Quran Hindi Translation

Surah Yusuf

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

الر ۚ تِلْكَ آيَاتُ الْكِتَابِ الْمُبِينِ

अलिफ़ लाम रा

ये वाज़ेए व रौशन किताब की आयतें है

2

إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ قُرْآنًا عَرَبِيًّا لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ

हमने इस किताब (क़ुरान) को अरबी में नाज़िल किया है ताकि तुम समझो

3

نَحْنُ نَقُصُّ عَلَيْكَ أَحْسَنَ الْقَصَصِ بِمَا أَوْحَيْنَا إِلَيْكَ هَذَا الْقُرْآنَ وَإِنْ كُنْتَ مِنْ قَبْلِهِ لَمِنَ الْغَافِلِينَ

(ऐ रसूल) हम तुम पर ये क़ुरान नाज़िल करके तुम से एक निहायत उम्दा क़िस्सा बयान करते हैं

अगरचे तुम इसके पहले (उससे) बिल्कुल बेख़बर थे

4

إِذْ قَالَ يُوسُفُ لِأَبِيهِ

(वह वक्त याद करो) जब यूसूफ ने अपने बाप से कहा

يَا أَبَتِ إِنِّي رَأَيْتُ أَحَدَ عَشَرَ كَوْكَبًا وَالشَّمْسَ وَالْقَمَرَ رَأَيْتُهُمْ لِي سَاجِدِينَ

ऐ अब्बा मैने ग्यारह सितारों और सूरज चाँद को (ख्वाब में) देखा है मैने देखा है कि ये सब मुझे सजदा कर रहे हैं

5

قَالَ يَا بُنَيَّ لَا تَقْصُصْ رُؤْيَاكَ عَلَى إِخْوَتِكَ فَيَكِيدُوا لَكَ كَيْدًا ۖ

याक़ूब ने कहा ऐ बेटा (देखो ख़बरदार) कहीं अपना ख्वाब अपने भाईयों से न दोहराना (वरना) वह लोग तुम्हारे लिए मक्कारी की तदबीर करने लगेगें

إِنَّ الشَّيْطَانَ لِلْإِنْسَانِ عَدُوٌّ مُبِينٌ

इसमें तो शक़ ही नहीं कि शैतान आदमी का खुला हुआ दुश्मन है

6

وَكَذَلِكَ يَجْتَبِيكَ رَبُّكَ وَيُعَلِّمُكَ مِنْ تَأْوِيلِ الْأَحَادِيثِ

और (जो तुमने देखा है) ऐसा ही होगा कि तुम्हारा परवरदिगार तुमको बरगुज़ीदा (इज्ज़तदार) करेगा और तुम्हें ख्वाबो की ताबीर सिखाएगा

وَيُتِمُّ نِعْمَتَهُ عَلَيْكَ وَعَلَى آلِ يَعْقُوبَ

كَمَا أَتَمَّهَا عَلَى أَبَوَيْكَ مِنْ قَبْلُ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ ۚ إِنَّ رَبَّكَ عَلِيمٌ حَكِيمٌ

और जिस तरह इससे पहले तुम्हारे दादा परदादा इबराहीम और इसहाक़ पर अपनी नेअमत पूरी कर चुका है और इसी तरह तुम पर और याक़ूब की औलाद पर अपनी नेअमत पूरी करेगा

बेशक तुम्हारा परवरदिगार बड़ा वाक़िफकार हकीम है

7

لَقَدْ كَانَ فِي يُوسُفَ وَإِخْوَتِهِ آيَاتٌ لِلسَّائِلِينَ

(ऐ रसूल) यूसुफ और उनके भाइयों के किस्से में पूछने वाले (यहूद) के लिए (तुम्हारी नुबूवत) की यक़ीनन बहुत सी निशानियाँ हैं

8

إِذْ قَالُوا لَيُوسُفُ وَأَخُوهُ أَحَبُّ إِلَى أَبِينَا مِنَّا وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّ أَبَانَا لَفِي ضَلَالٍ مُبِينٍ

कि जब (यूसुफ़ के भाइयों ने) कहा कि बावजूद कि हमारी बड़ी जमाअत है फिर भी यूसुफ़ और उसका हकीक़ी भाई (इब्ने यामीन) हमारे वालिद के नज़दीक बहुत ज्यादा प्यारे हैं

इसमें कुछ शक़ नहीं कि हमारे वालिद यक़ीनन सरीही (खुली हुई) ग़लती में पड़े हैं

9

اقْتُلُوا يُوسُفَ أَوِ اطْرَحُوهُ أَرْضًا يَخْلُ لَكُمْ وَجْهُ أَبِيكُمْ وَتَكُونُوا مِنْ بَعْدِهِ قَوْمًا صَالِحِينَ

(ख़ैर तो अब मुनासिब ये है कि या तो) युसूफ को मार डालो या (कम से कम) उसको किसी जगह (चल कर) फेंक आओ

तो अलबत्ता तुम्हारे वालिद की तवज्जो सिर्फ तुम्हारी तरफ हो जाएगा

और उसके बाद तुम सबके सब (बाप की तवजज्जो से) भले आदमी हो जाओगें

10

قَالَ قَائِلٌ مِنْهُمْ لَا تَقْتُلُوا يُوسُفَ وَأَلْقُوهُ فِي غَيَابَتِ الْجُبِّ يَلْتَقِطْهُ بَعْضُ السَّيَّارَةِ  إِنْ كُنْتُمْ فَاعِلِينَ

उनमें से एक कहने वाला बोल उठा कि यूसुफ को जान से तो न मारो हाँ अगर तुमको ऐसा ही करना है तो उसको किसी अन्धे कुएँ में (ले जाकर) डाल दो

कोई राहगीर उसे निकालकर ले जाएगा

अगर तुम्हें करना है

(तो यूं करो और उस से तुम्हारा मतलब हासिल हो जाएगा)

11

قَالُوا يَا أَبَانَا مَا لَكَ لَا تَأْمَنَّا عَلَى يُوسُفَ وَإِنَّا لَهُ لَنَاصِحُونَ

सब ने (याक़ूब से) कहा अब्बा जान आख़िर उसकी क्या वजह है कि आप यूसुफ के बारे में हमारा ऐतबार नहीं करते हालॉकि हम लोग तो उसके ख़ैर ख्वाह (भला चाहने वाले) हैं

12

أَرْسِلْهُ مَعَنَا غَدًا يَرْتَعْ وَيَلْعَبْ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ

आप उसको कुल हमारे साथ भेज दीजिए कि ज़रा (जंगल) से फल वगैरह् खाए और खेले कूदे

और हम लोग तो उसके निगेहबान हैं

13

قَالَ إِنِّي لَيَحْزُنُنِي أَنْ تَذْهَبُوا بِهِ وَأَخَافُ أَنْ يَأْكُلَهُ الذِّئْبُ وَأَنْتُمْ عَنْهُ غَافِلُونَ

ही याक़ूब ने कहा तुम्हारा उसको ले जाना मुझे सख्त सदमा पहुँचाना है

और मै तो इससे डरता हूँ कि तुम सब के सब उससे बेख़बर हो जाओ और (मुबादा) उसे भेड़िया फाड़ खाए

14

قَالُوا لَئِنْ أَكَلَهُ الذِّئْبُ وَنَحْنُ عُصْبَةٌ إِنَّا إِذًا لَخَاسِرُونَ

वह लोग कहने लगे जब हमारी बड़ी जमाअत है (इस पर भी) अगर उसको भेड़िया खा जाए तो हम लोग यक़ीनन बड़े घाटा उठाने वाले (निकलते) ठहरेगें

15

فَلَمَّا ذَهَبُوا بِهِ وَأَجْمَعُوا أَنْ يَجْعَلُوهُ فِي غَيَابَتِ الْجُبِّ ۚ

ग़रज़ यूसुफ को जब ये लोग ले गए और इस पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया कि उसको अन्धे कुएँ में डाल दें

وَأَوْحَيْنَا إِلَيْهِ لَتُنَبِّئَنَّهُمْ بِأَمْرِهِمْ هَذَا وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ

और (आख़िर ये लोग गुज़रे तो) हमने युसुफ़ के पास 'वही' भेजी कि तुम घबराओ नहीं हम अनक़रीब तुम्हें मरतबे (उँचे मकाम) पर पहुँचाएगे (तब तुम) उनके उस फेल (बद) से तम्बीह (आग़ाह) करोगे जब उन्हें कुछ ध्यान भी न होगा

16

وَجَاءُوا أَبَاهُمْ عِشَاءً يَبْكُونَ

और ये लोग रात को अपने बाप के पास (बनवट) से रोते पीटते हुए आए

17

قَالُوا يَا أَبَانَا إِنَّا ذَهَبْنَا نَسْتَبِقُ وَتَرَكْنَا يُوسُفَ عِنْدَ مَتَاعِنَا  فَأَكَلَهُ الذِّئْبُ ۖ

और कहने लगे ऐ अब्बा हम लोग तो जाकर दौड़ने लगे और यूसुफ को अपने असबाब के पास छोड़ दिया इतने में

भेड़िया आकर उसे खा गया

وَمَا أَنْتَ بِمُؤْمِنٍ لَنَا وَلَوْ كُنَّا صَادِقِينَ

हम लोग अगर सच्चे भी हो मगर आपको तो हमारी बात का यक़ीन आने का नहीं

18

وَجَاءُوا عَلَى قَمِيصِهِ بِدَمٍ كَذِبٍ ۚ

और ये लोग यूसुफ के कुरते पर झूठ मूठ (भेड़) का खून भी (लगा के) लाए थे,

قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ أَمْرًا ۖ

याक़ूब ने कहा भेड़िया ने ही खाया (बल्कि) तुम्हारे दिल ने तुम्हारे बचाओ के लिए एक बात गढ़ी वरना कुर्ता फटा हुआ ज़रुर होता

 فَصَبْرٌ جَمِيلٌ ۖوَاللَّهُ الْمُسْتَعَانُ عَلَى مَا تَصِفُونَ

फिर सब्र व शुक्र है

और जो कुछ तुम बयान करते हो उस पर ख़ुदा ही से मदद माँगी जाती है

19

وَجَاءَتْ سَيَّارَةٌ فَأَرْسَلُوا وَارِدَهُمْ فَأَدْلَى دَلْوَهُ ۖ

और (ख़ुदा की शान देखो) एक काफ़ला (वहाँ) आकर उतरा उन लोगों ने अपने सक्के (पानी भरने वाले) को (पानी भरने) भेजा

ग़रज़ उसने अपना डोल डाला ही था

(कि यूसुफ उसमें बैठे और उसने ख़ीचा तो निकल आए)

قَالَ يَا بُشْرَى هَذَا غُلَامٌ ۚ

वह पुकारा आहा ये तो लड़का है

وَأَسَرُّوهُ بِضَاعَةً ۚ

और काफला वालो ने यूसुफ को क़ीमती सरमाया समझकर छिपा रखा

وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِمَا يَعْمَلُونَ

हालॉकि जो कुछ ये लोग करते थे ख़ुदा उससे ख़ूब वाकिफ था

20

وَشَرَوْهُ بِثَمَنٍ بَخْسٍ دَرَاهِمَ مَعْدُودَةٍ وَكَانُوا فِيهِ مِنَ الزَّاهِدِينَ

और उन लोगों ने यूसुफ को गिनती के खोटे चन्द दरहम (बहुत थोड़े दाम) पर बेच डाला

और वह लोग तो यूसुफ से बेज़ार हो ही रहे थे

21

وَقَالَ الَّذِي اشْتَرَاهُ مِنْ مِصْرَ لِامْرَأَتِهِ أَكْرِمِي مَثْوَاهُ عَسَى أَنْ يَنْفَعَنَا أَوْ نَتَّخِذَهُ وَلَدًا ۚ

(यूसुफ को लेकर मिस्र पहुँचे और वहाँ उसे बड़े नफे में बेच डाला)

और मिस्र के लोगों से (अज़ीजे मिस्र) जिसने उनको ख़रीदा था अपनी बीवी (ज़ुलेख़ा) से कहने लगा

इसको इज्ज़त व आबरु से रखो अजब नहीं ये हमें कुछ नफा पहुँचाए या (शायद) इसको अपना बेटा ही बना लें

 وَكَذَلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِي الْأَرْضِ وَلِنُعَلِّمَهُ مِنْ تَأْوِيلِ الْأَحَادِيثِ ۚ

और यू हमने यूसुफ को मुल्क (मिस्र) में (जगह देकर) क़ाबिज़ बनाया

और ग़रज़ ये थी कि हमने उसे ख्वाब की बातों की ताबीर सिखायी

وَاللَّهُ غَالِبٌ عَلَى أَمْرِهِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

और ख़ुदा तो अपने काम पर (हर तरह के) ग़ालिब व क़ादिर है मगर बहुतेरे लोग (उसको) नहीं जानते

22

وَلَمَّا بَلَغَ أَشُدَّهُ آتَيْنَاهُ حُكْمًا وَعِلْمًا ۚ وَكَذَلِكَ نَجْزِي الْمُحْسِنِينَ

और जब यूसुफ अपनी जवानी को पहुँचे तो हमने उनको हुक्म (नुबूवत) और इल्म अता किया

और नेकी कारों को हम यूँ ही बदला दिया करते हैं  

23

وَرَاوَدَتْهُ الَّتِي هُوَ فِي بَيْتِهَا عَنْ نَفْسِهِ وَغَلَّقَتِ الْأَبْوَابَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ ۚ

और जिस औरत ज़ुलेखा के घर में यूसुफ रहते थे उसने अपने (नाजायज़) मतलब हासिल करने के लिए ख़ुद उनसे आरज़ू की

और सब दरवाज़े बन्द कर दिए और (बे ताना) कहने लगी लो आओ

قَالَ مَعَاذَ اللَّهِ ۖ إِنَّهُ رَبِّي أَحْسَنَ مَثْوَايَ ۖ إِنَّهُ لَا يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ

यूसुफ ने कहा माज़अल्लाह

वह (तुम्हारे मियाँ) मेरा मालिक हैं उन्होंने मुझे अच्छी तरह रखा है

(मै ऐसा ज़ुल्म क्यों कर सकता हूँ)

बेशक ऐसा ज़ुल्म करने वाले फलाह नहीं पाते

24

وَلَقَدْ هَمَّتْ بِهِ ۖ وَهَمَّ بِهَا لَوْلَا أَنْ رَأَى بُرْهَانَ رَبِّهِ ۚ

ज़ुलेखा ने तो उनके साथ (बुरा) इरादा कर ही लिया था और अगर ये भी अपने परवरदिगार की दलीन न देख चुके होते तो क़स्द कर बैठते

كَذَلِكَ لِنَصْرِفَ عَنْهُ السُّوءَ وَالْفَحْشَاءَ ۚ إِنَّهُ مِنْ عِبَادِنَا الْمُخْلَصِينَ

(हमने उसको यूँ बचाया) ताकि हम उससे बुराई और बदकारी को दूर रखे

बेशक वह हमारे ख़ालिस बन्दों में से था

25

وَاسْتَبَقَا الْبَابَ وَقَدَّتْ قَمِيصَهُ مِنْ دُبُرٍ وَأَلْفَيَا سَيِّدَهَا لَدَى الْبَابِ ۚ

और दोनों दरवाजे क़ी तरफ झपट पड़े

और ज़ुलेख़ा (ने पीछे से उनका कुर्ता पकड़ कर खीचा और) फाड़ डाला

और दोनों ने ज़ुलेखा के ख़ाविन्द को दरवाज़े के पास खड़ा पाया

قَالَتْ مَا جَزَاءُ مَنْ أَرَادَ بِأَهْلِكَ سُوءًا إِلَّا أَنْ يُسْجَنَ أَوْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

ज़ुलेख़ा झट (अपने शौहर से) कहने लगी कि जो तुम्हारी बीबी के साथ बदकारी का इरादा करे उसकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं

कि या तो कैद कर दिया जाए या दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर दिया जाए

26

قَالَ هِيَ رَاوَدَتْنِي عَنْ نَفْسِي ۚ

यूसुफ ने कहा उसने ख़ुद मुझसे मेरी आरज़ू की थी

وَشَهِدَ شَاهِدٌ مِنْ أَهْلِهَا إِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِنْ قُبُلٍ فَصَدَقَتْ وَهُوَ مِنَ الْكَاذِبِينَ

और ज़ुलेख़ा के कुन्बे वालों में से एक गवाही देने वाले ने गवाही दी कि

अगर उनका कुर्ता आगे से फटा हुआ हो तो ये सच्ची और वह झूठे

27

وَإِنْ كَانَ قَمِيصُهُ قُدَّ مِنْ دُبُرٍ فَكَذَبَتْ وَهُوَ مِنَ الصَّادِقِينَ

और अगर उनका कुर्ता पींछे से फटा हुआ हो तो ये झूठी और वह सच्चे

28

فَلَمَّا رَأَى قَمِيصَهُ قُدَّ مِنْ دُبُرٍ قَالَ إِنَّهُ مِنْ كَيْدِكُنَّ ۖإِنَّ كَيْدَكُنَّ عَظِيمٌ

फिर जब अज़ीजे मिस्र ने उनका कुर्ता पीछे से फटा हुआ देखा तो (अपनी औरत से) कहने लगा ये तुम ही लोगों के चलत्तर है

उसमें शक़ नहीं कि तुम लोगों के चलत्तर बड़े (ग़ज़ब के) होते हैं

29

يُوسُفُ أَعْرِضْ عَنْ هَذَا ۚ

(और यूसुफ से कहा) ऐ यूसुफ इसको जाने दो

وَاسْتَغْفِرِي لِذَنْبِكِ ۖ إِنَّكِ كُنْتِ مِنَ الْخَاطِئِينَ

और (औरत से कहा) कि तू अपने गुनाह की माफी माँग क्योंकि बेशक तू ही सरतापा ख़तावार है

30

وَقَالَ نِسْوَةٌ فِي الْمَدِينَةِ امْرَأَتُ الْعَزِيزِ تُرَاوِدُ فَتَاهَا عَنْ نَفْسِهِ ۖ

और शहर (मिस्र) में औरतें चर्चा करने लगी कि अज़ीज़ (मिस्र) की बीबी अपने ग़ुलाम से (नाजायज़) मतलब हासिल करने की आरज़ू मन्द है

 قَدْ شَغَفَهَا حُبًّا ۖ إِنَّا لَنَرَاهَا فِي ضَلَالٍ مُبِينٍ

बेशक गुलाम ने उसे उलफत में लुभाया है

हम लोग तो यक़ीनन उसे सरीही ग़लती में मुब्तिला देखते हैं

31

فَلَمَّا سَمِعَتْ بِمَكْرِهِنَّ أَرْسَلَتْ إِلَيْهِنَّ  وَأَعْتَدَتْ لَهُنَّ مُتَّكَأً

तो जब ज़ुलेख़ा ने उनके ताने सुने तो उस ने उन औरतों को बुला भेजा

और उनके लिए एक मजलिस आरास्ता की

وَآتَتْ كُلَّ وَاحِدَةٍ مِنْهُنَّ سِكِّينًا وَقَالَتِ اخْرُجْ عَلَيْهِنَّ ۖ

और उसमें से हर एक के हाथ में एक छुरी और एक (नारंगी) दी

(और कह दिया कि जब तुम्हारे सामने आए तो काट के एक फ़ाक उसको दे देना)

और यूसुफ़ से कहा कि अब इनके सामने से निकल तो जाओ

فَلَمَّا رَأَيْنَهُ أَكْبَرْنَهُ وَقَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ

तो जब उन औरतों ने उसे देखा तो उसके बड़ा हसीन पाया तो सब के सब ने (बे खुदी में) अपने अपने हाथ काट डाले

وَقُلْنَ حَاشَ لِلَّهِ مَا هَذَا بَشَرًا إِنْ هَذَا إِلَّا مَلَكٌ كَرِيمٌ

और कहने लगी हाय अल्लाह ये आदमी नहीं है ये तो हो न हो बस एक मुअज़िज़ (इज्ज़त वाला) फ़रिश्ता है

32

قَالَتْ فَذَلِكُنَّ الَّذِي لُمْتُنَّنِي فِيهِ ۖ وَلَقَدْ رَاوَدْتُهُ عَنْ نَفْسِهِ فَاسْتَعْصَمَ ۖ

(तब ज़ुलेख़ा उन औरतों से) बोली कि बस ये वही तो है जिसकी बदौलत तुम सब मुझे मलामत (बुरा भला) करती थीं

और हाँ बेशक मैं उससे अपना मतलब हासिल करने की खुद उससे आरज़ू मन्द थी मगर ये बचा रहा

وَلَئِنْ لَمْ يَفْعَلْ مَا آمُرُهُ لَيُسْجَنَنَّ وَلَيَكُونًا مِنَ الصَّاغِرِينَ

और जिस काम का मैं हुक्म देती हूँ अगर ये न करेगा तो ज़रुर क़ैद भी किया जाएगा और ज़लील भी होगा

33

قَالَ رَبِّ السِّجْنُ أَحَبُّ إِلَيَّ مِمَّا يَدْعُونَنِي إِلَيْهِ ۖ

(यूसुफ ने मेरी बारगाह में) अर्ज़ की ऐ मेरे पालने वाले जिस बात की ये औरते मुझ से ख्वाहिश रखती हैं उसकी निस्वत (बदले में) मुझे क़ैद ख़ानों ज्यादा पसन्द है

وَإِلَّا تَصْرِفْ عَنِّي كَيْدَهُنَّ أَصْبُ إِلَيْهِنَّ وَأَكُنْ مِنَ الْجَاهِلِينَ

और अगर तू इन औरतों के फ़रेब मुझसे दफा न फरमाएगा तो (शायद) मै उनकी तरफ माएल (झुक) हो जाँऊ ले तो जाओ

और जाहिलों से शुमार किया जाऊँ

34

فَاسْتَجَابَ لَهُ رَبُّهُ فَصَرَفَ عَنْهُ كَيْدَهُنَّ ۚ

तो उनके परवरदिगार ने उनकी सुन ली और उन औरतों के मकर को दफा कर दिया

إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

इसमें शक़ नहीं कि वह बड़ा सुनने वाला वाक़िफकार है

35

ثُمَّ بَدَا لَهُمْ مِنْ بَعْدِ مَا رَأَوُا الْآيَاتِ لَيَسْجُنُنَّهُ حَتَّى حِينٍ

फिर (अज़ीज़ मिस्र और उसके लोगों ने) बावजूद के (यूसुफ की पाक दामिनी की) निशानियाँ देख ली थी उसके बाद भी उनको यही मुनासिब मालूम हुआ कि कुछ मियाद के लिए उनको क़ैद ही करे दें

36

وَدَخَلَ مَعَهُ السِّجْنَ فَتَيَانِ ۖ

और यूसुफ के साथ और भी दो जवान आदमी (क़ैद ख़ाने) में दाख़िल हुए

قَالَ أَحَدُهُمَا إِنِّي أَرَانِي أَعْصِرُ خَمْرًا ۖ

(चन्द दिन के बाद) उनमें से एक ने कहा कि मैने ख्वाब में देखा है कि मै (शराब बनाने के वास्ते अंगूर) निचोड़ रहा हूँ

وَقَالَ الْآخَرُ إِنِّي أَرَانِي أَحْمِلُ فَوْقَ رَأْسِي خُبْزًا تَأْكُلُ الطَّيْرُ مِنْهُ ۖ

और दूसरे ने कहा (मै ने भी ख्वाब में) अपने को देखा कि मै अपने सर पर रोटिया उठाए हुए हूँ और चिड़ियाँ उसे खा रही हैं

نَبِّئْنَا بِتَأْوِيلِهِ ۖ إِنَّا نَرَاكَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ

(यूसुफ) हमको उसकी ताबीर (मतलब) बताओ क्योंकि हम तुमको यक़ीनन नेकी कारों से समझते हैं

37

قَالَ لَا يَأْتِيكُمَا طَعَامٌ تُرْزَقَانِهِ إِلَّا نَبَّأْتُكُمَا بِتَأْوِيلِهِ قَبْلَ أَنْ يَأْتِيَكُمَا ۚ

यूसुफ ने कहा जो खाना तुम्हें (क़ैद ख़ाने से) दिया जाता है वह आने भी न पाएगा कि मै उसके तुम्हारे पास आने के क़ब्ल ही तुम्हे उसकी ताबीर बताऊँगा

ذَلِكُمَا مِمَّا عَلَّمَنِي رَبِّي ۚ

ये ताबीरे ख्वाब भी उन बातों के साथ है जो मेरे परवरदिगार ने मुझे तालीम फरमाई है

إِنِّي تَرَكْتُ مِلَّةَ قَوْمٍ لَا يُؤْمِنُونَ بِاللَّهِ وَهُمْ بِالْآخِرَةِ هُمْ كَافِرُونَ

मैं उन लोगों का मज़हब छोड़ बैठा हूँ जो ख़ुदा पर ईमान नहीं लाते और वह लोग आख़िरत के भी मुन्किर है

38

وَاتَّبَعْتُ مِلَّةَ آبَائِي إِبْرَاهِيمَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ ۚ

और मैं तो अपने बाप दादा इबराहीम व इसहाक़ व याक़ूब के मज़हब पर चलने वाला हूँ

 مَا كَانَ لَنَا أَنْ نُشْرِكَ بِاللَّهِ مِنْ شَيْءٍ ۚ

मुनासिब नहीं कि हम ख़ुदा के साथ किसी चीज़ को (उसका) शरीक बनाएँ

ذَلِكَ مِنْ فَضْلِ اللَّهِ عَلَيْنَا وَعَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ

ये भी ख़ुदा की एक बड़ी मेहरबानी है हम पर भी और तमाम लोगों पर मगर बहुतेरे लोग उसका शुक्रिया (भी) अदा नहीं करते

39

يَا صَاحِبَيِ السِّجْنِ أَأَرْبَابٌ مُتَفَرِّقُونَ خَيْرٌ أَمِ اللَّهُ الْوَاحِدُ الْقَهَّارُ

ऐ मेरे कैद ख़ाने के दोनो रफीक़ों (साथियों)

(ज़रा ग़ौर तो करो कि) भला जुदा जुदा माबूद अच्छे या ख़ुदाए यकता ज़बरदस्त (अफसोस)

40

‏مَا تَعْبُدُونَ مِنْ دُونِهِ إِلَّا أَسْمَاءً سَمَّيْتُمُوهَا أَنْتُمْ وَآبَاؤُكُمْ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ بِهَا مِنْ سُلْطَانٍ ۚ

तुम लोग तो ख़ुदा को छोड़कर बस उन चन्द नामों ही को परसतिश करते हो जिन को तुमने और तुम्हारे बाप दादाओं ने गढ़ लिया है

ख़ुदा ने उनके लिए कोई दलील नहीं नाज़िल की

إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۚ

हुकूमत तो बस ख़ुदा ही के वास्ते ख़ास है

أَمَرَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ ۚ

उसने तो हुक्म दिया है कि उसके सिवा किसी की इबादत न करो

ذَلِكَ الدِّينُ الْقَيِّمُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

यही सयधा दीन है मगर (अफसोस) बहुतेरे लोग नहीं जानते हैं

41

يَا صَاحِبَيِ السِّجْنِ أَمَّا أَحَدُكُمَا فَيَسْقِي رَبَّهُ خَمْرًا ۖ

ऐ मेरे क़ैद ख़ाने के दोनो रफीक़ो (अच्छा अब ताबीर सुनो)

तुममें से एक (जिसने अंगूर देखा रिहा होकर) अपने मालिक को शराब पिलाने का काम करेगा

وَأَمَّا الْآخَرُ فَيُصْلَبُ فَتَأْكُلُ الطَّيْرُ مِنْ رَأْسِهِ

और (दूसरा) जिसने रोटियाँ सर पर (देखी हैं) तो सूली दिया जाएगा और चिड़िया उसके सर से (नोच नोच) कर खाएगी

قُضِيَ الْأَمْرُ الَّذِي فِيهِ تَسْتَفْتِيَانِ

जिस अम्र को तुम दोनों दरयाफ्त करते थे (वह ये है और) फैसला हो चुका है

42

وَقَالَ لِلَّذِي ظَنَّ أَنَّهُ نَاجٍ مِنْهُمَا اذْكُرْنِي عِنْدَ رَبِّكَ

और उन दोनों में से जिसकी निस्बत यूसुफ ने समझा था वह रिहा हो जाएगा उससे कहा कि अपने मालिक के पास मेरा भी तज़किरा करना

(कि मैं बेजुर्म क़ैद हूँ)

فَأَنْسَاهُ الشَّيْطَانُ ذِكْرَ رَبِّهِ فَلَبِثَ فِي السِّجْنِ بِضْعَ سِنِينَ

तो शैतान ने उसे अपने आक़ा से ज़िक्र करना भुला दिया तो यूसुफ क़ैद ख़ाने में कई बरस रहे

43

وَقَالَ الْمَلِكُ إِنِّي أَرَى سَبْعَ بَقَرَاتٍ سِمَانٍ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌ وَسَبْعَ سُنْبُلَاتٍ خُضْرٍ وَأُخَرَ يَابِسَاتٍ ۖ

और (इसी असना (बीच) में) बादशाह ने (भी ख्वाब देखा और) कहा मैने देखा है कि

सात मोटी ताज़ी गाए हैं उनको सात दुबली पतली गाय खाए जाती हैं

और सात ताज़ी सब्ज़ बालियॉ (देखीं) और फिर (सात) सूखी बालियॉ

يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي رُؤْيَايَ إِنْ كُنْتُمْ لِلرُّؤْيَا تَعْبُرُونَ

(मेरे दरबार के) सरदारों अगर तुम लोगों को ख्वाब की ताबीर देनी आती हो तो मेरे (इस) ख्वाब के बारे में हुक्म लगाओ

44

قَالُوا أَضْغَاثُ أَحْلَامٍ ۖ وَمَا نَحْنُ بِتَأْوِيلِ الْأَحْلَامِ بِعَالِمِينَ

उन लोगों ने अर्ज़ की कि ये तो (कुछ) ख्वाब परेशॉ (सा) है

और हम लोग ऐसे ख्वाब (परेशॉ) की ताबीर तो नहीं जानते हैं

45

وَقَالَ الَّذِي نَجَا مِنْهُمَا وَادَّكَرَ بَعْدَ أُمَّةٍأَنَا أُنَبِّئُكُمْ بِتَأْوِيلِهِ فَأَرْسِلُونِ

और जिसने उन दोनों में से रिहाई पाई थी (साकी) और उसको एक ज़माने के बाद (यूसुफ का क़िस्सा) याद आया बोल उठा कि

मुझे (क़ैद ख़ाने तक) जाने दीजिए तो मैं उसकी ताबीर बताए देता हूँ

46

يُوسُفُ أَيُّهَا الصِّدِّيقُ أَفْتِنَا فِي سَبْعِ بَقَرَاتٍ سِمَانٍ يَأْكُلُهُنَّ سَبْعٌ عِجَافٌ وَسَبْعِ سُنْبُلَاتٍ خُضْرٍ وَأُخَرَ يَابِسَاتٍ

(ग़रज़ वह गया और यूसुफ से कहने लगा)

ऐ यूसुफ ऐ बड़े सच्चे (यूसुफ) ज़रा हमें ये तो बताइए कि

सात मोटी ताज़ी गायों को सात पतली गाय खाए जाती है

और सात बालियॉ हैं हरी कचवा और फिर (सात) सूखी मुरझाई

لَعَلِّي أَرْجِعُ إِلَى النَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَعْلَمُونَ

(इसकी ताबीर क्या है)

तो मैं लोगों के पास पलट कर जाऊँ (और बयान करुँ) ताकि उनको भी (तुम्हारी क़दर) मालूम हो जाए

47

قَالَ تَزْرَعُونَ سَبْعَ سِنِينَ دَأَبًا فَمَا حَصَدْتُمْ فَذَرُوهُ فِي سُنْبُلِهِ إِلَّا قَلِيلًا مِمَّا تَأْكُلُونَ

यूसुफ ने कहा (इसकी ताबीर ये है) कि तुम लोग लगातार सात बरस काश्तकारी करते रहोगे

तो जो (फसल) तुम काटो उस (के दाने) को बालियों में रहने देना (छुड़ाना नहीं) मगर थोड़ा (बहुत) जो तुम खुद खाओ

48

ثُمَّ يَأْتِي مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ سَبْعٌ شِدَادٌ يَأْكُلْنَ مَا قَدَّمْتُمْ لَهُنَّ  إِلَّا قَلِيلًا مِمَّا تُحْصِنُونَ

उसके बाद बड़े सख्त (खुश्क साली (सूखे) के) सात बरस आएंगें कि जो कुछ तुम लोगों ने उन सातों साल के वास्ते पहले जमा कर रखा होगा सब खा जाएंगें

मगर बहुत थोड़ा सा जो तुम (बीज के वास्ते) बचा रखोगे

49

ثُمَّ يَأْتِي مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ عَامٌ فِيهِ يُغَاثُ النَّاسُ وَفِيهِ يَعْصِرُونَ

(बस) फिर उसके बाद एक साल आएगा जिसमें लोगों के लिए खूब मेंह बरसेगी (और अंगूर भी खूब फलेगा) और लोग उस साल (उन्हें) शराब के लिए निचोड़ेगें

50

وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُونِي بِهِ ۖ

(ये ताबीर सुनते ही) बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे हुज़ूर में तो ले आओ

 فَلَمَّا جَاءَهُ الرَّسُولُ قَالَ ارْجِعْ إِلَى رَبِّكَ فَاسْأَلْهُ مَا بَالُ النِّسْوَةِ اللَّاتِي قَطَّعْنَ أَيْدِيَهُنَّ ۚ

फिर जब (शाही) चौबदार (ये हुक्म लेकर) यूसुफ के पास आया तो युसूफ ने कहा कि तुम अपनी सरकार के पास पलट जाओ

और उनसे पूछो कि (आप को) कुछ उन औरतों का हाल भी मालूम है जिन्होने (मुझे देख कर) अपने अपने हाथ काट डाले थे कि या मैं उनका तालिब था या वह (मेरी)

إِنَّ رَبِّي بِكَيْدِهِنَّ عَلِيمٌ

इसमें तो शक़ ही नहीं कि मेरा परवरदिगार ही उनके मक्र से खूब वाक़िफ है

51

قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ إِذْ رَاوَدْتُنَّ يُوسُفَ عَنْ نَفْسِهِ ۚ

चुनान्चे बादशाह ने (उन औरतों को तलब किया) और पूछा कि जिस वक्त तुम लोगों ने यूसुफ से अपना मतलब हासिल करने की खुद उन से तमन्ना की थी तो हमें क्या मामला पेश आया था

قُلْنَ حَاشَ لِلَّهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِنْ سُوءٍ ۚ

वह सब की सब अर्ज क़रने लगी हाशा अल्लाह हमने यूसुफ में तो किसी तरह की बुराई नहीं देखी

قَالَتِ امْرَأَتُ الْعَزِيزِ الْآنَ حَصْحَصَ الْحَقُّ أَنَا رَاوَدْتُهُ عَنْ نَفْسِهِ وَإِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ

(तब) अज़ीज़ मिस्र की बीबी (ज़ुलेख़ा) बोल उठी अब तू ठीक ठीक हाल सब पर ज़ाहिर हो ही गया

(असल बात ये है कि) मैने खुद उससे अपना मतलब हासिल करने की तमन्ना की थी और बेशक वह यक़ीनन सच्चा है

52

ذَلِكَ لِيَعْلَمَ أَنِّي لَمْ أَخُنْهُ بِالْغَيْبِ وَأَنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي كَيْدَ الْخَائِنِينَ

(ये वाक़िया चौबदार ने यूसुफ से बयान किया (यूसुफ ने कहा) ये क़िस्से मैने इसलिए छेड़ा)

ताकि तुम्हारे बादशाह को मालूम हो जाए कि मैने अज़ीज़ की ग़ैबत में उसकी (अमानत में) ख़यानत नहीं की

और ख़ुदा ख़यानत करने वालों की मक्कारी हरगिज़ चलने नहीं देता

53

وَمَا أُبَرِّئُ نَفْسِي ۚ

और (यूं तो) मै भी अपने नफ्स को गुनाहो से बे लौस नहीं कहता हूँ

إِنَّ النَّفْسَ لَأَمَّارَةٌ بِالسُّوءِ إِلَّا مَا رَحِمَ رَبِّي ۚ

क्योंकि (मैं भी बशर हूँ) और नफ्स बराबर बुराई की तरफ उभारता ही है मगर जिस पर मेरा परवरदिगार रहम फरमाए (और गुनाह से बचाए)

إِنَّ رَبِّي غَفُورٌ رَحِيمٌ

इसमें शक़ नहीं कि मेरा परवरदिगार बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

54

وَقَالَ الْمَلِكُ ائْتُونِي بِهِ أَسْتَخْلِصْهُ لِنَفْسِي ۖ

और बादशाह ने हुक्म दिया कि यूसुफ को मेरे पास ले आओ तो मैं उनको अपने ज़ाती काम के लिए ख़ास कर लूंगा

 فَلَمَّا كَلَّمَهُ قَالَ إِنَّكَ الْيَوْمَ لَدَيْنَا مَكِينٌ أَمِينٌ

फिर उसने यूसुफ से बातें की तो यूसुफ की आला क़ाबलियत साबित हुई (और) उसने हुक्म दिया कि तुम आज (से) हमारे सरकार में यक़ीन बावक़ार (और) मुअतबर हो

55

قَالَ اجْعَلْنِي عَلَى خَزَائِنِ الْأَرْضِ ۖ إِنِّي حَفِيظٌ عَلِيمٌ

यूसुफ ने कहा (जब अपने मेरी क़दर की है तो) मुझे मुल्की ख़ज़ानों पर मुक़र्रर कीजिए

क्योंकि मैं (उसका) अमानतदार ख़ज़ान्ची (और) उसके हिसाब व किताब से भी वाक़िफ हूँ

56

وَكَذَلِكَ مَكَّنَّا لِيُوسُفَ فِي الْأَرْضِ يَتَبَوَّأُ مِنْهَا حَيْثُ يَشَاءُ ۚ

(ग़रज़ यूसुफ शाही ख़ज़ानो के अफसर मुक़र्रर हुए)

और हमने यूसुफ को युं मुल्क (मिस्र) पर क़ाबिज़ बना दिया कि उसमें जहाँ चाहें रहें

 نُصِيبُ بِرَحْمَتِنَا مَنْ نَشَاءُ ۖ  وَلَا نُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ

हम जिस पर चाहते हैं अपना फज़ल करते हैं

और हमने नेको कारो के अज्र को अकारत नहीं करते

57

وَلَأَجْرُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ لِلَّذِينَ آمَنُوا وَكَانُوا يَتَّقُونَ

और जो लोग ईमान लाए और परहेज़गारी करते रहे उनके लिए आख़िरत का अज्र उसी से कही बेहतर है

58

وَجَاءَ إِخْوَةُ يُوسُفَ فَدَخَلُوا عَلَيْهِ فَعَرَفَهُمْ وَهُمْ لَهُ مُنْكِرُونَ

(और चूंकि कनआन में भी कहत (सूखा) था इस वजह से)

यूसुफ के (सौतेले भाई ग़ल्ला ख़रीदने को मिस्र में) आए और यूसुफ के पास गए तो उनको फौरन ही पहचान लिया और वह लोग उनको न पहचान सके

59

وَلَمَّا جَهَّزَهُمْ بِجَهَازِهِمْ قَالَ ائْتُونِي بِأَخٍ لَكُمْ مِنْ أَبِيكُمْ ۚ

और जब यूसुफ ने उनके (ग़ल्ले का) सामान दुरूस्त कर दिया और वह जाने लगे तो यूसुफ़ ने (उनसे कहा) कि (अबकी आना तो) अपने सौतेले भाई को (जिसे घर छोड़ आए हो) मेरे पास लेते आना

أَلَا تَرَوْنَ أَنِّي أُوفِي الْكَيْلَ وَأَنَا خَيْرُ الْمُنْزِلِينَ

क्या तुम नहीं देखते कि मै यक़ीनन नाप भी पूरी देता हूं और बहुत अच्छा मेहमान नवाज़ भी हूँ

60

فَإِنْ لَمْ تَأْتُونِي بِهِ فَلَا كَيْلَ لَكُمْ عِنْدِي وَلَا تَقْرَبُونِ

पस अगर तुम उसको मेरे पास न लाओगे तो तुम्हारे लिए न मेरे पास कुछ न कुछ (ग़ल्ला वग़ैरह) होगा न तुम लोग मेरे क़रीब ही चढ़ने पाओगे

61

قَالُوا سَنُرَاوِدُ عَنْهُ أَبَاهُ وَإِنَّا لَفَاعِلُونَ

वह लोग कहने लगे हम उसके वालिद से उसके बारे में जाते ही दरख्वास्त करेंगे और हम ज़रुर इस काम को पूरा करेंगें

62

وَقَالَ لِفِتْيَانِهِ اجْعَلُوا بِضَاعَتَهُمْ فِي رِحَالِهِمْ

और यूसुफ ने अपने मुलाज़िमों (नौकरों) को हुक्म दिया कि उनकी (जमा) पूंजी उनके बोरो में (चूपके से) रख दो

لَعَلَّهُمْ يَعْرِفُونَهَا إِذَا انْقَلَبُوا إِلَى أَهْلِهِمْ لَعَلَّهُمْ يَرْجِعُونَ

ताकि जब ये लोग अपने एहलो (अयाल) के पास लौट कर जाएं तो अपनी पूंजी को पहचान ले

(और इस लालच में) यायद फिर पलट के आएं

63

فَلَمَّا رَجَعُوا إِلَى أَبِيهِمْ قَالُوا يَا أَبَانَا مُنِعَ مِنَّا الْكَيْلُ

ग़रज़ जब ये लोग अपने वालिद के पास पलट के आए तो सब ने मिलकर अर्ज़ की ऐ अब्बा हमें (आइन्दा) गल्ले मिलने की मुमानिअत (मना) कर दी गई है

فَأَرْسِلْ مَعَنَا أَخَانَا نَكْتَلْ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ

तो आप हमारे साथ हमारे भाई (बिन यामीन) को भेज दीजिए ताकि हम (फिर) गल्ला लाए

और हम उसकी पूरी हिफाज़त करेगें

64

قَالَ هَلْ آمَنُكُمْ عَلَيْهِ إِلَّا كَمَا أَمِنْتُكُمْ عَلَى أَخِيهِ مِنْ قَبْلُ ۖ

याक़ूब ने कहा मै उसके बारे में तुम्हारा ऐतबार नहीं करता मगर वैसा ही जैसा कि उससे पहले उसके मांजाए (भाई) के बारे में किया था

 فَاللَّهُ خَيْرٌ حَافِظًا ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ

तो ख़ुद उसका सबसे बेहतर हिफाज़त करने वाला है

और वही सब से ज्यादा रहम करने वाला है

65

وَلَمَّا فَتَحُوا مَتَاعَهُمْ وَجَدُوا بِضَاعَتَهُمْ رُدَّتْ إِلَيْهِمْ ۖ

और जब उन लोगों ने अपने अपने असबाब खोले तो अपनी अपनी पूंजी को देखा कि (वैसे ही) वापस कर दी गई है

قَالُوا يَا أَبَانَا مَا نَبْغِي ۖ

तो (अपने बाप से) कहने लगे ऐ अब्बा हमें (और) क्या चाहिए

هَذِهِ بِضَاعَتُنَا رُدَّتْ إِلَيْنَا ۖ وَنَمِيرُ أَهْلَنَا وَنَحْفَظُ أَخَانَا

(देखिए) यह हमारी जमा पूंजी हमें वापस दे दी गयी है

और (ग़ल्ला मुफ्त मिला अब इब्ने यामीन को जाने दीजिए तो) हम अपने एहलो अयाल के वास्ते ग़ल्ला लादें और अपने भाई की पूरी हिफाज़त करेगें

 وَنَزْدَادُ كَيْلَ بَعِيرٍ ۖ ذَلِكَ كَيْلٌ يَسِيرٌ

और एक बार यतर ग़ल्ला और बढ़वा लाएंगें ये जो अबकी दफा लाए थे थोड़ा सा ग़ल्ला है

66

قَالَ لَنْ أُرْسِلَهُ مَعَكُمْ حَتَّى تُؤْتُونِ مَوْثِقًا مِنَ اللَّهِ لَتَأْتُنَّنِي بِهِ  إِلَّا أَنْ يُحَاطَ بِكُمْ ۖ

याकूब ने कहा जब तक तुम लोग मेरे सामने खुदा से एहद न कर लोगे कि तुम उसको ज़रुर मुझ तक (सही व सालिम) ले आओगे मै तुम्हारे साथ हरगिज़ उसको न भेजूंगा

मगर हाँ जब तुम खुद घिर जाओ तो मजबूरी है

 فَلَمَّا آتَوْهُ مَوْثِقَهُمْ قَالَ اللَّهُ عَلَى مَا نَقُولُ وَكِيلٌ

फिर जब उन लोगों ने उनके सामने एहद कर लिया तो याक़ूब ने कहा कि हम लोग जो कह रहे हैं ख़ुदा उसका ज़ामिन है

67

‏وَقَالَ يَا بَنِيَّ لَا تَدْخُلُوا مِنْ بَابٍ وَاحِدٍ وَادْخُلُوا مِنْ أَبْوَابٍ مُتَفَرِّقَةٍ ۖ

और याक़ूब ने (नसीहतन चलते वक्त बेटो से) कहा ऐ फरज़न्दों (देखो ख़बरदार) सब के सब एक ही दरवाजे से न दाख़िल होना (कि कहीं नज़र न लग जाए) और मुताफरिक़ (अलग अलग) दरवाज़ों से दाख़िल होना

وَمَا أُغْنِي عَنْكُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ ۖ

और मै तुमसे (उस बात को जो) ख़ुदा की तरफ से (आए) कुछ टाल भी नहीं सकता

إِنِ الْحُكْمُ إِلَّا لِلَّهِ ۖ

हुक्म तो (और असली) ख़ुदा ही के वास्ते है

عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ ۖ وَعَلَيْهِ فَلْيَتَوَكَّلِ الْمُتَوَكِّلُونَ

मैने उसी पर भरोसा किया है

और भरोसा करने वालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए

68

وَلَمَّا دَخَلُوا مِنْ حَيْثُ أَمَرَهُمْ أَبُوهُمْ مَا كَانَ يُغْنِي عَنْهُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ شَيْءٍ

और जब ये सब भाई जिस तरह उनके वालिद ने हुक्म दिया था उसी तरह (मिस्र में) दाख़िल हुए

मगर जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से आने को था उसे याक़ूब कुछ भी टाल नहीं सकते थे

 إِلَّا حَاجَةً فِي نَفْسِ يَعْقُوبَ قَضَاهَا

मगर (हाँ) याक़ूब के दिल में एक तमन्ना थी जिसे उन्होंने भी युं पूरा कर लिया

وَإِنَّهُ لَذُو عِلْمٍ لِمَا عَلَّمْنَاهُ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَعْلَمُونَ

क्योंकि इसमे तो शक़ नहीं कि उसे चूंकि हमने तालीम दी थी साहिबे इल्म ज़रुर था मगर बहुतेरे लोग (उससे भी) वाक़िफ नहीं

69

وَلَمَّا دَخَلُوا عَلَى يُوسُفَ آوَى إِلَيْهِ أَخَاهُ ۖ

और जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूसुफ ने अपने हक़ीक़ी (सगे) भाई को अपने पास (बग़ल में) जगह दी

قَالَ إِنِّي أَنَا أَخُوكَ فَلَا تَبْتَئِسْ بِمَا كَانُوا يَعْمَلُونَ

और (चुपके से) उस (इब्ने यामीन) से कह दिया कि मै तुम्हारा भाई (यूसुफ) हूँ तो जो कुछ (बदसुलूकियाँ) ये लोग तुम्हारे साथ करते रहे हैं उसका रंज न करो

70

فَلَمَّا جَهَّزَهُمْ بِجَهَازِهِمْ جَعَلَ السِّقَايَةَ فِي رَحْلِ أَخِيهِ

फिर जब यूसुफ ने उन का साज़ो सामान सफर ग़ल्ला (वग़ैरह) दुरुस्त करा दिया तो अपने भाई के असबाब में पानी पीने का कटोरा (यूसुफ के इशारे) से रखवा दिया

 ثُمَّ أَذَّنَ مُؤَذِّنٌ أَيَّتُهَا الْعِيرُ إِنَّكُمْ لَسَارِقُونَ

फिर एक मुनादी ललकार के बोला कि ऐ क़ाफ़िले वालों (हो न हो) यक़ीनन तुम्ही लोग ज़रुर चोर हो

71

قَالُوا وَأَقْبَلُوا عَلَيْهِمْ مَاذَا تَفْقِدُونَ

ये सुन कर ये लोग पुकारने वालों की तरफ भिड़ पड़े और कहने लगे (आख़िर) तुम्हारी क्या चीज़ गुम हो गई है

72

قَالُوا نَفْقِدُ صُوَاعَ الْمَلِكِ وَلِمَنْ جَاءَ بِهِ حِمْلُ بَعِيرٍ وَأَنَا بِهِ زَعِيمٌ

उन लोगों ने जवाब दिया कि हमें बादशाह का प्याला नहीं मिलता है

और मै उसका ज़ामिन हूँ कि जो शख़्श उसको ला हाज़िर करेगा उसको एक ऊँट के बोझ बराबर (ग़ल्ला इनाम) मिलेगा

73

قَالُوا تَاللَّهِ لَقَدْ عَلِمْتُمْ مَا جِئْنَا لِنُفْسِدَ فِي الْأَرْضِ وَمَا كُنَّا سَارِقِينَ

तब ये लोग कहने लगे ख़ुदा की क़सम तुम तो जानते हो कि (तुम्हारे) मुल्क में हम फसाद करने की ग़रज़ से नहीं आए थे और हम लोग तो कुछ चोर तो हैं नहीं

74

‏قَالُوا فَمَا جَزَاؤُهُ إِنْ كُنْتُمْ كَاذِبِينَ

तब वह मुलाज़िमीन बोले कि अगर तुम झूठे निकले तो फिर चोर की क्या सज़ा होगी

75

قَالُوا جَزَاؤُهُ مَنْ وُجِدَ فِي رَحْلِهِ فَهُوَ جَزَاؤُهُ ۚ

(वे धड़क) बोल उठे कि उसकी सज़ा ये है कि जिसके बोरे में वह (माल) निकले तो वही उसका बदला है

(तो वह माल के बदले में ग़ुलाम बना लिया जाए)

كَذَلِكَ نَجْزِي الظَّالِمِينَ

हम लोग तो (अपने यहाँ) ज़ालिमों (चोरों) को इसी तरह सज़ा दिया करते हैं

76

فَبَدَأَ بِأَوْعِيَتِهِمْ قَبْلَ وِعَاءِ أَخِيهِ  ثُمَّ اسْتَخْرَجَهَا مِنْ وِعَاءِ أَخِيهِ ۚ

ग़रज़ यूसुफ ने अपने भाई का थैला खोलने ने से क़ब्ल दूसरे भाइयों के थैलों से (तलाशी) शुरू की

उसके बाद (आख़िर में) उस प्याले को यूसुफ ने अपने भाई के थैले से बरामद किया

 كَذَلِكَ كِدْنَا لِيُوسُفَ ۖ

यूसुफ को भाई के रोकने की हमने यू तदबीर बताइ

 مَا كَانَ لِيَأْخُذَ أَخَاهُ فِي دِينِ الْمَلِكِ إِلَّا أَنْ يَشَاءَ اللَّهُ ۚ

वरना (बादशाह मिस्र) के क़ानून के मुवाफिक़ अपने भाई को रोक नहीं सकते थे

نَرْفَعُ دَرَجَاتٍ مَنْ نَشَاءُ ۗ وَفَوْقَ كُلِّ ذِي عِلْمٍ عَلِيمٌ

मगर हाँ जब ख़ुदा चाहे हम जिसे चाहते हैं उसके दर्जे बुलन्द कर देते हैं

और (दुनिया में) हर साहबे इल्म से बढ़कर एक और आलिम है

77

قَالُوا إِنْ يَسْرِقْ فَقَدْ سَرَقَ أَخٌ لَهُ مِنْ قَبْلُ ۚ

(ग़रज़ इब्ने यामीन रोक लिए गए तो)

ये लोग कहने लगे अगर उसने चोरी की तो (कौन ताज्जुब है) इसके पहले इसका भाई (यूसुफ) चोरी कर चुका है

فَأَسَرَّهَا يُوسُفُ فِي نَفْسِهِ وَلَمْ يُبْدِهَا لَهُمْ ۚ

तो यूसुफ ने (उसका कुछ जवाब न दिया) उसको अपने दिल में पोशीदा (छुपाये) रखा और उन पर ज़ाहिर न होने दिया

قَالَ أَنْتُمْ شَرٌّ مَكَانًا ۖوَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا تَصِفُونَ

मगर ये कह दिया कि तुम लोग बड़े ख़ाना ख़राब (बुरे आदमी) हो

और जो (उसके भाई की चोरी का हाल) बयान करते हो ख़ुदा खूब बवाक़िफ है

78

قَالُوا يَا أَيُّهَا الْعَزِيزُ إِنَّ لَهُ أَبًا شَيْخًا كَبِيرًا

(इस पर) उन लोगों ने कहा ऐ अज़ीज़ उस (इब्ने यामीन) के वालिद बहुत बूढ़े (आदमी) हैं

(और इसको बहुत चाहते हैं)

 فَخُذْ أَحَدَنَا مَكَانَهُ ۖ إِنَّا نَرَاكَ مِنَ الْمُحْسِنِينَ

तो आप उसके ऐवज़ (बदले) हम में से किसी को ले लीजिए और उसको छोड़ दीजिए

क्योंकि हम आपको बहुत नेको कार बुर्जुग़ समझते हैं

79

قَالَ مَعَاذَ اللَّهِ أَنْ نَأْخُذَ إِلَّا مَنْ وَجَدْنَا مَتَاعَنَا عِنْدَهُ إِنَّا إِذًا لَظَالِمُونَ

यूसुफ ने कहा माज़ अल्लाह (ये क्यों कर हो सकता है कि) हमने जिसकी पास अपनी चीज़ पाई है उसे छोड़कर दूसरे को पकड़ लें

(अगर हम ऐसा करें) तो हम ज़रुर बड़े बेइन्साफ ठहरे

80

فَلَمَّا اسْتَيْأَسُوا مِنْهُ خَلَصُوا نَجِيًّا ۖ

फिर जब यूसुफ की तरफ से मायूस हुए तो बाहम मशवरा करने के लिए अलग खड़े हुए

قَالَ كَبِيرُهُمْ أَلَمْ تَعْلَمُوا أَنَّ أَبَاكُمْ قَدْ أَخَذَ عَلَيْكُمْ مَوْثِقًا مِنَ اللَّهِ  وَمِنْ قَبْلُ مَا فَرَّطْتُمْ فِي يُوسُفَ ۖ

तो जो शख़्श उन सब में बड़ा था (यहूदा) कहने लगा (भाइयों) क्या तुम को मालूम नहीं कि तुम्हार वालिद ने तुम लोगों से ख़ुदा का एहद करा लिया था

और उससे तुम लोग यूसुफ के बारे में क्या कुछ ग़लती कर ही चुके हो

فَلَنْ أَبْرَحَ الْأَرْضَ حَتَّى يَأْذَنَ لِي أَبِي أَوْ يَحْكُمَ اللَّهُ لِي ۖ وَهُوَ خَيْرُ الْحَاكِمِينَ

तो (भाई) जब तक मेरे वालिद मुझे इजाज़त (न) दें या खुद ख़ुदा मुझे कोई हुक्म (न) दे मै उस सर ज़मीन से हरगिज़ न हटूंगा

और ख़ुदा तो सब हुक्म देने वालो से कहीं बेहतर है

81

ارْجِعُوا إِلَى أَبِيكُمْ فَقُولُوايَا أَبَانَا إِنَّ ابْنَكَ سَرَقَ وَمَا شَهِدْنَا إِلَّا بِمَا عَلِمْنَا وَمَا كُنَّا لِلْغَيْبِ حَافِظِينَ

तुम लोग अपने वालिद के पास पलट के जाओ और उनसे जाकर अर्ज़ करो ऐ अब्बा अपके साहबज़ादे ने चोरी की

और हम लोगों ने तो अपनी समझ के मुताबिक़ उसके ले आने का एहद किया था और हम कुछ (अर्ज़) ग़ैबी (आफत) के निगेहबान थे नहीं

82

وَاسْأَلِ الْقَرْيَةَ الَّتِي كُنَّا فِيهَا وَالْعِيرَ الَّتِي أَقْبَلْنَا فِيهَا ۖ وَإِنَّا لَصَادِقُونَ

और आप इस बस्ती (मिस्र) के लोगों से जिसमें हम लोग थे दरयाफ्त कर लीजिए और इस क़ाफले से भी जिसमें आए हैं (पूछ लीजिए)

और हम यक़ीनन बिल्कुल सच्चे हैं  

83

قَالَ بَلْ سَوَّلَتْ لَكُمْ أَنْفُسُكُمْ أَمْرًا ۖ فَصَبْرٌ جَمِيلٌ ۖ

(ग़रज़ जब उन लोगों ने जाकर बयान किया तो)

याक़ूब न कहा (उसने चोरी नहीं की) बल्कि ये बात तुमने अपने दिल से गढ़ ली है तो (ख़ैर) सब्र (और ख़ुदा का) शुक्र

عَسَى اللَّهُ أَنْ يَأْتِيَنِي بِهِمْ جَمِيعًا ۚ إِنَّهُ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ

ख़ुदा से तो (मुझे) उम्मीद है कि मेरे सब (लड़कों) को मेरे पास पहुँचा दे

बेशक वह बड़ा वाकिफ़ कार हकीम है

84

وَتَوَلَّى عَنْهُمْ وَقَالَ يَا أَسَفَى عَلَى يُوسُفَ وَابْيَضَّتْ عَيْنَاهُ مِنَ الْحُزْنِ فَهُوَ كَظِيمٌ

और याक़ूब ने उन लोगों की तरफ से मुँह फेर लिया और (रोकर) कहने लगे हाए अफसोस यूसुफ पर

और (इस क़दर रोए कि) उनकी ऑंखें सदमे से सफेद हो गई वह तो बड़े रंज के ज़ाबित (झेलने वाले) थे

85

قَالُوا تَاللَّهِ تَفْتَأُ تَذْكُرُ يُوسُفَ حَتَّى تَكُونَ حَرَضًا أَوْ تَكُونَ مِنَ الْهَالِكِينَ

(ये देखकर उनके बेटे) कहने लगे कि आप तो हमेशा यूसुफ को याद ही करते रहिएगा यहाँ तक कि बीमार हो जाएगा या जान ही दे दीजिएगा

86

‏قَالَ إِنَّمَا أَشْكُو بَثِّي وَحُزْنِي إِلَى اللَّهِ  وَأَعْلَمُ مِنَ اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ

याक़ूब ने कहा (मै तुमसे कुछ नहीं कहता) मैं तो अपनी बेक़रारी व रंज की शिकायत ख़ुदा ही से करता हूँ

और ख़ुदा की तरफ से जो बातें मै जानता हूँ तुम नहीं जानते हो

87

يَا بَنِيَّ اذْهَبُوا فَتَحَسَّسُوا مِنْ يُوسُفَ وَأَخِيهِ  وَلَا تَيْأَسُوا مِنْ رَوْحِ اللَّهِ ۖ

ऐ मेरी फरज़न्द (एक बार फिर मिस्र) जाओ और यूसुफ और उसके भाई को (जिस तरह बने) ढूँढ के ले आओ

और ख़ुदा की रहमत से ना उम्मीद न हो

إِنَّهُ لَا يَيْأَسُ مِنْ رَوْحِ اللَّهِ إِلَّا الْقَوْمُ الْكَافِرُونَ

क्योंकि ख़ुदा की रहमत से काफिर लोगो के सिवा और कोई ना उम्मीद नहीं हुआ करता

88

فَلَمَّا دَخَلُوا عَلَيْهِ قَالُوا يَا أَيُّهَا الْعَزِيزُ مَسَّنَا وَأَهْلَنَا الضُّرُّ وَجِئْنَا بِبِضَاعَةٍ مُزْجَاةٍ

फिर जब ये लोग यूसुफ के पास गए तो (बहुत गिड़गिड़ाकर) अर्ज़ की कि ऐ अज़ीज़ हमको और हमारे (सारे) कुनबे को कहत की वजह से बड़ी तकलीफ हो रही है और हम कुछ थोड़ी सी पूंजी लेकर आए हैं

فَأَوْفِ لَنَا الْكَيْلَ وَتَصَدَّقْ عَلَيْنَا ۖإِنَّ اللَّهَ يَجْزِي الْمُتَصَدِّقِينَ

तो हम को (उसके ऐवज़ पर) पूरा ग़ल्ला दिलवा दीजिए और (क़ीमत ही पर नहीं) हम को (अपना) सदक़ा खैरात दीजिए

इसमें तो शक़ नहीं कि ख़ुदा सदक़ा ख़ैरात देने वालों को जजाए ख़ैर देता है  

89

قَالَ هَلْ عَلِمْتُمْ مَا فَعَلْتُمْ بِيُوسُفَ وَأَخِيهِ إِذْ أَنْتُمْ جَاهِلُونَ

(अब तो यूसुफ से न रहा गया)

कहा तुम्हें कुछ मालूम है कि जब तुम जाहिल हो रहे थे तो तुम ने यूसुफ और उसके भाई के साथ क्या क्या सुलूक किए

90

قَالُوا أَإِنَّكَ لَأَنْتَ يُوسُفُ

(उस पर वह लोग चौके) और कहने लगे (हाए) क्या तुम ही यूसुफ हो,

قَالَ أَنَا يُوسُفُ  وَهَذَا أَخِي ۖقَدْ مَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا ۖ

यूसुफ ने कहा हाँ मै ही यूसुफ हूँ और यह मेरा भाई है

बेशक ख़ुदा ने मुझ पर अपना फज़ल व (करम) किया है

إِنَّهُ مَنْ يَتَّقِ وَيَصْبِرْ فَإِنَّ اللَّهَ لَا يُضِيعُ أَجْرَ الْمُحْسِنِينَ

क्या इसमें शक़ नहीं कि जो शख़्श (उससे) डरता है (और मुसीबत में) सब्र करे तो ख़ुदा हरगिज़ (ऐसे नेको कारों का) अज्र बरबाद नहीं करता

91

قَالُوا تَاللَّهِ لَقَدْ آثَرَكَ اللَّهُ عَلَيْنَا وَإِنْ كُنَّا لَخَاطِئِينَ

वह लोग कहने लगे ख़ुदा की क़सम तुम्हें ख़ुदा ने यक़ीनन हम पर फज़ीलत दी है और बेशक हम ही यक़ीनन (अज़सरतापा) ख़तावार थे

92

قَالَ لَا تَثْرِيبَ عَلَيْكُمُ الْيَوْمَ ۖ

यूसुफ ने कहा अब आज से तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं

يَغْفِرُ اللَّهُ لَكُمْ ۖ وَهُوَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ

ख़ुदा तुम्हारे गुनाह माफ फरमाए वह तो सबसे ज्यादा रहीम है

93

اذْهَبُوا بِقَمِيصِي هَذَا فَأَلْقُوهُ عَلَى وَجْهِ أَبِي يَأْتِ بَصِيرًا

ये मेरा कुर्ता ले जाओ और उसको अब्बा जान के चेहरे पर डाल देना कि वह फिर बीना हो जाएंगें (देखने लगेंगे)

وَأْتُونِي بِأَهْلِكُمْ أَجْمَعِينَ

और तुम लोग अपने सब लड़के बालों को लेकर मेरे पास चले आओ

94

وَلَمَّا فَصَلَتِ الْعِيرُ قَالَ أَبُوهُمْ إِنِّي لَأَجِدُ رِيحَ يُوسُفَ ۖ لَوْلَا أَنْ تُفَنِّدُونِ

और जो ही ये काफ़िला मिस्र से चला था कि उन लोगों के वालिद (याक़ूब) ने कहा दिया था कि अगर मुझे सठिया या हुआ न कहो तो बात कहूँ कि मुझे यूसुफ की बू मालूम हो रही है

95

قَالُوا تَاللَّهِ إِنَّكَ لَفِي ضَلَالِكَ الْقَدِيمِ

वह लोग कुनबे वाले (पोते वग़ैराह) कहने लगे आप यक़ीनन अपने पुराने ख़याल (मोहब्बत) में (पड़े हुए) हैं

96

فَلَمَّا أَنْ جَاءَ الْبَشِيرُ أَلْقَاهُ عَلَى وَجْهِهِ فَارْتَدَّ بَصِيرًا ۖ

फिर (यूसुफ की) खुशखबरी देने वाला आया और उनके कुर्ते को उनके चेहरे पर डाल दिया तो याक़ूब फौरन फिर दोबारा ऑंख वाले हो गए

قَالَ أَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ إِنِّي أَعْلَمُ مِنَ اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ

(तब याक़ूब ने बेटों से)

कहा क्यों मै तुमसे न कहता था जो बातें खुदा की तरफ से मै जानता हूँ तुम नहीं जानते

97

قَالُوا يَا أَبَانَا اسْتَغْفِرْ لَنَا ذُنُوبَنَا إِنَّا كُنَّا خَاطِئِينَ

उन लोगों ने अर्ज़ की ऐ अब्बा हमारे गुनाहों की मग़फिरत की (ख़ुदा की बारगाह में) हमारे वास्ते दुआ मॉगिए हम बेशक अज़सरतापा गुनेहगार हैं

98

قَالَ سَوْفَ أَسْتَغْفِرُ لَكُمْ رَبِّي ۖ إِنَّهُ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ

याक़ूब ने कहा मै बहुत जल्द अपने परवरदिगार से तुम्हारी मग़फिरत की दुआ करुगाँ

बेशक वह बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

99

فَلَمَّا دَخَلُوا عَلَى يُوسُفَ آوَى إِلَيْهِ أَبَوَيْهِ وَقَالَ ادْخُلُوا مِصْرَ إِنْ شَاءَ اللَّهُ آمِنِينَ

(ग़रज़) जब फिर ये लोग (मय याकूब के) चले और यूसुफ शहर के बाहर लेने आए तो जब ये लोग यूसुफ के पास पहुँचे तो यूसुफ ने अपने माँ बाप को अपने पास जगह दी और (उनसे) कहा कि अब इन्शा अल्लाह बड़े इत्मिनान से मिस्र में चलिए

100

وَرَفَعَ أَبَوَيْهِ عَلَى الْعَرْشِ وَخَرُّوا لَهُ سُجَّدًا ۖ

(ग़रज़) पहुँचकर यूसुफ ने अपने माँ बाप को तख्त पर बिठाया और सब के सब यूसुफ की ताज़ीम के वास्ते उनके सामने सजदे में गिर पड़े

وَقَالَ يَا أَبَتِ هَذَا تَأْوِيلُ رُؤْيَايَ مِنْ قَبْلُ قَدْ جَعَلَهَا رَبِّي حَقًّا ۖ

(उस वक्त) यूसुफ ने कहा ऐ अब्बा ये ताबीर है मेरे उस पहले ख्वाब की

कि मेरे परवरदिगार ने उसे सच कर दिखाया

وَقَدْ أَحْسَنَ بِي إِذْ أَخْرَجَنِي مِنَ السِّجْنِ وَجَاءَ بِكُمْ مِنَ الْبَدْوِ مِنْ بَعْدِ أَنْ نَزَغَ الشَّيْطَانُ بَيْنِي وَبَيْنَ إِخْوَتِي ۚ

बेशक उसने मेरे साथ एहसान किया जब उसने मुझे क़ैद ख़ाने से निकाला

और बावजूद कि मुझ में और मेरे भाईयों में शैतान ने फसाद डाल दिया था उसके बाद भी आप लोगों को गाँव से (शहर में) ले आया (और मुझसे मिला दिया)

إِنَّ رَبِّي لَطِيفٌ لِمَا يَشَاءُ ۚ إِنَّهُ هُوَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ

बेशक मेरा परवरदिगार जो कुछ करता है उसकी तद्बीर खूब जानता है

बेशक वह बड़ा वाकिफकार हकीम है

101

رَبِّ قَدْ آتَيْتَنِي مِنَ الْمُلْكِ وَعَلَّمْتَنِي مِنْ تَأْوِيلِ الْأَحَادِيثِ ۚ

(उसके बाद यूसुफ ने दुआ की)

ऐ परवरदिगार तूने मुझे मुल्क भी अता फरमाया और मुझे ख्वाब की बातों की ताबीर भी सिखाई

فَاطِرَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ أَنْتَ وَلِيِّي فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۖ تَوَفَّنِي مُسْلِمًا وَأَلْحِقْنِي بِالصَّالِحِينَ

ऐ आसमान और ज़मीन के पैदा करने वाले तू ही मेरा मालिक सरपरस्त है दुनिया में भी और आख़िरत में भी

तू मुझे (दुनिया से) मुसलमान उठाये और मुझे नेको कारों में शामिल फरमा  

102

ذَلِكَ مِنْ أَنْبَاءِ الْغَيْبِ نُوحِيهِ إِلَيْكَ وَمَا كُنْتَ لَدَيْهِمْ إِذْ أَجْمَعُوا أَمْرَهُمْ وَهُمْ يَمْكُرُونَ

(ऐ रसूल) ये किस्सा ग़ैब की ख़बरों में से है जिसे हम तुम्हारे पास वही के ज़रिए भेजते हैं (और तुम्हें मालूम होता है)

वरना जिस वक्त यूसुफ के भाई बाहम अपने काम का मशवरा कर रहे थे और (हलाक की) तदबीरे कर रहे थे तुम उनके पास मौजूद न थे

103

وَمَا أَكْثَرُ النَّاسِ وَلَوْ حَرَصْتَ بِمُؤْمِنِينَ

और कितने ही चाहो मगर बहुतेरे लोग ईमान लाने वाले नहीं हैं

104

وَمَا تَسْأَلُهُمْ عَلَيْهِ مِنْ أَجْرٍ ۚ إِنْ هُوَ إِلَّا ذِكْرٌ لِلْعَالَمِينَ

हालॉकि तुम उनसे (तबलीगे रिसालत का) कोई सिला नहीं मॉगते

और ये (क़ुरान) तो सारे जहाँन के वास्ते नसीहत (ही नसीहत) है

105

وَكَأَيِّنْ مِنْ آيَةٍ فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ يَمُرُّونَ عَلَيْهَاوَهُمْ عَنْهَا مُعْرِضُونَ

और आसमानों और ज़मीन में (ख़ुदा की क़ुदरत की) कितनी निशानियाँ हैं जिन पर ये लोग (दिन रात) ग़ुज़ारा करते हैं

और उससे मुँह फेरे रहते हैं

106

وَمَا يُؤْمِنُ أَكْثَرُهُمْ بِاللَّهِ إِلَّا وَهُمْ مُشْرِكُونَ

और अक्सर लोगों की ये हालत है कि वह ख़ुदा पर ईमान तो नहीं लाते मगर शिर्क किए जाते हैं

107

أَفَأَمِنُوا أَنْ تَأْتِيَهُمْ غَاشِيَةٌ مِنْ عَذَابِ اللَّهِ أَوْ تَأْتِيَهُمُ السَّاعَةُ بَغْتَةً وَهُمْ لَا يَشْعُرُونَ

तो क्या ये लोग इस बात से मुतमइन हो बैठें हैं कि उन पर ख़ुदा का अज़ाब आ पड़े जो उन पर छा जाए

या उन पर अचानक क़यामत ही आ जाए और उनको कुछ ख़बर भी न हो

108

قُلْ هَذِهِ سَبِيلِي أَدْعُو إِلَى اللَّهِ ۚ

(ऐ रसूल) उन से कह दो कि मेरा तरीका तो ये है कि मै (लोगों) को ख़ुदा की तरफ बुलाता हूँ

عَلَى بَصِيرَةٍ أَنَا وَمَنِ اتَّبَعَنِي ۖ

मैं और मेरा पैरव (पीछे चलने वाले) (दोनों) मज़बूत दलील पर हैं

وَسُبْحَانَ اللَّهِ وَمَا أَنَا مِنَ الْمُشْرِكِينَ

और ख़ुदा (हर ऐब व नुक़स से) पाक व पाकीज़ा है और मै मुशरेकीन से नहीं हूँ

109

وَمَا أَرْسَلْنَا مِنْ قَبْلِكَ إِلَّا رِجَالًا نُوحِي إِلَيْهِمْ مِنْ أَهْلِ الْقُرَى ۗ

और (ऐ रसूल) तुमसे पहले भी हम गाँव ही के रहने वाले कुछ मर्दों को (पैग़म्बर बनाकर) भेजा किए है कि हम उन पर वही नाज़िल करते थे

أَفَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ ۗ

तो क्या ये लोग रुए ज़मीन पर चले फिरे नहीं कि ग़ौर करते कि जो लोग उनसे पहले हो गुज़रे हैं उनका अन्जाम क्या हुआ

 وَلَدَارُ الْآخِرَةِ خَيْرٌ لِلَّذِينَ اتَّقَوْا ۗ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

और जिन लोगों ने परहेज़गारी एख्तेयार की उनके लिए आख़िरत का घर (दुनिया से) यक़ीनन कहीं ज्यादा बेहतर है क्या ये लोग नहीं समझते

110

حَتَّى إِذَا اسْتَيْأَسَ الرُّسُلُ وَظَنُّوا أَنَّهُمْ قَدْ كُذِبُوا جَاءَهُمْ نَصْرُنَا

पहले के पैग़म्बरो ने तबलीग़े रिसालत यहाँ वक कि जब (क़ौम के ईमान लाने से) पैग़म्बर मायूस हो गए और उन लोगों ने समझ लिया कि वह झुठलाए गए तो उनके पास हमारी (ख़ास) मदद आ पहुँची

فَنُجِّيَ مَنْ نَشَاءُ ۖ

तो जिसे हमने चाहा नजात दी

وَلَا يُرَدُّ بَأْسُنَا عَنِ الْقَوْمِ الْمُجْرِمِينَ

और हमारा अज़ाब गुनेहगार लोगों के सर से तो टाला नहीं जाता

111

لَقَدْ كَانَ فِي قَصَصِهِمْ عِبْرَةٌ لِأُولِي الْأَلْبَابِ ۗ

इसमें शक़ नहीं कि उन लोगों के किस्सों में अक़लमन्दों के वास्ते (अच्छी ख़ासी) इबरत (व नसीहत) है

مَا كَانَ حَدِيثًا يُفْتَرَى وَلَكِنْ تَصْدِيقَ الَّذِي بَيْنَ يَدَيْهِ وَتَفْصِيلَ كُلِّ شَيْءٍ

ये (क़ुरान) कोई ऐसी बात नहीं है जो (ख्वाहामा ख्वाह) गढ़ ली जाए

बल्कि (जो आसमानी किताबें) इसके पहले से मौजूद हैं उनकी तसदीक़ है

 وَهُدًى وَرَحْمَةً لِقَوْمٍ يُؤْمِنُونَ  

और हर चीज़ की तफसील और ईमानदारों के वास्ते (अज़सरतापा) हिदायत व रहमत है

*********


© Copy Rights:

Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

Email: cmaj37@gmail.com

Visits wef June 2024