Quran Hindi TranslationSurah Al SajdahTranslation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan |
1 |
الم अलिफ़ लाम मीम |
2 |
تَنْزِيلُ الْكِتَابِ لَا رَيْبَ فِيهِ مِنْ رَبِّ الْعَالَمِينَ इसमे कुछ शक नहीं कि किताब क़ुरान का नाज़िल करना सारे जहाँ के परवरदिगार की तरफ से है |
3 |
أَمْ يَقُولُونَ افْتَرَاهُ ۚ क्या ये लोग ये कहते हैं कि इसको इस शख्स (रसूल) ने अपनी जी से गढ़ लिया है بَلْ هُوَ الْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أَتَاهُمْ مِنْ نَذِيرٍ مِنْ قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ नहीं ये बिल्कुल तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से बरहक़ है ताकि तुम उन लोगों को (ख़ुदा के अज़ाब से) डराओ जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं ताकि ये लोग राह पर आएँ |
4 |
اللَّهُ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا فِي سِتَّةِ أَيَّامٍ ثُمَّ اسْتَوَى عَلَى الْعَرْشِ ۖ ख़ुदा ही तो है जिसने सारे आसमान और ज़मीन और जितनी चीज़े इन दोनो के दरमियान हैं छह: दिन में पैदा की फिर अर्श (के बनाने) पर आमादा हुआ مَا لَكُمْ مِنْ دُونِهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا شَفِيعٍ ۚ उसके सिवा न कोई तुम्हारा सरपरस्त है न कोई सिफारिशी أَفَلَا تَتَذَكَّرُونَ तो क्या तुम (इससे भी) नसीहत व इबरत हासिल नहीं करते |
5 |
يُدَبِّرُ الْأَمْرَ مِنَ السَّمَاءِ إِلَى الْأَرْضِ ثُمَّ يَعْرُجُ إِلَيْهِ فِي يَوْمٍ كَانَ مِقْدَارُهُ أَلْفَ سَنَةٍ مِمَّا تَعُدُّونَ आसमान से ज़मीन तक के हर अम्र का वही मुद्ब्बिर (व मुन्तज़िम) है फिर ये बन्दोबस्त उस दिन जिस की मिक़दार तुम्हारे शुमार से हज़ार बरस से होगी उसी की बारगाह में पेश होगा |
6 |
ذَلِكَ عَالِمُ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ الْعَزِيزُ الرَّحِيمُ वही (मुदब्बिर) पोशीदा और ज़ाहिर का जानने वाला (सब पर) ग़ालिब मेहरबान है |
7 |
الَّذِي أَحْسَنَ كُلَّ شَيْءٍ خَلَقَهُ ۖ वह (क़ादिर) जिसने जो चीज़ बनाई (निख सुख से) ख़ूब (दुरुस्त) बनाई وَبَدَأَ خَلْقَ الْإِنْسَانِ مِنْ طِينٍ और इन्सान की इबतेदाई ख़िलक़त मिट्टी से की |
8 |
ثُمَّ جَعَلَ نَسْلَهُ مِنْ سُلَالَةٍ مِنْ مَاءٍ مَهِينٍ उसकी नस्ल (इन्सानी जिस्म के) खुलासा यानी (नुत्फे के से) ज़लील पानी से बनाई |
9 |
ثُمَّ سَوَّاهُ وَنَفَخَ فِيهِ مِنْ رُوحِهِ ۖ फिर उस (के पुतले) को दुरुस्त किया और उसमें अपनी तरफ से रुह फूँकी وَجَعَلَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۚ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ और तुम लोगों के (सुनने के) लिए कान और (देखने के लिए) ऑंखें और (समझने के लिए) दिल बनाएँ (इस पर भी) तुम लोग बहुत कम शुक्र करते हो |
10 |
وَقَالُوا أَإِذَا ضَلَلْنَا فِي الْأَرْضِ أَإِنَّا لَفِي خَلْقٍ جَدِيدٍ ۚ और ये लोग कहते हैं कि जब हम ज़मीन में नापैद हो जाएँगे तो क्या हम फिर नया जन्म लेगे بَلْ هُمْ بِلِقَاءِ رَبِّهِمْ كَافِرُونَ (क़यामत से नही) बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार के (सामने हुज़ूरी ही) से इन्कार रखते हैं |
11 |
قُلْ يَتَوَفَّاكُمْ مَلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَى رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि मल्कुलमौत जो तुम्हारे ऊपर तैनात है वही तुम्हारी रुहें क़ब्ज़ करेगा उसके बाद तुम सबके सब अपने परवरदिगार की तरफ लौटाए जाओगे |
12 |
وَلَوْ تَرَى إِذِ الْمُجْرِمُونَ نَاكِسُو رُءُوسِهِمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ और (ऐ रसूल) तुम को बहुत अफसोस होगा अगर तुम मुजरिमों को देखोगे कि वह (हिसाब के वक्त) अपने परवरदिगार की बारगाह में अपने सर झुकाए खड़े हैं رَبَّنَا أَبْصَرْنَا وَسَمِعْنَا فَارْجِعْنَا نَعْمَلْ صَالِحًا إِنَّا مُوقِنُونَ और (अर्ज़ कर रहे हैं) परवरदिगार हमने अच्छी तरह देखा और सुन लिया तू हमें दुनिया में एक दफा फिर लौटा दे कि हम नेक काम करें |
13 |
وَلَوْ شِئْنَا لَآتَيْنَا كُلَّ نَفْسٍ هُدَاهَا और (ख़ुदा फरमाएगा कि) अगर हम चाहते तो दुनिया ही में हर शख़्श को (मजबूर करके) राहे रास्त पर ले आते وَلَكِنْ حَقَّ الْقَوْلُ مِنِّي لَأَمْلَأَنَّ جَهَنَّمَ مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ मगर मेरी तरफ से (रोजे अज़ा) ये बात क़रार पा चुकी है कि मै जहन्नुम को जिन्नात और आदमियों से भर दूँगा |
14 |
فَذُوقُوا بِمَا نَسِيتُمْ لِقَاءَ يَوْمِكُمْ هَذَا إِنَّا نَسِينَاكُمْ ۖ तो चूँकि तुम आज के दिन हुज़ूरी को भूले बैठे थे तो अब उसका मज़ा चखो हमने तुमको क़सदन भुला दिया وَذُوقُوا عَذَابَ الْخُلْدِ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ और जैसी जैसी तुम्हारी करतूतें थीं (उनके बदले) अब हमेशा के अज़ाब के मज़े चखो |
15 |
إِنَّمَا يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا الَّذِينَ إِذَا ذُكِّرُوا بِهَا خَرُّوا سُجَّدًا हमारी आयतों पर ईमान बस वही लोग लाते हैं कि जिस वक्त उन्हें वह (आयते) याद दिलायी गयीं तो फौरन सजदे में गिर पड़ने وَسَبَّحُوا بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَهُمْ لَا يَسْتَكْبِرُونَ ۩ और अपने परवरदिगार की हम्दो सना की तस्बीह पढ़ने लगे और ये लोग तकब्बुर नही करते (सजदा) |
16 |
تَتَجَافَى جُنُوبُهُمْ عَنِ الْمَضَاجِعِ يَدْعُونَ رَبَّهُمْ خَوْفًا وَطَمَعًا وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ (रात) के वक्त उनके पहलू बिस्तरों से आशना नहीं होते और (अज़ाब के) ख़ौफ और (रहमत की) उम्मीद पर अपने परवरदिगार की इबादत करते हैं और हमने जो कुछ उन्हें अता किया है उसमें से (ख़ुदा की) राह में ख़र्च करते हैं |
17 |
فَلَا تَعْلَمُ نَفْسٌ مَا أُخْفِيَ لَهُمْ مِنْ قُرَّةِ أَعْيُنٍ جَزَاءً بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ उसको कोई शख़्श नहीं जानता कि कैसी कैसी ऑंखों की ठन्डक उनके लिए ढकी छिपी रखी है उन लोगों की कारगुज़ारियों के बदले में |
18 |
أَفَمَنْ كَانَ مُؤْمِنًا كَمَنْ كَانَ فَاسِقًا ۚ لَا يَسْتَوُونَ तो क्या जो शख़्श ईमानदार है उस शख़्श के बराबर हो जाएगा जो बदकार है (हरगिज़ नहीं) ये दोनों बराबर नही हो सकते |
19 |
أَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ فَلَهُمْ جَنَّاتُ الْمَأْوَى نُزُلًا بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ लेकिन जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे अच्छे काम किए उनके लिए तो रहने सहने के लिए (बेहश्त के) बाग़ात हैं ये सामाने ज़ियाफ़त उन कारगुज़ारियों का बदला है जो वह (दुनिया में) कर चुके थे |
20 |
وَأَمَّا الَّذِينَ فَسَقُوا فَمَأْوَاهُمُ النَّارُ ۖ और जिन लोगों ने बदकारी की उनका ठिकाना तो (बस) जहन्नुम है كُلَّمَا أَرَادُوا أَنْ يَخْرُجُوا مِنْهَا أُعِيدُوا فِيهَا وَقِيلَ لَهُمْ ذُوقُوا عَذَابَ النَّارِ الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تُكَذِّبُونَ वह जब उसमें से निकल जाने का इरादा करेंगे तो उसी में फिर ढकेल दिए जाएँगे और उन से कहा जाएगा कि दोज़ख़ के जिस अज़ाब को तुम झुठलाते थे अब उसके मज़े चखो |
21 |
وَلَنُذِيقَنَّهُمْ مِنَ الْعَذَابِ الْأَدْنَى دُونَ الْعَذَابِ الْأَكْبَرِ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ और हम यक़ीनी (क़यामत के) बड़े अज़ाब से पहले दुनिया के (मामूली) अज़ाब का मज़ा चखाएँगें जो अनक़रीब होगा ताकि ये लोग अब भी (मेरी तरफ) रुज़ू करें |
22 |
وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ ذُكِّرَ بِآيَاتِ رَبِّهِ ثُمَّ أَعْرَضَ عَنْهَا ۚ उससे बढ़कर और ज़ालिम कौन होगा कि जिस शख़्श को उसके परवरदिगार की आयतें याद दिलायी जाएँ और वह उनसे मुँह फेर ले إِنَّا مِنَ الْمُجْرِمِينَ مُنْتَقِمُونَ हम गुनाहगारों से इन्तक़ाम लेगें और ज़रुर लेंगे |
23 |
وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ فَلَا تَكُنْ فِي مِرْيَةٍ مِنْ لِقَائِهِ ۖ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِبَنِي إِسْرَائِيلَ और (ऐ रसूल) हमने तो मूसा को भी (आसमानी किताब) तौरेत अता की थी तुम भी इस किताब (कुरान) के (अल्लाह की तरफ से) मिलने में शक में न पड़े रहो और हमने इस (तौरेत) तो तुम को भी बनी इसराईल के लिए रहनुमा क़रार दिया था |
24 |
وَجَعَلْنَا مِنْهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا لَمَّا صَبَرُوا ۖ وَكَانُوا بِآيَاتِنَا يُوقِنُونَ और उन्ही (बनी इसराईल) में से हमने कुछ लोगों को चूंकि उन्होंने (मुसीबतों पर) सब्र किया था पेशवा बनाया जो हमारे हुक्म से (लोगो की) हिदायत करते थे और (इसके अलावा) हमारी आयतो का दिल से यक़ीन रखते थे |
25 |
إِنَّ رَبَّكَ هُوَ يَفْصِلُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ (ऐ रसूल) हसमें शक़ नहीं कि जिन बातों में लोग (दुनिया में) बाहम झगड़ते रहते हैं क़यामत के दिन तुम्हारा परवरदिगार क़तई फैसला कर देगा |
26 |
أَوَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا مِنْ قَبْلِهِمْ مِنَ الْقُرُونِ يَمْشُونَ فِي مَسَاكِنِهِمْ ۚ क्या उन लोगों को ये मालूम नहीं कि हमने उनसे पहले कितनी उम्मतों को हलाक कर डाला जिन के घरों में ये लोग चल फिर रहें हैं إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ ۖ أَفَلَا يَسْمَعُونَ बेशक उसमे (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं तो क्या ये लोग सुनते नहीं हैं |
27 |
أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّا نَسُوقُ الْمَاءَ إِلَى الْأَرْضِ الْجُرُزِ क्या इन लोगों ने इस पर भी ग़ौर नहीं किया कि हम चटियल मैदान (इफ़तादा) ज़मीन की तरफ पानी को जारी करते हैं فَنُخْرِجُ بِهِ زَرْعًا تَأْكُلُ مِنْهُ أَنْعَامُهُمْ وَأَنْفُسُهُمْ ۖ أَفَلَا يُبْصِرُونَ फिर उसके ज़रिए से हम घास पात लगाते हैं जिसे उनके जानवर और ये ख़ुद भी खाते हैं तो क्या ये लोग इतना भी नहीं देखते |
28 |
وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْفَتْحُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ और ये लोग कहते है कि अगर तुम लोग सच्चे हो (कि क़यामत आएगी) तो (आख़िर) ये फैसला कब होगा |
29 |
قُلْ يَوْمَ الْفَتْحِ لَا يَنْفَعُ الَّذِينَ كَفَرُوا إِيمَانُهُمْ وَلَا هُمْ يُنْظَرُونَ (ऐ रसूल) तुम कह दो कि फैसले के दिन कुफ्फ़ार को उनका ईमान लाना कुछ काम न आएगा और न उनको (इसकी) मोहलत दी जाएगी |
30 |
فَأَعْرِضْ عَنْهُمْ وَانْتَظِرْ إِنَّهُمْ مُنْتَظِرُونَ ग़रज़ तुम उनकी बातों का ख्याल छोड़ दो और तुम मुन्तज़िर रहो (आख़िर) वह लोग भी तो इन्तज़ार कर रहे हैं ********* |
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