Quran Hindi Translation

Surah Nuh

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

إِنَّا أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ أَنْ أَنْذِرْ قَوْمَكَ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

हमने नूह को उसकी क़ौम के पास (पैग़म्बर बनाकर) भेजा

कि क़ब्ल उसके कि उनकी क़ौम पर दर्दनाक अज़ाब आए उनको उससे डराओ

2

‏قَالَ يَا قَوْمِ إِنِّي لَكُمْ نَذِيرٌ مُبِينٌ

तो नूह (अपनी क़ौम से) कहने लगे ऐ मेरी क़ौम मैं तो तुम्हें साफ़ साफ़ डराता (और समझाता) हूँ

3

أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ وَاتَّقُوهُ وَأَطِيعُونِ

कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो और उसी से डरो और मेरी इताअत करो

4

يَغْفِرْ لَكُمْ مِنْ ذُنُوبِكُمْ وَيُؤَخِّرْكُمْ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى ۚ

ख़ुदा तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और तुम्हें (मौत के) मुक़र्रर वक्त तक बाक़ी रखेगा,

إِنَّ أَجَلَ اللَّهِ إِذَا جَاءَ لَا يُؤَخَّرُ ۖلَوْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ

बेशक जब ख़ुदा का मुक़र्रर किया हुआ वक्त अा जाता है तो पीछे हटाया नहीं जा सकता अगर तुम समझते होते

5

قَالَ رَبِّ إِنِّي دَعَوْتُ قَوْمِي لَيْلًا وَنَهَارًا    

(जब लोगों ने न माना तो) अर्ज़ की परवरदिगार मैं अपनी क़ौम को (ईमान की तरफ) बुलाता रहा

6

فَلَمْ يَزِدْهُمْ دُعَائِي إِلَّا فِرَارًا

लेकिन वह मेरे बुलाने से और ज्यादा गुरेज़ ही करते रहे

7

وَإِنِّي كُلَّمَا دَعَوْتُهُمْ لِتَغْفِرَ لَهُمْ جَعَلُوا أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ

और मैने जब उनको बुलाया कि (ये तौबा करें और) तू उन्हें माफ कर दे तो उन्होने अपने कानों में उंगलियां दे लीं

وَاسْتَغْشَوْا ثِيَابَهُمْ وَأَصَرُّوا وَاسْتَكْبَرُوا اسْتِكْبَارًا

और मुझसे छिपने को कपड़े ओढ़ लिए और अड़ गए और बहुत शिद्दत से अकड़ बैठे

8

ثُمَّ إِنِّي دَعَوْتُهُمْ جِهَارًا

फिर मैंने उनको बिल एलान बुलाया

9

ثُمَّ إِنِّي أَعْلَنْتُ لَهُمْ وَأَسْرَرْتُ لَهُمْ إِسْرَارًا

फिर उनको ज़ाहिर ब ज़ाहिर समझाया और उनकी पोशीदा भी फ़हमाईश की

10

فَقُلْتُ اسْتَغْفِرُوا رَبَّكُمْ إِنَّهُ كَانَ غَفَّارًا 

मैंने उनसे कहा कि अपने परवरदिगार से मग़फेरत की दुआ माँगो बेशक वह बड़ा बख्शने वाला है

11

يُرْسِلِ السَّمَاءَ عَلَيْكُمْ مِدْرَارًا

(और) तुम पर आसमान से मूसलाधार पानी बरसाएगा

12

وَيُمْدِدْكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَيَجْعَلْ لَكُمْ جَنَّاتٍ وَيَجْعَلْ لَكُمْ أَنْهَارًا

और माल और औलाद में तरक्क़ी देगा, और तुम्हारे लिए बाग़ बनाएगा, और तुम्हारे लिए नहरें जारी करेगा

13

مَا لَكُمْ لَا تَرْجُونَ لِلَّهِ وَقَارًا

तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़ुदा की अज़मत का ज़रा भी ख्याल नहीं करते

14

وَقَدْ خَلَقَكُمْ أَطْوَارًا

हालॉकि उसी ने तुमको तरह तरह का पैदा किया

15

أَلَمْ تَرَوْا كَيْفَ خَلَقَ اللَّهُ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ طِبَاقًا

क्या तुमने ग़ौर नहीं किया कि ख़ुदा ने सात आसमान ऊपर तलें क्यों कर बनाए

16

وَجَعَلَ الْقَمَرَ فِيهِنَّ نُورًا وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِرَاجًا

और उसी ने उसमें चाँद को नूर बनाया और सूरज को रौशन चिराग़ बना दिया

17

وَاللَّهُ أَنْبَتَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ نَبَاتًا

और ख़ुदा ही तुमको ज़मीन से पैदा किया

18

ثُمَّ يُعِيدُكُمْ فِيهَا وَيُخْرِجُكُمْ إِخْرَاجًا

फिर तुमको उसी में दोबारा ले जाएगा और (क़यामत में उसी से) निकाल कर खड़ा करेगा

19

وَاللَّهُ جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ بِسَاطًا

और ख़ुदा ही ने ज़मीन को तुम्हारे लिए फ़र्श बनाया

20

لِتَسْلُكُوا مِنْهَا سُبُلًا فِجَاجًا  

ताकि तुम उसके बड़े बड़े कुशादा रास्तों में चलो फिरो

21

قَالَ نُوحٌ رَبِّ إِنَّهُمْ عَصَوْنِي وَاتَّبَعُوا مَنْ لَمْ يَزِدْهُ مَالُهُ وَوَلَدُهُ إِلَّا خَسَارًا

(फिर) नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार इन लोगों ने मेरी नाफ़रमानी की उस शख़्श के ताबेदार बन के जिसने उनके माल और औलाद में नुक़सान के सिवा फ़ायदा न पहुँचाया

22

وَمَكَرُوا مَكْرًا كُبَّارًا

और उन्होंने (मेरे साथ) बड़ी मक्कारियाँ की

23

وَقَالُوا لَا تَذَرُنَّ آلِهَتَكُمْ وَلَا تَذَرُنَّ وَدًّا وَلَا سُوَاعًا وَلَا يَغُوثَ وَيَعُوقَ وَنَسْرًا

और (उलटे) कहने लगे कि आपने माबूदों को हरगिज़ न छोड़ना और न वद को और सुआ को और न यगूस और यऊक़ व नस्र को छोड़ना

24

وَقَدْ أَضَلُّوا كَثِيرًا ۖ وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا ضَلَالًا

और उन्होंने बहुतेरों को गुमराह कर छोड़ा और तू (उन) ज़ालिमों की गुमराही को और बढ़ा दे

25

مِمَّا خَطِيئَاتِهِمْ أُغْرِقُوافَأُدْخِلُوا نَارًا  فَلَمْ يَجِدُوا لَهُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَنْصَارًا

(आख़िर) वह अपने गुनाहों की बदौलत (पहले तो) डुबाए गए फिर जहन्नुम में झोंके गए तो उन लोगों ने ख़ुदा के सिवा किसी को अपना मददगार न पाया

26

وَقَالَ نُوحٌ رَبِّ لَا تَذَرْ عَلَى الْأَرْضِ مِنَ الْكَافِرِينَ دَيَّارًا

और नूह ने अर्ज़ की परवरदिगार (इन) काफ़िरों में रूए ज़मीन पर किसी को बसा हुआ न रहने दे

27

إِنَّكَ إِنْ تَذَرْهُمْ يُضِلُّوا عِبَادَكَ وَلَا يَلِدُوا إِلَّا فَاجِرًا كَفَّارًا

क्योंकि अगर तू उनको छोड़ देगा तो ये (फिर) तेरे बन्दों को गुमराह करेंगे और उनकी औलाद भी गुनाहगार और कट्टी काफिर ही होगी

28

رَبِّ اغْفِرْ لِي وَلِوَالِدَيَّ وَلِمَنْ دَخَلَ بَيْتِيَ مُؤْمِنًا وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ

परवरदिगार मुझको और मेरे माँ बाप को और जो मोमिन मेरे घर में आए उनको और तमाम ईमानदार मर्दों और मोमिन औरतों को बख्श दे

وَلَا تَزِدِ الظَّالِمِينَ إِلَّا تَبَارًا

और (इन) ज़ालिमों की बस तबाही को और ज्यादा कर

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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