Quran Hindi Translation

Surah Al Mominun

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ

अलबत्ता वह ईमान लाने वाले रस्तगार हुए

2

الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ

जो अपनी नमाज़ों में (खुदा के सामने) गिड़गिड़ाते हैं

3

وَالَّذِينَ هُمْ عَنِ اللَّغْوِ مُعْرِضُونَ

और जो बेहूदा बातों से मुँह फेरे रहते हैं

4

وَالَّذِينَ هُمْ لِلزَّكَاةِ فَاعِلُونَ

और जो ज़कात (अदा) किया करते हैं

5

وَالَّذِينَ هُمْ لِفُرُوجِهِمْ حَافِظُونَ

और जो (अपनी) शर्मगाहों को (हराम से) बचाते हैं

6

إِلَّا عَلَى أَزْوَاجِهِمْ أَوْ مَا مَلَكَتْ أَيْمَانُهُمْ فَإِنَّهُمْ غَيْرُ مَلُومِينَ

मगर अपनी बीबियों से या अपनी ज़र ख़रीद लौनडियों से कि उन पर हरगिज़ इल्ज़ाम नहीं हो सकता

7

فَمَنِ ابْتَغَى وَرَاءَ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْعَادُونَ

पस जो शख्स उसके सिवा किसी और तरीके से शहवत परस्ती की तमन्ना करे तो ऐसे ही लोग हद से बढ़ जाने वाले हैं

8

وَالَّذِينَ هُمْ لِأَمَانَاتِهِمْ وَعَهْدِهِمْ رَاعُونَ

और जो अपनी अमानतों और अपने एहद का लिहाज़ रखते हैं

9

وَالَّذِينَ هُمْ عَلَى صَلَوَاتِهِمْ يُحَافِظُونَ

और जो अपनी नमाज़ों की पाबन्दी करते हैं

10

أُولَئِكَ هُمُ الْوَارِثُونَ

(आदमी की औलाद में) यही लोग सच्चे वारिस है

11

الَّذِينَ يَرِثُونَ الْفِرْدَوْسَ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ  

जो बेहश्त बरी का हिस्सा लेंगे (और) यही लोग इसमें हमेशा (जिन्दा) रहेंगे

12

وَلَقَدْ خَلَقْنَا الْإِنْسَانَ مِنْ سُلَالَةٍ مِنْ طِينٍ

और हमने आदमी को गीली मिट्टी के जौहर से पैदा किया

13

ثُمَّ جَعَلْنَاهُ نُطْفَةً فِي قَرَارٍ مَكِينٍ

फिर हमने उसको एक महफूज़ जगह (औरत के रहम में) नुत्फ़ा बना कर रखा

14

ثُمَّ خَلَقْنَا النُّطْفَةَ عَلَقَةً  فَخَلَقْنَا الْعَلَقَةَ مُضْغَةً

फिर हम ही ने नुतफ़े को जमा हुआ ख़ून बनाया

फिर हम ही ने मुनजमिद खून को गोश्त का लोथड़ा बनाया

فَخَلَقْنَا الْمُضْغَةَ عِظَامًا فَكَسَوْنَا الْعِظَامَ لَحْمًا ثُمَّ أَنْشَأْنَاهُ خَلْقًا آخَرَ ۚ

हम ही ने लोथडे क़ी हड्डियाँ बनायीं

फिर हम ही ने हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया

फिर हम ही ने उसको (रुह डालकर) एक दूसरी सूरत में पैदा किया

فَتَبَارَكَ اللَّهُ أَحْسَنُ الْخَالِقِينَ

तो (सुबहान अल्लाह) ख़ुदा बा बरकत है जो सब बनाने वालो से बेहतर है

15

ثُمَّ إِنَّكُمْ بَعْدَ ذَلِكَ لَمَيِّتُونَ

फिर इसके बाद यक़ीनन तुम सब लोगों को (एक न एक दिन) मरना है

16

ثُمَّ إِنَّكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ تُبْعَثُونَ

इसके बाद कयामत के दिन तुम सब के सब कब्रों से उठाए जाओगे

17

وَلَقَدْ خَلَقْنَا فَوْقَكُمْ سَبْعَ طَرَائِقَ وَمَا كُنَّا عَنِ الْخَلْقِ غَافِلِينَ

और हम ही ने तुम्हारे ऊपर तह ब तह आसमान बनाए

और हम मख़लूक़ात से बेखबर नही है

18

وَأَنْزَلْنَا مِنَ السَّمَاءِ مَاءً بِقَدَرٍ فَأَسْكَنَّاهُ فِي الْأَرْضِ ۖ وَإِنَّا عَلَى ذَهَابٍ بِهِ لَقَادِرُونَ

और हमने आसमान से एक अन्दाजे क़े साथ पानी बरसाया फिर उसको ज़मीन में (हसब मसलेहत) ठहराए रखा

और हम तो यक़ीनन उसके ग़ाएब कर देने पर भी क़ाबू रखते है

19

فَأَنْشَأْنَا لَكُمْ بِهِ جَنَّاتٍ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ لَكُمْ فِيهَا فَوَاكِهُ كَثِيرَةٌ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ

फिर हमने उस पानी से तुम्हारे वास्ते खजूरों और अंगूरों के बाग़ात बनाए

कि उनमें तुम्हारे वास्ते (तरह तरह के) बहुतेरे मेवे (पैदा होते) हैं उनमें से बाज़ को तुम खाते हो

20

وَشَجَرَةً تَخْرُجُ مِنْ طُورِ سَيْنَاءَ تَنْبُتُ بِالدُّهْنِ وَصِبْغٍ لِلْآكِلِينَ

और (हम ही ने ज़ैतून का) दरख्त (पैदा किया) जो तूरे सैना (पहाड़) में (कसरत से) पैदा होता है

जिससे तेल भी निकलता है और खाने वालों के लिए सालन भी है

21

وَإِنَّ لَكُمْ فِي الْأَنْعَامِ لَعِبْرَةً ۖ

और उसमें भी शक नहीं कि तुम्हारे वास्ते चौपायों में भी इबरत की जगह है

 نُسْقِيكُمْ مِمَّا فِي بُطُونِهَا وَلَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ كَثِيرَةٌ وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ

और (ख़ाक बला) जो कुछ उनके पेट में है उससे हम तुमको दूध पिलाते हैं

और जानवरों में तो तुम्हारे और भी बहुत से फायदे हैं और उन्हीं में से बाज़ तुम खाते हो

22

وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُونَ

और उन्हें जानवरों और कश्तियों पर चढे चढ़े फिरते भी हो

23

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا نُوحًا إِلَى قَوْمِهِ فَقَالَ يَا قَوْمِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُمْ مِنْ إِلَهٍ غَيْرُهُ ۖ أَفَلَا تَتَّقُونَ

और हमने नूह को उनकी काैम के पास पैग़म्बर बनाकर भेजा तो नूह ने (उनसे) कहा

ऐ मेरी क़ौम खुदा ही की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं

तो क्या तुम (उससे) डरते नहीं हो

24

فَقَالَ الْمَلَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ قَوْمِهِ

तो उनकी क़ौम के सरदारों ने जो काफिर थे कहा कि

مَا هَذَا إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يُرِيدُ أَنْ يَتَفَضَّلَ عَلَيْكُمْ وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَأَنْزَلَ مَلَائِكَةً مَا سَمِعْنَا بِهَذَا فِي آبَائِنَا الْأَوَّلِينَ

ये भी तो बस (आख़िर) तुम्हारे ही सा आदमी है (मगर) इसकी तमन्ना ये है कि तुम पर बुर्जुगी हासिल करे

और अगर खुदा (पैग़म्बर ही न भेजना) चाहता तो फरिश्तों को नाज़िल करता

हम ने तो (भाई) ऐसी बात अपने अगले बाप दादाओं में (भी होती) नहीं सुनी

25

إِنْ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ بِهِ جِنَّةٌ فَتَرَبَّصُوا بِهِ حَتَّى حِينٍ  

हो न हों बस ये एक आदमी है जिसे जुनून हो गया है ग़रज़ तुम लोग एक (ख़ास) वक्त तक (इसके अन्जाम का) इन्तेज़ार देखो

26

قَالَ رَبِّ انْصُرْنِي بِمَا كَذَّبُونِ

नूह ने (ये बातें सुनकर) दुआ की ऐ मेरे पलने वालेमेरी मदद कर इस वजह से कि उन लोगों ने मुझे झुठला दिया

27

فَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِ أَنِ اصْنَعِ الْفُلْكَ بِأَعْيُنِنَا وَوَحْيِنَا

तो हमने नूह के पास 'वही' भेजी कि तुम हमारे सामने हमारे हुक्म के मुताबिक़ कश्ती बनाना शुरु करो

فَإِذَا جَاءَ أَمْرُنَا وَفَارَ التَّنُّورُ ۙ فَاسْلُكْ فِيهَا مِنْ كُلٍّ زَوْجَيْنِ اثْنَيْنِ

फिर जब कल हमारा अज़ाब आ जाए और तन्नूर (से पानी) उबलने लगे तो तुम उसमें हर किस्म (के जानवरों में) से (नर मादा) दो दो का जोड़ा बिठा लो

وَأَهْلَكَ إِلَّا مَنْ سَبَقَ عَلَيْهِ الْقَوْلُ مِنْهُمْ ۖ

और अपने लड़के बालों को मगर उन में से जिसकी निस्बत (ग़रक़ होने का) पहले से हमारा हुक्म हो चुका है (उन्हें छोड़ दो)

وَلَا تُخَاطِبْنِي فِي الَّذِينَ ظَلَمُوا ۖ إِنَّهُمْ مُغْرَقُونَ

और जिन लोगों ने (हमारे हुकम से) सरकशी की है उनके बारे में मुझसे कुछ कहना (सुनना) नहीं

क्योंकि ये लोग यकीनन डूबने वाले है

28

فَإِذَا اسْتَوَيْتَ أَنْتَ وَمَنْ مَعَكَ عَلَى الْفُلْكِ فَقُلِ

ग़रज़ जब तुम अपने हमराहियों के साथ कश्ती पर दुरुस्त बैठो तो कहो

الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي نَجَّانَا مِنَ الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ

तमाम हम्दो सना की सज़ावार खुदा ही है जिसने हमको ज़ालिम लोगों से नजात दी

29

وَقُلْ رَبِّ أَنْزِلْنِي مُنْزَلًا مُبَارَكًا وَأَنْتَ خَيْرُ الْمُنْزِلِينَ

और दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले तू मुझको (दरख्त के पानी की) बा बरकत जगह में उतारना

और तू तो सब उतारने वालो से बेहतर है

30

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَاتٍ وَإِنْ كُنَّا لَمُبْتَلِينَ

इसमें शक नहीं कि हसमें (हमारी क़ुदरत की) बहुत सी निशानियाँ हैं और हमको तो बस उनका इम्तिहान लेना मंज़ूर था

31

ثُمَّ أَنْشَأْنَا مِنْ بَعْدِهِمْ قَرْنًا آخَرِينَ

फिर हमने उनके बाद एक और क़ौम को (समूद) को पैदा किया

32

فَأَرْسَلْنَا فِيهِمْ رَسُولًا مِنْهُمْ

और हमने उनही में से (एक आदमी सालेह को) रसूल बनाकर उन लोगों में भेजा

 أَنِ اعْبُدُوا اللَّهَ مَا لَكُمْ مِنْ إِلَهٍ غَيْرُهُ أَفَلَا تَتَّقُونَ

(और उन्होंने अपनी क़ौम से कहा)

कि खुदा की इबादत करो उसके सिवा कोई तुम्हारा माबूद नहीं

तो क्या तुम उससे डरते नही हो

33

وَقَالَ الْمَلَأُ مِنْ قَوْمِهِ الَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِلِقَاءِ الْآخِرَةِ  وَأَتْرَفْنَاهُمْ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا

और उनकी क़ौम के चन्द सरदारों ने जो काफिर थे और (रोज़) आख़िरत की हाज़िरी को भी झुठलाते थे और दुनिया की (चन्द रोज़ा) ज़िन्दगी में हमने उन्हें शहवत भी दे रखी थी आपस में कहने लगे

مَا هَذَا إِلَّا بَشَرٌ مِثْلُكُمْ يَأْكُلُ مِمَّا تَأْكُلُونَ مِنْهُ وَيَشْرَبُ مِمَّا تَشْرَبُونَ

(अरे) ये तो बस तुम्हारा ही सा आदमी है

जो चीज़े तुम खाते वही ये भी खाता है और जो चीज़े तुम पीते हो उन्हीं में से ये भी पीता है

34

وَلَئِنْ أَطَعْتُمْ بَشَرًا مِثْلَكُمْ إِنَّكُمْ إِذًا لَخَاسِرُونَ

और अगर कहीं तुम लोगों ने अपने ही से आदमी की इताअत कर ली तो तुम ज़रुर घाटे में रहोगे

35

أَيَعِدُكُمْ أَنَّكُمْ إِذَا مِتُّمْ وَكُنْتُمْ تُرَابًا وَعِظَامًا أَنَّكُمْ مُخْرَجُونَ

क्या ये शख्स तुमसे वायदा करता है कि जब तुम मर जाओगे और (मर कर) सिर्फ मिट्टी और हड्डियाँ (बनकर) रह जाओगे तो तुम दुबारा ज़िन्दा करके कब्रों से निकाले जाओगे

36

هَيْهَاتَ هَيْهَاتَ لِمَا تُوعَدُونَ

(है है अरे) जिसका तुमसे वायदा किया जाता है बिल्कुल (अक्ल से) दूर और क़यास से बईद है

37

إِنْ هِيَ إِلَّا حَيَاتُنَا الدُّنْيَا نَمُوتُ وَنَحْيَا وَمَا نَحْنُ بِمَبْعُوثِينَ

(दो बार ज़िन्दा होना कैसा) बस यही तुम्हारी दुनिया की ज़िन्दगी है कि हम मरते भी हैं और जीते भी हैं

और हम तो फिर (दुबारा) उठाए नहीं जाएँगे

38

إِنْ هُوَ إِلَّا رَجُلٌ افْتَرَى عَلَى اللَّهِ كَذِبًا وَمَا نَحْنُ لَهُ بِمُؤْمِنِينَ

हो न हो ये (सालेह) वह शख्स है जिसने खुदा पर झूठ मूठ बोहतान बाँधा है और हम तो कभी उस पर ईमान लाने वाले नहीं

39

قَالَ رَبِّ انْصُرْنِي بِمَا كَذَّبُونِ

(ये हालत देखकर) सालेह ने दुआ की ऐ मेरे पालने वाले चूँकि इन लोगों ने मुझे झुठला दिया तू मेरी मदद कर

40

قَالَ عَمَّا قَلِيلٍ لَيُصْبِحُنَّ نَادِمِينَ

ख़ुदा ने फरमाया (एक ज़रा ठहर जाओ) अनक़रीब ही ये लोग नादिम व परेशान हो जाएँगे

41

فَأَخَذَتْهُمُ الصَّيْحَةُ بِالْحَقِّ فَجَعَلْنَاهُمْ غُثَاءً ۚ فَبُعْدًا لِلْقَوْمِ الظَّالِمِينَ

ग़रज़ उन्हें यक़ीनन एक सख्त चिंघाड़ ने ले डाला तो हमने उन्हें कूडे क़रकट (का ढेर) बना छोड़ा

पस ज़ालिमों पर (खुदा की) लानत है

42

ثُمَّ أَنْشَأْنَا مِنْ بَعْدِهِمْ قُرُونًا آخَرِينَ

फिर हमने उनके बाद दूसरी क़ौमों को पैदा किया

43

مَا تَسْبِقُ مِنْ أُمَّةٍ أَجَلَهَا وَمَا يَسْتَأْخِرُونَ

कोई उम्मत अपने वक्त मुर्करर से न आगे बढ़ सकती है न (उससे) पीछे हट सकती है

44

ثُمَّ أَرْسَلْنَا رُسُلَنَا تَتْرَى ۖ كُلَّ مَا جَاءَ أُمَّةً رَسُولُهَا كَذَّبُوهُ ۚ

फिर हमने लगातार बहुत से पैग़म्बर भेजे

(मगर) जब जब किसी उम्मत का पैग़म्बर उन के पास आता तो ये लोग उसको झुठलाते थे

فَأَتْبَعْنَا بَعْضَهُمْ بَعْضًا وَجَعَلْنَاهُمْ أَحَادِيثَ ۚ

तो हम थी (आगे पीछे) एक को दूसरे के बाद (हलाक) करते गए और हमने उन्हें (नेस्त व नाबूद करके) अफसाना बना दिया

فَبُعْدًا لِقَوْمٍ لَا يُؤْمِنُونَ

तो ईमान न लाने वालो पर ख़ुदा की लानत है

45

ثُمَّ أَرْسَلْنَا مُوسَى وَأَخَاهُ هَارُونَ بِآيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُبِينٍ

फिर हमने मूसा और उनके भाई हारुन को अपनी निशानियों और वाज़ेए व रौशन दलील के साथ रसूल बना कर भेजा

46

إِلَى فِرْعَوْنَ وَمَلَئِهِ فَاسْتَكْبَرُوا وَكَانُوا قَوْمًا عَالِينَ

फिरऔन और उसके दरबार के उमराओ के पास

तो उन लोगो ने शेख़ी की और वह थे ही बड़े सरकश लोग

47

فَقَالُوا أَنُؤْمِنُ لِبَشَرَيْنِ مِثْلِنَا وَقَوْمُهُمَا لَنَا عَابِدُونَ

आपस मे कहने लगे क्या हम अपने ही ऐसे दो आदमियों पर ईमान ले आएँ हालाँकि इन दोनों की (क़ौम की) क़ौम हमारी ख़िदमत गारी करती है

48

‏فَكَذَّبُوهُمَا فَكَانُوا مِنَ الْمُهْلَكِينَ

गरज़ उन लोगों ने इन दोनों को झुठलाया तो आख़िर ये सब के सब हलाक कर डाले गए

49

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ لَعَلَّهُمْ يَهْتَدُونَ

और हमने मूसा को किताब (तौरैत) इसलिए अता की थी कि ये लोग हिदायत पाएँ

50

وَجَعَلْنَا ابْنَ مَرْيَمَ وَأُمَّهُ آيَةً وَآوَيْنَاهُمَا إِلَى رَبْوَةٍ ذَاتِ قَرَارٍ وَمَعِينٍ

और हमने मरियम के बेटे (ईसा) और उनकी माँ को (अपनी कुदरत की निशानी बनाया था)

और उन दोनों को हमने एक ऊँची हमवार ठहरने के क़ाबिल चश्में वाली ज़मीन पर (रहने की) जगह दी

51

يَا أَيُّهَا الرُّسُلُ كُلُوا مِنَ الطَّيِّبَاتِ وَاعْمَلُوا صَالِحًا ۖ إِنِّي بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ

और मेरा आम हुक्म था कि ऐ (मेरे पैग़म्बर) पाक व पाकीज़ा चीज़ें खाओ और अच्छे अच्छे काम करो

(क्योंकि) तुम जो कुछ करते हो मैं उससे बख़ूबी वाक़िफ हूँ

52

وَإِنَّ هَذِهِ أُمَّتُكُمْ أُمَّةً وَاحِدَةً  وَأَنَا رَبُّكُمْ فَاتَّقُونِ

(लोगों ये दीन इस्लाम) तुम सबका मज़हब एक ही मज़हब है

और मै तुम लोगों का परवरदिगार हूँ

53

فَتَقَطَّعُوا أَمْرَهُمْ بَيْنَهُمْ زُبُرًا ۖ كُلُّ حِزْبٍ بِمَا لَدَيْهِمْ فَرِحُونَ

तो बस मुझी से डरते रहो फिर लोगों ने अपने काम (में एख़तिलाफ करके उस) को टुकड़े टुकड़े कर डाला

हर गिरो जो कुछ उसके पास है उसी में निहाल निहाल है

54

فَذَرْهُمْ فِي غَمْرَتِهِمْ حَتَّى حِينٍ

तो (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उन की ग़फलत में एक ख़ास वक्त तक (पड़ा) छोड़ दो

55

أَيَحْسَبُونَ أَنَّمَا نُمِدُّهُمْ بِهِ مِنْ مَالٍ وَبَنِينَ

क्या ये लोग ये ख्याल करते है कि हम जो उन्हें माल और औलाद में तरक्क़ी दे रहे है

56

نُسَارِعُ لَهُمْ فِي الْخَيْرَاتِ ۚبَلْ لَا يَشْعُرُونَ

तो हम उनके साथ भलाईयाँ करने में जल्दी कर रहे है

(ऐसा नहीं) बल्कि ये लोग समझते नहीं

57

إِنَّ الَّذِينَ هُمْ مِنْ خَشْيَةِ رَبِّهِمْ مُشْفِقُونَ

उसमें शक नहीं कि जो लोग अपने परवरदिगार की वहशत से लरज़ रहे है

58

وَالَّذِينَ هُمْ بِآيَاتِ رَبِّهِمْ يُؤْمِنُونَ

और जो लोग अपने परवरदिगार की (क़ुदरत की) निशानियों पर ईमान रखते हैं

59

وَالَّذِينَ هُمْ بِرَبِّهِمْ لَا يُشْرِكُونَ

और अपने परवरदिगार का किसी को शरीक नही बनाते

60

وَالَّذِينَ يُؤْتُونَ مَا آتَوْا وَقُلُوبُهُمْ وَجِلَةٌ أَنَّهُمْ إِلَى رَبِّهِمْ رَاجِعُونَ

और जो लोग (ख़ुदा की राह में) जो कुछ बन पड़ता है देते हैं

और फिर उनके दिल को इस बात का खटका लगा हुआ है कि उन्हें अपने परवरदिगार के सामने लौट कर जाना है

61

أُولَئِكَ يُسَارِعُونَ فِي الْخَيْرَاتِ وَهُمْ لَهَا سَابِقُونَ

(देखिये क्या होता है) यही लोग अलबत्ता नेकियों में जल्दी करते हैं और भलाई की तरफ (दूसरों से) लपक के आगे बढ़ जाते हैं

62

وَلَا نُكَلِّفُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۖ وَلَدَيْنَا كِتَابٌ يَنْطِقُ بِالْحَقِّ ۚ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ

और हम तो किसी शख्स को उसकी क़ूवत से बढ़के तकलीफ देते ही नहीं

और हमारे पास तो (लोगों के आमाल की) किताब है जो बिल्कुल ठीक (हाल बताती है)

और उन लोगों की (ज़र्रा बराबर) हक़ तलफी नहीं की जाएगी

63

بَلْ قُلُوبُهُمْ فِي غَمْرَةٍ مِنْ هَذَا وَلَهُمْ أَعْمَالٌ مِنْ دُونِ ذَلِكَ هُمْ لَهَا عَامِلُونَ

उनके दिल उसकी तरफ से ग़फलत में पडे हैं

इसके अलावा उन के बहुत से आमाल हैं जिन्हें ये (बराबर किया करते है) और बाज़ नहीं आते

64

حَتَّى إِذَا أَخَذْنَا مُتْرَفِيهِمْ بِالْعَذَابِ إِذَا هُمْ يَجْأَرُونَ

यहाँ तक कि जब हम उनके मालदारों को अज़ाब में गिरफ््तार करेंगे तो ये लोग वावैला करने लगेंगें

65

لَا تَجْأَرُوا الْيَوْمَ ۖ إِنَّكُمْ مِنَّا لَا تُنْصَرُونَ

(उस वक्त क़हा जाएगा) आज वावैला मत करों

तुमको अब हमारी तरफ से मदद नहीं मिल सकती

66

قَدْ كَانَتْ آيَاتِي تُتْلَى عَلَيْكُمْ فَكُنْتُمْ عَلَى أَعْقَابِكُمْ تَنْكِصُونَ

(जब) हमारी आयतें तुम्हारे सामने पढ़ी जाती थीं तो तुम अकड़ते किस्सा कहते बकते हुए उन से उलटे पाँव फिर जाते

67

مُسْتَكْبِرِينَ بِهِ سَامِرًا تَهْجُرُونَ

हाल यह था कि इसके कारण स्वयं को बड़ा समझते थे, उसे एक कहानी कहनेवाला ठहराकर छोड़ चलते थे

68

أَفَلَمْ يَدَّبَّرُوا الْقَوْلَ أَمْ جَاءَهُمْ مَا لَمْ يَأْتِ آبَاءَهُمُ الْأَوَّلِينَ

तो क्या उन लोगों ने (हमारी) बात (कुरान) पर ग़ौर नहीं किया

उनके पास कोई ऐसी नयी चीज़ आयी जो उनके अगले बाप दादाओं के पास नहीं आयी थी

69

أَمْ لَمْ يَعْرِفُوا رَسُولَهُمْ فَهُمْ لَهُ مُنْكِرُونَ

या उन लोगों ने अपने रसूल ही को नहीं पहचाना तो इस वजह से इन्कार कर बैठे

70

أَمْ يَقُولُونَ بِهِ جِنَّةٌ ۚ

या कहते हैं कि इसको जुनून हो गया है

بَلْ جَاءَهُمْ بِالْحَقِّ وَأَكْثَرُهُمْ لِلْحَقِّ كَارِهُونَ

(हरगिज़ उसे जुनून नहीं)

बल्कि वह तो उनके पास हक़ बात लेकर आया है और उनमें के अक्सर हक़ बात से नफरत रखते हैं

71

وَلَوِ اتَّبَعَ الْحَقُّ أَهْوَاءَهُمْ لَفَسَدَتِ السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ وَمَنْ فِيهِنَّ ۚ

और अगर कहीं हक़ उनकी नफसियानी ख्वाहिश की पैरवी करता है तो सारे आसमान व ज़मीन और जो लोग उनमें हैं (सबके सब) बरबाद हो जाते

بَلْ أَتَيْنَاهُمْ بِذِكْرِهِمْ فَهُمْ عَنْ ذِكْرِهِمْ مُعْرِضُونَ

बल्कि हम तो उन्हीं के तज़किरे (जिबरील के वास्ते से) उनके पास लेकर आए तो यह लोग अपने ही तज़किरे से मुँह मोड़तें हैं

72

أَمْ تَسْأَلُهُمْ خَرْجًا

(ऐ रसूल) क्या तुम उनसे (अपनी रिसालत की) कुछ उजरत माँगतें हों

 فَخَرَاجُ رَبِّكَ خَيْرٌ ۖ  وَهُوَ خَيْرُ الرَّازِقِينَ

तो तुम्हारे परवरदिगार की उजरत उससे कही बेहतर है

और वह तो सबसे बेहतर रोज़ी देने वाला है

73

وَإِنَّكَ لَتَدْعُوهُمْ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ

और तुम तो यक़ीनन उनको सीधी राह की तरफ बुलाते हो

74

وَإِنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ عَنِ الصِّرَاطِ لَنَاكِبُونَ

और इसमें शक नहीं कि जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते वह सीधी राह से हटे हुए हैं

75

وَلَوْ رَحِمْنَاهُمْ وَكَشَفْنَا مَا بِهِمْ مِنْ ضُرٍّ لَلَجُّوا فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ

और अगर हम उन पर तरस खायें और जो तकलीफें उनको (कुफ्र की वजह से) पहुँच रही हैं उन को दफा कर दें तो यक़ीनन ये लोग (और भी) अपनी सरकशी पर अड़ जाए और भटकते फिरें

76

وَلَقَدْ أَخَذْنَاهُمْ بِالْعَذَابِ فَمَا اسْتَكَانُوا لِرَبِّهِمْ وَمَا يَتَضَرَّعُونَ

और हमने उनको अज़ाब में गिरफ्तार किया तो भी वे लोग न तो अपने परवरदिगार के सामने झुके और गिड़गिड़ाएँ

77

حَتَّى إِذَا فَتَحْنَا عَلَيْهِمْ بَابًا ذَا عَذَابٍ شَدِيدٍ إِذَا هُمْ فِيهِ مُبْلِسُونَ

यहाँ तक कि जब हमने उनके सामने एक सख्त अज़ाब का दरवाज़ा खोल दिया तो उस वक्त फ़ौरन ये लोग बेआस होकर बैठ रहे

78

وَهُوَ الَّذِي أَنْشَأَ لَكُمُ السَّمْعَ وَالْأَبْصَارَ وَالْأَفْئِدَةَ ۚ قَلِيلًا مَا تَشْكُرُونَ

हालाँकि वही वह (मेहरबान खुदा) है जिसने तुम्हारे लिए कान और ऑंखें और दिल पैदा किये

(मगर) तुम लोग हो ही बहुत कम शुक्र करने वाले

79

وَهُوَ الَّذِي ذَرَأَكُمْ فِي الْأَرْضِ وَإِلَيْهِ تُحْشَرُونَ

और वह वही (ख़ुदा) है जिसने तुम को रुए ज़मीन में (हर तरफ) फैला दिया

और फिर (एक दिन) सब के सब उसी के सामने इकट्ठे किये जाओगे

80

وَهُوَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ وَلَهُ اخْتِلَافُ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

और वही वह (ख़ुदा) है जो जिलाता और मारता है कि और रात दिन का फेर बदल भी उसी के एख्तियार में है

तो क्या तुम (इतना भी) नहीं समझते

81

بَلْ قَالُوا مِثْلَ مَا قَالَ الْأَوَّلُونَ

(इन बातों को समझें ख़ाक नहीं)

बल्कि जो अगले लोग कहते आए वैसी ही बात ये भी कहने लगे

82

قَالُوا أَإِذَا مِتْنَا وَكُنَّا تُرَابًا وَعِظَامًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ

कि जब हम मर जाएँगें और (मरकर) मिट्टी (का ढ़ेर) और हड्डियाँ हो जाएँगें तो क्या हम फिर दोबारा (क्रबों से ज़िन्दा करके) निकाले जाएँगे

83

‏لَقَدْ وُعِدْنَا نَحْنُ وَآبَاؤُنَا هَذَا مِنْ قَبْلُ إِنْ هَذَا إِلَّا أَسَاطِيرُ الْأَوَّلِينَ

इसका वायदा तो हमसे और हमसे पहले हमारे बाप दादाओं से भी (बार हा) किया जा चुका है

ये तो बस सिर्फ अगले लोगों के ढकोसले हैं

84

قُلْ لِمَنِ الْأَرْضُ وَمَنْ فِيهَا إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि भला अगर तुम लोग कुछ जानते हो (तो बताओ) ये ज़मीन और जो लोग इसमें हैं किस के हैं

85

سَيَقُولُونَ لِلَّهِ ۚ

वह फौरन जवाब देगें ख़ुदा के

قُلْ أَفَلَا تَذَكَّرُونَ

तुम कह दो कि तो क्या तुम अब भी ग़ौर न करोगे

86

قُلْ مَنْ رَبُّ السَّمَاوَاتِ السَّبْعِ وَرَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيمِ

(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो तो कि सातों आसमानों का मालिक कौन है

और (इतने) बड़े अर्श का मालिक (कौन है)

87

سَيَقُولُونَ لِلَّهِ ۚ

तो फौरन जवाब देगें कि (सब कुछ) खुदा ही का है

 قُلْ أَفَلَا تَتَّقُونَ

अब तुम कहो तो क्या तुम अब भी (उससे) नहीं डरोगे

88

قُلْ مَنْ بِيَدِهِ مَلَكُوتُ كُلِّ شَيْءٍ وَهُوَ يُجِيرُ وَلَا يُجَارُ عَلَيْهِ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ

(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो कि भला अगर तुम कुछ जानते हो (तो बताओ) कि वह कौन शख्स है- जिसके एख्तेयार में हर चीज़ की बादशाहत है वह (जिसे चाहता है) पनाह देता है

और उस (के अज़ाब) से पनाह नहीं दी जा सकती

89

سَيَقُولُونَ لِلَّهِ ۚ

तो ये लोग फौरन बोल उठेंगे कि (सब एख्तेयार) ख़ुदा ही को है-

 قُلْ فَأَنَّى تُسْحَرُونَ

अब तुम कह दो कि तुम पर जादू कहाँ किया जाता है

90

بَلْ أَتَيْنَاهُمْ بِالْحَقِّ وَإِنَّهُمْ لَكَاذِبُونَ

बात ये है कि हमने उनके पास हक़ बात पहुँचा दी और ये लोग यक़ीनन झूठे हैं

91

مَا اتَّخَذَ اللَّهُ مِنْ وَلَدٍ وَمَا كَانَ مَعَهُ مِنْ إِلَهٍ ۚ

न तो अल्लाह ने किसी को (अपना) बेटा बनाया है और न उसके साथ कोई और ख़ुदा है

إِذًا لَذَهَبَ كُلُّ إِلَهٍ بِمَا خَلَقَ وَلَعَلَا بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ ۚ سُبْحَانَ اللَّهِ عَمَّا يَصِفُونَ

(अगर ऐसा होता) उस वक्त हर खुदा अपने अपने मख़लूक़ को लिए लिए फिरता और यक़ीनन एक दूसरे पर चढ़ाई करता (और ख़ूब जंग होती)

जो जो बाते ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) बयान करते हैं उस से ख़ुदा पाक व पाकीज़ा है

92

عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَتَعَالَى عَمَّا يُشْرِكُونَ

वह पोशीदा और हाज़िर (सबसे) खुदा वाक़िफ है

ग़रज़ वह उनके शिर्क से (बिल्कुल पाक और) बालातर है

93

قُلْ رَبِّ إِمَّا تُرِيَنِّي مَا يُوعَدُونَ

(ऐ रसूल) तुम दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले जिस (अज़ाब) का तूने उनसे वायदा किया है अगर शायद तू मुझे दिखाए

94

‏رَبِّ فَلَا تَجْعَلْنِي فِي الْقَوْمِ الظَّالِمِينَ

तो परवरदिगार मुझे उन ज़ालिम लोगों के हमराह न करना

95

وَإِنَّا عَلَى أَنْ نُرِيَكَ مَا نَعِدُهُمْ لَقَادِرُونَ

और (ऐ रसूल) हम यक़ीनन इस पर क़ादिर हैं कि जिस (अज़ाब) का हम उनसे वायदा करते हैं तुम्हें दिखा दें

96

ادْفَعْ بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ السَّيِّئَةَ ۚ

और बुरी बात के जवाब में ऐसी बात कहो जो निहायत अच्छी हो

نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَصِفُونَ

जो कुछ ये लोग (तुम्हारी निस्बत) बयान करते हैं उससे हम ख़ूब वाक़िफ हैं  

97

وَقُلْ رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ

और (ये भी) दुआ करो कि ऐ मेरे पालने वाले मै शैतान के वसवसों से तेरी पनाह माँगता हूँ

98

وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَنْ يَحْضُرُونِ

और ऐ मेरे परवरदिगार इससे भी तेरी पनाह माँगता हूँ कि शयातीन मेरे पास आएँ

99

حَتَّى إِذَا جَاءَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ

(और कुफ्फ़ार तो मानेगें नहीं) यहाँ तक कि जब उनमें से किसी को मौत आयी तो कहने लगे परवरदिगार तू मुझे (एक बार) उस मुक़ाम (दुनिया) में छोड़ आया हूँ

100

 لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ ۚ

फिर वापस कर दे ताकि मै (अपकी दफ़ा) अच्छे अच्छे काम करूं

 كَلَّا ۚ إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَائِلُهَا ۖ ۚ

(जवाब दिया जाएगा) हरगिज़ नहीं

ये एक लग़ो बात है- जिसे वह बक रहा है

وَمِنْ وَرَائِهِمْ بَرْزَخٌ إِلَى يَوْمِ يُبْعَثُونَ

और उनके (मरने के) बाद (आलमे) बरज़ख़ है (जहाँ रहना होगा)  फिर  क़ब्रों से उठाए जाएँगें

101

فَإِذَا نُفِخَ فِي الصُّورِ فَلَا أَنْسَابَ بَيْنَهُمْ يَوْمَئِذٍ وَلَا يَتَسَاءَلُونَ

फिर जिस वक्त सूर फूँका जाएगा तो उस दिन न लोगों में क़राबत दारियाँ रहेगी और न एक दूसरे की बात पूछेंगे

102

فَمَنْ ثَقُلَتْ مَوَازِينُهُ فَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ

फिर जिन (के नेकियों) के पल्लें भारी होगें तो यही लोग कामयाब होंगे

103

وَمَنْ خَفَّتْ مَوَازِينُهُ فَأُولَئِكَ الَّذِينَ خَسِرُوا أَنْفُسَهُمْ فِي جَهَنَّمَ خَالِدُونَ

और जिन (के नेकियों) के पल्लें हल्के होंगे तो यही लोग है जिन्होंने अपना नुक़सान किया

कि हमेशा जहन्नुम में रहेंगे

104

تَلْفَحُ وُجُوهَهُمُ النَّارُ وَهُمْ فِيهَا كَالِحُونَ

और (उनकी ये हालत होगी कि) जहन्नुम की आग उनके मुँह को झुलसा देगी और लोग मुँह बनाए हुए होगें

105

أَلَمْ تَكُنْ آيَاتِي تُتْلَى عَلَيْكُمْ فَكُنْتُمْ بِهَا تُكَذِّبُونَ

(उस वक्त हम पूछेंगें) क्या तुम्हारे सामने मेरी आयतें न पढ़ी गयीं थीं

(ज़रुर पढ़ी गयी थीं) तो तुम उन्हें झुठलाया करते थे

106

قَالُوا رَبَّنَا غَلَبَتْ عَلَيْنَا شِقْوَتُنَا وَكُنَّا قَوْمًا ضَالِّينَ

वह जवाब देगें ऐ हमारे परवरदिगार हमको हमारी कम्बख्ती ने आज़माया और हम गुमराह लोग थे

107

رَبَّنَا أَخْرِجْنَا مِنْهَا فَإِنْ عُدْنَا فَإِنَّا ظَالِمُونَ

परवरदिगार हमको (अबकी दफा) किसी तरह इस जहन्नुम से निकाल दे

फिर अगर दोबारा हम ऐसा करें तो अलबत्ता हम कुसूरवार हैं

108

قَالَ اخْسَئُوا فِيهَا وَلَا تُكَلِّمُونِ

ख़ुदा फरमाएगा दूर हो इसी में (तुम को रहना होगा) और (बस) मुझ से बात न करो

109

إِنَّهُ كَانَ فَرِيقٌ مِنْ عِبَادِي يَقُولُونَ رَبَّنَا آمَنَّا فَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا وَأَنْتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ

मेरे बन्दों में से एक गिरोह ऐसा भी था जो (बराबर) ये दुआ करता था कि

ऐ हमारे पालने वाले हम ईमान लाए तो तू हमको बख्श दे और हम पर रहम कर तू तो तमाम रहम करने वालों से बेहतर है

110

فَاتَّخَذْتُمُوهُمْ سِخْرِيًّا حَتَّى أَنْسَوْكُمْ ذِكْرِي وَكُنْتُمْ مِنْهُمْ تَضْحَكُونَ

तो तुम लोगों ने उन्हें मसखरा बना लिया-यहाँ तक कि (गोया) उन लोगों ने तुम से मेरी याद भुला दी

और तुम उन पर (बराबर) हँसते रहे

111

إِنِّي جَزَيْتُهُمُ الْيَوْمَ بِمَا صَبَرُوا أَنَّهُمْ هُمُ الْفَائِزُونَ

मैने आज उनको उनके सब्र का अच्छा बदला दिया कि यही लोग अपनी (ख़ातिरख्वाह) मुराद को पहुँचने वाले हैं

112

قَالَ كَمْ لَبِثْتُمْ فِي الْأَرْضِ عَدَدَ سِنِينَ

(फिर उनसे) ख़ुदा पूछेगा कि (आख़िर) तुम ज़मीन पर कितने बरस रहे

113

قَالُوا لَبِثْنَا يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ  فَاسْأَلِ الْعَادِّينَ

वह कहेंगें (बरस कैसा) हम तो बस पूरा एक दिन रहे या एक दिन से भी कम

तो तुम शुमार करने वालों से पूछ लो

114

قَالَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا ۖ لَوْ أَنَّكُمْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ

ख़ुदा फरमाएगा बेशक तुम (ज़मीन में) बहुत ही कम ठहरे

काश तुम (इतनी बात भी दुनिया में) समझे होते

115

أَفَحَسِبْتُمْ أَنَّمَا خَلَقْنَاكُمْ عَبَثًا  وَأَنَّكُمْ إِلَيْنَا لَا تُرْجَعُونَ

तो क्या तुम ये ख्याल करते हो कि हमने तुमको (यूँ ही) बेकार पैदा किया

और ये कि तुम हमारे हुज़ूर में लौटा कर न लाए जाओगे

116

فَتَعَالَى اللَّهُ الْمَلِكُ الْحَقُّ ۖ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْكَرِيمِ

तो ख़ुदा जो सच्चा बादशाह (हर चीज़ से) बरतर व आला है

उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वहीं) अर्श बुर्जुग़ का मालिक है

117

وَمَنْ يَدْعُ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ لَا بُرْهَانَ لَهُ بِهِ فَإِنَّمَا حِسَابُهُ عِنْدَ رَبِّهِ ۚ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الْكَافِرُونَ

और जो शख्स ख़ुदा के साथ दूसरे माबूद की भी परसतिश करेगा उसके पास इस शिर्क की कोई दलील तो है नहीं तो बस उसका हिसाब (किताब) उसके परवरदिगार ही के पास होगा

मगर याद रहे कि कुफ्फ़ार हरगिज़ फलॉह पाने वाले नहीं

118

وَقُلْ رَبِّ اغْفِرْ وَارْحَمْ وَأَنْتَ خَيْرُ الرَّاحِمِينَ

और (ऐ रसूल) तुम कह दो परवरदिगार तू (मेरी उम्मत को) बख्श दे और तरस खा

और तू तो सब रहम करने वालों से बेहतर है

*********


© Copy Rights:

Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

Email: cmaj37@gmail.com

Visits wef June 2024