Quran Hindi Translation

Surah Al Ahkaf

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

حم

हा मीम

2

تَنْزِيلُ الْكِتَابِ مِنَ اللَّهِ الْعَزِيزِ الْحَكِيمِ

ये किताब ग़ालिब (व) हकीम ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुई है  

3

مَا خَلَقْنَا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا إِلَّا بِالْحَقِّ وَأَجَلٍ مُسَمًّى ۚ

हमने तो सारे आसमान व ज़मीन और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है हिकमत ही से एक ख़ास वक्त तक के लिए ही पैदा किया है

وَالَّذِينَ كَفَرُوا عَمَّا أُنْذِرُوا مُعْرِضُونَ

और कुफ्फ़ार जिन चीज़ों से डराए जाते हैं उन से मुँह फेर लेते हैं

4

قُلْ أَرَأَيْتُمْ مَا تَدْعُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ

(ऐ रसूल) तुम पूछो कि ख़ुदा को छोड़ कर जिनकी तुम इबादत करते हो क्या तुमने उनको देखा है

أَرُونِي مَاذَا خَلَقُوا مِنَ الْأَرْضِ أَمْ لَهُمْ شِرْكٌ فِي السَّمَاوَاتِ ۖ

मुझे भी तो दिखाओ कि उन लोगों ने ज़मीन में क्या चीज़े पैदा की हैं या आसमानों (के बनाने) में उनकी शिरकत है

ائْتُونِي بِكِتَابٍ مِنْ قَبْلِ هَذَا أَوْ أَثَارَةٍ مِنْ عِلْمٍ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

तो अगर तुम सच्चे हो तो उससे पहले की कोई किताब (या अगलों के) इल्म का बक़िया हो तो मेरे सामने पेश करो

5

وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنْ يَدْعُو مِنْ دُونِ اللَّهِ مَنْ لَا يَسْتَجِيبُ لَهُ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ

और उस शख़्श से बढ़ कर कौन गुमराह हो सकता है जो ख़ुदा के सिवा ऐसे शख़्श को पुकारे जो उसे क़यामत तक जवाब ही न दे

وَهُمْ عَنْ دُعَائِهِمْ غَافِلُونَ

और उनको उनके पुकारने की ख़बरें तक न हों

6

وَإِذَا حُشِرَ النَّاسُ كَانُوا لَهُمْ أَعْدَاءً وَكَانُوا بِعِبَادَتِهِمْ كَافِرِينَ

और जब लोग (क़यामत) में जमा किये जाएगें तो वह (माबूद) उनके दुशमन हो जाएंगे और उनकी परसतिश से इन्कार करेंगे

7

وَإِذَا تُتْلَى عَلَيْهِمْ آيَاتُنَا بَيِّنَاتٍ

और जब हमारी खुली खुली आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं

قَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلْحَقِّ لَمَّا جَاءَهُمْ هَذَا سِحْرٌ مُبِينٌ

तो जो लोग काफिर हैं हक़ के बारे में जब उनके पास आ चुका तो कहते हैं ये तो सरीही जादू है

8

أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۖ

क्या ये कहते हैं कि इसने इसको ख़ुद गढ़ लिया है

قُلْ إِنِ افْتَرَيْتُهُ فَلَا تَمْلِكُونَ لِي مِنَ اللَّهِ شَيْئًا ۖ

तो (ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर मैं इसको (अपने जी से) गढ़ लेता तो तुम ख़ुदा के सामने मेरे कुछ भी काम न आओगे

هُوَ أَعْلَمُ بِمَا تُفِيضُونَ فِيهِ ۖ

जो जो बातें तुम लोग उसके बारे में करते रहते हो वह ख़ूब जानता है

كَفَى بِهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ وَهُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ ۖ

मेरे और तुम्हारे दरमियान वही गवाही को काफ़ी है

और वही बड़ा बख्शने वाला है मेहरबान है

9

قُلْ مَا كُنْتُ بِدْعًا مِنَ الرُّسُلِ وَمَا أَدْرِي مَا يُفْعَلُ بِي وَلَا بِكُمْ ۖ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं कोई नया रसूल तो आया नहीं हूँ और मैं कुछ नहीं जानता कि आइन्दा मेरे साथ क्या किया जाएगा और न (ये कि) तुम्हारे साथ क्या किया जाएगा

إِنْ أَتَّبِعُ إِلَّا مَا يُوحَى إِلَيَّ وَمَا أَنَا إِلَّا نَذِيرٌ مُبِينٌ

मैं तो बस उसी का पाबन्द हूँ जो मेरे पास वही आयी है और मैं तो बस एलानिया डराने वाला हूँ

10

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ كَانَ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ وَكَفَرْتُمْ بِهِ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला देखो तो कि अगर ये (क़ुरान) ख़ुदा की तरफ से हो और तुम उससे इन्कार कर बैठे

وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ عَلَى مِثْلِهِ فَآمَنَ وَاسْتَكْبَرْتُمْ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ

हालॉकि (बनी इसराईल में से) एक गवाह उसके मिसल की गवाही भी दे चुका और ईमान भी ले आया और तुमने सरकशी की (तो तुम्हारे ज़ालिम होने में क्या शक़ है)

बेशक ख़ुदा ज़ालिम लोगों को मन्ज़िल मक़सूद तक नहीं पहुँचाता

11

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِلَّذِينَ آمَنُوا لَوْ كَانَ خَيْرًا مَا سَبَقُونَا إِلَيْهِ ۚ

और काफिर लोग मोमिनों के बारे में कहते हैं कि अगर ये (दीन) बेहतर होता तो ये लोग उसकी तरफ हमसे पहले न दौड़ पड़ते

وَإِذْ لَمْ يَهْتَدُوا بِهِ فَسَيَقُولُونَ هَذَا إِفْكٌ قَدِيمٌ

और जब क़ुरान के ज़रिए से उनकी हिदायत न हुई तो अब भी कहेंगे ये तो एक क़दीमी झूठ है

12

وَمِنْ قَبْلِهِ كِتَابُ مُوسَى إِمَامًا وَرَحْمَةً ۚ

और इसके क़ब्ल मूसा की किताब पेशवा और (सरासर) रहमत थी

وَهَـٰذَا كِتَـٰبٌ۬ مُّصَدِّقٌ۬ لِّسَانًا عَرَبِيًّ۬ا لِّيُنذِرَ ٱلَّذِينَ ظَلَمُواْ وَبُشۡرَىٰ لِلۡمُحۡسِنِينَ  

और ये (क़ुरान) वह किताब है जो अरबी ज़बान में (उसकी) तसदीक़ करती है ताकि (इसके ज़रिए से) ज़ालिमों को डराए और नेकी कारों के लिए (अज़सरतापा) ख़ुशख़बरी है

13

إِنَّ الَّذِينَ قَالُوا رَبُّنَا اللَّهُ ثُمَّ اسْتَقَامُوا

बेशक जिन लोगों ने कहा कि हमारा परवरदिगार ख़ुदा है फिर वह इस पर क़ायम रहे

فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

तो (क़यामत में) उनको न कुछ ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मग़ीन होंगे

14

أُولَئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ خَالِدِينَ فِيهَا جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

यही तो अहले जन्नत हैं कि हमेशा उसमें रहेंगे

(ये) उसका सिला है जो ये लोग (दुनिया में) किया करते थे

15

وَوَصَّيْنَا الْإِنْسَانَ بِوَالِدَيْهِ إِحْسَانًا ۖ حَمَلَتْهُ أُمُّهُ كُرْهًا وَوَضَعَتْهُ كُرْهًا ۖ

और हमने इन्सान को अपने माँ बाप के साथ भलाई करने का हुक्म दिया

(क्यों कि) उसकी माँ ने रंज ही की हालत में उसको पेट में रखा और रंज ही से उसको जना

وَحَمْلُهُ وَفِصَالُهُ ثَلَاثُونَ شَهْرًا ۚ

और उसका पेट में रहना और उसको दूध बढ़ाई के तीस महीने हुए

حَتَّى إِذَا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَبَلَغَ أَرْبَعِينَ سَنَةً قَالَ

यहाँ तक कि जब अपनी पूरी जवानी को पहुँचता और चालीस बरस (के सिन) को पहुँचता है तो (ख़ुदा से) अर्ज़ करता है

رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَى وَالِدَيَّ

परवरदिगार तो मुझे तौफ़ीक़ अता फरमा कि तूने जो एहसानात मुझ पर और मेरे वालदैन पर किये हैं मैं उन एहसानों का शुक्रिया अदा करूँ

وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ وَأَصْلِحْ لِي فِي ذُرِّيَّتِي ۖ

और ये (भी तौफीक दे) कि मैं ऐसा नेक काम करूँ जिसे तू पसन्द करे और मेरे लिए मेरी औलाद में सुलाह व तक़वा पैदा करे

إِنِّي تُبْتُ إِلَيْكَ وَإِنِّي مِنَ الْمُسْلِمِينَ

मैं तेरी तरफ रूजू करता हूँ और मैं यक़ीनन फरमाबरदारो में हूँ

16

أُولَئِكَ الَّذِينَ نَتَقَبَّلُ عَنْهُمْ أَحْسَنَ مَا عَمِلُوا وَنَتَجَاوَزُ عَنْ سَيِّئَاتِهِمْ فِي أَصْحَابِ الْجَنَّةِ ۖ

यही वह लोग हैं जिनके नेक अमल हम क़ुबूल फरमाएँगे और उनके गुनाहों से दरग़ुज़र करेंगे

وَعْدَ الصِّدْقِ الَّذِي كَانُوا يُوعَدُونَ

और बेहिश्त (के जाने) वालों में (ये वह) सच्चा वायदा है जो उन से किया जाता था

17

وَالَّذِي قَالَ لِوَالِدَيْهِ أُفٍّ لَكُمَا أَتَعِدَانِنِي أَنْ أُخْرَجَ وَقَدْ خَلَتِ الْقُرُونُ مِنْ قَبْلِي

और जिसने अपने माँ बाप से कहा कि तुम्हारा बुरा हो, क्या तुम मुझे धमकी देते हो कि मैं दोबारा (कब्र से) निकाला जाऊँगा हालॉकि बहुत से लोग मुझसे पहले गुज़र चुके (और कोई ज़िन्दा न हुआ)

وَهُمَا يَسْتَغِيثَانِ اللَّهَ وَيْلَكَ آمِنْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ

और दोनों फ़रियाद कर रहे थे कि तुझ पर वाए हो ईमान ले आ ख़ुदा का वायदा ज़रूर सच्चा है

فَيَقُولُ مَا هَذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ

तो वह बोल उठा कि ये तो बस अगले लोगों के अफ़साने हैं

18

أُولَئِكَ الَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ فِي أُمَمٍ قَدْ خَلَتْ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ ۖ

ये वही लोग हैं कि जिन्नात और आदमियों की (दूसरी) उम्मतें जो उनसे पहले गुज़र चुकी हैं उन ही के शुमूल में उन पर भी अज़ाब का वायदा मुस्तहक़ हो चुका है

إِنَّهُمْ كَانُوا خَاسِرِينَ

ये लोग बेशक घाटा उठाने वाले थे

19

وَلِكُلٍّ دَرَجَاتٌ مِمَّا عَمِلُوا ۖ

और लोगों ने जैसे काम किये होंगे उसी के मुताबिक सबके दर्जे होंगे

وَلِيُوَفِّيَهُمْ أَعْمَالَهُمْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ

और ये इसलिए कि ख़ुदा उनके आमाल का उनको पूरा पूरा बदला दे और उन पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएं

20

وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ

और जिस दिन कुफ्फार जहन्नुम के सामने लाएँ जाएँगे

(तो उनसे कहा जाएगा कि)

أَذْهَبْتُمْ طَيِّبَاتِكُمْ فِي حَيَاتِكُمُ الدُّنْيَا وَاسْتَمْتَعْتُمْ بِهَا

तुमने अपनी दुनिया की ज़िन्दगी में अपने मज़े उड़ा चुके और उसमें ख़ूब चैन कर चुके

فَالْيَوْمَ تُجْزَوْنَ عَذَابَ الْهُونِ

तो आज तुम पर ज़िल्लत का अज़ाब किया जाएगा

بِمَا كُنْتُمْ تَسْتَكْبِرُونَ فِي الْأَرْضِ بِغَيْرِ الْحَقِّ وَبِمَا كُنْتُمْ تَفْسُقُونَ

इसलिए कि तुम अपनी ज़मीन में अकड़ा करते थे और इसलिए कि तुम बदकारियां करते थे

21

وَاذْكُرْ أَخَا عَادٍ

إِذْ أَنْذَرَ قَوْمَهُ بِالْأَحْقَافِ وَقَدْ خَلَتِ النُّذُرُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَمِنْ خَلْفِهِ

और (ऐ रसूल) तुम आद को भाई (हूद) को याद करो जब उन्होंने अपनी क़ौम को (सरज़मीन) अहक़ाफ में डराया

और उनके पहले और उनके बाद भी बहुत से डराने वाले पैग़म्बर गुज़र चुके थे (और हूद ने अपनी क़ौम से कहा) कि ख़ुदा के सिवा किसी की इबादत न करो

أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا اللَّهَ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ عَذَابَ يَوْمٍ عَظِيمٍ

क्योंकि तुम्हारे बारे में एक बड़े सख्त दिन के अज़ाब से डरता हूँ

22

قَالُوا أَجِئْتَنَا لِتَأْفِكَنَا عَنْ آلِهَتِنَا

वह बोले क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हमको हमारे माबूदों से फेर दो

فَأْتِنَا بِمَا تَعِدُنَا إِنْ كُنْتَ مِنَ الصَّادِقِينَ

तो अगर तुम सच्चे हो तो जिस अज़ाब की तुम हमें धमकी देते हो ले आओ

23

قَالَ إِنَّمَا الْعِلْمُ عِنْدَ اللَّهِ

हूद ने कहा (इसका) इल्म तो बस ख़ुदा के पास है

وَأُبَلِّغُكُمْ مَا أُرْسِلْتُ بِهِ وَلَكِنِّي أَرَاكُمْ قَوْمًا تَجْهَلُونَ  

और मैं जो (एहकाम) देकर भेजा गया हूँ वह तुम्हें पहुँचाए देता हूँ मगर मैं तुमको देखता हूँ कि तुम जाहिल लोग हो  

24

فَلَمَّا رَأَوْهُ عَارِضًا مُسْتَقْبِلَ أَوْدِيَتِهِمْ قَالُوا هَذَا عَارِضٌ مُمْطِرُنَا ۚ

तो जब उन लोगों ने इस (अज़ाब) को देखा कि वबाल की तरह उनके मैदानों की तरफ उम्ड़ा आ रहा है तो कहने लगे ये तो बादल है जो हम पर बरस कर रहेगा

بَلْ هُوَ مَا اسْتَعْجَلْتُمْ بِهِ ۖ رِيحٌ فِيهَا عَذَابٌ أَلِيمٌ

(नहीं) बल्कि ये वह (अज़ाब) जिसकी तुम जल्दी मचा रहे थे

(ये) वह ऑंधी है जिसमें दर्दनाक (अज़ाब) है

25

تُدَمِّرُ كُلَّ شَيْءٍ بِأَمْرِ رَبِّهَا  فَأَصْبَحُوا لَا يُرَى إِلَّا مَسَاكِنُهُمْ ۚ

जो अपने परवरदिगार के हुक्म से हर चीज़ को तबाह व बरबाद कर देगी तो वह ऐसे (तबाह) हुए कि उनके घरों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता था

كَذَلِكَ نَجْزِي الْقَوْمَ الْمُجْرِمِينَ

हम गुनाहगारों की यूँ ही सज़ा किया करते हैं

26

وَلَقَدْ مَكَّنَّاهُمْ فِيمَا إِنْ مَكَّنَّاكُمْ فِيهِ

और हमने उनको ऐसे कामों में मक़दूर दिये थे जिनमें तुम्हें (कुछ भी) मक़दूर नहीं दिया

وَجَعَلْنَا لَهُمْ سَمْعًا وَأَبْصَارًا وَأَفْئِدَةً

और उन्हें कान और ऑंख और दिल (सब कुछ दिए थे)

فَمَا أَغْنَى عَنْهُمْ سَمْعُهُمْ وَلَا أَبْصَارُهُمْ وَلَا أَفْئِدَتُهُمْ مِنْ شَيْءٍ إِذْ كَانُوا يَجْحَدُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ

तो चूँकि वह लोग ख़ुदा की आयतों से इन्कार करने लगे तो न उनके कान ही कुछ काम आए और न उनकी ऑंखें और न उनके दिल

وَحَاقَ بِهِمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ

और जिस (अज़ाब) की ये लोग हँसी उड़ाया करते थे उसने उनको हर तरफ से घेर लिया

27

وَلَقَدْ أَهْلَكْنَا مَا حَوْلَكُمْ مِنَ الْقُرَى

और (ऐ अहले मक्का) हमने तुम्हारे इर्द गिर्द की बस्तियों को हलाक कर मारा

وَصَرَّفْنَا الْآيَاتِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ

और (अपनी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ तरह तरह से दिखा दी ताकि ये लोग बाज़ आएँ (मगर कौन सुनता है)

28

فَلَوْلَا نَصَرَهُمُ الَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِ اللَّهِ قُرْبَانًا آلِهَةً ۖ

तो ख़ुदा के सिवा जिन को उन लोगों ने तक़र्रुब (ख़ुदा) के लिए माबूद बना रखा था उन्होंने (अज़ाब के वक्त) उनकी क्यों न मदद की

بَلْ ضَلُّوا عَنْهُمْ ۚ

बल्कि वह तो उनसे ग़ायब हो गये

وَذَلِكَ إِفْكُهُمْ وَمَا كَانُوا يَفْتَرُونَ

और उनके झूठ और उनकी (इफ़तेरा) परदाज़ियों की ये हक़ीक़त थी

29

وَإِذْ صَرَفْنَا إِلَيْكَ نَفَرًا مِنَ الْجِنِّ يَسْتَمِعُونَ الْقُرْآنَ

और जब हमने जिनों में से कई शख़्शों को तुम्हारी तरफ मुतावज्जे किया कि वह दिल लगाकर क़ुरान सुनें

فَلَمَّا حَضَرُوهُ قَالُوا أَنْصِتُوا ۖ

तो जब उनके पास हाज़िर हुए तो एक दुसरे से कहने लगे ख़ामोश बैठे (सुनते) रहो

فَلَمَّا قُضِيَ وَلَّوْا إِلَى قَوْمِهِمْ مُنْذِرِينَ

फिर जब (पढ़ना) तमाम हुआ तो अपनी क़ौम की तरफ़ वापस गए कि (उनको अज़ाब से) डराएं

30

قَالُوا يَا قَوْمَنَا إِنَّا سَمِعْنَا كِتَابًا أُنْزِلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَى مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ

तो उन से कहना शुरू किया कि ऐ भाइयों हम एक किताब सुन आए हैं जो मूसा के बाद नाज़िल हुई है

يَهْدِي إِلَى الْحَقِّ وَإِلَى طَرِيقٍ مُسْتَقِيمٍ

(और) जो किताबें, पहले (नाज़िल हुयीं) हैं उनकी तसदीक़ करती हैं

सच्चे (दीन) और सीधी राह की हिदायत करती हैं

31

يَا قَوْمَنَا أَجِيبُوا دَاعِيَ اللَّهِ وَآمِنُوا بِهِ

ऐ हमारी क़ौम ख़ुदा की तरफ बुलाने वाले की बात मानों और ख़ुदा पर ईमान लाओ

يَغْفِرْ لَكُمْ مِنْ ذُنُوبِكُمْ وَيُجِرْكُمْ مِنْ عَذَابٍ أَلِيمٍ

वह तुम्हारे गुनाह बख्श देगा और (क़यामत) में तुम्हें दर्दनाक अज़ाब से पनाह में रखेगा

32

और जिसने ख़ुदा की तरफ बुलाने वाले की बात न मानी तो (याद रहे कि) वह (ख़ुदा को रूए) ज़मीन में आजिज़ नहीं कर सकता

أُولَئِكَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ  

और न उस के सिवा कोई सरपरस्त होगा यही लोग गुमराही में हैं  

33

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَلَمْ يَعْيَ بِخَلْقِهِنَّ بِقَادِرٍ عَلَى أَنْ يُحْيِيَ الْمَوْتَى ۚ

क्या इन लोगों ने ये ग़ौर नहीं किया कि जिस ख़ुदा ने सारे आसमान और ज़मीन को पैदा किया और उनके पैदा करने से ज़रा भी थका नहीं

वह इस बात पर क़ादिर है कि मुर्दो को ज़िन्दा करेगा

بَلَى إِنَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

हाँ (ज़रूर) वह हर चीज़ पर क़ादिर है

34

وَيَوْمَ يُعْرَضُ الَّذِينَ كَفَرُوا عَلَى النَّارِ

जिस दिन कुफ्फ़ार (जहन्नुम की) आग के सामने पेश किए जाएँगे

أَلَيْسَ هَذَا بِالْحَقِّ ۖ

(तो उन से पूछा जाएगा) क्या अब भी ये बरहक़ नहीं है

قَالُوا بَلَى وَرَبِّنَا ۚ

वह लोग कहेंगे अपने परवरदिगार की क़सम हाँ (हक़ है)

قَالَ فَذُوقُوا الْعَذَابَ بِمَا كُنْتُمْ تَكْفُرُونَ

ख़ुदा फ़रमाएगा तो लो अब अपने इन्कार व कुफ्र के बदले अज़ाब के मज़े चखो

35

فَاصْبِرْ كَمَا صَبَرَ أُولُو الْعَزْمِ مِنَ الرُّسُلِ وَلَا تَسْتَعْجِلْ لَهُمْ ۚ

तो (ऐ रसूल) पैग़म्बरों में से जिस तरह अव्वलुल अज्म (आली हिम्मत), सब्र करते रहे तुम भी सब्र करो और उनके लिए (अज़ाब) की ताज़ील की ख्वाहिश न करो

كَأَنَّهُمْ يَوْمَ يَرَوْنَ مَا يُوعَدُونَ لَمْ يَلْبَثُوا إِلَّا سَاعَةً مِنْ نَهَارٍ ۚ

जिस दिन यह लोग उस कयामत को देखेंगे जिसको उनसे वायदा किया जाता है तो (उनको मालूम होगा कि) गोया ये लोग (दुनिया में) बहुत रहे होगें तो सारे दिन में से एक घड़ी भर

بَلَاغٌ ۚ

(यह कुरान) संदेश है

فَهَلْ يُهْلَكُ إِلَّا الْقَوْمُ الْفَاسِقُونَ

तो बस वही लोग हलाक होंगे जो बदकार थे

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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