Quran Hindi Translation

Surah Al Anbiya

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

اقْتَرَبَ لِلنَّاسِ حِسَابُهُمْ وَهُمْ فِي غَفْلَةٍ مُعْرِضُونَ

लोगों के पास उनका हिसाब (उसका वक्त) आ पहुँचा और वह है कि गफ़लत में पड़े मुँह मोड़े ही जाते हैं

2

مَا يَأْتِيهِمْ مِنْ ذِكْرٍ مِنْ رَبِّهِمْ مُحْدَثٍ إِلَّا اسْتَمَعُوهُ وَهُمْ يَلْعَبُونَ

जब उनके परवरदिगार की तरफ से उनके पास कोई नया हुक्म आता है तो उसे सिर्फ कान लगाकर सुन लेते हैं और (फिर उसका) हँसी खेल उड़ाते हैं

3

لَاهِيَةً قُلُوبُهُمْ ۗ

उनके दिल (आख़िरत के ख्याल से) बिल्कुल बेख़बर हैं

وَأَسَرُّوا النَّجْوَى الَّذِينَ ظَلَمُوا هَلْ هَذَا إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ ۖ أَفَتَأْتُونَ السِّحْرَ وَأَنْتُمْ تُبْصِرُونَ

और ये ज़ालिम चुपके-चुपके कानाफूसी किया करते हैं कि ये शख्स (मोहम्मद कुछ भी नहीं) बस तुम्हारे ही सा आदमी है

तो क्या तुम दीन व दानिस्ता जादू में फँसते हो

4

قَالَ رَبِّي يَعْلَمُ الْقَوْلَ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

(तो उस पर) रसूल ने कहा कि मेरा परवरदिगार जितनी बातें आसमान और ज़मीन में होती हैं खूब जानता है

(फिर क्यों कानाफूसी करते हो)

और वह तो बड़ा सुनने वाला वाक़िफ़कार है

5

بَلْ قَالُوا أَضْغَاثُ أَحْلَامٍ بَلِ افْتَرَاهُ بَلْ هُوَ شَاعِرٌ بَلْ هُوَ شَاعِرٌ

(उस पर भी उन लोगों ने इक्तिफ़ा न की)

बल्कि कहने लगे (ये कुरान तो) ख़ाबहाय परीशाँ का मजमूआ है

बल्कि उसने खुद अपने जी से झूट-मूट गढ़ लिया है

बल्कि ये शख्स शायर है

فَلْيَأْتِنَا بِآيَةٍ كَمَا أُرْسِلَ الْأَوَّلُونَ

और अगर हक़ीकतन रसूल है तो जिस तरह अगले पैग़म्बर मौजिज़ों के साथ भेजे गए थे उसी तरह ये भी कोई मौजिज़ा (जैसा हम कहें) हमारे पास भला लाए तो सही

6

‏مَا آمَنَتْ قَبْلَهُمْ مِنْ قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَاهَا ۖ أَفَهُمْ يُؤْمِنُونَ

इनसे पहले जिन बस्तियों को तबाह कर डाला (मौजिज़े भी देखकर तो) ईमान न लाए

तो क्या ये लोग ईमान लाएँगे

7

وَمَا أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ إِلَّا رِجَالًا نُوحِي إِلَيْهِمْ ۖ فَاسْأَلُوا أَهْلَ الذِّكْرِ إِنْ كُنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

और ऐ रसूल हमने तुमसे पहले भी आदमियों ही को (रसूल बनाकर) भेजा था कि उनके पास ''वही'' भेजा करते थे

तो अगर तुम लोग खुद नहीं जानते हो तो आलिमों से पूँछकर देखो

8

وَمَا جَعَلْنَاهُمْ جَسَدًا لَا يَأْكُلُونَ الطَّعَامَ وَمَا كَانُوا خَالِدِينَ

Nor did We give them bodies that ate no food nor were they exempt from death.

और हमने उन (पैग़म्बरों) के बदन ऐसे नहीं बनाए थे कि वह खाना न खाएँ और न वह (दुनिया में) हमेशा रहने सहने वाले थे

9

ثُمَّ صَدَقْنَاهُمُ الْوَعْدَ فَأَنْجَيْنَاهُمْ وَمَنْ نَشَاءُ وَأَهْلَكْنَا الْمُسْرِفِينَ

फिर हमने उन्हें (अपना अज़ाब का) वायदा सच्चा कर दिखाया

(और जब अज़ाब आ पहुँचा) तो हमने उन पैग़म्बरों को और जिस जिसको चाहा छुटकारा दिया और हद से बढ़ जाने वालों को हलाक कर डाला

10

لَقَدْ أَنْزَلْنَا إِلَيْكُمْ كِتَابًا فِيهِ ذِكْرُكُمْ ۖأَفَلَا تَعْقِلُونَ

हमने तो तुम लोगों के पास वह किताब (कुरान) नाज़िल की है जिसमें तुम्हारा (भी) ज़िक्रे (ख़ैर) है

तो क्या तुम लोग (इतना भी) नहीं समझते

11

وَكَمْ قَصَمْنَا مِنْ قَرْيَةٍ كَانَتْ ظَالِمَةً وَأَنْشَأْنَا بَعْدَهَا قَوْمًا آخَرِينَ

और हमने कितनी बस्तियों को जिनके रहने वाले सरकश थे बरबाद कर दिया

और उनके बाद दूसरे लोगों को पैदा किया

12

فَلَمَّا أَحَسُّوا بَأْسَنَا إِذَا هُمْ مِنْهَا يَرْكُضُونَ

तो जब उन लोगों ने हमारे अज़ाब की आहट पाई तो एका एकी भागने लगे

13

لَا تَرْكُضُوا وَارْجِعُوا إِلَى مَا أُتْرِفْتُمْ فِيهِ وَمَسَاكِنِكُمْ  لَعَلَّكُمْ تُسْأَلُونَ

(हमने कहा) भागो नहीं और उन्हीं बस्तियों और घरों में लौट जाओ जिनमें तुम चैन करते थे

ताकि तुमसे कुछ पूछगछ की जाए  

14

قَالُوا يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ

वह लोग कहने लगे हाए हमारी शामत बेशक हम सरकश तो ज़रूर थे

15

فَمَا زَالَتْ تِلْكَ دَعْوَاهُمْ حَتَّى جَعَلْنَاهُمْ حَصِيدًا خَامِدِينَ

ग़रज़ वह बराबर यही पड़े पुकारा किए

यहाँ तक कि हमने उन्हें कटी हुई खेती की तरह बिछा के ठन्डा करके ढेर कर दिया

16

وَمَا خَلَقْنَا السَّمَاءَ وَالْأَرْضَ وَمَا بَيْنَهُمَا لَاعِبِينَ

और हमने आसमान और ज़मीन को और जो कुछ इन दोनों के दरमियान है बेकार लगो नहीं पैदा किया

17

لَوْ أَرَدْنَا أَنْ نَتَّخِذَ لَهْوًا لَاتَّخَذْنَاهُ مِنْ لَدُنَّا إِنْ كُنَّا فَاعِلِينَ

अगर हम कोई खेल बनाना चाहते तो बेशक हम उसे अपनी तजवीज़ से बना लेते अगर हमको करना होता

(मगर हमें शायान ही न था)

18

بَلْ نَقْذِفُ بِالْحَقِّ عَلَى الْبَاطِلِ فَيَدْمَغُهُ فَإِذَا هُوَ زَاهِقٌ ۚ

बल्कि हम तो हक़ को नाहक़ (के सर) पर खींच मारते हैं तो वह बिल्कुल के सर को कुचल देता है फिर वह उसी वक्त नेस्तवेनाबूद हो जाता है

وَلَكُمُ الْوَيْلُ مِمَّا تَصِفُونَ

और तुम पर अफ़सोस है कि ऐसी-ऐसी नाहक़ बातें बनाये करते हो

19

وَلَهُ مَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۚ

हालाँकि जो लोग (फरिश्ते) आसमान और ज़मीन में हैं (सब) उसी के (बन्दे) हैं

وَمَنْ عِنْدَهُ لَا يَسْتَكْبِرُونَ عَنْ عِبَادَتِهِ وَلَا يَسْتَحْسِرُونَ

और जो (फरिश्ते) उस सरकार में हैं न तो वह उसकी इबादत की शेख़ी करते हैं और न थकते हैं

20

يُسَبِّحُونَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ لَا يَفْتُرُونَ

रात और दिन उसकी तस्बीह किया करते हैं (और) कभी काहिली नहीं करते

21

أَمِ اتَّخَذُوا آلِهَةً مِنَ الْأَرْضِ هُمْ يُنْشِرُونَ

उन लोगों जो माबूद ज़मीन में बना रखे हैं क्या वही (लोगों को) ज़िन्दा करेंगे

22

لَوْ كَانَ فِيهِمَا آلِهَةٌ إِلَّا اللَّهُ لَفَسَدَتَا ۚ

अगर (बफ़रने मुहाल) ज़मीन व आसमान में खुदा कि सिवा चन्द माबूद होते तो दोनों कब के बरबाद हो गए होते

فَسُبْحَانَ اللَّهِ رَبِّ الْعَرْشِ عَمَّا يَصِفُونَ

तो जो बातें ये लोग अपने जी से (उसके बारे में) बनाया करते हैं खुदा जो अर्श का मालिक है उन तमाम ऐबों से पाक व पाकीज़ा है

23

لَا يُسْأَلُ عَمَّا يَفْعَلُ وَهُمْ يُسْأَلُونَ

जो कुछ वह करता है उसकी पूछगछ नहीं हो सकती

(हाँ) और उन लोगों से बाज़पुर्स होगी

24

أَمِ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ آلِهَةً ۖ

क्या उन लोगों ने खुदा को छोड़कर कुछ और माबूद बना रखे हैं

قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ ۖ هَذَا ذِكْرُ مَنْ مَعِيَ وَذِكْرُ مَنْ قَبْلِي ۗ

(ऐ रसूल) तुम कहो कि भला अपनी दलील तो पेश करो

जो मेरे (ज़माने में) साथ है उनकी किताब (कुरान) और जो लोग मुझ से पहले थे उनकी किताबें (तौरेत वग़ैरह) ये (मौजूद) हैं (उनमें खुदा का शरीक बता दो)

 بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يَعْلَمُونَ الْحَقَّ ۖ فَهُمْ مُعْرِضُونَ

बल्कि उनमें से अक्सर तो हक़ (बात) को तो जानते ही नहीं तो (जब हक़ का ज़िक्र आता है) ये लोग मुँह फेर लेते हैं

25

وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا نُوحِي إِلَيْهِ أَنَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدُونِ

और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले जब कभी कोई रसूल भेजा तो उसके पास ''वही'' भेजते रहे कि बस

हमारे सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं तो मेरी इबादत किया करो

26

وَقَالُوا اتَّخَذَ الرَّحْمَنُ وَلَدًا ۗ سُبْحَانَهُ ۚ

और (अहले मक्का) कहते हैं कि खुदा ने (फरिश्तों को) अपनी औलाद (बेटियाँ) बना रखा है

(हालाँकि) वह उससे पाक व पकीज़ा हैं

 بَلْ عِبَادٌ مُكْرَمُونَ

they are (but) servants raised to honor.

बल्कि (वह फ़रिश्ते खुदा के) मोअज्ज़ि बन्दे हैं

27

لَا يَسْبِقُونَهُ بِالْقَوْلِ وَهُمْ بِأَمْرِهِ يَعْمَلُونَ

ये लोग उसके सामने बढ़कर बोल नहीं सकते और ये लोग उसी के हुक्म पर चलते हैं

28

يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يَشْفَعُونَ إِلَّا لِمَنِ ارْتَضَى وَهُمْ مِنْ خَشْيَتِهِ مُشْفِقُونَ

जो कुछ उनके सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वह (खुदा) जानता है

और ये लोग उस शख्स के सिवा जिससे खुदा राज़ी हो किसी की सिफारिश भी नहीं करते

और ये लोग खुद उसके ख़ौफ से (हर वक्त) ड़रते रहते हैं

29

وَمَنْ يَقُلْ مِنْهُمْ إِنِّي إِلَهٌ مِنْ دُونِهِ فَذَلِكَ نَجْزِيهِ جَهَنَّمَ ۚ

और उनमें से जो कोई ये कह दे कि खुदा नहीं (बल्कि) मैं माबूद हूँ तो वह (मरदूद बारगाह हुआ) हम उसको जहन्नुम की सज़ा देंगे

كَذَلِكَ نَجْزِي الظَّالِمِينَ

और सरकशों को हम ऐसी ही सज़ा देते हैं

30

أَوَلَمْ يَرَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ كَانَتَا رَتْقًا فَفَتَقْنَاهُمَا ۖ

जो लोग काफिर हो बैठे क्या उन लोगों ने इस बात पर ग़ौर नहीं किया कि आसमान और ज़मीन दोनों बस्ता (बन्द) थे तो हमने दोनों को शिगाफ़ता किया (खोल दिया)

وَجَعَلْنَا مِنَ الْمَاءِ كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّ ۖ أَفَلَا يُؤْمِنُونَ

और हम ही ने जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया

इस पर भी ये लोग ईमान न लाएँगे

31

وَجَعَلْنَا فِي الْأَرْضِ رَوَاسِيَ أَنْ تَمِيدَ بِهِمْ وَجَعَلْنَا فِيهَا فِجَاجًا سُبُلًا لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ

और हम ही ने ज़मीन पर भारी बोझल पहाड़ बनाए ताकि ज़मीन उन लोगों को लेकर किसी तरफ झुक न पड़े

और हम ने ही उसमें लम्बे-चौड़े रास्ते बनाए ताकि ये लोग अपने-अपने मंज़िलें मक़सूद को जा पहुँचे

32

وَجَعَلْنَا السَّمَاءَ سَقْفًا مَحْفُوظًا ۖ وَهُمْ عَنْ آيَاتِهَا مُعْرِضُونَ

और हम ही ने आसमान को छत बनाया जो हर तरह महफूज़ है

और ये लोग उसकी आसमानी निशानियों से मुँह फेर रहे हैं

33

وَهُوَ الَّذِي خَلَقَ اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ ۖ كُلٌّ فِي فَلَكٍ يَسْبَحُونَ

और वही वह (क़ादिरे मुत्तलिक़) है जिसने रात और दिन और आफ़ताब और माहताब को पैदा किया

कि सब के सब एक (एक) आसमान में पैर कर चक्मर लगा रहे हैं

34

وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِنْ قَبْلِكَ الْخُلْدَ ۖ أَفَإِنْ مِتَّ فَهُمُ الْخَالِدُونَ

और (ऐ रसूल) हमने तुमसे पहले भी किसी फ़र्दे बशर को सदा की ज़िन्दगी नहीं दी

तो क्या अगर तुम मर जाओगे तो ये लोग हमेशा जिया ही करेंगे

35

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ۗ وَنَبْلُوكُمْ بِالشَّرِّ وَالْخَيْرِ فِتْنَةً ۖ وَإِلَيْنَا تُرْجَعُونَ

(हर शख्स एक न एक दिन) मौत का मज़ा चखने वाला है

और हम तुम्हें मुसीबत व राहत में इम्तिहान की ग़रज़ से आज़माते हैं

और (आख़िकार) हमारी ही तरफ लौटाए जाओगे  

36

وَإِذَا رَآكَ الَّذِينَ كَفَرُوا إِنْ يَتَّخِذُونَكَ إِلَّا هُزُوًا أَهَذَا الَّذِي يَذْكُرُ آلِهَتَكُمْ

और (ऐ रसूल) जब तुम्हें कुफ्फ़ार देखते हैं तो बस तुमसे मसखरापन करते हैं

कि क्या यही हज़रत हैं जो तुम्हारे माबूदों को (बुरी तरह) याद करते हैं

وَهُمْ بِذِكْرِ الرَّحْمَنِ هُمْ كَافِرُونَ

हालाँकि ये लोग खुद खुदा की याद से इन्कार करते हैं

(तो इनकी बेवकूफ़ी पर हँसना चाहिए)

37

خُلِقَ الْإِنْسَانُ مِنْ عَجَلٍ ۚ

आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ पैदा किया गया है

سَأُرِيكُمْ آيَاتِي فَلَا تَسْتَعْجِلُونِ

मैं अनक़रीब ही तुम्हें अपनी (कुदरत की) निशानियाँ दिखाऊँगा तो तुम मुझसे जल्दी की (द्दूम) न मचाओ

38

وَيَقُولُونَ مَتَى هَذَا الْوَعْدُ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

(और लुत्फ़ तो ये है कि)

कहते हैं कि अगर सच्चे हो तो ये क़यामत का वायदा कब (पूरा) होगा

39

لَوْ يَعْلَمُ الَّذِينَ كَفَرُوا حِينَ لَا يَكُفُّونَ عَنْ وُجُوهِهِمُ النَّارَ وَلَا عَنْ ظُهُورِهِمْوَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ

और जो लोग काफ़िर हो बैठे काश उस वक्त क़ी हालत से आगाह होते (कि जहन्नुम की आग में खडे होंगे) और न अपने चेहरों से आग को हटा सकेंगे और न अपनी पीठ से

और न उनकी मदद की जाएगी

40

بَلْ تَأْتِيهِمْ بَغْتَةً فَتَبْهَتُهُمْ فَلَا يَسْتَطِيعُونَ رَدَّهَا وَلَا هُمْ يُنْظَرُونَ

(क़यामत कुछ जता कर तो आने से रही)

बल्कि वह तो अचानक उन पर आ पड़ेगी और उन्हें हक्का बक्का कर देगी

फिर उस वक्त उसमें न उसके हटाने की मजाल होगी और न उन्हें ही दी जाएगी

41

وَلَقَدِ اسْتُهْزِئَ بِرُسُلٍ مِنْ قَبْلِكَ فَحَاقَ بِالَّذِينَ سَخِرُوا مِنْهُمْ مَا كَانُوا بِهِ يَسْتَهْزِئُونَ

और (ऐ रसूल) कुछ तुम ही नहीं तुमसे पहले पैग़म्बरों के साथ मसख़रापन किया जा चुका है

तो उन पैग़म्बरों से मसखरापन करने वालों को उस सख्त अज़ाब ने आ घेर लिया जिसकी वह हँसी उड़ाया करते थे

42

قُلْ مَنْ يَكْلَؤُكُمْ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ مِنَ الرَّحْمَنِ ۗ بَلْ هُمْ عَنْ ذِكْرِ رَبِّهِمْ مُعْرِضُونَ

(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि खुदा (के अज़ाब) से (बचाने में) रात को या दिन को तुम्हारा कौन पहरा दे सकता है

उस पर डरना तो दर किनार बल्कि ये लोग अपने परवरदिगार की याद से मुँह फेरते हैं

43

أَمْ لَهُمْ آلِهَةٌ تَمْنَعُهُمْ مِنْ دُونِنَا ۚ

क्या हमरो सिवा उनके कुछ और परवरदिगार हैं कि जो उनको (हमारे अज़ाब से) बचा सकते हैं

لَا يَسْتَطِيعُونَ نَصْرَ أَنْفُسِهِمْ وَلَا هُمْ مِنَّا يُصْحَبُونَ

(वह क्या बचाएँगे)

ये लोग खुद अपनी आप तो मदद कर ही नहीं सकते और न हमारे अज़ाब से उन्हें पनाह दी जाएगी

44

بَلْ مَتَّعْنَا هَؤُلَاءِ وَآبَاءَهُمْ حَتَّى طَالَ عَلَيْهِمُ الْعُمُرُ ۗ أَفَهُمُ الْغَالِبُونَ

बल्कि हम ही ने उनको और उनके बुर्जुग़ों को आराम व चैन रहा यहाँ तक कि उनकी उम्रें बढ़ गई

أَفَلَا يَرَوْنَ أَنَّا نَأْتِي الْأَرْضَ نَنْقُصُهَا مِنْ أَطْرَافِهَا ۚ

तो फिर क्या ये लोग नहीं देखते कि हम रूए ज़मीन को चारों तरफ से क़ब्ज़ा करते और उसको फतेह करते चले आते हैं

तो क्या (अब भी यही लोग कुफ्फ़ारे मक्का) ग़ालिब और वर हैं

45

قُلْ إِنَّمَا أُنْذِرُكُمْ بِالْوَحْيِ ۚ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि मैं तो बस तुम लोगों को ''वही'' के मुताबिक़ (अज़ाब से) डराता हूँ (मगर तुम लोग गोया बहरे हो)

وَلَا يَسْمَعُ الصُّمُّ الدُّعَاءَ إِذَا مَا يُنْذَرُونَ

और बहरों को जब डराया जाता है तो वह पुकारने ही को नहीं सुनते (डरें क्या ख़ाक)

46

وَلَئِنْ مَسَّتْهُمْ نَفْحَةٌ مِنْ عَذَابِ رَبِّكَ لَيَقُولُنَّ يَا وَيْلَنَا إِنَّا كُنَّا ظَالِمِينَ

और (ऐ रसूल) अगर कहीं उनको तुम्हारे परवरदिगार के अज़ाब की ज़रा सी हवा भी लग गई तो वे सख्त! बोल उठे

हाय अफसोस वाक़ई हम ही ज़ालिम थे

47

وَنَضَعُ الْمَوَازِينَ الْقِسْطَ لِيَوْمِ الْقِيَامَةِ فَلَا تُظْلَمُ نَفْسٌ شَيْئًا ۖ

और क़यामत के दिन तो हम (बन्दों के भले बुरे आमाल तौलने के लिए) इन्साफ़ की तराज़ू में खड़ी कर देंगे तो फिर किसी शख्स पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा

 وَإِنْ كَانَ مِثْقَالَ حَبَّةٍ مِنْ خَرْدَلٍ أَتَيْنَا بِهَا ۗ وَكَفَى بِنَا حَاسِبِينَ

और अगर राई के दाने के बराबर भी किसी का (अमल) होगा तो तुम उसे ला हाज़िर करेंगे

और हम हिसाब करने के वास्ते बहुत काफ़ी हैं

48

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى وَهَارُونَ الْفُرْقَانَ وَضِيَاءً وَذِكْرًا لِلْمُتَّقِينَ

और हम ही ने यक़ीनन मूसा और हारून को (हक़ व बातिल की) जुदा करने वाली किताब (तौरेत) और अज़सरतापा बनूँ और नसीहत अता की परहेज़गारों के लिए

49

الَّذِينَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ بِالْغَيْبِ وَهُمْ مِنَ السَّاعَةِ مُشْفِقُونَ

जो बे देखे अपने परवरदिगार से ख़ौफ खाते हैं और ये लोग रोज़े क़यामत से भी डरते हैं

50

وَهَذَا ذِكْرٌ مُبَارَكٌ أَنْزَلْنَاهُ ۚ أَفَأَنْتُمْ لَهُ مُنْكِرُونَ

और ये (कुरान भी) एक बाबरकत तज़किरा है जिसको हमने उतारा है

तो क्या तुम लोग इसको नहीं मानते

51

وَلَقَدْ آتَيْنَا إِبْرَاهِيمَ رُشْدَهُ مِنْ قَبْلُ وَكُنَّا بِهِ عَالِمِينَ

और इसमें भी शक नहीं कि हमने इबराहीम को पहले ही से फ़हेम सलीम अता की थी और हम उन (की हालत) से खूब वाक़िफ थे

52

إِذْ قَالَ لِأَبِيهِ وَقَوْمِهِ مَا هَذِهِ التَّمَاثِيلُ الَّتِي أَنْتُمْ لَهَا عَاكِفُونَ

जब उन्होंने अपने (मुँह बोले) बाप और अपनी क़ौम से कहा

ये मूर्ते जिनकी तुम लोग मुजाबिरी करते हो आख़िर क्या (बला) है

53

قَالُوا وَجَدْنَا آبَاءَنَا لَهَا عَابِدِينَ

वह लोग बोले (और तो कुछ नहीं जानते मगर) अपने बडे बूढ़ों को इनही की परसतिश करते देखा है

54

قَالَ لَقَدْ كُنْتُمْ أَنْتُمْ وَآبَاؤُكُمْ فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ

इबराहीम ने कहा यक़ीनन तुम भी और तुम्हारे बुर्जुग़ भी खुली हुईगुमराही में पड़े हुए थे  

55

قَالُوا أَجِئْتَنَا بِالْحَقِّ أَمْ أَنْتَ مِنَ اللَّاعِبِينَ

वह लोग कहने लगे तो क्या तुम हमारे पास हक़ बात लेकर आए हो या तुम भी (यूँ ही) दिल्लगी करते हो

56

قَالَ بَلْ رَبُّكُمْ رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ الَّذِي فَطَرَهُنَّ وَأَنَا عَلَى ذَلِكُمْ مِنَ الشَّاهِدِينَ

इबराहीम ने कहा मज़ाक नहीं ठीक कहता हूँ कि तुम्हारे माबूद व बुत नहीं बल्कि तुम्हारा परवरदिगार आसमान व ज़मीन का मालिक है जिसने उनको पैदा किया

और मैं खुद इस बात का तुम्हारे सामने गवाह हूँ

57

وَتَاللَّهِ لَأَكِيدَنَّ أَصْنَامَكُمْ بَعْدَ أَنْ تُوَلُّوا مُدْبِرِينَ

और अपने जी में कहा खुदा की क़सम तुम्हारे पीठ फेरने के बाद में तुम्हारे बुतों के साथ एक चाल चलूँगा

58

فَجَعَلَهُمْ جُذَاذًا إِلَّا كَبِيرًا لَهُمْ لَعَلَّهُمْ إِلَيْهِ يَرْجِعُونَ

चुनान्चे इबराहीम ने उन बुतों को (तोड़कर) चकनाचूर कर डाला मगर उनके बड़े बुत को (इसलिए रहने दिया) ताकि ये लोग ईद से पलटकर उसकी तरफ रूजू करें

59

قَالُوا مَنْ فَعَلَ هَذَا بِآلِهَتِنَا إِنَّهُ لَمِنَ الظَّالِمِينَ

(जब कुफ्फ़ार को मालूम हुआ)

तो कहने लगे जिसने ये गुस्ताख़ी हमारे माबूदों के साथ की है

उसने यक़ीनी बड़ा ज़ुल्म किया

60

قَالُوا سَمِعْنَا فَتًى يَذْكُرُهُمْ يُقَالُ لَهُ إِبْرَاهِيمُ

(कुछ लोग) कहने लगे हमने एक नौजवान को उन बुतों का (बुरी तरह) ज़िक्र करते सुना था

जिसको लोग इबराहीम कहते हैं

61

قَالُوا فَأْتُوا بِهِ عَلَى أَعْيُنِ النَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَشْهَدُونَ

लोगों ने कहा तो अच्छा उसको सब लोगों के सामने (गिरफ्तार करके) ले आओ ताकि वह (जो कुछ कहें) लोग उसके गवाह रहें

62

قَالُوا أَأَنْتَ فَعَلْتَ هَذَا بِآلِهَتِنَا يَا إِبْرَاهِيمُ

(ग़रज़ इबराहीम आए)

और लोगों ने उनसे पूछा कि क्यों इबराहीम क्या तुमने माबूदों के साथ ये हरकत की है

63

‏قَالَ بَلْ فَعَلَهُ كَبِيرُهُمْ هَذَا فَاسْأَلُوهُمْ إِنْ كَانُوا يَنْطِقُونَ

इबराहीम ने कहा बल्कि ये हरकत इन बुतों (खुदाओं) के बड़े (खुदा) ने की है

तो अगर ये बुत बोल सकते हों तो उनही से पूछ देखो

64

فَرَجَعُوا إِلَى أَنْفُسِهِمْ فَقَالُوا إِنَّكُمْ أَنْتُمُ الظَّالِمُونَ

इस पर उन लोगों ने अपने जी में सोचा तो (एक दूसरे से) कहने लगे बेशक तुम ही लोग खुद बर सरे नाहक़ हो

65

ثُمَّ نُكِسُوا عَلَى رُءُوسِهِمْ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا هَؤُلَاءِ يَنْطِقُونَ

फिर उन लोगों के सर इसी गुमराही में झुका दिए गए (और तो कुछ बन न पड़ा मगर ये बोले) तुमको तो अच्छी तरह मालूम है कि ये बुत बोला नहीं करते

(फिर इनसे क्या पूछे)

66

قَالَ أَفَتَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ مَا لَا يَنْفَعُكُمْ شَيْئًا وَلَا يَضُرُّكُمْ

इबराहीम ने कहा तो क्या तुम लोग खुदा को छोड़कर ऐसी चीज़ों की परसतिश करते हो जो न तुम्हें कुछ नफा ही पहुँचा सकती है और न तुम्हारा कुछ नुक़सान ही कर सकती है

67

أُفٍّ لَكُمْ وَلِمَا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

तफ है तुम पर उस चीज़ पर जिसे तुम खुदा के सिवा पूजते हो

तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते

68

قَالُوا حَرِّقُوهُ وَانْصُرُوا آلِهَتَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ فَاعِلِينَ

(आख़िर) वह लोग (बाहम) कहने लगे कि अगर तुम कुछ कर सकते हो तो इबराहीम को आग में जला दो और अपने खुदाओं की मदद करो

69

قُلْنَا يَا نَارُ كُونِي بَرْدًا وَسَلَامًا عَلَى إِبْرَاهِيمَ

(ग़रज़ उन लोगों ने इबराहीम को आग में डाल दिया)

तो हमने फ़रमाया ऐ आग तू इबराहीम पर बिल्कुल ठन्डी और सलामती का बाइस हो जा

70

وَأَرَادُوا بِهِ كَيْدًا فَجَعَلْنَاهُمُ الْأَخْسَرِينَ

और उन लोगों में इबराहीम के साथ चालबाज़ी करनी चाही थी तो हमने इन सब को नाकाम कर दिया

71

وَنَجَّيْنَاهُ وَلُوطًا إِلَى الْأَرْضِ الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا لِلْعَالَمِينَ

और हम ने ही इबराहीम और लूत को (सरकशों से) सही व सालिम निकालकर इस सर ज़मीन (शाम बैतुलमुक़द्दस) में जा पहुँचाया जिसमें हमने सारे जहाँन के लिए तरह-तरह की बरकत अता की थी

72

‏وَوَهَبْنَا لَهُ إِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ نَافِلَةً ۖ وَكُلًّا جَعَلْنَا صَالِحِينَ

और हमने इबराहीम को इनाम में इसहाक़ (जैसा बैटा) और याकूब (जैसा पोता) इनायत फरमाया

हमने सबको नेक बख्त बनाया

73

وَجَعَلْنَاهُمْ أَئِمَّةً يَهْدُونَ بِأَمْرِنَا وَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِمْ فِعْلَ الْخَيْرَاتِ وَإِقَامَ الصَّلَاةِ وَإِيتَاءَ الزَّكَاةِ ۖ

और उन सबको (लोगों का) पेशवा बनाया कि हमारे हुक्म से (उनकी) हिदायत करते थे

और हमने उनके पास नेक काम करने और नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने की ''वही'' भेजी थी

وَكَانُوا لَنَا عَابِدِينَ

और ये सब के सब हमारी ही इबादत करते थे

74

وَلُوطًا آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْقَرْيَةِ الَّتِي كَانَتْ تَعْمَلُ الْخَبَائِثَ ۗ

और लूत को भी हम ही के फ़हमे सलीम और नबूवत अता की

और हम ही ने उस बस्ती से जहाँ के लोग बदकारियाँ करते थे नजात दी

إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمَ سَوْءٍ فَاسِقِينَ

इसमें शक नहीं कि वह लोग बड़े बदकार आदमी थे

75

وَأَدْخَلْنَاهُ فِي رَحْمَتِنَا ۖ إِنَّهُ مِنَ الصَّالِحِينَ

और हमने लूत को अपनी रहमत में दाख़िल कर लिया

इसमें शक नहीं कि वह नेकोंकार बन्दों में से थे

76

وَنُوحًا إِذْ نَادَى مِنْ قَبْلُ فَاسْتَجَبْنَا لَهُ

और (ऐ रसूल लूत से भी) पहले (हमने) नूह को नबूवत पर फ़ायज़ किया जब उन्होंने (हमको) आवाज़ दी तो हमने उनकी (दुआ) सुन ली

فَنَجَّيْنَاهُ وَأَهْلَهُ مِنَ الْكَرْبِ الْعَظِيمِ

फिर उनको और उनके साथियों को (तूफ़ान की) बड़ी सख्त मुसीबत से नजात दी

77

وَنَصَرْنَاهُ مِنَ الْقَوْمِ الَّذِينَ كَذَّبُوا بِآيَاتِنَا ۚ

और जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया था उनके मुक़ाबले में उनकी मदद की

إِنَّهُمْ كَانُوا قَوْمَ سَوْءٍ فَأَغْرَقْنَاهُمْ أَجْمَعِينَ

बेशक ये लोग (भी) बहुत बुरे लोग थे तो हमने उन सबको डुबो मारा

78

وَدَاوُودَ وَسُلَيْمَانَ إِذْ يَحْكُمَانِ فِي الْحَرْثِ إِذْ نَفَشَتْ فِيهِ غَنَمُ الْقَوْمِ

और (ऐ रसूल इनको) दाऊद और सुलेमान का (वाक्या याद दिलाओ) जब ये दोनों एक खेती के बारे में जिसमें रात के वक्त क़ुछ लोगों की बकरियाँ (घुसकर) चर गई थी फैसला करने बैठे

وَكُنَّا لِحُكْمِهِمْ شَاهِدِينَ

और हम उन लोगों के क़िस्से को देख रहे थे (कि बाहम इख़तेलाफ़ हुआ)

79

فَفَهَّمْنَاهَا سُلَيْمَانَ ۚ

तो हमने सुलेमान को (इसका) सही फ़ैसला समझा दिया

وَكُلًّا آتَيْنَا حُكْمًا وَعِلْمًا ۚ

और (यूँ तो) सबको हम ही ने फहमे सलीम और इल्म अता किया

وَسَخَّرْنَا مَعَ دَاوُودَ الْجِبَالَ يُسَبِّحْنَ وَالطَّيْرَ ۚ

और हम ही ने पहाड़ों को दाऊद का ताबेए बना दिया था कि उनके साथ (खुदा की) तस्बीह किया करते थे और परिन्दों को (भी ताबेए कर दिया था)

 وَكُنَّا فَاعِلِينَ

और हम ही (ये अज़ाब) किया करते थे

80

وَعَلَّمْنَاهُ صَنْعَةَ لَبُوسٍ لَكُمْ لِتُحْصِنَكُمْ مِنْ بَأْسِكُمْ ۖ فَهَلْ أَنْتُمْ شَاكِرُونَ

और हम ही ने उनको तुम्हारी जंगी पोशिश (ज़िराह) का बनाना सिखा दिया ताकि तुम्हें (एक दूसरे के) वार से बचाए

तो क्या तुम (अब भी) उसके शुक्रगुज़ार बनोगे

81

وَلِسُلَيْمَانَ الرِّيحَ عَاصِفَةً تَجْرِي بِأَمْرِهِ إِلَى الْأَرْضِ الَّتِي بَارَكْنَا فِيهَا ۚ

और (हम ही ने) बड़े ज़ोरों की हवा को सुलेमान का (ताबेए कर दिया था) कि वह उनके हुक्म से इस सरज़मीन (बैतुलमुक़द्दस) की तरफ चला करती थी जिसमें हमने तरह-तरह की बरकतें अता की थी

وَكُنَّا بِكُلِّ شَيْءٍ عَالِمِينَ

और हम तो हर चीज़ से खूब वाक़िफ़ थे (और) है  

82

وَمِنَ الشَّيَاطِينِ مَنْ يَغُوصُونَ لَهُ وَيَعْمَلُونَ عَمَلًا دُونَ ذَلِكَ ۖ وَكُنَّا لَهُمْ حَافِظِينَ

और जिन्नात में से जो लोग (समन्दर में) ग़ोता लगाकर (जवाहरात निकालने वाले) थे और उसके अलावा और काम भी करते थे

(सुलेमान का ताबेए कर दिया था)

और हम ही उनके निगेहबान थे

83

وَأَيُّوبَ إِذْ نَادَى رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنْتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ

और (ऐ रसूल) अय्यूब (का क़िस्सा याद करो) जब उन्होंने अपने परवरदिगार से दुआ की कि (ख़ुदा वन्द) बीमारी तो मेरे पीछे लग गई है

और तू तो सब रहम करने वालोंसे बढ़ कर है (मुझ पर तरस खा)

84

فَاسْتَجَبْنَا لَهُ فَكَشَفْنَا مَا بِهِ مِنْ ضُرٍّ ۖ

तो हमने उनकी दुआ कुबूल की तो हमने उनका जो कुछ दर्द दुख था दफ़ा कर दिया

وَآتَيْنَاهُ أَهْلَهُ وَمِثْلَهُمْ مَعَهُمْ رَحْمَةً مِنْ عِنْدِنَاوَذِكْرَى لِلْعَابِدِينَ

और उन्हें उनके लड़के वाले बल्कि उनके साथ उतनी ही और भी महज़ अपनी ख़ास मेहरबानी से (अता किए)

और इबादत करने वालों की इबरत के वास्ते यह नसीहत है

85

وَإِسْمَاعِيلَ وَإِدْرِيسَ وَذَا الْكِفْلِ ۖ كُلٌّ مِنَ الصَّابِرِينَ

और (ऐ रसूल) इसमाईल और इदरीस और जुलकिफ्ल (के वाक़यात से याद करो)

ये सब साबिर बन्दे थे

86

وَأَدْخَلْنَاهُمْ فِي رَحْمَتِنَا ۖ إِنَّهُمْ مِنَ الصَّالِحِينَ

और हमने उन सबको अपनी (ख़ास) रहमत में दाख़िल कर लिया

बेशक ये लोग नेक बन्दे थे

87

وَذَا النُّونِ إِذْ ذَهَبَ مُغَاضِبًا فَظَنَّ أَنْ لَنْ نَقْدِرَ عَلَيْهِ فَنَادَى فِي الظُّلُمَاتِ

और जुन्नून (यूनुस को याद करो) जबकि गुस्से में आकर चलते हुए और ये ख्याल न किया कि हम उन पर रोज़ी तंग न करेंगे

(तो हमने उन्हें मछली के पेट में पहुँचा दिया)

तो (घटाटोप) अंधेरे में (घबराकर) चिल्ला उठा कि

أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ سُبْحَانَكَ إِنِّي كُنْتُ مِنَ الظَّالِمِينَ

(परवरदिगार)

तेरे सिवा कोई माबूद नहीं तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है बेशक मैं कुसूरवार हूँ

88

فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَنَجَّيْنَاهُ مِنَ الْغَمِّ ۚ وَكَذَلِكَ نُنْجِي الْمُؤْمِنِينَ

तो हमने उनकी दुआ कुबूल की और उन्हें रंज से नजात दी

और हम तो ईमानवालों को यूँ ही नजात दिया करते हैं

89

وَزَكَرِيَّا إِذْ نَادَى رَبَّهُ رَبِّ لَا تَذَرْنِي فَرْدًا وَأَنْتَ خَيْرُ الْوَارِثِينَ

और ज़करिया (को याद करो) जब उन्होंने (मायूस की हालत में) अपने परवरदिगार से दुआ की ऐ मेरे पालने वाले मुझे तन्हा (बे औलाद) न छोड़

और तू तो सब वारिसों से बेहतर है

90

فَاسْتَجَبْنَا لَهُ وَوَهَبْنَا لَهُ يَحْيَى وَأَصْلَحْنَا لَهُ زَوْجَهُ ۚ

तो हमने उनकी दुआ सुन ली और उन्हें यहया सा बेटा अता किया और हमने उनके लिए उनकी बीबी को अच्छी बता दिया

إِنَّهُمْ كَانُوا يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ  وَيَدْعُونَنَا رَغَبًا وَرَهَبًا ۖ

इसमें शक नहीं कि ये सब नेक कामों में जल्दी करते थे और हमको बड़ी रग़बत और ख़ौफ के साथ पुकारा करते थे

 وَكَانُوا لَنَا خَاشِعِينَ

और हमारे आगे गिड़गिड़ाया करते थे

91

وَالَّتِي أَحْصَنَتْ فَرْجَهَا فَنَفَخْنَا فِيهَا مِنْ رُوحِنَا وَجَعَلْنَاهَا وَابْنَهَا آيَةً لِلْعَالَمِينَ

और (ऐ रसूल) उस बीबी को (याद करो) जिसने अपनी अज़मत की हिफाज़त की तो हमने उन (के पेट) में अपनी तरफ से रूह फूँक दी

और उनको और उनके बेटे (ईसा) को सारे जहाँन के वास्ते (अपनी क़ुदरत की) निशानी बनाया

92

إِنَّ هَذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً  وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاعْبُدُونِ

बेशक ये तुम्हारा दीन (इस्लाम) एक ही दीन है

और मैं तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो मेरी ही इबादत करो

93

وَتَقَطَّعُوا أَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْ ۖ كُلٌّ إِلَيْنَا رَاجِعُونَ

और लोगों ने बाहम (इख़तेलाफ़ करके) अपने दीन को टुकड़े -टुकड़े कर डाला

(हालाँकि) वह सब के सब हिरफिर के हमारे ही पास आने वाले हैं  

94

فَمَنْ يَعْمَلْ مِنَ الصَّالِحَاتِ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَا كُفْرَانَ لِسَعْيِهِ  وَإِنَّا لَهُ كَاتِبُونَ

(उस वक्त फ़ैसला हो जाएगा कि)

तो जो शख्स अच्छे-अच्छे काम करेगा और वह ईमानवाला भी हो तो उसकी कोशिश अकारत न की जाएगी

और हम उसके आमाल लिखते जाते हैं

95

وَحَرَامٌ عَلَى قَرْيَةٍ أَهْلَكْنَاهَا أَنَّهُمْ لَا يَرْجِعُونَ

और जिस बस्ती को हमने तबाह कर डाला मुमकिन नहीं कि वह लोग क़यामत के दिन हिरफिर के से (हमारे पास) न लौटे

96

‏حَتَّى إِذَا فُتِحَتْ يَأْجُوجُ وَمَأْجُوجُ وَهُمْ مِنْ كُلِّ حَدَبٍ يَنْسِلُونَ

बस इतना (तवक्कुफ़ तो ज़रूर होगा) कि जब याजूज माजूज (सद्दे सिकन्दरी) की कैद से खोल दिए जाएँगे और ये लोग (ज़मीन की) हर बुलन्दी से दौड़ते हुए निकल पड़े

97

وَاقْتَرَبَ الْوَعْدُ الْحَقُّ فَإِذَا هِيَ شَاخِصَةٌ أَبْصَارُ الَّذِينَ كَفَرُوا

और क़यामत का सच्चा वायदा नज़दीक आ जाए तो फिर काफिरों की ऑंखें एक दम से पथरा दी जाएँ

يَا وَيْلَنَا قَدْ كُنَّا فِي غَفْلَةٍ مِنْ هَذَا بَلْ كُنَّا ظَالِمِينَ

(और कहने लगे) हाय हमारी शामत कि हम तो इस (दिन) से ग़फलत ही में (पड़े) रहे

बल्कि (सच तो यूँ है कि अपने ऊपर) हम आप ज़ालिम थे

98

إِنَّكُمْ وَمَا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِ اللَّهِ حَصَبُ جَهَنَّمَ أَنْتُمْ لَهَا وَارِدُونَ

(उस दिन किहा जाएगा कि ऐ कुफ्फ़ार)

तुम और जिस चीज़ की तुम खुदा के सिवा परसतिश करते थे यक़ीनन जहन्नुम की ईधन (जलावन) होंगे (और) तुम सबको उसमें उतरना पड़ेगा

99

لَوْ كَانَ هَؤُلَاءِ آلِهَةً مَا وَرَدُوهَا ۖ وَكُلٌّ فِيهَا خَالِدُونَ

अगर ये (सच्चे) माबूद होते तो उन्हें दोज़ख़ में न जाना पड़ता

और (अब तो) सबके सब उसी में हमेशा रहेंगे

100

لَهُمْ فِيهَا زَفِيرٌ وَهُمْ فِيهَا لَا يَسْمَعُونَ

उन लोगों की दोज़ख़ में चिंघाड़ होगी और ये लोग (अपने शोर व ग़ुल में) किसी की बात भी न सुन सकेंगे

101

إِنَّ الَّذِينَ سَبَقَتْ لَهُمْ مِنَّا الْحُسْنَى أُولَئِكَ عَنْهَا مُبْعَدُونَ

ज़बान अलबत्ता जिन लोगों के वास्ते हमारी तरफ से पहले ही भलाई (तक़दीर में लिखी जा चुकी) वह लोग दोज़ख़ से दूर ही दूर रखे जाएँगे

102

لَا يَسْمَعُونَ حَسِيسَهَا ۖ وَهُمْ فِي مَا اشْتَهَتْ أَنْفُسُهُمْ خَالِدُونَ

(यहाँ तक) कि ये लोग उसकी भनक भी न सुनेंगे

और ये लोग हमेशा अपनी मनमाँगी मुरादों में (चैन से) रहेंगे

103

لَا يَحْزُنُهُمُ الْفَزَعُ الْأَكْبَرُ وَتَتَلَقَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ هَذَا يَوْمُكُمُ الَّذِي كُنْتُمْ تُوعَدُونَ

और उनको (क़यामत का) बड़े से बड़ा ख़ौफ़ भी दहशत में न लाएगा

और फ़रिश्ते उन से खुशी-खुशी मुलाक़ात करेंगे और ये खुशख़बरी देंगे कि यही वह तुम्हारा (खुशी का) दिन है जिसका (दुनिया में) तुमसे वायदा किया जाता था

104

يَوْمَ نَطْوِي السَّمَاءَ كَطَيِّ السِّجِلِّ لِلْكُتُبِ ۚ

(ये) वह दिन (होगा) जब हम आसमान को इस तरह लपेटेगे जिस तरह ख़तों का तूमार लपेटा जाता है

كَمَا بَدَأْنَا أَوَّلَ خَلْقٍ نُعِيدُهُ ۚ

जिस तरह हमने (मख़लूक़ात को) पहली बार पैदा किया था (उसी तरह) दोबारा (पैदा) कर छोड़ेगें

وَعْدًا عَلَيْنَا ۚ إِنَّا كُنَّا فَاعِلِينَ

(ये वह) वायदा (है जिसका करना) हम पर (लाज़िम) है

और हम उसे ज़रूर करके रहेंगे

105

وَلَقَدْ كَتَبْنَا فِي الزَّبُورِ مِنْ بَعْدِ الذِّكْرِ أَنَّ الْأَرْضَ يَرِثُهَا عِبَادِيَ الصَّالِحُونَ  

और हमने तो नसीहत (तौरेत) के बाद यक़ीनन जुबूर में लिख ही दिया था कि रूए ज़मीन के वारिस हमारे नेक बन्दे होंगे

106

‏إِنَّ فِي هَذَا لَبَلَاغًا لِقَوْمٍ عَابِدِينَ

इसमें शक नहीं कि इसमें इबादत करने वालों के लिए (एहकामें खुदा की) तबलीग़ है

107

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً لِلْعَالَمِينَ

और (ऐ रसूल) हमने तो तुमको सारे दुनिया जहाँन के लोगों के हक़ में अज़सरतापा रहमत बनाकर भेजा

108

قُلْ إِنَّمَا يُوحَى إِلَيَّ أَنَّمَا إِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ ۖ فَهَلْ أَنْتُمْ مُسْلِمُونَ

तुम कह दो कि मेरे पास तो बस यही ''वही'' आई है कि तुम लोगों का माबूद बस यकता खुदा है

तो क्या तुम (उसके) फरमाबरदार बन्दे बनते हो

109

فَإِنْ تَوَلَّوْا فَقُلْ آذَنْتُكُمْ عَلَى سَوَاءٍ ۖ وَإِنْ أَدْرِي أَقَرِيبٌ أَمْ بَعِيدٌ مَا تُوعَدُونَ

फिर अगर ये लोग (उस पर भी) मुँह फेरें तो तुम कह दो कि मैंने तुम सबको यकसाँ ख़बर कर दी है

और मैं नहीं जानता कि जिस (अज़ाब) का तुमसे वायदा किया गया है क़रीब आ पहुँचा या (अभी) दूर है

110

إِنَّهُ يَعْلَمُ الْجَهْرَ مِنَ الْقَوْلِ وَيَعْلَمُ مَا تَكْتُمُونَ

इसमें शक नहीं कि वह उस बात को भी जानता है जो पुकार कर कही जाती है और जिसे तुम लोग छिपाते हो उससे भी खूब वाक़िफ है

111

وَإِنْ أَدْرِي لَعَلَّهُ فِتْنَةٌ لَكُمْ وَمَتَاعٌ إِلَى حِينٍ

और मैं ये भी नहीं जानता कि शायद ये (ताख़ीरे अज़ाब तुम्हारे) वास्ते इम्तिहान हो और एक मुअय्युन मुद्दत तक (तुम्हारे लिए) चैन हो

112

قَالَ رَبِّ احْكُمْ بِالْحَقِّ ۗ

(आख़िर) रसूल ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले तू ठीक-ठीक मेरे और काफिरों के दरमियान फैसला कर दे

وَرَبُّنَا الرَّحْمَنُ الْمُسْتَعَانُ عَلَى مَا تَصِفُونَ

और हमार परवरदिगार बड़ा मेहरबान है कि उसी से इन बातों में मदद माँगी जाती है जो तुम लोग बयान करते हो

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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