Quran Hindi Translation

Surah Al Dhariyat

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا

उन (हवाओं की क़सम) जो (बादलों को) उड़ा कर तितर बितर कर देती हैं

2

فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا

फिर (पानी का) बोझ उठाती हैं

3

فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا

फिर आहिस्ता आहिस्ता चलती हैं  

4

فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا

फिर एक ज़रूरी चीज़ (बारिश) को तक़सीम करती हैं

5

إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ

कि तुम से जो वायदा किया जाता है ज़रूर बिल्कुल सच्चा है

6

وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ

और (आमाल की) जज़ा (सज़ा) ज़रूर होगी

7

وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْحُبُكِ

और आसमान की क़सम जिसमें रहते हैं

8

إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُخْتَلِفٍ

कि (ऐ अहले मक्का) तुम लोग एक ऐसी मुख्तलिफ़ बेजोड़ बात में पड़े हो

9

يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ

कि उससे वही फेरा जाएगा (गुमराह होगा) जो (ख़ुदा के इल्म में) फेरा जा चुका है

10

قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ

अटकल दौड़ाने वाले हलाक हों

11

الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ

जो ग़फलत में भूले हुए (पड़े) हैं

12

يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ

पूछते हैं कि जज़ा का दिन कब होगा

13

يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ

उस दिन (होगा) जब इनको (जहन्नुम की) आग में अज़ाब दिया जाएगा

14

ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ

(और उनसे कहा जाएगा)

अपने अज़ाब का मज़ा चखो ये वही है जिसकी तुम जल्दी मचाया करते थे

15

إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ

बेशक परहेज़गार लोग (बेहिश्त के) बाग़ों और चश्मों में (ऐश करते) होगें

16

آخِذِينَ مَا آتَاهُمْ رَبُّهُمْ ۚ

जो उनका परवरदिगार उन्हें अता करता है ये (ख़ुश ख़ुश) ले रहे हैं

إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَلِكَ مُحْسِنِينَ

ये लोग इससे पहले (दुनिया में) नेको कार थे

17

كَانُوا قَلِيلًا مِنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ

(इबादत की वजह से) रात को बहुत ही कम सोते थे

18

وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ

और पिछले पहर को अपनी मग़फ़िरत की दुआएं करते थे

19

وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ

और उनके माल में माँगने वाले और न माँगने वाले (दोनों) का हिस्सा था

20

وَفِي الْأَرْضِ آيَاتٌ لِلْمُوقِنِينَ

और यक़ीन करने वालों के लिए ज़मीन में (क़ुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं

21

وَفِي أَنْفُسِكُمْ ۚ

और ख़ुदा तुम में भी हैं

أَفَلَا تُبْصِرُونَ

तो क्या तुम देखते नहीं

22

وَفِي السَّمَاءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ

और तुम्हारी रोज़ी और जिस चीज़ का तुमसे वायदा किया जाता है आसमान में है

23

فَوَرَبِّ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنْطِقُونَ  

तो आसमान व ज़मीन के मालिक की क़सम ये (क़ुरान) बिल्कुल ठीक है जिस तरह तुम बातें करते हो

24

هَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ ضَيْفِ إِبْرَاهِيمَ الْمُكْرَمِينَ

क्या तुम्हारे पास इबराहीम के मुअज़िज़ मेहमानो (फ़रिश्तों) की भी ख़बर पहुँची है

25

إِذْ دَخَلُوا عَلَيْهِ فَقَالُوا سَلَامًا ۖ

कि जब वह लोग उनके पास आए तो कहने लगे (सलामुन अलैकुम)

قَالَ سَلَامٌ

तो इबराहीम ने भी (अलैकुम) सलाम किया

قَوْمٌ مُنْكَرُونَ

(देखा तो) ऐसे लोग जिनसे न जान न पहचान

26

فَرَاغَ إِلَى أَهْلِهِ فَجَاءَ بِعِجْلٍ سَمِينٍ

फिर अपने घर जाकर जल्दी से (भुना हुआ) एक मोटा ताज़ा बछड़ा ले आए

27

فَقَرَّبَهُ إِلَيْهِمْ قَالَ أَلَا تَأْكُلُونَ

और उसे उनके आगे रख दिया (फिर) कहने लगे आप लोग तनाउल क्यों नहीं करते

28

فَأَوْجَسَ مِنْهُمْ خِيفَةً ۖ

(इस पर भी न खाया) तो इबराहीम उनसे जो ही जी में डरे

قَالُوا لَا تَخَفْ ۖ وَبَشَّرُوهُ بِغُلَامٍ عَلِيمٍ

वह लोग बोले आप अन्देशा न करें और उनको एक दानिशमन्द लड़के की ख़ुशख़बरी दी

29

فَأَقْبَلَتِ امْرَأَتُهُ فِي صَرَّةٍ فَصَكَّتْ وَجْهَهَا وَقَالَتْ عَجُوزٌ عَقِيمٌ

तो (ये सुनते ही) इबराहीम की बीवी (सारा) चिल्लाती हुई उनके सामने आयीं और अपना मुँह पीट लिया कहने लगीं

(ऐ है) एक तो (मैं) बुढ़िया (उस पर) बांझ  

30

قَالُوا كَذَلِكِ قَالَ رَبُّكِ ۖ إِنَّهُ هُوَ الْحَكِيمُ الْعَلِيمُ

लड़का क्यों कर होगा फ़रिश्ते बोले तुम्हारे परवरदिगार ने यूँ ही फरमाया है

वह बेशक हिकमत वाला वाक़िफ़कार है

31

قَالَ فَمَا خَطْبُكُمْ أَيُّهَا الْمُرْسَلُونَ

तब इबराहीम ने पूछा कि (ऐ ख़ुदा के) भेजे हुए फरिश्तों आख़िर तुम्हें क्या मुहिम दर पेश है

32

قَالُوا إِنَّا أُرْسِلْنَا إِلَى قَوْمٍ مُجْرِمِينَ  

वह बोले हम तो गुनाहगारों (क़ौमे लूत) की तरफ भेजे गए हैं

33

لِنُرْسِلَ عَلَيْهِمْ حِجَارَةً مِنْ طِينٍ

ताकि उन पर मिटटी के पथरीले खरन्जे बरसाएँ  

34

مُسَوَّمَةً عِنْدَ رَبِّكَ لِلْمُسْرِفِينَ  

जिन पर हद से बढ़ जाने वालों के लिए तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से निशान लगा दिए गए हैं

35

فَأَخْرَجْنَا مَنْ كَانَ فِيهَا مِنَ الْمُؤْمِنِينَ

ग़रज़ वहाँ जितने लोग मोमिनीन थे उनको हमने निकाल दिया

36

فَمَا وَجَدْنَا فِيهَا غَيْرَ بَيْتٍ مِنَ الْمُسْلِمِينَ

और वहाँ तो हमने एक के सिवा मुसलमानों का कोई घर पाया भी नहीं

37

وَتَرَكْنَا فِيهَا آيَةً لِلَّذِينَ يَخَافُونَ الْعَذَابَ الْأَلِيمَ  

और जो लोग दर्दनाक अज़ाब से डरते हैं उनके लिए वहाँ (इबरत की) निशानी छोड़ दी

38

وَفِي مُوسَى إِذْ أَرْسَلْنَاهُ إِلَى فِرْعَوْنَ بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ  

और मूसा (के हाल) में भी (निशानी है) जब हमने उनको फिरऔन के पास खुला हुआ मौजिज़ा देकर भेजा

39

فَتَوَلَّى بِرُكْنِهِ وَقَالَ سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ  

तो उसने अपने लशकर के बिरते पर मुँह मोड़ लिया और कहने लगा ये तो (अच्छा ख़ासा) जादूगर या सौदाई है

40

فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ وَهُوَ مُلِيمٌ  

तो हमने उसको और उसके लशकर को ले डाला फिर उन सबको दरिया में पटक दिया

और वह तो क़ाबिले मलामत काम करता ही था

41

وَفِي عَادٍ إِذْ أَرْسَلْنَا عَلَيْهِمُ الرِّيحَ الْعَقِيمَ

और आद की क़ौम (के हाल) में भी निशानी है हमने उन पर एक बे बरकत ऑंधी चलायी >

42

مَا تَذَرُ مِنْ شَيْءٍ أَتَتْ عَلَيْهِ إِلَّا جَعَلَتْهُ كَالرَّمِيمِ  

कि जिस चीज़ पर चलती उसको बोसीदा हडडी की तरह रेज़ा रेज़ा किए बग़ैर न छोड़ती

43

وَفِي ثَمُودَ إِذْ قِيلَ لَهُمْ تَمَتَّعُوا حَتَّى حِينٍ  

और समूद (के हाल) में भी (क़ुदरत की निशानी) है जब उससे कहा गया कि एक ख़ास वक्त तक ख़ूब चैन कर लो

44

فَعَتَوْا عَنْ أَمْرِ رَبِّهِمْ فَأَخَذَتْهُمُ الصَّاعِقَةُ وَهُمْ يَنْظُرُونَ

तो उन्होने अपने परवरदिगार के हुक्म से सरकशी की

तो उन्हें एक रोज़ कड़क और बिजली ने ले डाला और देखते ही रह गए

45

فَمَا اسْتَطَاعُوا مِنْ قِيَامٍ وَمَا كَانُوا مُنْتَصِرِينَ  

फिर न वह उठने की ताक़त रखते थे और न बदला ही ले सकते थे

46

وَقَوْمَ نُوحٍ مِنْ قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ  

और (उनसे) पहले (हम) नूह की क़ौम को (हलाक कर चुके थे)

बेशक वह बदकार लोग थे  

47

وَالسَّمَاءَ بَنَيْنَاهَا بِأَيْدٍ وَإِنَّا لَمُوسِعُونَ  

With the power and skill did We construct the Firmament: for it is We Who create the vastness of Space.

और हमने आसमानों को अपने बल बूते से बनाया और बेशक हममें सब क़ुदरत है

48

وَالْأَرْضَ فَرَشْنَاهَا فَنِعْمَ الْمَاهِدُونَ

और ज़मीन को भी हम ही ने बिछाया तो हम कैसे अच्छे बिछाने वाले हैं

49

وَمِنْ كُلِّ شَيْءٍ خَلَقْنَا زَوْجَيْنِ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُونَ  

और हम ही ने हर चीज़ की दो दो क़िस्में बनायीं ताकि तुम लोग नसीहत हासिल करो

50

فَفِرُّوا إِلَى اللَّهِ ۖ إِنِّي لَكُمْ مِنْهُ نَذِيرٌ مُبِينٌ  

तो ख़ुदा ही की तरफ़ भागो

मैं तुमको यक़ीनन उसकी तरफ से खुल्लम खुल्ला डराने वाला हूँ

51

وَلَا تَجْعَلُوا مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ ۖ إِنِّي لَكُمْ مِنْهُ نَذِيرٌ مُبِينٌ  

और ख़ुदा के साथ दूसरा माबूद न बनाओ

मैं तुमको यक़ीनन उसकी तरफ से खुल्लम खुल्ला डराने वाला हूँ

52

كَذَلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ

इसी तरह उनसे पहले लोगों के पास जो पैग़म्बर आता तो वह उसको जादूगर कहते या सिड़ी दीवाना (बताते)

53

أَتَوَاصَوْا بِهِ ۚ

ये लोग एक दूसरे को ऐसी बात की वसीयत करते आते हैं

بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ  

(नहीं) बल्कि ये लोग हैं ही सरकश

54

فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنْتَ بِمَلُومٍ

तो (ऐ रसूल) तुम इनसे मुँह फेर लो तुम पर तो कुछ इल्ज़ाम नहीं है

55

وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَى تَنْفَعُ الْمُؤْمِنِينَ  

और नसीहत किए जाओ क्योंकि नसीहत मोमिनीन को फायदा देती है

56

وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنْسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ  

और मैने जिनों और आदमियों को इसी ग़रज़ से पैदा किया कि वह मेरी इबादत करें

57

مَا أُرِيدُ مِنْهُمْ مِنْ رِزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَنْ يُطْعِمُونِ

न तो मैं उनसे रोज़ी का तालिब हूँ और न ये चाहता हूँ कि मुझे खाना खिलाएँ

58

إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ

ख़ुदा ख़ुद बड़ा रोज़ी देने वाला ज़ोरावर (और) ज़बरदस्त है

59

فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ

तो (इन) ज़ालिमों के वास्ते भी अज़ाब का कुछ हिस्सा है जिस तरह उनके साथियों के लिए हिस्सा था

तो इनको हम से जल्दी न करनी चाहिए

60

فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ

तो जिस दिन का इन काफ़िरों से वायदा किया जाता है इससे इनके लिए ख़राबी है

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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