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1. |
ऐ रसूल अपने आलीशान परवरदिगार के नाम की तस्बीह करो |
2. |
जिसने (हर चीज़ को) पैदा किया |
3. |
और दुरूस्त किया और जिसने (उसका) अन्दाज़ा मुक़र्रर किया फिर राह बतायी |
4. |
और जिसने (हैवानात के लिए) चारा उगाया |
5. |
फिर ख़ुश्क उसे सियाह रंग का कूड़ा कर दिया |
6. |
हम तुम्हें (ऐसा) पढ़ा देंगे कि कभी भूलो ही नहीं |
7. |
मगर जो ख़ुदा चाहे (मन्सूख़ कर दे)
बेशक वह खुली बात को भी जानता है और छुपे हुए को भी |
8. |
और हम तुमको आसान तरीके की तौफ़ीक़ देंगे |
9. |
तो जहाँ तक समझाना मुफ़ीद हो समझते रहो |
10. |
जो खौफ रखता हो वह तो फौरी समझ जाएगा |
11. |
और बदबख्त उससे पहलू तही करेगा |
12. |
जो (क़यामत में) बड़ी (तेज़) आग में दाख़िल होगा |
13. |
फिर न वहाँ मरेगा ही न जीयेगा |
14. |
वह यक़ीनन मुराद दिली को पहुँचा जो (शिर्क से) पाक हो |
15. |
और अपने परवरदिगार का ज़िक्र करता और नमाज़ पढ़ता रहा |
16. |
मगर तुम लोग दुनियावी ज़िन्दगी को तरजीह देते हो |
17. |
हालॉकि आख़ोरत कहीं बेहतर और देर पा है |
18. |
बेशक यही बात अगले सहीफ़ों में भी है |
19. |
इबराहीम और मूसा के सहीफ़ों में ********* |
© Copy Rights:Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,Lahore, Pakistan |
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