Quran Hindi Translation

Surah Al Ma'arij

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

سَأَلَ سَائِلٌ بِعَذَابٍ وَاقِعٍ

एक माँगने वाले ने काफिरों के लिए होकर रहने वाले अज़ाब को माँगा

2

‏ لِلْكَافِرِينَ لَيْسَ لَهُ دَافِعٌ

जिसको कोई टाल नहीं सकता

3

مِنَ اللَّهِ ذِي الْمَعَارِجِ

जो दर्जे वाले ख़ुदा की तरफ से <span class="auto-style1">(होने वाला) था

4

تَعْرُجُ الْمَلَائِكَةُ وَالرُّوحُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ أَلْفَ سَنَةٍ

जिसकी तरफ फ़रिश्ते और रूहुल अमीन चढ़ते हैं

<span class="auto-style1">(और ये) एक दिन में इतनी मुसाफ़त तय करते हैं जिसका अन्दाज़ा पचास हज़ार बरस का होगा

5

فَاصْبِرْ صَبْرًا جَمِيلًا

तो तुम अच्छी तरह इन तक़लीफों को बरदाश्त करते रहो

6

إِنَّهُمْ يَرَوْنَهُ بَعِيدًا

वह <span class="auto-style1">(क़यामत) उनकी निगाह में बहुत दूर है

7

وَنَرَاهُ قَرِيبًا

और हमारी नज़र में नज़दीक है

8

يَوْمَ تَكُونُ السَّمَاءُ كَالْمُهْلِ

जिस दिन आसमान पिघले हुए ताँबे का सा हो जाएगा

9

وَتَكُونُ الْجِبَالُ كَالْعِهْنِ

और पहाड़ धुनके हुए ऊन का सा

10

وَلَا يَسْأَلُ حَمِيمٌ حَمِيمًا

कोई किसी दोस्त को न पूछेगा

11

يُبَصَّرُونَهُمْ ۚ

बावजूद कि एक दूसरे को देखते होंगे

يَوَدُّ الْمُجْرِمُ لَوْ يَفْتَدِي مِنْ عَذَابِ يَوْمِئِذٍ بِبَنِيهِ

गुनेहगार तो आरज़ू करेगा कि काश उस दिन के अज़ाब के बदले उसके बेटों

12

وَصَاحِبَتِهِ وَأَخِيهِ

और उसकी बीवी और उसके भाई

13

وَفَصِيلَتِهِ الَّتِي تُؤْوِيهِ

और उसके कुनबे को जिसमें वह रहता था

14

وَمَنْ فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا ثُمَّ يُنْجِيهِ

और जितने आदमी ज़मीन पर हैं सब को ले ले और उसको छुटकारा दे दें

15

كَلَّا ۖ إِنَّهَا لَظَى

<span class="auto-style1">(मगर) ये हरगिज़ न होगा जहन्नुम की वह भड़कती आग है

16

نَزَّاعَةً لِلشَّوَى

कि खाल उधेड़ कर रख देगी

17

تَدْعُو مَنْ أَدْبَرَ وَتَوَلَّى

<span class="auto-style1">(और) उन लोगों को अपनी तरफ बुलाती होगी जिन्होंने <span class="auto-style1">(दीन से) पीठ फेरी और मुँह मोड़ा

18

وَجَمَعَ فَأَوْعَى

और <span class="auto-style1">(माल) जमा किया और बन्द कर रखा

19

إِنَّ الْإِنْسَانَ خُلِقَ هَلُوعًا

बेशक इन्सान बड़ा लालची पैदा हुआ है

20

إِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ جَزُوعًا

जब उसे तक़लीफ छू भी गयी तो घबरा गया

21

وَإِذَا مَسَّهُ الْخَيْرُ مَنُوعًا

और जब उसे ज़रा फराग़ी हासिल हुई तो बख़ील बन बैठा

22

إِلَّا الْمُصَلِّينَ

मगर जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं

23

الَّذِينَ هُمْ عَلَى صَلَاتِهِمْ دَائِمُونَ  

जो अपनी नमाज़ का इल्तज़ाम रखते हैं

24

وَالَّذِينَ فِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ مَعْلُومٌ

और जिनके माल में लिए एक मुक़र्रर हिस्सा है

25

لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ

मांगने वाले और न मांगने वाले का

26

وَالَّذِينَ يُصَدِّقُونَ بِيَوْمِ الدِّينِ

और जो लोग रोज़े जज़ा की तस्दीक़ करते हैं

27

وَالَّذِينَ هُمْ مِنْ عَذَابِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ

और जो लोग अपने परवरदिगार के अज़ाब से डरते रहते हैं

28

إِنَّ عَذَابَ رَبِّهِمْ غَيْرُ مَأْمُونٍ

बेशक उनको परवरदिगार के अज़ाब से बेख़ौफ न होना चाहिए

29

وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ

और जो लोग अपनी शरमगाहों की सुरक्षा करते हैं

30

إِلَّا عَلَى أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ

सिवा अपनी पत्नियों और अपनी लविंडयों के तो उन लोगों की कभी मलामत न किया जाएगा

31

فَمَنِ ابْتَغَى وَرَاءَ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْعَادُونَ 

तो जो लोग उनके सिवा और के ख़ास्तगार हों तो यही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं

32

وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ  

और जो लोग अपनी अमानतों और अहदों का लेहाज़ रखते हैं

33

وَالَّذِينَ هُمْ بِشَهَادَاتِهِمْ قَائِمُونَ

और जो लोग अपनी यहादतों पर क़ायम रहते हैं

34

وَالَّذِينَ هُمْ عَلَى صَلَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ  

यही लोग बेहिश्त के बाग़ों में इज्ज़त से रहेंगे

35

أُولَئِكَ فِي جَنَّاتٍ مُكْرَمُونَ

तो <span class="auto-style1">(ऐ रसूल) काफिरों को क्या हो गया है कि तुम्हारे पास दौड़े चले आ रहे हैं

36

فَمَالِ الَّذِينَ كَفَرُوا قِبَلَكَ مُهْطِعِينَ 

गिरोह गिरोह हो कर दाहिने से बाएँ से

37

عَنِ الْيَمِينِ وَعَنِ الشِّمَالِ عِزِينَ 

क्या इनमें से हर शख़्श इस का मुतमइनी है कि चैन के बाग़ <span class="auto-style1">(बेहिश्त) में दाख़िल होगा

38

أَيَطْمَعُ كُلُّ امْرِئٍ مِنْهُمْ أَنْ يُدْخَلَ جَنَّةَ نَعِيمٍ 

हरगिज़ नहीं हमने उनको जिस <span class="auto-style1">(गन्दी) चीज़ से पैदा किया ये लोग जानते हैं

39

كَلَّا ۖ إِنَّا خَلَقْنَاهُمْ مِمَّا يَعْلَمُونَ 

हरगिज़ नहीं हमने उनको जिस <span class="auto-style1">(गन्दी) चीज़ से पैदा किया ये लोग जानते हैं

40

فَلَا أُقْسِمُ بِرَبِّ الْمَشَارِقِ وَالْمَغَارِبِ إِنَّا لَقَادِرُونَ 

तो मैं मशरिकों और मग़रिबों के परवरदिगार की क़सम खाता हूँ कि हम ज़रूर इस बात की कुदरत रखते हैं

41

عَلَى أَنْ نُبَدِّلَ خَيْرًا مِنْهُمْ وَمَا نَحْنُ بِمَسْبُوقِينَ 

कि उनके बदले उनसे बेहतर लोग ला <span class="auto-style1">(बसाएँ) और हम आजिज़ नहीं हैं  

42

فَذَرْهُمْ يَخُوضُوا وَيَلْعَبُواحَتَّى يُلَاقُوا يَوْمَهُمُ الَّذِي يُوعَدُونَ 

तो तुम उनको छोड़ दो कि बातिल में पड़े खेलते रहें यहाँ तक कि जिस दिन का उनसे वायदा किया जाता है उनके सामने आ मौजूद हो

43

يَوْمَ يَخْرُجُونَ مِنَ الْأَجْدَاثِ سِرَاعًا كَأَنَّهُمْ إِلَى نُصُبٍ يُوفِضُونَ  

उसी दिन ये लोग कब्रों से निकल कर इस तरह दौड़ेंगे गोया वह किसी झन्डे की तरफ दौड़े चले जाते हैं

44

خَاشِعَةً أَبْصَارُهُمْ تَرْهَقُهُمْ ذِلَّةٌ ۚ

<span class="auto-style1">(निदामत से) उनकी ऑंखें झुकी होंगी उन पर रूसवाई छाई हुई होगी

ذَلِكَ الْيَوْمُ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ 

ये वही दिन है जिसका उनसे वायदा किया जाता था

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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