से ख़ास उनको कुरान का वारिस बनाया जिन्हें (अहल समझकर) मुन्तख़िब किया

فَمِنْهُمْ ظَالِمٌ لِنَفْسِهِ وَمِنْهُمْ مُقْتَصِدٌ وَمِنْهُمْ سَابِقٌ بِالْخَيْرَاتِ بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ

क्योंकि बन्दों में से कुछ तो (नाफरमानी करके) अपनी जान पर सितम ढाते हैं और कुछ उनमें से (नेकी बदी के) दरमियान हैं

और उनमें से कुछ लोग खुदा के इख़तेयार से नेकों में (औरों से) गोया सबकत ले गए हैं (इन्तेख़ाब व सबक़त)

ذَلِكَ هُوَ الْفَضْلُ الْكَبِيرُ

तो खुदा का बड़ा फज़ल है  

33

جَنَّاتُ عَدْنٍ يَدْخُلُونَهَا يُحَلَّوْنَ فِيهَا مِنْ أَسَاوِرَ مِنْ ذَهَبٍ وَلُؤْلُؤًا ۖوَلِبَاسُهُمْ فِيهَا حَرِيرٌ

Gardens of Eternity will they enter: therein will they be adorned with bracelets of gold and pearls; and their garments there will be of silk.

(और उसका सिला बेहिश्त के) सदा बहार बाग़ात हैं जिनमें ये लोग दाख़िल होंगे और उन्हें वहाँ सोने के कंगन और मोती पहनाए जाएँगे

और वहाँ उनकी (मामूली) पोशाक ख़ालिस रेशमी होगी

34

وَقَالُوا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي أَذْهَبَ عَنَّا الْحَزَنَ ۖ إِنَّ رَبَّنَا لَغَفُورٌ شَكُورٌ

और ये लोग (खुशी के लहजे में) कहेंगे खुदा का शुक्र जिसने हम से (हर क़िस्म का) रंज व ग़म दूर कर दिया

बेशक हमारा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला (और) क़दरदान है

35

الَّذِي أَحَلَّنَا دَارَ الْمُقَامَةِ مِنْ فَضْلِهِ لَا يَمَسُّنَا فِيهَا نَصَبٌ وَلَا يَمَسُّنَا فِيهَا لُغُوبٌ

जिसने हमको अपने फज़ल (व करम) से हमेशगी के घर (बेहिश्त) में उतारा (मेहमान किया)

जहाँ हमें कोई तकलीफ छुयेगी भी तो नहीं और न कोई थकान ही पहुँचेगी

36

وَالَّذِينَ كَفَرُوا لَهُمْ نَارُ جَهَنَّمَ لَا يُقْضَى عَلَيْهِمْ فَيَمُوتُوا وَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمْ مِنْ عَذَابِهَا ۚ

और जो लोग काफिर हो बैठे उनके लिए जहन्नुम की आग है

न उनकी कज़ा ही आएगी कि वह मर जाए और तकलीफ से नजात मिले और न उनसे उनके अज़ाब ही में तख़फीफ की जाएगी

كَذَلِكَ نَجْزِي كُلَّ كَفُورٍ

हम हर नाशुक्रे की सज़ा यूँ ही किया करते हैं

37

وَهُمْ يَصْطَرِخُونَ فِيهَا رَبَّنَا أَخْرِجْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا غَيْرَ الَّذِي كُنَّا نَعْمَلُ ۚ

और ये लोग दोजख़ में (पड़े) चिल्लाया करेगें कि परवरदिगार अब हमको (यहाँ से) निकाल दे तो जो कुछ हम करते थे उसे छोड़कर नेक काम करेंगे

أَوَلَمْ نُعَمِّرْكُمْ مَا يَتَذَكَّرُ فِيهِ مَنْ تَذَكَّرَوَجَاءَكُمُ النَّذِيرُ ۖ

(तो ख़ुदा जवाब देगा कि) क्या हमने तुम्हें इतनी उम्रें न दी थी कि जिनमें जिसको जो कुछ सोंचना समझना (मंज़ूर) हो खूब सोच समझ ले

और (उसके अलावा) तुम्हारे पास (हमारा) डराने वाला (पैग़म्बर) भी पहुँच गया था

فَذُوقُوا فَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ نَصِيرٍ

तो (अपने किए का मज़ा) चखो क्योंकि सरकश लोगों का कोई मद्दगार नहीं

38

إِنَّ اللَّهَ عَالِمُ غَيْبِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ

बेशक खुदा सारे आसमान व ज़मीन की पोशीदा बातों से ख़ूब वाक़िफ है

إِنَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ

वह यक़ीनी दिलों के पोशीदा राज़ से बाख़बर है

39

هُوَ الَّذِي جَعَلَكُمْ خَلَائِفَ فِي الْأَرْضِ ۚ

वह वही खुदा है जिसने रूए ज़मीन में तुम लोगों को (अगलों का) जानशीन बनाया

 فَمَنْ كَفَرَ فَعَلَيْهِ كُفْرُهُ ۖ

फिर जो शख्स काफ़िर होगा तो उसके कुफ़्र का वबाल उसी पर पड़ेगा

 وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ إِلَّا مَقْتًا ۖ

और काफ़िरों को उनका कुफ्र उनके परवरदिगार की बारगाह में ग़ज़ब के सिवा कुछ बढ़ाएगा नहीं

وَلَا يَزِيدُ الْكَافِرِينَ كُفْرُهُمْ إِلَّا خَسَارًا

और कुफ्फ़ार को उनका कुफ़्र घाटे के सिवा कुछ नफ़ा न देगा

40

قُلْ أَرَأَيْتُمْ شُرَكَاءَكُمُ الَّذِينَ تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ

(ऐ रसूल) तुम (उनसे) पूछो तो कि खुदा के सिवा अपने जिन शरीकों की तुम क़यादत करते थे क्या तुमने उन्हें (कुछ) देखा भी

 أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ

मुझे भी ज़रा दिखाओ तो कि उन्होंने ज़मीन (की चीज़ों) से कौन सी चीज़ पैदा की या आसमानों में कुछ उनका आधा साझा है

 أَمْ آتَيْنَاهُمْ كِتَابًا فَهُمْ عَلَى بَيِّنَتٍ مِنْهُ ۚ

या हमने खुद उन्हें कोई किताब दी है कि वह उसकी दलील रखते हैं (ये सब तो कुछ नहीं)

بَلْ إِنْ يَعِدُ الظَّالِمُونَ بَعْضُهُمْ بَعْضًا إِلَّا غُرُورًا

बल्कि ये ज़ालिम एक दूसरे से (धोखे और) फरेब ही का वायदा करते हैं

41

إِنَّ اللَّهَ يُمْسِكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ أَنْ تَزُولَا ۚ

बेशक खुदा ही सारे आसमान और ज़मीन अपनी जगह से हट जाने से रोके हुए है

وَلَئِنْ زَالَتَا إِنْ أَمْسَكَهُمَا مِنْ أَحَدٍ مِنْ بَعْدِهِ ۚ

और अगर (फर्ज़ करे कि) ये अपनी जगह से हट जाए तो फिर तो उसके सिवा उन्हें कोई रोक नहीं सकता

إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا

बेशक वह बड़ा बुर्दबर (और) बड़ा बख्शने वाला है

42

وَأَقْسَمُوا بِاللَّهِ جَهْدَ أَيْمَانِهِمْ لَئِنْ جَاءَهُمْ نَذِيرٌ لَيَكُونُنَّ أَهْدَى مِنْ إِحْدَى الْأُمَمِ ۖ

और ये लोग तो खुदा की बड़ी-बड़ी सख्त क़समें खा (कर कहते) थे कि बेशक अगर उनके पास कोई डराने वाला (पैग़म्बर) आएगा तो वह ज़रूर हर एक उम्मत से ज्यादा रूबसह होंगे

فَلَمَّا جَاءَهُمْ نَذِيرٌ مَا زَادَهُمْ إِلَّا نُفُورًا

फिर जब उनके पास डराने वाला (रसूल) आ पहुंचा (उसके आने से) उनकी नफरत को विकास ही होती गई

43

اسْتِكْبَارًا فِي الْأَرْضِ وَمَكْرَ السَّيِّئِ ۚ

यानी (उन लोगों ने) र्वे भूमि सरكशय और बुरी - बुरी तदबयर करना अपनाया

 وَلَا يَحِيقُ الْمَكْرُ السَّيِّئُ إِلَّا بِأَهْلِهِ ۚ

और बुदी तद्बीर (की बुराई) तो बुरी तद्बीर करने वाले ही पर पड़ती है

فَهَلْ يَنْظُرُونَ إِلَّا سُنَّتَ الْأَوَّلِينَ ۚ

तो (हो न हो) ये लोग बस अगले ही लोगों के बरताव के मुन्तज़िर हैं

فَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَبْدِيلًا ۖ وَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّتِ اللَّهِ تَحْوِيلًا

तो (बेहतर) तुम खुदा के दसतूर में कभी तब्दीली न पाओगे

और खुदा की आदत में हरगिज़ कोई तग़य्युर न पाओगे

44

أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَكَانُوا أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً ۚ

तो क्या उन लोगों ने रूए ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनके पहले थे उनका (नाफ़रमानी की वजह से) क्या (ख़राब) अन्जाम हुआ

और उनसे ज़ोर व कूवत में भी कहीं बढ़-चढ़ के थे

وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُعْجِزَهُ مِنْ شَيْءٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَلَا فِي الْأَرْضِ ۚ

और खुदा ऐसा (गया गुज़रा) नहीं है कि उसे कोई चीज़ आजिज़ कर सके (न इतने) आसमानों में और न ज़मीन में

إِنَّهُ كَانَ عَلِيمًا قَدِيرًا

बेशक वह बड़ा ख़बरदार (और) बड़ी (क़ाबू) कुदरत वाला है

45

وَلَوْ يُؤَاخِذُ اللَّهُ النَّاسَ بِمَا كَسَبُوا مَا تَرَكَ عَلَى ظَهْرِهَا مِنْ دَابَّةٍ وَلَكِنْ يُؤَخِّرُهُمْ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى ۖ

और अगर (कहीं) खुदा लोगों की करतूतों की गिरफ्त करता तो (जैसी उनकी करनी है) रूए ज़मीन पर किसी जानवर को बाक़ी न छोड़ता

मगर वह तो एक मुक़र्रर मियाद तक लोगों को मोहलत देता है (कि जो करना हो कर लो)

فَإِذَا جَاءَ أَجَلُهُمْ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِعِبَادِهِ بَصِيرًا

फिर जब उनका (वह) वक्त आ जाएगा तो (जो जैसा करेगा वैसा पाएगा)

खुदा यक़ीनी तौर पर अपने बन्दों (के हाल) को देख रहा है

*********


© Copy Rights:

Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

Email: cmaj37@gmail.com

Visits wef June 2024