Quran Hindi Translation

Surah Al Ahzab

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ اتَّقِ اللَّهَ وَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَالْمُنَافِقِينَ ۗ

ऐ नबी खुदा ही से डरते रहो और काफिरों और मुनाफिक़ों की बात न मानो

إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلِيمًا حَكِيمًا

इसमें शक नहीं कि खुदा बड़ा वाक़िफकार हकीम है।

2

وَاتَّبِعْ مَا يُوحَى إِلَيْكَ مِنْ رَبِّكَ ۚ

और तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तुम्हारे पास जो ''वही'' की जाती है (बस) उसी की पैरवी करो

 إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرًا

तुम लोग जो कुछ कर रहे हो खुदा उससे यक़ीनी अच्छा तरह आगाह है।

3

وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۚ وَكَفَى بِاللَّهِ وَكِيلًا

और खुदा ही पर भरोसा रखो और खुदा ही कारसाजी के लिए काफी है

4

مَا جَعَلَ اللَّهُ لِرَجُلٍ مِنْ قَلْبَيْنِ فِي جَوْفِهِ ۚ

ख़ुदा ने किसी आदमी के सीने में दो दिल नहीं पैदा किये कि (एक ही वक्त दो इरादे कर सके)

وَمَا جَعَلَ أَزْوَاجَكُمُ اللَّائِي تُظَاهِرُونَ مِنْهُنَّ أُمَّهَاتِكُمْ ۚ

और न उसने तुम्हारी बीवियों को जिन से तुम जेहार करते हो तुम्हारी माएँ बना दी

وَمَا جَعَلَ أَدْعِيَاءَكُمْ أَبْنَاءَكُمْ ۚ

और न उसने तुम्हारे लिये पालकों को तुम्हारे बेटे बना दिये।

ذَلِكُمْ قَوْلُكُمْ بِأَفْوَاهِكُمْ ۖ وَاللَّهُ يَقُولُ الْحَقَّ وَهُوَ يَهْدِي السَّبِيلَ

ये तो फ़क़त तुम्हारी मुँह बोली बात (और ज़ुबानी जमा खर्च) है

और (चाहे किसी को बुरी लगे या अच्छी) खुदा तो सच्ची कहता है और सीधी राह दिखाता है।

5

ادْعُوهُمْ لِآبَائِهِمْ هُوَ أَقْسَطُ عِنْدَ اللَّهِ ۚ

लिये पालकों का उनके (असली) बापों के नाम से पुकारा करो यही खुदा के नज़दीक बहुत ठीक है

فَإِنْ لَمْ تَعْلَمُوا آبَاءَهُمْ فَإِخْوَانُكُمْ فِي الدِّينِ وَمَوَالِيكُمْ ۚ

हाँ अगर तुम लोग उनके असली बापों को न जानते हो तो तुम्हारे दीनी भाई और दोस्त हैं

(उन्हें भाई या दोस्त कहकर पुकारा करो)

وَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ فِيمَا أَخْطَأْتُمْ بِهِ وَلَكِنْ مَا تَعَمَّدَتْ قُلُوبُكُمْ ۚ

और हाँ इसमें भूल चूक जाओ तो अलबत्ता उसका तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है

मगर जब तुम दिल से जानबूझ कर करो (तो ज़रूर गुनाह है)

وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا

और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है।

6

النَّبِيُّ أَوْلَى بِالْمُؤْمِنِينَ مِنْ أَنْفُسِهِمْ ۖ  وَأَزْوَاجُهُ أُمَّهَاتُهُمْ ۗ

नबी तो मोमिनीन से खुद उनकी जानों से भी बढ़कर हक़ रखते हैं

(क्योंकि वह गोया उम्मत के मेहरबान बाप हैं)

और उनकी बीवियाँ (गोया) उनकी माएँ हैं

وَأُولُو الْأَرْحَامِ بَعْضُهُمْ أَوْلَى بِبَعْضٍ فِي كِتَابِ اللَّهِ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُهَاجِرِينَ  إِلَّا أَنْ تَفْعَلُوا إِلَى أَوْلِيَائِكُمْ مَعْرُوفًا ۚ

और मोमिनीन व मुहाजिरीन में से (जो लोग बाहम) क़राबतदार हैं। किताबें खुदा की रूह से (ग़ैरों की निस्बत) एक दूसरे के (तर्के के) ज्यादा हक़दार हैं मगर (जब) तुम अपने दोस्तों के साथ सुलूक करना चाहो (तो दूसरी बात है)

كَانَ ذَلِكَ فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا

ये तो किताबे (खुदा) में लिखा हुआ (मौजूद) है

7

وَإِذْ أَخَذْنَا مِنَ النَّبِيِّينَ مِيثَاقَهُمْ وَمِنْكَ وَمِنْ نُوحٍ وَإِبْرَاهِيمَ وَمُوسَى وَعِيسَى ابْنِ مَرْيَمَ ۖ

और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब हमने और पैग़म्बरों से एहदो पैमाने लिया और ख़ास तुमसे

और नूह और इबराहीम और मूसा और मरियम के बेटे ईसा से

وَأَخَذْنَا مِنْهُمْ مِيثَاقًا غَلِيظًا

और उन लोगों से हमने सख्त एहद लिया था  

8

لِيَسْأَلَ الصَّادِقِينَ عَنْ صِدْقِهِمْ ۚ

ताकि (क़यामत के दिन) सच्चों (पैग़म्बरों) से उनकी सच्चाई तबलीग़े रिसालत का हाल दरियाफ्त करें

وَأَعَدَّ لِلْكَافِرِينَ عَذَابًا أَلِيمًا

और काफिरों के वास्ते तो उसने दर्दनाक अज़ाब तैयार ही कर रखा है।  

9

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا نِعْمَةَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ إِذْ جَاءَتْكُمْ جُنُودٌ فَأَرْسَلْنَا عَلَيْهِمْ رِيحًا وَجُنُودًا لَمْ تَرَوْهَا ۚ

(ऐ ईमानदारों खुदा की) उन नेअमतों को याद करो जो उसने तुम पर नाज़िल की हैं (जंगे खन्दक में) जब तुम पर (काफिरों का) लशकर (उमड़ के) आ पड़ा

तो (हमने तुम्हारी मदद की) उन पर ऑंधी भेजी और (इसके अलावा फरिश्तों का ऐसा लश्कर भेजा) जिसको तुमने देखा तक नहीं

وَكَانَ اللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرًا

और तुम जो कुछ कर रहे थे खुदा उसे खूब देख रहा था  

10

إِذْ جَاءُوكُمْ مِنْ فَوْقِكُمْ وَمِنْ أَسْفَلَ مِنْكُمْ

जिस वक्त वह लोग तुम पर तुम्हारे ऊपर से आ पड़े और तुम्हारे नीचे की तरफ से भी पिल गए

وَإِذْ زَاغَتِ الْأَبْصَارُ وَبَلَغَتِ الْقُلُوبُ الْحَنَاجِرَوَتَظُنُّونَ بِاللَّهِ الظُّنُونَا

और जिस वक्त (उनकी कसरत से) तुम्हारी ऑंखें ख़ैरा हो गयीं थी और (ख़ौफ से) कलेजे मुँह को आ गए थे

और ख़ुदा पर तरह-तरह के (बुरे) ख्याल करने लगे थे।

11

هُنَالِكَ ابْتُلِيَ الْمُؤْمِنُونَ وَزُلْزِلُوا زِلْزَالًا شَدِيدًا

यहाँ पर मोमिनों का इम्तिहान लिया गया था और ख़ूब अच्छी तरह झिंझोड़े गए थे।

12

وَإِذْ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ  مَا وَعَدَنَا اللَّهُ وَرَسُولُهُ إِلَّا غُرُورًا

और जिस वक्त मुनाफेक़ीन और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ्र का) मरज़ था कहने लगे थे कि

खुदा ने और उसके रसूल ने जो हमसे वायदे किए थे वह बस बिल्कुल धोखे की टट्टी था।

13

وَإِذْ قَالَتْ طَائِفَةٌ مِنْهُمْ يَا أَهْلَ يَثْرِبَ لَا مُقَامَ لَكُمْ فَارْجِعُوا ۚ

और अब उनमें का एक गिरोह कहने लगा था कि ऐ मदीने वालों अब (दुश्मन के मुक़ाबलें में) तुम्हारे कहीं ठिकाना नहीं तो (बेहतर है कि अब भी) पलट चलो

وَيَسْتَأْذِنُ فَرِيقٌ مِنْهُمُ النَّبِيَّ يَقُولُونَ إِنَّ بُيُوتَنَا عَوْرَةٌ وَمَا هِيَ بِعَوْرَةٍ ۖ

और उनमें से कुछ लोग रसूल से (घर लौट जाने की) इजाज़त माँगने लगे थे कि हमारे घर (मर्दों से) बिल्कुल ख़ाली (गैर महफूज़) पड़े हुए हैं - हालाँकि वह ख़ाली (ग़ैर महफूज़) न थे

إِنْ يُرِيدُونَ إِلَّا فِرَارًا

(बल्कि) वह लोग तो (इसी बहाने से) बस भागना चाहते हैं

14

وَلَوْ دُخِلَتْ عَلَيْهِمْ مِنْ أَقْطَارِهَا ثُمَّ سُئِلُوا الْفِتْنَةَ لَآتَوْهَا وَمَا تَلَبَّثُوا بِهَا إِلَّا يَسِيرًا

और अगर ऐसा ही लश्कर उन लोगों पर मदीने के एतराफ से आ पड़े और उन से फसाद (ख़ाना जंगी) करने की दरख्वास्त की जाए

तो ये लोग उसके लिए (फौरन) आ मौजूद हों

15

وَلَقَدْ كَانُوا عَاهَدُوا اللَّهَ مِنْ قَبْلُ لَا يُوَلُّونَ الْأَدْبَارَ ۚ

और (उस वक्त) अपने घरों में भी बहुत कम तवक्क़ुफ़ करेंगे (मगर ये तो जिहाद है) हालाँकि उन लोगों ने पहले ही खुदा से एहद किया था कि हम दुश्मन के मुक़ाबले में (अपनी) पीठ न फेरेंगे

وَكَانَ عَهْدُ اللَّهِ مَسْئُولًا

और खुदा के एहद की पूछगछ तो (एक न एक दिन) होकर रहेगी

16

قُلْ لَنْ يَنْفَعَكُمُ الْفِرَارُ إِنْ فَرَرْتُمْ مِنَ الْمَوْتِ أَوِ الْقَتْلِ وَإِذًا لَا تُمَتَّعُونَ إِلَّا قَلِيلًا

(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि अगर तुम मौत का क़त्ल (के ख़ौफ) से भागे भी तो (यह) भागना तुम्हें हरगिज़ कुछ भी मुफ़ीद न होगा

और अगर तुम भागकर बच भी गए (तो बस यही) न की दुनिया में चन्द रोज़ा और चैनकर लो

17

قُلْ مَنْ ذَا الَّذِي يَعْصِمُكُمْ مِنَ اللَّهِ إِنْ أَرَادَ بِكُمْ سُوءًا أَوْ أَرَادَ بِكُمْ رَحْمَةً ۚ

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दो कि अगर खुदा तुम्हारे साथ बुराई का इरादा कर बैठे तो तुम्हें उसके (अज़ाब) से कौन ऐसा है जो बचाए

या भलाई ही करना चाहे (तो कौन रोक सकता है)

وَلَا يَجِدُونَ لَهُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا

और ये लोग खुदा के सिवा न तो किसी को अपना सरपरस्त पाएँगे और न मद्दगार

18

قَدْ يَعْلَمُ اللَّهُ الْمُعَوِّقِينَ مِنْكُمْ وَالْقَائِلِينَ لِإِخْوَانِهِمْ هَلُمَّ إِلَيْنَا ۖ

तुममें से जो लोग (दूसरों को जिहाद से) रोकते हैं खुदा उनको खूब जानता है और (उनको भी खूब जानता है) जो अपने भाई बन्दों से कहते हैं कि हमारे पास चले भी आओ

وَلَا يَأْتُونَ الْبَأْسَ إِلَّا قَلِيلًا

और खुद भी (फक़त पीछा छुड़ाने को लड़ाई के खेत) में बस एक ज़रा सा आकर तुमसे अपनी जान चुराई

19

أَشِحَّةً عَلَيْكُمْ ۖ فَإِذَا جَاءَ الْخَوْفُ رَأَيْتَهُمْ يَنْظُرُونَ إِلَيْكَ تَدُورُ أَعْيُنُهُمْ كَالَّذِي يُغْشَى عَلَيْهِ مِنَ الْمَوْتِ ۖ

तुमसे अपनी जान चुराई और चल दिए

और जब (उन पर) कोई ख़ौफ (का मौक़ा) आ पड़ा तो देखते हो कि (आस से) तुम्हारी तरफ देखते हैं

(और) उनकी ऑंखें इस तरह घूमती हैं जैसे किसी शख्स पर मौत की बेहोशी छा जाए

فَإِذَا ذَهَبَ الْخَوْفُ سَلَقُوكُمْ بِأَلْسِنَةٍ حِدَادٍ أَشِحَّةً عَلَى الْخَيْرِ ۚ

फिर वह ख़ौफ (का मौक़ा) जाता रहा और ईमानदारों की फतेह हुई तो माले (ग़नीमत) पर गिरते पड़ते फौरन तुम पर अपनी तेज़ ज़बानों से ताना कसने लगे

 أُولَئِكَ لَمْ يُؤْمِنُوا فَأَحْبَطَ اللَّهُ أَعْمَالَهُمْ ۚ

ये लोग (शुरू) से ईमान ही नहीं लाए (फक़त ज़बानी जमा ख़र्च थी) तो खुदा ने भी इनका किया कराया सब अकारत कर दिया

وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا

और ये तो खुदा के वास्ते एक (निहायत) आसान बात थी

20

يَحْسَبُونَ الْأَحْزَابَ لَمْ يَذْهَبُوا ۖ

(मदीने का मुहासेरा करने वाले चल भी दिए मगर)

ये लोग अभी यही समझ रहे हैं कि (काफ़िरों के) लश्कर अभी नहीं गए

وَإِنْ يَأْتِ الْأَحْزَابُ يَوَدُّوا لَوْ أَنَّهُمْ بَادُونَ فِي الْأَعْرَابِ يَسْأَلُونَ عَنْ أَنْبَائِكُمْ ۖ

और अगर कहीं (कुफ्फार का) लश्कर फिर आ पहुँचे तो ये लोग चाहेंगे कि काश वह जंगलों में गँवारों में जा बसते और (वहीं से बैठे बैठे) तुम्हारे हालात दरयाफ्त करते रहते

وَلَوْ كَانُوا فِيكُمْ مَا قَاتَلُوا إِلَّا قَلِيلًا

और अगर उनको तुम लोगों में रहना पड़ता तो फ़क़त (पीछा छुड़ाने को) ज़रा ज़हूर (कहीं) लड़ते

21

لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِمَنْ كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّهَ كَثِيرًا

(मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते तो खुद रसूल अल्लाह का (ख़न्दक़ में बैठना) एक अच्छा नमूना था (मगर हाँ यह) उस शख्स के वास्ते है जो खुदा और रोजे आखेरत की उम्मीद रखता हो

और खुदा की याद बाकसरत करता हो

22

وَلَمَّا رَأَى الْمُؤْمِنُونَ الْأَحْزَابَ قَالُوا هَذَا مَا وَعَدَنَا اللَّهُ وَرَسُولُهُ  وَصَدَقَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ ۚ

और जब सच्चे ईमानदारों ने (कुफ्फार के) जमघटों को देखा तो (बेतकल्लुफ़) कहने लगे कि

ये वही चीज़ तो है जिसका हम से खुदा ने और उसके रसूल ने वायदा किया था (इसकी परवाह क्या है) और खुदा ने और उसके रसूल ने बिल्कुल ठीक कहा था

وَمَا زَادَهُمْ إِلَّا إِيمَانًا وَتَسْلِيمًا

और (इसके देखने से) उनका ईमानदार और उनकी इताअत और भी ज़िन्दा हो गयी

23

مِنَ الْمُؤْمِنِينَ رِجَالٌ صَدَقُوا مَا عَاهَدُوا اللَّهَ عَلَيْهِ ۖ

ईमानदारों में से कुछ लोग ऐसे भी हैं कि खुदा से उन्होंने (जॉनिसारी का) जो एहद किया था उसे पूरा कर दिखाया

 فَمِنْهُمْ مَنْ قَضَى نَحْبَهُ وَمِنْهُمْ مَنْ يَنْتَظِرُ ۖ وَمَا بَدَّلُوا تَبْدِيلًا

ग़रज़ उनमें से बाज़ वह हैं जो (मर कर) अपना वक्त पूरा कर गए और उनमें से बाज़ (हुक्मे खुदा के) मुन्तज़िर बैठे हैं

और उन लोगों ने (अपनी बात) ज़रा भी नहीं बदली

24

لِيَجْزِيَ اللَّهُ الصَّادِقِينَ بِصِدْقِهِمْ وَيُعَذِّبَ الْمُنَافِقِينَ إِنْ شَاءَ أَوْ يَتُوبَ عَلَيْهِمْ ۚ

ये इम्तेहान इसलिए था ताकि खुद सच्चे (ईमानदारों) को उनकी सच्चाई की जज़ाए ख़ैर दे

और अगर चाहे तो मुनाफेक़ीन की सज़ा करे या (अगर वह लागे तौबा करें तो) खुदा उनकी तौबा कुबूल फरमाए

إِنَّ اللَّهَ كَانَ غَفُورًا رَحِيمًا

इसमें शक नहीं कि खुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

25

وَرَدَّ اللَّهُ الَّذِينَ كَفَرُوا بِغَيْظِهِمْ لَمْ يَنَالُوا خَيْرًا ۚ

और खुदा ने (अपनी कुदरत से) क़ाफिरों को मदीने से फेर दिया (और वह लोग) अपनी झुंझलाहट में (फिर गए) और इन्हें कुछ फायदे भी न हुआ

وَكَفَى اللَّهُ الْمُؤْمِنِينَ الْقِتَالَ ۚ

और खुदा ने (अपनी मेहरबानी से) मोमिनीन को लड़ने की नौबत न आने दी

وَكَانَ اللَّهُ قَوِيًّا عَزِيزًا

और खुदा तो (बड़ा) ज़बरदस्त (और) ग़ालिब हैं

26

وَأَنْزَلَ الَّذِينَ ظَاهَرُوهُمْ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ مِنْ صَيَاصِيهِمْ وَقَذَفَ فِي قُلُوبِهِمُ الرُّعْبَ

और अहले किताब में से जिन लोगों (बनी कुरैज़ा) ने उन (कुफ्फार) की मदद की थी खुदा उनको उनके क़िलों से (बेदख़ल करके) नीचे उतार लाया

और उनके दिलों में (तुम्हारा) ऐसा रोब बैठा दिया

فَرِيقًا تَقْتُلُونَ وَتَأْسِرُونَ فَرِيقًا

कि तुम उनके कुछ लोगों को क़त्ल करने लगे और कुछ को क़ैदी (और गुलाम) बनाने लगे

27

وَأَوْرَثَكُمْ أَرْضَهُمْ وَدِيَارَهُمْ وَأَمْوَالَهُمْ وَأَرْضًا لَمْ تَطَئُوهَا ۚ

और तुम ही लोगों को उनकी ज़मीन और उनके घर और उनके माल और उस ज़मीन (खैबर) का खुदा ने मालिक बना दिया जिसमें तुमने क़दम तक नहीं रखा था

وَكَانَ اللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرًا

और खुदा तो हर चीज़ पर क़ादिर वतवाना है

28

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُلْ لِأَزْوَاجِكَ

ऐ रसूल अपनी बीवियों से कह दो कि

إِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا وَزِينَتَهَا فَتَعَالَيْنَ أُمَتِّعْكُنَّ وَأُسَرِّحْكُنَّ سَرَاحًا جَمِيلًا

अगर तुम (फक़त) दुनियावी ज़िन्दगी और उसकी आराइश व ज़ीनत की ख्वाहॉ हो

तो उधर आओ मैं तुम लोगों को कुछ साज़ो सामान दे दूँ और उनवाने शाइस्ता से रूख़सत कर दूँ

29

وَإِنْ كُنْتُنَّ تُرِدْنَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ وَالدَّارَ الْآخِرَةَ

और अगर तुम लोग खुदा और उसके रसूल और आखेरत के घर की ख्वाहॉ हो

فَإِنَّ اللَّهَ أَعَدَّ لِلْمُحْسِنَاتِ مِنْكُنَّ أَجْرًا عَظِيمًا

तो (अच्छी तरह ख्याल रखो कि) तुम लोगों में से नेकोकार औरतों के लिए खुदा ने यक़ीनन् बड़ा (बड़ा) अज्र व (सवाब) मुहय्या कर रखा है

30

يَا نِسَاءَ النَّبِيِّ مَنْ يَأْتِ مِنْكُنَّ بِفَاحِشَةٍ مُبَيِّنَةٍ يُضَاعَفْ لَهَا الْعَذَابُ ضِعْفَيْنِ ۚ

ऐ पैग़म्बर की बीबियों

तुममें से जो कोई किसी सरीही ना शाइस्ता हरकत की का मुरतिब हुई तो (याद रहे कि) उसका अज़ाब भी दुगना बढ़ा दिया जाएगा

وَكَانَ ذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرًا

और खुदा के वास्ते (निहायत) आसान है

31

وَمَنْ يَقْنُتْ مِنْكُنَّ لِلَّهِ وَرَسُولِهِ وَتَعْمَلْ صَالِحًا نُؤْتِهَا أَجْرَهَا مَرَّتَيْنِ وَأَعْتَدْنَا لَهَا رِزْقًا كَرِيمًا

और तुममें से जो (बीवी) खुदा और उसके रसूल की ताबेदारी अच्छे (अच्छे) काम करेगी उसको हम उसका सवाब भी दोहरा अता करेगें

और हमने उसके लिए (जन्नत में) इज्ज़त की रोज़ी तैयार कर रखी है

32

يَا نِسَاءَ النَّبِيِّ لَسْتُنَّ كَأَحَدٍ مِنَ النِّسَاءِ ۚ

ऐ नबी की बीवियों तुम और मामूली औरतों की सी तो हो वही (बस)

إِنِ اتَّقَيْتُنَّ فَلَا تَخْضَعْنَ بِالْقَوْلِ فَيَطْمَعَ الَّذِي فِي قَلْبِهِ مَرَضٌ وَقُلْنَ قَوْلًا مَعْرُوفًا

अगर तुम को परहेज़गारी मंजूर रहे तो (अजनबी आदमी से) बात करने में नरम नरम (लगी लिपटी) बात न करो ताकि जिसके दिल में (शहवते ज़िना का) मर्ज़ है वह (कुछ और) इरादा (न) करे

और (साफ-साफ) उनवाने शाइस्ता से बात किया करो

33

وَقَرْنَ فِي بُيُوتِكُنَّ وَلَا تَبَرَّجْنَ تَبَرُّجَ الْجَاهِلِيَّةِ الْأُولَى ۖ

और अपने घरों में निचली बैठी रहो और अगले ज़माने जाहिलियत की तरह अपना बनाव सिंगार न दिखाती फिरो

وَأَقِمْنَ الصَّلَاةَ وَآتِينَ الزَّكَاةَ وَأَطِعْنَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ ۚ

और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ा करो और (बराबर) ज़कात दिया करो और खुदा और उसके रसूल की इताअत करो

إِنَّمَا يُرِيدُ اللَّهُ لِيُذْهِبَ عَنْكُمُ الرِّجْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَكُمْ تَطْهِيرًا

(पैग़म्बर के) अहले बैत खुदा तो बस ये चाहता है कि तुमको (हर तरह की) बुराई से दूर रखे

और जो पाक व पाकीज़ा दिखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे

34

وَاذْكُرْنَ مَا يُتْلَى فِي بُيُوتِكُنَّ مِنْ آيَاتِ اللَّهِ وَالْحِكْمَةِ ۚ

और (ऐ नबी की बीबियों) तुम्हारे घरों में जो खुदा की आयतें और (अक़ल व हिकमत की बातें) पढ़ी जाती हैं उनको याद रखो कि

إِنَّ اللَّهَ كَانَ لَطِيفًا خَبِيرًا

बेशक ख़ुदा बड़ा बारीक है वाक़िफकार है

35

إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ وَالْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ

(दिल लगा के सुनो)

मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें और ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतें

وَالْقَانِتِينَ وَالْقَانِتَاتِ وَالصَّادِقِينَ وَالصَّادِقَاتِ

और फरमाबरदार मर्द और फरमाबरदार औरतें और रास्तबाज़ मर्द और रास्तबाज़ औरतें

وَالصَّابِرِينَ وَالصَّابِرَاتِ وَالْخَاشِعِينَ وَالْخَاشِعَاتِ

और सब्र करने वाले मर्द और सब्र करने वाली औरतें और फिरौतनी करने वाले मर्द और फिरौतनी करने वाली औरतें

وَالْمُتَصَدِّقِينَ وَالْمُتَصَدِّقَاتِ وَالصَّائِمِينَ وَالصَّائِمَاتِ

और दान करने वाले मर्द और दान करने वाली औरतें और रोज़ादार मर्द और रोज़ादार औरतें

وَالْحَافِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَالْحَافِظَاتِ وَالذَّاكِرِينَ اللَّهَ كَثِيرًا وَالذَّاكِرَاتِ

और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करने वाले मर्द और हिफाज़त करने वाली औरतें

और खुदा की बकसरत याद करने वाले मर्द और याद करने वाली औरतें

 أَعَدَّ اللَّهُ لَهُمْ مَغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا

बेशक इन सब लोगों के वास्ते खुदा ने मग़फिरत और (बड़ा) सवाब मुहैय्या कर रखा है

36

وَمَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَلَا مُؤْمِنَةٍ إِذَا قَضَى اللَّهُ وَرَسُولُهُ أَمْرًاأَنْ يَكُونَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ أَمْرِهِمْ ۗ

और न किसी ईमानदार मर्द को ये मुनासिब है और न किसी ईमानदार औरत को जब खुदा और उसके रसूल किसी काम का हुक्म दें

तो उनको अपने उस काम (के करने न करने) अख़तेयार हो

وَمَنْ يَعْصِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ ضَلَّ ضَلَالًا مُبِينًا

और (याद रहे कि) जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की नाफरमानी की वह यक़ीनन खुल्लम खुल्ला गुमराही में मुब्तिला हो चुका

37

وَإِذْ تَقُولُ لِلَّذِي أَنْعَمَ اللَّهُ عَلَيْهِ وَأَنْعَمْتَ عَلَيْهِ أَمْسِكْ عَلَيْكَ زَوْجَكَ وَاتَّقِ اللَّهَ

और (ऐ रसूल वह वक्त याद करो) जब तुम उस शख्स (ज़ैद) से कह रहे थे जिस पर खुदा ने एहसान (अलग) किया था और तुमने उस पर (अलग) एहसान किया था

कि अपनी बीबी (ज़ैनब) को अपनी ज़ौज़ियत में रहने दे और खुदा से डरे

وَتُخْفِي فِي نَفْسِكَ مَا اللَّهُ مُبْدِيهِ وَتَخْشَى النَّاسَ وَاللَّهُ أَحَقُّ أَنْ تَخْشَاهُ ۖ

खुद तुम इस बात को अपने दिल में छिपाते थे जिसको (आख़िरकार) खुदा ज़ाहिर करने वाला था

और तुम लोगों से डरते थे हालॉकि खुदा इसका ज्यादा हक़दार है कि तुम उस से डरो

فَلَمَّا قَضَى زَيْدٌ مِنْهَا وَطَرًا زَوَّجْنَاكَهَا لِكَيْ لَا يَكُونَ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ حَرَجٌ فِي أَزْوَاجِ أَدْعِيَائِهِمْ إِذَا قَضَوْا مِنْهُنَّ وَطَرًا ۚ

ग़रज़ जब ज़ैद अपनी हाजत पूरी कर चुका (तलाक़ दे दी) तो हमने (हुक्म देकर) उस औरत (ज़ैनब) का निकाह तुमसे कर दिया

ताकि आम मोमिनीन को अपने ले पालक लड़कों की बीवियों (से निकाह करने) में जब वह अपना मतलब उन औरतों से पूरा कर चुकें (तलाक़ दे दें) किसी तरह की तंगी न रहे

وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ مَفْعُولًا

और खुदा का हुक्म तो किया कराया हुआ (क़तई) होता है

38

مَا كَانَ عَلَى النَّبِيِّ مِنْ حَرَجٍ فِيمَا فَرَضَ اللَّهُ لَهُ ۖ

जो हुक्म खुदा ने पैग़म्बर पर फर्ज क़र दिया (उसके करने) में उस पर कोई मुज़ाएका नहीं

 سُنَّةَ اللَّهِ فِي الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلُ ۚ

जो लोग (उनसे) पहले गुज़र चुके हैं उनके बारे में भी खुदा का (यही) दस्तूर (जारी) रहा है (कि निकाह में तंगी न की)

وَكَانَ أَمْرُ اللَّهِ قَدَرًا مَقْدُورًا

और खुदा का हुक्म तो (ठीक अन्दाज़े से) मुक़र्रर हुआ होता है

39

الَّذِينَ يُبَلِّغُونَ رِسَالَاتِ اللَّهِ وَيَخْشَوْنَهُ وَلَا يَخْشَوْنَ أَحَدًا إِلَّا اللَّهَ ۗ وَكَفَى بِاللَّهِ حَسِيبًا

वह लोग जो खुदा के पैग़ामों को (लोगों तक जूँ का तूँ) पहुँचाते थे और उससे डरते थे और खुदा के सिवा किसी से नहीं डरते थे (फिर तुम क्यों डरते हो)

और हिसाब लेने के वास्ते तो खुद काफ़ी है

40

مَا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَا أَحَدٍ مِنْ رِجَالِكُمْ وَلَكِنْ رَسُولَ اللَّهِ وَخَاتَمَ النَّبِيِّينَ ۗ وَكَانَ اللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا

(लोगों) मोहम्मद तुम्हारे मर्दों में से (हक़ीक़तन) किसी के बाप नहीं हैं (फिर जैद की बीवी क्यों हराम होने लगी) बल्कि अल्लाह के रसूल और नबियों की मोहर (यानी ख़त्म करने वाले) हैं

और खुदा तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ है

41

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا اللَّهَ ذِكْرًا كَثِيرًا

ऐ ईमानवालों बाकसरत खुदा की याद किया करो

42

وَسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا

और सुबह व शाम उसकी तसबीह करते रहो

43

هُوَ الَّذِي يُصَلِّي عَلَيْكُمْ وَمَلَائِكَتُهُ لِيُخْرِجَكُمْ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۚ

वह वही तो है जो खुद तुमपर दूरूद (दर्दों रहमत) भेजता है और उसके फ़रिश्ते

ताकि तुमको (कुफ़्र की) तारीक़ियों से निकालकर (ईमान की) रौशनी में ले जाए

وَكَانَ بِالْمُؤْمِنِينَ رَحِيمًا

और खुदा ईमानवालों पर बड़ा मेहरबान है

44

تَحِيَّتُهُمْ يَوْمَ يَلْقَوْنَهُ سَلَامٌ ۚ

जिस दिन उसकी बारगाह में हाज़िर होंगे (उस दिन) उनकी मुरादात (उसकी तरफ से हर क़िस्म की) सलामती होगी

 وَأَعَدَّ لَهُمْ أَجْرًا كَرِيمًا

और खुदा ने तो उनके वास्ते बहुत अच्छा बदला (बेहश्त) तैयार रखा है

45

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ شَاهِدًا وَمُبَشِّرًا وَنَذِيرًا

ऐ नबी हमने तुमको (लोगों का) गवाह और (नेकों को बेहश्त की) खुशख़बरी देने वाला और बदों को अज़ाब से डराने वाला बनाकर भेजा

46

وَدَاعِيًا إِلَى اللَّهِ بِإِذْنِهِ وَسِرَاجًا مُنِيرًا

और खुदा की तरफ उसी के हुक्म से बुलाने वाला और (ईमान व हिदायत का) रौशन चिराग़

47

وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ بِأَنَّ لَهُمْ مِنَ اللَّهِ فَضْلًا كَبِيرًا

और तुम मोमिनीन को खुशख़बरी दे दो कि उनके लिए खुदा की तरफ से बहुत बड़ी (मेहरबानी और) बख्शिश है

48

وَلَا تُطِعِ الْكَافِرِينَ وَالْمُنَافِقِينَ وَدَعْ أَذَاهُمْ وَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۚ

और (ऐ रसूल) तुम (कहीं) काफिरों और मुनाफिक़ों की इताअत न करना और उनकी ईज़ारसानी का ख्याल छोड़ दो और खुदा पर भरोसा रखो

وَكَفَى بِاللَّهِ وَكِيلًا

और कारसाज़ी में खुदा काफ़ी है

49

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا نَكَحْتُمُ الْمُؤْمِنَاتِ ثُمَّ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِنْ قَبْلِ أَنْ تَمَسُّوهُنَّ فَمَا لَكُمْ عَلَيْهِنَّ مِنْ عِدَّةٍ تَعْتَدُّونَهَا ۖ

ऐ ईमानवालों जब तुम मोमिना औरतों से (बग़ैर मेहर मुक़र्रर किये) निकाह करो उसके बाद उन्हें अपने हाथ लगाने से पहले ही तलाक़ दे दो तो फिर तुमको उनपर कोई हक़ नहीं कि (उनसे) इद्दा पूरा कराओ

فَمَتِّعُوهُنَّ وَسَرِّحُوهُنَّ سَرَاحًا جَمِيلًا

उनको तो कुछ (कपड़े रूपये वग़ैरह) देकर उनवाने शाइस्ता से रूख़सत कर दो

50

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ إِنَّا أَحْلَلْنَا لَكَ أَزْوَاجَكَ اللَّاتِي آتَيْتَ أُجُورَهُنَّ وَمَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ مِمَّا أَفَاءَ اللَّهُ عَلَيْكَ

ऐ नबी हमने तुम्हारे वास्ते तुम्हारी उन बीवियों को हलाल कर दिया है जिनको तुम मेहर दे चुके हो

और तुम्हारी उन लौंडियों को (भी) जो खुदा ने तुमको (बग़ैर लड़े-भिड़े) माले ग़नीमत में अता की है

وَبَنَاتِ عَمِّكَ وَبَنَاتِ عَمَّاتِكَ وَبَنَاتِ خَالِكَ وَبَنَاتِ خَالَاتِكَ اللَّاتِي هَاجَرْنَ مَعَكَ

और तुम्हारे चचा की बेटियाँ और तुम्हारी फूफियों की बेटियाँ और तुम्हारे मामू की बेटियाँ और तुम्हारी ख़ालाओं की बेटियाँ जो तुम्हारे साथ हिजरत करके आयी हैं (हलाल कर दी)

और हर ईमानवाली औरत (भी हलाल कर दी) अगर वह अपने को (बग़ैर मेहर) नबी को दे दें और नबी भी उससे निकाह करना चाहते हों

मगर (ऐ रसूल) ये हुक्म सिर्फ तुम्हारे वास्ते ख़ास है और मोमिनीन के लिए नहीं

 قَدْ عَلِمْنَا مَا فَرَضْنَا عَلَيْهِمْ فِي أَزْوَاجِهِمْ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ لِكَيْلَا يَكُونَ عَلَيْكَ حَرَجٌ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا

और हमने जो कुछ (मेहर या क़ीमत) आम मोमिनीन पर उनकी बीवियों और उनकी लौंडियों के बारे में मुक़र्रर कर दिया है हम खूब जानते हैं और (तुम्हारी रिआयत इसलिए है) ताकि तुमको (बीवियों की तरफ से) कोई दिक्क़त न हो

और खुदा तो बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है

51

تُرْجِي مَنْ تَشَاءُ مِنْهُنَّ وَتُؤْوِي إِلَيْكَ مَنْ تَشَاءُ ۖ

इनमें से जिसको (जब) चाहो अलग कर दो और जिसको (जब तक) चाहो अपने पास रखो

وَمَنِ ابْتَغَيْتَ مِمَّنْ عَزَلْتَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكَ ۚ

और जिन औरतों को तुमने अलग कर दिया था अगर फिर तुम उनके ख्वाहॉ हो तो भी तुम पर कोई मज़ाएक़ा नहीं है

ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ تَقَرَّ أَعْيُنُهُنَّ وَلَا يَحْزَنَّ  وَيَرْضَيْنَ بِمَا آتَيْتَهُنَّ كُلُّهُنَّ ۚ

ये (अख़तेयार जो तुमको दिया गया है) ज़रूर इस क़ाबिल है कि तुम्हारी बीवियों की ऑंखें ठन्डी रहे और आर्जूदा ख़ातिर न हो

और वो कुछ तुम उन्हें दे दो सबकी सब उस पर राज़ी रहें

وَاللَّهُ يَعْلَمُ مَا فِي قُلُوبِكُمْ ۚ

और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है खुदा उसको ख़ुब जानता है

وَكَانَ اللَّهُ عَلِيمًا حَلِيمًا

और खुदा तो बड़ा वाक़िफकार बुर्दबार है

52

لَا يَحِلُّ لَكَ النِّسَاءُ مِنْ بَعْدُ وَلَا أَنْ تَبَدَّلَ بِهِنَّ مِنْ أَزْوَاجٍ وَلَوْ أَعْجَبَكَ حُسْنُهُنَّ إِلَّا مَا مَلَكَتْ يَمِينُكَ ۗ

(ऐ रसूल) अब उन (नौ) के बाद (और) औरतें तुम्हारे वास्ते हलाल नहीं

और न ये जायज़ है कि उनके बदले उनमें से किसी को छोड़कर और बीबियाँ कर लो अगर चे तुमको उनका हुस्न कैसा ही भला (क्यों न) मालूम हो मगर तुम्हारी लौंडियाँ (इस के बाद भी जायज़ हैं)

وَكَانَ اللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ رَقِيبًا

और खुदा तो हर चीज़ का निगरॉ है

53

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَدْخُلُوا بُيُوتَ النَّبِيِّ إِلَّا أَنْ يُؤْذَنَ لَكُمْ إِلَى طَعَامٍ غَيْرَ نَاظِرِينَ إِنَاهُ وَلَكِنْ إِذَا دُعِيتُمْ فَادْخُلُوا

ऐ ईमानदारों तुम लोग पैग़म्बर के घरों में न जाया करो मगर जब तुमको खाने के वास्ते (अन्दर आने की) इजाज़त दी जाए

(लेकिन) उसके पकने का इन्तेज़ार (नबी के घर बैठकर) न करो

 فَإِذَا طَعِمْتُمْ فَانْتَشِرُوا وَلَا مُسْتَأْنِسِينَ لِحَدِيثٍ ۚ

मगर जब तुमको बुलाया जाए तो (ठीक वक्त पर) जाओ

 إِنَّ ذَلِكُمْ كَانَ يُؤْذِي النَّبِيَّ فَيَسْتَحْيِي مِنْكُمْ ۖ  وَاللَّهُ لَا يَسْتَحْيِي مِنَ الْحَقِّ ۚ

और फिर जब खा चुको तो (फौरन अपनी अपनी जगह) चले जाया करो और बातों में न लग जाया करो

क्योंकि इससे पैग़म्बर को अज़ीयत होती है तो वह तुम्हारा लैहाज़ करते हैं

وَإِذَا سَأَلْتُمُوهُنَّ مَتَاعًا فَاسْأَلُوهُنَّ مِنْ وَرَاءِ حِجَابٍ ۚ

और खुदा तो ठीक (ठीक कहने) से झेंपता नहीं

और जब पैग़म्बर की बीवियों से कुछ माँगना हो तो पर्दे के बाहर से माँगा करो

 ذَلِكُمْ أَطْهَرُ لِقُلُوبِكُمْ وَقُلُوبِهِنَّ ۚ

यही तुम्हारे दिलों और उनके दिलों के वास्ते बहुत सफाई की बात है

وَمَا كَانَ لَكُمْ أَنْ تُؤْذُوا رَسُولَ اللَّهِ  وَلَا أَنْ تَنْكِحُوا أَزْوَاجَهُ مِنْ بَعْدِهِ أَبَدًا ۚ

और तुम्हारे वास्ते ये जायज़ नहीं कि रसूले खुदा को (किसी तरह) अज़ीयत दो

और न ये जायज़ है कि तुम उसके बाद कभी उनकी बीवियों से निकाह करो

إِنَّ ذَلِكُمْ كَانَ عِنْدَ اللَّهِ عَظِيمًا

बेशक ये ख़ुदा के नज़दीक बड़ा (गुनाह) है

54

إِنْ تُبْدُوا شَيْئًا أَوْ تُخْفُوهُ فَإِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا

चाहे किसी चीज़ को तुम ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ खुदा तो (बहरहाल) हर चीज़ से यक़ीनी खूब आगाह है

55

لَا جُنَاحَ عَلَيْهِنَّ فِي آبَائِهِنَّ

औरतों पर न अपने बाप दादाओं (के सामने होने) में कुछ गुनाह है

وَلَا أَبْنَائِهِنَّ وَلَا إِخْوَانِهِنَّ وَلَا أَبْنَاءِ إِخْوَانِهِنَّ وَلَا أَبْنَاءِ أَخَوَاتِهِنَّ

और न अपने बेटों के और न अपने भाईयों के और न अपने भतीजों के और अपने भांजों के

وَلَا نِسَائِهِنَّ وَلَا مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُنَّ ۗ

और न अपनी (क़िस्म कि) औरतों के और न अपनी लौंडियों के सामने होने में कुछ गुनाह है

وَاتَّقِينَ اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ شَهِيدًا

(ऐ पैग़म्बर की बीबियों) तुम लोग खुदा से डरती रहो

इसमें कोई शक ही नहीं की खुदा (तुम्हारे आमाल में) हर चीज़ से वाक़िफ़ है

56

إِنَّ اللَّهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ ۚ

इसमें भी शक नहीं कि खुदा और उसके फरिश्ते पैग़म्बर (और उनकी आल) पर दुरूद भेजते हैं

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا

तो ऐ ईमानदारों तुम भी दुरूद भेजते रहो और बराबर सलाम करते रहो

57

إِنَّ الَّذِينَ يُؤْذُونَ اللَّهَ وَرَسُولَهُ لَعَنَهُمُ اللَّهُ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ وَأَعَدَّ لَهُمْ عَذَابًا مُهِينًا

बेशक जो लोग खुदा को और उसके रसूल को अज़ीयत देते हैं उन पर खुदा ने दुनिया और आखेरत (दोनों) में लानत की है

और उनके लिए रूसवाई का अज़ाब तैयार कर रखा है

58

وَالَّذِينَ يُؤْذُونَ الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ بِغَيْرِ مَا اكْتَسَبُوا فَقَدِ احْتَمَلُوا بُهْتَانًا وَإِثْمًا مُبِينًا

और जो लोग ईमानदार मर्द और ईमानदार औरतों को बगैर कुछ किए द्दरे (तोहमत देकर) अज़ीयत देते हैं

तो वह एक बोहतान और सरीह गुनाह का बोझ (अपनी गर्दन पर) उठाते हैं

59

يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ قُلْ لِأَزْوَاجِكَ وَبَنَاتِكَ وَنِسَاءِ الْمُؤْمِنِينَ يُدْنِينَ عَلَيْهِنَّ مِنْ جَلَابِيبِهِنَّ ۚ

ऐ नबी अपनी बीवियों और अपनी लड़कियों और मोमिनीन की औरतों से कह दो

कि (बाहर निकलते वक्त) अपने (चेहरों और गर्दनों) पर अपनी चादरों का घूंघट लटका लिया करें

ذَلِكَ أَدْنَى أَنْ يُعْرَفْنَ فَلَا يُؤْذَيْنَ ۗ وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا

ये उनकी (शराफ़त की) पहचान के वास्ते बहुत मुनासिब है तो उन्हें कोई छेड़ेगा नहीं

और खुदा तो बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

60

لَئِنْ لَمْ يَنْتَهِ الْمُنَافِقُونَ وَالَّذِينَ فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ وَالْمُرْجِفُونَ فِي الْمَدِينَةِ لَنُغْرِيَنَّكَ بِهِمْ

ऐ रसूल मुनाफेक़ीन और वह लोग जिनके दिलों में (कुफ़्र का) मर्ज़ है और जो लोग मदीने में बुरी ख़बरें उड़ाया करते हैं- अगर ये लोग (अपनी शरारतों से) बाज़ न आएंगें तो हम तुम ही को (एक न एक दिन) उन पर मुसल्लत कर देगें

ثُمَّ لَا يُجَاوِرُونَكَ فِيهَا إِلَّا قَلِيلًا

फिर वह तुम्हारे पड़ोस में चन्द रोज़ों के सिवा ठहरने (ही) न पाएँगे

61

مَلْعُونِينَ ۖ أَيْنَمَا ثُقِفُوا أُخِذُوا وَقُتِّلُوا تَقْتِيلًا

लानत के मारे

जहाँ कहीं हत्थे चढ़े पकड़े गए और फिर बुरी तरह मार डाले गए

62

سُنَّةَ اللَّهِ فِي الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلُ ۖ وَلَنْ تَجِدَ لِسُنَّةِ اللَّهِ تَبْدِيلًا

जो लोग पहले गुज़र गए उनके बारे में (भी) खुदा की (यही) आदत (जारी) रही

और तुम खुदा की आदत में हरगिज़ तग़य्युर तबद्दुल न पाओगे

63

يَسْأَلُكَ النَّاسُ عَنِ السَّاعَةِ ۖ

(ऐ रसूल) लोग तुमसे क़यामत के बारे में पूछा करते हैं

 قُلْ إِنَّمَا عِلْمُهَا عِنْدَ اللَّهِ ۚ

(तुम उनसे) कह दो कि उसका इल्म तो बस खुदा को है

وَمَا يُدْرِيكَ لَعَلَّ السَّاعَةَ تَكُونُ قَرِيبًا

और तुम क्या जानो शायद क़यामत क़रीब ही हो

64

إِنَّ اللَّهَ لَعَنَ الْكَافِرِينَ وَأَعَدَّ لَهُمْ سَعِيرًا

ख़ुदा ने क़ाफिरों पर यक़ीनन लानत की है और उनके लिए जहन्नुम को तैयार कर रखा है

65

خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ۖ لَا يَجِدُونَ وَلِيًّا وَلَا نَصِيرًا

जिसमें वह हमेशा अबदल आबाद रहेंगे

न किसी को अपना सरपरस्त पाएँगे न मद्दगार

66

يَوْمَ تُقَلَّبُ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ يَقُولُونَ يَا لَيْتَنَا أَطَعْنَا اللَّهَ وَأَطَعْنَا الرَّسُولَا

जिस दिन उनके मुँह जहन्नुम की तरफ फेर दिए जाएँगें तो उस दिन अफ़सोसनाक लहजे में कहेंगे

ऐ काश हमने खुदा की इताअत की होती और रसूल का कहना माना होता

67

وَقَالُوا رَبَّنَا إِنَّا أَطَعْنَا سَادَتَنَا وَكُبَرَاءَنَا فَأَضَلُّونَا السَّبِيلَا

और कहेंगे कि परवरदिगारहमने अपने सरदारों अपने बड़ों का कहना माना तो उन्हों ही ने हमें गुमराह कर दिया

68

رَبَّنَا آتِهِمْ ضِعْفَيْنِ مِنَ الْعَذَابِ وَالْعَنْهُمْ لَعْنًا كَبِيرًا

परवरदिगारा (हम पर तो अज़ाब सही है मगर) उन लोगों पर दोहरा अज़ाब नाज़िल कर और उन पर बड़ी से बड़ी लानत कर

69

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَكُونُوا كَالَّذِينَ آذَوْا مُوسَى فَبَرَّأَهُ اللَّهُ مِمَّا قَالُوا ۚ

ऐ ईमानवालों (ख़बरदार कहीं) तुम लोग भी उनके से न हो जाना जिन्होंने मूसा को तकलीफ दी तो खुदा ने उनकी तोहमतों से मूसा को बरी कर दिया

وَكَانَ عِنْدَ اللَّهِ وَجِيهًا

और मूसा खुदा के नज़दीक एक रवादार इज्ज़त करने वाले (पैग़म्बर) थे

70

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَقُولُوا قَوْلًا سَدِيدًا

ऐ ईमानवालों खुदा से डरते रहो और (जब कहो तो) दुरूस्त बात कहा करो

71

يُصْلِحْ لَكُمْ أَعْمَالَكُمْ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ

तो खुदा तुम्हारी कारगुज़ारियों को दुरूस्त कर देगा और तुम्हारे गुनाह बख्श देगा

وَمَنْ يُطِعِ اللَّهَ وَرَسُولَهُ فَقَدْ فَازَ فَوْزًا عَظِيمًا

और जिस शख्स ने खुदा और उसके रसूल की इताअत की वह तो अपनी मुराद को खूब अच्छी तरह पहुँच गया

72

إِنَّا عَرَضْنَا الْأَمَانَةَ عَلَى السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَالْجِبَالِ فَأَبَيْنَ أَنْ يَحْمِلْنَهَا وَأَشْفَقْنَ مِنْهَا وَحَمَلَهَا الْإِنْسَانُ ۖ

बेशक हमने (रोज़े अज़ल) अपनी अमानत (इताअत इबादत) को सारे आसमान और ज़मीन पहाड़ों के सामने पेश किया तो उन्होंने उसके (बार) उठाने से इन्कार किया और उससे डर गए और आदमी ने उसे (बे ताम्मुल) उठा लिया

إِنَّهُ كَانَ ظَلُومًا جَهُولًا

बेशक इन्सान (अपने हक़ में) बड़ा ज़ालिम (और) नादान है

73

لِيُعَذِّبَ اللَّهُ الْمُنَافِقِينَ وَالْمُنَافِقَاتِ وَالْمُشْرِكِينَ وَالْمُشْرِكَاتِ وَيَتُوبَ اللَّهُ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ ۗ

इसका नतीजा यह हुआ कि खुदा मुनाफिक़ मर्दों और मुनाफिक़ औरतों और मुशरिक मर्दों और मुशरिक औरतों को (उनके किए की) सज़ा देगा

और ईमानदार मर्दों और ईमानदार औरतों की (तक़सीर अमानत की) तौबा क़ुबूल फरमाएगा

وَكَانَ اللَّهُ غَفُورًا رَحِيمًا

और खुदा तो बड़ा बख़शने वाला मेहरबान है

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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