Quran Hindi Translation

Surah Al Munafiqun

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

إِذَا جَاءَكَ الْمُنَافِقُونَ قَالُوا نَشْهَدُ إِنَّكَ لَرَسُولُ اللَّهِ ۗ

(ऐ रसूल) जब तुम्हारे पास मुनाफेक़ीन आते हैं तो कहते हैं कि हम तो इक़रार करते हैं कि आप यक़नीन ख़ुदा के रसूल हैं

وَاللَّهُ يَعْلَمُ إِنَّكَ لَرَسُولُهُ وَاللَّهُ يَشْهَدُ إِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَكَاذِبُونَ

और ख़ुदा भी जानता है तुम यक़ीनी उसके रसूल हो

मगर ख़ुदा ज़ाहिर किए देता है कि ये लोग अपने (एतक़ाद के लिहाज़ से) ज़रूर झूठे हैं

2

اتَّخَذُوا أَيْمَانَهُمْ جُنَّةً فَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ ۚ

इन लोगों ने अपनी क़समों को सिपर बना रखा है तो (इसी के ज़रिए से) लोगों को ख़ुदा की राह से रोकते हैं

إِنَّهُمْ سَاءَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

बेशक ये लोग जो काम करते हैं बुरे हैं

3

ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ آمَنُوا ثُمَّ كَفَرُوا فَطُبِعَ عَلَى قُلُوبِهِمْ فَهُمْ لَا يَفْقَهُونَ

इस सबब से कि (ज़ाहिर में) ईमान लाए फिर काफ़िर हो गए, तो उनके दिलों पर (गोया) मोहर लगा दी गयी है तो अब ये समझते ही नहीं

4

وَإِذَا رَأَيْتَهُمْ تُعْجِبُكَ أَجْسَامُهُمْ ۖ وَإِنْ يَقُولُوا تَسْمَعْ لِقَوْلِهِمْ ۖ

और जब तुम उनको देखोगे तो तनासुबे आज़ा की वजह से उनका क़द व क़ामत तुम्हें बहुत अच्छा मालूम होगा

और गुफ्तगू करेंगे तो ऐसी कि तुम तवज्जो से सुनो

كَأَنَّهُمْ خُشُبٌ مُسَنَّدَةٌ ۖ يَحْسَبُونَ كُلَّ صَيْحَةٍ عَلَيْهِمْ ۚ

(मगर अक्ल से ख़ाली) गोया दीवारों से लगायी हुयीं बेकार लकड़ियाँ हैं

हर चीख़ की आवाज़ को समझते हैं कि उन्हीं पर आ पड़ी

هُمُ الْعَدُوُّ فَاحْذَرْهُمْ ۚ

ये लोग तुम्हारे दुश्मन हैं तुम उनसे बचे रहो

قَاتَلَهُمُ اللَّهُ ۖ أَنَّى يُؤْفَكُونَ 

ख़ुदा इन्हें मार डाले ये कहाँ बहके फिरते हैं

5

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ تَعَالَوْا يَسْتَغْفِرْ لَكُمْ رَسُولُ اللَّهِ لَوَّوْا رُءُوسَهُمْ

और जब उनसे कहा जाता है कि आओ रसूलअल्लाह तुम्हारे वास्ते मग़फेरत की दुआ करें तो वह लोग अपने सर फेर लेते हैं

وَرَأَيْتَهُمْ يَصُدُّونَ وَهُمْ مُسْتَكْبِرُونَ

और तुम उनको देखोगे कि तकब्बुर करते हुए मुँह फेर लेते हैं

6

سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَسْتَغْفَرْتَ لَهُمْ أَمْ لَمْ تَسْتَغْفِرْ لَهُمْ لَنْ يَغْفِرَ اللَّهُ لَهُمْ ۚ

तो तुम उनकी मग़फेरत की दुआ माँगो या न माँगो उनके हक़ में बराबर है (क्यों कि) ख़ुदा तो उन्हें हरगिज़ बख्शेगा नहीं

إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْفَاسِقِينَ

ख़ुदा तो हरगिज़ बदकारों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता

7

هُمُ الَّذِينَ يَقُولُونَ لَا تُنْفِقُوا عَلَى مَنْ عِنْدَ رَسُولِ اللَّهِ حَتَّى يَنْفَضُّوا ۗ

ये वही लोग तो हैं जो (अन्सार से) कहते हैं कि जो (मुहाजिरीन) रसूले ख़ुदा के पास रहते हैं उन पर ख़र्च न करो यहाँ तक कि ये लोग ख़ुद तितर बितर हो जाएँ

وَلِلَّهِ خَزَائِنُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَكِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَا يَفْقَهُونَ

हालॉकि सारे आसमान और ज़मीन के ख़ज़ाने ख़ुदा ही के पास हैं मगर मुनाफेक़ीन नहीं समझते

8

يَقُولُونَ لَئِنْ رَجَعْنَا إِلَى الْمَدِينَةِ لَيُخْرِجَنَّ الْأَعَزُّ مِنْهَا الْأَذَلَّ ۚ

ये लोग तो कहते हैं कि अगर हम लौट कर मदीने पहुँचे तो इज्ज़दार लोग (ख़ुद) ज़लील (रसूल) को ज़रूर निकाल बाहर कर देंगे

وَلِلَّهِ الْعِزَّةُ وَلِرَسُولِهِ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَلَكِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَا يَعْلَمُونَ

हालॉकि इज्ज़त तो ख़ास ख़ुदा और उसके रसूल और मोमिनीन के लिए है मगर मुनाफेक़ीन नहीं जानते

9

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ ۚ

ऐ ईमानदारों तुम्हारे माल और तुम्हारी औलाद तुमको ख़ुदा की याद से ग़ाफिल न करे

وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ

और जो ऐसा करेगा तो वही लोग घाटे में रहेंगे

10

وَأَنْفِقُوا مِنْ مَا رَزَقْنَاكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ فَيَقُولَ

और हमने जो कुछ तुम्हें दिया है उसमें से क़ब्ल इसके (ख़ुदा की राह में) ख़र्च कर डालो कि तुममें से किसी की मौत आ जाए तो (इसकी नौबत न आए कि) कहने लगे कि

رَبِّ لَوْلَا أَخَّرْتَنِي إِلَى أَجَلٍ قَرِيبٍ فَأَصَّدَّقَ وَأَكُنْ مِنَ الصَّالِحِينَ

परवरदिगार तूने मुझे थोड़ी सी मोहलत और क्यों न दी ताकि ख़ैरात करता और नेकीकारों से हो जाता

11

وَلَنْ يُؤَخِّرَ اللَّهُ نَفْسًا إِذَا جَاءَ أَجَلُهَا ۚ

और जब किसी की मौत आ जाती है तो ख़ुदा उसको हरगिज़ मोहलत नहीं देता

وَاللَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ

और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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