Quran Hindi Translation

SurahTaHa

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

طه

ता हा

2

مَا أَنْزَلْنَا عَلَيْكَ الْقُرْآنَ لِتَشْقَى

(ऐ रसूल अल्लाह) हमने तुम पर कुरान इसलिए नाज़िल नहीं किया कि तुम (इस क़दर) मशक्क़त उठाओ

3

إِلَّا تَذْكِرَةً لِمَنْ يَخْشَى

मगर जो शख्स खुदा से डरता है उसके लिए नसीहत (क़रार दिया है)

4

تَنْزِيلًا مِمَّنْ خَلَقَ الْأَرْضَ وَالسَّمَاوَاتِ الْعُلَى

(ये) उस शख्स की तरफ़ से नाज़िल हुआ है जिसने ज़मीन और ऊँचे-ऊँचे आसमानों को पैदा किया

5

الرَّحْمَنُ عَلَى الْعَرْشِ اسْتَوَى

वही रहमान है जो अर्श पर (हुक्मरानी के लिए) आमादा व मुस्तईद है

6

لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَمَا بَيْنَهُمَا وَمَا تَحْتَ الثَّرَى  

जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है और जो कुछ दोनों के बीच में है और जो कुछ ज़मीन के नीचे है (ग़रज़ सब कुछ) उसी का है

7

وَإِنْ تَجْهَرْ بِالْقَوْلِ فَإِنَّهُ يَعْلَمُ السِّرَّ وَأَخْفَى

और अगर तू पुकार कर बात करे (तो भी आहिस्ता करे तो भी) वह यक़ीनन भेद और उससे ज्यादा पोशीदा चीज़ को जानता है

8

اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ ۖ لَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَى

अल्लाह (वह माबूद है कि) उसके सिवा कोइ माबूद नहीं है

अच्छे-अच्छे उसी के नाम हैं

9

وَهَلْ أَتَاكَ حَدِيثُ مُوسَى

और (ऐ रसूल) क्या तुम तक मूसा की ख़बर पहुँची है

10

إِذْ رَأَى نَارًا فَقَالَ لِأَهْلِهِ امْكُثُوا إِنِّي آنَسْتُ نَارًا

कि जब उन्होंने दूर से आग देखी तो अपने घर के लोगों से कहने लगे कि तुम लोग (ज़रा यहीं) ठहरो मैंने आग देखी है

لَعَلِّي آتِيكُمْ مِنْهَا بِقَبَسٍ أَوْ أَجِدُ عَلَى النَّارِ هُدًى

क्या अजब है कि मैं वहाँ (जाकर) उसमें से एक अंगारा तुम्हारे पास ले आऊँ या आग के पास किसी राह का पता पा जाऊँ

11

 ‏فَلَمَّا أَتَاهَا نُودِيَ يَا مُوسَى

फिर जब मूसा आग के पास आए तो उन्हें आवाज आई कि ऐ मूसा

12

إِنِّي أَنَا رَبُّكَ فَاخْلَعْ نَعْلَيْكَ ۖ إِنَّكَ بِالْوَادِ الْمُقَدَّسِ طُوًى

बेशक मैं ही तुम्हारा परवरदिगार हूँ तो तुम अपनी जूतियाँ उतार डालो

क्योंकि तुम (इस वक्त) तुआ (नामी) पाक़ीज़ा चटियल मैदान में हो

13

وَأَنَا اخْتَرْتُكَ فَاسْتَمِعْ لِمَا يُوحَى

और मैंने तुमको पैग़म्बरी के वास्ते मुन्तख़िब किया (चुन लिया) है तो जो कुछ तुम्हारी तरफ़ वही की जाती है उसे कान लगा कर सुनो

14

إِنَّنِي أَنَا اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنَافَاعْبُدْنِي وَأَقِمِ الصَّلَاةَ لِذِكْرِي

इसमें शक नहीं कि मैं ही वह अल्लाह हूँ कि मेरे सिवा कोई माबूद नहीं

तो मेरी ही इबादत करो और मेरी याद के लिए नमाज़ बराबर पढ़ा करो

15

إِنَّ السَّاعَةَ آتِيَةٌ أَكَادُ أُخْفِيهَا لِتُجْزَى كُلُّ نَفْسٍ بِمَا تَسْعَى

(क्योंकि) क़यामत ज़रूर आने वाली है

और मैं उसे लामहौला छिपाए रखूँगा ताकि हर शख्स (उसके ख़ौफ से नेकी करे) और वैसी कोशिश की है उसका उसे बदला दिया जाए

16

فَلَا يَصُدَّنَّكَ عَنْهَا مَنْ لَا يُؤْمِنُ بِهَا وَاتَّبَعَ هَوَاهُ فَتَرْدَى

तो (कहीं) ऐसा न हो कि जो शख्स उसे दिल से नहीं मानता और अपनी नफ़सियानी ख्वाहिश के पीछे पड़ा वह तुम्हें इस (फिक्र) से रोक दे तो तुम तबाह हो जाओगे

17

‏وَمَا تِلْكَ بِيَمِينِكَ يَا مُوسَى

और ऐ मूसा ये तुम्हारे दाहिने हाथ में क्या चीज़ है

18

قَالَ هِيَ عَصَايَ أَتَوَكَّأُ عَلَيْهَا وَأَهُشُّ بِهَا عَلَى غَنَمِي وَلِيَ فِيهَا مَآرِبُ أُخْرَى  

अर्ज़ की ये तो मेरी लाठी है मैं उस पर सहारा करता हूँ

और इससे अपनी बकरियों पर (और दरख्तों की) पत्तियाँ झाड़ता हूँ और उसमें मेरे और भी मतलब हैं

19

قَالَ أَلْقِهَا يَا مُوسَى

फ़रमाया ऐ मूसा उसको ज़रा ज़मीन पर डाल तो दो

20

فَأَلْقَاهَا فَإِذَا هِيَ حَيَّةٌ تَسْعَى

मूसा ने उसे डाल दिया तो फ़ौरन वह साँप बनकर दौड़ने लगा

21

قَالَ خُذْهَا وَلَا تَخَفْ ۖ سَنُعِيدُهَا سِيرَتَهَا الْأُولَى

(ये देखकर मूसा भागे)

तो फ़रमाया कि तुम इसको पकड़ लो और डरो नहीं

मैं अभी इसकी पहली सी सूरत फिर किए देता हूँ  

22

وَاضْمُمْ يَدَكَ إِلَى جَنَاحِكَ تَخْرُجْ بَيْضَاءَ مِنْ غَيْرِ سُوءٍ آيَةً أُخْرَى

और अपने हाथ को समेंट कर अपने बग़ल में तो कर लो (फिर देखो कि) वह बग़ैर किसी बीमारी के सफेद चमकता दमकता हुआ निकलेगा

ये दूसरा मौजिज़ा है

23

لِنُرِيَكَ مِنْ آيَاتِنَا الْكُبْرَى

(ये) ताकि हम तुमको अपनी (कुदरत की) बड़ी-बड़ी निशानियाँ दिखाएँ

24

اذْهَبْ إِلَى فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَى

अब तुम फिरऔन के पास जाओ उसने बहुत सर उठाया है

25

قَالَ رَبِّ اشْرَحْ لِي صَدْرِي

मूसा ने अर्ज़ की परवरदिगार (मैं जाता तो हूँ मगर तू मेरे लिए) मेरे सीने को कुशादा फरमा  (और दिलेर बना)

26

وَيَسِّرْ لِي أَمْرِي

और मेरा काम मेरे लिए आसान कर दे

27

وَاحْلُلْ عُقْدَةً مِنْ لِسَانِي

और मेरी ज़बान से लुक़नत की गिरह खोल दे

28

يَفْقَهُوا قَوْلِي

ताकि लोग मेरी बात अच्छी तरह समझें

29

وَاجْعَلْ لِي وَزِيرًا مِنْ أَهْلِي

और मेरे कीनेवालों में से मेरा वज़ीर बोझ बटाने वाला बना दे  

30

هَارُونَ أَخِي

मेरे भाई हारून को

31

اشْدُدْ بِهِ أَزْرِي

उसके ज़रिए से मेरी पुश्त मज़बूत कर दे

32

وَأَشْرِكْهُ فِي أَمْرِي

और मेरे काम में उसको मेरा शरीक बना

33

كَيْ نُسَبِّحَكَ كَثِيرًا

ताकि हम दोनों (मिलकर) कसरत से तेरी तसबीह करें

34

وَنَذْكُرَكَ كَثِيرًا

और कसरत से तेरी याद करें

35

إِنَّكَ كُنْتَ بِنَا بَصِيرًا

तू तो हमारी हालत देख ही रहा है

36

قَالَ قَدْ أُوتِيتَ سُؤْلَكَ يَا مُوسَى

फ़रमाया ऐ मूसा तुम्हारी सब दरख्वास्तें मंज़ूर की गई

37

وَلَقَدْ مَنَنَّا عَلَيْكَ مَرَّةً أُخْرَى

और हम तो तुम पर एक बार और एहसान कर चुके हैं

38

إِذْ أَوْحَيْنَا إِلَى أُمِّكَ مَا يُوحَى

जब हमने तुम्हारी माँ को इलहाम किया जो अब तुम्हें ''वही'' के ज़रिए से बताया जाता है

39

أَنِ اقْذِفِيهِ فِي التَّابُوتِ فَاقْذِفِيهِ فِي الْيَمِّ

कि तुम इसे (मूसा को) सन्दूक़ में रखकर सन्दूक़ को दरिया में डाल दो

فَلْيُلْقِهِ الْيَمُّ بِالسَّاحِلِ يَأْخُذْهُ عَدُوٌّ لِي وَعَدُوٌّ لَهُ ۚ

फिर दरिया उसे ढकेल कर किनारे डाल देगा कि मूसा को मेरा दुशमन और मूसा का दुशमन (फिरऔन) उठा लेगा

وَأَلْقَيْتُ عَلَيْكَ مَحَبَّةً مِنِّي وَلِتُصْنَعَ عَلَى عَيْنِي

और मैंने तुम पर अपनी मोहब्बत को डाल दिया जो देखता (प्यार करता) ताकि तुम मेरी ख़ास निगरानी में पाले पोसे जाओ

40

إِذْ تَمْشِي أُخْتُكَ فَتَقُولُ هَلْ أَدُلُّكُمْ عَلَى مَنْ يَكْفُلُهُ ۖفَرَجَعْنَاكَ إِلَى أُمِّكَ كَيْ تَقَرَّ عَيْنُهَا وَلَا تَحْزَنَ ۚ

(उस वक्त) ज़ब तुम्हारी बहन चली (और फिर उनके घर में आकर) कहने लगी कि कहो तो मैं तुम्हें ऐसी दाया बताऊँ कि जो इसे अच्छी तरह पाले

तो (इस तदबीर से) हमने फिर तुमको तुम्हारी माँ के पास पहुँचा दिया ताकि उसकी ऑंखें ठन्डी रहें और तुम्हारी (जुदाई पर) कुढ़े नहीं

وَقَتَلْتَ نَفْسًا فَنَجَّيْنَاكَ مِنَ الْغَمِّ وَفَتَنَّاكَ فُتُونًا ۚ

और तुमने एक शख्स (क़िबती) को मार डाला था और सख्त परेशान थे तो हमने तुमको (इस) ग़म से नजात दी और हमने तुम्हारा अच्छी तरह इम्तिहान कर लिया

فَلَبِثْتَ سِنِينَ فِي أَهْلِ مَدْيَنَ ثُمَّ جِئْتَ عَلَى قَدَرٍ يَا مُوسَى

फिर तुम कई बरस तक मदयन के लोगों में जाकर रहे

ऐ मूसा फिर तुम (उम्र के) एक अन्दाजे पर आ गए नबूवत के क़ायल हुए

41

وَاصْطَنَعْتُكَ لِنَفْسِي

और मैंने तुमको अपनी रिसालत के वास्ते मुन्तख़िब किया

42

اذْهَبْ أَنْتَ وَأَخُوكَ بِآيَاتِي وَلَا تَنِيَا فِي ذِكْرِي

तुम अपने भाई समैत हमारे मौजिज़े लेकर जाओ और (देखो) मेरी याद में सुस्ती न करना

43

اذْهَبَا إِلَى فِرْعَوْنَ إِنَّهُ طَغَى

तुम दोनों फिरऔन के पास जाओ बेशक वह बहुत सरकश हो गया है

44

فَقُولَا لَهُ قَوْلًا لَيِّنًا لَعَلَّهُ يَتَذَكَّرُ أَوْ يَخْشَى

फिर उससे (जाकर) नरमी से बातें करो ताकि वह नसीहत मान ले या डर जाए

45

قَالَا رَبَّنَا إِنَّنَا نَخَافُ أَنْ يَفْرُطَ عَلَيْنَا أَوْ أَنْ يَطْغَى

दोनों ने अर्ज़ की ऐ हमारे पालने वाले हम डरते हैं कि कहीं वह हम पर ज्यादती (न) कर बैठे या ज्यादा सरकशी कर ले

46

إِنَّنِي مَعَكُمَا أَسْمَعُ وَأَرَى  قَالَ لَا تَخَافَا ۖ

फ़रमाया तुम डरो नहीं

मैं तुम्हारे साथ हूँ (सब कुछ) सुनता और देखता हूँ

47

فَأْتِيَاهُ فَقُولَا إِنَّا رَسُولَا رَبِّكَ فَأَرْسِلْ مَعَنَا بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلَا تُعَذِّبْهُمْ ۖ

ग़रज़ तुम दोनों उसके पास जाओ और कहो कि हम आप के परवरदिगार के रसूल हैं तो बनी इसराइल को हमारे साथ भेज दीजिए और उन्हें सताइए नहीं

قَدْ جِئْنَاكَ بِآيَةٍ مِنْ رَبِّكَ ۖوَالسَّلَامُ عَلَى مَنِ اتَّبَعَ الْهُدَى

हम आपके पास आपके परवरदिगार का मौजिज़ा लेकर आए हैं

और जो राहे रास्त की पैरवी करे उसी के लिए सलामती है

48

إِنَّا قَدْ أُوحِيَ إِلَيْنَا أَنَّ الْعَذَابَ عَلَى مَنْ كَذَّبَ وَتَوَلَّى

हमारे पास खुदा की तरफ से ये ''वही'' नाज़िल हुईहै कि यक़ीनन अज़ाब उसी शख्स पर है जो (खुदा की आयतों को) झुठलाए और उसके हुक्म से मुँह मोड़े

(ग़रज़ गए और कहा)

49

قَالَ فَمَنْ رَبُّكُمَا يَا مُوسَى

फिरऔन ने पूछा ऐ मूसा आख़िर तुम दोनों का परवरदिगार कौन है

50

قَالَ رَبُّنَا الَّذِي أَعْطَى كُلَّ شَيْءٍ خَلْقَهُ ثُمَّ هَدَى

मूसा ने कहा हमारा परवरदिगार वह है जिसने हर चीज़ को उसके (मुनासिब) सूरत अता फरमाई फिर उसी ने ज़िन्दगी बसर करने के तरीक़े बताए

51

قَالَ فَمَا بَالُ الْقُرُونِ الْأُولَى

फिरऔन ने पूछा भला अगले लोगों का हाल (तो बताओ) कि क्या हुआ

52

قَالَ عِلْمُهَا عِنْدَ رَبِّي فِي كِتَابٍ ۖلَا يَضِلُّ رَبِّي وَلَا يَنْسَى

मूसा ने कहा इन बातों का इल्म मेरे परवरदिगार के पास एक किताब (लौहे महफूज़) में (लिखा हुआ) है

मेरा परवरदिगार न बहकता है न भूलता है

53

الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ مَهْدًا وَسَلَكَ لَكُمْ فِيهَا سُبُلًا

वह वही है जिसने तुम्हारे (फ़ायदे के) वास्ते ज़मीन को बिछौना बनाया और तुम्हारे लिए उसमें राहें निकाली

وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ أَزْوَاجًا مِنْ نَبَاتٍ شَتَّى

और उसी ने आसमान से पानी बरसाया फिर (खुदा फरमाता है कि) हम ही ने उस पानी के ज़रिए से मुख्तलिफ़ क़िस्मों की घासे निकाली

54

كُلُوا وَارْعَوْا أَنْعَامَكُمْ ۗإِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِأُولِي النُّهَى

(ताकि) तुम खुद भी खाओ और अपने चारपायों को भी चराओ

कुछ शक नहीं कि इसमें अक्लमन्दों के वास्ते (क़ुदरते खुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं

55

مِنْهَا خَلَقْنَاكُمْ وَفِيهَا نُعِيدُكُمْ وَمِنْهَا نُخْرِجُكُمْ تَارَةً أُخْرَى

हमने इसी ज़मीन से तुम को पैदा किया और (मरने के बाद) इसमें लौटा कर लाएँगे और उसी से दूसरी बार (क़यामत के दिन) तुमको निकाल खड़ा करेंगे

56

وَلَقَدْ أَرَيْنَاهُ آيَاتِنَا كُلَّهَا فَكَذَّبَ وَأَبَى

और मैंने फिरऔन को अपनी सारी निशानियाँ दिखा दी इस पर भी उसने सबको झुठला दिया और न माना

57

قَالَ أَجِئْتَنَا لِتُخْرِجَنَا مِنْ أَرْضِنَا بِسِحْرِكَ يَا مُوسَى

(और) कहने लगा ऐ मूसा क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि हम को हमारे मुल्क (मिस्र से) अपने जादू के ज़ोर से निकाल बाहर करो

58

فَلَنَأْتِيَنَّكَ بِسِحْرٍ مِثْلِهِ فَاجْعَلْ بَيْنَنَا وَبَيْنَكَ مَوْعِدًا

अच्छा तो (रहो) हम भी तुम्हारे सामने ऐसा जादू पेश करते हैं

फिर तुम अपने और हमारे दरमियान एक वक्त मुक़र्रर करो

 لَا نُخْلِفُهُ نَحْنُ وَلَا أَنْتَ مَكَانًا سُوًى

कि न हम उसके ख़िलाफ करे और न तुम

और मुक़ाबला एक साफ़ खुले मैदान में हो

59

قَالَ مَوْعِدُكُمْ يَوْمُ الزِّينَةِ وَأَنْ يُحْشَرَ النَّاسُ ضُحًى

मूसा ने कहा तुम्हारे (मुक़ाबले) की मीयाद ज़ीनत (ईद) का दिन है और उस रोज़ सब लोग दिन चढ़े जमा किए जाँए

60

فَتَوَلَّى فِرْعَوْنُ فَجَمَعَ كَيْدَهُ ثُمَّ أَتَى

उसके बाद फिरऔन (अपनी जगह) लौट गया फिर अपने चलत्तर (जादू के सामान) जमा करने लगा

61

قَالَ لَهُمْ مُوسَى وَيْلَكُمْ لَا تَفْتَرُوا عَلَى اللَّهِ كَذِبًا فَيُسْحِتَكُمْ بِعَذَابٍ ۖوَقَدْ خَابَ مَنِ افْتَرَى

फिर (मुक़ाबले को) आ मौजूद हुआ मूसा ने (फ़िरऔनियों से) कहा तुम्हारा नास हो खुदा पर झूठी-झूठी इफ्तेरा परदाज़ियाँ न करो वरना वह अज़ाब (नाज़िल करके) इससे तुम्हारा मटियामेट कर छोड़ेगा

और (याद रखो कि) जिसने इफ्तेरा परदाज़ियाँ न की वह यकीनन नामुराद रहा

62

فَتَنَازَعُوا أَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْ وَأَسَرُّوا النَّجْوَى

उस पर वह लोग अपने काम में बाहम झगड़ने और सरगोशियाँ करने लगे

63

قَالُوا إِنْ هَذَانِ لَسَاحِرَانِ يُرِيدَانِ أَنْ يُخْرِجَاكُمْ مِنْ أَرْضِكُمْ بِسِحْرِهِمَا  وَيَذْهَبَا بِطَرِيقَتِكُمُ الْمُثْلَى

(आख़िर) वह लोग बोल उठे कि ये दोनों यक़ीनन जादूगर हैं और चाहते हैं कि अपने जादू  (के ज़ोर) से तुम लोगों को तुम्हारे मुल्क से निकाल बाहर करें

और तुम्हारे अच्छे ख़ासे मज़हब को मिटा छोड़ें  

64

فَأَجْمِعُوا كَيْدَكُمْ ثُمَّ ائْتُوا صَفًّا ۚوَقَدْ أَفْلَحَ الْيَوْمَ مَنِ اسْتَعْلَى

तो तुम भी खूब अपने चलत्तर (जादू वग़ैरह) दुरूस्त कर लो फिर परा (सफ़) बाँध के (उनके मुक़ाबले में) आ पड़ो

और जो आज डर रहा हो वही फायज़ुलहराम रहा

65

قَالُوا يَا مُوسَى إِمَّا أَنْ تُلْقِيَ وَإِمَّا أَنْ نَكُونَ أَوَّلَ مَنْ أَلْقَى

They said: "O Moses! whether wilt thou that thou throw (first) or that we be the first to throw?"

ग़रज़ जादूगरों ने कहा (ऐ मूसा) या तो तुम ही (अपने जादू) फेंको और या ये कि पहले जो जादू फेंके वह हम ही हों

66

قَالَ بَلْ أَلْقُوا ۖ فَإِذَا حِبَالُهُمْ وَعِصِيُّهُمْ يُخَيَّلُ إِلَيْهِ مِنْ سِحْرِهِمْ أَنَّهَا تَسْعَى

मूसा ने कहा (मैं नहीं डालूँगा) बल्कि तुम ही पहले डालो

(ग़रज़ उन्होंने अपने करतब दिखाए)

तो बस मूसा को उनके जादू (के ज़ोर से) ऐसा मालूम हुआ कि उनकी रस्सियाँ और उनकी छड़ियाँ दौड़ रही हैं

67

فَأَوْجَسَ فِي نَفْسِهِ خِيفَةً مُوسَى

तो मूसा ने अपने दिल में कुछ दहशत सी पाई

68

قُلْنَا لَا تَخَفْ إِنَّكَ أَنْتَ الْأَعْلَى

हमने कहा (मूसा) इस से डरो नहीं यक़ीनन तुम ही वर रहोगे

69

وَأَلْقِ مَا فِي يَمِينِكَ تَلْقَفْ مَا صَنَعُوا ۖ

और तुम्हारे दाहिने हाथ में जो (लाठी) है उसे डाल तो दो कि जो करतब उन लोगों ने की है उसे हड़प कर जाए

 إِنَّمَا صَنَعُوا كَيْدُ سَاحِرٍ ۖ  وَلَا يُفْلِحُ السَّاحِرُ حَيْثُ أَتَى

क्योंकि उन लोगों ने जो कुछ करतब की वह एक जादूगर की करतब है

और जादूगर जहाँ जाए कामयाब नहीं हो सकता  

70

فَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سُجَّدًا قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ هَارُونَ وَمُوسَى

(ग़रज मूसा की लाटी ने सब हड़प कर लिया)

(ये देखते ही) वह सब जादूगर सजदे में गिर पड़े

(और कहने लगे)

कि हम मूसा और हारून के परवरदिगार पर ईमान ले आए

71

قَالَ آمَنْتُمْ لَهُ قَبْلَ أَنْ آذَنَ لَكُمْ ۖإِنَّهُ الَّذِي عَلَّمَكُمُ السِّحْرَ ۖ

फिरऔन ने उन लोगों से कहा (हाए) इससे पहले कि हम तुमको इजाज़त दें तुम उस पर ईमान ले आए

इसमें शक नहीं कि ये तुम सबका बड़ा (गुरू) है जिसने तुमको जादू सिखाया है

فَلَأُقَطِّعَنَّ أَيْدِيَكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ مِنْ خِلَافٍ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمْ فِي جُذُوعِ النَّخْلِ وَلَتَعْلَمُنَّ أَيُّنَا أَشَدُّ عَذَابًا وَأَبْقَى

तो मैं तुम्हारा एक तरफ़ के हाथ और दूसरी तरफ़ के पाँव ज़रूर काट डालूँगा और तुम्हें यक़ीनन खुरमे की शाख़ों पर सूली चढ़ा दूँगा

और उस वक्त तुमको (अच्छी तरह) मालूम हो जाएगा कि हम (दोनों) फरीक़ों से अज़ाब में ज्यादा बढ़ा हुआ कौन और किसको क़याम ज्यादा है

72

 قَالُوا لَنْ نُؤْثِرَكَ عَلَى مَا جَاءَنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالَّذِي فَطَرَنَا ۖ

जादूगर बोले कि ऐसे वाजेए व रौशन मौजिज़ात जो हमारे सामने आए उन पर और जिस (खुदा) ने हमको पैदा किया उस पर तो हम तुमको किसी तरह तरजीह नहीं दे सकते

فَاقْضِ مَا أَنْتَ قَاضٍ ۖإِنَّمَا تَقْضِي هَذِهِ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا

तो जो तुझे करना हो कर गुज़र

तो बस दुनिया की (इसी ज़रा) ज़िन्दगी पर हुकूमत कर सकता है

73

إِنَّا آمَنَّا بِرَبِّنَا لِيَغْفِرَ لَنَا خَطَايَانَا وَمَا أَكْرَهْتَنَا عَلَيْهِ مِنَ السِّحْرِ ۗوَاللَّهُ خَيْرٌ وَأَبْقَى

(और कहा) हम तो अपने परवरदिगार पर इसलिए ईमान लाए हैं ताकि हमारे वास्ते सारे गुनाह माफ़ कर दे

और (ख़ास कर) जिस पर तूने हमें मजबूर किया था

और खुदा ही सबसे बेहतर है और (उसी को) सबसे ज्यादा क़याम है

74

إِنَّهُ مَنْ يَأْتِ رَبَّهُ مُجْرِمًا فَإِنَّ لَهُ جَهَنَّمَ لَا يَمُوتُ فِيهَا وَلَا يَحْيَى

इसमें शक नहीं कि जो शख्स मुजरिम होकर अपने परवरदिगार के सामने हाज़िर होगा तो उसके लिए यक़ीनन जहन्नुम (धरा हुआ) है

जिसमें न तो वह मरे ही गा और न ज़िन्दा ही रहेगा (सिसकता रहेगा)

75

وَمَنْ يَأْتِهِ مُؤْمِنًا قَدْ عَمِلَ الصَّالِحَاتِ فَأُولَئِكَ لَهُمُ الدَّرَجَاتُ الْعُلَى

और जो शख्स उसके सामने ईमानदार हो कर हाज़िर होगा और उसने अच्छे-अच्छे काम भी किए होंगे

तो ऐसे ही लोग हैं जिनके लिए बड़े-बड़े बुलन्द रूतबे हैं

76

جَنَّاتُ عَدْنٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ۚ وَذَلِكَ جَزَاءُ مَنْ تَزَكَّى

वह सदाबहार बाग़ात जिनके नीचे नहरें जारी हैं वह लोग उसमें हमेशा रहेंगे

और जो गुनाह से पाक व पाकीज़ा रहे उस का यही सिला है

77

وَلَقَدْ أَوْحَيْنَا إِلَى مُوسَى أَنْ أَسْرِ بِعِبَادِي فَاضْرِبْ لَهُمْ طَرِيقًا فِي الْبَحْرِ  يَبَسًا لَا تَخَافُ دَرَكًا وَلَا تَخْشَى

और हमने मूसा के पास ''वही'' भेजी कि मेरे बन्दों (बनी इसराइल) को (मिस्र से) रातों रात निकाल ले जाओ

फिर दरिया में (लाठी मारकर) उनके लिए एक सूखी राह निकालो

और तुमको पीछा करने का न कोई खौफ़ रहेगा न (डूबने की) कोई दहशत

78

فَأَتْبَعَهُمْ فِرْعَوْنُ بِجُنُودِهِ فَغَشِيَهُمْ مِنَ الْيَمِّ مَا غَشِيَهُمْ

ग़रज़ फिरऔन ने अपने लशकर समैत उनका पीछा किया फिर दरिया (के पानी का रेला) जैसा कुछ उन पर छाया गया वह छा गया

79

‏وَأَضَلَّ فِرْعَوْنُ قَوْمَهُ وَمَا هَدَى

और फिरऔन ने अपनी क़ौम को गुमराह (करके हलाक) कर डाला और उनकी हिदायत न की

80

يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ قَدْ أَنْجَيْنَاكُمْ مِنْ عَدُوِّكُمْ وَوَاعَدْنَاكُمْ جَانِبَ الطُّورِ الْأَيْمَنَ  وَنَزَّلْنَا عَلَيْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوَى

ऐ बनी इसराइल हमने तुमको तुम्हारे दुश्मन (के पंजे) से छुड़ाया

और तुम से (कोहेतूर) के दाहिने तरफ का वायदा किया

और हम ही ने तुम पर मन व सलवा नाज़िल किया

81

كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَلَا تَطْغَوْا فِيهِ فَيَحِلَّ عَلَيْكُمْ غَضَبِي ۖ

और (फ़रमाया) कि हमने जो पाक व पाक़ीज़ा रोज़ी तुम्हें दे रखी है उसमें से खाओ (पियो)

और उसमें (किसी क़िस्म की) शरारत न करो वरना तुम पर मेरा अज़ाब नाज़िल हो जाएगा

وَمَنْ يَحْلِلْ عَلَيْهِ غَضَبِي فَقَدْ هَوَى

और (याद रखो कि) जिस पर मेरा ग़ज़ब नाज़िल हुआ तो वह यक़ीनन गुमराह (हलाक) हुआ

82

وَإِنِّي لَغَفَّارٌ لِمَنْ تَابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحًا ثُمَّ اهْتَدَى

और जो शख्स तौबा करे और ईमान लाए और अच्छे काम करे फिर साबित क़दम रहे तो हम उसको ज़रूर बख्शने वाले हैं

83

‏وَمَا أَعْجَلَكَ عَنْ قَوْمِكَ يَا مُوسَى

(फिर जब मूसा सत्तर आदमियों को लेकर चले और खुद बढ़ आए तो हमने कहा कि)

ऐ मूसा तुमने अपनी क़ौम से आगे चलने में क्यों जल्दी की

84

قَالَ هُمْ أُولَاءِ عَلَى أَثَرِي وَعَجِلْتُ إِلَيْكَ رَبِّ لِتَرْضَى

ग़रज़ की वह भी तो मेरे ही पीछे चले आ रहे हैं

और इसी लिए मैं जल्दी करके तेरे पास इसलिए आगे बढ़ आया हूँ ताकि तू (मुझसे) खुश रहे

85

قَالَ فَإِنَّا قَدْ فَتَنَّا قَوْمَكَ مِنْ بَعْدِكَ  وَأَضَلَّهُمُ السَّامِرِيُّ

फ़रमाया तो हमने तुम्हारे (आने के बाद) तुम्हारी क़ौम का इम्तिहान लिया

और सामरी ने उनको गुमराह कर छोड़ा

86

فَرَجَعَ مُوسَى إِلَى قَوْمِهِ غَضْبَانَ أَسِفًا ۚ

(तो मूसा) गुस्से में भरे पछताए हुए अपनी क़ौम की तरफ पलटे

قَالَ يَا قَوْمِ أَلَمْ يَعِدْكُمْ رَبُّكُمْ وَعْدًا حَسَنًا ۚ

और आकर कहने लगे ऐ मेरी (क़म्बख्त) क़ौम क्या तुमसे तुम्हारे परवरदिगार ने एक अच्छा वायदा (तौरेत देने का) न किया था

أَفَطَالَ عَلَيْكُمُ الْعَهْدُ أَمْ أَرَدْتُمْ أَنْ يَحِلَّ عَلَيْكُمْ غَضَبٌ مِنْ رَبِّكُمْ فَأَخْلَفْتُمْ مَوْعِدِي

तुम्हारे वायदे में अरसा लग गया

या तुमने ये चाहा कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार का ग़ज़ब टूंट पड़े

कि तुमने मेरे वायदे (खुदा की परसतिश) के ख़िलाफ किया

87

قَالُوا مَا أَخْلَفْنَا مَوْعِدَكَ بِمَلْكِنَا وَلَكِنَّا حُمِّلْنَا أَوْزَارًا مِنْ زِينَةِ الْقَوْمِ فَقَذَفْنَاهَا فَكَذَلِكَ أَلْقَى السَّامِرِيُّ

वह लोग कहने लगे हमने आपके वायदे के ख़िलाफ नहीं किया

बल्कि (बात ये हुईकि फिरऔन की) क़ौम के ज़ेवर के बोझे जो (मिस्र से निकलते वक्त) हम पर लोग गए थे उनको हम लोगों ने (सामरी के कहने से आग में) डाल दिया

फिर सामरी ने भी डाल दिया

88

فَأَخْرَجَ لَهُمْ عِجْلًا جَسَدًا لَهُ خُوَارٌ فَقَالُوا هَذَا إِلَهُكُمْ وَإِلَهُ مُوسَى فَنَسِيَ

फिर सामरी ने उन लोगों के लिए (उसी जेवर से) एक बछड़े की मूरत बनाई जिसकी आवाज़ भी बछड़े की सी थी

उस पर बाज़ लोग कहने लगे यही तुम्हारा (भी) माबूद और मूसा का (भी) माबूद है मगर वह भूल गया है

89

أَفَلَا يَرَوْنَ أَلَّا يَرْجِعُ إِلَيْهِمْ قَوْلًا  وَلَا يَمْلِكُ لَهُمْ ضَرًّا وَلَا نَفْعًا

भला इनको इतनी भी न सूझी कि ये बछड़ा न तो उन लोगों को पलट कर उन की बात का जवाब ही देता है

और न उनका ज़रर ही उस के हाथ में है और न नफ़ा

90

وَلَقَدْ قَالَ لَهُمْ هَارُونُ مِنْ قَبْلُ يَا قَوْمِ إِنَّمَا فُتِنْتُمْ بِهِ ۖ

और हारून ने उनसे पहले कहा भी था कि ऐ मेरी क़ौम तुम्हारा सिर्फ़ इसके ज़रिये से इम्तिहान किया जा रहा है

وَإِنَّ رَبَّكُمُ الرَّحْمَنُ  فَاتَّبِعُونِي وَأَطِيعُوا أَمْرِي

और इसमें शक नहीं कि तम्हारा परवरदिगार (बस) खुदाए रहमान है

तो तुम मेरी पैरवी करो और मेरा कहा मानो

91

قَالُوا لَنْ نَبْرَحَ عَلَيْهِ عَاكِفِينَ حَتَّى يَرْجِعَ إِلَيْنَا مُوسَى

तो वह लोग कहने लगे जब तक मूसा हमारे पास पलट कर न आएँ हम तो बराबर इसकी परसतिश पर डटे बैठे रहेंगे

92

قَالَ يَا هَارُونُ مَا مَنَعَكَ إِذْ رَأَيْتَهُمْ ضَلُّوا

मूसा ने हारून की तरफ ख़िताब करके कहा ऐ हारून जब तुमने उनको देख लिया था गमुराह हो गए हैं तो तुम्हें किसने मना किया

93

  ‏أَلَّا تَتَّبِعَنِ ۖ أَفَعَصَيْتَ أَمْرِي

मेरी पैरवी (क़ताल) करने को

तो क्या तुमने मेरे हुक्म की नाफ़रमानी की

94

قَالَ يَا ابْنَ أُمَّ لَا تَأْخُذْ بِلِحْيَتِي وَلَا بِرَأْسِي ۖ

हारून ने कहा ऐ मेरे माँजाए (भाई) मेरी दाढ़ी न पकडिऐ और न मेरे सर (के बाल)

إِنِّي خَشِيتُ أَنْ تَقُولَ فَرَّقْتَ بَيْنَ بَنِي إِسْرَائِيلَ وَلَمْ تَرْقُبْ قَوْلِي

मैं तो उससे डरा कि (कहीं) आप (वापस आकर) ये (न) कहिए कि तुमने बनी इसराईल में फूट डाल दी और मेरी बात का भी ख्याल न रखा

95

 ‏قَالَ فَمَا خَطْبُكَ يَا سَامِرِيُّ

तब सामरी से कहने लगे कि ओ सामरी तेरा क्या हाल है

96

قَالَ بَصُرْتُ بِمَا لَمْ يَبْصُرُوا بِهِ فَقَبَضْتُ قَبْضَةً مِنْ أَثَرِ الرَّسُولِ فَنَبَذْتُهَا وَكَذَلِكَ سَوَّلَتْ لِي نَفْسِي

उसने (जवाब में) कहा मुझे वह चीज़ दिखाई दी जो औरों को न सूझी

(जिबरील घोड़े पर सवार जा रहे थे)

तो मैंने जिबरील फरिश्ते (के घोड़े) के निशाने क़दम की एक मुट्ठी (ख़ाक) की उठा ली फिर मैंने (बछड़ों के क़ालिब में) डाल दी

(तो वह बोलेने लगा)

और उस वक्त मुझे मेरे नफ्स ने यही सुझाया

97

قَالَ فَاذْهَبْ فَإِنَّ لَكَ فِي الْحَيَاةِ أَنْ تَقُولَ لَا مِسَاسَ ۖ

मूसा ने कहा चल (दूर हो) तेरे लिए (इस दुनिया की) ज़िन्दगी में तो (ये सज़ा है) तू कहता फ़िरेगा कि मुझे न छूना (वरना बुख़ार चढ़ जाएगा)

وَإِنَّ لَكَ مَوْعِدًا لَنْ تُخْلَفَهُ ۖ

और (आख़िरत में भी) यक़ीनी तेरे लिए (अज़ाब का) वायदा है कि हरगिज़ तुझसे ख़िलाफ़ न किया जाएगा

وَانْظُرْ إِلَى إِلَهِكَ الَّذِي ظَلْتَ عَلَيْهِ عَاكِفًا ۖ

और तू अपने माबूद को तो देख जिस (की इबादत) पर तू डट बैठा था

لَنُحَرِّقَنَّهُ ثُمَّ لَنَنْسِفَنَّهُ فِي الْيَمِّ نَسْفًا

कि हम उसे यक़ीनन जलाकर (राख) कर डालेंगे फिर हम उसे तितिर बितिर करके दरिया में उड़ा देगें

98

إِنَّمَا إِلَهُكُمُ اللَّهُ الَّذِي لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ ۚ وَسِعَ كُلَّ شَيْءٍ عِلْمًا

तुम्हारा माबूद तो बस वही ख़ुदा है जिसके सिवा कोई और माबूद बरहक़ नहीं

कि उसका इल्म हर चीज़ पर छा गया है

99

كَذَلِكَ نَقُصُّ عَلَيْكَ مِنْ أَنْبَاءِ مَا قَدْ سَبَقَ ۚ وَقَدْ آتَيْنَاكَ مِنْ لَدُنَّا ذِكْرًا

(ऐ रसूल) हम तुम्हारे सामने यूँ वाक़ेयात बयान करते हैं जो गुज़र चुके

और हमने ही तुम्हारे पास अपनी बारगाह से कुरान अता किया

100

مَنْ أَعْرَضَ عَنْهُ فَإِنَّهُ يَحْمِلُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وِزْرًا

जिसने उससे मुँह फेरा वह क़यामत के दिन यक़ीनन (अपने बुरे आमाल का) बोझ उठाएगा

101

خَالِدِينَ فِيهِ ۖ وَسَاءَ لَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ حِمْلًا

और उसी हाल में हमेशा रहेंगे

और क्या ही बुरा बोझ है क़यामत के दिन ये लोग उठाए होंगे

102

يَوْمَ يُنْفَخُ فِي الصُّورِ ۚ وَنَحْشُرُ الْمُجْرِمِينَ يَوْمَئِذٍ زُرْقًا

जिस दिन सूर फूँका जाएगा

और हम उस दिन गुनाहगारों को (उनकी) ऑंखें पुतली (अन्धी) करके (आमने-सामने) जमा करेंगे

103

يَتَخَافَتُونَ بَيْنَهُمْ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا عَشْرًا

(और) आपस में चुपके-चुपके कहते होंगे कि (दुनिया या क़ब्र में) हम लोग (बहुत से बहुत) नौ दस दिन ठहरे होंगे

104

نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَقُولُونَ

जो कुछ ये लोग (उस दिन) कहेंगे हम खूब जानते हैं

إِذْ يَقُولُ أَمْثَلُهُمْ طَرِيقَةً إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا يَوْمًا

कि जो इनमें सबसे ज्यादा होशियार होगा बोल उठेगा कि तुम बस (बहुत से बहुत) एक दिन ठहरे होगे

105

‏وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْجِبَالِ فَقُلْ يَنْسِفُهَا رَبِّي نَسْفًا

(और ऐ रसूल) तुम से लोग पहाड़ों के बारे में पूछा करते हैं

(कि क़यामत के रोज़ क्या होगा)

तो तुम कह दो कि मेरा परवरदिगार बिल्कुल रेज़ा रेज़ा करके उड़ा डालेगा

106

فَيَذَرُهَا قَاعًا صَفْصَفًا

और ज़मीन को एक चटियल मैदान कर छोड़ेगा

107

لَا تَرَى فِيهَا عِوَجًا وَلَا أَمْتًا

कि (ऐ शख्स) न तो उसमें मोड़ देखेगा और न ऊँच-नीच

108

يَوْمَئِذٍ يَتَّبِعُونَ الدَّاعِيَ لَا عِوَجَ لَهُ ۖ

उस दिन लोग एक पुकारने वाले इसराफ़ील की आवाज़ के पीछे (इस तरह सीधे) दौड़ पड़ेगे कि उसमें कुछ भी कज़ी न होगी

وَخَشَعَتِ الْأَصْوَاتُ لِلرَّحْمَنِ  فَلَا تَسْمَعُ إِلَّا هَمْسًا

और आवाज़े उस दिन खुदा के सामने (इस तरह) घिघियाएगें

कि तू घुनघुनाहट के सिवा और कुछ न सुनेगा

109

يَوْمَئِذٍ لَا تَنْفَعُ الشَّفَاعَةُ إِلَّا مَنْ أَذِنَ لَهُ الرَّحْمَنُ وَرَضِيَ لَهُ قَوْلًا

उस दिन किसी की सिफ़ारिश काम न आएगी मगर जिसको खुदा ने इजाज़त दी हो और उसका बोलना पसन्द करे

110

 ‏يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يُحِيطُونَ بِهِ عِلْمًا

जो कुछ उन लोगों के सामने है और जो कुछ उनके पीछे है (ग़रज़ सब कुछ) वह जानता है

और ये लोग अपने इल्म से उसपर हावी नहीं हो सकते

111

وَعَنَتِ الْوُجُوهُ لِلْحَيِّ الْقَيُّومِ ۖ وَقَدْ خَابَ مَنْ حَمَلَ ظُلْمًا

और (क़यामत में) सारी (खुदाई के) का मुँह ज़िन्दा और बाक़ी रहने वाले खुदा के सामने झुक जाएँगे

और जिसने जुल्म का बोझ (अपने सर पर) उठाया वह यक़ीनन नाकाम रहा

112

وَمَنْ يَعْمَلْ مِنَ الصَّالِحَاتِ وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَلَا يَخَافُ ظُلْمًا وَلَا هَضْمًا

और जिसने अच्छे-अच्छे काम किए और वह मोमिन भी है तो उसको न किसी तरह की बेइन्साफ़ी का डर है और न किसी नुक़सान का

113

وَكَذَلِكَ أَنْزَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا وَصَرَّفْنَا فِيهِ مِنَ الْوَعِيدِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ أَوْ يُحْدِثُ لَهُمْ ذِكْرًا

हमने उसको उसी तरह अरबी ज़बान का कुरान नाज़िल फ़रमाया

और उसमें अज़ाब के तरह-तरह के वायदे बयान किए ताकि ये लोग परहेज़गार बनें

या उनके मिजाज़ में इबरत पैदा कर दे  

114

فَتَعَالَى اللَّهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ ۗ

पस (दो जहाँ का) सच्चा बादशाह खुदा बरतर व आला है

وَلَا تَعْجَلْ بِالْقُرْآنِ مِنْ قَبْلِ أَنْ يُقْضَى إِلَيْكَ وَحْيُهُ ۖ

और (ऐ रसूल) कुरान के (पढ़ने) में उससे पहले कि तुम पर उसकी ''वही'' पूरी कर दी जाए जल्दी न करो

وَقُلْ رَبِّ زِدْنِي عِلْمًا

और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मेरे इल्म को और ज्यादा फ़रमा  

115

وَلَقَدْ عَهِدْنَا إِلَى آدَمَ مِنْ قَبْلُ فَنَسِيَ وَلَمْ نَجِدْ لَهُ عَزْمًا

और हमने आदम से पहले ही एहद ले लिया था कि उस दरख्त के पास न जाना तो आदम ने उसे तर्क कर दिया

और हमने उनमें साबित व इस्तक़लाल न पाया

116

وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ أَبَى

और जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो

तो सबने सजदा किया मगर शैतान ने इन्कार किया

117

فَقُلْنَا يَا آدَمُ إِنَّ هَذَا عَدُوٌّ لَكَ وَلِزَوْجِكَ فَلَا يُخْرِجَنَّكُمَا مِنَ الْجَنَّةِ فَتَشْقَى

तो मैंने (आदम से कहा) कि ऐ आदम ये यक़ीनी तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुशमन है

तो कहीं तुम दोनों को बेहिश्त से निकलवा न छोड़े तो तुम (दुनिया की) मुसीबत में फँस जाओ

118

إِنَّ لَكَ أَلَّا تَجُوعَ فِيهَا وَلَا تَعْرَى

कुछ शक नहीं कि (बेहिश्त में) तुम्हें ये आराम है कि न तो तुम यहाँ भूके रहोगे और न नँगे

119

وَأَنَّكَ لَا تَظْمَأُ فِيهَا وَلَا تَضْحَى

और न यहाँ प्यासे रहोगे और न धूप खाओगे

120

فَوَسْوَسَ إِلَيْهِ الشَّيْطَانُ

तो शैतान ने उनके दिल में वसवसा डाला

قَالَ يَا آدَمُ هَلْ أَدُلُّكَ عَلَى شَجَرَةِ الْخُلْدِ وَمُلْكٍ لَا يَبْلَى

(और) कहा ऐ आदम क्या मैं तम्हें (हमेशगी की ज़िन्दगी) का दरख्त और वह सल्तनत जो कभी ज़ाएल न हो बता दूँ

121

‏فَأَكَلَا مِنْهَا فَبَدَتْ لَهُمَا سَوْآتُهُمَا وَطَفِقَا يَخْصِفَانِ عَلَيْهِمَا مِنْ وَرَقِ الْجَنَّةِ ۚ

चुनान्चे दोनों मियाँ बीबी ने उसी में से कुछ खाया तो उनका आगा पीछा उनपर ज़ाहिर हो गया और दोनों बेहिश्त के (दरख्त के) पत्ते अपने आगे पीछे पर चिपकाने लगे

وَعَصَى آدَمُ رَبَّهُ فَغَوَى

और आदम ने अपने परवरदिगार की नाफ़रमानी की तो (राहे सवाब से) बेराह हो गए

122

ثُمَّ اجْتَبَاهُ رَبُّهُ فَتَابَ عَلَيْهِ وَهَدَى

इसके बाद उनके परवरदिगार ने बर गुज़ीदा किया फिर उनकी तौबा कुबूल की और उनकी हिदायत की

123

قَالَ اهْبِطَا مِنْهَا جَمِيعًا ۖ بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ۖ

फरमाया कि तुम दोनों बेहश्त से नीचे उतर जाओ

तुम में से एक का एक दुशमन है

فَإِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ مِنِّي هُدًى فَمَنِ اتَّبَعَ هُدَايَ فَلَا يَضِلُّ وَلَا يَشْقَى

फिर अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ से हिदायत पहुँचे तो (तुम) उसकी पैरवी करना क्योंकि जो शख्स मेरी हिदायत पर चलेगा न तो गुमराह होगा और न मुसीबत में फँसेगा

124

وَمَنْ أَعْرَضَ عَنْ ذِكْرِي فَإِنَّ لَهُ مَعِيشَةً ضَنْكًا

और जिस शख्स ने मेरी याद से मुँह फेरा तो उसकी ज़िन्दगी बहुत तंगी में बसर होगी

وَنَحْشُرُهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ أَعْمَى

और हम उसको क़यामत के दिन अंधा बना के उठाएँगे

125

قَالَ رَبِّ لِمَ حَشَرْتَنِي أَعْمَى وَقَدْ كُنْتُ بَصِيرًا

वह कहेगा इलाही मैं तो (दुनिया में) ऑंख वाला था तूने मुझे अन्धा करके क्यों उठाया

126

قَالَ كَذَلِكَ أَتَتْكَ آيَاتُنَا فَنَسِيتَهَا ۖ

खुदा फरमाएगा ऐसा ही (होना चाहिए) हमारी आयतें भी तो तेरे पास आई तो तू उन्हें भुला बैठा

وَكَذَلِكَ الْيَوْمَ تُنْسَى

और इसी तरह आज तू भी भूला दिया जाएगा

127

وَكَذَلِكَ نَجْزِي مَنْ أَسْرَفَ وَلَمْ يُؤْمِنْ بِآيَاتِ رَبِّهِ ۚ

और जिसने (हद से) तजाविज़ किया और अपने परवरदिगार की आयतों पर ईमान न लाया उसको ऐसी ही बदला देगें

 وَلَعَذَابُ الْآخِرَةِ أَشَدُّ وَأَبْقَى

और आख़िरत का अज़ाब तो यक़ीनी बहुत सख्त और बहुत देर पा है

128

أَفَلَمْ يَهْدِ لَهُمْ كَمْ أَهْلَكْنَا قَبْلَهُمْ مِنَ الْقُرُونِ يَمْشُونَ فِي مَسَاكِنِهِمْ ۗ

तो क्या उन (अहले मक्का) को उस (खुदा) ने ये नहीं बता दिया था कि हमने उनके पहले कितने लोगों को हलाक कर डाला जिनके घरों में ये लोग चलते फिरते हैं

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ لِأُولِي النُّهَى

इसमें शक नहीं कि उसमें अक्लमंदों के लिए (कुदरते खुदा की) यक़ीनी बहुत सी निशानियाँ हैं

129

وَلَوْلَا كَلِمَةٌ سَبَقَتْ مِنْ رَبِّكَ لَكَانَ لِزَامًا وَأَجَلٌ مُسَمًّى

और (ऐ रसूल) अगर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से पहले ही एक वायदा (और अज़ाब का) एक वक्त मुअय्युन न होता तो (उनकी हरकतों से) फ़ौरन अज़ाब का आना लाज़मी बात थी

130

‏فَاصْبِرْ عَلَى مَا يَقُولُونَ وَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ قَبْلَ طُلُوعِ الشَّمْسِ وَقَبْلَ غُرُوبِهَا ۖ

(ऐ रसूल) जो कुछ ये कुफ्फ़ार बका करते हैं तुम उस पर सब्र करो

और आफ़ताब निकलने के क़ब्ल और उसके ग़ुरूब होने के क़ब्ल अपने परवरदिगार की हम्दोसना के साथ तसबीह किया करो

وَمِنْ آنَاءِ اللَّيْلِ فَسَبِّحْ وَأَطْرَافَ النَّهَارِ لَعَلَّكَ تَرْضَى

और कुछ रात के वक़्तों में और दिन के किनारों में तस्बीह करो

ताकि तुम निहाल हो जाओ

131

وَلَا تَمُدَّنَّ عَيْنَيْكَ إِلَى مَا مَتَّعْنَا بِهِ أَزْوَاجًا مِنْهُمْ زَهْرَةَ الْحَيَاةِ الدُّنْيَا لِنَفْتِنَهُمْ فِيهِ ۚ

और (ऐ रसूल) जो उनमें से कुछ लोगों को दुनिया की इस ज़रा सी ज़िन्दगी की रौनक़ से निहाल कर दिया है ताकि हम उनको उसमें आज़माएँ तुम अपनी नज़रें उधर न बढ़ाओ

وَرِزْقُ رَبِّكَ خَيْرٌ وَأَبْقَى

और (इससे) तुम्हारे परवरदिगार की रोज़ी (सवाब) कहीं बेहतर और ज्यादा पाएदार है

132

وَأْمُرْ أَهْلَكَ بِالصَّلَاةِ وَاصْطَبِرْ عَلَيْهَا ۖ

और अपने घर वालों को नमाज़ का हुक्म दो और तुम खुद भी उसके पाबन्द रहो

لَا نَسْأَلُكَ رِزْقًا ۖ نَحْنُ نَرْزُقُكَ ۗ

हम तुम से रोज़ी तो तलब करते नहीं (बल्कि) हम तो खुद तुमको रोज़ी देते हैं

 وَالْعَاقِبَةُ لِلتَّقْوَى

और परहेज़गारी ही का तो अन्जाम बखैर है

133

وَقَالُوا لَوْلَا يَأْتِينَا بِآيَةٍ مِنْ رَبِّهِ ۚ

और (अहले मक्का) कहते हैं कि अपने परवरदिगार की तरफ से हमारे पास कोई मौजिज़ा हमारी मर्ज़ी के मुवाफिक़ क्यों नहीं लाते

 أَوَلَمْ تَأْتِهِمْ بَيِّنَةُ مَا فِي الصُّحُفِ الْأُولَى

तो क्या जो (पेशीव गोइयाँ) अगली किताबों (तौरेत, इन्जील) में (इसकी) गवाह हैं वह भी उनके पास नहीं पहुँची

134

وَلَوْ أَنَّا أَهْلَكْنَاهُمْ بِعَذَابٍ مِنْ قَبْلِهِ لَقَالُوا

और अगर हम उनको इस रसूल से पहले अज़ाब से हलाक कर डालते तो ज़रूर कहते कि

رَبَّنَا لَوْلَا أَرْسَلْتَ إِلَيْنَا رَسُولًا فَنَتَّبِعَ آيَاتِكَ مِنْ قَبْلِ أَنْ نَذِلَّ وَنَخْزَى

ऐ हमारे पालने वाले तूने हमारे पास (अपना) रसूल क्यों न भेजा तो हम अपने ज़लील व रूसवा होने से पहले तेरी आयतों की पैरवी ज़रूर करते

135

قُلْ كُلٌّ مُتَرَبِّصٌ فَتَرَبَّصُوا ۖ

रसूल तुम कह दो कि हर शख्स (अपने अन्जामकार का) मुन्तिज़र है तो तुम भी इन्तिज़ार करो

فَسَتَعْلَمُونَ مَنْ أَصْحَابُ الصِّرَاطِ السَّوِيِّ وَمَنِ اهْتَدَى

फिर तो तुम्हें बहुत जल्द मालूम हो जाएगा कि सीधी राह वाले कौन हैं (और कज़ी पर कौन हैं) हिदायत याफ़ता कौन है और गुमराह कौन है।

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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