Quran Hindi TranslationSurah Al NajmTranslation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan |
| 1 |
وَالنَّجْمِ إِذَا هَوَى तारे की क़सम जब टूटा |
| 2 |
مَا ضَلَّ صَاحِبُكُمْ وَمَا غَوَى कि तुम्हारे रफ़ीक़ (मोहम्मद) न गुमराह हुए और न बहके |
| 3 |
وَمَا يَنْطِقُ عَنِ الْهَوَى और वह तो अपनी नफ़सियानी ख्वाहिश से कुछ भी नहीं कहते |
| 4 |
إِنْ هُوَ إِلَّا وَحْيٌ يُوحَى ये तो बस वही है जो भेजी जाती है |
| 5 |
عَلَّمَهُ شَدِيدُ الْقُوَى इनको निहायत ताक़तवर (फ़रिश्ते जिबरील) ने तालीम दी है |
| 6 |
ذُو مِرَّةٍ فَاسْتَوَى जो बड़ा ज़बरदस्त है फिर वह अपनी (असली सूरत में) सीधा खड़ा हुआ |
| 7 |
وَهُوَ بِالْأُفُقِ الْأَعْلَى और जब ये (आसमान के) ऊँचे (मुशरक़ो) किनारे पर था |
| 8 |
ثُمَّ دَنَا فَتَدَلَّى फिर करीब हो (और आगे) बढ़ा |
| 9 |
فَكَانَ قَابَ قَوْسَيْنِ أَوْ أَدْنَى (फिर जिबरील व मोहम्मद में) दो कमान का फ़ासला रह गया बल्कि इससे भी क़रीब था |
| 10 |
فَأَوْحَى إِلَى عَبْدِهِ مَا أَوْحَى ख़ुदा ने अपने बन्दे की तरफ जो 'वही' भेजी सो भेजी |
| 11 |
مَا كَذَبَ الْفُؤَادُ مَا رَأَى तो जो कुछ उन्होने देखा उनके दिल ने झूठ न जाना |
| 12 |
أَفَتُمَارُونَهُ عَلَى مَا يَرَى तो क्या वह (रसूल) जो कुछ देखता है तुम लोग उसमें झगड़ते हो |
| 13 |
وَلَقَدْ رَآهُ نَزْلَةً أُخْرَى और उन्होने तो उस (जिबरील) को एक बार (शबे मेराज) और देखा है |
| 14 |
عِنْدَ سِدْرَةِ الْمُنْتَهَى सिदरतुल मुनतहा के नज़दीक |
| 15 |
عِنْدَهَا جَنَّةُ الْمَأْوَى उसी के पास तो रहने की बेहिश्त है |
| 16 |
إِذْ يَغْشَى السِّدْرَةَ مَا يَغْشَى जब छा रहा था सिदरा पर जो छा रहा था |
| 17 |
مَا زَاغَ الْبَصَرُ وَمَا طَغَى (उस वक्त भी) उनकी ऑंख न तो और तरफ़ माएल हुई और न हद से आगे बढ़ी |
| 18 |
لَقَدْ رَأَى مِنْ آيَاتِ رَبِّهِ الْكُبْرَى और उन्होने यक़ीनन अपने परवरदिगार (की क़ुदरत) की बड़ी बड़ी निशानियाँ देखीं |
| 19 |
أَفَرَأَيْتُمُ اللَّاتَ وَالْعُزَّى तो भला तुम लोगों ने लात व उज्ज़ा को देखा |
| 20 |
وَمَنَاةَ الثَّالِثَةَ الْأُخْرَى और तीसरे पिछले मनात को (भला ये ख़ुदा हो सकते हैं) |
| 21 |
أَلَكُمُ الذَّكَرُ وَلَهُ الْأُنْثَى क्या तुम्हारे तो बेटे हैं और उसके लिए बेटियाँ |
| 22 |
تِلْكَ إِذًا قِسْمَةٌ ضِيزَى ये तो बहुत बेइन्साफ़ी की तक़सीम है |
| 23 |
إِنْ هِيَ إِلَّا أَسْمَاءٌ سَمَّيْتُمُوهَا أَنْتُمْ وَآبَاؤُكُمْ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ بِهَا مِنْ سُلْطَانٍ ۚ ये तो बस सिर्फ नाम ही नाम है जो तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिए हैं, ख़ुदा ने तो इसकी कोई सनद नाज़िल नहीं की إِنْ يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ وَمَا تَهْوَى الْأَنْفُسُ ۖ ये लोग तो बस अटकल और अपनी नफ़सानी ख्वाहिश के पीछे चल रहे हैं وَلَقَدْ جَاءَهُمْ مِنْ رَبِّهِمُ الْهُدَى हालॉकि उनके पास उनके परवरदिगार की तरफ से हिदायत भी आ चुकी है |
| 24 |
أَمْ لِلْإِنْسَانِ مَا تَمَنَّى क्या जिस चीज़ की इन्सान तमन्ना करे वह उसे ज़रूर मिलती है |
| 25 |
فَلِلَّهِ الْآخِرَةُ وَالْأُولَى आख़ेरत और दुनिया तो ख़ास ख़ुदा ही के एख्तेयार में हैं |
| 26 |
وَكَمْ مِنْ مَلَكٍ فِي السَّمَاوَاتِ لَا تُغْنِي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا إِلَّا مِنْ بَعْدِ أَنْ يَأْذَنَ اللَّهُ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَرْضَى और आसमानों में बहुत से फरिश्ते हैं जिनकी सिफ़ारिश कुछ भी काम न आती, मगर ख़ुदा जिसके लिए चाहे इजाज़त दे दे और पसन्द करे उसके बाद (सिफ़ारिश कर सकते हैं) |
| 27 |
إِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ لَيُسَمُّونَ الْمَلَائِكَةَ تَسْمِيَةَ الْأُنْثَى जो लोग आख़ेरत पर ईमान नहीं रखते वह फ़रिश्तों के नाम रखते हैं औरतों के से नाम |
| 28 |
وَمَا لَهُمْ بِهِ مِنْ عِلْمٍ ۖ हालॉकि उन्हें इसकी कुछ ख़बर नहीं إِنْ يَتَّبِعُونَ إِلَّا الظَّنَّ ۖ وَإِنَّ الظَّنَّ لَا يُغْنِي مِنَ الْحَقِّ شَيْئًا वह लोग तो बस गुमान (ख्याल) के पीछे चल रहे हैं, हालॉकि गुमान यक़ीन के बदले में कुछ भी काम नहीं आया करता, |
| 29 |
فَأَعْرِضْ عَنْ مَنْ تَوَلَّى عَنْ ذِكْرِنَا وَلَمْ يُرِدْ إِلَّا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا तो जो हमारी याद से रदगिरदानी करे ओर सिर्फ दुनिया की ज़िन्दगी ही का तालिब हो तुम भी उससे मुँह फेर लो |
| 30 |
ذَلِكَ مَبْلَغُهُمْ مِنَ الْعِلْمِ ۚ उनके इल्म की यही इन्तिहा है إِنَّ رَبَّكَ هُوَ أَعْلَمُ بِمَنْ ضَلَّ عَنْ سَبِيلِهِ وَهُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اهْتَدَى तुम्हारा परवरदिगार, जो उसके रास्ते से भटक गया उसको भी ख़ूब जानता है, और जो राहे रास्त पर है उनसे भी ख़ूब वाक़िफ है |
| 31 |
وَلِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़ सब कुछ) ख़ुदा ही का है, لِيَجْزِيَ الَّذِينَ أَسَاءُوا بِمَا عَمِلُوا وَيَجْزِيَ الَّذِينَ أَحْسَنُوا بِالْحُسْنَى ताकि जिन लोगों ने बुराई की हो उनको उनकी कारस्तानियों की सज़ा दे और जिन लोगों ने नेकी की है (उनकी नेकी की जज़ा दे) |
| 32 |
الَّذِينَ يَجْتَنِبُونَ كَبَائِرَ الْإِثْمِ وَالْفَوَاحِشَ إِلَّا اللَّمَمَ ۚ जो सग़ीरा गुनाहों के सिवा कबीरा गुनाहों से और बेहयाई की बातों से बचे रहते हैं إِنَّ رَبَّكَ وَاسِعُ الْمَغْفِرَةِ ۚ बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ी बख्यिश वाला है هُوَ أَعْلَمُ بِكُمْ إِذْ أَنْشَأَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ وَإِذْ أَنْتُمْ أَجِنَّةٌ فِي بُطُونِ أُمَّهَاتِكُمْ ۖ वही तुमको ख़ूब जानता है जब उसने तुमको मिटटी से पैदा किया और जब तुम अपनी माँ के पेट में बच्चे थे فَلَا تُزَكُّوا أَنْفُسَكُمْ ۖ तो (तकब्बुर) से अपने नफ्स की पाकीज़गी न जताया करो هُوَ أَعْلَمُ بِمَنِ اتَّقَى जो परहेज़गार है उसको वह ख़ूब जानता है |
| 33 |
أَفَرَأَيْتَ الَّذِي تَوَلَّى भला (ऐ रसूल) तुमने उस शख़्श को भी देखा जिसने रदगिरदानी की |
| 34 |
وَأَعْطَى قَلِيلًا وَأَكْدَى और थोड़ा सा (ख़ुदा की राह में) दिया और फिर बन्द कर दिया |
| 35 |
أَعِنْدَهُ عِلْمُ الْغَيْبِ فَهُوَ يَرَى क्या उसके पास इल्मे ग़ैब है कि वह देख रहा है |
| 36 |
أَمْ لَمْ يُنَبَّأْ بِمَا فِي صُحُفِ مُوسَى क्या उसको उन बातों की ख़बर नहीं पहुँची जो मूसा के सहीफ़ों में है |
| 37 |
وَإِبْرَاهِيمَ الَّذِي وَفَّى और इबराहीम के (सहीफ़ों में) जिन्होने (अपना हक़) पूरा अदा किया |
| 38 |
أَلَّا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى (इन सहीफ़ों में ये है कि) कोई शख़्श दूसरे (के गुनाह) का बोझ नहीं उठाएगा |
| 39 |
وَأَنْ لَيْسَ لِلْإِنْسَانِ إِلَّا مَا سَعَى और ये कि इन्सान को वही मिलता है जिसकी वह कोशिश करता है |
| 40 |
وَأَنَّ سَعْيَهُ سَوْفَ يُرَى और ये कि उनकी कोशिश अनक़रीेब ही (क़यामत में) देखी जाएगी |
| 41 |
ثُمَّ يُجْزَاهُ الْجَزَاءَ الْأَوْفَى फिर उसका पूरा पूरा बदला दिया जाएगा |
| 42 |
وَأَنَّ إِلَى رَبِّكَ الْمُنْتَهَى और ये कि (सबको आख़िर) तुम्हारे परवरदिगार ही के पास पहुँचना है |
| 43 |
وَأَنَّهُ هُوَ أَضْحَكَ وَأَبْكَى और ये कि वही हँसाता और रूलाता है |
| 44 |
وَأَنَّهُ هُوَ أَمَاتَ وَأَحْيَا और ये कि वही मारता और जिलाता है |
| 45 |
وَأَنَّهُ خَلَقَ الزَّوْجَيْنِ الذَّكَرَ وَالْأُنْثَى और ये कि वही नर और मादा दो किस्म (के हैवान) पैदा करता है |
| 46 |
مِنْ نُطْفَةٍ إِذَا تُمْنَى नुत्फे से जब (रहम में) डाला जाता है |
| 47 |
وَأَنَّ عَلَيْهِ النَّشْأَةَ الْأُخْرَى और ये कि उसी पर (कयामत में) दोबारा उठाना लाज़िम है |
| 48 |
وَأَنَّهُ هُوَ أَغْنَى وَأَقْنَى और ये कि वही मालदार बनाता है और सरमाया अता करता है, |
| 49 |
وَأَنَّهُ هُوَ رَبُّ الشِّعْرَى और ये कि वही योअराए का मालिक है |
| 50 |
وَأَنَّهُ أَهْلَكَ عَادًا الْأُولَى और ये कि उसी ने पहले (क़ौमे) आद को हलाक किया |
| 51 |
وَثَمُودَ فَمَا أَبْقَى और समूद को भी ग़रज़ किसी को बाक़ी न छोड़ा |
| 52 |
وَقَوْمَ نُوحٍ مِنْ قَبْلُ ۖ إِنَّهُمْ كَانُوا هُمْ أَظْلَمَ وَأَطْغَى और (उसके) पहले नूह की क़ौम को बेशक ये लोग बड़े ही ज़ालिम और बड़े ही सरकश थे |
| 53 |
وَالْمُؤْتَفِكَةَ أَهْوَى और उसी ने (क़ौमे लूत की) उलटी हुई बस्तियों को दे पटका |
| 54 |
فَغَشَّاهَا مَا غَشَّى (फिर उन पर) जो छाया सो छाया |
| 55 |
فَبِأَيِّ آلَاءِ رَبِّكَ تَتَمَارَى तो तू (ऐ इन्सान आख़िर) अपने परवरदिगार की कौन सी नेअमत पर शक़ किया करेगा |
| 56 |
هَذَا نَذِيرٌ مِنَ النُّذُرِ الْأُولَى ये (मोहम्मद) भी अगले डराने वाले पैग़म्बरों में से एक डरने वाला पैग़म्बर है |
| 57 |
أَزِفَتِ الْآزِفَةُ कयामत क़रीब आ गयी |
| 58 |
لَيْسَ لَهَا مِنْ دُونِ اللَّهِ كَاشِفَةٌ ख़ुदा के सिवा उसे कोई टाल नहीं सकता |
| 59 |
أَفَمِنْ هَذَا الْحَدِيثِ تَعْجَبُونَ तो क्या तुम लोग इस बात से ताज्जुब करते हो |
| 60 |
وَتَضْحَكُونَ وَلَا تَبْكُونَ और हँसते हो और रोते नहीं हो |
| 61 |
وَأَنْتُمْ سَامِدُونَ और तुम इस क़दर ग़ाफ़िल हो |
| 62 |
فَاسْجُدُوا لِلَّهِ وَاعْبُدُوا ۩ तो ख़ुदा के आगे सजदे किया करो और (उसी की) इबादत किया करो (सजदा) ********* |
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