Quran Hindi TranslationSurah Al NaziatTranslation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan |
1 |
وَالنَّازِعَاتِ غَرْقًا उन (फ़रिश्तों) की क़सम जो (कुफ्फ़ार की रूह) डूब कर सख्ती से खींच लेते हैं |
2 |
وَالنَّاشِطَاتِ نَشْطًا और उनकी क़सम जो (मोमिनीन की जान) आसानी से खोल देते हैं |
3 |
وَالسَّابِحَاتِ سَبْحًا और उनकी क़सम जो (आसमान ज़मीन के दरमियान) पैरते फिरते हैं |
4 |
فَالسَّابِقَاتِ سَبْقًا फिर एक के आगे बढ़ते हैं |
5 |
فَالْمُدَبِّرَاتِ أَمْرًا फिर (दुनिया के) इन्तज़ाम करते हैं |
6 |
يَوْمَ تَرْجُفُ الرَّاجِفَةُ (उनकी क़सम कि क़यामत हो कर रहेगी) जिस दिन ज़मीन को भूचाल आएगा |
7 |
تَتْبَعُهَا الرَّادِفَةُ फिर उसके पीछे और ज़लज़ला आएगा |
8 |
قُلُوبٌ يَوْمَئِذٍ وَاجِفَةٌ उस दिन दिलों को धड़कन होगी |
9 |
أَبْصَارُهَا خَاشِعَةٌ उनकी ऑंखें (निदामत से) झुकी हुई होंगी |
10 |
يَقُولُونَ أَإِنَّا لَمَرْدُودُونَ فِي الْحَافِرَةِ कुफ्फ़ार कहते हैं कि क्या हम उलटे पाँव (ज़िन्दगी की तरफ़) फिर लौटेंगे |
11 |
أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا نَخِرَةً क्या जब हम खोखल हड्डियाँ हो जाएँगे |
12 |
قَالُوا تِلْكَ إِذًا كَرَّةٌ خَاسِرَةٌ कहते हैं कि ये लौटना तो बड़ा नुक़सान देह है |
13 |
فَإِنَّمَا هِيَ زَجْرَةٌ وَاحِدَةٌ वह (क़यामत) तो (गोया) बस एक सख्त चीख़ होगी |
14 |
فَإِذَا هُمْ بِالسَّاهِرَةِ और लोग शक़ बारगी एक मैदान (हश्र) में मौजूद होंगे |
15 |
هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ مُوسَى (ऐ रसूल) क्या तुम्हारे पास मूसा का किस्सा भी पहुँचा है |
16 |
إِذْ نَادَاهُ رَبُّهُ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى जब उनको परवरदिगार ने तूवा के मैदान में पुकारा |
17 |
اذْهَبْ إِلَى فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَى कि फिरऔन के पास जाओ वह सरकश हो गया है |
18 |
فَقُلْ هَلْ لَكَ إِلَى أَنْ تَزَكَّى (और उससे) कहो कि क्या तेरी ख्वाहिश है कि (कुफ्र से) पाक हो जाए |
19 |
وَأَهْدِيَكَ إِلَى رَبِّكَ فَتَخْشَى और मैं तुझे तेरे परवरदिगार की राह बता दूँ तो तुझको ख़ौफ (पैदा) हो |
20 |
فَأَرَاهُ الْآيَةَ الْكُبْرَى ग़रज़ मूसा ने उसे (असा का बड़ा) मौजिज़ा दिखाया |
21 |
فَكَذَّبَ وَعَصَى तो उसने झुठला दिया और न माना |
22 |
ثُمَّ أَدْبَرَ يَسْعَى फिर पीठ फेर कर (ख़िलाफ़ की) तदबीर करने लगा |
23 |
فَحَشَرَ فَنَادَى फिर (लोगों को) जमा किया और बुलन्द आवाज़ से चिल्लाया |
24 |
فَقَالَ أَنَا رَبُّكُمُ الْأَعْلَى तो कहने लगा मैं तुम लोगों का सबसे बड़ा परवरदिगार हूँ |
25 |
فَأَخَذَهُ اللَّهُ نَكَالَ الْآخِرَةِ وَالْأُولَى तो ख़ुदा ने उसे दुनिया और आख़ेरत (दोनों) के अज़ाब में गिरफ्तार किया |
26 |
إِنَّ فِي ذَلِكَ لَعِبْرَةً لِمَنْ يَخْشَى बेशक जो शख़्श (ख़ुदा से) डरे उसके लिए इस (किस्से) में इबरत है |
27 |
أَأَنْتُمْ أَشَدُّ خَلْقًا أَمِ السَّمَاءُ ۚ भला तुम्हारा पैदा करना ज्यादा मुश्किल है या आसमान का بَنَاهَا कि उसी ने उसको बनाया |
28 |
رَفَعَ سَمْكَهَا فَسَوَّاهَا उसकी छत को ख़ूब ऊँचा रखा फिर उसे दुरूस्त किया |
29 |
وَأَغْطَشَ لَيْلَهَا وَأَخْرَجَ ضُحَاهَا और उसकी रात को तारीक बनाया और (दिन को) उसकी धूप निकाली |
30 |
وَالْأَرْضَ بَعْدَ ذَلِكَ دَحَاهَا और उसके बाद ज़मीन को फैलाया |
31 |
أَخْرَجَ مِنْهَا مَاءَهَا وَمَرْعَاهَا उसी में से उसका पानी और उसका चारा निकाला |
32 |
وَالْجِبَالَ أَرْسَاهَا और पहाड़ों को उसमें गाड़ दिया |
33 |
مَتَاعًا لَكُمْ وَلِأَنْعَامِكُمْ (ये सब सामान) तुम्हारे और तुम्हारे चारपायो के फ़ायदे के लिए है |
34 |
فَإِذَا جَاءَتِ الطَّامَّةُ الْكُبْرَى तो जब बड़ी सख्त मुसीबत (क़यामत) आ मौजूद होगी |
35 |
يَوْمَ يَتَذَكَّرُ الْإِنْسَانُ مَا سَعَى जिस दिन इन्सान अपने कामों को कुछ याद करेगा |
36 |
وَبُرِّزَتِ الْجَحِيمُ لِمَنْ يَرَى और जहन्नुम देखने वालों के सामने ज़ाहिर कर दी जाएगी |
37 |
فَأَمَّا مَنْ طَغَى तो जिसने (दुनिया में) सर उठाया था |
38 |
وَآثَرَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا और दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीह दी थी |
39 |
فَإِنَّ الْجَحِيمَ هِيَ الْمَأْوَى उसका ठिकाना तो यक़ीनन दोज़ख़ है |
40 |
وَأَمَّا مَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ وَنَهَى النَّفْسَ عَنِ الْهَوَى मगर जो शख़्श अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता और जी को नाजायज़ ख्वाहिशों से रोकता रहा |
41 |
فَإِنَّ الْجَنَّةَ هِيَ الْمَأْوَى तो उसका ठिकाना यक़ीनन बेहश्त है |
42 |
يَسْأَلُونَكَ عَنِ السَّاعَةِ أَيَّانَ مُرْسَاهَا (ऐ रसूल) लोग तुम से क़यामत के बारे में पूछते हैं कि उसका कहीं थल बेड़ा भी है |
43 |
فِيمَ أَنْتَ مِنْ ذِكْرَاهَا तो तुम उसके ज़िक्र से किस फ़िक्र में हो |
44 |
إِلَى رَبِّكَ مُنْتَهَاهَا उस (के इल्म) की इन्तेहा तुम्हारे परवरदिगार ही तक है |
45 |
إِنَّمَا أَنْتَ مُنْذِرُ مَنْ يَخْشَاهَا तो तुम बस जो उससे डरे उसको डराने वाले हो |
46 |
كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَهَا لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا عَشِيَّةً أَوْ ضُحَاهَا जिस दिन वह लोग इसको देखेंगे तो (समझेंगे कि दुनिया में) बस एक शाम या सुबह ठहरे थे ********* |
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