Quran Hindi Translation

Surah Al Naml

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

طس ۚ

ता सीन

تِلْكَ آيَاتُ الْقُرْآنِ وَكِتَابٍ مُبِينٍ 

ये क़ुरान वाजेए व रौशन किताब की आयतें है

2

هُدًى وَبُشْرَى لِلْمُؤْمِنِينَ

(ये) उन ईमानदारों के लिए (अज़सरतापा) हिदायत और (जन्नत की) ख़ुशखबरी है

3

الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ بِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ

जो नमाज़ को पाबन्दी से अदा करते हैं और ज़कात दिया करते हैं और यही लोग आख़िरत (क़यामत) का भी यक़ीन रखते हैं

4

إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ زَيَّنَّا لَهُمْ أَعْمَالَهُمْ فَهُمْ يَعْمَهُونَ

इसमें शक नहीं कि जो लोग आखिरत पर ईमान नहीं रखते (गोया) हमने ख़ुद (उनकी कारस्तानियों को उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है तो ये लोग भटकते फिरते हैं-

5

أُولَئِكَ الَّذِينَ لَهُمْ سُوءُ الْعَذَابِ وَهُمْ فِي الْآخِرَةِ هُمُ الْأَخْسَرُونَ

यही वह लोग हैं जिनके लिए (क़यामत में) बड़ा अज़ाब है और यही लोग आख़िरत में सबसे ज्यादा घाटा उठाने वाले हैं

6

وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى الْقُرْآنَ مِنْ لَدُنْ حَكِيمٍ عَلِيمٍ

और (ऐ रसूल) तुमको तो क़ुरान एक बडे वाक़िफकार हकीम की बारगाह से अता किया जाता है

7

إِذْ قَالَ مُوسَى لِأَهْلِهِ إِنِّي آنَسْتُ نَارًا

(वह वाक़िया याद दिलाओ)

जब मूसा ने अपने लड़के बालों से कहा कि मैने (अपनी बायीं तरफ) आग देखी है

 سَآتِيكُمْ مِنْهَا بِخَبَرٍ أَوْ آتِيكُمْ بِشِهَابٍ قَبَسٍ لَعَلَّكُمْ تَصْطَلُونَ

(एक ज़रा ठहरो तो) मै वहाँ से कुछ (राह की) ख़बर लाँऊ या तुम्हें एक सुलगता हुआ आग का अंगारा ला दूँ ताकि तुम तापो

8

فَلَمَّا جَاءَهَا نُودِيَ أَنْ بُورِكَ مَنْ فِي النَّارِ وَمَنْ حَوْلَهَا

ग़रज़ जब मूसा इस आग के पास आए तो उनको आवाज़ आयी कि मुबारक है वह जो आग में (तजल्ली दिखाना) है और जो उसके गिर्द है

 وَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

"Blessed are those in the Fire and those around: and Glory to Allah, the Lord of the Worlds!

और वह ख़ुदा सारे जहाँ का पालने वाला है (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है-

9

يَا مُوسَى إِنَّهُ أَنَا اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

ऐ मूसा इसमें शक नहीं कि मै ज़बरदस्त हिकमत वाला हूँ

10

وَأَلْقِ عَصَاكَ ۚ

और (हाँ) अपनी छड़ी तो (ज़मीन पर) डाल दो

فَلَمَّا رَآهَا تَهْتَزُّ كَأَنَّهَا جَانٌّ وَلَّى مُدْبِرًا وَلَمْ يُعَقِّبْ ۚ

तो जब मूसा ने उसको देखा कि वह इस तरह लहरा रही है गोया वह जिन्दा अज़दहा है तो पिछले पावँ भाग चले और पीछे मुड़कर भी न देखा

يَا مُوسَى لَا تَخَفْ إِنِّي لَا يَخَافُ لَدَيَّ الْمُرْسَلُونَ

(तो हमने कहा) ऐ मूसा डरो नहीं हमारे पास पैग़म्बर लोग डरा नहीं करते हैं

(मुतमइन हो जाते है)

11

إِلَّا مَنْ ظَلَمَ ثُمَّ بَدَّلَ حُسْنًا بَعْدَ سُوءٍ فَإِنِّي غَفُورٌ رَحِيمٌ

मगर जो शख्स गुनाह करे फिर गुनाह के बाद उसे नेकी (तौबा) से बदल दे तो अलबत्ता बड़ा बख्शने वाला मेहरबान हूँ

12

وَأَدْخِلْ يَدَكَ فِي جَيْبِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ ۖ

(वहाँ) और अपना हाथ अपने गरेबॉ में तो डालो कि वह सफेद बुर्राक़ होकर बेऐब निकल आएगा

فِي تِسْعِ آيَاتٍ إِلَى فِرْعَوْنَ وَقَوْمِهِ ۚ إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمًا فَاسِقِينَ

(ये वह मौजिज़े) मिन जुमला नौ मोजिज़ात के हैं जो तुमको मिलेगें तुम फिरऔन और उसकी क़ौम के पास (जाओ)

क्योंकि वह बदकिरदार लोग हैं

13

فَلَمَّا جَاءَتْهُمْ آيَاتُنَا مُبْصِرَةً قَالُوا هَذَا سِحْرٌ مُبِينٌ

तो जब उनके पास हमारे ऑंखें खोल देने वाले मैजिज़े आए तो कहने लगे ये तो खुला हुआ जादू है

14

وَجَحَدُوا بِهَا وَاسْتَيْقَنَتْهَا أَنْفُسُهُمْ ظُلْمًا وَعُلُوًّا ۚ

और बावजूद के उनके दिल को उन मौजिज़ात का यक़ीन था मगर फिर भी उन लोगों ने सरकशी और तकब्बुर से उनको न माना

فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُفْسِدِينَ

तो (ऐ रसूल) देखो कि (आखिर) मुफसिदों का अन्जाम क्या होगा

15

وَلَقَدْ آتَيْنَا دَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ عِلْمًا ۖ

और इसमें शक नहीं कि हमने दाऊद और सुलेमान को इल्म अता किया

وَقَالَا الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي فَضَّلَنَا عَلَى كَثِيرٍ مِنْ عِبَادِهِ الْمُؤْمِنِينَ

और दोनों ने (ख़ुश होकर) कहा ख़ुदा का शुक्र जिसने हमको अपने बहुतेरे ईमानदार बन्दों पर फज़ीलत दी

16

وَوَرِثَ سُلَيْمَانُ دَاوُودَ ۖ

और (इल्म हिकमत जाएदाद मनकूला गैर मनकूला सब में) सुलेमान दाऊद के वारिस हुए

وَقَالَ يَا أَيُّهَا النَّاسُ عُلِّمْنَا مَنْطِقَ الطَّيْرِ وَأُوتِينَا مِنْ كُلِّ شَيْءٍ ۖ إِنَّ هَذَا لَهُوَ الْفَضْلُ الْمُبِينُ

He said: "O ye people! we have been taught the speech of Birds, and on us has been bestowed (a little) of all things: this is indeed Grace manifest (from Allah)."

और कहा कि लोग हम को (ख़ुदा के फज़ल से) परिन्दों की बोली भी सिखायी गयी है और हमें (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है

17

وَحُشِرَ لِسُلَيْمَانَ جُنُودُهُ مِنَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ وَالطَّيْرِ فَهُمْ يُوزَعُونَ

इसमें शक नहीं कि ये यक़ीनी (ख़ुदा का) सरीही फज़ल व करम है

और सुलेमान के सामने उनके लशकर जिन्नात और आदमी और परिन्दे सब जमा किए जाते थे तो वह सबके सब (मसल मसल) खडे क़िए जाते थे

(ग़रज़ इस तरह लशकर चलता)

18

حَتَّى إِذَا أَتَوْا عَلَى وَادِ النَّمْلِ قَالَتْ نَمْلَةٌ

यहाँ तक कि जब (एक दिन) चीटीयों के मैदान में आ निकले तो एक चीटीं बोली

 يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ

ऐ चीटीयों अपने अपने बिल में घुस जाओ-

ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लश्कर तुम्हे रौन्द डाले और उन्हें उसकी ख़बर भी न हो

19

فَتَبَسَّمَ ضَاحِكًا مِنْ قَوْلِهَا وَقَالَ

तो सुलेमान इस बात से मुस्कुरा के हँस पड़ें और अर्ज क़ी

 رَبِّ أَوْزِعْنِي أَنْ أَشْكُرَ نِعْمَتَكَ الَّتِي أَنْعَمْتَ عَلَيَّ وَعَلَى وَالِدَيَّ وَأَنْ أَعْمَلَ صَالِحًا تَرْضَاهُ

परवरदिगार मुझे तौफीक़ अता फरमा कि जैसी जैसी नेअमतें तूने मुझ पर और मेरे वालदैन पर नाज़िल फरमाई हैं मै (उनका) शुक्रिया अदा करुँ

और मैं ऐसे नेक काम करुँ जिसे तू पसन्द फरमाए

 وَأَدْخِلْنِي بِرَحْمَتِكَ فِي عِبَادِكَ الصَّالِحِينَ

और तू अपनी ख़ास मेहरबानी से मुझे (अपने) नेकोकार बन्दों में दाखिल कर

20

وَتَفَقَّدَ الطَّيْرَ فَقَالَ مَا لِيَ لَا أَرَى الْهُدْهُدَ أَمْ كَانَ مِنَ الْغَائِبِينَ

और सुलेमान ने परिन्दों (के लश्कर) की हाज़िरी ली तो कहने लगे कि क्या बात है कि मै हुदहुद को (उसकी जगह पर) नहीं देखता

क्या (वाक़ई में) वह कही ग़ायब है

21

لَأُعَذِّبَنَّهُ عَذَابًا شَدِيدًا أَوْ لَأَذْبَحَنَّهُ  أَوْ لَيَأْتِيَنِّي بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ

(अगर ऐसा है तो) मै उसे सख्त से सख्त सज़ा दूँगा या (नहीं तो) उसे ज़बाह ही कर डालूँगा

या वह (अपनी बेगुनाही की) कोई साफ दलील मेरे पास पेश करे

22

فَمَكَثَ غَيْرَ بَعِيدٍ فَقَالَ أَحَطْتُ بِمَا لَمْ تُحِطْ بِهِ  وَجِئْتُكَ مِنْ سَبَإٍ بِنَبَإٍ يَقِينٍ

ग़रज़ सुलेमान ने थोड़ी ही देर (तवक्कुफ़ किया था कि हुदहुद आ गया) तो उसने अर्ज़ की

मुझे यह बात मालूम हुई है जो अब तक हुज़ूर को भी मालूम नहीं है और आप के पास शहरे सबा से एक तहक़ीकी ख़बर लेकर आया हूँ

23

إِنِّي وَجَدْتُ امْرَأَةً تَمْلِكُهُمْ وَأُوتِيَتْ مِنْ كُلِّ شَيْءٍ وَلَهَا عَرْشٌ عَظِيمٌ

मैने एक औरत को देखा जो वहाँ के लोगों पर सलतनत करती है

और उसे (दुनिया की) हर चीज़ अता की गयी है और उसका एक बड़ा तख्त है

24

وَجَدْتُهَا وَقَوْمَهَا يَسْجُدُونَ لِلشَّمْسِ مِنْ دُونِ اللَّهِ

मैने खुद मलका को देखा और उसकी क़ौम को देखा कि वह लोग ख़ुदा को छोड़कर आफताब को सजदा करते हैं

وَزَيَّنَ لَهُمُ الشَّيْطَانُ أَعْمَالَهُمْ فَصَدَّهُمْ عَنِ السَّبِيلِ فَهُمْ لَا يَهْتَدُونَ

शैतान ने उनकी करतूतों को (उनकी नज़र में) अच्छा कर दिखाया है और उनको राहे रास्त से रोक रखा है

इसलिये वह रास्ते पर नहीं आते

25

أَلَّا يَسْجُدُوا لِلَّهِ الَّذِي يُخْرِجُ الْخَبْءَ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُخْفُونَ وَمَا تُعْلِنُونَ

तो उन्हें (इतनी सी बात भी नहीं सूझती) कि वह लोग ख़ुदा ही का सजदा क्यों नहीं करते जो आसमान और ज़मीन की पोशीदा बातों को ज़ाहिर कर देता है और तुम लोग जो कुछ छिपाकर या ज़ाहिर करके करते हो सब जानता है

26

‏اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ ۩

अल्लाह वह है जिससे सिवा कोई माबूद नहीं वही (इतने) बड़े अर्श का मालिक है

(सजदा)

27

قَالَ سَنَنْظُرُ أَصَدَقْتَ أَمْ كُنْتَ مِنَ الْكَاذِبِينَ

(ग़रज़) सुलेमान ने कहा हम अभी देखते हैं कि तूने सच सच कहा या तू झूठा है

28

اذْهَبْ بِكِتَابِي هَذَا فَأَلْقِهْ إِلَيْهِمْ ثُمَّ تَوَلَّ عَنْهُمْ فَانْظُرْ مَاذَا يَرْجِعُونَ

(अच्छा) हमारा ये ख़त लेकर जा और उसको उन लोगों के सामने डाल दे

फिर उन के पास से जाना फिर देखते रहना कि वह लोग अख़िर क्या जवाब देते हैं

29

قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ

(ग़रज़ हुद हुद ने मलका के पास ख़त पहुँचा दिया (

तो मलका बोली ऐ (मेरे दरबार के) सरदारों ये एक वाजिबुल एहतराम ख़त मेरे पास डाल दिया गया है

30

إِنَّهُ مِنْ سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

सुलेमान की तरफ से है (ये उसका सरनामा) है

अल्लाह के नाम से जो रहमान व रहीम है।

31

أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ

(और मज़मून)

यह है कि मुझ से सरकशी न करो और मेरे सामने फरमाबरदार बन कर हाज़िर हो

32

قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنْتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّى تَشْهَدُونِ

तब मलका (विलक़ीस) बोली ऐ मेरे दरबार के सरदारों तुम मेरे इस मामले में मुझे राय दो

(क्योंकि मेरा तो ये क़ायदा है कि) जब तक तुम लोग मेरे सामने मौजूद न हो (मशवरा न दे दो) मैं किसी अम्र में क़तई फैसला न किया करती

33

قَالُوا نَحْنُ أُولُو قُوَّةٍ وَأُولُو بَأْسٍ شَدِيدٍ

उन लोगों ने अर्ज़ की हम बड़े ज़ोरावर बडे लड़ने वाले हैं

وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانْظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ

और (आइन्दा) हर अम्र का आप को एख्तियार है तो जो हुक्म दे आप (खुद अच्छी) तरह इसके अन्जाम पर ग़ौर कर ले

34

قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً ۖ وَكَذَلِكَ يَفْعَلُونَ

मलका ने कहा बादशाहों का क़ायदा है कि जब किसी बस्ती में (बज़ोरे फ़तेह) दाख़िल हो जाते हैं तो उसको उजाड़ देते हैं और वहाँ के मुअज़िज़ लोगों को ज़लील व रुसवा कर देते हैं

और ये लोग भी ऐसा ही करेंगे

35

وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِمْ بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ

और मैं उनके पास एलचियों की माअरफ़त कुछ तोहफा भेजकर देखती हूँ कि एलची लोग क्या जवाब लाते हैं

36

فَلَمَّا جَاءَ سُلَيْمَانَ قَالَ أَتُمِدُّونَنِ بِمَالٍ

ग़रज़ जब बिलक़ीस का एलची (तोहफा लेकर) सुलेमान के पास आया तो सुलेमान ने कहा क्या तुम लोग मुझे माल की मदद देते हो

فَمَا آتَانِيَ اللَّهُ خَيْرٌ مِمَّا آتَاكُمْ

तो ख़ुदा ने जो (माल दुनिया) मुझे अता किया है वह (माल) उससे जो तुम्हें बख्शा है कहीं बेहतर है

 بَلْ أَنْتُمْ بِهَدِيَّتِكُمْ تَفْرَحُونَ

(मैं तो नही) बल्कि तुम्ही लोग अपने तोहफे तहायफ़ से ख़ुश हुआ करो

37

ارْجِعْ إِلَيْهِمْ فَلَنَأْتِيَنَّهُمْ بِجُنُودٍ لَا قِبَلَ لَهُمْ بِهَاوَلَنُخْرِجَنَّهُمْ مِنْهَا أَذِلَّةً وَهُمْ صَاغِرُونَ

(फिर तोहफा लाने वाले ने कहा) तो उन्हीं लोगों के पास जा हम यक़ीनन ऐसे लश्कर से उन पर चढ़ाई करेंगे जिसका उससे मुक़ाबला न हो सकेगा

और हम ज़रुर उन्हें वहाँ से ज़लील व रुसवा करके निकाल बाहर करेंगे

38

قَالَ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَيُّكُمْ يَأْتِينِي بِعَرْشِهَا قَبْلَ أَنْ يَأْتُونِي مُسْلِمِينَ

(जब वह जा चुका) तो सुलेमान ने अपने अहले दरबार से कहा

ऐ मेरे दरबार के सरदारो तुममें से कौन ऐसा है कि क़ब्ल इसके वह लोग मेरे सामने फरमाबरदार बनकर आयें मलिका का तख्त मेरे पास ले आए

39

قَالَ عِفْرِيتٌ مِنَ الْجِنِّاَنَا اٰتِيۡكَ بِهٖ قَبۡلَ اَنۡ تَقُوۡمَ مِنۡ مَّقَامِكَ‌ۚ

(इस पर) जिनों में से एक दियो बोल उठा

कि क़ब्ल इसके कि हुज़ूर (दरबार बरख़ास्त करके) अपनी जगह से उठे मै तख्त आपके पास ले आऊँगा

وَإِنِّي عَلَيْهِ لَقَوِيٌّ أَمِينٌ

और यक़ीनन उस पर क़ाबू रखता हूँ (और) ज़िम्मेदार हूँ

40

قَالَ الَّذِي عِنْدَهُ عِلْمٌ مِنَ الْكِتَابِ أَنَا آتِيكَ بِهِ قَبْلَ أَنْ يَرْتَدَّ إِلَيْكَ طَرْفُكَ ۚ

(इस पर अभी सुलेमान कुछ कहने न पाए थे कि)

वह शख्स (आसिफ़ बिन बरख़िया) जिसके पास किताबे (ख़ुदा) का किस कदर इल्म था बोला कि मै आप की पलक झपकने से पहले तख्त को आप के पास हाज़िर किए देता हूँ

فَلَمَّا رَآهُ مُسْتَقِرًّا عِنْدَهُ قَالَ هَذَا مِنْ فَضْلِ رَبِّي لِيَبْلُوَنِي أَأَشْكُرُ أَمْ أَكْفُرُ ۖ

(बस इतने ही में आ गया) तो जब सुलेमान ने उसे अपने पास मौजूद पाया तो कहने लगे ये महज़ मेरे परवरदिगार का फज़ल व करम है ताकि वह मेरा इम्तेहान ले कि मै उसका शुक्र करता हूँ या नाशुक्री करता हूँ

وَمَنْ شَكَرَ فَإِنَّمَا يَشْكُرُ لِنَفْسِهِ ۖ

और जो कोई शुक्र करता है वह अपनी ही भलाई के लिए शुक्र करता है

وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ رَبِّي غَنِيٌّ كَرِيمٌ

और जो शख्स ना शुक्री करता है तो (याद रखिए) मेरा परवरदिगार यक़ीनन बेपरवा और सख़ी है

41

قَالَ نَكِّرُوا لَهَا عَرْشَهَا نَنْظُرْ أَتَهْتَدِي أَمْ تَكُونُ مِنَ الَّذِينَ لَا يَهْتَدُونَ

(उसके बाद) सुलेमान ने कहा कि उसके तख्त में (उसकी अक्ल के इम्तिहान के लिए) तग़य्युर तबददुल कर दो

ताकि हम देखें कि फिर भी वह समझ रखती है या उन लोगों में है जो कुछ समझ नहीं रखते

42

فَلَمَّا جَاءَتْ قِيلَ أَهَكَذَا عَرْشُكِ ۖ

(चुनान्चे ऐसा ही किया गया) फिर जब बिलक़ीस (सुलेमान के पास) आयी तो पूछा गया कि तुम्हारा तख्त भी ऐसा ही है

 قَالَتْ كَأَنَّهُ هُوَ ۚ

वह बोली गोया ये वही है

وَأُوتِينَا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهَا وَكُنَّا مُسْلِمِينَ

(फिर कहने लगी) हमको तो उससे पहले ही (आपकी नुबूवत) मालूम हो गयी थी और हम तो आपके फ़रमाबरदार थे ही

43

وَصَدَّهَا مَا كَانَتْ تَعْبُدُ مِنْ دُونِ اللَّهِ ۖ إِنَّهَا كَانَتْ مِنْ قَوْمٍ كَافِرِينَ

और ख़ुदा के सिवा जिसे वह पूजती थी सुलेमान ने उससे उसे रोक दिया

क्योंकि वह काफिर क़ौम की थी (और आफताब को पूजती थी)

44

قِيلَ لَهَا ادْخُلِي الصَّرْحَ ۖ فَلَمَّا رَأَتْهُ حَسِبَتْهُ لُجَّةً وَكَشَفَتْ عَنْ سَاقَيْهَا ۚ

फिर उससे कहा गया कि आप अब महल मे चलिए

तो जब उसने महल (में शीशे के फर्श) को देखा तो उसको गहरा पानी समझी (और गुज़रने के लिए इस तरह अपने पाएचे उठा लिए कि) अपनी दोनों पिन्डलियाँ खोल दी

قَالَ إِنَّهُ صَرْحٌ مُمَرَّدٌ مِنْ قَوَارِيرَ ۗ

सुलेमान ने कहा (तुम डरो नहीं) ये (पानी नहीं है) महल है जो शीशे से मढ़ा हुआ है

قَالَتْ رَبِّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي وَأَسْلَمْتُ مَعَ سُلَيْمَانَ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

(उस वक्त तम्बीह हुई और) अर्ज़ की परवरदिगार मैने (आफताब को पूजा कर) यक़ीनन अपने ऊपर ज़ुल्म किया

और अब मैं सुलेमान के साथ सारे जहाँ के पालने वाले खुदा पर ईमान लाती हूँ

45

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا إِلَى ثَمُودَ أَخَاهُمْ صَالِحًا أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ

और हम ही ने क़ौम समूद के पास उनके भाई सालेह को पैग़म्बर बनाकर भेजा कि तुम लोग ख़ुदा की इबादत करो

 فَإِذَا هُمْ فَرِيقَانِ يَخْتَصِمُونَ

तो वह सालेह के आते ही (मोमिन व काफिर) दो फरीक़ बनकर बाहम झगड़ने लगे

46

قَالَ يَا قَوْمِ لِمَ تَسْتَعْجِلُونَ بِالسَّيِّئَةِ قَبْلَ الْحَسَنَةِ ۖ

सालेह ने कहा ऐ मेरी क़ौम (आख़िर) तुम लोग भलाई से पहल बुराई के वास्ते जल्दी क्यों कर रहे हो

لَوْلَا تَسْتَغْفِرُونَ اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُرْحَمُونَ

तुम लोग ख़ुदा की बारगाह में तौबा व अस्तग़फार क्यों नही करते ताकि तुम पर रहम किया जाए

47

قَالُوا اطَّيَّرْنَا بِكَ وَبِمَنْ مَعَكَ ۚ

वह लोग बोले हमने तो तुम से और तुम्हारे साथियों से बुरा शगुन पाया

 قَالَ طَائِرُكُمْ عِنْدَ اللَّهِ ۖ بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تُفْتَنُونَ

सालेह ने कहा तुम्हारी बदकिस्मती ख़ुदा के पास है

(ये सब कुछ नहीं) बल्कि तुम लोगों की आज़माइश की जा रही है

48

وَكَانَ فِي الْمَدِينَةِ تِسْعَةُ رَهْطٍ يُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ وَلَا يُصْلِحُونَ

और शहर में नौ आदमी थे जो मुल्क के बानीये फसाद थे और इसलाह की फिक्र न करते थे-

49

قَالُوا تَقَاسَمُوا بِاللَّهِ لَنُبَيِّتَنَّهُ وَأَهْلَهُ

उन लोगों ने (आपस में) कहा कि बाहम ख़ुदा की क़सम खाते जाओ कि हम लोग सालेह और उसके लड़के बालो पर शब खून करे

ثُمَّ لَنَقُولَنَّ لِوَلِيِّهِ مَا شَهِدْنَا مَهْلِكَ أَهْلِهِ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ

उसके बाद उसके वाली वारिस से कह देगें कि हम लोग उनके घर वालों को हलाक़ होते वक्त मौजूद ही न थे और हम लोग तो यक़ीनन सच्चे हैं

50

وَمَكَرُوا مَكْرًا وَمَكَرْنَا مَكْرًا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ

और उन लोगों ने एक तदबीर की

और हमने भी एक तदबीर की और (हमारी तदबीर की) उनको ख़बर भी न हुई

51

فَانْظُرْ كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ مَكْرِهِمْ  أَنَّا دَمَّرْنَاهُمْ وَقَوْمَهُمْ أَجْمَعِينَ

तो (ऐ रसूल) तुम देखो उनकी तदबीर का क्या (बुरा) अन्जाम हुआ

कि हमने उनको और सारी क़ौम को हलाक कर डाला

52

فَتِلْكَ بُيُوتُهُمْ خَاوِيَةً بِمَا ظَلَمُوا ۗ

ये बस उनके घर हैं कि उनकी नाफरमानियों की वज़ह से ख़ाली वीरान पड़े हैं

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ

इसमे शक नही कि उस वाक़िये में वाक़िफ कार लोगों के लिए बड़ी इबरत है

53

وَأَنْجَيْنَا الَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ

और हमने उन लोगों को जो ईमान लाए थे और परहेज़गार थे बचा लिया

54

وَلُوطًا إِذْ قَالَ لِقَوْمِهِ أَتَأْتُونَ الْفَاحِشَةَ وَأَنْتُمْ تُبْصِرُونَ

और (ऐ रसूल) लूत को (याद करो) जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा कि

क्या तुम देखभाल कर (समझ बूझ कर) ऐसी बेहयाई करते हो

55

أَئِنَّكُمْ لَتَأْتُونَ الرِّجَالَ شَهْوَةً مِنْ دُونِ النِّسَاءِ ۚ

क्या तुम औरतों को छोड़कर शहवत से मर्दों के आते हो

(ये तुम अच्छा नहीं करते)

بَلْ أَنْتُمْ قَوْمٌ تَجْهَلُونَ

बल्कि तुम लोग बड़ी जाहिल क़ौम हो

56

فَمَا كَانَ جَوَابَ قَوْمِهِ إِلَّا أَنْ قَالُوا أَخْرِجُوا آلَ لُوطٍ مِنْ قَرْيَتِكُمْ ۖ إِنَّهُمْ أُنَاسٌ يَتَطَهَّرُونَ

तो लूत की क़ौम का इसके सिवा कुछ जवाब न था कि वह लोग बोल उठे कि लूत के खानदान को अपनी बस्ती (सदूम) से निकाल बाहर करो

ये लोग बड़े पाक साफ बनना चाहते हैं

57

فَأَنْجَيْنَاهُ وَأَهْلَهُ إِلَّا امْرَأَتَهُ  قَدَّرْنَاهَا مِنَ الْغَابِرِينَ

ग़रज हमने लूत को और उनके ख़ानदान को बचा लिया मगर उनकी बीवी

कि हमने उसकी तक़दीर में पीछे रह जाने वालों में लिख दिया था

58

‏وَأَمْطَرْنَا عَلَيْهِمْ مَطَرًا ۖ فَسَاءَ مَطَرُ الْمُنْذَرِينَ

और (फिर तो) हमने उन लोगों पर (पत्थर का) मेंह बरसाया

तो जो लोग डराए जा चुके थे उन पर क्या बुरा मेंह बरसा

59

قُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَسَلَامٌ عَلَى عِبَادِهِ الَّذِينَ اصْطَفَى ۗ

(ऐ रसूल) तुम कह दो (उनके हलाक़ होने पर) खुदा का शुक्र और उसके बरगुज़ीदा बन्दों पर सलाम

آللَّهُ خَيْرٌ أَمَّا يُشْرِكُونَ

भला ख़ुदा बेहतर है या वह चीज़ जिसे ये लोग शरीके ख़ुदा कहते हैं

60

أَمَّنْ خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَأَنْزَلَ لَكُمْ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً

भला वह कौन है जिसने आसमान और ज़मीन को पैदा किया और तुम्हारे वास्ते आसमान से पानी बरसाया

فَأَنْبَتْنَا بِهِ حَدَائِقَ ذَاتَ بَهْجَةٍ مَا كَانَ لَكُمْ أَنْ تُنْبِتُوا شَجَرَهَا ۗ

फिर हम ही ने पानी से दिल चस्प (ख़ुशनुमा) बाग़ उठाए तुम्हारे तो ये बस की बात न थी कि तुम उनके दरख्तों को उगा सकते

أَإِلَهٌ مَعَ اللَّهِ ۚ بَلْ هُمْ قَوْمٌ يَعْدِلُونَ

तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है

(हरगिज़ नहीं)

बल्कि ये लोग खुद अपने जी से गढ़ के बुतो को उसके बराबर बनाते हैं

61

أَمَّنْ جَعَلَ الْأَرْضَ قَرَارًا وَجَعَلَ خِلَالَهَا أَنْهَارًا وَجَعَلَ لَهَا رَوَاسِيَ وَجَعَلَ بَيْنَ الْبَحْرَيْنِ حَاجِزًا ۗ

भला वह कौन है जिसने ज़मीन को (लोगों के) ठहरने की जगह बनाया और उसके दरमियान जा बजा नहरें दौड़ायी और उसकी मज़बूती के वास्ते पहाड़ बनाए

और (मीठे खारी) दरियाओं के दरमियान हदे फासिल बनाया

أَإِلَهٌ مَعَ اللَّهِ ۚبَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं)

बल्कि उनमें के अकसर कुछ जानते ही नहीं

62

أَمَّنْ يُجِيبُ الْمُضْطَرَّ إِذَا دَعَاهُ  وَيَكْشِفُ السُّوءَ وَيَجْعَلُكُمْ خُلَفَاءَ الْأَرْضِ ۗ

भला वह कौन है कि जब मुज़तर उसे पुकारे तो दुआ क़ुबूल करता है और मुसीबत को दूर करता है

और तुम लोगों को ज़मीन में (अपना) नायब बनाता है

أَإِلَهٌ مَعَ اللَّهِ ۚ قَلِيلًا مَا تَذَكَّرُونَ

तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद है (हरगिज़ नहीं)

उस पर भी तुम लोग बहुत कम नसीहत व इबरत हासिल करते हो  

63

أَمَّنْ يَهْدِيكُمْ فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَمَنْ يُرْسِلُ الرِّيَاحَ بُشْرًا بَيْنَ يَدَيْ رَحْمَتِهِ ۗ

भला वह कौन है जो तुम लोगों की ख़श्की और तरी की तारिक़ियों में राह दिखाता है

और कौन उसकी बाराने रहमत के आगे आगे (बारिश की) ख़ुशखबरी लेकर हवाओं को भेजता है-

أَإِلَهٌ مَعَ اللَّهِ ۚ تَعَالَى اللَّهُ عَمَّا يُشْرِكُونَ

क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरगिज़ नहीं)

ये लोग जिन चीज़ों को ख़ुदा का शरीक ठहराते हैं ख़ुदा उससे बालातर है

64

أَمَّنْ يَبْدَأُ الْخَلْقَ ثُمَّ يُعِيدُهُ وَمَنْ يَرْزُقُكُمْ مِنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۗ

भला वह कौन हैं जो ख़िलकत को नए सिरे से पैदा करता है फिर उसे दोबारा (मरने के बाद) पैदा करेगा और कौन है जो तुम लोगों को आसमान व ज़मीन से रिज़क़ देता है-

  أَإِلَهٌ مَعَ اللَّهِ ۚ

तो क्या ख़ुदा के साथ कोई और माबूद भी है (हरग़िज़ नहीं)

قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

(ऐ रसूल) तुम (इन मुशरेकीन से) कहा दो कि अगर तुम सच्चे हो तो अपनी दलील पेश करो

65

قُلْ لَا يَعْلَمُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الْغَيْبَ إِلَّا اللَّهُ ۚ

(ऐ रसूल इन से) कह दो कि जितने लोग आसमान व ज़मीन में हैं उनमे से कोई भी गैब की बात के सिवा नहीं जानता

وَمَا يَشْعُرُونَ أَيَّانَ يُبْعَثُونَ

और वह भी तो नहीं समझते कि क़ब्र से दोबारा कब ज़िन्दा उठ खडे क़िए जाएँगें

66

بَلِ ادَّارَكَ عِلْمُهُمْ فِي الْآخِرَةِ ۚ

बल्कि (असल ये है कि) आख़िरत के बारे में उनके इल्म का ख़ात्मा हो गया है

 بَلْ هُمْ فِي شَكٍّ مِنْهَا ۖ بَلْ هُمْ مِنْهَا عَمُونَ

बल्कि उसकी तरफ से शक में पड़ें हैं

बल्कि (सच ये है कि) इससे ये लोग अंधे बने हुए हैं

67

وَقَالَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَإِذَا كُنَّا تُرَابًا وَآبَاؤُنَا أَئِنَّا لَمُخْرَجُونَ

और कुफ्फार कहने लगे कि क्या जब हम और हमारे बाप दादा (सड़ गल कर) मिट्टी हो जाएँगें तो क्या हम फिर निकाले जाएँगें

68

لَقَدْ وُعِدْنَا هَذَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا مِنْ قَبْلُ إِنْ هَذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ

उसका तो पहले भी हम से और हमारे बाप दादाओं से वायदा किया गया था

(कहाँ का उठना और कैसी क़यामत)

ये तो हो न हो अगले लोगों के ढकोसले हैं

69

قُلْ سِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَانْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الْمُجْرِمِينَ

(ऐ रसूल) लोगों से कह दो कि रुए ज़मीन पर ज़रा चल फिर कर देखो तो गुनाहगारों का अन्जाम क्या हुआ

70

وَلَا تَحْزَنْ عَلَيْهِمْ وَلَا تَكُنْ فِي ضَيْقٍ مِمَّا يَمْكُرُونَ

(ऐ रसूल) तुम उनके हाल पर कुछ अफ़सोस न करो और जो चालें ये लोग (तुम्हारे ख़िलाफ) चल रहे हैं उससे तंग दिल न हो

71

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

और ये (कुफ्फ़ार मुसलमानों से) पूछते हैं कि अगर तुम सच्चे हो तो (आख़िर) ये (क़यामत या अज़ाब का) वायदा कब पूरा होगा

72

قُلْ عَسَى أَنْ يَكُونَ رَدِفَ لَكُمْ بَعْضُ الَّذِي تَسْتَعْجِلُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि जिस (अज़ाब) की तुम लोग जल्दी मचा रहे हो क्या अजब है इसमे से कुछ करीब आ गया हो

73

وَإِنَّ رَبَّكَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَهُمْ لَا يَشْكُرُونَ

और इसमें तो शक ही नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार लोगों पर बड़ा फज़ल व करम करने वाला है मगर बहुतेरे लोग (उसका) शुक्र नहीं करते

74

وَإِنَّ رَبَّكَ لَيَعْلَمُ مَا تُكِنُّ صُدُورُهُمْ وَمَا يُعْلِنُونَ

और इसमें तो शक नहीं जो बातें उनके दिलों में पोशीदा हैं और जो कुछ ये एलानिया करते हैं तुम्हारा परवरदिगार यक़ीनी जानता है

75

‏وَمَا مِنْ غَائِبَةٍ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِلَّا فِي كِتَابٍ مُبِينٍ

और आसमान व ज़मीन में कोई ऐसी बात पोशीदा नहीं जो वाज़ेए व रौशन किताब (लौहे महफूज़) में (लिखी) मौजूद न हो

76

إِنَّ هَذَا الْقُرْآنَ يَقُصُّ عَلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ أَكْثَرَ الَّذِي هُمْ فِيهِ يَخْتَلِفُونَ

इसमें भी शक नहीं कि ये क़ुरान बनी इसराइल पर उनकी अक्सर बातों को जिन में ये इख्तेलाफ़ करते हैं ज़ाहिर कर देता है

77

وَإِنَّهُ لَهُدًى وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ

और इसमें भी शक नहीं कि ये कुरान ईमानदारों के वास्ते अज़सरतापा हिदायत व रहमत है

78

إِنَّ رَبَّكَ يَقْضِي بَيْنَهُمْ بِحُكْمِهِ ۚ وَهُوَ الْعَزِيزُ الْعَلِيمُ

(ऐ रसूल) बेशक तुम्हारा परवरदिगार अपने हुक्म से उनके आपस (के झगड़ों) का फैसला कर देगा

और वह (सब पर) ग़ालिब और वाक़िफकार है

79

فَتَوَكَّلْ عَلَى اللَّهِ ۖ إِنَّكَ عَلَى الْحَقِّ الْمُبِينِ

तो (ऐ रसूल) तुम खुदा पर भरोसा रखो

बेशक तुम यक़ीनी सरीही हक़ पर हो

80

إِنَّكَ لَا تُسْمِعُ الْمَوْتَى وَلَا تُسْمِعُ الصُّمَّ الدُّعَاءَ إِذَا وَلَّوْا مُدْبِرِينَ

बेशक न तो तुम मुर्दों को (अपनी बात) सुना सकते हो और न बहरों को अपनी आवाज़ सुना सकते हो (ख़ासकर) जब वह पीठ फेर कर भाग ख़डें हो

81

 ‏وَمَا أَنْتَ بِهَادِي الْعُمْيِ عَنْ ضَلَالَتِهِمْ ۖ

और न तुम अंधें को उनकी गुमराही से राह पर ला सकते हो

إِنْ تُسْمِعُ إِلَّا مَنْ يُؤْمِنُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ مُسْلِمُونَ

तुम तो बस उन्हीं लोगों को (अपनी बात) सुना सकते हो जो हमारी आयतों पर ईमान रखते हैं

82

وَإِذَا وَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ أَخْرَجْنَا لَهُمْ دَابَّةً مِنَ الْأَرْضِ

फिर वही लोग तो मानने वाले भी हैं जब उन लोगों पर (क़यामत का) वायदा पूरा होगा तो हम उनके वास्ते ज़मीन से एक चलने वाला निकाल खड़ा करेंगे

 تُكَلِّمُهُمْ أَنَّ النَّاسَ كَانُوا بِآيَاتِنَا لَا يُوقِنُونَ

जो उनसे ये बाते करेंगा कि (फलॉ फला) लोग हमारी आयतो का यक़ीन नहीं रखते थे

83

وَيَوْمَ نَحْشُرُ مِنْ كُلِّ أُمَّةٍ فَوْجًا مِمَّنْ يُكَذِّبُ بِآيَاتِنَا فَهُمْ يُوزَعُونَ

और (उस दिन को याद करो) जिस दिन हम हर उम्मत से एक ऐसे गिरोह को जो हमारी आयतों को झुठलाया करते थे (ज़िन्दा करके) जमा करेंगे फिर उन की टोलियाँ अलहदा अलहदा करेंगे

84

‏حَتَّى إِذَا جَاءُوا قَالَ أَكَذَّبْتُمْ بِآيَاتِي  وَلَمْ تُحِيطُوا بِهَا عِلْمًا أَمَّاذَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ

यहाँ तक कि जब वह सब (ख़ुदा के सामने) आएँगें और ख़ुदा उनसे कहेगा क्या तुम ने हमारी आयतों को बगैर अच्छी तरह समझे बूझे झुठलाया-

भला तुम क्या क्या करते थे और चूँकि ये लोग ज़ुल्म किया करते थे

85

وَوَقَعَ الْقَوْلُ عَلَيْهِمْ بِمَا ظَلَمُوا فَهُمْ لَا يَنْطِقُونَ

इन पर (अज़ाब का) वायदा पूरा हो गया फिर ये लोग कुछ बोल भी तो न सकेंगें

86

أَلَمْ يَرَوْا أَنَّا جَعَلْنَا اللَّيْلَ لِيَسْكُنُوا فِيهِ وَالنَّهَارَ مُبْصِرًا ۚ

क्या इन लोगों ने ये भी न देखा कि हमने रात को इसलिए बनाया कि ये लोग इसमे चैन करें और दिन को रौशन (ताकि देखभाल करे)

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ

बेशक इसमें ईमान लाने वालों के लिए (कुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं

87

وَيَوْمَ يُنْفَخُ فِي الصُّورِ فَفَزِعَ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَمَنْ فِي الْأَرْضِ إِلَّا مَنْ شَاءَ اللَّهُ ۚ

और (उस दिन याद करो) जिस दिन सूर फूँका जाएगा तो जितने लोग आसमानों मे हैं और जितने लोग ज़मीन में हैं (ग़रज़ सब के सब) दहल जाएंगें मगर जिस शख्स को ख़ुदा चाहे (वो अलबत्ता मुतमइन रहेगा)

وَكُلٌّ أَتَوْهُ دَاخِرِينَ

और सब लोग उसकी बारगाह में ज़िल्लत व आजिज़ी की हालत में हाज़िर होगें

88

وَتَرَى الْجِبَالَ تَحْسَبُهَا جَامِدَةً  وَهِيَ تَمُرُّ مَرَّ السَّحَابِ ۚ

और तुम पहाड़ों को देखकर उन्हें मज़बूर जमे हुए समझतें हो

हालाकि ये (क़यामत के दिन) बादल की तरह उड़े उडे फ़िरेगें

صُنْعَ اللَّهِ الَّذِي أَتْقَنَ كُلَّ شَيْءٍ ۚ إِنَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَفْعَلُونَ

(ये भी) ख़ुदा की कारीगरी है कि जिसने हर चीज़ को ख़ूब मज़बूत बनाया है

बेशक जो कुछ तुम लोग करते हो उससे वह ख़ूब वाक़िफ़ है

89

مَنْ جَاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ خَيْرٌ مِنْهَاوَهُمْ مِنْ فَزَعٍ يَوْمَئِذٍ آمِنُونَ

जो शख्स नेक काम करेगा उसके लिए उसकी जज़ा उससे कहीं बेहतर है

ओर ये लोग उस दिन ख़ौफ व ख़तरे से महफूज़ रहेंगे

90

وَمَنْ جَاءَ بِالسَّيِّئَةِ فَكُبَّتْ وُجُوهُهُمْ فِي النَّارِ

और जो लोग बुरा काम करेंगे वह मुँह के बल जहन्नुम में झोक दिए जाएँगे

 هَلْ تُجْزَوْنَ إِلَّا مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ

(और उनसे कहा जाएगा कि)

जो कुछ तुम (दुनिया में) करते थे बस उसी का जज़ा तुम्हें दी जाएगी

91

إِنَّمَا أُمِرْتُ أَنْ أَعْبُدَ رَبَّ هَذِهِ الْبَلْدَةِ الَّذِي حَرَّمَهَا وَلَهُ كُلُّ شَيْءٍ ۖ

(ऐ रसूल उनसे कह दो कि)

मुझे तो बस यही हुक्म दिया गया है कि मै इस शहर (मक्का) के मालिक की इबादत करुँ जिसने उसे इज्ज़त व हुरमत दी है और हर चीज़ उसकी है

وَأُمِرْتُ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْمُسْلِمِينَ

और मुझे ये हुक्म दिया गया कि मै (उसके) फरमाबरदार बन्दों में से हूँ

92

وَأَنْ أَتْلُوَ الْقُرْآنَ ۖ

और ये कि मै क़ुरान पढ़ा करुँ

 فَمَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ ۖ

फिर जो शख्स राह पर आया तो अपनी ज़ात के नफे क़े वास्ते राह पर आया

وَمَنْ ضَلَّ فَقُلْ إِنَّمَا أَنَا مِنَ الْمُنْذِرِينَ

और जो गुमराह हुआ तो तुम कह दो कि मै भी एक एक डराने वाला हूँ

93

وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ سَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ فَتَعْرِفُونَهَا ۚ

और तुम कह दो कि अल्हमदोलिल्लाह वह अनक़रीब तुम्हें (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ दिखा देगा तो तुम उन्हें पहचान लोगे

وَمَا رَبُّكَ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

और जो कुछ तुम करते हो तुम्हारा परवरदिगार उससे ग़ाफिल नहीं है

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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