Quran Hindi Translation

Surah Al Isra

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَى بِعَبْدِهِ  لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ  لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا ۚ

वह ख़ुदा (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है जिसने अपने बन्दों को रातों रात मस्जिदुल हराम (ख़ान ऐ काबा) से मस्जिदुल अक़सा (आसमानी मस्जिद) तक की सैर कराई जिसके चौगिर्द हमने हर किस्म की बरकत मुहय्या कर रखी हैं

ताकि हम उसको (अपनी कुदरत की) निशानियाँ दिखाए

إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ

इसमें शक़ नहीं कि (वह सब कुछ) सुनता (और) देखता है

2

وَآتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَجَعَلْنَاهُ هُدًى لِبَنِي إِسْرَائِيلَ  أَلَّا تَتَّخِذُوا مِنْ دُونِي وَكِيلًا

और हमने मूसा को किताब (तौरैत) अता की और उस को बनी इसराईल की रहनुमा क़रार दिया

(और हुक्म दे दिया) कि मेरे सिवा किसी को अपना कारसाज़ न बनाना

3

ذُرِّيَّةَ مَنْ حَمَلْنَا مَعَ نُوحٍ ۚ إِنَّهُ كَانَ عَبْدًا شَكُورًا

ऐ उन लोगों की औलाद जिन्हें हम ने नूह के साथ कश्ती में सवार किया था

बेशक नूह बड़ा शुक्र गुज़ार बन्दा था

4

وَقَضَيْنَا إِلَى بَنِي إِسْرَائِيلَ فِي الْكِتَابِ لَتُفْسِدُنَّ فِي الْأَرْضِ مَرَّتَيْنِ وَلَتَعْلُنَّ عُلُوًّا كَبِيرًا

और हमने बनी इसराईल से इसी किताब (तौरैत) में साफ साफ बयान कर दिया था

कि तुम लोग रुए ज़मीन पर दो मरतबा ज़रुर फसाद फैलाओगे और बड़ी सरकशी करोगे

5

فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ أُولَاهُمَا بَعَثْنَا عَلَيْكُمْ عِبَادًا لَنَا أُولِي بَأْسٍ شَدِيدٍفَجَاسُوا خِلَالَ الدِّيَارِ ۚ

फिर जब उन दो फसादों में पहले का वक्त आ पहुँचा तो हमने तुम पर कुछ अपने बन्दों (नजतुलनस्र) और उसकी फौज को मुसल्लत (ग़ालिब) कर दिया जो बड़े सख्त लड़ने वाले थे

तो वह लोग तुम्हारे घरों के अन्दर घुसे (और खूब क़त्ल व ग़ारत किया)

وَكَانَ وَعْدًا مَفْعُولًا

और ख़ुदा के अज़ाब का वायदा जो पूरा होकर रहा

6

ثُمَّ رَدَدْنَا لَكُمُ الْكَرَّةَ عَلَيْهِمْ وَأَمْدَدْنَاكُمْ بِأَمْوَالٍ وَبَنِينَ وَجَعَلْنَاكُمْ أَكْثَرَ نَفِيرًا

फिर हमने तुमको दोबारा उन पर ग़लबा देकर तुम्हारे दिन फेरे

और माल से और बेटों से तुम्हारी मदद की और तुमको बड़े जत्थे वाला बना दिया

7

إِنْ أَحْسَنْتُمْ أَحْسَنْتُمْ لِأَنْفُسِكُمْ ۖ وَإِنْ أَسَأْتُمْ فَلَهَا ۚ

अगर तुम अच्छे काम करोगे तो अपने फायदे के लिए अच्छे काम करोगे

और अगर तुम बुरे काम करोगे तो (भी) अपने ही लिए

فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ الْآخِرَةِ لِيَسُوءُوا وُجُوهَكُمْ وَلِيَدْخُلُوا الْمَسْجِدَ كَمَا دَخَلُوهُ أَوَّلَ مَرَّةٍ وَلِيُتَبِّرُوا مَا عَلَوْا تَتْبِيرًا

फिर जब दूसरे वक्त क़ा वायदा आ पहुँचा तो (हमने तैतूस रोगी को तुम पर मुसल्लत किया) ताकि वह लोग (मारते मारते) तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें (कि पहचाने न जाओ)

और जिस तरह पहली दफा मस्जिद बैतुल मुक़द्दस में घुस गये थे उसी तरह फिर घुस पड़ें

और जिस चीज़ पर क़ाबू पाए खूब अच्छी तरह बरबाद कर दी

8

عَسَى رَبُّكُمْ أَنْ يَرْحَمَكُمْ ۚ

(अब भी अगर तुम चैन से रहो तो)

उम्मीद है कि तुम्हारा परवरदिगार तुम पर तरस खाए

وَإِنْ عُدْتُمْ عُدْنَا ۘ وَجَعَلْنَا جَهَنَّمَ لِلْكَافِرِينَ حَصِيرًا

और अगर (कहीं) वही शरारत करोगे तो हम भी फिर पकड़ेंगे

और हमने तो काफिरों के लिए जहन्नुम को क़ैद खाना बना ही रखा है

9

إِنَّ هَذَا الْقُرْآنَ يَهْدِي لِلَّتِي هِيَ أَقْوَمُ وَيُبَشِّرُ الْمُؤْمِنِينَ الَّذِينَ يَعْمَلُونَ الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا كَبِيرًا

इसमें शक़ नहीं कि ये क़ुरान उस राह की हिदायत करता है जो सबसे ज्यादा सीधी है

और जो ईमानदार अच्छे अच्छे काम करते हैं उनको ये खुशख़बरी देता है कि उनके लिए बहुत बड़ा अज्र और सवाब (मौजूद) है

10

وَأَنَّ الَّذِينَ لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ أَعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَابًا أَلِيمًا

और ये भी कि बेशक जो लोग आख़िरत पर ईमान नहीं रखते हैं उनके लिए हमने दर्दनाक अज़ाब तैयार कर रखा है

11

وَيَدْعُ الْإِنْسَانُ بِالشَّرِّ دُعَاءَهُ بِالْخَيْرِ ۖ وَكَانَ الْإِنْسَانُ عَجُولًا

और आदमी कभी (आजिज़ होकर अपने हक़ में) बुराई (अज़ाब वग़ैरह की दुआ) इस तरह माँगता है जिस तरह अपने लिए भलाई की दुआ करता है

और आदमी तो बड़ा जल्दबाज़ है

12

وَجَعَلْنَا اللَّيْلَ وَالنَّهَارَ آيَتَيْنِ ۖ

और हमने रात और दिन को (अपनी क़ुदरत की) दो निशानियाँ क़रार दिया

فَمَحَوْنَا آيَةَ اللَّيْلِ وَجَعَلْنَا آيَةَ النَّهَارِ مُبْصِرَةً لِتَبْتَغُوا فَضْلًا مِنْ رَبِّكُمْ

फिर हमने रात की निशानी (चाँद) को धुँधला बनाया

और दिन की निशानी (सूरज) को रौशन बनाया (कि सब चीज़े दिखाई दें) ताकि तुम लोग अपने परवरदिगार का फज़ल ढूँढते फिरों

وَلِتَعْلَمُوا عَدَدَ السِّنِينَ وَالْحِسَابَ ۚ

और ताकि तुम बरसों की गिनती और हिसाब को जानो (बूझों)

وَكُلَّ شَيْءٍ فَصَّلْنَاهُ تَفْصِيلًا

और हमने हर चीज़ को खूब अच्छी तरह तफसील से बयान कर दिया है

13

وَكُلَّ إِنْسَانٍ أَلْزَمْنَاهُ طَائِرَهُ فِي عُنُقِهِ ۖ

और हमने हर आदमी के नामए अमल को उसके गले का हार बना दिया है

(कि उसकी किस्मत उसके साथ रहे)

وَنُخْرِجُ لَهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ كِتَابًا يَلْقَاهُ مَنْشُورًا

और क़यामत के दिन हम उसे उसके सामने निकल के रख देगें कि वह उसको एक खुली हुई किताब अपने रुबरु पाएगा

14

اقْرَأْ كِتَابَكَ كَفَى بِنَفْسِكَ الْيَوْمَ عَلَيْكَ حَسِيبًا

और हम उससे कहेंगें कि अपना नामए अमल पढ़ले और आज अपने हिसाब के लिए तू आप ही काफी हैं

15

مَنِ اهْتَدَى فَإِنَّمَا يَهْتَدِي لِنَفْسِهِ ۖ وَمَنْ ضَلَّ فَإِنَّمَا يَضِلُّ عَلَيْهَا ۚ

जो शख़्श रुबरु होता है तो बस अपने फायदे के लिए यह पर आता है

और जो शख़्श गुमराह होता है तो उसने भटक कर अपना आप बिगाड़ा

وَلَا تَزِرُ وَازِرَةٌ وِزْرَ أُخْرَى ۗ وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّى نَبْعَثَ رَسُولًا

और कोई शख़्श किसी दूसरे (के गुनाह) का बोझ अपने सर नहीं लेगा

और हम तो जब तक रसूल को भेजकर तमाम हुज्जत न कर लें किसी पर अज़ाब नहीं किया करते

16

وَإِذَا أَرَدْنَا أَنْ نُهْلِكَ قَرْيَةً أَمَرْنَا مُتْرَفِيهَا فَفَسَقُوا فِيهَا

और हमको जब किसी बस्ती का वीरान करना मंज़ूर होता है तो हम वहाँ के खुशहालों को (इताअत का) हुक्म देते हैं तो वह लोग उसमें नाफरमानियाँ करने लगे

فَحَقَّ عَلَيْهَا الْقَوْلُ فَدَمَّرْنَاهَا تَدْمِيرًا

तब वह बस्ती अज़ाब की मुस्तहक़ होगी उस वक्त हमने उसे अच्छी तरह तबाह व बरबाद कर दिया

17

وَكَمْ أَهْلَكْنَا مِنَ الْقُرُونِ مِنْ بَعْدِ نُوحٍ ۗ وَكَفَى بِرَبِّكَ بِذُنُوبِ عِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا

और नूह के बाद से (उस वक्त तक) हमने कितनी उम्मतों को हलाक कर मारा

और (ऐ रसूल) तुम्हारा परवरदिगार अपने बन्दों के गुनाहों को जानने और देखने के लिए काफी है

(और गवाह याहिद की ज़रुरत नहीं)

18

مَنْ كَانَ يُرِيدُ الْعَاجِلَةَ عَجَّلْنَا لَهُ فِيهَا مَا نَشَاءُ لِمَنْ نُرِيدُ

और जो शख़्श दुनिया का ख्वाहाँ हो तो हम जिसे चाहते और जो चाहते हैं उसी दुनिया में सिरदस्त (फ़ौरन) उसे अता करते हैं

ثُمَّ جَعَلْنَا لَهُ جَهَنَّمَيَصْلَاهَا مَذْمُومًا مَدْحُورًا

(मगर) फिर हमने उसके लिए तो जहन्नुम ठहरा ही रखा है

कि वह उसमें बुरी हालत से रौंदा हुआ दाख़िल होगा

19

وَمَنْ أَرَادَ الْآخِرَةَ وَسَعَى لَهَا سَعْيَهَا وَهُوَ مُؤْمِنٌ فَأُولَئِكَ كَانَ سَعْيُهُمْ مَشْكُورًا

और जो शख़्श आख़िर का मुतमइनी हो और उसके लिए खूब जैसी चाहिए कोशिश भी की और वह ईमानदार भी है

तो यही वह लोग हैं जिनकी कोशिश मक़बूल होगी

20

كُلًّا نُمِدُّ هَؤُلَاءِ وَهَؤُلَاءِ مِنْ عَطَاءِ رَبِّكَ ۚ

(ऐ रसूल) उनको (ग़रज़ सबको) हम ही तुम्हारे परवरदिगार की (अपनी) बख़्शिस से मदद देते हैं

وَمَا كَانَ عَطَاءُ رَبِّكَ مَحْظُورًا

और तुम्हारे परवरदिगार की बख़्शिस तो (आम है) किसी पर बन्द नहीं

21

انْظُرْ كَيْفَ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ ۚ

(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो कि हमने बाज़ लोगों को बाज़ पर कैसी फज़ीलत दी है

 وَلَلْآخِرَةُ أَكْبَرُ دَرَجَاتٍ وَأَكْبَرُ تَفْضِيلًا

और आख़िरत के दर्जे तो यक़ीनन (यहाँ से) कहीं बढ़के है और वहाँ की फज़ीलत भी तो कैसी बढ़ कर है

22

لَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتَقْعُدَ مَذْمُومًا مَخْذُولًا

और देखो कहीं ख़ुदा के साथ दूसरे को (उसका) शरीक न बनाना वरना तुम बुरे हाल में ज़लील रुसवा बैठै के बैठें रह जाओगे

23

وَقَضَى رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا ۚ

और तुम्हारे परवरदिगार ने तो हुक्म ही दिया है कि उसके सिवा किसी दूसरे की इबादत न करना और माँ बाप से नेकी करना

إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِنْدَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُلْ لَهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُلْ لَهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا

अगर उनमें से एक या दोनों तेरे सामने बुढ़ापे को पहुँचे (और किसी बात पर खफा हों) तो (ख़बरदार उनके जवाब में उफ तक) न कहना

और न उनको झिड़कना और जो कुछ कहना सुनना हो तो बहुत अदब से कहा करो

24

وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُلْ رَبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا

और उनके सामने नियाज़ (रहमत) से ख़ाकसारी का पहलू झुकाए रखो और उनके हक़ में दुआ करो कि

मेरे पालने वाले जिस तरह इन दोनों ने मेरे छोटेपन में मेरी मेरी परवरिश की है इसी तरह तू भी इन पर रहम फरमा

25

 ‏رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَا فِي نُفُوسِكُمْ ۚ

तुम्हारे दिल की बात तुम्हारा परवरदिगार ख़ूब जानता है

إِنْ تَكُونُوا صَالِحِينَ فَإِنَّهُ كَانَ لِلْأَوَّابِينَ غَفُورًا

अगर तुम (वाक़ई) नेक होगे और भूले से उनकी ख़ता की है तो वह तुमको बख्श देगा क्योंकि वह तो तौबा करने वालों का बड़ा बख़शने वाला है

26

وَآتِ ذَا الْقُرْبَى حَقَّهُ وَالْمِسْكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا

और क़राबतदारों और मोहताज और परदेसी को उनका हक़ दे दो

और ख़बरदार फुज़ूल ख़र्ची मत किया करो

27

إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ ۖ وَكَانَ الشَّيْطَانُ لِرَبِّهِ كَفُورًا

क्योंकि फुज़ूलख़र्ची करने वाले यक़ीनन शैतानों के भाई है

और शैतान अपने परवरदिगार का बड़ा नाशुक्री करने वाला है

28

وَإِمَّا تُعْرِضَنَّ عَنْهُمُ ابْتِغَاءَ رَحْمَةٍ مِنْ رَبِّكَ تَرْجُوهَا فَقُلْ لَهُمْ قَوْلًا مَيْسُورًا  

और तुमको अपने परवरदिगार के फज़ल व करम के इन्तज़ार में जिसकी तुम को उम्मीद हो (मजबूरन) उन (ग़रीबों) से मुँह मोड़ना पड़े तो नरमी से उनको समझा दो

29

وَلَا تَجْعَلْ يَدَكَ مَغْلُولَةً إِلَى عُنُقِكَ وَلَا تَبْسُطْهَا كُلَّ الْبَسْطِ فَتَقْعُدَ مَلُومًا مَحْسُورًا

और अपने हाथ को न तो गर्दन से बँधा हुआ (बहुत तंग) कर लो (कि किसी को कुछ दो ही नहीं)

और न बिल्कुल खोल दो कि सब कुछ दे डालो और आख़िर तुम को मलामत ज़दा हसरत से बैठना पड़े

30

إِنَّ رَبَّكَ يَبْسُطُ الرِّزْقَ لِمَنْ يَشَاءُ وَيَقْدِرُ ۚ

इसमें शक़ नहीं कि तुम्हारा परवरदिगार जिसके लिए चाहता है रोज़ी को फराख़ (बढ़ा) देता है और जिसकी रोज़ी चाहता है तंग रखता है

إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا

इसमें शक़ नहीं कि वह अपने बन्दों से बहुत बाख़बर और देखभाल रखने वाला है

31

وَلَا تَقْتُلُوا أَوْلَادَكُمْ خَشْيَةَ إِمْلَاقٍ ۖ نَحْنُ نَرْزُقُهُمْ وَإِيَّاكُمْ ۚ

और (लोगों) मुफलिसी (ग़रीबी) के ख़ौफ से अपनी औलाद को क़त्ल न करो

(क्योंकि) उनको और तुम को (सबको) तो हम ही रोज़ी देते हैं

إِنَّ قَتْلَهُمْ كَانَ خِطْئًا كَبِيرًا

बेशक औलाद का क़त्ल करना बहुत सख्त गुनाह है

32

وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنَا ۖ إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاءَ سَبِيلًا

और (देखो) ज़िना के पास भी न फटकना क्योंकि बेशक वह बड़ी बेहयाई का काम है और बहुत बुरा चलन है

33

وَلَا تَقْتُلُوا النَّفْسَ الَّتِي حَرَّمَ اللَّهُ إِلَّا بِالْحَقِّ ۗ

और जिस जान का मारना ख़ुदा ने हराम कर दिया है उसके क़त्ल न करना मगर जायज़ तौर पर

وَمَنْ قُتِلَ مَظْلُومًا فَقَدْ جَعَلْنَا لِوَلِيِّهِ سُلْطَانًا

और जो शख़्श नाहक़ मारा जाए तो हमने उसके वारिस को (क़ातिल पर क़सास का) क़ाबू दिया है

فَلَا يُسْرِفْ فِي الْقَتْلِ ۖ إِنَّهُ كَانَ مَنْصُورًا

तो उसे चाहिए कि क़त्ल (ख़ून का बदला लेने) में ज्यादती न करे बेशक वह मदद दिया जाएगा

(कि क़त्ल ही करे और माफ न करे)

34

وَلَا تَقْرَبُوا مَالَ الْيَتِيمِ إِلَّا بِالَّتِي هِيَ أَحْسَنُ حَتَّى يَبْلُغَ أَشُدَّهُ ۚ

और यतीम जब तक जवानी को पहुँचे उसके माल के क़रीब भी न पहुँच जाना मगर हाँ इस तरह पर कि (यतीम के हक़ में) बेहतर हो

  وَأَوْفُوا بِالْعَهْدِ ۖ إِنَّ الْعَهْدَ كَانَ مَسْئُولًا

और एहद को पूरा करो

क्योंकि (क़यामत में) एहद की ज़रुर पूछ गछ होगी

35

وَأَوْفُوا الْكَيْلَ إِذَا كِلْتُمْ وَزِنُوا بِالْقِسْطَاسِ الْمُسْتَقِيمِ ۚ

और जब नाप तौल कर देना हो तो पैमाने को पूरा भर दिया करो

और (जब तौल कर देना हो तो) बिल्कुल ठीक तराजू से तौला करो

ذَلِكَ خَيْرٌ وَأَحْسَنُ تَأْوِيلًا

(मामले में) यही (तरीक़ा) बेहतर है और अन्जाम (भी उसका) अच्छा है

36

وَلَا تَقْفُ مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ ۚ

और जिस चीज़ का कि तुम्हें यक़ीन न हो (ख्वाह मा ख्वाह) उसके पीछे न पड़ा करो

إِنَّ السَّمْعَ وَالْبَصَرَ وَالْفُؤَادَ كُلُّ أُولَئِكَ كَانَ عَنْهُ مَسْئُولًا

(क्योंकि) कान और ऑंख और दिल इन सबकी (क़यामत के दिना) यक़ीनन बाज़पुर्स होती है

37

وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا ۖإِنَّكَ لَنْ تَخْرِقَ الْأَرْضَ وَلَنْ تَبْلُغَ الْجِبَالَ طُولًا

और (देखो) ज़मीन पर अकड़ कर न चला करो

क्योंकि तू (अपने इस धमाके की चाल से) न तो ज़मीन को हरगिज़ फाड़ डालेगा और न (तनकर चलने से) हरगिज़ लम्बाई में पहाड़ों के बराबर पहुँच सकेगा

38

كُلُّ ذَلِكَ كَانَ سَيِّئُهُ عِنْدَ رَبِّكَ مَكْرُوهًا

(ऐ रसूल) इन सब बातों में से जो बुरी बात है वह तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक नापसन्द है

39

ذَلِكَ مِمَّا أَوْحَى إِلَيْكَ رَبُّكَ مِنَ الْحِكْمَةِ ۗ وَلَا تَجْعَلْ مَعَ اللَّهِ إِلَهًا آخَرَ فَتُلْقَى فِي جَهَنَّمَ مَلُومًا مَدْحُورًا

ये बात तो हिकमत की उन बातों में से जो तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हारे पास 'वही' भेजी

और ख़ुदा के साथ कोई दूसरा माबूद न बनाना

और न तू मलामत ज़दा राइन्द (धुत्कारा) होकर जहन्नुम में झोंक दिया जाएगा

40

أَفَأَصْفَاكُمْ رَبُّكُمْ بِالْبَنِينَ وَاتَّخَذَ مِنَ الْمَلَائِكَةِ إِنَاثًا ۚ

(ऐ मुशरेकीन मक्का) क्या तुम्हारे परवरदिगार ने तुम्हें चुन चुन कर बेटे दिए हैं और खुद बेटियाँ ली हैं (यानि) फरिश्ते

إِنَّكُمْ لَتَقُولُونَ قَوْلًا عَظِيمًا

इसमें शक़ नहीं कि बड़ी (सख्त) बात कहते हो

41

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا فِي هَذَا الْقُرْآنِ لِيَذَّكَّرُوا وَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا نُفُورًا

और हमने तो इसी क़ुरान में तरह तरह से बयान कर दिया ताकि लोग किसी तरह समझें

मगर उससे तो उनकी नफरत ही बढ़ती गई

42

قُلْ لَوْ كَانَ مَعَهُ آلِهَةٌ كَمَا يَقُولُونَ إِذًا لَابْتَغَوْا إِلَى ذِي الْعَرْشِ سَبِيلًا

(ऐ रसूल उनसे) तुम कह दो कि अगर ख़ुदा के साथ जैसा ये लोग कहते हैं और माबूद भी होते तो अब तक उन माबूदों ने अर्श तक (पहुँचाने) की कोई न कोई राह निकाल ली होती

43

‏سُبْحَانَهُ وَتَعَالَى عَمَّا يَقُولُونَ عُلُوًّا كَبِيرًا

जो बेहूदा बातें ये लोग (ख़ुदा की निस्बत) कहा करते हैं वह उनसे बहुत बढ़के पाक व पाकीज़ा और बरतर है

44

تُسَبِّحُ لَهُ السَّمَاوَاتُ السَّبْعُ وَالْأَرْضُ وَمَنْ فِيهِنَّ ۚ

सातों आसमान और ज़मीन और जो लोग इनमें (सब) उसकी तस्बीह करते हैं

وَإِنْ مِنْ شَيْءٍ إِلَّا يُسَبِّحُ بِحَمْدِهِ  وَلَكِنْ لَا تَفْقَهُونَ تَسْبِيحَهُمْ ۗ إِنَّهُ كَانَ حَلِيمًا غَفُورًا

और (सारे जहाँन) में कोई चीज़ ऐसी नहीं जो उसकी (हम्द व सना) की तस्बीह न करती हो

मगर तुम लोग उनकी तस्बीह नहीं समझते

इसमें शक़ नहीं कि वह बड़ा बुर्दबार बख्शने वाला है

45

وَ إِذَا  قَرَأْتَ الْقُرْآنَ جَعَلْنَا بَيْنَكَ وَبَيْنَ الَّذِينَ  لَا يُؤْمِنُونَ بِالْآخِرَةِ حِجَابًا مَسْتُورًا

और जब तुम क़ुरान पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के दरमियान जो आख़िरत का यक़ीन नहीं रखते एक गहरा पर्दा डाल देते हैं

46

‏وَجَعَلْنَا عَلَى قُلُوبِهِمْ أَكِنَّةً أَنْ يَفْقَهُوهُ وَفِي آذَانِهِمْ وَقْرًا ۚ

और उनके दिलों पर पर्दा डाल देते हैं कि उसे समझ न सकें

और (गोया) हम उनके कानों में गरानी पैदा कर देते हैं कि न सुन सकें

وَإِذَا ذَكَرْتَ رَبَّكَ فِي الْقُرْآنِ وَحْدَهُ وَلَّوْا عَلَى أَدْبَارِهِمْ نُفُورًا

जब तुम क़ुरान में अपने परवरदिगार का तन्हा ज़िक्र करते हो तो कुफ्फार उलटे पैर नफरत करके (तुम्हारे पास से) भाग खड़े होते हैं

47

نَحْنُ أَعْلَمُ بِمَا يَسْتَمِعُونَ بِهِ إِذْ يَسْتَمِعُونَ إِلَيْكَ

जब ये लोग तुम्हारी तरफ कान लगाते हैं तो जो कुछ ये ग़ौर से सुनते हैं हम तो खूब जानते हैं

وَإِذْ هُمْ نَجْوَى إِذْ يَقُولُ الظَّالِمُونَ إِنْ تَتَّبِعُونَ إِلَّا رَجُلًا مَسْحُورًا

और जब ये लोग बाहम कान में बात करते हैं तो उस वक्त ये ज़ालिम (ईमानदारों से) कहते हैं कि तुम तो बस एक (दीवाने) आदमी के पीछे पड़े हो जिस पर किसी ने जादू कर दिया है

48

انْظُرْ كَيْفَ ضَرَبُوا لَكَ الْأَمْثَالَ فَضَلُّوا فَلَا يَسْتَطِيعُونَ سَبِيلًا

(ऐ रसूल) ज़रा देखो तो ये कम्बख्त तुम्हारी निस्बत कैसी कैसी फब्तियाँ कहते हैं

तो (इसी वजह से) ऐसे गुमराह हुए कि अब (हक़ की) राह किसी तरह पा ही नहीं सकते  

49

وَقَالُوا أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا

और ये लोग कहते हैं कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल कर) हड्डियाँ रह जाएँगें और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगें तो क्या नये सिरे से पैदा करके उठा खड़े किए जाएँगें

50

قُلْ كُونُوا حِجَارَةً أَوْ حَدِيدًا

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि तुम (मरने के बाद) चाहे पत्थर बन जाओ या लोहा

51

أَوْ خَلْقًا مِمَّا يَكْبُرُ فِي صُدُورِكُمْ ۚ

या कोई और चीज़ जो तुम्हारे ख्याल में बड़ी (सख्त) हो

(और उसका ज़िन्दा होना दुश्वार हो वह भी ज़रुर ज़िन्दा हो गई)

فَسَيَقُولُونَ مَنْ يُعِيدُنَا ۖ

तो ये लोग अनक़रीब ही तुम से पूछेगें भला हमें दोबारा कौन ज़िन्दा करेगा

قُلِ الَّذِي فَطَرَكُمْ أَوَّلَ مَرَّةٍ ۚ

तुम कह दो कि वही (ख़ुदा) जिसने तुमको पहली मरतबा पैदा किया (जब तुम कुछ न थे)

 فَسَيُنْغِضُونَ إِلَيْكَ رُءُوسَهُمْ وَيَقُولُونَ مَتَى هُوَ ۖ

इस पर ये लोग तुम्हारे सामने अपने सर मटकाएँगें और कहेगें (अच्छा अगर होगा) तो आख़िर कब

 قُلْ عَسَى أَنْ يَكُونَ قَرِيبًا

तुम कह दो कि बहुत जल्द अनक़रीब ही होगा

52

يَوْمَ يَدْعُوكُمْ فَتَسْتَجِيبُونَ بِحَمْدِهِ  وَتَظُنُّونَ إِنْ لَبِثْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا

जिस दिन ख़ुदा तुम्हें (इसराफील के ज़रिए से) बुंलाएगा तो उसकी हम्दो सना करते हुए उसकी तामील करोगे (और क़ब्रों से निकलोगे)

और तुम ख्याल करोगे कि (मरने के बाद क़ब्रों में) बहुत ही कम ठहरे

53

وَقُلْ لِعِبَادِي يَقُولُوا الَّتِي هِيَ أَحْسَنُ ۚ

और (ऐ रसूल) मेरे (सच्चे) बन्दों (मोमिनों) से कह दो कि वह (काफिरों से) बात करें तो अच्छे तरीक़े से (सख्त कलामी न करें)

إِنَّ الشَّيْطَانَ يَنْزَغُ بَيْنَهُمْ ۚ

क्योंकि शैतान तो (ऐसी ही) बातों से फसाद डलवाता है

إِنَّ الشَّيْطَانَ كَانَ لِلْإِنْسَانِ عَدُوًّا مُبِينًا

इसमें तो शक़ ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है

54

رَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِكُمْ ۖ إِنْ يَشَأْ يَرْحَمْكُمْ أَوْ إِنْ يَشَأْ يُعَذِّبْكُمْ ۚ

तुम्हारा परवरदिगार तुम्हारे हाल से खूब वाक़िफ है

अगर चाहेगा तुम पर रहम करेगा और अगर चाहेगा तुम पर अज़ाब करेगा

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ عَلَيْهِمْ وَكِيلًا

और (ऐ रसूल) हमने तुमको कुछ उन लोगों का ज़िम्मेदार बनाकर नहीं भेजा है

55

وَرَبُّكَ أَعْلَمُ بِمَنْ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ

और जो लोग आसमानों में है और ज़मीन पर हैं (सब को) तुम्हारा परवरदिगार खूब जानता है

وَلَقَدْ فَضَّلْنَا بَعْضَ النَّبِيِّينَ عَلَى بَعْضٍ ۖ وَآتَيْنَا دَاوُودَ زَبُورًا

और हम ने यक़ीनन बाज़ पैग़म्बरों को बाज़ पर फज़ीलत दी

और हम ही ने दाऊद को जूबूर अता की

56

قُلِ ادْعُوا الَّذِينَ زَعَمْتُمْ مِنْ دُونِهِ فَلَا يَمْلِكُونَ كَشْفَ الضُّرِّ عَنْكُمْ وَلَا تَحْوِيلًا

(ऐ रसूल) तुम उनसे कह दों कि ख़ुदा के सिवा और जिन लोगों को माबूद समझते हो उनको (वक्त पडे) पुकार के तो देखो

कि वह न तो तुम से तुम्हारी तकलीफ ही दफा कर सकते हैं और न उसको बदल सकते हैं  

57

أُولَئِكَ الَّذِينَ يَدْعُونَ يَبْتَغُونَ إِلَى رَبِّهِمُ الْوَسِيلَةَ أَيُّهُمْ أَقْرَبُ وَيَرْجُونَ رَحْمَتَهُ وَيَخَافُونَ عَذَابَهُ ۚ

ये लोग जिनको मुशरेकीन (अपना ख़ुदा समझकर) इबादत करते हैं वह खुद अपने परवरदिगार की क़ुरबत के ज़रिए ढूँढते फिरते हैं कि (देखो) इनमें से कौन ज्यादा कुरबत रखता है

और उसकी रहमत की उम्मीद रखते और उसके अज़ाब से डरते हैं

 إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ كَانَ مَحْذُورًا

इसमें शक़ नहीं कि तेरे परवरदिगार का अज़ाब डरने की चीज़ है

58

وَإِنْ مِنْ قَرْيَةٍ إِلَّا نَحْنُ مُهْلِكُوهَا قَبْلَ يَوْمِ الْقِيَامَةِ أَوْ مُعَذِّبُوهَا عَذَابًا شَدِيدًا ۚ

और कोई बस्ती नहीं है मगर रोज़ क़यामत से पहले हम उसे तबाह व बरबाद कर छोड़ेगें

या (नाफरमानी) की सज़ा में उस पर सख्त से सख्त अज़ाब करेगें

كَانَ ذَلِكَ فِي الْكِتَابِ مَسْطُورًا

(और) ये बात किताब (लौहे महफूज़) में लिखी जा चुकी है

59

وَمَا مَنَعَنَا أَنْ نُرْسِلَ بِالْآيَاتِ إِلَّا أَنْ كَذَّبَ بِهَا الْأَوَّلُونَ ۚ

और हमें मौजिज़ात भेजने से किसी चीज़ ने नहीं रोका मगर इसके सिवा कि अगलों ने उन्हें झुठला दिया

وَآتَيْنَا ثَمُودَ النَّاقَةَ مُبْصِرَةً فَظَلَمُوا بِهَا ۚ

और हमने क़ौमे समूद को (मौजिज़े से) ऊँटनी अता की जो (हमारी कुदरत की) दिखाने वाली थी तो उन लोगों ने उस पर ज़ुल्म किया यहाँ तक कि मार डाला

وَمَا نُرْسِلُ بِالْآيَاتِ إِلَّا تَخْوِيفًا

और हम तो मौजिज़े सिर्फ डराने की ग़रज़ से भेजा करते हैं

60

وَإِذْ قُلْنَا لَكَ إِنَّ رَبَّكَ أَحَاطَ بِالنَّاسِ ۚ

और (ऐ रसूल) वह वक्त याद करो जब तुमसे हमने कह दिया था कि तुम्हारे परवरदिगार ने लोगों को (हर तरफ से) रोक रखा है कि (तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते)

وَمَا جَعَلْنَا الرُّؤْيَا الَّتِي أَرَيْنَاكَ إِلَّا فِتْنَةً لِلنَّاسِ وَالشَّجَرَةَ الْمَلْعُونَةَ فِي الْقُرْآنِ ۚ

और हमने जो ख्वाब तुमाको दिखलाया था तो बस उसे लोगों (के ईमान) की आज़माइश का ज़रिया ठहराया था

और (इसी तरह) वह दरख्त जिस पर क़ुरान में लानत की गई है

وَنُخَوِّفُهُمْ فَمَا يَزِيدُهُمْ إِلَّا طُغْيَانًا كَبِيرًا

और हम बावजूद कि उन लोगों को (तरह तरह) से डराते हैं मगर हमारा डराना उनकी सख्त सरकशी को बढ़ाता ही गया

61

وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ

और जब हम ने फरिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सबने सजदा किया मगर इबलीस

قَالَ أَأَسْجُدُ لِمَنْ خَلَقْتَ طِينًا

वह (गुरुर से) कहने लगा कि क्या मै ऐसे शख़्श को सजदा करुँ जिसे तूने मिट्टी से पैदा किया है

62

قَالَ أَرَأَيْتَكَ هَذَا الَّذِي كَرَّمْتَ عَلَيَّ لَئِنْ أَخَّرْتَنِ إِلَى يَوْمِ الْقِيَامَةِ لَأَحْتَنِكَنَّ ذُرِّيَّتَهُ إِلَّا قَلِيلًا

और (शेख़ी से) बोला भला देखो तो सही यही वह शख़्श है जिसको तूने मुझ पर फज़ीलत दी है

अगर तू मुझ को क़यामत तक की मोहलत दे तो मैं (दावे से कहता हूँ कि) कम लोगों के सिवा इसकी नस्ल की जड़ काटता रहूँगा

63

قَالَ اذْهَبْ فَمَنْ تَبِعَكَ مِنْهُمْ فَإِنَّ جَهَنَّمَ جَزَاؤُكُمْ جَزَاءً مَوْفُورًا

ख़ुदा ने फरमाया चल (दूर हो) उनमें से जो शख़्श तेरी पैरवी करेगा तो (याद रहे कि) तुम सबकी सज़ा जहन्नुम है

और वह भी पूरी पूरी सज़ा है

64

وَاسْتَفْزِزْ مَنِ اسْتَطَعْتَ مِنْهُمْ بِصَوْتِكَ

और इसमें से जिस पर अपनी (चिकनी चुपड़ी) बात से क़ाबू पा सके

وَأَجْلِبْ عَلَيْهِمْ بِخَيْلِكَ وَرَجِلِكَ  وَشَارِكْهُمْ فِي الْأَمْوَالِ وَالْأَوْلَادِ وَعِدْهُمْ ۚ

वहॉ और अपने (चेलों के लश्कर) सवार और पैदल (सब) से चढ़ाई कर

और माल और औलाद में उनके साथ साझा करे और उनसे (खूब झूठे) वायदे कर

وَمَا يَعِدُهُمُ الشَّيْطَانُ إِلَّا غُرُورًا

और शैतान तो उनसे जो वायदे करता है धोखे के सिवा कुछ नहीं होता

65

إِنَّ عِبَادِي لَيْسَ لَكَ عَلَيْهِمْ سُلْطَانٌ ۚ وَكَفَى بِرَبِّكَ وَكِيلًا

बेशक जो मेरे (ख़ास) बन्दें हैं उन पर तेरा ज़ोर नहीं चल (सकता)

और कारसाज़ी में तेरा परवरदिगार काफी है

66

رَبُّكُمُ الَّذِي يُزْجِي لَكُمُ الْفُلْكَ فِي الْبَحْرِ لِتَبْتَغُوا مِنْ فَضْلِهِ ۚ

(लोगों) तुम्हारा परवरदिगार वह (क़ादिरे मुत्तलिक़) है जो तुम्हारे लिए समन्दर में जहाज़ों को चलाता है ताकि तुम उसके फज़ल व करम (रोज़ी) की तलाश करो

 إِنَّهُ كَانَ بِكُمْ رَحِيمًا

इसमें शक़ नहीं कि वह तुम पर बड़ा मेहरबान है

67

وَإِذَا مَسَّكُمُ الضُّرُّ فِي الْبَحْرِ ضَلَّ مَنْ تَدْعُونَ إِلَّا إِيَّاهُ ۖ

और जब समन्दर में कभी तुम को कोई तकलीफ पहुँचे तो जिनकी तुम इबादत किया करते थे ग़ायब हो गए मगर बस वही (एक ख़ुदा याद रहता है)

فَلَمَّا نَجَّاكُمْ إِلَى الْبَرِّ أَعْرَضْتُمْ ۚ

उस पर भी जब ख़ुदा ने तुम को छुटकारा देकर खुशकी तक पहुँचा दिया तो फिर तुम इससे मुँह मोड़ बैठें

وَكَانَ الْإِنْسَانُ كَفُورًا

और इन्सान बड़ा ही नाशुक्रा है

68

أَفَأَمِنْتُمْ أَنْ يَخْسِفَ بِكُمْ جَانِبَ الْبَرِّ أَوْ يُرْسِلَ عَلَيْكُمْ حَاصِبًا ثُمَّ لَا تَجِدُوا لَكُمْ وَكِيلًا

तो क्या तुम उसको इस का भी इत्मिनान हो गया कि वह तुम्हें खुश्की की तरफ (ले जाकर क़ारुन की तरह) ज़मीन में धंसा दे

या तुम पर (क़ौम लूत की तरह) पत्थरों का मेंह बरसा दे

फिर (उस वक्त) तुम किसी को अपना कारसाज़ न पाओगे

69

أَمْ أَمِنْتُمْ أَنْ يُعِيدَكُمْ فِيهِ تَارَةً أُخْرَى

या तुमको इसका भी इत्मेनान हो गया कि फिर तुमको दोबारा इसी समन्दर में ले जाएगा

 فَيُرْسِلَ عَلَيْكُمْ قَاصِفًا مِنَ الرِّيحِ فَيُغْرِقَكُمْ بِمَا كَفَرْتُمْ ۙ ثُمَّ لَا تَجِدُوا لَكُمْ عَلَيْنَا بِهِ تَبِيعًا

उसके बाद हवा का एक ऐसा झोका जो (जहाज़ के) परख़चे उड़ा दे तुम पर भेजे फिर तुम्हें तुम्हारे कुफ्र की सज़ा में डुबा मारे

फिर तुम किसी को (ऐसा हिमायती) न पाओगे जो हमारा पीछा करे और (तुम्हें छोड़ा जाए)

70

وَلَقَدْ كَرَّمْنَا بَنِي آدَمَ وَحَمَلْنَاهُمْ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْرِ وَرَزَقْنَاهُمْ مِنَ الطَّيِّبَاتِ

और हमने यक़ीनन आदम की औलाद को इज्ज़त दी और खुश्की और तरी में उनको (जानवरों कश्तियों के ज़रिए) लिए लिए फिरे और उन्हें अच्छी अच्छी चीज़ें खाने को दी

وَفَضَّلْنَاهُمْ عَلَى كَثِيرٍ مِمَّنْ خَلَقْنَا تَفْضِيلًا

और अपने बहुतेरे मख़लूक़ात पर उनको अच्छी ख़ासी फज़ीलत दी

71

يَوْمَ نَدْعُو كُلَّ أُنَاسٍ بِإِمَامِهِمْ ۖ

उस दिन (को याद करो) जब हम तमाम लोगों को उन पेशवाओं के साथ बुलाएँगें

 فَمَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَأُولَئِكَ يَقْرَءُونَ كِتَابَهُمْوَلَا يُظْلَمُونَ فَتِيلًا

तो जिसका नामए अमल उनके दाहिने हाथ में दिया जाएगा तो वह लोग (खुश खुश) अपना नामए अमल पढ़ने लगेगें

और उन पर रेशा बराबर ज़ुल्म नहीं किया जाएगा

72

وَمَنْ كَانَ فِي هَذِهِ أَعْمَى فَهُوَ فِي الْآخِرَةِ أَعْمَى وَأَضَلُّ سَبِيلًا

और जो शख़्श इस (दुनिया) में (जान बूझकर) अंधा बना रहा तो वह आख़िरत में भी अंधा ही रहेगा

और (नजात) के रास्ते से बहुत दूर भटका सा हुआ

73

وَإِنْ كَادُوا لَيَفْتِنُونَكَ عَنِ الَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ لِتَفْتَرِيَ عَلَيْنَا غَيْرَهُ ۖ

और (ऐ रसूल) हमने तो (क़ुरान) तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए भेजा अगर चे लोग तो तुम्हें इससे बहकाने ही लगे थे ताकि तुम क़ुरान के अलावा फिर (दूसरी बातों का) इफ़तेरा बाँधों और जब तुम ये कर गुज़रते

وَإِذًا لَاتَّخَذُوكَ خَلِيلًا

उस वक्त ये लोग तुम को अपना सच्चा दोस्त बना लेते

74

وَلَوْلَا أَنْ ثَبَّتْنَاكَ لَقَدْ كِدْتَ تَرْكَنُ إِلَيْهِمْ شَيْئًا قَلِيلًا

और अगर हम तुमको साबित क़दम न रखते तो ज़रुर तुम भी ज़रा (ज़हूर) झुकने ही लगते

75

إِذًا لَأَذَقْنَاكَ ضِعْفَ الْحَيَاةِ وَضِعْفَ الْمَمَاتِ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ عَلَيْنَا نَصِيرًا

और (अगर तुम ऐसा करते तो) उस वक्त हम तुमको ज़िन्दगी में भी और मरने पर भी दोहरे (अज़ाब) का मज़ा चखा देते

और फिर तुम को हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार भी न मिलता

76

وَإِنْ كَادُوا لَيَسْتَفِزُّونَكَ مِنَ الْأَرْضِ لِيُخْرِجُوكَ مِنْهَا ۖوَإِذًا لَا يَلْبَثُونَ خِلَافَكَ إِلَّا قَلِيلًا

और ये लोग तो तुम्हें (सर ज़मीन मक्के) से दिल बर्दाश्त करने ही लगे थे ताकि तुम को वहाँ से (शाम की तरफ) निकाल बाहर करें

और ऐसा होता तो तुम्हारे पीछे में ये लोग चन्द रोज़ के सिवा ठहरने भी न पाते

77

سُنَّةَ مَنْ قَدْ أَرْسَلْنَا قَبْلَكَ مِنْ رُسُلِنَا ۖوَلَا تَجِدُ لِسُنَّتِنَا تَحْوِيلًا

तुमसे पहले जितने रसूल हमने भेजे हैं उनका बराबर यही दस्तूर रहा है

और जो दस्तूर हमारे (ठहराए हुए) हैं उनमें तुम तग्य्युर तबद्दुल (रद्दो बदल) न पाओगे

78

أَقِمِ الصَّلَاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَى غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ ۖ

(ऐ रसूल) सूरज के ढलने से रात के अंधेरे तक नमाज़े ज़ोहर, अस्र, मग़रिब, इशा पढ़ा करो और नमाज़ सुबह (भी)

إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا

क्योंकि सुबह की नमाज़ पर (दिन और रात दोनों के फरिश्तों की) गवाही होती है

79

وَمِنَ اللَّيْلِ فَتَهَجَّدْ بِهِ نَافِلَةً لَكَ عَسَى أَنْ يَبْعَثَكَ رَبُّكَ مَقَامًا مَحْمُودًا

और रात के ख़ास हिस्से में नमाजे तहज्जुद पढ़ा करो ये सुन्नत तुम्हारी खास फज़ीलत हैं

क़रीब है कि क़यामत के दिन ख़ुदा तुमको मक़ामे महमूद तक पहुँचा दे

80

وَقُلْ رَبِّ أَدْخِلْنِي مُدْخَلَ صِدْقٍ وَأَخْرِجْنِي مُخْرَجَ صِدْقٍوَاجْعَلْ لِي مِنْ لَدُنْكَ سُلْطَانًا نَصِيرًا

और ये दुआ माँगा करो कि ऐ मेरे परवरदिगार मुझे (जहाँ) पहुँचा अच्छी तरह पहुँचा और मुझे (जहाँ से निकाल) तो अच्छी तरह निकाल

और मुझे ख़ास अपनी बारगाह से एक हुकूमत अता फरमा जिस से (हर क़िस्म की) मदद पहुँचे

81

وَقُلْ جَاءَ الْحَقُّ وَزَهَقَ الْبَاطِلُ ۚإِنَّ الْبَاطِلَ كَانَ زَهُوقًا

और (ऐ रसूल) कह दो कि (दीन) हक़ आ गया और बातिल नेस्तनाबूद हुआ

इसमें शक़ नहीं कि बातिल मिटने वाला ही था

82

وَنُنَزِّلُ مِنَ الْقُرْآنِ مَا هُوَ شِفَاءٌ وَرَحْمَةٌ لِلْمُؤْمِنِينَ ۙ  وَلَا يَزِيدُ الظَّالِمِينَ إِلَّا خَسَارًا

और हम तो क़ुरान में वही चीज़ नाज़िल करते हैं जो मोमिनों के लिए (सरासर) शिफा और रहमत है

(मगर) नाफरमानों को तो घाटे के सिवा कुछ बढ़ाता ही नहीं  

83

وَإِذَا أَنْعَمْنَا عَلَى الْإِنْسَانِ أَعْرَضَ وَنَأَى بِجَانِبِهِ ۖ وَإِذَا مَسَّهُ الشَّرُّ كَانَ يَئُوسًا

और जब हमने आदमी को नेअमत अता फरमाई तो (उल्टे) उसने (हमसे) मुँह फेरा और पहलू बचाने लगा

और जब उसे कोई तकलीफ छू भी गई तो मायूस हो बैठा

84

قُلْ كُلٌّ يَعْمَلُ عَلَى شَاكِلَتِهِ فَرَبُّكُمْ أَعْلَمُ بِمَنْ هُوَ أَهْدَى سَبِيلًا

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हर एक अपने तरीक़े पर कारगुज़ारी करता है

फिर तुम में से जो शख़्श बिल्कुल ठीक सीधी राह पर है तुम्हारा परवरदिगार (उससे) खूब वाक़िफ है

85

وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الرُّوحِ ۖ

और (ऐ रसूल) तुमसे लोग रुह के बारे में सवाल करते हैं

قُلِ الرُّوحُ مِنْ أَمْرِ رَبِّي

तुम (उनके जवाब में) कह दो कि रूह (भी) मेरे परदिगार के हुक्म से (पैदा हुई) है

وَمَا أُوتِيتُمْ مِنَ الْعِلْمِ إِلَّا قَلِيلًا v

और तुमको बहुत थोड़ा सा इल्म दिया गया है

86

وَلَئِنْ شِئْنَا لَنَذْهَبَنَّ بِالَّذِي أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ ثُمَّ لَا تَجِدُ لَكَ بِهِ عَلَيْنَا وَكِيلًا

(इसकी हक़ीकत नहीं समझ सकते) और (ऐ रसूल) अगर हम चाहे तो जो (क़ुरान) हमने तुम्हारे पास 'वही' के ज़रिए भेजा है (दुनिया से) उठा ले जाएँ

फिर तुम अपने वास्ते हमारे मुक़ाबले में कोई मददगार न पाओगे

87

إِلَّا رَحْمَةً مِنْ رَبِّكَ ۚ إِنَّ فَضْلَهُ كَانَ عَلَيْكَ كَبِيرًا

मगर ये सिर्फ तुम्हारे परवरदिगार की रहमत है (कि उसने ऐसा किया)

इसमें शक़ नहीं कि उसका तुम पर बड़ा फज़ल व करम है

88

قُلْ لَئِنِ اجْتَمَعَتِ الْإِنْسُ وَالْجِنُّ عَلَى أَنْ يَأْتُوا بِمِثْلِ هَذَا الْقُرْآنِ لَا يَأْتُونَ بِمِثْلِهِ وَلَوْ كَانَ بَعْضُهُمْ لِبَعْضٍ ظَهِيرًا

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि (अगर सारे दुनिया जहाँन के) आदमी और जिन इस बात पर इकट्ठे हो कि उस क़ुरान का मिसल ले आएँ

तो (ना मुमकिन) उसके बराबर नहीं ला सकते अगरचे (उसको कोशिश में) एक का एक मददगार भी बने

89

وَلَقَدْ صَرَّفْنَا لِلنَّاسِ فِي هَذَا الْقُرْآنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ فَأَبَى أَكْثَرُ النَّاسِ إِلَّا كُفُورًا

और हमने तो लोगों (के समझाने) के वास्ते इस क़ुरान में हर क़िस्म की मसलें अदल बदल के बयान कर दीं

उस पर भी अक्सर लोग बग़ैर नाशुक्री किए नहीं रहते

90

وَقَالُوا لَنْ نُؤْمِنَ لَكَ حَتَّى تَفْجُرَ لَنَا مِنَ الْأَرْضِ يَنْبُوعًا

(ऐ रसूल कुफ्फार मक्के ने)

तुमसे कहा कि जब तक तुम हमारे वास्ते ज़मीन से चश्मा (न) बहा निकालोगे हम तो तुम पर हरगिज़ ईमान न लाएँगें

91

أَوْ تَكُونَ لَكَ جَنَّةٌ مِنْ نَخِيلٍ وَعِنَبٍ فَتُفَجِّرَ الْأَنْهَارَ خِلَالَهَا تَفْجِيرًا

या (ये नहीं तो) खजूरों और अंगूरों का तुम्हारा कोई बाग़ हो उसमें तुम बीच बीच में नहरे जारी करके दिखा दो

92

أَوْ تُسْقِطَ السَّمَاءَ كَمَا زَعَمْتَ عَلَيْنَا كِسَفًا

या जैसा तुम गुमान रखते थे हम पर आसमान ही को टुकड़े (टुकड़े) करके गिराओ

أَوْ تَأْتِيَ بِاللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ قَبِيلًا

या ख़ुदा और फरिश्तों को (अपने क़ौल की तस्दीक़) में हमारे सामने (गवाही में) ला खड़ा कर दिया

93

أَوْ يَكُونَ لَكَ بَيْتٌ مِنْ زُخْرُفٍ أَوْ تَرْقَى فِي السَّمَاءِ

या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए

या तुम आकाश में चढ़ जाओ,

وَلَنْ نُؤْمِنَ لِرُقِيِّكَ حَتَّى تُنَزِّلَ عَلَيْنَا كِتَابًا نَقْرَؤُهُ ۗ

और जब तक तुम हम पर ख़ुदा के यहाँ से एक किताब न नाज़िल करोगे कि हम उसे खुद पढ़ भी लें उस वक्त तक हम तुम्हारे (आसमान पर चढ़ने के भी) क़ायल न होगें

قُلْ سُبْحَانَ رَبِّي  هَلْ كُنْتُ إِلَّا بَشَرًا رَسُولًا

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि सुबहान अल्लाह

मै एक आदमी (ख़ुदा के) रसूल के सिवा आख़िर और क्या हूँ

(जो ये बेहूदा बातें करते हो)

94

وَمَا مَنَعَ النَّاسَ أَنْ يُؤْمِنُوا إِذْ جَاءَهُمُ الْهُدَى إِلَّا أَنْ قَالُواأَبَعَثَ اللَّهُ بَشَرًا رَسُولًا

और जब लोगों के पास हिदायत आ चुकी तो उनको ईमान लाने से इसके सिवा किसी चीज़ ने न रोका कि वह कहने लगे

कि क्या ख़ुदा ने आदमी को रसूल बनाकर भेजा है

95

قُلْ لَوْ كَانَ فِي الْأَرْضِ مَلَائِكَةٌ يَمْشُونَ مُطْمَئِنِّينَ لَنَزَّلْنَا عَلَيْهِمْ مِنَ السَّمَاءِ مَلَكًا رَسُولًا

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि अगर ज़मीन पर फ़रिश्ते (बसे हुये) होते कि इत्मेनान से चलते फिरते

तो हम उन लोगों के पास फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर नाज़िल करते

96

قُلْ كَفَى بِاللَّهِ شَهِيدًا بَيْنِي وَبَيْنَكُمْ ۚ إِنَّهُ كَانَ بِعِبَادِهِ خَبِيرًا بَصِيرًا

(ऐ रसूल) तुम कह दो कि हमारे तुम्हारे दरमियान गवाही के वास्ते बस ख़ुदा काफी है

इसमें शक़ नहीं कि वह अपने बन्दों के हाल से खूब वाक़िफ और देखता रहता है

97

وَمَنْ يَهْدِ اللَّهُ فَهُوَ الْمُهْتَدِ ۖ وَمَنْ يُضْلِلْ فَلَنْ تَجِدَ لَهُمْ أَوْلِيَاءَ مِنْ دُونِهِ ۖ

और ख़ुदा जिसकी हिदायत करे वही हिदायत याफता है

और जिसको गुमराही में छोड़ दे तो (याद रखो कि) फिर उसके सिवा किसी को उसका सरपरस्त न पाआगे

وَنَحْشُرُهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَلَى وُجُوهِهِمْ عُمْيًا وَبُكْمًا وَصُمًّا ۖ

और क़यामत के दिन हम उन लोगों का मुँह के बल औंधे और गूँगें और बहरे क़ब्रों से उठाएँगें

 مَأْوَاهُمْ جَهَنَّمُ ۖ كُلَّمَا خَبَتْ زِدْنَاهُمْ سَعِيرًا

उनका ठिकाना जहन्नुम है

कि जब कभी बुझने को होगी तो हम उन लोगों पर (उसे) और भड़का देंगे

98

ذَلِكَ جَزَاؤُهُمْ بِأَنَّهُمْ كَفَرُوا بِآيَاتِنَا وَقَالُوا أَإِذَا كُنَّا عِظَامًا وَرُفَاتًا أَإِنَّا لَمَبْعُوثُونَ خَلْقًا جَدِيدًا

ये सज़ा उनकी इस वज़ह से है कि उन लोगों ने हमारी आयतों से इन्कार किया

और कहने लगे कि जब हम (मरने के बाद सड़ गल) कर हड्डियाँ और रेज़ा रेज़ा हो जाएँगीं तो क्या फिर हम नये सिरे से पैदा करके उठाए जाएँगें

99

أَوَلَمْ يَرَوْا أَنَّ اللَّهَ الَّذِي خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ قَادِرٌ عَلَى أَنْ يَخْلُقَ مِثْلَهُمْ

क्या उन लोगों ने इस पर भी नहीं ग़ौर किया कि वह ख़ुदा जिसने सारे आसमान और ज़मीन बनाए इस पर भी (ज़रुर) क़ादिर है कि उनके ऐसे आदमी दोबारा पैदा करे

وَجَعَلَ لَهُمْ أَجَلًا لَا رَيْبَ فِيهِ

और उसने उन (की मौत) की एक मियाद मुक़र्रर कर दी है जिसमें ज़रा भी शक़ नहीं

فَأَبَى الظَّالِمُونَ إِلَّا كُفُورًا

उस पर भी ये ज़ालिम इन्कार किए बग़ैर न रहे

100

قُلْ لَوْ أَنْتُمْ تَمْلِكُونَ خَزَائِنَ رَحْمَةِ رَبِّي إِذًا لَأَمْسَكْتُمْ خَشْيَةَ الْإِنْفَاقِ ۚ وَكَانَ الْإِنْسَانُ قَتُورًا

(ऐ रसूल) इनसे कहो कि अगर मेरे परवरदिगार के रहमत के ख़ज़ाने भी तुम्हारे एख़तियार में होते तो भी तुम खर्च हो जाने के डर से (उनको) बन्द रखते

और आदमी बड़ा ही तंग दिल है

101

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى تِسْعَ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ ۖ

और हमने यक़ीनन मूसा को खुले हुए नौ मौजिज़े अता किए

فَاسْأَلْ بَنِي إِسْرَائِيلَ إِذْ جَاءَهُمْ فَقَالَ لَهُ فِرْعَوْنُ

तो (ऐ रसूल) बनी इसराईल से (यही) पूछ देखो कि जब मूसा उनके पास आए तो फिरऔन ने उनसे कहा कि ऐ मूसा मै तो समझता हूँ कि

 إِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا مُوسَى مَسْحُورًا  

किसी ने तुम पर जादू करके दीवाना बना दिया है

102

قَالَ لَقَدْ عَلِمْتَ مَا أَنْزَلَ هَؤُلَاءِ إِلَّا رَبُّ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ بَصَائِرَ

मूसा ने कहा तुम ये ज़रुर जानते हो कि ये मौजिज़े सारे आसमान व ज़मीन के परवरदिगार ने नाज़िल किए (और वह भी लोगों की) सूझ बूझ की बातें हैं

وَإِنِّي لَأَظُنُّكَ يَا فِرْعَوْنُ مَثْبُورًا  

और ऐ फिरऔन मै तो ख्याल करता हूँ कि तुम पर यामत आई है

103

فَأَرَادَ أَنْ يَسْتَفِزَّهُمْ مِنَ الْأَرْضِ فَأَغْرَقْنَاهُ وَمَنْ مَعَهُ جَمِيعًا  

फिर फिरऔन ने ये ठान लिया कि बनी इसराईल को (सर ज़मीने) मिस्र से निकाल बाहर करे

तो हमने फिरऔन और जो लोग उसके साथ थे सब को डुबो मारा

104

وَقُلْنَا مِنْ بَعْدِهِ لِبَنِي إِسْرَائِيلَ اسْكُنُوا الْأَرْضَ فَإِذَا جَاءَ وَعْدُ الْآخِرَةِ جِئْنَا بِكُمْ لَفِيفًا  

और उसके बाद हमने बनी इसराईल से कहा कि (अब तुम ही) इस मुल्क में (खूब आराम से) रहो सहो

फिर जब आख़िरत का वायदा आ पहुँचेगा तो हम तुम सबको समेट कर ले आएँगें

105

وَبِالْحَقِّ أَنْزَلْنَاهُ وَبِالْحَقِّ نَزَلَ ۗ وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا مُبَشِّرًا وَنَذِيرًا  

और (ऐ रसूल) हमने इस क़ुरान को बिल्कुल ठीक नाज़िल किया और बिल्कुल ठीक नाज़िल हुआ

और तुमको तो हमने (जन्नत की) खुशखबरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला (रसूल) बनाकर भेजा है

106

 وَقُرْآنًا فَرَقْنَاهُ لِتَقْرَأَهُ عَلَى النَّاسِ عَلَى مُكْثٍ وَنَزَّلْنَاهُ تَنْزِيلًا  

और क़ुरान को हमने थोड़ा थोड़ा करके इसलिए नाज़िल किया कि तुम लोगों के सामने (ज़रुरत पड़ने पर) मोहलत दे देकर उसको पढ़ दिया करो

और (इसी वजह से) हमने उसको रफ्ता रफ्ता नाज़िल किया

107

قُلْ آمِنُوا بِهِ أَوْ لَا تُؤْمِنُوا ۚ

तुम कह दो कि ख्वाह तुम इस पर ईमान लाओ या न लाओ

إِنَّ الَّذِينَ أُوتُوا الْعِلْمَ مِنْ قَبْلِهِ إِذَا يُتْلَى عَلَيْهِمْ يَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ سُجَّدًا

इसमें शक़ नहीं कि जिन लोगों को उसके क़ब्ल ही (आसमानी किताबों का) इल्म अता किया गया है उनके सामने जब ये पढ़ा जाता है तो ठुडडियों से (मुँह के बल) सजदे में गिर पड़तें हैं

108

وَيَقُولُونَ سُبْحَانَ رَبِّنَا إِنْ كَانَ وَعْدُ رَبِّنَا لَمَفْعُولًا  

और कहते हैं कि हमारा परवरदिगार (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है

बेशक हमारे परवरदिगार का वायदा पूरा होना ज़रुरी था

109

وَيَخِرُّونَ لِلْأَذْقَانِ يَبْكُونَ  وَيَزِيدُهُمْ خُشُوعًا

और ये लोग (सजदे के लिए) मुँह के बल गिर पड़तें हैं और रोते चले जाते हैं

और ये क़ुरान उन की ख़ाकसारी के बढ़ाता जाता है

(सजदा)

110

قُلِ ادْعُوا اللَّهَ أَوِ ادْعُوا الرَّحْمَنَ ۖ

(ऐ रसूल) तुम (उनसे) कह दो कि (तुम को एख़तियार है) ख्वाह उसे अल्लाह (कहकर) पुकारो या रहमान कह कर पुकारो

أَيًّا مَا تَدْعُوا فَلَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَى ۚ

(ग़रज़) जिस नाम को भी पुकारो उसके तो सब नाम अच्छे (से अच्छे) हैं

وَلَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَلَا تُخَافِتْ بِهَا وَابْتَغِ بَيْنَ ذَلِكَ سَبِيلًا  

और (ऐ रसूल) न तो अपनी नमाज़ बहुत चिल्ला कर पढ़ो न और न बिल्कुल चुपके से बल्कि उसके दरमियान एक औसत तरीका एख्तेयार कर लो

111

وَقُلِ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَدًا وَلَمْ يَكُنْ لَهُ شَرِيكٌ فِي الْمُلْكِ وَلَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌّ مِنَ الذُّلِّ ۖ

और कहो कि हर तरह की तारीफ उसी ख़ुदा को (सज़ावार) है जो न तो कोई औलाद रखता है और न (सारे जहाँन की) सल्तनत में उसका कोई साझेदार है

और न उसे किसी तरह की कमज़ोरी है न कोई उसका सरपरस्त हो

وَكَبِّرْهُ تَكْبِيرًا  

और उसकी बड़ाई अच्छी तरह करते रहा करो

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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