Quran Hindi Translation

Surah Al Qasas

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

طسم

ता सीन मीम  

2

تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ

(ऐ रसूल) ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें हैं

3

نَتْلُو عَلَيْكَ مِنْ نَبَإِ مُوسَى وَفِرْعَوْنَ بِالْحَقِّ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ 

(जिसमें) हम तुम्हारें सामने मूसा और फिरऔन का वाक़िया ईमानदार लोगों के नफ़े के वास्ते ठीक ठीक बयान करते हैं

4

‏إِنَّ فِرْعَوْنَ عَلَا فِي الْأَرْضِ وَجَعَلَ أَهْلَهَا شِيَعًا يَسْتَضْعِفُ طَائِفَةً مِنْهُمْ يُذَبِّحُ أَبْنَاءَهُمْ وَيَسْتَحْيِي نِسَاءَهُمْ ۚ

बेशक फिरऔन ने (मिस्र की) सरज़मीन में बहुत सर उठाया था और उसने वहाँ के रहने वालों को कई गिरोह कर दिया था उनमें से एक गिरोह (बनी इसराइल) को आजिज़ कर रखा थ

कि उनके बेटों को ज़बाह करवा देता था और उनकी औरतों (बेटियों) को ज़िन्दा छोड़ देता था

إِنَّهُ كَانَ مِنَ الْمُفْسِدِينَ  

बेशक वह भी मुफ़सिदों में था

5

وَنُرِيدُ أَنْ نَمُنَّ عَلَى الَّذِينَ اسْتُضْعِفُوا فِي الْأَرْضِ وَنَجْعَلَهُمْ أَئِمَّةً وَنَجْعَلَهُمُ الْوَارِثِينَ  

और हम तो ये चाहते हैं कि जो लोग रुए ज़मीन में कमज़ोर कर दिए गए हैं उनपर एहसान करे

और उन्हींको (लोगों का) पेशवा बनाएँ और उन्हीं को इस (सरज़मीन) का मालिक बनाएँ

6

وَنُمَكِّنَ لَهُمْ فِي الْأَرْضِ وَنُرِيَ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا مِنْهُمْ مَا كَانُوا يَحْذَرُونَ  

और उन्हीं को रुए ज़मीन पर पूरी क़ुदरत अता करे

और फिरऔन और हामान और उन दोनों के लश्करो को उन्हीं कमज़ोरों के हाथ से वह चीज़ें दिखायें जिससे ये लोग डरते थे

7

وَأَوْحَيْنَا إِلَى أُمِّ مُوسَى أَنْ أَرْضِعِيهِ ۖ

और हमने मूसा की माँ के पास ये वही भेजी कि तुम उसको दूध पिला लो

 فَإِذَا خِفْتِ عَلَيْهِ فَأَلْقِيهِ فِي الْيَمِّ وَلَا تَخَافِي وَلَا تَحْزَنِي ۖ

फिर जब उसकी निस्बत तुमको कोई ख़ौफ हो तो इसको (एक सन्दूक़ में रखकर) दरिया में डाल दो और (उस पर) तुम कुछ न डरना और न कुढ़ना

إِنَّا رَادُّوهُ إِلَيْكِ وَجَاعِلُوهُ مِنَ الْمُرْسَلِينَ  

(तुम इतमेनान रखो)

हम उसको फिर तुम्हारे पास पहुँचा देगें और उसको (अपना) रसूल बनाएँगें

8

فَالْتَقَطَهُ آلُ فِرْعَوْنَ لِيَكُونَ لَهُمْ عَدُوًّا وَحَزَنًا ۗ

(ग़रज़ मूसा की माँ ने दरिया में डाल दिया)

वह सन्दूक़ बहते बहते फिरऔन के महल के पास आ लगा तो फिरऔन के लोगों ने उसे उठा लिया ताकि (एक दिन यही) उनका दुश्मन और उनके राज का बायस बने

إِنَّ فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَجُنُودَهُمَا كَانُوا خَاطِئِينَ  

इसमें शक नहीं कि फिरऔन और हामान उन दोनों के लश्कर ग़लती पर थे  

9

وَقَالَتِ امْرَأَتُ فِرْعَوْنَ قُرَّتُ عَيْنٍ لِي وَلَكَ ۖ

और (जब मूसा महल में लाए गए तो) फिरऔन की बीबी (आसिया अपने शौहर से) बोली कि ये मेरी और तुम्हारी (दोनों की) ऑंखों की ठन्डक है

لَا تَقْتُلُوهُ عَسَى أَنْ يَنْفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا

तो तुम लोग इसको क़त्ल न करो क्या अजब है कि ये हमको नफ़ा पहुँचाए या हम उसे ले पालक ही बना लें

وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ  

और उन्हें (उसी के हाथ से बर्बाद होने की) ख़बर न थी  

10

وَأَصْبَحَ فُؤَادُ أُمِّ مُوسَى فَارِغًا ۖ

इधर तो ये हो रहा था और (उधर) मूसा की माँ का दिल ऐसा बेचैन हो गया

إِنْ كَادَتْ لَتُبْدِي بِهِ لَوْلَا أَنْ رَبَطْنَا عَلَى قَلْبِهَا  لِتَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ  

कि अगर हम उसके दिल को मज़बूत कर देते तो क़रीब था कि मूसा का हाल ज़ाहिर कर देती

(और हमने इसीलिए ढारस दी) ताकि वह (हमारे वायदे का) यक़ीन रखे

11

وَقَالَتْ لِأُخْتِهِ قُصِّيهِ ۖ

और मूसा की माँ ने (दरिया में डालते वक्त) उनकी बहन (कुलसूम) से कहा कि तुम इसके पीछे पीछे (अलग) चली जाओ

 فَبَصُرَتْ بِهِ عَنْ جُنُبٍ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ  

तो वह मूसा को दूर से देखती रही और उन लोगो को उसकी ख़बर भी न हुई

12

وَحَرَّمْنَا عَلَيْهِ الْمَرَاضِعَ مِنْ قَبْلُ فَقَالَتْ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَى أَهْلِ بَيْتٍ يَكْفُلُونَهُ لَكُمْ وَهُمْ لَهُ نَاصِحُونَ  

और हमने मूसा पर पहले ही से और दाईयों (के दूध) को हराम कर दिया था (कि किसी की छाती से मुँह न लगाया)

तब मूसा की बहन बोली भला मै तुम्हें एक घराने का पता बताऊ कि वह तुम्हारी ख़ातिर इस बच्चे की परवरिश कर देंगे और वह यक़ीनन इसके खैरख्वाह होगे

13

 ‏فَرَدَدْنَاهُ إِلَى أُمِّهِ كَيْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ

ग़रज़ (इस तरकीब से) हमने मूसा को उसकी माँ तक फिर पहुँचा दिया ताकि उसकी ऑंख ठन्डी हो जाए और रंज न करे

وَلِتَعْلَمَ أَنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ  

और ताकि समझ ले ख़ुदा का वायदा बिल्कुल ठीक है मगर उनमें के अक्सर नहीं जानते हैं

14

وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ وَاسْتَوَى آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا ۚ وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ  

और जब मूसा अपनी जवानी को पहुँचे और (हाथ पाँव निकाल के) दुरुस्त हो गए तो हमने उनको हिकमत और इल्म अता किया

और नेकी करने वालों को हम यूँ जज़ाए खैर देते हैं

15

وَدَخَلَ الْمَدِينَةَ عَلَى حِينِ غَفْلَةٍ مِنْ أَهْلِهَا  فَوَجَدَ فِيهَا رَجُلَيْنِ يَقْتَتِلَانِ هَذَا مِنْ شِيعَتِهِ وَهَذَا مِنْ عَدُوِّهِ ۖ

और एक दिन इत्तिफाक़न मूसा शहर में ऐसे वक्त अाए कि वहाँ के लोग (नींद की) ग़फलत में पडे हुए थे तो देखा कि वहाँ दो आदमी आपस में लड़े मरते हैं

ये (एक) तो उनकी क़ौम (बनी इसराइल) में का है और वह (दूसरा) उनके दुश्मन की क़ौम (क़िब्ती) का है

فَاسْتَغَاثَهُ الَّذِي مِنْ شِيعَتِهِ عَلَى الَّذِي مِنْ عَدُوِّهِ  فَوَكَزَهُ مُوسَى فَقَضَى عَلَيْهِ ۖ

तो जो शख्स उनकी क़ौम का था उसने उस शख्स से जो उनके दुश्मनों में था (ग़लबा हासिल करने के लिए) मूसा से मदद माँगी

ये सुनते ही मूसा ने उसे एक घूसा मारा था कि उसका काम तमाम हो गया

قَالَ هَذَا مِنْ عَمَلِ الشَّيْطَانِ ۖ  إِنَّهُ عَدُوٌّ مُضِلٌّ مُبِينٌ  

फिर (ख्याल करके) कहने लगे ये शैतान का काम था

इसमें शक नहीं कि वह दुश्मन और खुल्लम खुल्ला गुमराह करने वाला है

16

قَالَ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي فَاغْفِرْ لِي

(फिर बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार बेशक मैने अपने ऊपर आप ज़ुल्म किया (कि इस शहर में आया) तो तू मुझे (दुश्मनों से) पोशीदा रख-

فَغَفَرَ لَهُ ۚ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ

ग़रज़ ख़ुदा ने उन्हें पोशीदा रखा

इसमें तो शक नहीं कि वह बड़ा पोशीदा रखने वाला मेहरबान है

17

قَالَ رَبِّ بِمَا أَنْعَمْتَ عَلَيَّ فَلَنْ أَكُونَ ظَهِيرًا لِلْمُجْرِمِينَ  

मूसा ने अर्ज क़ी परवरदिगार चूँकि तूने मुझ पर एहसान किया है मै भी आइन्दा गुनाहगारों का हरगिज़ मदद गार न बनूगाँ

18

فَأَصْبَحَ فِي الْمَدِينَةِ خَائِفًا يَتَرَقَّبُ فَإِذَا الَّذِي اسْتَنْصَرَهُ بِالْأَمْسِ يَسْتَصْرِخُهُ ۚ

ग़रज़ (रात तो जो त्यों गुज़री) सुबह को उम्मीदो बीम की हालत में मूसा शहर में गए तो क्या देखते हैं

कि वही शख्स जिसने कल उनसे मदद माँगी थी उनसे (फिर) फरियाद कर रहा है-

قَالَ لَهُ مُوسَى إِنَّكَ لَغَوِيٌّ مُبِينٌ  

मूसा ने उससे कहा बेशक तू यक़ीनी खुल्लम खुल्ला गुमराह है

19

فَلَمَّا أَنْ أَرَادَ أَنْ يَبْطِشَ بِالَّذِي هُوَ عَدُوٌّ لَهُمَا قَالَ يَا مُوسَى أَتُرِيدُ أَنْ تَقْتُلَنِي كَمَا قَتَلْتَ نَفْسًا بِالْأَمْسِ ۖ

ग़रज़ जब मूसा ने चाहा कि उस शख्स पर जो दोनों का दुश्मन था (छुड़ाने के लिए) हाथ बढ़ाएँ

तो क़िब्ती कहने लगा कि ऐ मूसा जिस तरह तुमने कल एक आदमी को मार डाला (उसी तरह) मुझे भी मार डालना चाहते हो

إِنْ تُرِيدُ إِلَّا أَنْ تَكُونَ جَبَّارًا فِي الْأَرْضِ وَمَا تُرِيدُ أَنْ تَكُونَ مِنَ الْمُصْلِحِينَ  

तो तुम बस ये चाहते हो कि रुए ज़मीन में सरकश बन कर रहो

और मसलह (क़ौम) बनकर रहना नहीं चाहते

20

وَجَاءَ رَجُلٌ مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ يَسْعَى

और एक शख्स शहर के उस किनारे से डराता हुआ आया

 قَالَ يَا مُوسَى إِنَّ الْمَلَأَ يَأْتَمِرُونَ بِكَ لِيَقْتُلُوكَ فَاخْرُجْ إِنِّي لَكَ مِنَ النَّاصِحِينَ  

और (मूसा से) कहने लगा मूसा (तुम ये यक़ीन जानो कि शहर के) बड़े बड़े आदमी तुम्हारे आदमी तुम्हारे बारे में मशवरा कर रहे हैं कि तुमको कत्ल कर डालें तो तुम (शहर से) निकल भागो

मै तुमसे ख़ैरख्वाहाना (भलाइ के लिए) कहता हूँ

21

فَخَرَجَ مِنْهَا خَائِفًا يَتَرَقَّبُ ۖ

ग़रज़ मूसा वहाँ से उम्मीद व बीम की हालत में निकल खडे हुए

قَالَ رَبِّ نَجِّنِي مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ  

और (बारगाहे ख़ुदा में) अर्ज़ की परवरदिगार मुझे ज़ालिम लोगों (के हाथ) से नजात दे  

22

وَلَمَّا تَوَجَّهَ تِلْقَاءَ مَدْيَنَ قَالَ عَسَى رَبِّي أَنْ يَهْدِيَنِي سَوَاءَ السَّبِيلِ  

और जब मदियन की तरफ रुख़ किया (और रास्ता मालूम न था) तो आप ही आप बोले

मुझे उम्मीद है कि मेरा परवरदिगार मुझे सीधे रास्ता दिखा दे

23

وَلَمَّا وَرَدَ مَاءَ مَدْيَنَ وَجَدَ عَلَيْهِ أُمَّةً مِنَ النَّاسِ يَسْقُونَ  وَوَجَدَ مِنْ دُونِهِمُ امْرَأَتَيْنِ تَذُودَانِ ۖ

और (आठ दिन फाक़ा करते चले) जब शहर मदियन के कुओं पर (जो शहर के बाहर था) पहुँचें तो कुओं पर लोगों की भीड़ देखी कि वह (अपने जानवरों को) पानी पिला रहे हैं

और उन सबके पीछे दो औरतो (हज़रत शुएब की बेटियों) को देखा कि वह (अपनी बकरियों को) रोके खड़ी है

قَالَ مَا خَطْبُكُمَا ۖ

मूसा ने पूछा कि तुम्हारा क्या मतलब है

قَالَتَا لَا نَسْقِي حَتَّى يُصْدِرَ الرِّعَاءُ ۖ وَأَبُونَا شَيْخٌ كَبِيرٌ  

वह बोली जब तक सब चरवाहे (अपने जानवरों को) ख़ूब छक के पानी पिला कर फिर न जाएँ हम नहीं पिला सकते

और हमारे वालिद बहुत बूढे हैं  

24

فَسَقَى لَهُمَا ثُمَّ تَوَلَّى إِلَى الظِّلِّ فَقَالَ رَبِّ إِنِّي لِمَا أَنْزَلْتَ إِلَيَّ مِنْ خَيْرٍ فَقِيرٌ  

तब मूसा ने उन की (बकरियों) के लिए (पानी खीच कर) पिला दिया फिर वहाँ से हट कर छांव में जा बैठे तो (चूँकि बहुत भूक थी) अर्ज क़ी

परवरदिगार (उस वक्त) ज़ो नेअमत तू मेरे पास भेज दे मै उसका सख्त हाजत मन्द हूँ

25

فَجَاءَتْهُ إِحْدَاهُمَا تَمْشِي عَلَى اسْتِحْيَاءٍ قَالَتْ إِنَّ أَبِي يَدْعُوكَ لِيَجْزِيَكَ أَجْرَ مَا سَقَيْتَ لَنَا ۚ

इतने में उन्हीं दो मे से एक औरत शर्मीली चाल से आयी

(और मूसा से) कहने लगी-मेरे वालिद तुम को बुलाते हैं ताकि तुमने जो (हमारी बकरियों को) पानी पिला दिया है तुम्हें उसकी मज़दूरी दे

فَلَمَّا جَاءَهُ وَقَصَّ عَلَيْهِ الْقَصَصَ قَالَ لَا تَخَفْ ۖ نَجَوْتَ مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ   

ग़रज़ जब मूसा उनके पास आए और उनसे अपने किस्से बयान किए तो उन्होंने कहा अब कुछ अन्देशा न करो

तुमने ज़ालिम लोगों के हाथ से नजात पायी  

26

قَالَتْ إِحْدَاهُمَا يَا أَبَتِ اسْتَأْجِرْهُ ۖ إِنَّ خَيْرَ مَنِ اسْتَأْجَرْتَ الْقَوِيُّ الْأَمِينُ  

(इसी असना में) उन दोनों में से एक लड़की ने कहा ऐ अब्बा इन को नौकर रख लीजिए

क्योंकि आप जिसको भी नौकर रखें सब में बेहतर वह है जो मज़बूत और अमानतदार हो

27

قَالَ إِنِّي أُرِيدُ أَنْ أُنْكِحَكَ إِحْدَى ابْنَتَيَّ هَاتَيْنِ عَلَى أَنْ تَأْجُرَنِي ثَمَانِيَ حِجَجٍ ۖ فَإِنْ أَتْمَمْتَ عَشْرًا فَمِنْ عِنْدِكَ ۖ

(और इनमें दोनों बातें पायी जाती हैं तब)

शुएब ने कहा मै चाहता हूँ कि अपनी दोनों लड़कियों में से एक के साथ तुम्हारा इस (महर) पर निकाह कर दूँ कि तुम आठ बरस तक मेरी नौकरी करो

और अगर तुम दस बरस पूरे कर दो तो तुम्हारा एहसान

وَمَا أُرِيدُ أَنْ أَشُقَّ عَلَيْكَ ۚ سَتَجِدُنِي إِنْ شَاءَ اللَّهُ مِنَ الصَّالِحِينَ  

और मै तुम पर मेहनत मशक्क़त भी डालना नही चाहता

और तुम मुझे इन्शा अल्लाह नेको कार आदमी पाओगे

28

قَالَ ذَلِكَ بَيْنِي وَبَيْنَكَ ۖ

मूसा ने कहा ये मेरे और आप के दरमियान (मुहाएदा) है

أَيَّمَا الْأَجَلَيْنِ قَضَيْتُ فَلَا عُدْوَانَ عَلَيَّ ۖ وَاللَّهُ عَلَى مَا نَقُولُ وَكِيلٌ  

दोनों मुद्दतों मे से मै जो भी पूरी कर दूँ (मुझे एख्तियार है) फिर मुझ पर जब्र और ज्यादती (देने का आपको हक़) नहीं

और हम आप जो कुछ कर रहे हैं (उसका) ख़ुदा गवाह है

29

فَلَمَّا قَضَى مُوسَى الْأَجَلَ وَسَارَ بِأَهْلِهِ آنَسَ مِنْ جَانِبِ الطُّورِ نَارًا

(ग़रज़ मूसा का छोटी लड़की से निकाह हो गया और रहने लगे)

फिर जब मूसा ने अपनी (दस बरस की) मुद्दत पूरी की (और बीवी को लेकर चले तो अंधेरीरात जाड़ों के दिन राह भूल गए (और बीबी सफ़ूरा को दर्द ज़ेह शुरु हुआ) इतने में कोहेतूर की तरफ आग दिखायी दी

  قَالَ لِأَهْلِهِ امْكُثُوا إِنِّي آنَسْتُ نَارًا لَعَلِّي آتِيكُمْ مِنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ جَذْوَةٍ مِنَ النَّارِ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ  

तो अपने लड़के बालों से कहा तुम लोग ठहरो मैने यक़ीनन आग देखी है

(मै वहाँ जाता हूँ) क्या अजब है वहाँ से (रास्ते की) कुछ ख़बर लाऊँ या आग की कोई चिंगारी (लेता आऊँ) ताकि तुम लोग तापो

30

فَلَمَّا أَتَاهَا نُودِيَ مِنْ شَاطِئِ الْوَادِ الْأَيْمَنِ فِي الْبُقْعَةِ الْمُبَارَكَةِ مِنَ الشَّجَرَةِ

ग़रज़ जब मूसा आग के पास आए तो मैदान के दाहिने किनारे से इस मुबारक जगह में एक दरख्त से उन्हें आवाज़ आयी

أَنْ يَا مُوسَى إِنِّي أَنَا اللَّهُ رَبُّ الْعَالَمِينَ  

कि ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ही अल्लाह सारे जहाँ का पालने वाला हूँ

31

وَأَنْ أَلْقِ عَصَاكَ ۖ

और यह (भी आवाज़ आयी) कि तुम आपनी छड़ी (ज़मीन पर) डाल दो

فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ  وَلَّى مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ

फिर जब (डाल दिया तो) देखा कि वह इस तरह बल खा रही है कि गोया वह (ज़िन्दा) अजदहा है

तो पीठ फेरके भागे और पीछे मुड़कर भी न देखा

يَا مُوسَى أَقْبِلْ وَلَا تَخَفْ ۖإِنَّكَ مِنَ الْآمِنِينَ  

(तो हमने फरमाया) ऐ मूसा आगे आओ और डरो नहीं

तुम पर हर तरह अमन व अमान में हो

32

اسْلُكْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ وَاضْمُمْ إِلَيْكَ جَنَاحَكَ مِنَ الرَّهْبِ ۖ

(अच्छा और लो) अपना हाथ गरेबान में डालो (और निकाल लो) तो सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आया

और ख़ौफ की (वजह) से अपने बाजू अपनी तरफ समेट लो (ताकि ख़ौफ जाता रहे)

فَذَانِكَ بُرْهَانَانِ مِنْ رَبِّكَ إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ  

ग़रज़ ये दोनों (असा व यदे बैज़ा) तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारी नुबूवत की) दो दलीलें फिरऔन और उसके दरबार के सरदारों के वास्ते हैं

और इसमें शक नहीं कि वह बदकार लोग थे

33

قَالَ رَبِّ إِنِّي قَتَلْتُ مِنْهُمْ نَفْسًا فَأَخَافُ أَنْ يَقْتُلُونِ  

मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार मैने उनमें से एक शख्स को मार डाला था तो मै डरता हूँ कहीं (उसके बदले) मुझे न मार डालें

34

‏وَأَخِي هَارُونُ هُوَ أَفْصَحُ مِنِّي لِسَانًا فَأَرْسِلْهُ مَعِيَ رِدْءًا يُصَدِّقُنِي ۖ إِنِّي أَخَافُ أَنْ يُكَذِّبُونِ  

और मेरा भाई हारुन वह मुझसे (ज़बान में ज्यादा) फ़सीह है तो तू उसे मेरे साथ मेरा मददगार बनाकर भेज कि वह मेरी तसदीक करे

क्योंकि यक़ीनन मै इस बात से डरता हूँ कि मुझे वह लोग झुठला देंगे

(तो उनके जवाब के लिए गोयाइ की ज़रुरत है)

35

قَالَ سَنَشُدُّ عَضُدَكَ بِأَخِيكَ  وَنَجْعَلُ لَكُمَا سُلْطَانًا فَلَا يَصِلُونَ إِلَيْكُمَا ۚ

फ़रमाया अच्छा हम अनक़रीब तुम्हारे भाई की वजह से तुम्हारे बाज़ू क़वी कर देगें

और तुम दोनों को ऐसा ग़लबा अता करेंगें कि फिरऔनी लोग तुम दोनों तक हमारे मौजिज़े की वजह से पहुँच भी न सकेंगे

بِآيَاتِنَا أَنْتُمَا وَمَنِ اتَّبَعَكُمَا الْغَالِبُونَ  

(लो जाओ) तुम दोनो और तुम्हारे पैरवी करने वाले गालिब रहेंगे

36

فَلَمَّا جَاءَهُمْ مُوسَى بِآيَاتِنَا بَيِّنَاتٍ قَالُوا مَا هَذَا إِلَّا سِحْرٌ مُفْتَرًى وَمَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي آبَائِنَا الْأَوَّلِينَ  

ग़रज़ जब मूसा हमारे वाजेए व रौशन मौजिज़े लेकर उनके पास आए तो वह लोग कहने लगे कि ये तो बस अपने दिल का गढ़ा हुआ जादू है

और हमने तो अपने अगले बाप दादाओं (के ज़माने) में ऐसी बात सुनी भी नहें  

37

وَقَالَ مُوسَى رَبِّي أَعْلَمُ بِمَنْ جَاءَ بِالْهُدَى مِنْ عِنْدِهِ  وَمَنْ تَكُونُ لَهُ عَاقِبَةُ الدَّارِ ۖ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ  

और मूसा ने कहा मेरा परवरदिगार उस शख्स से ख़ूब वाक़िफ़ है जो उसकी बारगाह से हिदायत लेकर आया है और उस शख्स से भी जिसके लिए आख़िरत का घर है

इसमें तो शक ही नहीं कि ज़ालिम लोग कामयाब नहीं होते

38

وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ مَا عَلِمْتُ لَكُمْ مِنْ إِلَهٍ غَيْرِي

और (ये सुनकर) फिरऔन ने कहा ऐ मेरे दरबार के सरदारों मुझ को तो अपने सिवा तुम्हारा कोई परवरदिगार मालूम नही होता (और मूसा दूसरे को ख़ुदा बताता है)

 فَأَوْقِدْ لِي يَا هَامَانُ عَلَى الطِّينِ فَاجْعَلْ لِي صَرْحًا لَعَلِّي أَطَّلِعُ إِلَى إِلَهِ مُوسَى

तो ऐ हामान (वज़ीर फिरऔन) तुम मेरे वास्ते मिट्टी (की ईटों) का पजावा सुलगाओ

फिर मेरे वास्ते एक पुख्ता महल तैयार कराओ ताकि मै (उस पर चढ़ कर) मूसा के ख़ुदा को देंखू

وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ مِنَ الْكَاذِبِينَ  

और मै तो यक़ीनन मूसा को झूठा समझता हूँ

39

وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ مِنَ الْكَاذِبِينَ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ إِلَيْنَا لَا يُرْجَعُونَ

और फिरऔन और उसके लश्कर ने रुए ज़मीन में नाहक़ सर उठाया था

और उन लोगों ने समझ लिया था कि हमारी बारगाह मे वह कभी पलट कर नही आएँगे

40

فَأَخَذْنَاهُ وَجُنُودَهُ فَنَبَذْنَاهُمْ فِي الْيَمِّ ۖ

तो हमने उसको और उसके लश्कर को ले डाला फिर उन सबको दरिया में डाल दिया

فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الظَّالِمِينَ

तो (ऐ रसूल) ज़रा देखों तो कि ज़ालिमों का कैसा बुरा अन्जाम हुआ

41

وَجَعَلْنَاهُمْ أَئِمَّةً يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ لَا يُنْصَرُونَ  

और हमने उनको (गुमराहों का) पेशवा बनाया कि (लोगों को) जहन्नुम की तरफ बुलाते है

और क़यामत के दिन (ऐसे बेकस होगें कि) उनको किसी तरह की मदद न दी जाएगी

42

وَأَتْبَعْنَاهُمْ فِي هَذِهِ الدُّنْيَا لَعْنَةً ۖ وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ هُمْ مِنَ الْمَقْبُوحِينَ  

और हमने दुनिया में भी तो लानत उन के पीछे लगा दी है

और क़यामत के दिन उनके चेहरे बिगाड़ दिए जायेंगे

43

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ مِنْ بَعْدِ مَا أَهْلَكْنَا الْقُرُونَ الْأُولَى بَصَائِرَ لِلنَّاسِ وَهُدًى وَرَحْمَةً لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ  

और हमने बहुतेरी अगली उम्मतों को हलाक कर डाला उसके बाद मूसा को किताब (तौरैत) अता की

जो लोगों के लिए अजसरतापा बसीरत और हिदायत और रहमत थी ताकि वह लोग इबरत व नसीहत हासिल करें

44

وَمَا كُنْتَ بِجَانِبِ الْغَرْبِيِّ إِذْ قَضَيْنَا إِلَى مُوسَى الْأَمْرَ وَمَا كُنْتَ مِنَ الشَّاهِدِينَ  

और (ऐ रसूल) जिस वक्त हमने मूसा के पास अपना हुक्म भेजा था तो तुम (तूर के) मग़रिबी जानिब मौजूद न थे

और न तुम उन वाक्यात को चश्मदीद देखने वालों में से थे

45

وَلَكِنَّا أَنْشَأْنَا قُرُونًا فَتَطَاوَلَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُ ۚ

मगर हमने (मूसा के बाद) बहुतेरी उम्मतें पैदा की फिर उन पर एक ज़माना दराज़ गुज़र गया

وَمَا كُنْتَ ثَاوِيًا فِي أَهْلِ مَدْيَنَ تَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا وَلَكِنَّا كُنَّا مُرْسِلِينَ  

और न तुम मदैन के लोगों में रहे थे कि उनके सामने हमारी आयते पढ़ते (और न तुम को उन के हालात मालूम होते)

मगर हम तो (तुमको) पैग़म्बर बनाकर भेजने वाले थे

46

وَمَا كُنْتَ بِجَانِبِ الطُّورِ إِذْ نَادَيْنَا

और न तुम तूर की किसी जानिब उस वक्त मौजूद थे जब हमने (मूसा को) आवाज़ दी थी (ताकि तुम देखते)

وَلَكِنْ رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ لِتُنْذِرَ قَوْمًا مَا أَتَاهُمْ مِنْ نَذِيرٍ مِنْ قَبْلِكَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ  

मगर ये तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी है ताकि तुम उन लोगों को जिनके पास तुमसे पहले कोई डराने वाला आया ही नहीं डराओ

ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें

47

وَلَوْلَا أَنْ تُصِيبَهُمْ مُصِيبَةٌ بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ فَيَقُولُوا

और अगर ये नही होता कि जब उन पर उनकी अगली करतूतों की बदौलत कोई मुसीबत पड़ती तो बेसाख्ता कह बैठते कि

 رَبَّنَا لَوْلَا أَرْسَلْتَ إِلَيْنَا رَسُولًا فَنَتَّبِعَ آيَاتِكَ وَنَكُونَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ  

परवरदिगार तूने हमारे पास कोई पैग़म्बर क्यों न भेजा कि हम तेरे हुक्मों पर चलते और ईमानदारों में होते (तो हम तुमको न भेजते)

48

فَلَمَّا جَاءَهُمُ الْحَقُّ مِنْ عِنْدِنَا قَالُوا لَوْلَا أُوتِيَ مِثْلَ مَا أُوتِيَ مُوسَى ۚ

मगर फिर जब हमारी बारगाह से (दीन) हक़ उनके पास पहुँचा तो कहने लगे जैसे (मौजिज़े) मूसा को अता हुए थे वैसे ही इस रसूल (मोहम्मद) को क्यों नही

أَوَلَمْ يَكْفُرُوا بِمَا أُوتِيَ مُوسَى مِنْ قَبْلُ ۖ

दिए गए क्या जो मौजिज़े इससे पहले मूसा को अता हुए थे उनसे इन लोगों ने इन्कार न किया था

قَالُوا سِحْرَانِ تَظَاهَرَا

कुफ्फ़ार तो ये भी कह गुज़रे कि ये दोनों के दोनों (तौरैत व कुरान) जादू हैं कि बाहम एक दूसरे के मददगार हो गए हैं

وَقَالُوا إِنَّا بِكُلٍّ كَافِرُونَ  

और ये भी कह चुके कि हम एब के मुन्किर हैं

49

قُلْ فَأْتُوا بِكِتَابٍ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ هُوَ أَهْدَى مِنْهُمَا أَتَّبِعْهُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ  

(ऐ रसूल) तुम (इन लोगों से) कह दो कि अगर सच्चे हो तो ख़ुदा की तरफ से एक ऐसी किताब जो इन दोनों से हिदायत में बेहतर हो ले आओ

50

‏فَإِنْ لَمْ يَسْتَجِيبُوا لَكَ فَاعْلَمْ أَنَّمَا يَتَّبِعُونَ أَهْوَاءَهُمْ ۚ

कि मै भी उस पर चलँ फिर अगर ये लोग (इस पर भी) न मानें तो समझ लो कि ये लोग बस अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है

وَمَنْ أَضَلُّ مِمَّنِ اتَّبَعَ هَوَاهُ بِغَيْرِ هُدًى مِنَ اللَّهِ ۚ

और जो शख्स ख़ुदा की हिदायत को छोड़ कर अपनी हवा व हवस की पैरवी करते है उससे ज्यादा गुमराह कौन होगा

إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ  

बेशक ख़ुदा सरकश लोगों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता  

51

وَلَقَدْ وَصَّلْنَا لَهُمُ الْقَوْلَ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ  

और हम यक़ीनन लगातार (अपने एहकाम भेजकर) उनकी नसीहत करते रहे ताकि वह लोग नसीहत हासिल करें

52

الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ مِنْ قَبْلِهِ هُمْ بِهِ يُؤْمِنُونَ  

जिन लोगों को हमने इससे पहले किताब अता की है वह उस (क़ुरान) पर ईमान लाते हैं

53

وَإِذَا يُتْلَى عَلَيْهِمْ قَالُوا آمَنَّا بِهِ  إِنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَبِّنَا إِنَّا كُنَّا مِنْ قَبْلِهِ مُسْلِمِينَ  

और जब उनके सामने ये पढ़ा जाता है तो बोल उठते हैं कि हम तो इस पर ईमान ला चुके

बेशक ये ठीक है (और) हमारे परवरदिगार की तरफ से है हम तो इसको पहले ही मानते थे

54

أُولَئِكَ يُؤْتَوْنَ أَجْرَهُمْ مَرَّتَيْنِ بِمَا صَبَرُوا وَيَدْرَءُونَ بِالْحَسَنَةِ السَّيِّئَةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ  

यही वह लोग हैं जिन्हें (इनके आमाले ख़ैर की) दोहरी जज़ा दी जाएगी-

चूँकि उन लोगों ने सब्र किया और बदी को नेकी से दफ़ा करते हैं

और जो कुछ हमने उन्हें अता किया है उसमें से (हमारी राह में) ख़र्च करते हैं

55

وَإِذَا سَمِعُوا اللَّغْوَ أَعْرَضُوا عَنْهُ وَقَالُوا لَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ سَلَامٌ عَلَيْكُمْ لَا نَبْتَغِي الْجَاهِلِينَ  

और जब किसी से कोई बुरी बात सुनी तो उससे किनारा कश रहे और साफ कह दिया कि हमारे वास्ते हमारी कारगुज़ारियाँ हैं और तुम्हारे वास्ते तुम्हारी कारस्तानियाँ

(बस दूर ही से) तुम्हें सलाम है हम जाहिलो (की सोहबत) के ख्वाहॉ नहीं

56

إِنَّكَ لَا تَهْدِي مَنْ أَحْبَبْتَ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ ۚوَهُوَ أَعْلَمُ بِالْمُهْتَدِينَ  

(ऐ रसूल) बेशक तुम जिसे चाहो मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचा सकते मगर हाँ जिसे खुदा चाहे मंज़िल मक़सूद तक पहुचाए

और वही हिदायत याफ़ता लोगों से ख़ूब वाक़िफ़ है

57

وَقَالُوا إِنْ نَتَّبِعِ الْهُدَى مَعَكَ نُتَخَطَّفْ مِنْ أَرْضِنَا ۚ

(ऐ रसूल) कुफ्फ़ार (मक्का) तुमसे कहते हैं कि अगर हम तुम्हारे साथ दीन हक़ की पैरवी करें तो हम अपने मुल्क़ से उचक लिए जाएँ

أَوَلَمْ نُمَكِّنْ لَهُمْ حَرَمًا آمِنًا يُجْبَى إِلَيْهِ ثَمَرَاتُ كُلِّ شَيْءٍ رِزْقًا مِنْ لَدُنَّا وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَعْلَمُونَ  

(ये क्या बकते है) क्या हमने उन्हें हरम (मक्का) में जहाँ हर तरह का अमन है जगह नहीं दी वहाँ हर किस्म के फल रोज़ी के वास्ते हमारी बारगाह से खिंचे चले जाते हैं

मगर बहुतेरे लोग नहीं जाते

58

وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنْ قَرْيَةٍ بَطِرَتْ مَعِيشَتَهَا ۖ

और हमने तो बहुतेरी बस्तियाँ बरबाद कर दी जो अपनी मइशत (रोजी) में बहुत इतराहट से (ज़िन्दगी) बसर किया करती थीं-

فَتِلْكَ مَسَاكِنُهُمْ لَمْ تُسْكَنْ مِنْ بَعْدِهِمْ إِلَّا قَلِيلًا ۖ وَكُنَّا نَحْنُ الْوَارِثِينَ  

(तो देखो) ये उन ही के (उजड़े हुए) घर हैं जो उनके बाद फिर आबाद नहीं हुए मगर बहुत कम

और (आख़िर) हम ही उनके (माल व असबाब के) वारिस हुए

59

وَمَا كَانَ رَبُّكَ مُهْلِكَ الْقُرَى حَتَّى يَبْعَثَ فِي أُمِّهَا رَسُولًا يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِنَا ۚ

और तुम्हारा परवरदिगार जब तक उन गाँव के सदर मक़ाम पर अपना पैग़म्बर न भेज ले और वह उनके सामने हमारी आयतें न पढ़ दे (उस वक्त तक) बस्तियों को बरबाद नहीं कर दिया करता-

وَمَا كُنَّا مُهْلِكِي الْقُرَى إِلَّا وَأَهْلُهَا ظَالِمُونَ  

और हम तो बस्तियों को बरबाद करते ही नहीं जब तक वहाँ के लोग ज़ालिम न हों  

60

وَمَا أُوتِيتُمْ مِنْ شَيْءٍ فَمَتَاعُ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَزِينَتُهَا ۚ

और तुम लोगों को जो कुछ अता हुआ है तो दुनिया की (ज़रा सी) ज़िन्दगी का फ़ायदा और उसकी आराइश है

وَمَا عِنْدَ اللَّهِ خَيْرٌ وَأَبْقَى ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ  

और जो कुछ ख़ुदा के पास है वह उससे कही बेहतर और पाएदार है

तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते

61

أَفَمَنْ وَعَدْنَاهُ وَعْدًا حَسَنًا فَهُوَ لَاقِيهِ كَمَنْ مَتَّعْنَاهُ مَتَاعَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا

तो क्या वह शख्स जिससे हमने (बेहश्त का) अच्छा वायदा किया है और वह उसे पाकर रहेगा

उस शख्स के बराबर हो सकता है जिसे हमने दुनियावी ज़िन्दगी के (चन्द रोज़ा) फायदे अता किए हैं

 ثُمَّ هُوَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مِنَ الْمُحْضَرِينَ

और फिर क़यामत के दिन (जवाब देही के वास्ते हमारे सामने) हाज़िर किए जाएँगें

62

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنْتُمْ تَزْعُمُونَ  

और जिस दिन ख़ुदा उन कुफ्फ़ार को पुकारेगा और पूछेगा कि जिनको तुम हमारा शरीक ख्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं

(ग़रज़ वह शरीक भी बुलाँए जाएँगे)

63

قَالَ الَّذِينَ حَقَّ عَلَيْهِمُ الْقَوْلُ رَبَّنَا هَؤُلَاءِ الَّذِينَ أَغْوَيْنَا أَغْوَيْنَاهُمْ كَمَا غَوَيْنَا ۖ

वह लोग जो हमारे अज़ाब के मुस्ताजिब हो चुके हैं कह देगे कि

परवरदिगार यही वह लोग हैं जिन्हें हमने गुमराह किया था जिस तरह हम खुद गुमराह हुए उसी तरह हमने इनको गुमराह किया-

تَبَرَّأْنَا إِلَيْكَ ۖ  مَا كَانُوا إِيَّانَا يَعْبُدُونَ  

अब हम तेरी बारगाह में (उनसे) दस्तबरदार होते है-

ये लोग हमारी इबादत नहीं करते थे

64

وَقِيلَ ادْعُوا شُرَكَاءَكُمْ فَدَعَوْهُمْ فَلَمْ يَسْتَجِيبُوا لَهُمْ وَرَأَوُا الْعَذَابَ ۚ

और कहा जाएगा कि भला अपने उन शरीको को (जिन्हें तुम ख़ुदा समझते थे) बुलाओ तो ग़रज़ वह लोग उन्हें बुलाएँगे

तो वह उन्हें जवाब तक नही देगें और (अपनी ऑंखों से) अज़ाब को देखेंगें

لَوْ أَنَّهُمْ كَانُوا يَهْتَدُونَ  

काश ये लोग (दुनिया में) राह पर आए होते

65

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ مَاذَا أَجَبْتُمُ الْمُرْسَلِينَ  

और (वह दिन याद करो) जिस दिन ख़ुदा लोगों को पुकार कर पूछेगा कि तुम लोगों ने पैग़म्बरों को (उनके समझाने पर) क्या जवाब दिया

66

فَعَمِيَتْ عَلَيْهِمُ الْأَنْبَاءُ يَوْمَئِذٍ فَهُمْ لَا يَتَسَاءَلُونَ  

तब उस दिन उन्हें बातें न सूझ पडेग़ी (और) फिर बाहम एक दूसरे से पूछ भी न सकेगें

67

فَأَمَّا مَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا فَعَسَى أَنْ يَكُونَ مِنَ الْمُفْلِحِينَ  

मगर हाँ जिस शख्स ने तौबा कर ली और ईमान लाया और अच्छे अच्छे काम किए तो क़रीब है कि ये लोग अपनी मुरादें पाने वालों से होंगे

68

وَرَبُّكَ يَخْلُقُ مَا يَشَاءُ وَيَخْتَارُ ۗ مَا كَانَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ ۚ

और तुम्हारा परवरदिगार जो चाहता है पैदा करता है और (जिसे चाहता है) मुन्तख़िब करता है

और ये इन्तिख़ाब लोगों के एख्तियार में नहीं है

سُبْحَانَ اللَّهِ وَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ  

और जिस चीज़ को ये लोग ख़ुदा का शरीक बनाते हैं उससे ख़ुदा पाक और (कहीं) बरतर है

69

وَرَبُّكَ يَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ  

और (ऐ रसूल) ये लोग जो बातें अपने दिलों में छिपाते हैं और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है

70

وَهُوَ اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ ۖ لَهُ الْحَمْدُ فِي الْأُولَى وَالْآخِرَةِ ۖ

और वही ख़ुदा है उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं

दुनिया और आख़िरत में उस की तारीफ़ है

وَلَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ  

और उसकी हुकूमत है और तुम लोग (मरने के बाद) उसकी तरफ लौटाए जाओगे

71

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ اللَّيْلَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُمْ بِضِيَاءٍ ۖ

(ऐ रसूल इन लोगों से) कहो कि भला तुमने देखा कि अगर ख़ुदा हमेशा के लिए क़यामत तक तुम्हारे सरों पर रात को छाए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे पास रौशनी ले आता

أَفَلَا تَسْمَعُونَ  

तो क्या तुम सुनते नहीं हो

72

قُلْ أَرَأَيْتُمْ إِنْ جَعَلَ اللَّهُ عَلَيْكُمُ النَّهَارَ سَرْمَدًا إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ مَنْ إِلَهٌ غَيْرُ اللَّهِ يَأْتِيكُمْ بِلَيْلٍ تَسْكُنُونَ فِيهِ ۖ

(ऐ रसूल उन से) कह दो कि भला तुमने देखा कि अगर ख़ुदा क़यामत तक बराबर तुम्हारे सरों पर दिन किए रहता तो अल्लाह के सिवा कौन ख़ुदा है जो तुम्हारे लिए रात को ले आता कि तुम लोग इसमें रात को आराम करो

أَفَلَا تُبْصِرُونَ  

तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं देखते

73

وَمِنْ رَحْمَتِهِ جَعَلَ لَكُمُ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لِتَسْكُنُوا فِيهِ وَلِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ  

और उसने अपनी मेहरबानी से तुम्हारे वास्ते रात और दिन को बनाया ताकि तुम रात में आराम करो और दिन में उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो

और ताकि तुम लोग शुक्र करो

74

وَيَوْمَ يُنَادِيهِمْ فَيَقُولُ أَيْنَ شُرَكَائِيَ الَّذِينَ كُنْتُمْ تَزْعُمُونَ  

और (उस दिन को याद करो) जिस दिन वह उन्हें पुकार कर पूछेगा जिनको तुम लोग मेरा शरीक ख्याल करते थे वह (आज) कहाँ हैं

75

وَنَزَعْنَا مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ شَهِيدًا فَقُلْنَا هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ

और हम हर एक उम्मत से एक गवाह (पैग़म्बर) निकाले (सामने बुलाएँगे)

फिर (उस दिन मुशरेकीन से) कहेंगे कि अपनी (बराअत की) दलील पेश करो तब उन्हें मालूम हो जाएगा कि हक़ ख़ुदा ही की तरफ़ है

فَعَلِمُوا أَنَّ الْحَقَّ لِلَّهِ  وَضَلَّ عَنْهُمْ مَا كَانُوا يَفْتَرُونَ  

और जो इफ़तेरा परवाज़ियाँ ये लोग किया करते थे सब उनसे ग़ायब हो जाएँगी

76

إِنَّ قَارُونَ كَانَ مِنْ قَوْمِ مُوسَى فَبَغَى عَلَيْهِمْ ۖ

(नाशुक्री का एक क़िस्सा सुनो)

मूसा की क़ौम से एक शख्स कारुन (नामी) था तो उसने उन पर सरकशी शुरु की

وَآتَيْنَاهُ مِنَ الْكُنُوزِ مَا إِنَّ مَفَاتِحَهُ لَتَنُوءُ بِالْعُصْبَةِ أُولِي الْقُوَّةِ

और हमने उसको इस क़दर ख़ज़ाने अता किए थे कि उनकी कुन्जियाँ एक सकतदार जमाअत (की जामअत) को उठाना दूभर हो जाता था

 إِذْ قَالَ لَهُ قَوْمُهُ لَا تَفْرَحْ ۖ  إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْفَرِحِينَ  

जब (एक बार) उसकी क़ौम ने उससे कहा कि (अपनी दौलत पर) इतरा मत

क्योंकि ख़ुदा इतराने वालों को दोस्त नहीं रखता

77

وَابْتَغِ فِيمَا آتَاكَ اللَّهُ الدَّارَ الْآخِرَةَ ۖ

और जो कुछ ख़ुदा ने तूझे दे रखा है उसमें आख़िरत के घर की भी जुस्तजू कर

وَلَا تَنْسَ نَصِيبَكَ مِنَ الدُّنْيَا ۖوَأَحْسِنْ كَمَا أَحْسَنَ اللَّهُ إِلَيْكَ ۖ

और दुनिया से जिस क़दर तेरा हिस्सा है मत भूल जा

और जिस तरह ख़ुदा ने तेरे साथ एहसान किया है तू भी औरों के साथ एहसान कर

وَلَا تَبْغِ الْفَسَادَ فِي الْأَرْضِ ۖ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ  

और रुए ज़मीन में फसाद का ख्वाहा न हो-

इसमें शक नहीं कि ख़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नहीं रखता

78

قَالَ إِنَّمَا أُوتِيتُهُ عَلَى عِلْمٍ عِنْدِي ۚ

तो क़ारुन कहने लगा कि ये (माल व दौलत) तो मुझे अपने इल्म (कीमिया) की वजह से हासिल होता है

أَوَلَمْ يَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ قَدْ أَهْلَكَ مِنْ قَبْلِهِ مِنَ الْقُرُونِ مَنْ هُوَ أَشَدُّ مِنْهُ قُوَّةً وَأَكْثَرُ جَمْعًا ۚ

क्या क़ारुन ने ये भी न ख्याल किया कि अल्लाह उसके पहले उन लोगों को हलाक़ कर चुका है जो उससे क़ूवत और हैसियत में कहीं बढ़ बढ़ के थे

وَلَا يُسْأَلُ عَنْ ذُنُوبِهِمُ الْمُجْرِمُونَ

और गुनाहगारों से (उनकी सज़ा के वक्त) उनके गुनाहों की पूछताछ नहीं हुआ करती

79

فَخَرَجَ عَلَى قَوْمِهِ فِي زِينَتِهِ ۖ

ग़रज़ (एक दिन क़ारुन) अपनी क़ौम के सामने बड़ी आराइश और ठाठ के साथ निकला

قَالَ الَّذِينَ يُرِيدُونَ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا يَا لَيْتَ لَنَا مِثْلَ مَا أُوتِيَ قَارُونُ إِنَّهُ لَذُو حَظٍّ عَظِيمٍ  

तो जो लोग दुनिया को (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी के तालिब थे (इस शान से देख कर) कहने लगे

जो माल व दौलत क़ारुन को अता हुई है काश मेरे लिए भी होती इसमें शक नहीं कि क़ारुन बड़ा नसीब वर था

80

وَقَالَ الَّذِينَ أُوتُواالْعِلْمَ وَيْلَكُمْ ثَوَابُ اللَّهِ خَيْرٌ لِمَنْ آمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا وَلَا يُلَقَّاهَا إِلَّا الصَّابِرُونَ  

और जिन लोगों को (हमारी बारगाह में) इल्म अता हुआ था कहनें लगे तुम्हारा नास हो जाए

(अरे) जो शख्स ईमान लाए और अच्छे काम करे उसके लिए तो ख़ुदा का सवाब इससे कही बेहतर है और वह तो अब सब्र करने वालों के सिवा दूसरे नहीं पा सकते

81

‏فَخَسَفْنَا بِهِ وَبِدَارِهِ الْأَرْضَ فَمَا كَانَ لَهُ مِنْ فِئَةٍ يَنْصُرُونَهُ مِنْ دُونِ اللَّهِ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُنْتَصِرِينَ

और हमने क़ारुन और उसके घर बार को ज़मीन में धंसा दिया

फिर ख़ुदा के सिवा कोई जमाअत ऐसी न थी कि उसकी मदद करती और न खुद आप अपनी मदद आप कर सका

82

وَأَصْبَحَ الَّذِينَ تَمَنَّوْا مَكَانَهُ بِالْأَمْسِ يَقُولُونَ وَيْكَأَنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ وَيَقْدِرُ ۖ

और जिन लोगों ने कल उसके जाह व मरतबे की तमन्ना की थी वह (आज ये तमाशा देखकर) कहने लगे

अरे माज़अल्लाह ये तो ख़ुदा ही अपने बन्दों से जिसकी रोज़ी चाहता है कुशादा कर देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग कर देता है

لَوْلَا أَنْ مَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا لَخَسَفَ بِنَا ۖوَيْكَأَنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُونَ  

और अगर (कहीं) ख़ुदा हम पर मेहरबानी न करता (और इतना माल दे देता) तो उसकी तरह हमको भी ज़रुर धॅसा देता-

और माज़अल्लाह (सच है) हरगिज़ कुफ्फार अपनी मुरादें न पाएँगें

83

تِلْكَ الدَّارُ الْآخِرَةُ نَجْعَلُهَا لِلَّذِينَ لَا يُرِيدُونَ عُلُوًّا فِي الْأَرْضِ وَلَا فَسَادًا ۚوَالْعَاقِبَةُ لِلْمُتَّقِينَ  

ये आख़िरत का घर तो हम उन्हीं लोगों के लिए ख़ास कर देगें जो रुए ज़मीन पर न सरकशी करना चाहते हैं और न फसाद-

और (सच भी यूँ ही है कि) फिर अन्जाम तो परहेज़गारों ही का है

84

مَنْ جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِنْهَا ۖ

जो शख्स नेकी करेगा तो उसके लिए उसे कहीं बेहतर बदला है

وَمَنْ جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ  فَلَا يُجْزَى الَّذِينَ عَمِلُوا السَّيِّئَاتِ إِلَّا مَا كَانُوا يَعْمَلُونَ  

औ जो बुरे काम करेगा तो वह याद रखे कि जिन लोगों ने बुराइयाँ की हैं उनका वही बदला हे जो दुनिया में करते रहे हैं

85

‏إِنَّ الَّذِي فَرَضَ عَلَيْكَ الْقُرْآنَ لَرَادُّكَ إِلَى مَعَادٍ ۚ

(ऐ रसूल) ख़ुदा जिसने तुम पर क़ुरान नाज़िल किया ज़रुर ठिकाने तक पहुँचा देगा

قُلْ رَبِّي أَعْلَمُ مَنْ جَاءَ بِالْهُدَى وَمَنْ هُوَ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ  

Say: "My Lord knows best who it is that brings true guidance, and who is in manifest error."

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि कौन राह पर आया और कौन सरीही गुमराही में पड़ा रहा इससे मेरा परवरदिगार ख़ूब वाक़िफ है

86

وَمَا كُنْتَ تَرْجُو أَنْ يُلْقَى إِلَيْكَ الْكِتَابُ إِلَّا رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ ۖ

और तुमको तो ये उम्मीद न थी कि तुम्हारे पास ख़ुदा की तरफ से किताब नाज़िल की जाएगी मगर तुम्हारे परवरदिगार की मेहरबानी से नाज़िल हुई

فَلَا تَكُونَنَّ ظَهِيرًا لِلْكَافِرِينَ  

तो तुम हरग़िज़ काफिरों के पुश्त पनाह न बनना

87

وَلَا يَصُدُّنَّكَ عَنْ آيَاتِ اللَّهِ بَعْدَ إِذْ أُنْزِلَتْ إِلَيْكَ ۖ

कहीं ऐसा न हो एहकामे ख़ुदा वन्दी नाज़िल होने के बाद तुमको ये लोग उनकी तबलीग़ से रोक दें

وَادْعُ إِلَى رَبِّكَ ۖ وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكِينَ  

और तुम अपने परवरदिगार की तरफ (लोगों को) बुलाते जाओ

और ख़बरदार मुशरेकीन से हरगिज़ न होना

88

وَلَا تَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ ۘ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ ۚ

और ख़ुदा के सिवा किसी और माबूद की परसतिश न करना

उसके सिवा कोई क़ाबिले परसतिश नहीं

كُلُّ شَيْءٍ هَالِكٌ إِلَّا وَجْهَهُ ۚ

उसकी ज़ात के सिवा हर चीज़ फना होने वाली है

لَهُ الْحُكْمُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ  

उसकी हुकूमत है और तुम लोग उसकी तरफ़ (मरने के बाद) लौटाये जाओगे

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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