Quran Hindi TranslationSurah Al QiyamahTranslation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan |
1 |
لَا أُقْسِمُ بِيَوْمِ الْقِيَامَةِ मैं रोजे क़यामत की क़सम खाता हूँ |
2 |
وَلَا أُقْسِمُ بِالنَّفْسِ اللَّوَّامَةِ (और बुराई से) मलामत करने वाले जी की क़सम खाता हूँ (कि तुम सब दोबारा ज़रूर ज़िन्दा किए जाओगे) |
3 |
أَيَحْسَبُ الْإِنْسَانُ أَلَّنْ نَجْمَعَ عِظَامَهُ क्या इन्सान ये ख्याल करता है (कि हम उसकी हड्डियों को बोसीदा होने के बाद) जमा न करेंगे |
4 |
بَلَى قَادِرِينَ عَلَى أَنْ نُسَوِّيَ بَنَانَهُ हाँ (ज़रूर करेंगें) हम इस पर क़ादिर हैं कि हम उसकी पोर पोर दुरूस्त करें |
5 |
بَلْ يُرِيدُ الْإِنْسَانُ لِيَفْجُرَ أَمَامَهُ मगर इन्सान तो ये जानता है कि अपने आगे भी (हमेशा) बुराई करता जाए |
6 |
يَسْأَلُ أَيَّانَ يَوْمُ الْقِيَامَةِ पूछता है कि क़यामत का दिन कब होगा |
7 |
فَإِذَا بَرِقَ الْبَصَرُ तो जब ऑंखे चकाचौन्ध में आ जाएँगी |
8 |
وَخَسَفَ الْقَمَرُ और चाँद गहन में लग जाएगा |
9 |
وَجُمِعَ الشَّمْسُ وَالْقَمَرُ और सूरज और चाँद इकट्ठा कर दिए जाएँगे |
10 |
يَقُولُ الْإِنْسَانُ يَوْمَئِذٍ أَيْنَ الْمَفَرُّ तो इन्सान कहेगा आज कहाँ भाग कर जाऊँ |
11 |
كَلَّا لَا وَزَرَ यक़ीन जानों कहीं पनाह नहीं |
12 |
إِلَى رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمُسْتَقَرُّ उस रोज़ तुम्हारे परवरदिगार ही के पास ठिकाना है |
13 |
يُنَبَّأُ الْإِنْسَانُ يَوْمَئِذٍ بِمَا قَدَّمَ وَأَخَّرَ उस दिन आदमी को जो कुछ उसके आगे पीछे किया है बता दिया जाएगा |
14 |
بَلِ الْإِنْسَانُ عَلَى نَفْسِهِ بَصِيرَةٌ बल्कि इन्सान तो अपने ऊपर आप गवाह है |
15 |
وَلَوْ أَلْقَى مَعَاذِيرَهُ अगरचे वह अपने गुनाहों की उज्र व ज़रूर माज़ेरत पढ़ा करता रहे |
16 |
لَا تُحَرِّكْ بِهِ لِسَانَكَ لِتَعْجَلَ بِهِ (ऐ रसूल) वही के जल्दी याद करने वास्ते अपनी ज़बान को हरकत न दो |
17 |
إِنَّ عَلَيْنَا جَمْعَهُ وَقُرْآنَهُ उसका जमा कर देना और पढ़वा देना तो यक़ीनी हमारे ज़िम्मे है |
18 |
فَإِذَا قَرَأْنَاهُ فَاتَّبِعْ قُرْآنَهُ तो जब हम उसको (जिबरील की ज़बानी) पढ़ें तो तुम भी (पूरा) सुनने के बाद इसी तरह पढ़ा करो |
19 |
ثُمَّ إِنَّ عَلَيْنَا بَيَانَهُ फिर उस (के मुश्किलात) का समझा देना भी हमारे ज़िम्में है |
20 |
كَلَّا بَلْ تُحِبُّونَ الْعَاجِلَةَ मगर (लोगों) हक़ तो ये है कि तुम लोग दुनिया को दोस्त रखते हो |
21 |
وَتَذَرُونَ الْآخِرَةَ और आख़ेरत को छोड़े बैठे हो |
22 |
وُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ نَاضِرَةٌ उस रोज़ बहुत से चेहरे तो तरो ताज़ा बशबाब होंगे |
23 |
إِلَى رَبِّهَا نَاظِرَةٌ (और) अपने परवरदिगार (की नेअमत) को देख रहे होंगे |
24 |
وَوُجُوهٌ يَوْمَئِذٍ بَاسِرَةٌ और बहुतेरे मुँह उस दिन उदास होंगे |
25 |
تَظُنُّ أَنْ يُفْعَلَ بِهَا فَاقِرَةٌ समझ रहें हैं कि उन पर मुसीबत पड़ने वाली है कि कमर तोड़ देगी |
26 |
كَلَّا إِذَا بَلَغَتِ التَّرَاقِيَ सुन लो जब जान (बदन से खिंच के) हँसली तक आ पहुँचेगी |
27 |
وَقِيلَ مَنْ ۜ رَاقٍ और कहा जाएगा कि (इस वक्त) क़ोई झाड़ फूँक करने वाला है |
28 |
وَظَنَّ أَنَّهُ الْفِرَاقُ और मरने वाले ने समझा कि अब (सबसे) जुदाई है |
29 |
وَالْتَفَّتِ السَّاقُ بِالسَّاقِ और (मौत की तकलीफ़ से) पिन्डली से पिन्डली लिपट जाएगी |
30 |
إِلَى رَبِّكَ يَوْمَئِذٍ الْمَسَاقُ उस दिन तुमको अपने परवरदिगार की बारगाह में चलना है |
31 |
فَلَا صَدَّقَ وَلَا صَلَّى तो उसने (ग़फलत में) न (कलामे ख़ुदा की) तसदीक़ की न नमाज़ पढ़ी |
32 |
وَلَكِنْ كَذَّبَ وَتَوَلَّى मगर झुठलाया और (ईमान से) मुँह फेरा |
33 |
ثُمَّ ذَهَبَ إِلَى أَهْلِهِ يَتَمَطَّى अपने घर की तरफ इतराता हुआ चला |
34 |
أَوْلَى لَكَ فَأَوْلَى अफसोस है तुझ पर फिर अफसोस है फिर तुफ़ है |
35 |
ثُمَّ أَوْلَى لَكَ فَأَوْلَى तुझ पर फिर तुफ़ है |
36 |
أَيَحْسَبُ الْإِنْسَانُ أَنْ يُتْرَكَ سُدًى क्या इन्सान ये समझता है कि वह यूँ ही छोड़ दिया जाएगा |
37 |
أَلَمْ يَكُ نُطْفَةً مِنْ مَنِيٍّ يُمْنَى क्या वह (इब्तेदन) मनी का एक क़तरा न था जो रहम में डाली जाती है |
38 |
ثُمَّ كَانَ عَلَقَةً فَخَلَقَ فَسَوَّى फिर लोथड़ा हुआ फिर ख़ुदा ने उसे बनाया |
39 |
فَجَعَلَ مِنْهُ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَى फिर उसे दुरूस्त किया फिर उसकी दो किस्में बनायीं (एक) मर्द और (एक) औरत |
40 |
أَلَيْسَ ذَلِكَ بِقَادِرٍ عَلَى أَنْ يُحْيِيَ الْمَوْتَى क्या इस पर क़ादिर नहीं कि (क़यामत में) मुर्दों को ज़िन्दा कर दे ********* |
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