Quran Hindi Translation

Surah Al Mujadilah

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

قَدْ سَمِعَ اللَّهُ قَوْلَ الَّتِي تُجَادِلُكَ فِي زَوْجِهَا وَتَشْتَكِي إِلَى اللَّهِ

ऐ रसूल जो औरत (ख़ुला) तुमसे अपने शौहर (उस) के बारे में तुमसे झगड़ती और ख़ुदा से गिले शिकवे करती है ख़ुदा ने उसकी बात सुन ली

وَاللَّهُ يَسْمَعُ تَحَاوُرَكُمَا ۚ

और ख़ुदा तुम दोनों की ग़ुफ्तगू सुन रहा है

إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ بَصِيرٌ

बेशक ख़ुदा बड़ा सुनने वाला देखने वाला है

2

‏الَّذِينَ يُظَاهِرُونَ مِنْكُمْ مِنْ نِسَائِهِمْ مَا هُنَّ أُمَّهَاتِهِمْ ۖ

तुम में से जो लोग अपनी बीवियों के साथ ज़हार करते हैं अपनी बीवी को माँ कहते हैं वह कुछ उनकी माएँ नहीं

إِنْ أُمَّهَاتُهُمْ إِلَّا اللَّائِي وَلَدْنَهُمْ ۚ

(हो जातीं) उनकी माएँ तो बस वही हैं जो उनको जनती हैं

وَإِنَّهُمْ لَيَقُولُونَ مُنْكَرًا مِنَ الْقَوْلِ وَزُورًا ۚ

और वह बेशक एक नामाक़ूल और झूठी बात कहते हैं

وَإِنَّ اللَّهَ لَعَفُوٌّ غَفُورٌ

और ख़ुदा बेशक माफ करने वाला और बड़ा बख्शने वाला है

3

‏وَالَّذِينَ يُظَاهِرُونَ مِنْ نِسَائِهِمْ ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا قَالُوا فَتَحْرِيرُ رَقَبَةٍ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَتَمَاسَّا ۚ

और जो लोग अपनी बीवियों से ज़हार कर बैठे फिर अपनी बात वापस लें तो दोनों के हमबिस्तर होने से पहले (कफ्फ़ारे में) एक ग़ुलाम का आज़ाद करना (ज़रूरी) है

ذَلِكُمْ تُوعَظُونَ بِهِ ۚ

उसकी तुमको नसीहत की जाती है

وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ

और तुम जो कुछ भी करते हो (ख़ुदा) उससे आगाह है

4

فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ شَهْرَيْنِ مُتَتَابِعَيْنِ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَتَمَاسَّا ۖ

फिर जिसको ग़ुलाम न मिले तो दोनों की मुक़ारबत के क़ब्ल दो महीने के पै दर पै रोज़े रखें

فَمَنْ لَمْ يَسْتَطِعْ فَإِطْعَامُ سِتِّينَ مِسْكِينًا ۚ

और जिसको इसकी भी क़ुदरत न हो साठ मोहताजों को खाना खिलाना फर्ज़ है

ذَلِكَ لِتُؤْمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ ۚ

ये (हुक्म इसलिए है) ताकि तुम ख़ुदा और उसके रसूल की (पैरवी) तसदीक़ करो

وَتِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ ۗوَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ

और ये ख़ुदा की मुक़र्रर हदें हैं

और काफ़िरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है

5

إِنَّ الَّذِينَ يُحَادُّونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ كُبِتُوا كَمَا كُبِتَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۚ

बेशक जो लोग ख़ुदा की और उसके रसूल की मुख़ालेफ़त करते हैं वह (उसी तरह) ज़लील किए जाएँगे जिस तरह उनके पहले लोग किए जा चुके हैं

وَقَدْ أَنْزَلْنَا آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ ۚ

और हम तो अपनी साफ़ और सरीही आयतें नाज़िल कर चुके

وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ مُهِينٌ

और काफिरों के लिए ज़लील करने वाला अज़ाब है

6

يَوْمَ يَبْعَثُهُمُ اللَّهُ جَمِيعًا فَيُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوا ۚ

जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबारा उठाएगा तो उनके आमाल से उनको आगाह कर देगा

أَحْصَاهُ اللَّهُ وَنَسُوهُ ۚ

ये लोग (अगरचे) उनको भूल गये हैं मगर ख़ुदा ने उनको याद रखा है

وَاللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدٌ

और ख़ुदा तो हर चीज़ का गवाह है

7

‏أَلَمْ تَرَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۖ

क्या तुमको मालूम नहीं कि जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा जानता है

مَا يَكُونُ مِنْ نَجْوَى ثَلَاثَةٍ إِلَّا هُوَ رَابِعُهُمْ وَلَا خَمْسَةٍ إِلَّا هُوَ سَادِسُهُمْ وَلَا أَدْنَى مِنْ ذَلِكَ وَلَا أَكْثَرَ إِلَّا هُوَ مَعَهُمْ أَيْنَ مَا كَانُوا ۖ

जब तीन (आदमियों) का ख़ुफिया मशवेरा होता है तो वह (ख़ुद) उनका ज़रूर चौथा है और जब पाँच का मशवेरा होता है तो वह उनका छठा है

और उससे कम हो या ज्यादा और चाहे जहाँ कहीं हो वह उनके साथ ज़रूर होता है

ثُمَّ يُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوا يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۚ

फिर जो कुछ वह (दुनिया में) करते रहे क़यामत के दिन उनको उससे आगाह कर देगा

إِنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ

बेशक ख़ुदा हर चीज़ से ख़ूब वाक़िफ़ है  

8

‏أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ نُهُوا عَنِ النَّجْوَى ثُمَّ يَعُودُونَ لِمَا نُهُوا عَنْهُ

क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनको सरगोशियाँ करने से मना किया गया

ग़रज़ जिस काम की उनको मुमानिअत की गयी थी उसी को फिर करते हैं

وَيَتَنَاجَوْنَ بِالْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَمَعْصِيَتِ الرَّسُولِ

और (लुत्फ़ तो ये है कि) गुनाह और (बेजा) ज्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशियाँ करते हैं

وَإِذَا جَاءُوكَ حَيَّوْكَ بِمَا لَمْ يُحَيِّكَ بِهِ اللَّهُ

और जब तुम्हारे पास आते हैं तो जिन लफ्ज़ों से ख़ुदा ने भी तुम को सलाम नहीं किया उन लफ्ज़ों से सलाम करते हैं

وَيَقُولُونَ فِي أَنْفُسِهِمْ لَوْلَا يُعَذِّبُنَا اللَّهُ بِمَا نَقُولُ ۚ

और अपने जी में कहते हैं कि (अगर ये वाक़ई पैग़म्बर हैं तो) जो कुछ हम कहते हैं ख़ुदा हमें उसकी सज़ा क्यों नहीं देता

حَسْبُهُمْ جَهَنَّمُ يَصْلَوْنَهَا ۖ فَبِئْسَ الْمَصِيرُ

(ऐ रसूल) उनको दोज़ख़ ही (की सज़ा) काफी है जिसमें ये दाख़िल होंगे तो वह (क्या) बुरी जगह है

9

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواإِذَا تَنَا جَيْتُمْ فَلَا تَتَنَا جَوْابِالْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ وَمَعْصِيَتِ الرَّسُولِ

وَتَنَاجَوْا بِالْبِرِّ وَالتَّقْوَى ۖ

ऐ ईमानदारों जब तुम आपस में सरगोशी करो तो गुनाह और ज्यादती और रसूल की नाफरमानी की सरगोशी न करो बल्कि नेकीकारी और परहेज़गारी की सरगोशी करो

وَاتَّقُوا اللَّهَ الَّذِي إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ

और ख़ुदा से डरते रहो जिसके सामने (एक दिन) जमा किए जाओगे

10

إِنَّمَا النَّجْوَى مِنَ الشَّيْطَانِ لِيَحْزُنَ الَّذِينَ آمَنُوا وَلَيْسَ بِضَارِّهِمْ شَيْئًا إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ

(बरी बातों की) सरगोशी तो बस एक शैतानी काम है (और इसलिए करते हैं) ताकि ईमानदारों को उससे रंज पहुँचे

हालॉकि ख़ुदा की तरफ से आज़ादी दिए बग़ैर सरगोशी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकती

وَعَلَى اللَّهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُؤْمِنُونَ

और मोमिनीन को तो ख़ुदा ही पर भरोसा रखना चाहिए

11

‏يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا قِيلَ لَكُمْ تَفَسَّحُوا فِي الْمَجَالِسِ فَافْسَحُوا يَفْسَحِ اللَّهُ لَكُمْ ۖ

ऐ ईमानदारों जब तुमसे कहा जाए कि मजलिस में जगह कुशादा करो वह तो कुशादा कर दिया

करो ख़ुदा तुमको कुशादगी अता करेगा

وَإِذَا قِيلَ انْشُزُوا فَانْشُزُوا يَرْفَعِ اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا مِنْكُمْ وَالَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ دَرَجَاتٍ ۚ

और जब तुमसे कहा जाए कि उठ खड़े हो तो उठ खड़े हुआ करो

जो लोग तुमसे ईमानदार हैं और जिनको इल्म अता हुआ है ख़ुदा उनके दर्जे बुलन्द करेगा

وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ

और ख़ुदा तुम्हारे सब कामों से बेख़बर है

12

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا نَاجَيْتُمُ الرَّسُولَ  فَقَدِّمُوابَيْنَ يَدَيْ نَجْوَاكُمْ صَدَقَةً ۚ

ऐ ईमानदारों जब पैग़म्बर से कोई बात कान में कहनी चाहो तो कुछ ख़ैरात अपनी सरगोशी से पहले दे दिया करो

ذَلِكَ خَيْرٌ لَكُمْ وَأَطْهَرُ ۚ

यही तुम्हारे वास्ते बेहतर और पाकीज़ा बात है

فَإِنْ لَمْ تَجِدُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

पस अगर तुमको इसका मुक़दूर न हो तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

13

أَأَشْفَقْتُمْ أَنْ تُقَدِّمُوا بَيْنَ يَدَيْ نَجْوَاكُمْ صَدَقَاتٍ ۚ

(मुसलमानों) क्या तुम इस बात से डर गए कि (रसूल के) कान में बात कहने से पहले ख़ैरात कर लो

فَإِذْ لَمْ تَفْعَلُوا وَتَابَ اللَّهُ عَلَيْكُمْ فَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَرَسُولَهُ ۚ

तो जब तुम लोग (इतना सा काम) न कर सके और ख़ुदा ने तुम्हें माफ़ कर दिया तो पाबन्दी से नमाज़ पढ़ो और ज़कात देते रहो

और ख़ुदा उसके रसूल की इताअत करो

وَاللَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ

और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे बाख़बर है

14

أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ تَوَلَّوْا قَوْمًا غَضِبَ اللَّهُ عَلَيْهِمْ

क्या तुमने उन लोगों की हालत पर ग़ौर नहीं किया जो उन लोगों से दोस्ती करते हैं जिन पर ख़ुदा ने ग़ज़ब ढाया है

مَا هُمْ مِنْكُمْ وَلَا مِنْهُمْ

तो अब वह न तुम मे हैं और न उनमें

وَيَحْلِفُونَ عَلَى الْكَذِبِ وَهُمْ يَعْلَمُونَ

ये लोग जानबूझ कर झूठी बातो पर क़समें खाते हैं और वह जानते हैं  

15

أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ عَذَابًا شَدِيدًا ۖ إِنَّهُمْ سَاءَ مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

ख़ुदा ने उनके लिए सख्त अज़ाब तैयार कर रखा है

इसमें शक़ नहीं कि ये लोग जो कुछ करते हैं बहुत ही बुरा है

16

اتَّخَذُوا أَيْمَانَهُمْ جُنَّةً فَصَدُّوا عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ فَلَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ

उन लोगों ने अपनी क़समों को सिपर बना लिया है और (लोगों को) ख़ुदा की राह से रोक दिया तो उनके लिए रूसवा करने वाला अज़ाब है

17

لَنْ تُغْنِيَ عَنْهُمْ أَمْوَالُهُمْ وَلَا أَوْلَادُهُمْ مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۚ

ख़ुदा सामने हरगिज़ न उनके माल ही कुछ काम आएँगे और न उनकी औलाद ही काम आएगी

أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

यही लोग जहन्नुमी हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे

18

‏يَوْمَ يَبْعَثُهُمُ اللَّهُ جَمِيعًا فَيَحْلِفُونَ لَهُ كَمَا يَحْلِفُونَ لَكُمْ وَيَحْسَبُونَ أَنَّهُمْ عَلَى شَيْءٍ ۚ ۖ

जिस दिन ख़ुदा उन सबको दोबार उठा खड़ा करेगा तो ये लोग जिस तरह तुम्हारे सामने क़समें खाते हैं उसी तरह उसके सामने भी क़समें खाएँगे

और ख्याल करते हैं कि वह राहे सवाब पर हैं

أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ الْكَاذِبُونَ

आगाह रहो ये लोग यक़ीनन झूठे हैं  

19

اسْتَحْوَذَ عَلَيْهِمُ الشَّيْطَانُ فَأَنْسَاهُمْ ذِكْرَ اللَّهِ ۚ

शैतान ने इन पर क़ाबू पा लिया है और ख़ुदा की याद उनसे भुला दी है

أُولَئِكَ حِزْبُ الشَّيْطَانِ ۚ

ये लोग शैतान के गिरोह है

أَلَا إِنَّ حِزْبَ الشَّيْطَانِ هُمُ الْخَاسِرُونَ

सुन रखो कि शैतान का गिरोह घाटा उठाने वाला है  

20

إِنَّ الَّذِينَ يُحَادُّونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ أُولَئِكَ فِي الْأَذَلِّينَ

जो लोग ख़ुदा और उसके रसूल से मुख़ालेफ़त करते हैं वह सब ज़लील लोगों में हैं

21

‏كَتَبَ اللَّهُ لَأَغْلِبَنَّ أَنَا وَرُسُلِي ۚ

ख़ुदा ने हुक्म नातिक दे दिया है कि मैं और मेरे पैग़म्बर ज़रूर ग़ालिब रहेंगे

إِنَّ اللَّهَ قَوِيٌّ عَزِيزٌ

बेशक ख़ुदा बड़ा ज़बरदस्त ग़ालिब है .

22

لَا تَجِدُ قَوْمًا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ يُوَادُّونَ مَنْ حَادَّ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَلَوْ كَانُوا آبَاءَهُمْ أَوْ أَبْنَاءَهُمْ أَوْ إِخْوَانَهُمْ أَوْ عَشِيرَتَهُمْ ۚ

जो लोग ख़ुदा और रोज़े आख़ेरत पर ईमान रखते हैं तुम उनको ख़ुदा और उसके रसूल के दुश्मनों से दोस्ती करते हुए न देखोगे

अगरचे वह उनके बाप या बेटे या भाई या ख़ानदान ही के लोग (क्यों न हों)

أُولَئِكَ كَتَبَ فِي قُلُوبِهِمُ الْإِيمَانَ وَأَيَّدَهُمْ بِرُوحٍ مِنْهُ ۖ وَيُدْخِلُهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ

यही वह लोग हैं जिनके दिलों में ख़ुदा ने ईमान को साबित कर दिया है और ख़ास अपने नूर से उनकी ताईद की है

और उनको (बेहिश्त में) उन (हरे भरे) बाग़ों में दाखिल करेगा जिनके नीचे नहरे जारी है (और वह) हमेश उसमें रहेंगे

رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ ۚ

ख़ुदा उनसे राज़ी और वह ख़ुदा से ख़ुश

أُولَئِكَ حِزْبُ اللَّهِ ۚ أَلَا إِنَّ حِزْبَ اللَّهِ هُمُ الْمُفْلِحُونَ

यही ख़ुदा का गिरोह है सुन रखो कि ख़ुदा के गिरोग के लोग दिली मुरादें पाएँगे

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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