Quran Hindi Translation

Surah Al Baqarah

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


1

الم

अलीफ़ लाम मीम

2

ذَلِكَ الْكِتَابُ لَا رَيْبَ ۛ فِيهِ ۛ هُدًى لِلْمُتَّقِينَ

(ये) वह किताब है। जिस (के किताबे खुदा होने) में कुछ भी शक नहीं (ये) परहेज़गारों की रहनुमा है

3

الَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِالْغَيْبِ وَيُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَمِمَّا رَزَقْنَاهُمْ يُنْفِقُونَ

जो ग़ैब पर ईमान लाते हैं और (पाबन्दी से) नमाज़ अदा करते हैं और जो कुछ हमने उनको दिया है उसमें से (राहे खुदा में) ख़र्च करते हैं

4

‏وَالَّذِينَ يُؤْمِنُونَ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْكَ وَمَا أُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَ وَبِالْآخِرَةِ هُمْ يُوقِنُونَ

और जो कुछ तुम पर (ऐ रसूल) और तुम से पहले नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाते हैं और वही आख़िरत का यक़ीन भी रखते हैं

5

أُولَئِكَ عَلَى هُدًى مِنْ رَبِّهِمْ ۖ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ

यही लोग अपने परवरदिगार की हिदायत पर (आमिल) हैं

और यही लोग अपनी दिली मुरादें पाएँगे

6

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا سَوَاءٌ عَلَيْهِمْ أَأَنْذَرْتَهُمْ أَمْ لَمْ تُنْذِرْهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ

बेशक जिन लोगों ने कुफ़्र इख़तेयार किया उनके लिए बराबर है (ऐ रसूल) ख्वाह (चाहे) तुम उन्हें डराओ या न डराओ वह ईमान न लाएँगे

7

خَتَمَ اللَّهُ عَلَى قُلُوبِهِمْ وَعَلَى سَمْعِهِمْ ۖ وَعَلَى أَبْصَارِهِمْ غِشَاوَةٌ ۖ

उनके दिलों पर और उनके कानों पर (नज़र करके) खुदा ने तसदीक़ कर दी है (कि ये ईमान न लाएँगे)

और उनकी ऑंखों पर परदा (पड़ा हुआ) है

وَلَهُمْ عَذَابٌ عَظِيمٌ

और उन्हीं के लिए (बहुत) बड़ा अज़ाब है

8

وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَقُولُ آمَنَّا بِاللَّهِ وَبِالْيَوْمِ الْآخِرِ وَمَا هُمْ بِمُؤْمِنِينَ

और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो (ज़बान से तो) कहते हैं कि हम खुदा पर और क़यामत पर ईमान लाए हालाँकि वह दिल से ईमान नहीं लाए

9

يُخَادِعُونَ اللَّهَ وَالَّذِينَ آمَنُوا وَمَا يَخْدَعُونَ إِلَّا أَنْفُسَهُمْ وَمَا يَشْعُرُونَ

खुदा को और उन लोगों को जो ईमान लाए धोखा देते हैं

हालाँकि वह अपने आपको धोखा देते हैं और कुछ शऊर नहीं रखते हैं

10

فِي قُلُوبِهِمْ مَرَضٌ فَزَادَهُمُ اللَّهُ مَرَضًا ۖ

उनके दिलों में मर्ज़ था ही अब खुदा ने उनके मर्ज़ को और बढ़ा दिया

وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ بِمَا كَانُوا يَكْذِبُونَ

और चूँकि वह लोग झूठ बोला करते थे इसलिए उन पर तकलीफ देह अज़ाब है

11

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ لَا تُفْسِدُوا فِي الْأَرْضِ قَالُوا إِنَّمَا نَحْنُ مُصْلِحُونَ

और जब उनसे कहा जाता है कि मुल्क में फसाद न करते फिरो (तो) कहते हैं कि हम तो सिर्फ इसलाह करते हैं

12

أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ الْمُفْسِدُونَ وَلَكِنْ لَا يَشْعُرُونَ

ख़बरदार हो जाओ बेशक यही लोग फसादी हैं लेकिन समझते नहीं

13

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا كَمَا آمَنَ النَّاسُ قَالُوا أَنُؤْمِنُ كَمَا آمَنَ السُّفَهَاءُ ۗ

और जब उनसे कहा जाता है कि जिस तरह और लोग ईमान लाए हैं तुम भी ईमान लाओ

तो कहते हैं क्या हम भी उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह और बेवकूफ़ लोग ईमान लाएँ,

أَلَا إِنَّهُمْ هُمُ السُّفَهَاءُ وَلَكِنْ لَا يَعْلَمُونَ

ख़बरदार हो जाओ लोग बेवक़ूफ़ हैं लेकिन नहीं जानते

14

وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا وَإِذَا خَلَوْا إِلَى شَيَاطِينِهِمْ قَالُوا إِنَّا مَعَكُمْ إِنَّمَا نَحْنُ مُسْتَهْزِئُونَ

और जब उन लोगों से मिलते हैं जो ईमान ला चुके तो कहते हैं हम तो ईमान ला चुके

और जब अपने शैतानों के साथ तनहा रह जाते हैं तो कहते हैं हम तुम्हारे साथ हैं हम तो (मुसलमानों को) बनाते हैं

15

اللَّهُ يَسْتَهْزِئُ بِهِمْ وَيَمُدُّهُمْ فِي طُغْيَانِهِمْ يَعْمَهُونَ

(वह क्या बनाएँगे) खुदा उनको बनाता है और उनको ढील देता है कि वह अपनी सरकशी में ग़लत पेचाँ (उलझे) रहें

16

أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَى فَمَا رَبِحَتْ تِجَارَتُهُمْ وَمَا كَانُوا مُهْتَدِينَ

यही वह लोग हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही ख़रीद ली,

फिर न उनकी तिजारत ही ने कुछ नफ़ा दिया और न उन लोगों ने हिदायत ही पाई

17

مَثَلُهُمْ كَمَثَلِ الَّذِي اسْتَوْقَدَ نَارًا فَلَمَّا أَضَاءَتْ مَا حَوْلَهُ ذَهَبَ اللَّهُ بِنُورِهِمْ وَتَرَكَهُمْ فِي ظُلُمَاتٍ لَا يُبْصِرُونَ

उन लोगों की मिसाल (तो) उस शख्स की सी है जिसने (रात के वक्त मजमे में) भड़कती हुईआग रौशन की

फिर जब आग (के शोले) ने उसके गिर्दों पेश (चारों ओर) खूब उजाला कर दिया तो खुदा ने उनकी रौशनी ले ली

और उनको घटाटोप अंधेरे में छोड़ दिया

18

صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَرْجِعُونَ

कि अब उन्हें कुछ सुझाई नहीं देता ये लोग बहरे गूँगे अन्धे हैं कि फिर अपनी गुमराही से बाज़ नहीं आ सकते

19

أَوْ كَصَيِّبٍ مِنَ السَّمَاءِ فِيهِ ظُلُمَاتٌ وَرَعْدٌ وَبَرْقٌ يَجْعَلُونَ أَصَابِعَهُمْ فِي آذَانِهِمْ مِنَ الصَّوَاعِقِ حَذَرَ الْمَوْتِ ۚ

या उनकी मिसाल ऐसी है जैसे आसमानी बारिश जिसमें तारिकियाँ

ग़र्ज़ बिजली हो मौत के खौफ से कड़क के मारे अपने कानों में ऊँगलियाँ दे लेते हैं

وَاللَّهُ مُحِيطٌ بِالْكَافِرِينَ

हालाँकि खुदा काफ़िरों को (इस तरह) घेरे हुए है (कि उसक हिल नहीं सकते)  

20

يَكَادُ الْبَرْقُ يَخْطَفُ أَبْصَارَهُمْ ۖ كُلَّمَا أَضَاءَ لَهُمْ مَشَوْا فِيهِ وَإِذَا أَظْلَمَ عَلَيْهِمْ قَامُوا ۚ

क़रीब है कि बिजली उनकी ऑंखों को चौन्धिया दे

जब उनके आगे बिजली चमकी तो उस रौशनी में चल खड़े हुए और जब उन पर अंधेरा छा गया तो (ठिठके के) खड़े हो गए

وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَذَهَبَ بِسَمْعِهِمْ وَأَبْصَارِهِمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

और खुदा चाहता तो यूँ भी उनके देखने और सुनने की कूवतें छीन लेता

बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

21

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اعْبُدُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ وَالَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

ऐ लोगों अपने परवरदिगार की इबादत करो जिसने तुमको और उन लोगों को जो तुम से पहले थे पैदा किया है अजब नहीं तुम परहेज़गार बन जाओ

22

‏الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَرْضَ فِرَاشًا وَالسَّمَاءَ بِنَاءً وَأَنْزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجَ بِهِ مِنَ الثَّمَرَاتِ رِزْقًا لَكُمْ ۖ

जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन का बिछौना और आसमान को छत बनाया

और आसमान से पानी बरसाया फिर उसी ने तुम्हारे खाने के लिए बाज़ फल पैदा किए

فَلَا تَجْعَلُوا لِلَّهِ أَنْدَادًا وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ

पस किसी को खुदा का हमसर न बनाओ हालाँकि तुम खूब जानते हो

23

وَإِنْ كُنْتُمْ فِي رَيْبٍ مِمَّا نَزَّلْنَا عَلَى عَبْدِنَا فَأْتُوا بِسُورَةٍ مِنْ مِثْلِهِ

और अगर तुम लोग इस कलाम से जो हमने अपने बन्दे (मोहम्मद) पर नाज़िल किया है शक में पड़े हो पस अगर तुम सच्चे हो तो तुम (भी) एक सूरा बना लाओ

وَادْعُوا شُهَدَاءَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

और खुदा के सिवा जो भी तुम्हारे मददगार हों उनको भी बुला लो

24

فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا وَلَنْ تَفْعَلُوا فَاتَّقُوا النَّارَ الَّتِي وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ ۖ أُعِدَّتْ لِلْكَافِرِينَ

पस अगर तुम ये नहीं कर सकते हो और हरगिज़ नहीं कर सकोगे तो उस आग से डरो सिके ईधन आदमी और पत्थर होंगे

और काफ़िरों के लिए तैयार की गई है

25

وَبَشِّرِ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أَنَّ لَهُمْ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ ۖ

और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने नेक काम किए उनको (ऐ पैग़म्बर) खुशख़बरी दे दो कि उनके लिए (बेहिश्त के) वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरे जारी हैं

كُلَّمَا رُزِقُوا مِنْهَا مِنْ ثَمَرَةٍ رِزْقًا ۙ قَالُوا هَذَا الَّذِي رُزِقْنَا مِنْ قَبْلُ ۖ وَأُتُوا بِهِ مُتَشَابِهًا ۖ

जब उन्हें इन बाग़ात का कोई मेवा खाने को मिलेगा तो कहेंगे ये तो वही (मेवा है) जो पहले भी हमें खाने को मिल चुका है

(क्योंकि) उन्हें मिलती जुलती सूरत व रंग के (मेवे) मिला करेंगे

وَلَهُمْ فِيهَا أَزْوَاجٌ مُطَهَّرَةٌ ۖ وَهُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

और बेहिश्त में उनके लिए साफ सुथरी बीवियाँ होगी और ये लोग उस बाग़ में हमेशा रहेंगे

26

إِنَّ اللَّهَ لَا يَسْتَحْيِي أَنْ يَضْرِبَ مَثَلًا مَا بَعُوضَةً فَمَا فَوْقَهَا ۚ

बेशक खुदा मच्छर या उससे भी बढ़कर (हक़ीर चीज़) की कोई मिसाल बयान करने में नहीं झेंपता

فَأَمَّا الَّذِينَ آمَنُوا فَيَعْلَمُونَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَبِّهِمْ ۖ وَأَمَّا الَّذِينَ كَفَرُوا فَيَقُولُونَ مَاذَا أَرَادَ اللَّهُ بِهَذَا مَثَلًا ۘ

पस जो लोग ईमान ला चुके हैं वह तो ये यक़ीन जानते हैं कि ये (मिसाल) बिल्कुल ठीक है और ये परवरदिगार की तरफ़ से है

(अब रहे) वह लोग जो काफ़िर है पस वह बोल उठते हैं कि खुदा का उस मिसाल से क्या मतलब है,

يُضِلُّ بِهِ كَثِيرًا وَيَهْدِي بِهِ كَثِيرًا ۚ وَمَا يُضِلُّ بِهِ إِلَّا الْفَاسِقِينَ

ऐसा उदाहरण से ख़ुदा बहतेरो को गुमराही में छोड़ और बहतेरो को निर्देश करता है

मगर गुमराही में छोड़ता भी है तो ऐसे बदकारों को

27

الَّذِينَ يَنْقُضُونَ عَهْدَ اللَّهِ مِنْ بَعْدِ مِيثَاقِهِ وَيَقْطَعُونَ مَا أَمَرَ اللَّهُ بِهِ أَنْ يُوصَلَ وَيُفْسِدُونَ فِي الْأَرْضِ ۚ

जो लोग खुदा के एहदो पैमान को मज़बूत हो जाने के बाद तोड़ डालते हैं

और जिन (ताल्लुक़ात) का खुदा ने हुक्म दिया है उनको क़ताआ कर देते हैं

और मुल्क में फसाद करते फिरते हैं,

أُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ

यही लोग घाटा उठाने वाले हैं

28

كَيْفَ تَكْفُرُونَ بِاللَّهِ وَكُنْتُمْ أَمْوَاتًا فَأَحْيَاكُمْ ۖ

(हाँए) क्यों कर तुम खुदा का इन्कार कर सकते हो हालाँकि तुम (माओं के पेट में) बेजान थे तो उसी ने तुमको ज़िन्दा किया फिर

ثُمَّ يُمِيتُكُمْ ثُمَّ يُحْيِيكُمْ ثُمَّ إِلَيْهِ تُرْجَعُونَ

वही तुमको मार डालेगा, फिर वही तुमको (दोबारा क़यामत में) ज़िन्दा करेगा फिर उसी की तरफ लौटाए जाओगे

29

هُوَ الَّذِي خَلَقَ لَكُمْ مَا فِي الْأَرْضِ جَمِيعًا

वही तो वह (खुदा) है जिसने तुम्हारे (नफ़े) के ज़मीन की कुल चीज़ों को पैदा किया

 ثُمَّ اسْتَوَى إِلَى السَّمَاءِ فَسَوَّاهُنَّ سَبْعَ سَمَاوَاتٍ ۚ وَهُوَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ

फिर आसमान (के बनाने) की तरफ़ मुतावज्जेह हुआ तो सात आसमान हमवार (व मुसतहकम) बना दिए

और वह (खुदा) हर चीज़ से (खूब) वाक़िफ है

30

وَإِذْ قَالَ رَبُّكَ لِلْمَلَائِكَةِ إِنِّي جَاعِلٌ فِي الْأَرْضِ خَلِيفَةً ۖ

और (ऐ रसूल) उस वक्त क़ो याद करो जब तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं (अपना) एक नाएब ज़मीन में बनानेवाला हूँ

قَالُوا أَتَجْعَلُ فِيهَا مَنْ يُفْسِدُ فِيهَا وَيَسْفِكُ الدِّمَاءَ وَنَحْنُ نُسَبِّحُ بِحَمْدِكَ وَنُقَدِّسُ لَكَ ۖ

(फरिश्ते ताज्जुब से) कहने लगे क्या तू ज़मीन ऐसे शख्स को पैदा करेगा जो ज़मीन में फ़साद और खूँरेज़ियाँ करता फिरे

(हालाँकि अगर ख़लीफा बनाना है तो हमारा ज्यादा हक़ है क्योंकि)

हम तेरी तारीफ व तसबीह करते हैं और तेरी पाकीज़गी साबित करते हैं

قَالَ إِنِّي أَعْلَمُ مَا لَا تَعْلَمُونَ

(तब खुदा ने) फरमाया इसमें तो शक ही नहीं कि जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते

31

وَعَلَّمَ آدَمَ الْأَسْمَاءَ كُلَّهَا ثُمَّ عَرَضَهُمْ عَلَى الْمَلَائِكَةِ فَقَالَ أَنْبِئُونِي بِأَسْمَاءِ هَؤُلَاءِ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

और (आदम की हक़ीक़म ज़ाहिर करने की ग़रज़ से) आदम को सब चीज़ों के नाम सिखा दिए फिर उनको फरिश्तों के सामने पेश किया

और फ़रमाया कि अगर तुम अपने दावे में (कि मुस्तहके ख़िलाफ़त हो) सच्चे हो तो मुझे इन चीज़ों के नाम बताओ

32

قَالُوا سُبْحَانَكَ لَا عِلْمَ لَنَا إِلَّا مَا عَلَّمْتَنَا ۖ إِنَّكَ أَنْتَ الْعَلِيمُ الْحَكِيمُ

तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से) अर्ज़ की तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है हम तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते

तू बड़ा जानने वाला, मसलहतों का पहचानने वाला है

33

قَالَ يَا آدَمُ أَنْبِئْهُمْ بِأَسْمَائِهِمْ ۖ

(उस वक्त ख़ुदा ने आदम को)

हुक्म दिया कि ऐ आदम तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो

فَلَمَّا أَنْبَأَهُمْ بِأَسْمَائِهِمْ قَالَ أَلَمْ أَقُلْ لَكُمْ إِنِّي أَعْلَمُ غَيْبَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ

बस जब आदम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए तो खुदा ने फरिश्तों की तरफ ख़िताब करके फरमाया क्यों, मैं तुमसे न कहता था कि मैं आसमानों और ज़मीनों के छिपे हुए राज़ को जानता हूँ,

وَأَعْلَمُ مَا تُبْدُونَ وَمَا كُنْتُمْ تَكْتُمُونَ

और जो कुछ तुम अब ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छिपाते थे (वह सब) जानता हूँ

34

‏وَإِذْ قُلْنَا لِلْمَلَائِكَةِ اسْجُدُوا لِآدَمَ فَسَجَدُوا إِلَّا إِبْلِيسَ أَبَى وَاسْتَكْبَرَ وَكَانَ مِنَ الْكَافِرِينَ

और (उस वक्त क़ो याद करो) जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गए मगर शैतान ने इन्कार किया और ग़ुरूर में आ गया और काफ़िर हो गया

35

‏وَقُلْنَا يَا آدَمُ اسْكُنْ أَنْتَ وَزَوْجُكَ الْجَنَّةَ

और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समैत बेहिश्त में रहा सहा करो

وَكُلَا مِنْهَا رَغَدًا حَيْثُ شِئْتُمَا وَلَا تَقْرَبَا هَذِهِ الشَّجَرَةَ فَتَكُونَا مِنَ الظَّالِمِينَ

और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से ब फराग़त खाओ (पियो) मगर उस दरख्त के पास भी न जाना (वरना) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे

36

‏فَأَزَلَّهُمَا الشَّيْطَانُ عَنْهَا فَأَخْرَجَهُمَا مِمَّا كَانَا فِيهِ ۖ

तब शैतान ने आदम व हौव्वा को (धोखा देकर) वहाँ से डगमगाया और आख़िर कार उनको जिस (ऐश व राहत) में थे उनसे निकाल फेंका

وَقُلْنَا اهْبِطُوا بَعْضُكُمْ لِبَعْضٍ عَدُوٌّ ۖ وَلَكُمْ فِي الْأَرْضِ مُسْتَقَرٌّ وَمَتَاعٌ إِلَى حِينٍ

और हमने कहा (ऐ आदम व हौव्वा) तुम (ज़मीन पर) उतर पड़ो तुममें से एक का एक दुशमन होगा

और ज़मीन में तुम्हारे लिए एक ख़ास वक्त (क़यामत) तक ठहराव और ठिकाना है

37

فَتَلَقَّى آدَمُ مِنْ رَبِّهِ كَلِمَاتٍ فَتَابَ عَلَيْهِ ۚ إِنَّهُ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ

फिर आदम ने अपने परवरदिगार से (माज़रत के चन्द अल्फाज़) सीखे पस खुदा ने उन अल्फाज़ की बरकत से आदम की तौबा कुबूल कर ली

बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला मेहरबान है

38

قُلْنَا اهْبِطُوا مِنْهَا جَمِيعًا ۖ فَإِمَّا يَأْتِيَنَّكُمْ مِنِّي هُدًى فَمَنْ تَبِعَ هُدَايَ فَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

(और जब आदम को) ये हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो

(तो भी कह दिया था कि) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो (उसकी पैरवी करना)

(क्योंकि) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर (क़यामत) में न कोई ख़ौफ होगा और न वह रंजीदा होगे

39

وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآيَاتِنَا أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

और (ये भी याद रखो) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं

और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे

40

يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَوْفُوا بِعَهْدِي أُوفِ بِعَهْدِكُمْ وَإِيَّايَ فَارْهَبُونِ

ऐ बनी इसराईल (याक़ूब की औलाद) मेरे उन एहसानात को याद करो जो तुम पर पहले कर चुके हैं

और तुम मेरे एहद व इक़रार (ईमान) को पूरा करो तो मैं तुम्हारे एहद (सवाब) को पूरा करूँगा, और मुझ ही से डरते रहो

41

وَآمِنُوا بِمَا أَنْزَلْتُ مُصَدِّقًا لِمَا مَعَكُمْ وَلَا تَكُونُوا أَوَّلَ كَافِرٍ بِهِ ۖ وَلَا تَشْتَرُوا بِآيَاتِي ثَمَنًا قَلِيلًا وَإِيَّايَ فَاتَّقُونِ

और जो (कुरान) मैंने नाज़िल किया वह उस किताब (तौरेत) की (भी) तसदीक़ करता हूँ जो तुम्हारे पास है और तुम सबसे चले उसके इन्कार पर मौजूद न हो जाओ

और मेरी आयतों के बदले थोड़ी क़ीमत (दुनयावी फायदा) न लो और मुझ ही से डरते रहो  

42

وَلَا تَلْبِسُوا الْحَقَّ بِالْبَاطِلِ وَتَكْتُمُوا الْحَقَّ وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ

और हक़ को बातिल के साथ न मिलाओ और हक़ बात को न छिपाओ हालाँकि तुम जानते हो और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो

43

وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ وَارْكَعُوا مَعَ الرَّاكِعِينَ

और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो और ज़कात दिया करो और जो लोग (हमारे सामने) इबादत के लिए झुकते हैं उनके साथ तुम भी झुका करो

44

أَتَأْمُرُونَ النَّاسَ بِالْبِرِّ وَتَنْسَوْنَ أَنْفُسَكُمْ وَأَنْتُمْ تَتْلُونَ الْكِتَابَ ۚ أَفَلَا تَعْقِلُونَ

और तुम लोगों से नेकी करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते हालाँकि तुम किताबे खुदा को (बराबर) रटा करते हो

तो तुम क्या इतना भी नहीं समझते

45

وَاسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ وَإِنَّهَا لَكَبِيرَةٌ إِلَّا عَلَى الْخَاشِعِينَ

और (मुसीबत के वक्त) सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो

और अलबत्ता नमाज़ दूभर तो है मगर उन ख़ाक़सारों पर (नहीं) जो बख़ूबी जानते हैं  

46

الَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُمْ مُلَاقُو رَبِّهِمْ وَأَنَّهُمْ إِلَيْهِ رَاجِعُونَ

कि वह अपने परवरदिगार की बारगाह में हाज़िर होंगे और ज़रूर उसकी तरफ लौट जाएँगे

47

يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ

ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी

और ये (भी तो सोचो) कि हमने तुमको सारे जहान के लोगों से बढ़ा दिया

48

وَاتَّقُوا يَوْمًا لَا تَجْزِي نَفْسٌ عَنْ نَفْسٍ شَيْئًا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا شَفَاعَةٌ وَلَا يُؤْخَذُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ

और उस दिन से डरो (जिस दिन) कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदिया हो सकेगा

और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न उसका कोई मुआवज़ा लिया जाएगा

और न वह मदद पहुँचाए जाएँगे

49

وَإِذْ نَجَّيْنَاكُمْ مِنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَسُومُونَكُمْ سُوءَ الْعَذَابِيُذَبِّحُونَ أَبْنَاءَكُمْ وَيَسْتَحْيُونَ نِسَاءَكُمْ ۚ

और (उस वक्त क़ो याद करो) जब हमने तुम्हें (तुम्हारे बुर्ज़गो को) फिरऔन (के पन्जे) से छुड़ाया जो तुम्हें बड़े-बड़े दुख दे के सताते थे

तुम्हारे लड़कों पर छुरी फेरते थे और तुम्हारी औरतों को (अपनी ख़िदमत के लिए) ज़िन्दा रहने देते थे

وَفِي ذَلِكُمْ بَلَاءٌ مِنْ رَبِّكُمْ عَظِيمٌ

और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारे सब्र की) सख्त आज़माइश थी

50

وَإِذْ فَرَقْنَا بِكُمُ الْبَحْرَ فَأَنْجَيْنَاكُمْ وَأَغْرَقْنَا آلَ فِرْعَوْنَ وَأَنْتُمْ تَنْظُرُونَ

और (वह वक्त भी याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए दरिया को टुकड़े-टुकड़े किया फिर हमने तुमको छुटकारा दिया

और फिरऔन के आदमियों को तुम्हारे देखते-देखते डुबो दिया

51

وَإِذْ وَاعَدْنَا مُوسَى أَرْبَعِينَ لَيْلَةً ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِنْ بَعْدِهِ وَأَنْتُمْ ظَالِمُونَ

और (वह वक्त भी याद करो) जब हमने मूसा से चालीस रातों का वायदा किया था और तुम लोगों ने उनके जाने के बाद एक बछड़े को (परसतिश के लिए खुदा) बना लिया

हालाँकि तुम अपने ऊपर ज़ुल्म जोत रहे थे

52

ثُمَّ عَفَوْنَا عَنْكُمْ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

फिर हमने उसके बाद भी दरगुज़र की ताकि तुम शुक्र करो

53

وَإِذْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَالْفُرْقَانَ لَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ

और (वह वक्त भी याद करो) जब मूसा को (तौरेत) अता की और हक़ और बातिल को जुदा करनेवाला क़ानून (इनायत किया) ताके तुम हिदायत पाओ

54

وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ يَا قَوْمِ إِنَّكُمْ ظَلَمْتُمْ أَنْفُسَكُمْ بِاتِّخَاذِكُمُ الْعِجْلَ فَتُوبُوا إِلَى بَارِئِكُمْ فَاقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ

और (वह वक्त भी याद करो) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि ऐ मेरी क़ौम तुमने बछड़े को (ख़ुदा) बना के अपने ऊपर बड़ा सख्त जुल्म किया

तो अब (इसके सिवा कोई चारा नहीं कि) तुम अपने ख़ालिक की बारगाह में तौबा करो और वह ये है कि अपने को क़त्ल कर डालो

 فَتُوبُوا إِلَى بَارِئِكُمْ فَاقْتُلُوا أَنْفُسَكُمْ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ عِنْدَ بَارِئِكُمْ

तुम्हारे परवरदिगार के नज़दीक तुम्हारे हक़ में यही बेहतर है,

 فَتَابَ عَلَيْكُمْ ۚ إِنَّهُ هُوَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ

फिर जब तुमने ऐसा किया तो खुदा ने तुम्हारी तौबा क़ुबूल कर ली

बेशक वह बड़ा मेहरबान माफ़ करने वाला है

55

وَإِذْ قُلْتُمْ يَا مُوسَى لَنْ نُؤْمِنَ لَكَ حَتَّى نَرَى اللَّهَ جَهْرَةً فَأَخَذَتْكُمُ الصَّاعِقَةُ وَأَنْتُمْ تَنْظُرُونَ

और (वह वक्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा था कि ऐ मूसा हम तुम पर उस वक्त तक ईमान न लाएँगे जब तक हम खुदा को ज़ाहिर बज़ाहिर न देख ले

उस पर तुम्हें बिजली ने ले डाला, और तुम तकते ही रह गए

56

ثُمَّ بَعَثْنَاكُمْ مِنْ بَعْدِ مَوْتِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

फिर तुम्हें तुम्हारे मरने के बाद हमने जिला उठाया ताकि तुम शुक्र करो

57

وَظَلَّلْنَا عَلَيْكُمُ الْغَمَامَ وَأَنْزَلْنَا عَلَيْكُمُ الْمَنَّ وَالسَّلْوَى ۖ كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ ۖ

और हमने तुम पर अब्र का साया किया और तुम पर मन व सलवा उतारा

और (ये भी तो कह दिया था कि) जो सुथरी व नफीस रोज़िया तुम्हें दी हैं उन्हें शौक़ से खाओ,

وَمَا ظَلَمُونَا وَلَكِنْ كَانُوا أَنْفُسَهُمْ يَظْلِمُونَ

और उन लोगों ने हमारा तो कुछ बिगड़ा नहीं मगर अपनी जानों पर सितम ढाते रहे

58

وَإِذْ قُلْنَا ادْخُلُوا هَذِهِ الْقَرْيَةَ فَكُلُوا مِنْهَا حَيْثُ شِئْتُمْ رَغَدًا وَادْخُلُوا الْبَابَ سُجَّدًا وَقُولُوا حِطَّةٌ نَغْفِرْ لَكُمْ خَطَايَاكُمْ ۚ

और (वह वक्त भी याद करो) जब हमने तुमसे कहा कि इस गाँव (अरीहा) में जाओ और इसमें जहाँ चाहो फराग़त से खाओ (पियो)

और दरवाज़े पर सजदा करते हुए और ज़बान से हित्ता बख्शिश कहते हुए आओ तो हम तुम्हारी ख़ता ये बख्श देगे

وَسَنَزِيدُ الْمُحْسِنِينَ

और हम नेकी करने वालों की नेकी (सवाब) बढ़ा देगें

59

فَبَدَّلَ الَّذِينَ ظَلَمُوا قَوْلًا غَيْرَ الَّذِي قِيلَ لَهُمْ فَأَنْزَلْنَا عَلَى الَّذِينَ ظَلَمُوا رِجْزًا مِنَ السَّمَاءِ بِمَا كَانُوا يَفْسُقُونَ

तो जो बात उनसे कही गई थी उसे शरीरों ने बदलकर दूसरी बात कहनी शुरू कर दी

तब हमने उन लोगों पर जिन्होंने शरारत की थी उनकी बदकारी की वजह से आसमानी बला नाज़िल की

60

وَإِذِ اسْتَسْقَى مُوسَى لِقَوْمِهِ فَقُلْنَا اضْرِبْ بِعَصَاكَ الْحَجَرَ ۖ

और (वह वक्त भी याद करो) जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी माँगा तो हमने कहा (ऐ मूसा) अपनी लाठी पत्थर पर मारो

فَانْفَجَرَتْ مِنْهُ اثْنَتَا عَشْرَةَ عَيْنًا ۖ قَدْ عَلِمَ كُلُّ أُنَاسٍ مَشْرَبَهُمْ ۖ

(लाठी मारते ही) उसमें से बारह चश्में फूट निकले

और सब लोगों ने अपना-अपना घाट बखूबी जान लिया

كُلُوا وَاشْرَبُوا مِنْ رِزْقِ اللَّهِ وَلَا تَعْثَوْا فِي الْأَرْضِ مُفْسِدِينَ

और हमने आम इजाज़त दे दी कि खुदा की दी हुईरोज़ी से खाओ पियो और मुल्क में फसाद न करते फिरो

61

وَإِذْ قُلْتُمْ يَا مُوسَى لَنْ نَصْبِرَ عَلَى طَعَامٍ وَاحِدٍ

(और वह वक्त भी याद करो) जब तुमने मूसा से कहा कि ऐ मूसा हमसे एक ही खाने पर न रहा जाएगा

فَادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُخْرِجْ لَنَا مِمَّا تُنْبِتُ الْأَرْضُ مِنْ بَقْلِهَا وَقِثَّائِهَا وَفُومِهَا وَعَدَسِهَا وَبَصَلِهَا ۖ

तो आप हमारे लिए अपने परवरदिगार से दुआ कीजिए कि जो चीज़े ज़मीन से उगती है जैसे साग पात तरकारी और ककड़ी और गेहूँ या (लहसुन) और मसूर और प्याज़ (मन व सलवा) की जगह पैदा करें

قَالَ أَتَسْتَبْدِلُونَ الَّذِي هُوَ أَدْنَى بِالَّذِي هُوَ خَيْرٌ ۚ اهْبِطُوا مِصْرًا فَإِنَّ لَكُمْ مَا سَأَلْتُمْ ۗ

(मूसा ने) कहा क्या तुम ऐसी चीज़ को जो हर तरह से बेहतर है अदना चीज़ से बदलन चाहते हो

तो किसी शहर में उतर पड़ो फिर तुम्हारे लिए जो तुमने माँगा है सब मौजूद है

وَضُرِبَتْ عَلَيْهِمُ الذِّلَّةُ وَالْمَسْكَنَةُ وَبَاءُوا بِغَضَبٍ مِنَ اللَّهِ ۗ

और उन पर रूसवाई और मोहताजी की मार पड़ी और उन लोगों ने क़हरे खुदा की तरफ पलटा खाया,

ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانُوا يَكْفُرُونَ بِآيَاتِ اللَّهِ وَيَقْتُلُونَ النَّبِيِّينَ بِغَيْرِ الْحَقِّ ۗ ذَلِكَ بِمَا عَصَوْا وَكَانُوا يَعْتَدُونَ

ये सब इस सबब से हुआ कि वह लोग खुदा की निशानियों से इन्कार करते थे और पैग़म्बरों को नाहक शहीद करते थे,

और इस वजह से (भी) कि वह नाफ़रमानी और सरकशी किया करते थे

62

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَادُوا وَالنَّصَارَى وَالصَّابِئِينَ ‏  

बेशक मुसलमानों और यहूदियों और नसरानियों और ला मज़हबों में से

مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَعَمِلَ صَالِحًا فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ

जो कोई खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए और अच्छे-अच्छे काम करता रहे तो उन्हीं के लिए उनका अज्र व सवाब उनके खुदा के पास है

وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

और न (क़यामत में) उन पर किसी का ख़ौफ होगा न वह रंजीदा दिल होंगे

63

وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّورَ خُذُوا مَا آتَيْنَاكُمْ بِقُوَّةٍ وَاذْكُرُوا مَا فِيهِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

और (वह वक्त याद करो) जब हमने (तामीले तौरेत) का तुमसे एक़रार कर लिया और हमने तुम्हारे सर पर तूर से (पहाड़ को) लाकर लटकाया

और कह दिया कि तौरेत जो हमने तुमको दी है उसको मज़बूत पकड़े रहो और जो कुछ उसमें है उसको याद रखो ताकि तुम परहेज़गार बनो

64

ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ ۖ فَلَوْلَا فَضْلُ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَتُهُ لَكُنْتُمْ مِنَ الْخَاسِرِينَ

फिर उसके बाद तुम (अपने एहदो पैमान से) फिर गए पस

अगर तुम पर खुदा का फज़ल और उसकी मेहरबानी न होती तो तुमने सख्त घाटा उठाया होता

65

وَلَقَدْ عَلِمْتُمُ الَّذِينَ اعْتَدَوْا مِنْكُمْ فِي السَّبْتِ فَقُلْنَا لَهُمْ كُونُوا قِرَدَةً خَاسِئِينَ

और अपनी क़ौम से उन लोगों की हालत तो तुम बखूबी जानते हो जो शम्बे (सनीचर) के दिन अपनी हद से गुज़र गए (कि बावजूद मुमानिअत शिकार खेलने निकले)

तो हमने उन से कहा कि तुम राइन्दे गए बन्दर बन जाओ (और वह बन्दर हो गए)

66

فَجَعَلْنَاهَا نَكَالًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهَا وَمَا خَلْفَهَا وَمَوْعِظَةً لِلْمُتَّقِينَ

पस हमने इस वाक़ये से उन लोगों के वास्ते जिन के सामने हुआ था और जो उसके बाद आनेवाले थे अज़ाब क़रार दिया, और परहेज़गारों के लिए नसीहत

67

وَإِذْ قَالَ مُوسَى لِقَوْمِهِ إِنَّ اللَّهَ يَأْمُرُكُمْ أَنْ تَذْبَحُوا بَقَرَةً ۖ

और (वह वक्त याद करो) जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा कि खुदा तुम लोगों को ताकीदी हुक्म करता है कि तुम एक गाय ज़िबाह करो

قَالُوا أَتَتَّخِذُنَا هُزُوًا ۖ

वह लोग कहने लगे क्या तुम हमसे दिल्लगी करते हो

قَالَ أَعُوذُ بِاللَّهِ أَنْ أَكُونَ مِنَ الْجَاهِلِينَ

मूसा ने कहा मैं खुदा से पनाह माँगता हूँ कि मैं जाहिल बनूँ

68

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَنَا مَا هِيَ ۚ

(तब) वह लोग कहने लगे कि (अच्छा) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें बता दे कि वह गाय कैसी हो

قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ لَا فَارِضٌ وَلَا بِكْرٌ عَوَانٌ بَيْنَ ذَلِكَ ۖ  فَافْعَلُوا مَا تُؤْمَرُونَ

मूसा ने कहा बेशक खुदा ने फरमाता है कि वह गाय न तो बहुत बूढ़ी हो और न बछिया बल्कि उनमें से औसत दरजे की हो,

ग़रज़ जो तुमको हुक्म दिया गया उसको बजा लाओ

69

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَنَا مَا لَوْنُهَا ۚ

वह कहने लगे (वाह) तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ये बता दे कि उसका रंग आख़िर क्या हो

قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ صَفْرَاءُ فَاقِعٌ لَوْنُهَا تَسُرُّ النَّاظِرِينَ

मूसा ने कहा बेशक खुदा फरमाता है कि वह गाय खूब गहरे ज़र्द रंग की हो देखने वाले उसे देखकर खुश हो जाए

70

قَالُوا ادْعُ لَنَا رَبَّكَ يُبَيِّنْ لَنَا مَا هِيَ إِنَّ الْبَقَرَ تَشَابَهَ عَلَيْنَا وَإِنَّا إِنْ شَاءَ اللَّهُ لَمُهْتَدُونَ

तब कहने लगे कि तुम अपने खुदा से दुआ करो कि हमें ज़रा ये तो बता दे कि वह (गाय) और कैसी हो (वह) गाय तो और गायों में मिल जुल गई

और खुदा ने चाहा तो हम ज़रूर (उसका) पता लगा लेगे

71

قَالَ إِنَّهُ يَقُولُ إِنَّهَا بَقَرَةٌ لَا ذَلُولٌ تُثِيرُ الْأَرْضَ وَلَا تَسْقِي الْحَرْثَ مُسَلَّمَةٌ لَا شِيَةَ فِيهَا ۚ

मूसा ने कहा खुदा ज़रूर फरमाता है कि वह गाय न तो इतनी सधाई हो कि ज़मीन जोते न खेती सीचें भली चंगी एक रंग की कि उसमें कोई धब्बा तक न हो,

قَالُوا الْآنَ جِئْتَ بِالْحَقِّ ۚ فَذَبَحُوهَا وَمَا كَادُوا يَفْعَلُونَ

वह बोले अब (जा के) ठीक-ठीक बयान किया,

ग़रज़ उन लोगों ने वह गाय हलाल की हालाँकि उनसे उम्मीद न थी वह कि वह ऐसा करेंगे

72

وَإِذْ قَتَلْتُمْ نَفْسًا فَادَّارَأْتُمْ فِيهَا ۖ وَاللَّهُ مُخْرِجٌ مَا كُنْتُمْ تَكْتُمُونَ

और जब एक शख्स को मार डाला और तुममें उसकी बाबत फूट पड़ गई एक दूसरे को क़ातिल बताने लगा

जो तुम छिपाते थे खुदा को उसका ज़ाहिर करना मंजूर था

73

فَقُلْنَا اضْرِبُوهُ بِبَعْضِهَا ۚ

(मुसलमानों) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा (सा) ईमान लाएँगें

 كَذَلِكَ يُحْيِي اللَّهُ الْمَوْتَى وَيُرِيكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ

हालाँकि उनमें का एक गिरोह (साबिक़ में) ऐसा था कि खुदा का कलाम सुनाता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खूब जानते थे

74

ثُمَّ قَسَتْ قُلُوبُكُمْ مِنْ بَعْدِ ذَلِكَ فَهِيَ كَالْحِجَارَةِ أَوْ أَشَدُّ قَسْوَةً ۚ

ताकि तुम समझो फिर उसके बाद तुम्हारे दिल सख्त हो गये पस वह मिसल पत्थर के (सख्त) थे या उससे भी ज्यादा करख्त

وَإِنَّ مِنَ الْحِجَارَةِ لَمَا يَتَفَجَّرُ مِنْهُ الْأَنْهَارُ ۚ

क्योंकि पत्थरों में बाज़ तो ऐसे होते हैं कि उनसे नहरें जारी हो जाती हैं

وَإِنَّ مِنْهَا لَمَا يَشَّقَّقُ فَيَخْرُجُ مِنْهُ الْمَاءُ ۚ

और बाज़ ऐसे होते हैं कि उनमें दरार पड़ जाती है और उनमें से पानी निकल पड़ता है

وَإِنَّ مِنْهَا لَمَا يَهْبِطُ مِنْ خَشْيَةِ اللَّهِ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

और बाज़ पत्थर तो ऐसे होते हैं कि खुदा के ख़ौफ से गिर पड़ते हैं

और जो कुछ तुम कर रहे हो उससे खुदा ग़ाफिल नहीं है

75

أَفَتَطْمَعُونَ أَنْ يُؤْمِنُوا لَكُمْ

(मुसलमानों) क्या तुम ये लालच रखते हो कि वह तुम्हारा (सा) ईमान लाएँगें

وَقَدْ كَانَ فَرِيقٌ مِنْهُمْ يَسْمَعُونَ كَلَامَ اللَّهِ ثُمَّ يُحَرِّفُونَهُ مِنْ بَعْدِ مَا عَقَلُوهُ وَهُمْ يَعْلَمُونَ

हालाँकि उनमें का एक गिरोह (साबिक़ में) ऐसा था कि खुदा का कलाम सुनाता था और अच्छी तरह समझने के बाद उलट फेर कर देता था हालाँकि वह खूब जानते थे

76

‏وَإِذَا لَقُوا الَّذِينَ آمَنُوا قَالُوا آمَنَّا

और जब उन लोगों से मुलाक़ात करते हैं जो ईमान लाए तो कह देते हैं कि हम तो ईमान ला चुके

وَإِذَا خَلَا بَعْضُهُمْ إِلَى بَعْضٍ قَالُوا أَتُحَدِّثُونَهُمْ بِمَا فَتَحَ اللَّهُ عَلَيْكُمْ لِيُحَاجُّوكُمْ بِهِ عِنْدَ رَبِّكُمْ ۚ

और जब उनसे बाज़-बाज़ के साथ तख़िलया करते हैं तो कहते हैं कि जो कुछ खुदा ने तुम पर (तौरेत) में ज़ाहिर कर दिया है क्या तुम (मुसलमानों को) बता दोगे

ताकि उसके सबब से कल तुम्हारे खुदा के पास तुम पर हुज्जत लाएँ

أَفَلَا تَعْقِلُونَ

क्या तुम इतना भी नहीं समझते

77

أَوَلَا يَعْلَمُونَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ

लेकिन क्या वह लोग (इतना भी) नहीं जानते कि वह लोग जो कुछ छिपाते हैं या ज़ाहिर करते हैं खुदा सब कुछ जानता है

78

وَمِنْهُمْ أُمِّيُّونَ لَا يَعْلَمُونَ الْكِتَابَ إِلَّا أَمَانِيَّ وَإِنْ هُمْ إِلَّا يَظُنُّونَ

और कुछ उनमें से ऐसे अनपढ़ हैं कि वह किताबे खुदा को अपने मतलब की बातों के सिवा कुछ नहीं समझते

और वह फक़त ख्याली बातें किया करते हैं,

79

فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ يَكْتُبُونَ الْكِتَابَ بِأَيْدِيهِمْ ثُمَّ يَقُولُونَ هَذَا مِنْ عِنْدِ اللَّهِ لِيَشْتَرُوا بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا ۖ

पस वाए हो उन लोगों पर जो अपने हाथ से किताब लिखते हैं फिर (लोगों से कहते फिरते) हैं कि ये खुदा के यहाँ से (आई) है ताकि उसके ज़रिये से थोड़ी सी क़ीमत (दुनयावी फ़ायदा) हासिल करें

فَوَيْلٌ لَهُمْ مِمَّا كَتَبَتْ أَيْدِيهِمْ وَوَيْلٌ لَهُمْ مِمَّا يَكْسِبُونَ

पस अफसोस है उन पर कि उनके हाथों ने लिखा

और फिर अफसोस है उनपर कि वह ऐसी कमाई करते हैं

80

وَقَالُوا لَنْ تَمَسَّنَا النَّارُ إِلَّا أَيَّامًا مَعْدُودَةً ۚ

और कहते हैं कि गिनती के चन्द दिनों के सिवा हमें आग छुएगी भी तो नहीं

قُلْ أَتَّخَذْتُمْ عِنْدَ اللَّهِ عَهْدًا فَلَنْ يُخْلِفَ اللَّهُ عَهْدَهُ ۖ أَمْ تَقُولُونَ عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ

(ऐ रसूल) इन लोगों से कहो कि क्या तुमने खुदा से कोई इक़रार ले लिया है कि फिर वह किसी तरह अपने इक़रार के ख़िलाफ़ हरगिज़ न करेगा

या बे समझे बूझे खुदा पर बोहताव जोड़ते हो

81

بَلَى مَنْ كَسَبَ سَيِّئَةً وَأَحَاطَتْ بِهِ خَطِيئَتُهُ فَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

हाँ (सच तो यह है) कि जिसने बुराई हासिल की और उसके गुनाहों ने चारों तरफ से उसे घेर लिया है वही लोग तो दोज़ख़ी हैं

और वही (तो) उसमें हमेशा रहेंगे

82

وَالَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَئِكَ أَصْحَابُ الْجَنَّةِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

और जो लोग ईमानदार हैं और उन्होंने अच्छे काम किए हैं वही लोग जन्नती हैं

कि हमेशा जन्नत में रहेंगे

83

وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَ بَنِي إِسْرَائِيلَ لَا تَعْبُدُونَ إِلَّا اللَّهَ

और (वह वक्त याद करो) जब हमने बनी ईसराइल से (जो तुम्हारे बुर्जुग़ थे) अहद व पैमान लिया था कि खुदा के सिवा किसी की इबादत न करना

وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا وَذِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ

और माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों के साथ अच्छे सुलूक करना

और लोगों के साथ अच्छी तरह (नरमी) से बातें करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात देना

 ثُمَّ تَوَلَّيْتُمْ إِلَّا قَلِيلًا مِنْكُمْ وَأَنْتُمْ مُعْرِضُونَ

फिर तुममें से थोड़े आदिमियों के सिवा (सब के सब) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले

84

وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ لَا تَسْفِكُونَ دِمَاءَكُمْ وَلَا تُخْرِجُونَ أَنْفُسَكُمْ مِنْ دِيَارِكُمْ

और (वह वक्त याद करो) जब हमने तुम (तुम्हारे बुर्ज़ुगों) से अहद लिया था कि आपस में खूरेज़ियाँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना

ثُمَّ أَقْرَرْتُمْ وَأَنْتُمْ تَشْهَدُونَ

तो तुम (तुम्हारे बुर्जुग़ों) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो

(कि हाँ ऐसा हुआ था)

85

ثُمَّ أَنْتُمْ هَؤُلَاءِ تَقْتُلُونَ أَنْفُسَكُمْ

फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो

 وَتُخْرِجُونَ فَرِيقًا مِنْكُمْ مِنْ دِيَارِهِمْ تَظَاهَرُونَ عَلَيْهِمْ بِالْإِثْمِ وَالْعُدْوَانِ 

और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो

وَإِنْ يَأْتُوكُمْ أُسَارَى تُفَادُوهُمْ وَهُوَ مُحَرَّمٌ عَلَيْكُمْ إِخْرَاجُهُمْ ۚ

(और लुत्फ़ तो ये है कि)

अगर वही लोग क़ैदी बनकर तम्हारे पास (मदद माँगने) आए तो उनको तावान देकर छुड़ा लेते हो

हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था

أَفَتُؤْمِنُونَ بِبَعْضِ الْكِتَابِ وَتَكْفُرُونَ بِبَعْضٍ ۚ

तो फिर क्या तुम (किताबे खुदा की) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो

 فَمَا جَزَاءُ مَنْ يَفْعَلُ ذَلِكَ مِنْكُمْ إِلَّا خِزْيٌ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا ۖ

पस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि ज़िन्दगी भर की रूसवाई हो

وَيَوْمَ الْقِيَامَةِ يُرَدُّونَ إِلَى أَشَدِّ الْعَذَابِ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

और (आख़िरकार) क़यामत के दिन सख्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए

और जो कुछ तुम लोग करते हो खुदा उससे ग़ाफ़िल नहीं है

86

أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الْحَيَاةَ الدُّنْيَا بِالْآخِرَةِ ۖ  فَلَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ

यही वह लोग हैं जिन्होंने आख़ेरत के बदले दुनिया की ज़िन्दगी ख़रीद

पस न उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग किसी तरह की मदद दिए जाएँगे

87

وَلَقَدْ آتَيْنَا مُوسَى الْكِتَابَ وَقَفَّيْنَا مِنْ بَعْدِهِ بِالرُّسُلِ ۖ

और ये हक़ीक़ी बात है कि हमने मूसा को किताब (तौरेत) दी और उनके बाद बहुत से पैग़म्बरों को उनके क़दम ब क़दम ले चलें

وَآتَيْنَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ الْبَيِّنَاتِ وَأَيَّدْنَاهُ بِرُوحِ الْقُدُسِ ۗ

और मरियम के बेटे ईसा को (भी बहुत से) वाजेए व रौशन मौजिजे दिए और पाक रूह जिबरील के ज़रिये से उनकी मदद की

أَفَكُلَّمَا جَاءَكُمْ رَسُولٌ بِمَا لَا تَهْوَى أَنْفُسُكُمُ اسْتَكْبَرْتُمْ  فَفَرِيقًا كَذَّبْتُمْ وَفَرِيقًا تَقْتُلُونَ

क्या तुम उस क़दर बददिमाग़ हो गए हो कि जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास तुम्हारी ख्वाहिशे नफ़सानी के ख़िलाफ कोई हुक्म लेकर आया तो तुम अकड़ बैठे

फिर तुमने बाज़ पैग़म्बरों को तो झुठलाया और बाज़ को जान से मार डाला

88

وَقَالُوا قُلُوبُنَا غُلْفٌ ۚ

और कहने लगे कि हमारे दिलों पर ग़िलाफ चढ़ा हुआ है

 بَلْ لَعَنَهُمُ اللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَقَلِيلًا مَا يُؤْمِنُونَ

(ऐसा नहीं) बल्कि उनके कुफ्र की वजह से खुदा ने उनपर लानत की है

पस कम ही लोग ईमान लाते हैं

89

وَلَمَّا جَاءَهُمْ كِتَابٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُصَدِّقٌ لِمَا مَعَهُمْ

और जब उनके पास खुदा की तरफ़ से किताब (कुरान आई और वह उस किताब तौरेत) की जो उन के पास तसदीक़ भी करती है।

وَكَانُوا مِنْ قَبْلُ يَسْتَفْتِحُونَ عَلَى الَّذِينَ كَفَرُوا فَلَمَّا جَاءَهُمْ مَا عَرَفُوا كَفَرُوا بِهِ ۚ

और उससे पहले (इसकी उम्मीद पर) काफ़िरों पर फतेहयाब होने की दुआएँ माँगते थे

पस जब उनके पास वह चीज़ जिसे पहचानते थे आ गई तो लगे इन्कार करने

فَلَعْنَةُ اللَّهِ عَلَى الْكَافِرِينَ

पस काफ़िरों पर खुदा की लानत है

90

بِئْسَمَا اشْتَرَوْا بِهِ أَنْفُسَهُمْ أَنْ يَكْفُرُوا بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ بَغْيًا أَنْ يُنَزِّلَ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ ۖ

क्या ही बुरा है वह काम जिसके मुक़ाबले में (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जानें बेच बैठे हैं

कि जो कुछ खुदा ने नाज़िल किया है सबका इन्कार कर बैठे

इस रश्क से कि खुदा अपने बन्दों से जिस पर चाहे अपनी इनायत से किताब नाज़िल किया करे

 فَبَاءُوا بِغَضَبٍ عَلَى غَضَبٍ ۚ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ مُهِينٌ

पस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टूट पड़ा

और काफ़िरों के लिए (बड़ी) रूसवाई का अज़ाब है

91

وَإِذَا قِيلَ لَهُمْ آمِنُوا بِمَا أَنْزَلَ اللَّهُ

और जब उनसे कहा गया कि (जो क़ुरान) खुदा ने नाज़िल किया है उस पर ईमान लाओ

قَالُوا نُؤْمِنُ بِمَا أُنْزِلَ عَلَيْنَا وَيَكْفُرُونَ بِمَا وَرَاءَهُ وَهُوَ الْحَقُّ مُصَدِّقًا لِمَا مَعَهُمْ ۗ

तो कहने लगे कि हम तो उसी किताब (तौरेत) पर ईमान लाए हैं जो हम पर नाज़िल की गई थी और उस किताब (कुरान) को जो उसके बाद आई है नहीं मानते हैं

हालाँकि वह (क़ुरान) हक़ है और उस किताब (तौरेत) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करती है

قُلْ فَلِمَ تَقْتُلُونَ أَنْبِيَاءَ اللَّهِ مِنْ قَبْلُ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ

(ऐ रसूल) उनसे ये तो पूछो कि तुम (तुम्हारे बुर्जुग़) अगर ईमानदार थे तो फिर क्यों खुदा के पैग़म्बरों का साबिक़ क़त्ल करते थे

92

وَلَقَدْ جَاءَكُمْ مُوسَى بِالْبَيِّنَاتِ ثُمَّ اتَّخَذْتُمُ الْعِجْلَ مِنْ بَعْدِهِ وَأَنْتُمْ ظَالِمُونَ

और तुम्हारे पास मूसा तो वाज़ेए व रौशन मौजिज़े लेकर आ ही चुके थे फिर भी तुमने उनके बाद बछड़े को खुदा बना ही लिया

और उससे तुम अपने ही ऊपर ज़ुल्म करने वाले थे

93

وَإِذْ أَخَذْنَا مِيثَاقَكُمْ وَرَفَعْنَا فَوْقَكُمُ الطُّورَ خُذُوا مَا آتَيْنَاكُمْ بِقُوَّةٍ وَاسْمَعُوا ۖ

और (वह वक्त याद करो) जब हमने तुमसे अहद लिया और (क़ोहे) तूर को (तुम्हारी उदूले हुक्मी से) तुम्हारे सर पर लटकाया और (हमने कहा कि ये किताब तौरेत) जो हमने दी है मज़बूती से लिए रहो और (जो कुछ उसमें है) सुनो

قَالُوا سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَأُشْرِبُوا فِي قُلُوبِهِمُ الْعِجْلَ بِكُفْرِهِمْ ۚ

तो कहने लगे सुना तो (सही लेकिन) हम इसको मानते नहीं

और उनकी बेईमानी की वजह से (गोया) बछड़े की उलफ़त घोल के उनके दिलों में पिला दी गई

 قُلْ بِئْسَمَا يَأْمُرُكُمْ بِهِ إِيمَانُكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ

(ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि अगर तुम ईमानदार थे तो तुमको तुम्हारा ईमान क्या ही बुरा हुक्म करता था

94

‏قُلْ إِنْ كَانَتْ لَكُمُ الدَّارُ الْآخِرَةُ عِنْدَ اللَّهِ خَالِصَةً مِنْ دُونِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

(ऐ रसूल) इन लोगों से कह दो कि अगर खुदा के नज़दीक आख़ेरत का घर (बेहिश्त) ख़ास तुम्हारे वास्ते है और लोगों के वासते नहीं है पस अगर तुम सच्चे हो तो मौत की आरजू क़रो

(ताकि जल्दी बेहिश्त में जाओ)

95

‏وَلَنْ يَتَمَنَّوْهُ أَبَدًا بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ

लेकिन वह उन आमाले बद की वजह से जिनको उनके हाथों ने पहले से आगे भेजा है हरगिज़ मौत की आरज़ू न करेंगे

और खुदा ज़ालिमों से खूब वाक़िफ है

96

وَلَتَجِدَنَّهُمْ أَحْرَصَ النَّاسِ عَلَى حَيَاةٍ وَمِنَ الَّذِينَ أَشْرَكُوا ۚ

और (ऐ रसूल) तुम उन ही को ज़िन्दगी का सबसे ज्यादा हरीस पाओगे और मुशरिक़ों में से भी

يَوَدُّ أَحَدُهُمْ لَوْ يُعَمَّرُ أَلْفَ سَنَةٍ وَمَا هُوَ بِمُزَحْزِحِهِ مِنَ الْعَذَابِ أَنْ يُعَمَّرَ ۗ وَاللَّهُ بَصِيرٌ بِمَا يَعْمَلُونَ

हर एक शख्स चाहता है कि काश उसको हज़ार बरस की उम्र दी जाती

हालाँकि अगर इतनी तूलानी उम्र भी दी जाए तो वह ख़ुदा के अज़ाब से छुटकारा देने वाली नहीं,

और जो कुछ वह लोग करते हैं खुदा उसे देख रहा है

97

قُلْ مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِجِبْرِيلَ فَإِنَّهُ نَزَّلَهُ عَلَى قَلْبِكَ بِإِذْنِ اللَّهِ

(ऐ रसूल उन लोगों से) कह दो कि जो जिबरील का दुशमन है (उसका खुदा दुशमन है)

क्योंकि उस फ़रिश्ते ने खुदा के हुक्म से (इस कुरान को) तुम्हारे दिल पर डाला है

 مُصَدِّقًا لِمَا بَيْنَ يَدَيْهِ وَهُدًى وَبُشْرَى لِلْمُؤْمِنِينَ

और वह उन किताबों की भी तसदीक करता है जो (पहले नाज़िल हो चुकी हैं और सब) उसके सामने मौजूद हैं और ईमानदारों के वास्ते खुशख़बरी है

98

مَنْ كَانَ عَدُوًّا لِلَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَرُسُلِهِ وَجِبْرِيلَ وَمِيكَالَ فَإِنَّ اللَّهَ عَدُوٌّ لِلْكَافِرِينَ

जो शख्स ख़ुदा और उसके फरिश्तों और उसके रसूलों और (ख़ासकर) जिबराईल व मीकाइल का दुशमन हो

तो बेशक खुदा भी (ऐसे) काफ़िरों का दुश्मन है

99

وَلَقَدْ أَنْزَلْنَا إِلَيْكَ آيَاتٍ بَيِّنَاتٍ ۖ وَمَا يَكْفُرُ بِهَا إِلَّا الْفَاسِقُونَ

और (ऐ रसूल) हमने तुम पर ऐसी निशानियाँ नाज़िल की हैं जो वाजेए और रौशन हैं

और ऐसे नाफरमानों के सिवा उनका कोई इन्कार नहीं कर सकता

100

أَوَكُلَّمَا عَاهَدُوا عَهْدًا نَبَذَهُ فَرِيقٌ مِنْهُمْ ۚ  بَلْ أَكْثَرُهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ

और उनकी ये हालत है कि जब कभी कोई अहद किया तो उनमें से एक फरीक़ ने तोड़ डाला

बल्कि उनमें से अक्सर तो ईमान ही नहीं रखते

101

وَلَمَّا جَاءَهُمْ رَسُولٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ مُصَدِّقٌ لِمَا مَعَهُمْ

और जब उनके पास खुदा की तरफ से रसूल (मोहम्मद) आया और उस किताब (तौरेत) की जो उनके पास है तसदीक़ भी करता है

نَبَذَ فَرِيقٌ مِنَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ كِتَابَ اللَّهِ وَرَاءَ ظُهُورِهِمْ كَأَنَّهُمْ لَا يَعْلَمُونَ

तो उन अहले किताब के एक गिरोह ने किताबे खुदा को अपने पसे पुश्त फेंक दिया गोया वह लोग कुछ जानते ही नहीं

102

‏وَاتَّبَعُوا مَا تَتْلُو الشَّيَاطِينُ عَلَى مُلْكِ سُلَيْمَانَ ۖ

और उस मंत्र के पीछे पड़ गए जिसको सुलेमान के ज़माने की सलतनत में शयातीन जपा करते थे

وَمَا كَفَرَ سُلَيْمَانُ وَلَكِنَّ الشَّيَاطِينَ كَفَرُوا يُعَلِّمُونَ النَّاسَ السِّحْرَ

हालाँकि सुलेमान ने कुफ्र नहीं इख़तेयार किया लेकिन शैतानों ने कुफ्र एख़तेयार किया कि वह लोगों को जादू सिखाया करते थे

وَمَا أُنْزِلَ عَلَى الْمَلَكَيْنِ بِبَابِلَ هَارُوتَ وَمَارُوتَ ۚ

और वह चीज़ें जो हारूत और मारूत दोनों फ़रिश्तों पर बाइबिल में नाज़िल की गई थी

وَمَا يُعَلِّمَانِ مِنْ أَحَدٍ حَتَّى يَقُولَا إِنَّمَا نَحْنُ فِتْنَةٌ فَلَا تَكْفُرْ ۖ

हालाँकि ये दोनों फ़रिश्ते किसी को सिखाते न थे जब तक ये न कह देते थे कि हम दोनों तो फ़क़त (ज़रियाए आज़माइश) है पस तो (इस पर अमल करके) बेईमान न हो जाना

فَيَتَعَلَّمُونَ مِنْهُمَا مَا يُفَرِّقُونَ بِهِ بَيْنَ الْمَرْءِ وَزَوْجِهِ ۚ

उस पर भी उनसे वह (टोटके) सीखते थे जिनकी वजह से मिया बीवी में तफ़रक़ा डालते

وَمَا هُمْ بِضَارِّينَ بِهِ مِنْ أَحَدٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ ۚ

हालाँकि बग़ैर इज्ने खुदावन्दी वह अपनी इन बातों से किसी को ज़रर नहीं पहुँचा सकते थे

وَيَتَعَلَّمُونَ مَا يَضُرُّهُمْ وَلَا يَنْفَعُهُمْ ۚ

और ये लोग ऐसी बातें सीखते थे जो खुद उन्हें नुक़सान पहुँचाती थी और कुछ (नफा) नहीं पहुँचाती थी

وَلَقَدْ عَلِمُوا لَمَنِ اشْتَرَاهُ مَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ ۚ

बावजूद कि वह यक़ीनन जान चुके थे कि जो शख्स इन (बुराईयों) का ख़रीदार हुआ वह आख़िरत में बेनसीब हैं

وَلَبِئْسَ مَا شَرَوْا بِهِ أَنْفُسَهُمْ ۚ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ

और बेशुबह (मुआवज़ा) बहुत ही बड़ा है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों को बेचा

काश (उसे कुछ) सोचे समझे होते

103

وَلَوْ أَنَّهُمْ آمَنُوا وَاتَّقَوْا لَمَثُوبَةٌ مِنْ عِنْدِ اللَّهِ خَيْرٌ ۖ  لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ

और अगर वह ईमान लाते और जादू वग़ैरह से बचकर परहेज़गार बनते तो खुदा की दरगाह से जो सवाब मिलता वह उससे कहीं बेहतर होता

काश ये लोग (इतना तो) समझते

104

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا لَا تَقُولُوا رَاعِنَا وَقُولُوا انْظُرْنَا وَاسْمَعُوا ۗ وَلِلْكَافِرِينَ عَذَابٌ أَلِيمٌ

ऐ ईमानवालों तुम (रसूल को अपनी तरफ मुतावज्जे करना चाहो तो) रआना (हमारी रिआयत कर) न कहा करो बल्कि उनज़ुरना (हम पर नज़रे तवज्जो रख) कहा करो

और (जी लगाकर) सुनते रहो और काफिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है

105

مَا يَوَدُّ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ وَلَا الْمُشْرِكِينَ أَنْ يُنَزَّلَ عَلَيْكُمْ مِنْ خَيْرٍ مِنْ رَبِّكُمْ ۗ

ऐ रसूल अहले किताब में से जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया वह और मुशरेकीन ये नहीं चाहते हैं कि तुम पर तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से भलाई (वही) नाज़िल की जाए

وَاللَّهُ يَخْتَصُّ بِرَحْمَتِهِ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ ذُو الْفَضْلِ الْعَظِيمِ

और (उनका तो इसमें कुछ इजारा नहीं) खुदा जिसको चाहता है अपनी रहमत के लिए ख़ास कर लेता है

और खुदा बड़ा फज़ल (करने) वाला है

106

مَا نَنْسَخْ مِنْ آيَةٍ أَوْ نُنْسِهَا نَأْتِ بِخَيْرٍ مِنْهَا أَوْ مِثْلِهَا ۗ

(ऐ रसूल) हम जब कोई आयत मन्सूख़ करते हैं या तुम्हारे ज़ेहन से मिटा देते हैं तो उससे बेहतर या वैसी ही (और) नाज़िल भी कर देते हैं

أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

क्या तुम नहीं जानते कि बेशुबहा खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

107

أَلَمْ تَعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ لَهُ مُلْكُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۗ

क्या तुम नहीं जानते कि आसमान की सलतनत बेशुबहा ख़ास खुदा ही के लिए है

وَمَا لَكُمْ مِنْ دُونِ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ

और खुदा के सिवा तुम्हारा न कोई सरपरस्त है न मददगार

108

أَمْ تُرِيدُونَ أَنْ تَسْأَلُوا رَسُولَكُمْ كَمَا سُئِلَ مُوسَى مِنْ قَبْلُ ۗ

(मुसलमानों) क्या तुम चाहते हो कि तुम भी अपने रसूल से वैसै ही (बेढ़ंगे) सवालात करो जिस तरह साबिक़ (पहले) ज़माने में मूसा से (बेतुके) सवालात किए गए थे

 وَمَنْ يَتَبَدَّلِ الْكُفْرَ بِالْإِيمَانِ فَقَدْ ضَلَّ سَوَاءَ السَّبِيلِ

और जिस शख्स ने ईमान के बदले कुफ्र एख़तेयार किया वह तो यक़ीनी सीधे रास्ते से भटक गया

109

وَدَّ كَثِيرٌ مِنْ أَهْلِ الْكِتَابِ

لَوْ يَرُدُّونَكُمْ مِنْ بَعْدِ إِيمَانِكُمْ كُفَّارًا حَسَدًا مِنْ عِنْدِ أَنْفُسِهِمْ مِنْ بَعْدِ مَا تَبَيَّنَ لَهُمُ الْحَقُّ ۖ

(मुसलमानों) अहले किताब में से अक्सर लोग अपने दिली हसद की वजह से ये ख्वाहिश रखते हैं कि तुमको ईमान लाने के बाद फिर काफ़िर बना दें (और लुत्फ तो ये है कि) उन पर हक़ ज़ाहिर हो चुका है उसके बाद भी (ये तमन्ना बाक़ी है)

فَاعْفُوا وَاصْفَحُوا حَتَّى يَأْتِيَ اللَّهُ بِأَمْرِهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

पस तुम माफ करो और दरगुज़र करो यहाँ तक कि खुदा अपना (कोई और) हुक्म भेजे

बेशक खुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

110

وَأَقِيمُوا الصَّلَاةَ وَآتُوا الزَّكَاةَ ۚ

और नमाज़ पढ़ते रहो और ज़कात दिये जाओ

وَمَا تُقَدِّمُوا لِأَنْفُسِكُمْ مِنْ خَيْرٍ تَجِدُوهُ عِنْدَ اللَّهِ ۗ إِنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ

और जो कुछ भलाई अपने लिए (खुदा के यहाँ) पहले से भेज दोगे उस (के सवाब) को मौजूद पाआगे

जो कुछ तुम करते हो उसे खुदा ज़रूर देख रहा है

111

وَقَالُوا لَنْ يَدْخُلَ الْجَنَّةَ إِلَّا مَنْ كَانَ هُودًا أَوْ نَصَارَى ۗ تِلْكَ أَمَانِيُّهُمْ ۗ

और (यहूद) कहते हैं कि यहूद (के सिवा) और (नसारा कहते हैं कि) नसारा के सिवा कोई बेहिश्त में जाने ही न पाएगा

ये उनके ख्याली पुलाव है

 قُلْ هَاتُوا بُرْهَانَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ

(ऐ रसूल) तुम उन से कहो कि भला अगर तुम सच्चे हो कि हम ही बेहिश्त में जाएँगे तो अपनी दलील पेश करो

112

بَلَى مَنْ أَسْلَمَ وَجْهَهُ لِلَّهِ وَهُوَ مُحْسِنٌ فَلَهُ أَجْرُهُ عِنْدَ رَبِّهِ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

हाँ अलबत्ता जिस शख्स ने खुदा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला (मौजूद) है

और (आख़ेरत में) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मग़ीन होगे

113

وَقَالَتِ الْيَهُودُ لَيْسَتِ النَّصَارَى عَلَى شَيْءٍ

और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं

وَقَالَتِ النَّصَارَى لَيْسَتِ الْيَهُودُ عَلَى شَيْءٍ وَهُمْ يَتْلُونَ الْكِتَابَ ۗ

और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं

हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे (खुदा) पढ़ते रहते हैं

كَذَلِكَ قَالَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ مِثْلَ قَوْلِهِمْ ۚ

इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह (मुशरेकीन अरब) भी किया करते हैं जो (खुदा के एहकाम) कुछ नहीं जानते

فَاللَّهُ يَحْكُمُ بَيْنَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ فِيمَا كَانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ

तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं (दुनिया में तो तय न होगा) क़यामत के दिन खुदा उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा

114

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ مَنَعَ مَسَاجِدَ اللَّهِ أَنْ يُذْكَرَ فِيهَا اسْمُهُ وَسَعَى فِي خَرَابِهَا ۚ

और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खुदा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से (लोगों को) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो,

أُولَئِكَ مَا كَانَ لَهُمْ أَنْ يَدْخُلُوهَا إِلَّا خَائِفِينَ ۚ

ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए

لَهُمْ فِي الدُّنْيَا خِزْيٌ وَلَهُمْ فِي الْآخِرَةِ عَذَابٌ عَظِيمٌ

ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आख़ेरत में बड़ा भारी अज़ाब है

115

وَلِلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ ۚ

(तुम्हारे मसजिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन)

खुदा ही की है (क्या) पूरब (क्या) पश्चिम

فَأَيْنَمَا تُوَلُّوا فَثَمَّ وَجْهُ اللَّهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ وَاسِعٌ عَلِيمٌ

बस जहाँ कहीं क़िब्ले की तरफ रूख़ करो वही खुदा का सामना है

बेशक खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और खूब वाक़िफ है

116

وَقَالُوا اتَّخَذَ اللَّهُ وَلَدًا

और यहूद कहने लगे कि खुदा औलाद रखता है

سُبْحَانَهُ ۖ

हालाँकि वह (इस बखेड़े से) पाक है

بَلْ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖ كُلٌّ لَهُ قَانِتُونَ

बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है

और सब उसकी के फरमाबरदार हैं

117

بَدِيعُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ ۖوَإِذَا قَضَى أَمْرًا فَإِنَّمَا يَقُولُ لَهُ كُنْ فَيَكُونُ

(वही) आसमान व ज़मीन का मोजिद है

और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि ''हो जा'' पस वह (खुद ब खुद) हो जाता है

118

وَقَالَ الَّذِينَ لَا يَعْلَمُونَ لَوْلَا يُكَلِّمُنَا اللَّهُ  أَوْ تَأْتِينَا آيَةٌ ۗ

और जो (मुशरेकीन) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि खुदा हमसे (खुद) कलाम क्यों नहीं करता,

या हमारे पास (खुद) कोई निशानी क्यों नहीं आती,

كَذَلِكَ قَالَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِثْلَ قَوْلِهِمْ ۘ تَشَابَهَتْ قُلُوبُهُمْ ۗ

इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे

उन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं

 قَدْ بَيَّنَّا الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يُوقِنُونَ

जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके

119

إِنَّا أَرْسَلْنَاكَ بِالْحَقِّ بَشِيرًا وَنَذِيرًا ۖ وَلَا تُسْأَلُ عَنْ أَصْحَابِ الْجَحِيمِ

(ऐ रसूल) हमने तुमको दीने हक़ के साथ (बेहिश्त की) खुशख़बरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है

और दोज़ख़ियों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा

120

وَلَنْ تَرْضَى عَنْكَ الْيَهُودُ وَلَا النَّصَارَى حَتَّى تَتَّبِعَ مِلَّتَهُمْ ۗ

और (ऐ रसूल) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो

  قُلْ إِنَّ هُدَى اللَّهِ هُوَ الْهُدَى ۗ

(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि बस खुदा ही की हिदायत तो हिदायत है (बाक़ी ढकोसला है)

وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُمْ بَعْدَ الَّذِي جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ ۙ مَا لَكَ مِنَ اللَّهِ مِنْ وَلِيٍّ وَلَا نَصِيرٍ

और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका है उनकी ख्वाहिशों पर चले तो (याद रहे कि फिर) तुमको खुदा (के ग़ज़ब) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार

121

الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَتْلُونَهُ حَقَّ تِلَاوَتِهِ أُولَئِكَ يُؤْمِنُونَ بِهِ ۗ

जिन लोगों को हमने किताब (कुरान) दी है वह लोग उसे इस तरह पढ़ते रहते हैं जो उसके पढ़ने का हक़ है

यही लोग उस पर ईमान लाते हैं

وَمَنْ يَكْفُرْ بِهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ

और जो उससे इनकार करते हैं वही लोग घाटे में हैं

122

يَا بَنِي إِسْرَائِيلَ اذْكُرُوا نِعْمَتِيَ الَّتِي أَنْعَمْتُ عَلَيْكُمْ وَأَنِّي فَضَّلْتُكُمْ عَلَى الْعَالَمِينَ

बनी इसराईल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंनं तुम को दी हैं

और ये कि मैंने तुमको सारे जहाँन पर फज़ीलत दी

123

وَاتَّقُوا يَوْمًا لَا تَجْزِي نَفْسٌ عَنْ نَفْسٍ شَيْئًا وَلَا يُقْبَلُ مِنْهَا عَدْلٌ وَلَا تَنْفَعُهَا شَفَاعَةٌ وَلَا هُمْ يُنْصَرُونَ

और उस दिन से डरो जिस दिन कोई शख्स किसी की तरफ से न फिदया हो सकेगा

और न उसकी तरफ से कोई मुआवेज़ा क़ुबूल किया जाएगा और न कोई सिफारिश ही फायदा पहुचाँ सकेगी,

और न लोग मदद दिए जाएँगे

124

وَإِذِ ابْتَلَى إِبْرَاهِيمَ رَبُّهُ بِكَلِمَاتٍ فَأَتَمَّهُنَّ ۖ

(ऐ रसूल) बनी इसराईल को वह वक्त भी याद दिलाओ जब इबराहीम को उनके परवरदिगार ने चन्द बातों में आज़माया और उन्होंने पूरा कर दिया

قَالَ إِنِّي جَاعِلُكَ لِلنَّاسِ إِمَامًا ۖ

तो खुदा ने फरमाया मैं तुमको (लोगों का) पेशवा बनाने वाला हूँ

قَالَ وَمِنْ ذُرِّيَّتِي ۖ

(हज़रत इबराहीम ने) अर्ज़ की और मेरी औलाद में से

قَالَ لَا يَنَالُ عَهْدِي الظَّالِمِينَ

फरमाया (हाँ मगर) मेरे इस अहद पर ज़ालिमों में से कोई शख्स फ़ायज़ नहीं हो सकता

125

وَإِذْ جَعَلْنَا الْبَيْتَ مَثَابَةً لِلنَّاسِ وَأَمْنًا وَاتَّخِذُوا مِنْ مَقَامِ إِبْرَاهِيمَ مُصَلًّى ۖ

(ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ)

जब हमने ख़ानए काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह क़रार दी

और हुक्म दिया गया कि इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ

وَعَهِدْنَا إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ أَنْ طَهِّرَا بَيْتِيَ لِلطَّائِفِينَ وَالْعَاكِفِينَ وَالرُّكَّعِ السُّجُودِ

और इबराहीम व इसमाइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और रूकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो

126

وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ  رَبِّ اجْعَلْ هَذَا بَلَدًا آمِنًا وَارْزُقْ أَهْلَهُ مِنَ الثَّمَرَاتِ مَنْ آمَنَ مِنْهُمْ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ

और (ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब इबराहीम ने दुआ माँगी कि ऐ मेरे परवरदिगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना,

और उसके रहने वालों में से जो खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह के फल खाने को दें

قَالَ وَمَنْ كَفَرَ فَأُمَتِّعُهُ قَلِيلًاثُمَّ أَضْطَرُّهُ إِلَى عَذَابِ النَّارِ ۖ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ

खुदा ने फरमाया (अच्छा मगर) वो कुफ्र इख़तेयार करेगा उसकी दुनिया में चन्द रोज़ (उन चीज़ो से) फायदा उठाने दूँगा

फिर (आख़ेरत में) उसको मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ खींच ले जाऊँगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है

127

وَإِذْ يَرْفَعُ إِبْرَاهِيمُ الْقَوَاعِدَ مِنَ الْبَيْتِ وَإِسْمَاعِيلُ رَبَّنَا تَقَبَّلْ مِنَّا ۖ

और (वह वक्त याद दिलाओ) जब इबराहीम व इसमाईल ख़ानाए काबा की बुनियादें बुलन्द कर रहे थे (और दुआ) माँगते जाते थे कि ऐ हमारे परवरदिगार हमारी (ये ख़िदमत) कुबूल कर

إِنَّكَ أَنْتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

बेशक तू ही (दूआ का) सुनने वाला (और उसका) जानने वाला है

128

رَبَّنَا وَاجْعَلْنَا مُسْلِمَيْنِ لَكَ وَمِنْ ذُرِّيَّتِنَا أُمَّةً مُسْلِمَةً لَكَ وَأَرِنَا مَنَاسِكَنَا وَتُبْ عَلَيْنَا ۖ

(और) ऐ हमारे पालने वाले तू हमें अपना फरमाबरदार बन्दा बना

हमारी औलाद से एक गिरोह (पैदा कर) जो तेरा फरमाबरदार हो,

और हमको हमारे हज की जगहों दिखा दे और हमारी तौबा क़ुबूल कर,

إِنَّكَ أَنْتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ

बेशक तू ही बड़ा तौबा कुबूल करने वाला मेहरबान है

129

رَبَّنَا وَابْعَثْ فِيهِمْ رَسُولًا مِنْهُمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِكَ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَيُزَكِّيهِمْ ۚ

(और) ऐ हमारे पालने वाले मक्के वालों में उन्हीं में से एक रसूल को भेज

जो उनको तेरी आयतें पढ़कर सुनाए और आसमानी किताब और अक्ल की बातें सिखाए और उन (के नुफ़ूस) के पाकीज़ा कर दें

إِنَّكَ أَنْتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ

बेशक तू ही ग़ालिब और साहिबे तदबीर है

130

وَمَنْ يَرْغَبُ عَنْ مِلَّةِ إِبْرَاهِيمَ إِلَّا مَنْ سَفِهَ نَفْسَهُ ۚ

और कौन है जो इबराहीम के तरीक़े से नफरत करे मगर जो अपने को अहमक़ बनाए

وَلَقَدِ اصْطَفَيْنَاهُ فِي الدُّنْيَا ۖ وَإِنَّهُ فِي الْآخِرَةِ لَمِنَ الصَّالِحِينَ

और बेशक हमने उनको दुनिया में भी मुन्तिख़ब कर लिया

और वह ज़रूर आख़ेरत में भी अच्छों ही में से होगे

131

إِذْ قَالَ لَهُ رَبُّهُ أَسْلِمْ ۖ

जब उनसे उनके परवरदिगार ने कहा इस्लाम कुबूल करो

قَالَ أَسْلَمْتُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ

तो अर्ज़ में सारे जहाँ के परवरदिगार पर इस्लाम लाया

132

وَوَصَّى بِهَا إِبْرَاهِيمُ بَنِيهِ وَيَعْقُوبُ يَا بَنِيَّ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَى لَكُمُ الدِّينَ فَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنْتُمْ مُسْلِمُونَ

और इसी तरीके क़ी इबराहीम ने अपनी औलाद से वसीयत की

और याकूब ने (भी) कि ऐ फरज़न्दों खुदा ने तुम्हारे वास्ते इस दीन (इस्लाम) को पसन्द फरमाया है पस तुम हरगिज़ न मरना मगर मुसलमान ही होकर

133

أَمْ كُنْتُمْ شُهَدَاءَ إِذْ حَضَرَ يَعْقُوبَ الْمَوْتُ إِذْ قَالَ لِبَنِيهِ مَا تَعْبُدُونَ مِنْ بَعْدِي

(ऐ यहूद) क्या तुम उस वक्त मौजूद थे जब याकूब के सर पर मौत आ खड़ी हुईउस वक्त उन्होंने अपने बेटों से कहा कि मेरे बाद किसी की इबादत करोगे

قَالُوا نَعْبُدُ إِلَهَكَ وَإِلَهَ آبَائِكَ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ إِلَهًا وَاحِدًا وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ

कहने लगे हम आप के माबूद और आप के बाप दादाओं इबराहीम व इस्माइल व इसहाक़ के माबूद व यकता खुदा की इबादत करेंगे और हम उसके फरमाबरदार हैं

134

تِلْكَ أُمَّةٌ قَدْ خَلَتْ ۖ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَلَكُمْ مَا كَسَبْتُمْ ۖ

(ऐ यहूद) वह लोग थे जो चल बसे

जो उन्होंने कमाया उनके आगे आया और जो तुम कमाओगे तुम्हारे आगे आएगा

وَلَا تُسْأَلُونَ عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ

और जो कुछ भी वह करते थे उसकी पूछगछ तुमसे नहीं होगी

135

وَقَالُوا كُونُوا هُودًا أَوْ نَصَارَى تَهْتَدُوا ۗ

(यहूदी ईसाई मुसलमानों से) कहते हैं कि यहूद या नसरानी हो जाओ तो राहे रास्त पर आ जाओगे

قُلْ بَلْ مِلَّةَ إِبْرَاهِيمَ حَنِيفًا ۖ وَمَا كَانَ مِنَ الْمُشْرِكِينَ

(ऐ रसूल उनसे) कह दो कि हम इबराहीम के तरीक़े पर हैं जो बातिल से कतरा कर चलते थे और मुशरेकीन से न थे

136

قُولُوا آمَنَّا بِاللَّهِ وَمَا أُنْزِلَ إِلَيْنَا وَمَا أُنْزِلَ إِلَى إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطِ

(और ऐ मुसलमानों तुम ये) कहो कि हम तो खुदा पर ईमान लाए हैं और उस पर जो हम पर नाज़िल किया गया (कुरान)

और जो सहीफ़े इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व याकूब और औलादे याकूब पर नाज़िल हुए थे

وَمَا أُوتِيَ مُوسَى وَعِيسَى وَمَا أُوتِيَ النَّبِيُّونَ مِنْ رَبِّهِمْ

(उन पर) और जो किताब मूसा व ईसा को दी गई (उस पर) और जो और पैग़म्बरों को उनके परवरदिगार की तरफ से उन्हें दिया गया

لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْهُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ

(उस पर) हम तो उनमें से किसी (एक) में भी तफरीक़ नहीं करते और हम तो खुदा ही के फरमाबरदार हैं

137

فَإِنْ آمَنُوا بِمِثْلِ مَا آمَنْتُمْ بِهِ فَقَدِ اهْتَدَوْا ۖ

पस अगर ये लोग भी उसी तरह ईमान लाए हैं जिस तरह तुम तो अलबत्ता राहे रास्त पर आ गए

وَإِنْ تَوَلَّوْا فَإِنَّمَا هُمْ فِي شِقَاقٍ ۖ فَسَيَكْفِيكَهُمُ اللَّهُ ۚ وَهُوَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ

और अगर वह इस तरीके से मुँह फेर लें तो बस वह सिर्फ तुम्हारी ही ज़िद पर है

तो (ऐ रसूल) उन (के शर) से (बचाने को) तुम्हारे लिए खुदा काफ़ी होगा

और वह (सबकी हालत) खूब जानता (और) सुनता है

138

صِبْغَةَ اللَّهِ ۖ وَمَنْ أَحْسَنُ مِنَ اللَّهِ صِبْغَةً ۖ وَنَحْنُ لَهُ عَابِدُونَ

(मुसलमानों से कहो कि)

रंग तो खुदा ही का रंग है जिसमें तुम रंगे गए

और खुदाई रंग से बेहतर कौन रंग होगा

और हम तो उसी की इबादत करते हैं

139

قُلْ أَتُحَاجُّونَنَا فِي اللَّهِ وَهُوَ رَبُّنَا وَرَبُّكُمْ وَلَنَا أَعْمَالُنَا وَلَكُمْ أَعْمَالُكُمْ وَنَحْنُ لَهُ مُخْلِصُونَ

(ऐ रसूल) तुम उनसे पूछो कि क्या तुम हम से खुदा के बारे झगड़ते हो हालाँकि वही हमारा (भी) परवरदिगार है (वही) तुम्हारा भी (परवरदिगार है)

हमारे लिए है हमारी कारगुज़ारियाँ और तुम्हारे लिए तुम्हारी कारसतानियाँ

और हम तो निरेखरे उसी में हैं

140

أَمْ تَقُولُونَ إِنَّ إِبْرَاهِيمَ وَإِسْمَاعِيلَ وَإِسْحَاقَ وَيَعْقُوبَ وَالْأَسْبَاطَ كَانُوا هُودًا أَوْ نَصَارَى ۗ

क्या तुम कहते हो कि इबराहीम व इसमाइल व इसहाक़ व आलौदें याकूब सब के सब यहूदी या नसरानी थे

قُلْ أَأَنْتُمْ أَعْلَمُ أَمِ اللَّهُ ۗ

(ऐ रसूल उनसे) पूछो तो कि तुम ज्यादा वाक़िफ़ हो या खुदा

وَمَنْ أَظْلَمُ مِمَّنْ كَتَمَ شَهَادَةً عِنْدَهُ مِنَ اللَّهِ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

और उससे बढ़कर कौन ज़ालिम होगा जिसके पास खुदा की तरफ से गवाही (मौजूद) हो (कि वह यहूदी न थे) और फिर वह छिपाए

और जो कुछ तुम करते हो खुदा उससे बेख़बर नहीं

141

تِلْكَ أُمَّةٌ قَدْ خَلَتْ ۖ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَلَكُمْ مَا كَسَبْتُمْ ۖ وَلَا تُسْأَلُونَ عَمَّا كَانُوا يَعْمَلُونَ

ये वह लोग थे जो सिधार चुके जो कुछ कमा गए उनके लिए था और जो कुछ तुम कमाओगे तुम्हारे लिए होगा

और जो कुछ वह कर गुज़रे उसकी पूछगछ तुमसे न होगी

142

سَيَقُولُ السُّفَهَاءُ مِنَ النَّاسِ مَا وَلَّاهُمْ عَنْ قِبْلَتِهِمُ الَّتِي كَانُوا عَلَيْهَا ۚ

बाज़ अहमक़ लोग ये कह बैठेगें कि मुसलमान जिस क़िबले बैतुल मुक़द्दस की तरफ पहले से सजदा करते थे उस से दूसरे क़िबले की तरफ मुड़ जाने का बाइस हुआ।

 قُلْ لِلَّهِ الْمَشْرِقُ وَالْمَغْرِبُ ۚ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ

ऐ रसूल तुम उनके जवाब में कहो कि पूरब पश्चिम सब ख़ुदा का है

जिसे चाहता है सीधे रास्ते की तरफ हिदायत करता है

143

وَكَذَلِكَ جَعَلْنَاكُمْ أُمَّةً وَسَطًا لِتَكُونُوا شُهَدَاءَ عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ عَلَيْكُمْ شَهِيدًا ۗ

और जिस तरह तुम्हारे क़िबले के बारे में हिदायत की उसी तरह तुम को आदिल उम्मत बनाया ताकि और लोगों के मुक़ाबले में तुम गवाह बनो और रसूल मोहम्मद तुम्हारे मुक़ाबले में गवाह बनें

وَمَا جَعَلْنَا الْقِبْلَةَ الَّتِي كُنْتَ عَلَيْهَا إِلَّا لِنَعْلَمَ مَنْ يَتَّبِعُ الرَّسُولَ مِمَّنْ يَنْقَلِبُ عَلَى عَقِبَيْهِ ۚ

और (ऐ रसूल) जिस क़िबले की तरफ़ तुम पहले सज़दा करते थे हम ने उसको को सिर्फ इस वजह से क़िबला क़रार दिया था कि जब क़िबला बदला जाए तो हम उन लोगों को जो रसूल की पैरवी करते हैं हम उन लोगों से अलग देख लें जो उलटे पाव फिरते हैं

وَإِنْ كَانَتْ لَكَبِيرَةً إِلَّا عَلَى الَّذِينَ هَدَى اللَّهُ ۗ وَمَا كَانَ اللَّهُ لِيُضِيعَ إِيمَانَكُمْ ۚ

अगरचे ये उलट फेर सिवा उन लोगों के जिन की ख़ुदा ने हिदायत की है सब पर शाक़ ज़रुर है

और ख़ुदा ऐसा नहीं है कि तुम्हारे ईमान नमाज़ को जो बैतुलमुक़द्दस की तरफ पढ़ चुके हो बरबाद कर दे

إِنَّ اللَّهَ بِالنَّاسِ لَرَءُوفٌ رَحِيمٌ

बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा ही रफ़ीक व मेहरबान है।

144

قَدْ نَرَى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَاءِ  فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضَاهَا ۚ

ऐ रसूल क़िबला बदलने के वास्ते बेशक तुम्हारा बार बार आसमान की तरफ मुँह करना हम देख रहे हैं

तो हम ज़रुर तुम को ऐसे क़िबले की तरफ फेर देगें कि तुम निहाल हो जाओ

فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ

अच्छा तो नमाज़ ही में तुम मस्ज़िदे मोहतरम काबे की तरफ मुँह कर लो

وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ ۗ

और ऐ मुसलमानों तुम जहाँ कही भी हो उसी की तरफ़ अपना मुँह कर लिया करो

وَإِنَّ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ لَيَعْلَمُونَ أَنَّهُ الْحَقُّ مِنْ رَبِّهِمْ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا يَعْمَلُونَ

और जिन लोगों को किताब तौरेत वगैरह दी गयी है वह बख़ूबी जानते हैं कि ये तबदील क़िबले बहुत बजा व दुरुस्त है और उस के परवरदिगार की तरफ़ से है

और जो कुछ वह लोग करते हैं उस से ख़ुदा बेख़बर नही

145

وَلَئِنْ أَتَيْتَ الَّذِينَ أُوتُوا الْكِتَابَ بِكُلِّ آيَةٍ مَا تَبِعُوا قِبْلَتَكَ ۚ

और अगर अहले किताब के सामने दुनिया की सारी दलीले पेश कर दोगे तो भी वह तुम्हारे क़िबले को न मानेंगें

وَمَا أَنْتَ بِتَابِعٍ قِبْلَتَهُمْ ۚ

और न तुम ही उनके क़िबले को मानने वाले हो

وَمَا بَعْضُهُمْ بِتَابِعٍ قِبْلَةَ بَعْضٍ ۚ

और ख़ुद अहले किताब भी एक दूसरे के क़िबले को नहीं मानते

وَلَئِنِ اتَّبَعْتَ أَهْوَاءَهُمْ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ ۙ إِنَّكَ إِذًا لَمِنَ الظَّالِمِينَ

और जो इल्म क़ुरान तुम्हारे पास आ चुका है उसके बाद भी अगर तुम उनकी ख्वाहिश पर चले तो अलबत्ता तुम नाफ़रमान हो जाओगे

146

‏الَّذِينَ آتَيْنَاهُمُ الْكِتَابَ يَعْرِفُونَهُ كَمَا يَعْرِفُونَ أَبْنَاءَهُمْ ۖ وَإِنَّ فَرِيقًا مِنْهُمْ لَيَكْتُمُونَ الْحَقَّ وَهُمْ يَعْلَمُونَ

जिन लोगों को हमने किताब (तौरैत वग़ैरह) दी है वह जिस तरह अपने बेटों को पहचानते है उसी तरह तरह वह उस पैग़म्बर को भी पहचानते हैं

और उन में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो दीदए व दानिस्ता (जान बुझकर) हक़ बात को छिपाते हैं

147

الْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ ۖ فَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُمْتَرِينَ

ऐ रसूल तबदीले क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है पस तुम कहीं शक करने वालों में से न हो जाना

148

وَلِكُلٍّ وِجْهَةٌ هُوَ مُوَلِّيهَا ۖ فَاسْتَبِقُوا الْخَيْرَاتِ ۚ

और हर फरीक़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ वह नमाज़ में अपना मुँह कर लेता है

पस तुम (ऐ मुसलमानों झगड़े को छोड़ दो और) नेकियों मे उन से लपक के आगे बढ़ जाओ

أَيْنَ مَا تَكُونُوا يَأْتِ بِكُمُ اللَّهُ جَمِيعًا ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

तुम जहाँ कहीं होगे ख़ुदा तुम सबको अपनी तरफ ले आऐगा

बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

149

وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۖ

और (ऐ रसूल) तुम जहाँ से जाओ (यहाँ तक मक्का से) तो भी नमाज़ मे तुम अपना मुँह मस्ज़िदे मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर लिया करो

وَإِنَّهُ لَلْحَقُّ مِنْ رَبِّكَ ۗ وَمَا اللَّهُ بِغَافِلٍ عَمَّا تَعْمَلُونَ

और बेशक ये नया क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है

और तुम्हारे कामों से ख़ुदा ग़ाफिल नही है

150

وَمِنْ حَيْثُ خَرَجْتَ فَوَلِّ وَجْهَكَ شَطْرَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ

और (ऐ रसूल) तुम जहाँ से जाओ (यहाँ तक के मक्का से तो भी) तुम (नमाज़ में) अपना मुँह मस्ज़िदे हराम की तरफ कर लिया करो

وَحَيْثُ مَا كُنْتُمْ فَوَلُّوا وُجُوهَكُمْ شَطْرَهُ لِئَلَّا يَكُونَ لِلنَّاسِ عَلَيْكُمْ حُجَّةٌ إِلَّا الَّذِينَ ظَلَمُوا مِنْهُمْ

और (ऐ रसूल) तुम जहाँ कही हुआ करो तो नमाज़ में अपना मुँह उसी काबा की तरफ़ कर लिया करो

(बार बार हुक्म देने का एक फायदा ये है)

ताकि लोगों का इल्ज़ाम तुम पर न आने पाए मगर उन में से जो लोग नाहक़ हठधर्मी करते हैं

(वह तो ज़रुर इल्ज़ाम देगें)

فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَاخْشَوْنِي وَلِأُتِمَّ نِعْمَتِي عَلَيْكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَهْتَدُونَ

तो तुम लोग उनसे डरो नहीं और सिर्फ़ मुझसे डरो

और (दूसरा फ़ायदा ये है) ताकि तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दूँ और (तीसरा फायदा ये है) ताकि तुम हिदायत पाओ

151

كَمَا أَرْسَلْنَا فِيكُمْ رَسُولًا مِنْكُمْ يَتْلُو عَلَيْكُمْ آيَاتِنَا وَيُزَكِّيكُمْ وَيُعَلِّمُكُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ

मुसलमानों ये एहसान भी वैसा ही है जैसे हम ने तुम में तुम ही में का एक रसूल भेजा

जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ्स को पाकीज़ा करे और तुम्हें किताब क़ुरान और अक्ल की बातें सिखाए

وَيُعَلِّمُكُمْ مَا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ

और तुम को वह बातें बतांए जिन की तुम्हें पहले से खबर भी न थी

152

فَاذْكُرُونِي أَذْكُرْكُمْ  وَاشْكُرُوا لِي وَلَا تَكْفُرُونِ

पस तुम हमारी याद रखो तो मै भी तुम्हारा ज़िक्र (खैर) किया करुगाँ

और मेरा शुक्रिया अदा करते रहो और नाशुक्री न करो

153

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ

ऐ ईमानदारों मुसीबत के वक्त सब्र और नमाज़ के ज़रिए से ख़ुदा की मदद माँगों

बेशक ख़ुदा सब्र करने वालों ही का साथी है

154

وَلَا تَقُولُوا لِمَنْ يُقْتَلُ فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْوَاتٌ ۚ بَلْ أَحْيَاءٌ وَلَكِنْ لَا تَشْعُرُونَ

और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना

बल्कि वह लोग ज़िन्दा हैं मगर तुम उनकी ज़िन्दगी की हक़ीकत का कुछ भी शऊर नहीं रखते

155

وَلَنَبْلُوَنَّكُمْ بِشَيْءٍ مِنَ الْخَوْفِ وَالْجُوعِ وَنَقْصٍ مِنَ الْأَمْوَالِ وَالْأَنْفُسِ وَالثَّمَرَاتِ ۗ وَبَشِّرِ الصَّابِرِينَ  

और हम तुम्हें कुछ खौफ़ और भूख से और मालों और जानों और फलों की कमी से ज़रुर आज़माएगें

और (ऐ रसूल) ऐसे सब्र करने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो

156

الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُمْ مُصِيبَةٌ قَالُوا إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ

कि जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो वह (बेसाख्ता) बोल उठे

हम तो ख़ुदा ही के हैं और हम उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं

157

أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِنْ رَبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ ۖ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ

उन्हीं लोगों पर उनके परवरदिगार की तरफ से इनायतें हैं और रहमत

और यही लोग हिदायत याफ्ता है

158

إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِنْ شَعَائِرِ اللَّهِ ۖ

बेशक (कोहे) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं

فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَنْ يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ

पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के (दरमियान) तवाफ़ (आमद ओ रफ्त) करने में कुछ गुनाह नहीं

(बल्कि सवाब है)

وَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ

और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ (और) वाक़िफ़कार है

159

‏إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنْزَلْنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالْهُدَى مِنْ بَعْدِ مَا بَيَّنَّاهُ لِلنَّاسِ فِي الْكِتَابِ ۙ

बेशक जो लोग हमारी इन रौशन दलीलों और हिदायतों को जिन्हें हमने नाज़िल किया उसके बाद छिपाते हैं

जबकि हम किताब तौरैत में लोगों के सामने साफ़ साफ़ बयान कर चुके हैं

 أُولَئِكَ يَلْعَنُهُمُ اللَّهُ وَيَلْعَنُهُمُ اللَّاعِنُونَ

तो यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा भी लानत करता है और लानत करने वाले भी लानत करते हैं

160

إِلَّا الَّذِينَ تَابُوا وَأَصْلَحُوا وَبَيَّنُوا فَأُولَئِكَ أَتُوبُ عَلَيْهِمْ ۚ وَأَنَا التَّوَّابُ الرَّحِيمُ

मगर जिन लोगों ने (हक़ छिपाने से) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर ली और जो किताबे ख़ुदा में है साफ़ साफ़ बयान कर दिया पस उन की तौबा मै क़ुबूल करता हूँ

और मै तो बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान हूँ

161

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَمَاتُوا وَهُمْ كُفَّارٌ أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ لَعْنَةُ اللَّهِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالنَّاسِ أَجْمَعِينَ

बेशक जिन लोगों नें कुफ्र एख्तेयार किया और कुफ़्र ही की हालत में मर गए उन्ही पर ख़ुदा की और फरिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है

162

خَالِدِينَ فِيهَا ۖ

हमेशा उसी फटकार में रहेंगे

 لَا يُخَفَّفُ عَنْهُمُ الْعَذَابُ وَلَا هُمْ يُنْظَرُونَ

न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न उनको अज़ाब से मोहलत दी जाएगी

163

وَإِلَهُكُمْ إِلَهٌ وَاحِدٌ ۖ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الرَّحْمَنُ الرَّحِيمُ

और तुम्हारा माबूद तो वही यकता ख़ुदा है

उस के सिवा कोई माबूद नहीं जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है

164

إِنَّ فِي خَلْقِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافِ اللَّيْلِ وَالنَّهَارِ

बेशक आसमान व ज़मीन की पैदाइश में

और रात दिन के रद्दो बदल में

وَالْفُلْكِ الَّتِي تَجْرِي فِي الْبَحْرِ بِمَا يَنْفَعُ النَّاسَ

और क़श्तियों जहाज़ों में जो लोगों के नफे क़ी चीज़े (माले तिजारत वगैरह दरिया) में ले कर चलते हैं

وَمَا أَنْزَلَ اللَّهُ مِنَ السَّمَاءِ مِنْ مَاءٍ فَأَحْيَا بِهِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِهَاوَبَثَّ فِيهَا مِنْ كُلِّ دَابَّةٍ

और पानी में जो ख़ुदा ने आसमान से बरसाया फिर उस से ज़मीन को मुर्दा (बेकार) होने के बाद जिला दिया (शादाब कर दिया)

और उस में हर क़िस्म के जानवर फैला दिये

وَتَصْرِيفِ الرِّيَاحِ وَالسَّحَابِ الْمُسَخَّرِ بَيْنَ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ

और हवाओं के चलाने में और अब्र में जो आसमान व ज़मीन के दरमियान ख़ुदा के हुक्म से घिरा रहता है

 لَآيَاتٍ لِقَوْمٍ يَعْقِلُونَ

(इन सब बातों में) अक्ल वालों के लिए बड़ी बड़ी निशानियाँ हैं

165

وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَتَّخِذُ مِنْ دُونِ اللَّهِ أَنْدَادًا يُحِبُّونَهُمْ كَحُبِّ اللَّهِ ۖ وَالَّذِينَ آمَنُوا أَشَدُّ حُبًّا لِلَّهِ ۗ

और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुदा के सिवा औरों को भी ख़ुदा का मिसल व शरीक बनाते हैं (और) जैसी मोहब्बत ख़ुदा से रखनी चाहिए वैसी ही उन से रखते हैं

और जो लोग ईमानदार हैं वह उन से कहीं बढ़ कर ख़ुदा की उलफ़त रखते हैं

وَلَوْ يَرَى الَّذِينَ ظَلَمُوا إِذْ يَرَوْنَ الْعَذَابَ أَنَّ الْقُوَّةَ لِلَّهِ جَمِيعًا وَأَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعَذَابِ

और काश ज़ालिमों को (इस वक्त) वह बात सूझती जो अज़ाब देखने के बाद सूझेगी कि

यक़ीनन हर तरह की क़ूवत ख़ुदा ही को है और ये कि बेशक ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है

166

إِذْ تَبَرَّأَ الَّذِينَ اتُّبِعُوا مِنَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا وَرَأَوُا الْعَذَابَ وَتَقَطَّعَتْ بِهِمُ الْأَسْبَابُ

(वह क्या सख्त वक्त होगा) जब पेशवा लोग अपने पैरवो से अपना पीछा छुड़ाएगे

और (ब चश्में ख़ुद) अज़ाब को देखेगें और उनके बाहमी ताल्लुक़ात टूट जाएँगे

167

وَقَالَ الَّذِينَ اتَّبَعُوا لَوْ أَنَّ لَنَا كَرَّةً فَنَتَبَرَّأَ مِنْهُمْ كَمَا تَبَرَّءُوا مِنَّا ۗ

और पैरव कहने लगेंगे कि अगर हमें कहीं फिर (दुनिया में) पलटना मिले तो हम भी उन से इसी तरह अलग हो जायेंगे जिस तरह एैन वक्त पर ये लोग हम से अलग हो गए

كَذَلِكَ يُرِيهِمُ اللَّهُ أَعْمَالَهُمْ حَسَرَاتٍ عَلَيْهِمْ ۖ وَمَا هُمْ بِخَارِجِينَ مِنَ النَّارِ

यूँ ही ख़ुदा उन के आमाल को दिखाएगा जो उन्हें (सर तापा पास ही) पास दिखाई देंगें

और फिर भला कब वह दोज़ख़ से निकल सकतें हैं

168

يَا أَيُّهَا النَّاسُ كُلُوا مِمَّا فِي الْأَرْضِ حَلَالًا طَيِّبًا وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ

ऐ लोगों जो कुछ ज़मीन में हैं उस में से हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ से) खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो

वह तो तुम्हारा ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है

169

إِنَّمَا يَأْمُرُكُمْ بِالسُّوءِ وَالْفَحْشَاءِ وَأَنْ تَقُولُوا عَلَى اللَّهِ مَا لَا تَعْلَمُونَ

वह तो तुम्हें बुराई और बदकारी ही का हुक्म करेगा

और ये चाहेगा कि तुम बे जाने बूझे ख़ुदा पर बोहतान बाँधों

170

وَإِذَا قِيلَ لَهُمُ اتَّبِعُوا مَا أَنْزَلَ اللَّهُ  قَالُوا بَلْ نَتَّبِعُ مَا أَلْفَيْنَا عَلَيْهِ آبَاءَنَا ۗ

और जब उन से कहा जाता है कि जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुआ है उस को मानो

तो कहते हैं कि नहीं बल्कि हम तो उसी तरीक़े पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया

أَوَلَوْ كَانَ آبَاؤُهُمْ لَا يَعْقِلُونَ شَيْئًا وَلَا يَهْتَدُونَ

अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे रास्त ही पर चलते रहे हों

171

وَمَثَلُ الَّذِينَ كَفَرُوا كَمَثَلِ الَّذِي يَنْعِقُ بِمَا لَا يَسْمَعُ إِلَّا دُعَاءً وَنِدَاءً ۚ

और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन की मिसाल तो उस शख्स की मिसाल है जो ऐसे जानवर को पुकार के अपना हलक़ फाड़े जो आवाज़ और पुकार के सिवा सुनता (समझता ख़ाक) न हो

 صُمٌّ بُكْمٌ عُمْيٌ فَهُمْ لَا يَعْقِلُونَ

ये लोग बहरे गूँगे अन्धें हैं कि ख़ाक नहीं समझते

172

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُلُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا رَزَقْنَاكُمْ وَاشْكُرُوا لِلَّهِ إِنْ كُنْتُمْ إِيَّاهُ تَعْبُدُونَ

ऐ ईमानदारों जो कुछ हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीज़ें (शौक़ से) खाओं

और अगर ख़ुदा ही की इबादत करते हो तो उसी का शुक्र करो

173

إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيْكُمُ الْمَيْتَةَ وَالدَّمَ وَلَحْمَ الْخِنْزِيرِ وَمَا أُهِلَّ بِهِ لِغَيْرِ اللَّهِ ۖ

उसने तो तुम पर बस मुर्दा जानवर और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़बह के वक्त ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है

فَمَنِ اضْطُرَّ غَيْرَ بَاغٍ وَلَا عَادٍ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ ۚ  إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

पस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज्यादती करने वाला न हो (और उनमे से कोई चीज़ खा ले) तो उसपर गुनाह नहीं है

बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

174

إِنَّ الَّذِينَ يَكْتُمُونَ مَا أَنْزَلَ اللَّهُ مِنَ الْكِتَابِ وَيَشْتَرُونَ بِهِ ثَمَنًا قَلِيلًا ۙ

أُولَئِكَ مَا يَأْكُلُونَ فِي بُطُونِهِمْ إِلَّا النَّارَ

बेशक जो लोग इन बातों को जो ख़ुदा ने किताब में नाज़िल की है छिपाते हैं

और उसके बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनयावी नफ़ा) ले लेतें है ये लोग बस अंगारों से अपने पेट भरते हैं

وَلَا يُكَلِّمُهُمُ اللَّهُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ

और क़यामत के दिन ख़ुदा उन से बात तक तो करेगा नहीं और न उन्हें (गुनाहों से) पाक करेगा

और उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है

175

أُولَئِكَ الَّذِينَ اشْتَرَوُا الضَّلَالَةَ بِالْهُدَى وَالْعَذَابَ بِالْمَغْفِرَةِ ۚ

यही लोग वह हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख्यिय (ख़ुदा) के बदले अज़ाब

فَمَا أَصْبَرَهُمْ عَلَى النَّارِ

पस वह लोग दोज़ख़ की आग के क्योंकर बरदाश्त करेंगे

176

ذَلِكَ بِأَنَّ اللَّهَ نَزَّلَ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ ۗ وَإِنَّ الَّذِينَ اخْتَلَفُوا فِي الْكِتَابِ لَفِي شِقَاقٍ بَعِيدٍ

ये इसलिए कि ख़ुदा ने बरहक़ किताब नाज़िल की

और बेशक जिन लोगों ने किताबे ख़ुदा में रद्दो बदल की वह लोग बड़े पल्ले दरजे की मुख़ालेफत में हैं

177

لَيْسَ الْبِرَّ أَنْ تُوَلُّوا وُجُوهَكُمْ قِبَلَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ

नेकी कुछ यही थोड़ी है कि नमाज़ में अपने मुँह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो

وَلَكِنَّ الْبِرَّ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَالْمَلَائِكَةِ وَالْكِتَابِ وَالنَّبِيِّينَ

बल्कि नेकी तो उसकी है जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत और फ़रिश्तों और ख़ुदा की किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए

وَآتَى الْمَالَ عَلَى حُبِّهِ ذَوِي الْقُرْبَى وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينَ وَابْنَ السَّبِيلِ وَالسَّائِلِينَ وَفِي الرِّقَابِ

और उसकी उलफ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों और माँगने वालों और लौन्डी ग़ुलाम (के गुलू खलासी) में सर्फ करे

وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ  وَالْمُوفُونَ بِعَهْدِهِمْ إِذَا عَاهَدُوا ۖ

और पाबन्दी से नमाज़ पढे और ज़कात देता रहे

और जब कोई एहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हो

وَالصَّابِرِينَ فِي الْبَأْسَاءِ وَالضَّرَّاءِ وَحِينَ الْبَأْسِ ۗ

और फ़क्र व फाक़ा रन्ज और घुटन के वक्त साबित क़दम रहे

 أُولَئِكَ الَّذِينَ صَدَقُوا ۖ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُتَّقُونَ

यही लोग वह हैं जो दावए ईमान में सच्चे निकले और यही लोग परहेज़गार है

178

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِصَاصُ فِي الْقَتْلَى ۖ

ऐ मोमिनों जो लोग (नाहक़) मार डाले जाएँ उनके बदले में तुम को जान के बदले जान लेने का हुक्म दिया जाता है

الْحُرُّ بِالْحُرِّ وَالْعَبْدُ بِالْعَبْدِ وَالْأُنْثَى بِالْأُنْثَى ۚ

आज़ाद के बदले आज़ाद और ग़ुलाम के बदले ग़ुलाम और औरत के बदले औरत

فَمَنْ عُفِيَ لَهُ مِنْ أَخِيهِ شَيْءٌ فَاتِّبَاعٌ بِالْمَعْرُوفِ وَأَدَاءٌ إِلَيْهِ بِإِحْسَانٍ ۗ

पस जिस (क़ातिल) को उसके ईमानी भाई तालिबे केसास की तरफ से कुछ माफ़ कर दिया जाये तो उसे भी उसके क़दम ब क़दम नेकी करना और ख़ुश मआमलती से (ख़ून बहा) अदा कर देना चाहिए

ذَلِكَ تَخْفِيفٌ مِنْ رَبِّكُمْ وَرَحْمَةٌ ۗ فَمَنِ اعْتَدَى بَعْدَ ذَلِكَ فَلَهُ عَذَابٌ أَلِيمٌ

ये तुम्हारे परवरदिगार की तरफ आसानी और मेहरबानी है

फिर उसके बाद जो ज्यादती करे तो उस के लिए दर्दनाक अज़ाब है

179

وَلَكُمْ فِي الْقِصَاصِ حَيَاةٌ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

और ऐ अक़लमनदों क़सास (के क़वाएद मुक़र्रर कर देने) में तुम्हारी ज़िन्दगी है (और इसीलिए जारी किया गया है ताकि तुम ख़ूंरेज़ी से) परहेज़ करो

180

كُتِبَ عَلَيْكُمْ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ إِنْ تَرَكَ خَيْرًا الْوَصِيَّةُ لِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ بِالْمَعْرُوفِ ۖ

(मुसलमानों) तुम को हुक्म दिया जाता है कि जब तुम में से किसी के सामने मौत आ खड़ी हो बशर्ते कि वह कुछ माल छोड़ जाएं तो माँ बाप और क़राबतदारों के लिए अच्छी वसीयत करें

حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِينَ

जो ख़ुदा से डरते हैं उन पर ये एक हक़ है

181

فَمَنْ بَدَّلَهُ بَعْدَمَا سَمِعَهُ فَإِنَّمَا إِثْمُهُ عَلَى الَّذِينَ يُبَدِّلُونَهُ ۚ إِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

फिर जो सुन चुका उसके बाद उसे कुछ का कुछ कर दे तो उस का गुनाह उन्हीं लोगों की गरदन पर है जो उसे बदल डालें

बेशक ख़ुदा सब कुछ जानता और सुनता है

182

فَمَنْ خَافَ مِنْ مُوصٍ جَنَفًا أَوْ إِثْمًا فَأَصْلَحَ بَيْنَهُمْ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

(हाँ अलबत्ता) जो शख्स वसीयत करने वाले से बेजा तरफ़दारी या बे इन्साफी का ख़ौफ रखता है और उन वारिसों में सुलह करा दे तो उस पर बदलने का कुछ गुनाह नहीं है

बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

183

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ

ऐ ईमानदारों रोज़ा रखना जिस तरह तुम से पहले के लोगों पर फर्ज था उसी तरफ तुम पर भी फर्ज़ किया गया ताकि तुम उस की वजह से बहुत से गुनाहों से बचो

184

أَيَّامًا مَعْدُودَاتٍ ۚ

(वह भी हमेशा नहीं बल्कि) गिनती के चन्द रोज़

فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۚ

इस पर भी (रोज़े के दिनों में) जो शख्स तुम में से बीमार हो या सफर में हो तो और दिनों में जितने क़ज़ा हुए हो गिन के रख ले

وَعَلَى الَّذِينَ يُطِيقُونَهُ فِدْيَةٌ طَعَامُ مِسْكِينٍ ۖ فَمَنْ تَطَوَّعَ خَيْرًا فَهُوَ خَيْرٌ لَهُ ۚ

और जिन्हें रोज़ा रखने की कूवत है और न रखें तो उन पर उस का बदला एक मोहताज को खाना खिला देना है

وَأَنْ تَصُومُوا خَيْرٌ لَكُمْ ۖ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ

और जो शख्स अपनी ख़ुशी से भलाई करे तो ये उस के लिए ज्यादा बेहतर है

और अगर तुम समझदार हो तो (समझ लो कि फिदये से) रोज़ा रखना तुम्हारे हक़ में बहरहाल अच्छा है

185

شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدًى لِلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ ۚ

(रोज़ों का) महीना रमज़ान है जिस में क़ुरान नाज़िल किया गया

जो लोगों का रहनुमा है और उसमें रहनुमाई और (हक़ व बातिल के) तमीज़ की रौशन निशानियाँ हैं

فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ ۖ وَمَنْ كَانَ مَرِيضًا أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ ۗ

(मुसलमानों) तुम में से जो शख्स इस महीनें में अपनी जगह पर हो तो उसको चाहिए कि रोज़ा रखे

और जो शख्स बीमार हो या फिर सफ़र में हो तो और दिनों में रोज़े की गिनती पूरी करे

يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلَا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ وَلِتُكْمِلُوا الْعِدَّةَ

ख़ुदा तुम्हारे साथ आसानी करना चाहता है और तुम्हारे साथ सख्ती करनी नहीं चाहता

और (शुमार का हुक्म इस लिए दिया है) ताकि तुम (रोज़ो की) गिनती पूरी करो

وَلِتُكَبِّرُوا اللَّهَ عَلَى مَا هَدَاكُمْ وَلَعَلَّكُمْ تَشْكُرُونَ

और ताकि ख़ुदा ने जो तुम को राह पर लगा दिया है उस नेअमत पर उस की बड़ाई करो और ताकि तुम शुक्र गुज़ार बनो

186

وَإِذَا سَأَلَكَ عِبَادِي عَنِّي فَإِنِّي قَرِيبٌ ۖ أُجِيبُ دَعْوَةَ الدَّاعِ إِذَا دَعَانِ ۖ

(ऐ रसूल) जब मेरे बन्दे मेरा हाल तुमसे पूछे तो (कह दो कि) मै उन के पास ही हूँ

और जब मुझसे कोई दुआ माँगता है तो मै हर दुआ करने वालों की दुआ (सुन लेता हूँ और जो मुनासिब हो तो) क़ुबूल करता हूँ

فَلْيَسْتَجِيبُوا لِي وَلْيُؤْمِنُوا بِي لَعَلَّهُمْ يَرْشُدُونَ

पस उन्हें चाहिए कि मेरा भी कहना माने और मुझ पर ईमान लाएँ ताकि वह सीधी राह पर आ जाए

187

أُحِلَّ لَكُمْ لَيْلَةَ الصِّيَامِ الرَّفَثُ إِلَى نِسَائِكُمْ ۚ

(मुसलमानों) तुम्हारे वास्ते रोज़ों की रातों में अपनी बीवियों के पास जाना हलाल कर दिया गया

هُنَّ لِبَاسٌ لَكُمْ وَأَنْتُمْ لِبَاسٌ لَهُنَّ ۗ

औरतें (गोया) तुम्हारी चोली हैं और तुम गोया उन के दामन हो

عَلِمَ اللَّهُ أَنَّكُمْ كُنْتُمْ تَخْتَانُونَ أَنْفُسَكُمْ فَتَابَ عَلَيْكُمْ وَعَفَا عَنْكُمْ ۖ

ख़ुदा ने देखा कि तुम (गुनाह) करके अपना नुकसान करते (कि ऑंख बचा के अपनी बीबी के पास चले जाते थे) तो उसने तुम्हारी तौबा क़ुबूल की और तुम्हारी ख़ता से दर गुज़र किया

فَالْآنَ بَاشِرُوهُنَّ وَابْتَغُوا مَا كَتَبَ اللَّهُ لَكُمْ ۚ

पस तुम अब उनसे हम बिस्तरी करो और (औलाद) जो कुछ ख़ुदा ने तुम्हारे लिए (तक़दीर में) लिख दिया है उसे माँगों

وَكُلُوا وَاشْرَبُوا حَتَّى يَتَبَيَّنَ لَكُمُ الْخَيْطُ الْأَبْيَضُ مِنَ الْخَيْطِ الْأَسْوَدِ مِنَ الْفَجْرِ ۖ

और खाओ और पियो यहाँ तक कि सुबह की सफेद धारी (रात की) काली धारी से आसमान पर पूरब की तरफ़ तक तुम्हें साफ नज़र आने लगे

 ثُمَّ أَتِمُّوا الصِّيَامَ إِلَى اللَّيْلِ ۚ

फिर रात तक रोज़ा पूरा करो

وَلَا تُبَاشِرُوهُنَّ وَأَنْتُمْ عَاكِفُونَ فِي الْمَسَاجِدِ ۗ

और हाँ जब तुम मस्ज़िदों में एतेकाफ़ करने बैठो तो उन से (रात को भी) हम बिस्तरी न करो

تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَقْرَبُوهَا ۗ كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ

ये ख़ुदा की (मुअय्युन की हुई) हदे हैं तो तुम उनके पास भी न जाना

यूँ खुल्लम खुल्ला ख़ुदा अपने एहकाम लोगों के सामने बयान करता है ताकि वह लोग (नाफ़रमानी से) बचें

188

وَلَا تَأْكُلُوا أَمْوَالَكُمْ بَيْنَكُمْ بِالْبَاطِلِ وَتُدْلُوا بِهَا إِلَى الْحُكَّامِ لِتَأْكُلُوا فَرِيقًا مِنْ أَمْوَالِ النَّاسِ بِالْإِثْمِ وَأَنْتُمْ تَعْلَمُونَ

और आपस में एक दूसरे का माल नाहक़ न खाओ

और न माल को (रिश्वत में) हुक्काम के यहाँ झोंक दो ताकि लोगों के माल में से (जो) कुछ हाथ लगे नाहक़ ख़ुर्द बुर्द कर जाओ हालाकि तुम जानते हो

189

‏يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْأَهِلَّةِ ۖ قُلْ هِيَ مَوَاقِيتُ لِلنَّاسِ وَالْحَجِّ ۗ

(ऐ रसूल) तुम से लोग चाँद के बारे में पूछते हैं (कि क्यो घटता बढ़ता है)

तुम कह दो कि उससे लोगों के (दुनयावी) अम्र और हज के अवक़ात मालूम होते है

وَلَيْسَ الْبِرُّ بِأَنْ تَأْتُوا الْبُيُوتَ مِنْ ظُهُورِهَا وَلَكِنَّ الْبِرَّ مَنِ اتَّقَى ۗ وَأْتُوا الْبُيُوتَ مِنْ أَبْوَابِهَا ۚ

और ये कोई भली बात नही है कि घरो में पिछवाड़े से (फाँद के) आओ बल्कि नेकी उसकी है जो परहेज़गारी करे

और घरों में (आना हो तो) उनके दरवाजों क़ी तरफ से आओ

وَاتَّقُوا اللَّهَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ

और ख़ुदा से डरते रहो ताकि तुम मुराद को पहुँचो

190

وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ الَّذِينَ يُقَاتِلُونَكُمْ وَلَا تَعْتَدُوا ۚ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُعْتَدِينَ

और जो लोग तुम से लड़े तुम (भी) ख़ुदा की राह में उनसे लड़ो और ज्यादती न करो

(क्योंकि) ख़ुदा ज्यादती करने वालों को हरगिज़ दोस्त नहीं रखता

191

وَاقْتُلُوهُمْ حَيْثُ ثَقِفْتُمُوهُمْ وَأَخْرِجُوهُمْ مِنْ حَيْثُ أَخْرَجُوكُمْ ۚ

और तुम उन (मुशरिकों) को जहाँ पाओ मार ही डालो

और उन लोगों ने जहाँ (मक्का) से तुम्हें शहर बदर किया है तुम भी उन्हें निकाल बाहर करो

وَالْفِتْنَةُ أَشَدُّ مِنَ الْقَتْلِ ۚ

और फितना परदाज़ी (शिर्क) खूँरेज़ी से भी बढ़ के है

وَلَا تُقَاتِلُوهُمْ عِنْدَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ حَتَّى يُقَاتِلُوكُمْ فِيهِ ۖ

और जब तक वह लोग (कुफ्फ़ार) मस्ज़िद हराम (काबा) के पास तुम से न लडे तुम भी उन से उस जगह न लड़ों

فَإِنْ قَاتَلُوكُمْ فَاقْتُلُوهُمْ ۗكَذَلِكَ جَزَاءُ الْكَافِرِينَ

पस अगर वह तुम से लड़े तो बेखटके तुम भी उन को क़त्ल करो

काफ़िरों की यही सज़ा है

192

فَإِنِ انْتَهَوْا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

फिर अगर वह लोग बाज़ रहें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है  

193

وَقَاتِلُوهُمْ حَتَّى لَا تَكُونَ فِتْنَةٌ وَيَكُونَ الدِّينُ لِلَّهِ ۖ فَإِنِ انْتَهَوْا فَلَا عُدْوَانَ إِلَّا عَلَى الظَّالِمِينَ

और उन से लड़े जाओ यहाँ तक कि फ़साद बाक़ी न रहे और सिर्फ ख़ुदा ही का दीन रह जाए

फिर अगर वह लोग बाज़ रहे तो उन पर ज्यादती न करो क्योंकि ज़ालिमों के सिवा किसी पर ज्यादती (अच्छी) नहीं

194

الشَّهْرُ الْحَرَامُ بِالشَّهْرِ الْحَرَامِ وَالْحُرُمَاتُ قِصَاصٌ ۚ

हुरमत वाला महीना हुरमत वाले महीने के बराबर है (और कुछ महीने की खुसूसियत नहीं) सब हुरमत वाली चीजे एक दूसरे के बराबर हैं

فَمَنِ اعْتَدَى عَلَيْكُمْ فَاعْتَدُوا عَلَيْهِ بِمِثْلِ مَا اعْتَدَى عَلَيْكُمْ ۚ

पस जो शख्स तुम पर ज्यादती करे तो जैसी ज्यादती उसने तुम पर की है वैसी ही ज्यादती तुम भी उस पर करो

وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ مَعَ الْمُتَّقِينَ

और ख़ुदा से डरते रहो और खूब समझ लो कि ख़ुदा परहेज़गारों का साथी है

195

وَأَنْفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلَا تُلْقُوا بِأَيْدِيكُمْ إِلَى التَّهْلُكَةِ ۛ  وَأَحْسِنُوا ۛ إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْمُحْسِنِينَ

और ख़ुदा की राह में ख़र्च करो और अपने हाथ जान हलाकत मे न डालो

और नेकी करो बेशक ख़ुदा नेकी करने वालों को दोस्त रखता है

196

وَأَتِمُّوا الْحَجَّ وَالْعُمْرَةَ لِلَّهِ ۚ

और सिर्फ ख़ुदा ही के वास्ते हज और उमरा को पूरा करो

فَإِنْ أُحْصِرْتُمْ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ ۖ وَلَا تَحْلِقُوا رُءُوسَكُمْ حَتَّى يَبْلُغَ الْهَدْيُ مَحِلَّهُ ۚ

अगर तुम बीमारी वगैरह की वजह से मजबूर हो जाओ तो फिर जैसी क़ुरबानी मयस्सर आये (कर दो)

और जब तक कुरबानी अपनी जगह पर न पहुँच जाये अपने सर न मुँडवाओ

فَمَنْ كَانَ مِنْكُمْ مَرِيضًا أَوْ بِهِ أَذًى مِنْ رَأْسِهِ فَفِدْيَةٌ مِنْ صِيَامٍ أَوْ صَدَقَةٍ أَوْ نُسُكٍ ۚ

फिर जब तुम में से कोई बीमार हो या उसके सर में कोई तकलीफ हो तो (सर मुँडवाने का बदला) रोजे या खैरात या कुरबानी है

فَإِذَا أَمِنْتُمْ فَمَنْ تَمَتَّعَ بِالْعُمْرَةِ إِلَى الْحَجِّ فَمَا اسْتَيْسَرَ مِنَ الْهَدْيِ ۚ

पस जब मुतमइन रहों तो जो शख्स हज तमत्तो का उमरा करे तो उसको जो कुरबानी मयस्सर आये करनी होगी

فَمَنْ لَمْ يَجِدْ فَصِيَامُ ثَلَاثَةِ أَيَّامٍ فِي الْحَجِّ وَسَبْعَةٍ إِذَا رَجَعْتُمْ ۗ تِلْكَ عَشَرَةٌ كَامِلَةٌ ۗ

और जिस से कुरबानी ना मुमकिन हो तो तीन रोजे ज़माना ए हज में (रखने होंगे) और सात रोजे ज़ब तुम वापस आओ

ये पूरा दहाई है

ذَلِكَ لِمَنْ لَمْ يَكُنْ أَهْلُهُ حَاضِرِي الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ ۚ

ये हुक्म उस शख्स के वास्ते है जिस के लड़के बाले मस्ज़िदुल हराम (मक्का) के बाशिन्दे न हो

وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ

और ख़ुदा से डरो और समझ लो कि ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है

197

الْحَجُّ أَشْهُرٌ مَعْلُومَاتٌ ۚ

हज के महीने तो (अब सब को) मालूम हैं

(शव्वाल, ज़ीक़ादा, जिलहज)

فَمَنْ فَرَضَ فِيهِنَّ الْحَجَّ فَلَا رَفَثَ وَلَا فُسُوقَ وَلَا جِدَالَ فِي الْحَجِّ ۗ وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ يَعْلَمْهُ اللَّهُ ۗ

पस जो शख्स उन महीनों में अपने ऊपर हज लाज़िम करे तो (एहराम से आख़िर हज तक) न औरत के पास जाए न कोई और गुनाह करे और न झगडे

और नेकी का कोई सा काम भी करों तो ख़ुदा उस को खूब जानता है

وَتَزَوَّدُوا فَإِنَّ خَيْرَ الزَّادِ التَّقْوَى ۚ وَاتَّقُونِ يَا أُولِي الْأَلْبَابِ

और (रास्ते के लिए) ज़ाद राह मुहिय्या करो और सब मे बेहतर ज़ाद राह परहेज़गारी है

और ऐ अक्लमन्दों मुझ से डरते रहो

198

لَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَنْ تَبْتَغُوا فَضْلًا مِنْ رَبِّكُمْ ۚ

इस में कोई इल्ज़ाम नहीं है कि (हज के साथ) तुम अपने परवरदिगार के फज़ल (नफ़ा तिजारत) की ख्वाहिश करो

فَإِذَا أَفَضْتُمْ مِنْ عَرَفَاتٍ فَاذْكُرُوا اللَّهَ عِنْدَ الْمَشْعَرِ الْحَرَامِ ۖ

और फिर जब तुम अरफात से चल खड़े हो तो मशअरुल हराम के पास ख़ुदा का जिक्र करो

وَاذْكُرُوهُ كَمَا هَدَاكُمْ وَإِنْ كُنْتُمْ مِنْ قَبْلِهِ لَمِنَ الضَّالِّينَ

और उस की याद भी करो तो जिस तरह तुम्हे बताया है

अगरचे तुम इसके पहले तो गुमराहो से थे

199

ثُمَّ أَفِيضُوا مِنْ حَيْثُ أَفَاضَ النَّاسُ وَاسْتَغْفِرُوا اللَّهَ ۚ إِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

फिर जहाँ से लोग चल खड़े हों वहीं से तुम भी चल खड़े हो और उससे मग़फिरत की दुआ माँगों

बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

200

فَإِذَا قَضَيْتُمْ مَنَاسِكَكُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَذِكْرِكُمْ آبَاءَكُمْ أَوْ أَشَدَّ ذِكْرًا ۗ

फिर जब तुम अरक़ाने हज बजा ला चुको तो तुम इस तरह ज़िक्रे ख़ुदा करो जिस तरह तुम अपने बाप दादाओं का ज़िक्र करते हो बल्कि उससे बढ़ कर के

فَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا وَمَا لَهُ فِي الْآخِرَةِ مِنْ خَلَاقٍ

फिर बाज़ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि ऐ मेरे परवरदिगार हमको जो (देना है) दुनिया ही में दे दे हालाकि (फिर) आख़िरत में उनका कुछ हिस्सा नहीं

201

وَمِنْهُمْ مَنْ يَقُولُ رَبَّنَا آتِنَا فِي الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِي الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَقِنَا عَذَابَ النَّارِ

और बाज़ बन्दे ऐसे हैं कि जो दुआ करते हैं कि

ऐ मेरे पालने वाले मुझे दुनिया में नेअमत दे और आख़िरत में सवाब दे और दोज़ख़ की बाग से बचा

202

أُولَئِكَ لَهُمْ نَصِيبٌ مِمَّا كَسَبُوا ۚ وَاللَّهُ سَرِيعُ الْحِسَابِ

यही वह लोग हैं जिनके लिए अपनी कमाई का हिस्सा चैन है

और ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है

203

وَاذْكُرُوا اللَّهَ فِي أَيَّامٍ مَعْدُودَاتٍ ۚ

और इन गिनती के चन्द दिनों तक (तो) ख़ुदा का ज़िक्र करो

فَمَنْ تَعَجَّلَ فِي يَوْمَيْنِ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ وَمَنْ تَأَخَّرَ فَلَا إِثْمَ عَلَيْهِ ۚ لِمَنِ اتَّقَى ۗ

फिर जो शख्स जल्दी कर बैठै और (मिना) से और दो ही दिन में चल ख़ड़ा हो तो उस पर भी गुनाह नहीं है और जो (तीसरे दिन तक) ठहरा रहे उस पर भी कुछ गुनाह नही

लेकिन यह रियायत उसके वास्ते है जो परहेज़गार हो,

وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ إِلَيْهِ تُحْشَرُونَ

और खुदा से डरते रहो और यक़ीन जानो कि एक दिन तुम सब के सब उसकी तरफ क़ब्रों से उठाए जाओगे

204

وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يُعْجِبُكَ قَوْلُهُ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَاوَيُشْهِدُ اللَّهَ عَلَى مَا فِي قَلْبِهِ وَهُوَ أَلَدُّ الْخِصَامِ

ऐ रसूल बाज़ लोग मुनाफिक़ीन से ऐसे भी हैं जिनकी चिकनी चुपड़ी बातें (इस ज़रा सी) दुनयावी ज़िन्दगी में तुम्हें बहुत भाती है

और वह अपनी दिली मोहब्बत पर ख़ुदा को गवाह मुक़र्रर करते हैं हालॉकि वह तुम्हारे दुश्मनों में सबसे ज्यादा झगड़ालू हैं

205

وَإِذَا تَوَلَّى سَعَى فِي الْأَرْضِ لِيُفْسِدَ فِيهَا وَيُهْلِكَ الْحَرْثَ وَالنَّسْلَ ۗ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ الْفَسَادَ

और जहाँ तुम्हारी मोहब्बत से मुँह फेरा तो इधर उधर दौड़ धूप करने लगा ताकि मुल्क में फ़साद फैलाए और ज़राअत (खेती बाड़ी) और मवेशी का सत्यानास करे

और ख़ुदा फसाद को अच्छा नहीं समझता

206

وَإِذَا قِيلَ لَهُ اتَّقِ اللَّهَ أَخَذَتْهُ الْعِزَّةُ بِالْإِثْمِ ۚ

और जब कहा जाता है कि ख़ुदा से डरो तो उसे ग़ुरुर गुनाह पर उभारता है

فَحَسْبُهُ جَهَنَّمُ ۚ وَلَبِئْسَ الْمِهَادُ

बस ऐसे कम्बख्त के लिए जहन्नुम ही काफ़ी है

और बहुत ही बुरा ठिकाना है

207

وَمِنَ النَّاسِ مَنْ يَشْرِي نَفْسَهُ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ رَءُوفٌ بِالْعِبَادِ

और लोगों में से ख़ुदा के बन्दे कुछ ऐसे हैं जो ख़ुदा की (ख़ुशनूदी) हासिल करने की ग़रज़ से अपनी जान तक बेच डालते हैं

और ख़ुदा ऐसे बन्दों पर बड़ा ही यफ्क्क़त वाला है

208

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ادْخُلُوا فِي السِّلْمِ كَافَّةً وَلَا تَتَّبِعُوا خُطُوَاتِ الشَّيْطَانِ ۚ إِنَّهُ لَكُمْ عَدُوٌّ مُبِينٌ

ईमान वालों तुम सबके सब एक बार इस्लाम में (पूरी तरह) दाख़िल हो जाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो

वह तुम्हारा यक़ीनी ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है

209

فَإِنْ زَلَلْتُمْ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْكُمُ الْبَيِّنَاتُ فَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

फिर जब तुम्हारे पास रौशन दलीले आ चुकी उसके बाद भी डगमगा गए तो अच्छी तरह समझ लो कि ख़ुदा (हर तरह) ग़ालिब और तदबीर वाला है

210

هَلْ يَنْظُرُونَ إِلَّا أَنْ يَأْتِيَهُمُ اللَّهُ فِي ظُلَلٍ مِنَ الْغَمَامِ وَالْمَلَائِكَةُ وَقُضِيَ الْأَمْرُ ۚ

क्या वह लोग इसी के मुन्तज़िर हैं कि सफेद बादल के साय बानो की आड़ में अज़ाबे ख़ुदा और अज़ाब के फ़रिश्ते उन पर ही आ जाए और सब झगड़े चुक ही जाते

وَإِلَى اللَّهِ تُرْجَعُ الْأُمُورُ

हालॉकि आख़िर कुल उमुर ख़ुदा ही की तरफ रुजू किए जाएँगे

211

سَلْ بَنِي إِسْرَائِيلَ كَمْ آتَيْنَاهُمْ مِنْ آيَةٍ بَيِّنَةٍ ۗ

(ऐ रसूल) बनी इसराइल से पूछो कि हम ने उन को कैसी कैसी रौशन निशानियाँ दी

وَمَنْ يُبَدِّلْ نِعْمَةَ اللَّهِ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُ فَإِنَّ اللَّهَ شَدِيدُ الْعِقَابِ

और जब किसी शख्स के पास ख़ुदा की नेअमत (किताब) आ चुकी उस के बाद भी उस को बदल डाले तो बेशक़ ख़ुदा सख्त अज़ाब वाला है

212

زُيِّنَ لِلَّذِينَ كَفَرُوا الْحَيَاةُ الدُّنْيَا وَيَسْخَرُونَ مِنَ الَّذِينَ آمَنُوا ۘ

जिन लोगों ने कुफ्र इख्तेयार किया उन के लिये दुनिया की ज़रा सी ज़िन्दगी ख़ूब अच्छी दिखायी गयी है और ईमानदारों से मसखरापन करते हैं

وَالَّذِينَ اتَّقَوْا فَوْقَهُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ ۗ وَاللَّهُ يَرْزُقُ مَنْ يَشَاءُ بِغَيْرِ حِسَابٍ

हालॉकि क़यामत के दिन परहेज़गारों का दरजा उनसे (कहीं) बढ़ चढ़ के होगा

और ख़ुदा जिस को चाहता है बे हिसाब रोज़ी अता फरमाता है

213

كَانَ النَّاسُ أُمَّةً وَاحِدَةً فَبَعَثَ اللَّهُ النَّبِيِّينَ مُبَشِّرِينَ وَمُنْذِرِينَ

وَأَنْزَلَ مَعَهُمُ الْكِتَابَ بِالْحَقِّ لِيَحْكُمَ بَيْنَ النَّاسِ فِيمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ ۚ

(पहले) सब लोग एक ही दीन रखते थे (फिर आपस में झगड़ने लगे तब) ख़ुदा ने नजात से ख़ुश ख़बरी देने वाले और अज़ाब से डराने वाले पैग़म्बरों को भेजा और इन पैग़म्बरों के साथ बरहक़ किताब भी नाज़िल की ताकि जिन बातों में लोग झगड़ते थे किताबे ख़ुदा (उसका) फ़ैसला कर दे

وَمَا اخْتَلَفَ فِيهِ إِلَّا الَّذِينَ أُوتُوهُ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ بَغْيًا بَيْنَهُمْ ۖ

और फिर अफ़सोस तो ये है कि इस हुक्म से इख्तेलाफ किया भी तो उन्हीं लोगों ने जिन को किताब दी गयी थी और वह भी जब उन के पास ख़ुदा के साफ एहकाम आ चुके उसके बाद और वह भी आपस की शरारत से

فَهَدَى اللَّهُ الَّذِينَ آمَنُوا لِمَا اخْتَلَفُوا فِيهِ مِنَ الْحَقِّ بِإِذْنِهِ ۗ وَاللَّهُ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ إِلَى صِرَاطٍ مُسْتَقِيمٍ

तब ख़ुदा ने अपनी मेहरबानी से (ख़ालिस) ईमानदारों को वह राहे हक़ दिखा दी जिस में उन लोगों ने इख्तेलाफ डाल रखा था

और ख़ुदा जिस को चाहे राहे रास्त की हिदायत करता है  

214

أَمْ حَسِبْتُمْ أَنْ تَدْخُلُوا الْجَنَّةَ وَلَمَّا يَأْتِكُمْ مَثَلُ الَّذِينَ خَلَوْا مِنْ قَبْلِكُمْ ۖ

क्या तुम ये ख्याल करते हो कि बेहश्त में पहुँच ही जाओगे हालॉकि अभी तक तुम्हे अगले ज़माने वालों की सी हालत नहीं पेश आयी

مَسَّتْهُمُ الْبَأْسَاءُ وَالضَّرَّاءُ وَزُلْزِلُوا حَتَّى يَقُولَ الرَّسُولُ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ مَتَى نَصْرُ اللَّهِ ۗ

कि उन्हें तरह तरह की तक़लीफों (फाक़ा कशी मोहताजी) और बीमारी ने घेर लिया था और ज़लज़ले में इस क़दर झिंझोडे ग़ए

कि आख़िर (आज़िज़ हो के) पैग़म्बर और ईमान वाले जो उन के साथ थे कहने लगे देखिए ख़ुदा की मदद कब (होती) है

أَلَا إِنَّ نَصْرَ اللَّهِ قَرِيبٌ

देखो (घबराओ नहीं) ख़ुदा की मदद यक़ीनन बहुत क़रीब है

215

يَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنْفِقُونَ ۖ

(ऐ रसूल) तुमसे लोग पूछते हैं कि हम ख़ुदा की राह में क्या खर्च करें

قُلْ مَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ خَيْرٍ فَلِلْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ وَالْيَتَامَى وَالْمَسَاكِينِ وَابْنِ السَّبِيلِ ۗ

(तो तुम उन्हें) जवाब दो कि तुम अपनी नेक कमाई से जो कुछ खर्च करो तो वह तुम्हारे माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों का हक़ है

وَمَا تَفْعَلُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ

और तुम कोई नेक सा काम करो ख़ुदा उसको ज़रुर जानता है

216

كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ وَهُوَ كُرْهٌ لَكُمْ ۖ

(मुसलमानों) तुम पर जिहाद फर्ज क़िया गया अगरचे तुम पर शाक़ ज़रुर है

وَعَسَى أَنْ تَكْرَهُوا شَيْئًا وَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ ۖ وَعَسَى أَنْ تُحِبُّوا شَيْئًا وَهُوَ شَرٌّ لَكُمْ ۗ

और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ (जिहाद) को नापसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बेहतर हो

और अजब नहीं कि तुम किसी चीज़ को पसन्द करो हालॉकि वह तुम्हारे हक़ में बुरी हो

وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

और ख़ुदा (तो) जानता ही है मगर तुम नही जानते हो

217

يَسْأَلُونَكَ عَنِ الشَّهْرِ الْحَرَامِ قِتَالٍ فِيهِ ۖ

(ऐ रसूल) तुमसे लोग हुरमत वाले महीनों की निस्बत पूछते हैं कि (आया) जिहाद उनमें जायज़ है

 قُلْ قِتَالٌ فِيهِ كَبِيرٌ ۖ

तो तुम उन्हें जवाब दो कि इन महीनों में जेहाद बड़ा गुनाह है

وَصَدٌّ عَنْ سَبِيلِ اللَّهِ وَكُفْرٌ بِهِ وَالْمَسْجِدِ الْحَرَامِ وَإِخْرَاجُ أَهْلِهِ مِنْهُ أَكْبَرُ عِنْدَ اللَّهِ ۚ

और ये भी याद रहे कि ख़ुदा की राह से रोकना और ख़ुदा से इन्कार और मस्जिदुल हराम (काबा) से रोकना और जो उस के अहल है उनका मस्जिद से निकाल बाहर करना (ये सब) ख़ुदा के नज़दीक इस से भी बढ़कर गुनाह है

وَالْفِتْنَةُ أَكْبَرُ مِنَ الْقَتْلِ ۗ وَلَا يَزَالُونَ يُقَاتِلُونَكُمْ حَتَّى يَرُدُّوكُمْ عَنْ دِينِكُمْ إِنِ اسْتَطَاعُوا ۚ

और फ़ितना परदाज़ी कुश्ती खून से भी बढ़ कर है

और ये कुफ्फ़ार हमेशा तुम से लड़ते ही चले जाएँगें यहाँ तक कि अगर उन का बस चले तो तुम को तुम्हारे दीन से फिरा दे

وَمَنْ يَرْتَدِدْ مِنْكُمْ عَنْ دِينِهِ فَيَمُتْ وَهُوَ كَافِرٌ فَأُولَئِكَ حَبِطَتْ أَعْمَالُهُمْ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۖ

और तुम में जो शख्स अपने दीन से फिरा और कुफ़्र की हालत में मर गया तो ऐसों ही का किया कराया सब कुछ दुनिया और आखेरत (दोनों) में अकारत है

وَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

और यही लोग जहन्नुमी हैं (और) वह उसी में हमेशा रहेंगें

218

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أُولَئِكَ يَرْجُونَ رَحْمَتَ اللَّهِ ۚ

बेशक जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और ख़ुदा की राह में हिजरत की और जिहाद किया यही लोग रहमते ख़ुदा के उम्मीदवार हैं

وَاللَّهُ غَفُورٌ رَحِيمٌ

और ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

219

يَسْأَلُونَكَ عَنِ الْخَمْرِ وَالْمَيْسِرِ ۖ

(ऐ रसूल) तुमसे लोग शराब और जुए के बारे में पूछते हैं

قُلْ فِيهِمَا إِثْمٌ كَبِيرٌ وَمَنَافِعُ لِلنَّاسِ وَإِثْمُهُمَا أَكْبَرُ مِنْ نَفْعِهِمَا ۗ

तो तुम उन से कह दो कि इन दोनो में बड़ा गुनाह है और कुछ फायदे भी हैं और उन के फायदे से उन का गुनाह बढ़ के है

وَيَسْأَلُونَكَ مَاذَا يُنْفِقُونَ قُلِ الْعَفْوَ ۗ

और तुम से लोग पूछते हैं कि ख़ुदा की राह में क्या ख़र्च करे

तुम उनसे कह दो कि जो तुम्हारे ज़रुरत से बचे

كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُونَ

यूँ ख़ुदा अपने एहकाम तुम से साफ़ साफ़ बयान करता है

220

فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ ۗ

ताकि तुम दुनिया और आख़िरत (के मामलात) में ग़ौर करो

وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْيَتَامَى ۖ

और तुम से लोग यतीमों के बारे में पूछते हैं

قُلْ إِصْلَاحٌ لَهُمْ خَيْرٌ ۖ وَإِنْ تُخَالِطُوهُمْ فَإِخْوَانُكُمْ ۚ

तुम (उन से) कह दो कि उनकी (इसलाह दुरुस्ती) बेहतर है

और अगर तुम उन से मिलजुल कर रहो तो (कुछ हर्ज) नहीं आख़िर वह तुम्हारें भाई ही तो हैं

وَاللَّهُ يَعْلَمُ الْمُفْسِدَ مِنَ الْمُصْلِحِ ۚ

और ख़ुदा फ़सादी को ख़ैर ख्वाह से (अलग ख़ूब) जानता है

وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ لَأَعْنَتَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

और अगर ख़ुदा चाहता तो तुम को मुसीबत में डाल देता

बेशक ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है

221

وَلَا تَنْكِحُوا الْمُشْرِكَاتِ حَتَّى يُؤْمِنَّ ۚ

और (मुसलमानों) तुम मुशरिक औरतों से जब तक ईमान न लाएँ निकाह न करो

وَلَأَمَةٌ مُؤْمِنَةٌ خَيْرٌ مِنْ مُشْرِكَةٍ وَلَوْ أَعْجَبَتْكُمْ ۗ وَلَا تُنْكِحُوا الْمُشْرِكِينَ حَتَّى يُؤْمِنُوا ۚ

क्योंकि मुशरिका औरत तुम्हें अपने हुस्नो जमाल में कैसी ही अच्छी क्यों न मालूम हो मगर फिर भी ईमानदार औरत उस से ज़रुर अच्छी है

और मुशरेकीन जब तक ईमान न लाएँ अपनी औरतें उन के निकाह में न दो

وَلَعَبْدٌ مُؤْمِنٌ خَيْرٌ مِنْ مُشْرِكٍ وَلَوْ أَعْجَبَكُمْ ۗ

और मुशरिक तुम्हें क्या ही अच्छा क्यों न मालूम हो मगर फिर भी बन्दा मोमिन उनसे ज़रुर अच्छा है

أُولَئِكَ يَدْعُونَ إِلَى النَّارِ ۖ وَاللَّهُ يَدْعُو إِلَى الْجَنَّةِ وَالْمَغْفِرَةِ بِإِذْنِهِ ۖ

ये (मुशरिक मर्द या औरत) लोगों को दोज़ख़ की तरफ बुलाते हैं

और ख़ुदा अपनी इनायत से बेहिश्त और बख़्शिस की तरफ बुलाता है

وَيُبَيِّنُ آيَاتِهِ لِلنَّاسِ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ

और अपने एहकाम लोगों से साफ साफ बयान करता है ताकि ये लोग चेते

222

وَيَسْأَلُونَكَ عَنِ الْمَحِيضِ ۖ

(ऐ रसूल) तुम से लोग हैज़ के बारे में पूछते हैं

قُلْ هُوَ أَذًى فَاعْتَزِلُوا النِّسَاءَ فِي الْمَحِيضِ ۖ وَلَا تَقْرَبُوهُنَّ حَتَّى يَطْهُرْنَ ۖ

तुम उनसे कह दो कि ये गन्दगी और घिन की बीमारी है तो (अय्यामे हैज़) में तुम औरतों से अलग रहो

और जब तक वह पाक न हो जाएँ उनके पास न जाओ

فَإِذَا تَطَهَّرْنَ فَأْتُوهُنَّ مِنْ حَيْثُ أَمَرَكُمُ اللَّهُ ۚ

पस जब वह पाक हो जाएँ तो जिधर से तुम्हें ख़ुदा ने हुक्म दिया है उन के पास जाओ

إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ

बेशक ख़ुदा तौबा करने वालो और सुथरे लोगों को पसन्द करता है

223

نِسَاؤُكُمْ حَرْثٌ لَكُمْ فَأْتُوا حَرْثَكُمْ أَنَّى شِئْتُمْ ۖ وَقَدِّمُوا لِأَنْفُسِكُمْ ۚ

तुम्हारी बीवियाँ (गोया) तुम्हारी खेती हैं तो तुम अपनी खेती में जिस तरह चाहो आओ

और अपनी आइन्दा की भलाई के वास्ते (आमाल साके) पेशगी भेजो

وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّكُمْ مُلَاقُوهُ ۗ وَبَشِّرِ الْمُؤْمِنِينَ

और ख़ुदा से डरते रहो और ये भी समझ रखो कि एक दिन तुमको उसके सामने जाना है

और ऐ रसूल ईमानदारों को नजात की ख़ुश ख़बरी दे दो

224

وَلَا تَجْعَلُوا اللَّهَ عُرْضَةً لِأَيْمَانِكُمْ أَنْ تَبَرُّوا وَتَتَّقُوا وَتُصْلِحُوا بَيْنَ النَّاسِ ۗ وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

और (मुसलमानों) तुम अपनी क़समों (के हीले) से ख़ुदा (के नाम) को लोगों के साथ सुलूक करने और ख़ुदा से डरने और लोगों के दरमियान सुलह करवा देने का मानेअ न ठहराव

और ख़ुदा सबकी सुनता और सब को जानता है

225

لَا يُؤَاخِذُكُمُ اللَّهُ بِاللَّغْوِ فِي أَيْمَانِكُمْ وَلَكِنْ يُؤَاخِذُكُمْ بِمَا كَسَبَتْ قُلُوبُكُمْ ۗ وَاللَّهُ غَفُورٌ حَلِيمٌ

तुम्हारी लग़ो (बेकार) क़समों पर जो बेइख्तेयार ज़बान से निकल जाए ख़ुदा तुम से गिरफ्तार नहीं करने का

मगर उन कसमों पर ज़रुर तुम्हारी गिरफ्त करेगा जो तुमने क़सदन (जान कर) दिल से खायीं हो

और ख़ुदा बख्शने वाला बुर्दबार है

226

لِلَّذِينَ يُؤْلُونَ مِنْ نِسَائِهِمْ تَرَبُّصُ أَرْبَعَةِ أَشْهُرٍ ۖ فَإِنْ فَاءُوا فَإِنَّ اللَّهَ غَفُورٌ رَحِيمٌ

जो लोग अपनी बीवियों के पास जाने से क़सम खायें उन के लिए चार महीने की मोहलत है

पस अगर (वह अपनी क़सम से उस मुद्दत में बाज़ आए) और उनकी तरफ तवज्जो करें तो बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है

227

وَإِنْ عَزَمُوا الطَّلَاقَ فَإِنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

और अगर तलाक़ ही की ठान ले तो (भी) बेशक ख़ुदा सबकी सुनता और सब कुछ जानता है

228

وَالْمُطَلَّقَاتُ يَتَرَبَّصْنَ بِأَنْفُسِهِنَّ ثَلَاثَةَ قُرُوءٍ ۚ

और जिन औरतों को तलाक़ दी गयी है वह अपने आपको तलाक़ के बाद तीन हैज़ के ख़त्म हो जाने तक निकाह सानी से रोके

وَلَا يَحِلُّ لَهُنَّ أَنْ يَكْتُمْنَ مَا خَلَقَ اللَّهُ فِي أَرْحَامِهِنَّ إِنْ كُنَّ يُؤْمِنَّ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۚ

और अगर वह औरतें ख़ुदा और रोजे आख़िरत पर ईमान लायीं हैं तो उनके लिए जाएज़ नहीं है कि जो कुछ भी ख़ुदा ने उनके रहम (पेट) में पैदा किया है उसको छिपाएँ

وَبُعُولَتُهُنَّ أَحَقُّ بِرَدِّهِنَّ فِي ذَلِكَ إِنْ أَرَادُوا إِصْلَاحًا ۚ

और अगर उन के शौहर मेल जोल करना चाहें तो वह (मुद्दत मज़कूरा) में उन के वापस बुला लेने के ज्यादा हक़दार हैं

وَلَهُنَّ مِثْلُ الَّذِي عَلَيْهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ

और शरीयत मुवाफिक़ औरतों का (मर्दों पर) वही सब कुछ हक़ है जो मर्दों का औरतों पर है

وَلِلرِّجَالِ عَلَيْهِنَّ دَرَجَةٌ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

हाँ अलबत्ता मर्दों को (फ़जीलत में) औरतों पर फौक़ियत ज़रुर है

और ख़ुदा ज़बरदस्त हिक़मत वाला है

229

الطَّلَاقُ مَرَّتَانِ ۖ  فَإِمْسَاكٌ بِمَعْرُوفٍ أَوْ تَسْرِيحٌ بِإِحْسَانٍ ۗ

तलाक़ रजअई जिसके बाद रुजू हो सकती है

दो ही मरतबा है उसके बाद या तो शरीयत के मवाफिक़ रोक ही लेना चाहिए या हुस्न सुलूक से (तीसरी दफ़ा) बिल्कुल रूख़सत

وَلَا يَحِلُّ لَكُمْ أَنْ تَأْخُذُوا مِمَّا آتَيْتُمُوهُنَّ شَيْئًا إِلَّا أَنْ يَخَافَا أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۖ

और तुम को ये जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उस में से फिर कुछ वापस लो

فَإِنْ خِفْتُمْ أَلَّا يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا فِيمَا افْتَدَتْ بِهِ ۗ

और तुम को ये जायज़ नहीं कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो उस में से फिर कुछ वापस लो

मगर जब दोनों को इसका ख़ौफ़ हो कि ख़ुदा ने जो हदें मुक़र्रर कर दी हैं उन को दोनो मिया बीवी क़ायम न रख सकेंगे

تِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ فَلَا تَعْتَدُوهَا ۚ

फिर अगर तुम्हे (ऐ मुसलमानो) ये ख़ौफ़ हो कि यह दोनो ख़ुदा की मुकर्रर की हुई हदो पर क़ायम न रहेंगे तो अगर औरत मर्द को कुछ देकर अपना पीछा छुड़ाए (खुला कराए) तो इसमें उन दोनों पर कुछ गुनाह नहीं है

وَمَنْ يَتَعَدَّ حُدُودَ اللَّهِ فَأُولَئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ

ये ख़ुदा की मुक़र्रर की हुई हदें हैं बस उन से आगे न बढ़ो

और जो ख़ुदा की मुक़र्रर की हुईहदों से आगे बढ़ते हैं वह ही लोग तो ज़ालिम हैं

230

فَإِنْ طَلَّقَهَا فَلَا تَحِلُّ لَهُ مِنْ بَعْدُ حَتَّى تَنْكِحَ زَوْجًا غَيْرَهُ ۗ

फिर अगर तीसरी बार भी औरत को तलाक़ (बाइन) दे तो उसके बाद जब तक दूसरे मर्द से निकाह न कर ले उस के लिए हलाल नही

فَإِنْ طَلَّقَهَا فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا أَنْ يَتَرَاجَعَا إِنْ ظَنَّا أَنْ يُقِيمَا حُدُودَ اللَّهِ ۗ

हाँ अगर दूसरा शौहर निकाह के बाद उसको तलाक़ दे दे तब अलबत्ता उन मिया बीबी पर बाहम मेल कर लेने में कुछ गुनाह नहीं है

अगर उन दोनों को यह ग़ुमान हो कि ख़ुदा हदों को क़ायम रख सकेंगें

وَتِلْكَ حُدُودُ اللَّهِ يُبَيِّنُهَا لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ

और ये ख़ुदा की (मुक़र्रर की हुई) हदें हैं जो समझदार लोगों के वास्ते साफ साफ बयान करता है

231

وَإِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَأَمْسِكُوهُنَّ بِمَعْرُوفٍ أَوْ سَرِّحُوهُنَّ بِمَعْرُوفٍ ۚ

और जब तुम अपनी बीवियों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दत पूरी होने को आए तो अच्छे उनवान से उन को रोक लो या हुस्ने सुलूक से बिल्कुल रुख़सत ही कर दो

وَلَا تُمْسِكُوهُنَّ ضِرَارًا لِتَعْتَدُوا ۚ

और उन्हें तकलीफ पहुँचाने के लिए न रोको ताकि (फिर उन पर) ज्यादती करने लगो

وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ فَقَدْ ظَلَمَ نَفْسَهُ ۚ

और जो ऐसा करेगा तो यक़ीनन अपने ही पर जुल्म करेगा

وَلَا تَتَّخِذُوا آيَاتِ اللَّهِ هُزُوًا ۚ

और ख़ुदा के एहकाम को कुछ हँसी ठट्टा न समझो

وَاذْكُرُوا نِعْمَتَ اللَّهِ عَلَيْكُمْ وَمَا أَنْزَلَ عَلَيْكُمْ مِنَ الْكِتَابِ وَالْحِكْمَةِ يَعِظُكُمْ بِهِ ۚ

और ख़ुदा ने जो तुम्हें नेअमतें दी हैं उन्हें याद करो और जो किताब और अक्ल की बातें तुम पर नाज़िल की उनसे तुम्हारी नसीहत करता है

وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ

और ख़ुदा से डरते रहो और समझ रखो कि ख़ुदा हर चीज़ को ज़रुर जानता है

232

وَإِذَا طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ فَبَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا تَعْضُلُوهُنَّ أَنْ يَنْكِحْنَ أَزْوَاجَهُنَّ إِذَا تَرَاضَوْا بَيْنَهُمْ بِالْمَعْرُوفِ ۗ

और जब तुम औरतों को तलाक़ दो और वह अपनी मुद्दत (इद्दत) पूरी कर लें तो उन्हें अपने शौहरों के साथ निकाह करने से न रोकों जब आपस में दोनों मिया बीवी शरीयत के मुवाफिक़ अच्छी तरह मिल जुल जाएँ

ذَلِكَ يُوعَظُ بِهِ مَنْ كَانَ مِنْكُمْ يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۗ

ये उसी शख्स को नसीहत की जाती है जो तुम में से ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान ला चुका हो

ذَلِكُمْ أَزْكَى لَكُمْ وَأَطْهَرُ ۗ وَاللَّهُ يَعْلَمُ وَأَنْتُمْ لَا تَعْلَمُونَ

यही तुम्हारे हक़ में बड़ी पाकीज़ा और सफ़ाई की बात है और उसकी ख़ूबी

ख़ुदा खूब जानता है और तुम (वैसा) नहीं जानते हो

233

وَالْوَالِدَاتُ يُرْضِعْنَ أَوْلَادَهُنَّ حَوْلَيْنِ كَامِلَيْنِ ۖ لِمَنْ أَرَادَ أَنْ يُتِمَّ الرَّضَاعَةَ ۚ

और (तलाक़ देने के बाद) जो शख्स अपनी औलाद को पूरी मुद्दत तक दूध पिलवाना चाहे तो उसकी ख़ातिर से माएँ अपनी औलाद को पूरे दो बरस दूध पिलाएँ

وَعَلَى الْمَوْلُودِ لَهُ رِزْقُهُنَّ وَكِسْوَتُهُنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۚ

और जिसका वह लड़का है (बाप) उस पर माओं का खाना कपड़ा दस्तूर के मुताबिक़ लाज़िम है

 لَا تُكَلَّفُ نَفْسٌ إِلَّا وُسْعَهَا ۚ

किसी शख्स को ज़हमत नहीं दी जाती मगर उसकी गुन्जाइश

لَا تُضَارَّ وَالِدَةٌ بِوَلَدِهَا وَلَا مَوْلُودٌ لَهُ بِوَلَدِهِ ۚ

भर न माँ का उस के बच्चे की वजह से नुक़सान गवारा किया जाए और न जिस का लड़का है (बाप) उसका

(बल्कि दस्तूर के मुताबिक़ दिया जाए)

وَعَلَى الْوَارِثِ مِثْلُ ذَلِكَ ۗ فَإِنْ أَرَادَا فِصَالًا عَنْ تَرَاضٍ مِنْهُمَا وَتَشَاوُرٍ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِمَا ۗ

और अगर बाप न हो तो दूध पिलाने का हक़ उसी तरह वारिस पर लाज़िम है

फिर अगर दो बरस के क़ब्ल माँ बाप दोनों अपनी मरज़ी और मशवरे से दूध बढ़ाई करना चाहें तो उन दोनों पर कोई गुनाह नहीं

وَإِنْ أَرَدْتُمْ أَنْ تَسْتَرْضِعُوا أَوْلَادَكُمْ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِذَا سَلَّمْتُمْ مَا آتَيْتُمْ بِالْمَعْرُوفِ ۗ

और अगर तुम अपनी औलाद को (किसी अन्ना से) दूध पिलवाना चाहो तो उस में भी तुम पर कुछ गुनाह नहीं है बशर्ते कि जो तुमने दस्तूर के मुताबिक़ मुक़र्रर किया है उन के हवाले कर दो

وَاتَّقُوا اللَّهَ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ

और ख़ुदा से डरते रहो और जान रखो कि जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देखता है

234

وَالَّذِينَ يُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَيَذَرُونَ أَزْوَاجًا يَتَرَبَّصْنَ بِأَنْفُسِهِنَّ أَرْبَعَةَ أَشْهُرٍ وَعَشْرًا ۖ

और तुममें से जो लोग बीवियाँ छोड़ के मर जाएँ तो ये औरतें चार महीने दस रोज़ (इद्दा भर) अपने को रोके (और दूसरा निकाह न करें)

فَإِذَا بَلَغْنَ أَجَلَهُنَّ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا فَعَلْنَ فِي أَنْفُسِهِنَّ بِالْمَعْرُوفِ ۗوَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ

फिर जब (इद्दे की मुद्दत) पूरी कर ले तो शरीयत के मुताबिक़ जो कुछ अपने हक़ में करें इस बारे में तुम पर कोई इल्ज़ाम नहीं है

और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उस से ख़बरदार है

235

وَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِيمَا عَرَّضْتُمْ بِهِ مِنْ خِطْبَةِ النِّسَاءِ أَوْ أَكْنَنْتُمْ فِي أَنْفُسِكُمْ ۚ

और अगर तुम (उस ख़ौफ से कि शायद कोई दूसरा निकाह कर ले) उन औरतों से इशारतन निकाह की (कैद इद्दा) ख़ास्तगारी (उम्मीदवारी) करो या अपने दिलो में छिपाए रखो तो उसमें भी कुछ तुम पर इल्ज़ाम नहीं हैं

عَلِمَ اللَّهُ أَنَّكُمْ سَتَذْكُرُونَهُنَّ وَلَكِنْ لَا تُوَاعِدُوهُنَّ سِرًّا إِلَّا أَنْ تَقُولُوا قَوْلًا مَعْرُوفًا ۚ

(क्योंकि) ख़ुदा को मालूम है कि (तुम से सब्र न हो सकेगा और) उन औरतों से निकाह करने का ख्याल आएगा

लेकिन चोरी छिपे से निकाह का वायदा न करना मगर ये कि उन से अच्छी बात कह गुज़रों (तो मज़ाएक़ा नहीं)

وَلَا تَعْزِمُوا عُقْدَةَ النِّكَاحِ حَتَّى يَبْلُغَ الْكِتَابُ أَجَلَهُ ۚ

और जब तक मुक़र्रर मियाद गुज़र न जाए निकाह का क़सद (इरादा) भी न करना

وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا فِي أَنْفُسِكُمْ فَاحْذَرُوهُ ۚ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَفُورٌ حَلِيمٌ

और समझ रखो कि जो कुछ तुम्हारी दिल में है ख़ुदा उस को ज़रुर जानता है तो उस से डरते रहो

और (ये भी) जान लो कि ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला बुर्दबार है

236

لَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ إِنْ طَلَّقْتُمُ النِّسَاءَ مَا لَمْ تَمَسُّوهُنَّ أَوْ تَفْرِضُوا لَهُنَّ فَرِيضَةً ۚ

और अगर तुम ने अपनी बीवियों को हाथ तक न लगाया हो और न महर मुअय्युन किया हो और उसके क़ब्ल ही तुम उनको तलाक़ दे दो (तो इस में भी) तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है

وَمَتِّعُوهُنَّ عَلَى الْمُوسِعِ قَدَرُهُ وَعَلَى الْمُقْتِرِ قَدَرُهُ مَتَاعًا بِالْمَعْرُوفِ ۖ حَقًّا عَلَى الْمُحْسِنِينَ

हाँ उन औरतों के साथ (दस्तूर के मुताबिक़) मालदार पर अपनी हैसियत के मुआफिक़ और ग़रीब पर अपनी हैसियत के मुवाफिक़ (कपड़े रुपए वग़ैरह से) कुछ सुलूक करना लाज़िम है

नेकी करने वालों पर ये भी एक हक़ है

237

وَإِنْ طَلَّقْتُمُوهُنَّ مِنْ قَبْلِ أَنْ تَمَسُّوهُنَّ وَقَدْ فَرَضْتُمْ لَهُنَّ فَرِيضَةً فَنِصْفُ مَا فَرَضْتُمْ

और अगर तुम उन औरतों का मेहर तो मुअय्यन कर चुके हो मगर हाथ लगाने के क़ब्ल ही तलाक़ दे दो तो उन औरतों को मेहर मुअय्यन का आधा दे दो

إِلَّا أَنْ يَعْفُونَ أَوْ يَعْفُوَ الَّذِي بِيَدِهِ عُقْدَةُ النِّكَاحِ ۚ

मगर ये कि ये औरतें ख़ुद माफ कर दें या उन का वली जिसके हाथ में उनके निकाह का एख्तेयार हो माफ़ कर दे (तब कुछ नही)

وَأَنْ تَعْفُوا أَقْرَبُ لِلتَّقْوَى ۚ

और अगर तुम ही सारा मेहर बख्श दो तो परहेज़गारी से बहुत ही क़रीब है

وَلَا تَنْسَوُا الْفَضْلَ بَيْنَكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ

और आपस की बुर्ज़ुगी तो मत भूलो

और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा ज़रुर देख रहा है

238

حَافِظُوا عَلَى الصَّلَوَاتِ وَالصَّلَاةِ الْوُسْطَى وَقُومُوا لِلَّهِ قَانِتِينَ

और (मुसलमानों) तुम तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन बीच वाली नमाज़ (सुबह या ज़ोहर या अस्र) की पाबन्दी करो

और ख़ास ख़ुदा ही वास्ते नमाज़ में क़ुनूत पढ़ने वाले हो कर खड़े हो

239

فَإِنْ خِفْتُمْ فَرِجَالًا أَوْ رُكْبَانًا ۖ  فَإِذَا أَمِنْتُمْ فَاذْكُرُوا اللَّهَ كَمَا عَلَّمَكُمْ مَا لَمْ تَكُونُوا تَعْلَمُونَ

फिर अगर तुम ख़ौफ की हालत में हो (और पूरी नमाज़ न पढ़ सको) तो सवार या पैदल (जिस तरह बन पड़े पढ़ लो)

फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें (अपने रसूल की मआरफत इन बातों को) सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे उसी तरह ख़ुदा को याद करो

240

‏وَالَّذِينَ يُتَوَفَّوْنَ مِنْكُمْ وَيَذَرُونَ أَزْوَاجًا وَصِيَّةً لِأَزْوَاجِهِمْ مَتَاعًا إِلَى الْحَوْلِ غَيْرَ إِخْرَاجٍ ۚ

और तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाएँ उन पर अपनी बीबियों के हक़ में साल भर तक के नान व नुफ्के (रोटी कपड़ा) की वसीयत करनी (लाज़िम) है

فَإِنْ خَرَجْنَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْكُمْ فِي مَا فَعَلْنَ فِي أَنْفُسِهِنَّ مِنْ مَعْرُوفٍ ۗ وَاللَّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

और (घर से) न निकलने की पस अगर औरतें ख़ुद निकल खड़ी हो तो जायज़ बातों (निकाह वगैरह) से कुछ अपने हक़ में करे उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नही है

और ख़ुदा हर यै पर ग़ालिब और हिक़मत वाला है

241

وَلِلْمُطَلَّقَاتِ مَتَاعٌ بِالْمَعْرُوفِ ۖ حَقًّا عَلَى الْمُتَّقِينَ

और जिन औरतों को ताअय्युन मेहर और हाथ लगाए बगैर तलाक़ दे दी जाए उनके साथ जोड़े रुपए वगैरह से सुलूक करना लाज़िम है

(ये भी) परहेज़गारों पर एक हक़ है

242

كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمْ آيَاتِهِ لَعَلَّكُمْ تَعْقِلُونَ

उसी तरह ख़ुदा तुम लोगों की हिदायत के वास्ते अपने एहक़ाम साफ़ साफ़ बयान फरमाता है

243

أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِينَ خَرَجُوا مِنْ دِيَارِهِمْ وَهُمْ أُلُوفٌ حَذَرَ الْمَوْتِ

 فَقَالَ لَهُمُ اللَّهُ مُوتُوا ثُمَّ أَحْيَاهُمْ ۚ

ताकि तुम समझो (ऐ रसूल) क्या तुम ने उन लोगों के हाल पर नज़र नही की जो मौत के डर के मारे अपने घरों से निकल भागे और वह हज़ारो आदमी थे तो ख़ुदा ने उन से फरमाया कि सब के सब मर जाओ (और वह मर गए) फिर ख़ुदा न उन्हें जिन्दा किया

إِنَّ اللَّهَ لَذُو فَضْلٍ عَلَى النَّاسِ وَلَكِنَّ أَكْثَرَ النَّاسِ لَا يَشْكُرُونَ

बेशक ख़ुदा लोगों पर बड़ा मेहरबान है मगर अक्सर लोग उसका शुक्र नहीं करते

244

وَقَاتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

और मुसलमानों ख़ुदा की राह मे जिहाद करो

और जान रखो कि ख़ुदा ज़रुर सब कुछ सुनता (और) जानता है

245

مَنْ ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ أَضْعَافًا كَثِيرَةً ۚ

है कोई जो ख़ुदा को क़र्ज़ ए हुस्ना दे ताकि ख़ुदा उसके माल को इस के लिए कई गुना बढ़ा दे

وَاللَّهُ يَقْبِضُ وَيَبْسُطُ وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ

और ख़ुदा ही तंगदस्त करता है और वही कशायश देता है

और उसकी तरफ सब के सब लौटा दिये जाओगे

246

أَلَمْ تَرَ إِلَى الْمَلَإِ مِنْ بَنِي إِسْرَائِيلَ مِنْ بَعْدِ مُوسَى إِذْ قَالُوا لِنَبِيٍّ

(ऐ रसूल) क्या तुमने मूसा के बाद बनी इसराइल के सरदारों की हालत पर नज़र नही की जब उन्होंने अपने नबी (शमूयेल) से कहा कि

لَهُمُ ابْعَثْ لَنَا مَلِكًا نُقَاتِلْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ۖ

हमारे वास्ते एक बादशाह मुक़र्रर कीजिए ताकि हम राहे ख़ुदा में जिहाद करें

 قَالَ هَلْ عَسَيْتُمْ إِنْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الْقِتَالُ أَلَّا تُقَاتِلُوا ۖ

(पैग़म्बर ने) फ़रमाया कहीं ऐसा तो न हो कि जब तुम पर जिहाद वाजिब किया जाए तो तुम न लड़ो

قَالُوا وَمَا لَنَا أَلَّا نُقَاتِلَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَقَدْ أُخْرِجْنَا مِنْ دِيَارِنَا وَأَبْنَائِنَا ۖ

कहने लगे जब हम अपने घरों और अपने बाल बच्चों से निकाले जा चुके तो फिर हमे कौन सा उज़्र बाक़ी है कि हम ख़ुदा की राह में जिहाद न करें

فَلَمَّا كُتِبَ عَلَيْهِمُ الْقِتَالُ تَوَلَّوْا إِلَّا قَلِيلًا مِنْهُمْ ۗ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ

फिर जब उन पर जिहाद वाजिब किया गया तो उनमें से चन्द आदमियों के सिवा सब के सब ने लड़ने से मुँह फेरा

और ख़ुदा तो ज़ालिमों को खूब जानता है  

247

وَقَالَ لَهُمْ نَبِيُّهُمْ إِنَّ اللَّهَ قَدْ بَعَثَ لَكُمْ طَالُوتَ مَلِكًا ۚ

और उनके नबी ने उनसे कहा कि बेशक ख़ुदा ने (तुम्हारी दरख्वास्त के मुताबिक़) तालूत को तुम्हारा बादशाह मुक़र्रर किया

 قَالُوا أَنَّى يَكُونُ لَهُ الْمُلْكُ عَلَيْنَا وَنَحْنُ أَحَقُّ بِالْمُلْكِ مِنْهُ وَلَمْ يُؤْتَ سَعَةً مِنَ الْمَالِ ۚ

(तब) कहने लगे उस की हुकूमत हम पर क्यों कर हो सकती है

हालाकि सल्तनत के हक़दार उससे ज्यादा तो हम हैं

क्योंकि उसे तो माल के एतबार से भी फ़ारगुल बाली (ख़ुशहाली) तक नसीब नहीं

قَالَ إِنَّ اللَّهَ اصْطَفَاهُ عَلَيْكُمْ وَزَادَهُ بَسْطَةً فِي الْعِلْمِ وَالْجِسْمِ ۖ

(नबी ने) कहा ख़ुदा ने उसे तुम पर फज़ीलत दी है और माल में न सही

मगर इल्म और जिस्म का फैलाव तो उस का ख़ुदा ने ज्यादा फरमाया हे

وَاللَّهُ يُؤْتِي مُلْكَهُ مَنْ يَشَاءُ ۚ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ

और ख़ुदा अपना मुल्क जिसे चाहें दे

और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और वाक़िफ़कार है

248

وَقَالَ لَهُمْ نَبِيُّهُمْ إِنَّ آيَةَ مُلْكِهِ أَنْ يَأْتِيَكُمُ التَّابُوتُ فِيهِ سَكِينَةٌ مِنْ رَبِّكُمْ

 وَبَقِيَّةٌ مِمَّا تَرَكَ آلُ مُوسَى وَآلُ هَارُونَ تَحْمِلُهُ الْمَلَائِكَةُ ۚ

और उन के नबी ने उनसे ये भी कहा इस के (मुनाजानिब अल्लाह) बादशाह होने की ये पहचान है कि तुम्हारे पास वह सन्दूक़ आ जाएगा जिसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से तसकीन दे चीजें और उन तब्बुरक़ात से बचा खुचा होगा जो मूसा और हारुन की औलाद यादगार छोड़ गयी है और उस सन्दूक को फरिश्ते उठाए होगें

إِنَّ فِي ذَلِكَ لَآيَةً لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ

अगर तुम ईमान रखते हो तो बेशक उसमें तुम्हारे वास्ते पूरी निशानी है

249

فَلَمَّا فَصَلَ طَالُوتُ بِالْجُنُودِ قَالَ إِنَّ اللَّهَ مُبْتَلِيكُمْ بِنَهَرٍ

फिर जब तालूत लशकर समैत (शहर ऐलिया से) रवाना हुआ तो अपने साथियों से कहा देखो आगे एक नहर मिलेगी इस से यक़ीनन ख़ुदा तुम्हारे सब्र की आज़माइश करेगा

فَمَنْ شَرِبَ مِنْهُ فَلَيْسَ مِنِّي وَمَنْ لَمْ يَطْعَمْهُ فَإِنَّهُ مِنِّي إِلَّا مَنِ اغْتَرَفَ غُرْفَةً بِيَدِهِ ۚ

पस जो शख्स उस का पानी पीयेगा मुझे (कुछ वास्ता) नही रखता

और जो उस को नही चखेगा वह बेशक मुझ से होगा

मगर हाँ जो अपने हाथ से एक (आधा चुल्लू भर के पी) ले तो कुछ हर्ज नही

فَشَرِبُوا مِنْهُ إِلَّا قَلِيلًا مِنْهُمْ ۚ

(पस उन लोगों ने न माना और)

चन्द आदमियों के सिवा सब ने उस का पानी पिया

فَلَمَّا جَاوَزَهُ هُوَ وَالَّذِينَ آمَنُوا مَعَهُ قَالُوالَا طَاقَةَ لَنَا الْيَوْمَ بِجَالُوتَ وَجُنُودِهِ ۚ

ख़ैर जब तालूत और जो मोमिनीन उन के साथ थे नहर से पास हो गए तो (ख़ास मोमिनों के सिवा) सब के सब कहने लगे कि

हम में तो आज भी जालूत और उसकी फौज से लड़ने की सकत नहीं

قَالَ الَّذِينَ يَظُنُّونَ أَنَّهُمْ مُلَاقُو اللَّهِ كَمْ مِنْ فِئَةٍ قَلِيلَةٍ غَلَبَتْ فِئَةً كَثِيرَةً بِإِذْنِ اللَّهِ ۗ وَاللَّهُ مَعَ الصَّابِرِينَ

मगर वह लोग जिनको यक़ीन है कि एक दिन ख़ुदा को मुँह दिखाना है बेधड़क बोल उठे कि

ऐसा बहुत हुआ कि ख़ुदा के हुक्म से छोटी जमाअत बड़ी जमाअत पर ग़ालिब आ गयी है

और ख़ुदा सब्र करने वालों का साथी है

250

وَلَمَّا بَرَزُوا لِجَالُوتَ وَجُنُودِهِ قَالُوا رَبَّنَا أَفْرِغْ عَلَيْنَا صَبْرًا وَثَبِّتْ أَقْدَامَنَا وَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ

(ग़रज़) जब ये लोग जालूत और उसकी फौज के मुक़ाबले को निकले तो दुआ की

ऐ मेरे परवरदिगार हमें कामिल सब्र अता फरमा और मैदाने जंग में हमारे क़दम जमाए रख

और हमें काफिरों पर फतेह इनायत कर

251

فَهَزَمُوهُمْ بِإِذْنِ اللَّهِ وَقَتَلَ دَاوُودُ جَالُوتَ وَآتَاهُ اللَّهُ الْمُلْكَ وَالْحِكْمَةَ وَعَلَّمَهُ مِمَّا يَشَاءُ ۗ

फिर तो उन लोगों ने ख़ुदा के हुक्म से दुशमनों को शिकस्त दी

और दाऊद ने जालूत को क़त्ल किया

और ख़ुदा ने उनको सल्तनत व तदबीर तम्द्दुन अता की और इल्म व हुनर जो चाहा उन्हें गोया घोल के पिला दिया

وَلَوْلَا دَفْعُ اللَّهِ النَّاسَ بَعْضَهُمْ بِبَعْضٍ لَفَسَدَتِ الْأَرْضُ وَلَكِنَّ اللَّهَ ذُو فَضْلٍ عَلَى الْعَالَمِينَ

और अगर ख़ुदा बाज़ लोगों के ज़रिए से बाज़ का दफाए (शर) न करता तो तमाम रुए ज़मीन पर फ़साद फैल जाता

मगर ख़ुदा तो सारे जहाँन के लोगों पर फज़ल व रहम करता है

252

تِلْكَ آيَاتُ اللَّهِ نَتْلُوهَا عَلَيْكَ بِالْحَقِّ ۚ وَإِنَّكَ لَمِنَ الْمُرْسَلِينَ

ऐ रसूल ये ख़ुदा की सच्ची आयतें हैं जो हम तुम को ठीक ठीक पढ़के सुनाते हैं

और बेशक तुम ज़रुर रसूलों में से हो

253

تِلْكَ الرُّسُلُ فَضَّلْنَا بَعْضَهُمْ عَلَى بَعْضٍ ۘ مِنْهُمْ مَنْ كَلَّمَ اللَّهُ ۖ وَرَفَعَ بَعْضَهُمْ دَرَجَاتٍ ۚ

यह सब रसूल (जो हमने भेजे) उनमें से बाज़ को बाज़ पर फज़ीलत दी

उनमें से बाज़ तो ऐसे हैं जिनसे ख़ुद ख़ुदा ने बात की

उनमें से बाज़ के (और तरह पर) दर्जे बुलन्द किये

وَآتَيْنَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ الْبَيِّنَاتِ وَأَيَّدْنَاهُ بِرُوحِ الْقُدُسِ ۗ

और मरियम के बेटे ईसा को (कैसे कैसे रौशन मौजिज़े अता किये) और रूहुलकुदस (जिबरईल) के ज़रिये से उनकी मदद की

وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا اقْتَتَلَ الَّذِينَ مِنْ بَعْدِهِمْ مِنْ بَعْدِ مَا جَاءَتْهُمُ الْبَيِّنَاتُ وَلَكِنِ اخْتَلَفُوا

और अगर ख़ुदा चाहता तो लोग इन (पैग़म्बरों) के बाद हुये वह अपने पास रौशन मौजिज़े आ चुकने पर आपस में न लड़ मरते

मगर उनमें फूट पड़ गई

 فَمِنْهُمْ مَنْ آمَنَ وَمِنْهُمْ مَنْ كَفَرَ ۚ

पस उनमें से बाज़ तो ईमान लाये और बाज़ काफ़िर हो गये

وَلَوْ شَاءَ اللَّهُ مَا اقْتَتَلُوا وَلَكِنَّ اللَّهَ يَفْعَلُ مَا يُرِيدُ

और अगर ख़ुदा चाहता तो यह लोग आपस में लड़ते मगर ख़ुदा वही करता है जो चाहता है

254

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَنْفِقُوا مِمَّا رَزَقْنَاكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ يَوْمٌ لَا بَيْعٌ فِيهِ وَلَا خُلَّةٌ وَلَا شَفَاعَةٌ ۗ

ऐ ईमानदारों जो कुछ हमने तुमको दिया है उस दिन के आने से पहले (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो जिसमें न तो ख़रीदो फरोख्त होगी और न यारी (और न आशनाई) और न सिफ़ारिश (ही काम आयेगी)

وَالْكَافِرُونَ هُمُ الظَّالِمُونَ

और कुफ़्र करने वाले ही तो जुल्म ढाते हैं  

255

اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ

ख़ुदा ही वो ज़ाते पाक है कि उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वह) ज़िन्दा है (और) सारे जहान का संभालने वाला है

لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ

उसको न ऊँघ आती है न नींद

لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ

जो कुछ आसमानो में है और जो कुछ ज़मीन में है (गरज़ सब कुछ) उसी का है

कौन ऐसा है जो बग़ैर उसकी इजाज़त के उसके पास किसी की सिफ़ारिश करे

يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ۚ

जो कुछ उनके सामने मौजूद है (वह) और जो कुछ उनके पीछे (हो चुका) है (खुदा सबको) जानता है

और लोग उसके इल्म में से किसी चीज़ पर भी अहाता नहीं कर सकते मगर वह जिसे जितना चाहे (सिखा दे)

وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۖوَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا ۚ

उसकी कुर्सी सब आसमानॊं और ज़मीनों को घेरे हुये है

और उन दोनों (आसमान व ज़मीन) की निगेहदाश्त उसपर कुछ भी मुश्किल नहीं

وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

और वह आलीशान बुजुर्ग़ मरतबा है

256

لَا إِكْرَاهَ فِي الدِّينِ ۖ قَدْ تَبَيَّنَ الرُّشْدُ مِنَ الْغَيِّ ۚ

दीन में किसी तरह की जबरदस्ती नहीं

क्योंकि हिदायत गुमराही से (अलग) ज़ाहिर हो चुकी

فَمَنْ يَكْفُرْ بِالطَّاغُوتِ وَيُؤْمِنْ بِاللَّهِ فَقَدِ اسْتَمْسَكَ بِالْعُرْوَةِ الْوُثْقَى لَا انْفِصَامَ لَهَا ۗ

तो जिस शख्स ने झूठे खुदाओं बुतों से इंकार किया और खुदा ही पर ईमान लाया तो उसने वो मज़बूत रस्सी पकड़ी है जो टूट ही नहीं सकती

وَاللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

और ख़ुदा सब कुछ सुनता और जानता है

257

اللَّهُ وَلِيُّ الَّذِينَ آمَنُوا يُخْرِجُهُمْ مِنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ۖ

ख़ुदा उन लोगों का सरपरस्त है जो ईमान ला चुके कि उन्हें (गुमराही की) तारीक़ियों से निकाल कर (हिदायत की) रौशनी में लाता है

وَالَّذِينَ كَفَرُوا أَوْلِيَاؤُهُمُ الطَّاغُوتُ يُخْرِجُونَهُمْ مِنَ النُّورِ إِلَى الظُّلُمَاتِ ۗ

और जिन लोगों ने कुफ़्र इख्तेयार किया उनके सरपरस्त शैतान हैं कि उनको (ईमान की) रौशनी से निकाल कर (कुफ़्र की) तारीकियों में डाल देते हैं

 أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

यही लोग तो जहन्नुमी हैं (और) यही उसमें हमेशा रहेंगे

258

أَلَمْ تَرَ إِلَى الَّذِي حَاجَّ إِبْرَاهِيمَ فِي رَبِّهِ أَنْ آتَاهُ اللَّهُ الْمُلْكَ

(ऐ रसूल) क्या तुम ने उस शख्स (के हाल) पर नज़र नहीं की जो सिर्फ़ इस बिरते पर कि ख़ुदा ने उसे सल्तनत दी थी इब्राहीम से उनके परवरदिगार के बारे में उलझ पड़ा

 إِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّيَ الَّذِي يُحْيِي وَيُمِيتُ

कि जब इब्राहीम ने (उससे) कहा कि मेरा परवरदिगार तो वह है जो (लोगों को) जिलाता और मारता है

قَالَ أَنَا أُحْيِي وَأُمِيتُ ۖ

तो वो भी (शेख़ी में) आकर कहने लगा मैं भी जिलाता और मारता हूं

(तुम्हारे ख़ुदा ही में कौन सा कमाल है)

قَالَ إِبْرَاهِيمُ فَإِنَّ اللَّهَ يَأْتِي بِالشَّمْسِ مِنَ الْمَشْرِقِ فَأْتِ بِهَا مِنَ الْمَغْرِبِ

इब्राहीम ने कहा (अच्छा) खुदा तो आफ़ताब को पूरब से निकालता है भला तुम उसको पश्चिम से निकालो

 فَبُهِتَ الَّذِي كَفَرَ ۗ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الظَّالِمِينَ

इस पर वह काफ़िर हक्का बक्का हो कर रह गया

(मगर ईमान न लाया)

और ख़ुदा ज़ालिमों को मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुंचाया करता

259

أَوْ كَالَّذِي مَرَّ عَلَى قَرْيَةٍ وَهِيَ خَاوِيَةٌ عَلَى عُرُوشِهَا قَالَ أَنَّى يُحْيِي هَذِهِ اللَّهُ بَعْدَ مَوْتِهَا ۖ

(ऐ रसूल तुमने) मसलन उस (बन्दे) के हाल पर भी नज़र की जो एक गॉव पर से होकर गुज़रा और वो ऐसा उजड़ा था कि अपनी छतों पर से ढह के गिर पड़ा था

ये देखकर वह बन्दा (कहने लगा) अल्लाह अब इस गॉव को ऐसी वीरानी के बाद क्योंकर आबाद करेगा

فَأَمَاتَهُ اللَّهُ مِائَةَ عَامٍ ثُمَّ بَعَثَهُ ۖ قَالَ كَمْ لَبِثْتَ ۖ

इस पर ख़ुदा ने उसको (मार डाला) सौ बरस तक मुर्दा रखा फिर उसको जिला उठाया

(तब) पूछा तुम कितनी देर पड़े रहे

قَالَ لَبِثْتُ يَوْمًا أَوْ بَعْضَ يَوْمٍ ۖ

अर्ज क़ी एक दिन पड़ा रहा एक दिन से भी कम

قَالَ بَلْ لَبِثْتَ مِائَةَ عَامٍ فَانْظُرْ إِلَى طَعَامِكَ وَشَرَابِكَ لَمْ يَتَسَنَّهْ ۖ

फ़रमाया नहीं तुम (इसी हालत में) सौ बरस पड़े रहे

अब ज़रा अपने खाने पीने (की चीज़ों) को देखो कि बुसा तक नहीं

وَانْظُرْ إِلَى حِمَارِكَ وَلِنَجْعَلَكَ آيَةً لِلنَّاسِ ۖ

और ज़रा अपने गधे (सवारी) को तो देखो कि उसकी हड्डियाँ ढेर पड़ी हैं

और सब इस वास्ते किया है ताकि लोगों के लिये तुम्हें क़ुदरत का नमूना बनाये

وَانْظُرْ إِلَى الْعِظَامِ كَيْفَ نُنْشِزُهَا ثُمَّ نَكْسُوهَا لَحْمًا ۚ

और अच्छा अब (इस गधे की) हड्डियों की तरफ़ नज़र करो कि हम क्योंकर जोड़ जाड़ कर ढाँचा बनाते हैं फिर उनपर गोश्त चढ़ाते हैं

فَلَمَّا تَبَيَّنَ لَهُ قَالَ أَعْلَمُ أَنَّ اللَّهَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

पस जब ये उनपर ज़ाहिर हुआ तो बेसाख्ता बोल उठे कि

(अब) मैं ये यक़ीने कामिल जानता हूं कि ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

260

وَإِذْ قَالَ إِبْرَاهِيمُ رَبِّ أَرِنِي كَيْفَ تُحْيِي الْمَوْتَى ۖ

और (ऐ रसूल) वह वाकेया भी याद करो जब इबराहीम ने (खुदा से) दरख्वास्त की कि ऐ मेरे परवरदिगार तू मुझे भी तो दिखा दे कि तू मुर्दों को क्योंकर ज़िन्दा करता है

قَالَ أَوَلَمْ تُؤْمِنْ ۖ

ख़ुदा ने फ़रमाया क्या तुम्हें (इसका) यक़ीन नहीं

قَالَ بَلَى وَلَكِنْ لِيَطْمَئِنَّ قَلْبِي ۖ

इबराहीम ने अर्ज़ की (क्यों नहीं) यक़ीन तो है

मगर ऑंख से देखना इसलिए चाहता हूं कि मेरे दिल को पूरा इत्मिनान हो जाए

قَالَ فَخُذْ أَرْبَعَةً مِنَ الطَّيْرِ فَصُرْهُنَّ إِلَيْكَ ثُمَّ اجْعَلْ عَلَى كُلِّ جَبَلٍ مِنْهُنَّ جُزْءًا

फ़रमाया (अगर ये चाहते हो) तो चार परिन्दे लो और उनको अपने पास मॅगवा लो

(और टुकड़े टुकड़े कर डालो)

फिर हर पहाड़ पर उनका एक एक टुकड़ा रख दो

 ثُمَّ ادْعُهُنَّ يَأْتِينَكَ سَعْيًا ۚ

उसके बाद उनको बुलाओ फिर देखो तो क्यों कर वह सब के सब तुम्हारे पास दौड़े हुए आते हैं

 وَاعْلَمْ أَنَّ اللَّهَ عَزِيزٌ حَكِيمٌ

और समझ रखो कि ख़ुदा बेशक ग़ालिब और हिकमत वाला है

261

مَثَلُ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ كَمَثَلِ حَبَّةٍ أَنْبَتَتْ سَبْعَ سَنَابِلَ فِي كُلِّ سُنْبُلَةٍ مِائَةُ حَبَّةٍ ۗ

जो लोग अपने माल खुदा की राह में खर्च करते हैं उनके (खर्च) की मिसाल उस दाने की सी मिसाल है

जिसकी सात बालियॉ निकलें (और) हर बाली में सौ (सौ) दाने हों

وَاللَّهُ يُضَاعِفُ لِمَنْ يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ

और ख़ुदा जिसके लिये चाहता है दूना कर देता है

और खुदा बड़ी गुन्जाइश वाला (हर चीज़ से) वाक़िफ़ है

262

الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ ثُمَّ لَا يُتْبِعُونَ مَا أَنْفَقُوا مَنًّا وَلَا أَذًى ۙ لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ

जो लोग अपने माल ख़ुदा की राह में ख़र्च करते हैं और फिर ख़र्च करने के बाद किसी तरह का एहसान नहीं जताते हैं और न जिनपर एहसान किया है उनको सताते हैं उनका अज्र (व सवाब) उनके परवरदिगार के पास है

وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

और न आख़ेरत में उनपर कोई ख़ौफ़ होगा और न वह ग़मगीन होंगे

263

قَوْلٌ مَعْرُوفٌ وَمَغْفِرَةٌ خَيْرٌ مِنْ صَدَقَةٍ يَتْبَعُهَا أَذًى ۗ

(सायल को) नरमी से जवाब दे देना और (उसके इसरार पर न झिड़कना बल्कि) उससे दरगुज़र करना उस खैरात से कहीं बेहतर है जिसके बाद (सायल को) ईज़ा पहुंचे

وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَلِيمٌ

और ख़ुदा हर शै से बेपरवा (और) बुर्दबार है

264

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا

لَا تُبْطِلُوا صَدَقَاتِكُمْ بِالْمَنِّ وَالْأَذَى كَالَّذِي يُنْفِقُ مَالَهُ رِئَاءَ النَّاسِ وَلَا يُؤْمِنُ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ ۖ

ऐ ईमानदारों आपनी खैरात को एहसान जताने और (सायल को) ईज़ा (तकलीफ) देने की वजह से उस शख्स की तरह अकारत मत करो जो अपना माल महज़ लोगों को दिखाने के वास्ते ख़र्च करता है और ख़ुदा और रोजे आखेरत पर ईमान नहीं रखता

فَمَثَلُهُ كَمَثَلِ صَفْوَانٍ عَلَيْهِ تُرَابٌ فَأَصَابَهُ وَابِلٌ فَتَرَكَهُ صَلْدًا ۖ

तो उसकी खैरात की मिसाल उस चिकनी चट्टान की सी है जिसपर कुछ ख़ाक (पड़ी हुई) हो फिर उसपर ज़ोर शोर का (बड़े बड़े क़तरों से) मेंह बरसे और उसको (मिट्टी को बहाके) चिकना चुपड़ा छोड़ जाए

لَا يَقْدِرُونَ عَلَى شَيْءٍ مِمَّا كَسَبُوا ۗ وَاللَّهُ لَا يَهْدِي الْقَوْمَ الْكَافِرِينَ

(इसी तरह) रियाकार अपनी उस ख़ैरात या उसके सवाब में से जो उन्होंने की है किसी चीज़ पर क़ब्ज़ा न पाएंगे

(न दुनिया में न आख़ेरत में)

और ख़ुदा काफ़िरों को हिदायत करके मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचाया करता

265

وَمَثَلُ الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمُ ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ وَتَثْبِيتًا مِنْ أَنْفُسِهِمْ كَمَثَلِ جَنَّةٍ بِرَبْوَةٍ

और जो लोग ख़ुदा की ख़ुशनूदी के लिए और अपने दिली एतक़ाद से अपने माल ख़र्च करते हैं उनकी मिसाल उस (हरे भरे) बाग़ की सी है जो किसी टीले या टीकरे पर लगा हो

أَصَابَهَا وَابِلٌ فَآتَتْ أُكُلَهَا ضِعْفَيْنِ فَإِنْ لَمْ يُصِبْهَا وَابِلٌ فَطَلٌّ ۗ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ

और उस पर ज़ोर शोर से पानी बरसा तो अपने दुगने फल लाया

और अगर उस पर बड़े धड़ल्ले का पानी न भी बरसे तो उसके लिये हल्की फुआर (ही काफ़ी) है

और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उसकी देखभाल करता रहता है

266

أَيَوَدُّ أَحَدُكُمْ أَنْ تَكُونَ لَهُ جَنَّةٌ مِنْ نَخِيلٍ وَأَعْنَابٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ لَهُ فِيهَا مِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ

भला तुम में कोई भी इसको पसन्द करेगा कि उसके लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो उसके नीचे नहरें जारी हों और उसके लिए उसमें तरह तरह के मेवे हों

وَأَصَابَهُ الْكِبَرُ وَلَهُ ذُرِّيَّةٌ ضُعَفَاءُ فَأَصَابَهَا إِعْصَارٌ فِيهِ نَارٌ فَاحْتَرَقَتْ ۗ

और (अब) उसको बुढ़ापे ने घेर लिया है और उसके (छोटे छोटे) नातवॉ कमज़ोर बच्चे हैं

कि एकबारगी उस बाग़ पर ऐसा बगोला आ पड़ा जिसमें आग (भरी) थी कि वह बाग़ जल भुन कर रह गया

كَذَلِكَ يُبَيِّنُ اللَّهُ لَكُمُ الْآيَاتِ لَعَلَّكُمْ تَتَفَكَّرُونَ

ख़ुदा अपने एहकाम को तुम लोगों से साफ़ साफ़ बयान करता है ताकि तुम ग़ौर करो

267

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا أَنْفِقُوا مِنْ طَيِّبَاتِ مَا كَسَبْتُمْ وَمِمَّا أَخْرَجْنَا لَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ ۖ

ऐ ईमान वालों अपनी पाक कमाई और उन चीज़ों में से जो हमने तुम्हारे लिए ज़मीन से पैदा की हैं (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करो

وَلَا تَيَمَّمُوا الْخَبِيثَ مِنْهُ تُنْفِقُونَ وَلَسْتُمْ بِآخِذِيهِ إِلَّا أَنْ تُغْمِضُوا فِيهِ ۚ

और बुरे माल को (ख़ुदा की राह में) देने का क़सद भी न करो हालॉकि अगर ऐसा माल कोई तुमको देना चाहे तो तुम अपनी ख़ुशी से उसके लेने वाले नहीं हो मगर ये कि उस (के लेने) में (अमदन) आंख चुराओ

وَاعْلَمُوا أَنَّ اللَّهَ غَنِيٌّ حَمِيدٌ

और जाने रहो कि ख़ुदा बेशक बेनियाज़ (और) सज़ावारे हम्द है

268

الشَّيْطَانُ يَعِدُكُمُ الْفَقْرَ وَيَأْمُرُكُمْ بِالْفَحْشَاءِ ۖ

शैतान तमुको तंगदस्ती से डराता है और बुरी बात (बुख्ल) का तुमको हुक्म करता है

وَاللَّهُ يَعِدُكُمْ مَغْفِرَةً مِنْهُ وَفَضْلًا ۗ وَاللَّهُ وَاسِعٌ عَلِيمٌ

और ख़ुदा तुमसे अपनी बख्शिश और फ़ज़ल (व करम) का वायदा करता है

और ख़ुदा बड़ी गुन्जाइश वाला और सब बातों का जानने वाला है

269

يُؤْتِي الْحِكْمَةَ مَنْ يَشَاءُ ۚ

वह जिसको चाहता है हिकमत अता फ़रमाता है

وَمَنْ يُؤْتَ الْحِكْمَةَ فَقَدْ أُوتِيَ خَيْرًا كَثِيرًا ۗ وَمَا يَذَّكَّرُ إِلَّا أُولُو الْأَلْبَابِ

और जिसको (ख़ुदा की तरफ) से हिकमत अता की गई तो इसमें शक नहीं कि उसे ख़ूबियों से बड़ी दौलत हाथ लगी

और अक्लमन्दों के सिवा कोई नसीहत मानता ही नहीं

270

وَمَا أَنْفَقْتُمْ مِنْ نَفَقَةٍ أَوْ نَذَرْتُمْ مِنْ نَذْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ يَعْلَمُهُ ۗ وَمَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ أَنْصَارٍ

और तुम जो कुछ भी ख़र्च करो या कोई मन्नत मानो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है

और (ये भी याद रहे) कि ज़ालिमों का (जो) ख़ुदा का हक़ मार कर औरों की नज़्र करते हैं (क़यामत में) कोई मददगार न होगा

271

إِنْ تُبْدُوا الصَّدَقَاتِ فَنِعِمَّا هِيَ ۖ وَإِنْ تُخْفُوهَا وَتُؤْتُوهَا الْفُقَرَاءَ فَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ ۚ

अगर ख़ैरात को ज़ाहिर में दो तो यह (ज़ाहिर करके देना) भी अच्छा है

और अगर उसको छिपाओ और हाजतमन्दों को दो तो ये छिपा कर देना तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है

وَيُكَفِّرُ عَنْكُمْ مِنْ سَيِّئَاتِكُمْ ۗ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ

और ऐसे देने को ख़ुदा तुम्हारे गुनाहों का कफ्फ़ारा कर देगा

और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है

272

لَيْسَ عَلَيْكَ هُدَاهُمْ وَلَكِنَّ اللَّهَ يَهْدِي مَنْ يَشَاءُ ۗ

ऐ रसूल उनका मंज़िले मक़सूद तक पहुंचाना तुम्हारा काम नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ रास्ता दिखाना है) मगर हॉ ख़ुदा जिसको चाहे मंज़िले मक़सूद तक पहुंचा दे

وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ خَيْرٍ فَلِأَنْفُسِكُمْ ۚ

और (लोगों) तुम जो कुछ नेक काम में ख़र्च करोगे तो अपने लिए

وَمَا تُنْفِقُونَ إِلَّا ابْتِغَاءَ وَجْهِ اللَّهِ ۚ

और तुम ख़ुदा की ख़ुशनूदी के सिवा और काम में ख़र्च करते ही नहीं हो

وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ خَيْرٍ يُوَفَّ إِلَيْكُمْ وَأَنْتُمْ لَا تُظْلَمُونَ

और जो कुछ तुम नेक काम में ख़र्च करोगे (क़यामत में) तुमको भरपूर वापस मिलेगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा

273

لِلْفُقَرَاءِ الَّذِينَ أُحْصِرُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ  لَا يَسْتَطِيعُونَ ضَرْبًا فِي الْأَرْضِ

(यह खैरात) ख़ास उन हाजतमन्दों के लिए है जो ख़ुदा की राह में घिर गये हो

(और) रूए ज़मीन पर (जाना चाहें तो) चल नहीं सकते

 يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاءَ مِنَ التَّعَفُّفِ تَعْرِفُهُمْ بِسِيمَاهُمْ لَا يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافًا ۗ

नावाक़िफ़ उनको सवाल न करने की वजह से अमीर समझते हैं

(लेकिन) तू ऐ मुख़ातिब अगर उनको देखे) तो उनकी सूरत से ताड़ जाये (कि ये मोहताज हैं अगरचे) लोगों से चिमट के सवाल नहीं करते

وَمَا تُنْفِقُوا مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللَّهَ بِهِ عَلِيمٌ

और जो कुछ भी तुम नेक काम में ख़र्च करते हो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है

274

الَّذِينَ يُنْفِقُونَ أَمْوَالَهُمْ بِاللَّيْلِ وَالنَّهَارِ سِرًّا وَعَلَانِيَةً فَلَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ

जो लोग रात को या दिन को छिपा कर या दिखा कर (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करते हैं

तो उनके लिए उनका अज्र व सवाब उनके परवरदिगार के पास है

وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

और (क़यामत में) न उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे

275

الَّذِينَ يَأْكُلُونَ الرِّبَا لَا يَقُومُونَ إِلَّا كَمَا يَقُومُ الَّذِي يَتَخَبَّطُهُ الشَّيْطَانُ مِنَ الْمَسِّ ۚ

जो लोग सूद खाते हैं वह (क़यामत में) खड़े न हो सकेंगे मगर उस शख्स की तरह खड़े होंगे जिस को शैतान ने लिपट कर मख़बूतुल हवास (पागल) बना दिया है

ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ قَالُوا إِنَّمَا الْبَيْعُ مِثْلُ الرِّبَا ۗ وَأَحَلَّ اللَّهُ الْبَيْعَ وَحَرَّمَ الرِّبَا ۚ

ये इस वजह से कि वह उसके क़ायल हो गए कि जैसा बिक्री का मामला वैसा ही सूद का मामला

हालॉकि बिक्री को तो खुदा ने हलाल और सूद को हराम कर दिया

فَمَنْ جَاءَهُ مَوْعِظَةٌ مِنْ رَبِّهِ فَانْتَهَى فَلَهُ مَا سَلَفَ وَأَمْرُهُ إِلَى اللَّهِ ۖ

बस जिस शख्स के पास उसके परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत (मुमानियत) आये और वह बाज़ आ गया तो इस हुक्म के नाज़िल होने से पहले जो सूद ले चुका वह तो उस का हो चुका और उसका अम्र (मामला) ख़ुदा के हवाले है

وَمَنْ عَادَ فَأُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ ۖ هُمْ فِيهَا خَالِدُونَ

और जो मनाही के बाद फिर सूद ले (या बिक्री के माले को यकसा बताए जाए) तो ऐसे ही लोग जहन्नुम में रहेंगे

276

يَمْحَقُ اللَّهُ الرِّبَا وَيُرْبِي الصَّدَقَاتِ ۗ وَاللَّهُ لَا يُحِبُّ كُلَّ كَفَّارٍ أَثِيمٍ

खुदा सूद को मिटाता है और ख़ैरात को बढ़ाता है

और जितने नाशुक्रे गुनाहगार हैं खुदा उन्हें दोस्त नहीं रखता

277

إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ وَأَقَامُوا الصَّلَاةَ وَآتَوُا الزَّكَاةَ  لَهُمْ أَجْرُهُمْ عِنْدَ رَبِّهِمْ

(हॉ) जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ी और ज़कात दिया किये उनके लिए अलबत्ता उनका अज्र व (सवाब) उनके परवरदिगार के पास है

‏ وَلَا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَلَا هُمْ يَحْزَنُونَ

और (क़यामत में) न तो उन पर किसी क़िस्म का ख़ौफ़ होगा और न वह रन्जीदा दिल होंगे

278

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَذَرُوا مَا بَقِيَ مِنَ الرِّبَا إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ

ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और जो सूद लोगों के ज़िम्मे बाक़ी रह गया है अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो छोड़ दो

279

فَإِنْ لَمْ تَفْعَلُوا فَأْذَنُوا بِحَرْبٍ مِنَ اللَّهِ وَرَسُولِهِ ۖ

और अगर तुमने ऐसा न किया तो ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ने के लिये तैयार रहो

وَإِنْ تُبْتُمْ فَلَكُمْ رُءُوسُ أَمْوَالِكُمْ لَا تَظْلِمُونَ وَلَا تُظْلَمُونَ

और अगर तुमने तौबा की है तो तुम्हारे लिए तुम्हारा असल माल है न तुम किसी का ज़बरदस्ती नुकसान करो न तुम पर ज़बरदस्ती की जाएगी

280

وَإِنْ كَانَ ذُو عُسْرَةٍ فَنَظِرَةٌ إِلَى مَيْسَرَةٍ ۚ

और अगर कोई तंगदस्त तुम्हारा (क़र्ज़दार हो) तो उसे ख़ुशहाली तक मोहल्लत (दो) और सदक़ा करो

وَأَنْ تَصَدَّقُوا خَيْرٌ لَكُمْ ۖ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ

और अगर तुम समझो तो तुम्हारे हक़ में ज्यादा बेहतर है कि असल भी बख्श दो

281

وَاتَّقُوا يَوْمًا تُرْجَعُونَ فِيهِ إِلَى اللَّهِ ۖ ثُمَّ تُوَفَّى كُلُّ نَفْسٍ مَا كَسَبَتْ وَهُمْ لَا يُظْلَمُونَ

और उस दिन से डरो जिस दिन तुम सब के सब ख़ुदा की तरफ़ लौटाये जाओगे

फिर जो कुछ जिस शख्स ने किया है उसका पूरा पूरा बदला दिया जाएगा और उनकी ज़रा भी हक़ तलफ़ी न होगी

282

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا تَدَايَنْتُمْ بِدَيْنٍ إِلَى أَجَلٍ مُسَمًّى فَاكْتُبُوهُ ۚ

ऐ ईमानदारों जब एक मियादे मुक़र्ररा तक के लिए आपस में क़र्ज क़ा लेन देन करो तो उसे लिखा पढ़ी कर लिया करो

وَلْيَكْتُبْ بَيْنَكُمْ كَاتِبٌ بِالْعَدْلِ ۚ

और लिखने वाले को चाहिये कि तुम्हारे दरमियान तुम्हारे क़ौल व क़रार को, इन्साफ़ से ठीक ठीक लिखे

وَلَا يَأْبَ كَاتِبٌ أَنْ يَكْتُبَ كَمَا عَلَّمَهُ اللَّهُ ۚ فَلْيَكْتُبْ

और लिखने वाले को लिखने से इन्कार न करना चाहिये (बल्कि) जिस तरह ख़ुदा ने उसे (लिखना पढ़ना) सिखाया है उसी तरह उसको भी वे उज़्र (बहाना) लिख देना चाहिये

وَلْيُمْلِلِ الَّذِي عَلَيْهِ الْحَقُّ وَلْيَتَّقِ اللَّهَ رَبَّهُ وَلَا يَبْخَسْ مِنْهُ شَيْئًا ۚ

और जिसके ज़िम्मे क़र्ज़ आयद होता है उसी को चाहिए कि (तमस्सुक) की इबारत बताता जाये और ख़ुदा से डरे जो उसका सच्चा पालने वाला है डरता रहे और (बताने में) और क़र्ज़ देने वाले के हुक़ूक़ में कुछ कमी न करे

فَإِنْ كَانَ الَّذِي عَلَيْهِ الْحَقُّ سَفِيهًا أَوْ ضَعِيفًا أَوْ لَا يَسْتَطِيعُ أَنْ يُمِلَّ هُوَ فَلْيُمْلِلْ وَلِيُّهُ بِالْعَدْلِ ۚ

अगर क़र्ज़ लेने वाला कम अक्ल या माज़ूर या ख़ुद (तमस्सुक) का मतलब लिखवा न सकता हो तो उसका सरपरस्त ठीक ठीक इन्साफ़ से लिखवा दे

وَاسْتَشْهِدُوا شَهِيدَيْنِ مِنْ رِجَالِكُمْ ۖ

और अपने लोगों में से जिन लोगों को तुम गवाही लेने के लिये पसन्द करो (कम से कम) दो मर्दों की गवाही कर लिया करो

مِمَّنْ تَرْضَوْنَ مِنَ الشُّهَدَاءِ أَنْ تَضِلَّ إِحْدَاهُمَا فَتُذَكِّرَ إِحْدَاهُمَا الْأُخْرَى ۚ

फिर अगर दो मर्द न हो तो (कम से कम) एक मर्द और दो औरतें (क्योंकि) उन दोनों में से अगर एक भूल जाएगी तो एक दूसरी को याद दिला देगी,

وَلَا يَأْبَ الشُّهَدَاءُ إِذَا مَا دُعُوا ۚ

और जब गवाह हुक्काम के सामने (गवाही के लिए) बुलाया जाएं तो हाज़िर होने से इन्कार न करे

وَلَا تَسْأَمُوا أَنْ تَكْتُبُوهُ صَغِيرًا أَوْ كَبِيرًا إِلَى أَجَلِهِ ۚ

और क़र्ज़ का मामला ख्वाह छोटा हो या उसकी मियाद मुअय्युन तक की (दस्तावेज़) लिखवाने में काहिली न करो,

ذَلِكُمْ أَقْسَطُ عِنْدَ اللَّهِ وَأَقْوَمُ لِلشَّهَادَةِ وَأَدْنَى أَلَّا تَرْتَابُوا ۖ

ख़ुदा के नज़दीक ये लिखा पढ़ी बहुत ही मुन्सिफ़ाना कारवाई है

और गवाही के लिए भी बहुत मज़बूती है और बहुत क़रीन (क़यास) है कि तुम आईन्दा किसी तरह के शक व शुबहा में न पड़ो

إِلَّا أَنْ تَكُونَ تِجَارَةً حَاضِرَةً تُدِيرُونَهَا بَيْنَكُمْ فَلَيْسَ عَلَيْكُمْ جُنَاحٌ أَلَّا تَكْتُبُوهَا ۗ

मगर जब नक़द सौदा हो जो तुम लोग आपस में उलट फेर किया करते हो तो उसकी (दस्तावेज) के न लिखने में तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है

وَأَشْهِدُوا إِذَا تَبَايَعْتُمْ ۚ

(हॉ) और जब उसी तरह की ख़रीद (फ़रोख्त) हो तो गवाह कर लिया करो

وَلَا يُضَارَّ كَاتِبٌ وَلَا شَهِيدٌ ۚ

और क़ातिब (दस्तावेज़) और गवाह को ज़रर न पहुँचाया जाए

وَإِنْ تَفْعَلُوا فَإِنَّهُ فُسُوقٌ بِكُمْ ۗ

और अगर तुम ऐसा कर बैठे तो ये ज़रूर तुम्हारी शरारत है

وَاتَّقُوا اللَّهَ ۖ وَيُعَلِّمُكُمُ اللَّهُ ۗ

और ख़ुदा से डरो ख़ुदा तुमको मामले की सफ़ाई सिखाता है

وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ

और वह हर चीज़ को ख़ूब जानता है

283

وَإِنْ كُنْتُمْ عَلَى سَفَرٍ وَلَمْ تَجِدُوا كَاتِبًا فَرِهَانٌ مَقْبُوضَةٌ ۖ

और अगर तुम सफ़र में हो और कोई लिखने वाला न मिले (और क़र्ज़ देना हो) तो रहन या कब्ज़ा रख लो

فَإِنْ أَمِنَ بَعْضُكُمْ بَعْضًا فَلْيُؤَدِّ الَّذِي اؤْتُمِنَ أَمَانَتَهُ وَلْيَتَّقِ اللَّهَ رَبَّهُ ۗ

और अगर तुममें एक का एक को एतबार हो तो (यूं ही क़र्ज़ दे सकता है मगर) फिर जिस शख्स पर एतबार किया गया है (क़र्ज़ लेने वाला) उसको चाहिये क़र्ज़ देने वाले की अमानत (क़र्ज़) पूरी पूरी अदा कर दे और अपने पालने वाले ख़ुदा से डरे

وَلَا تَكْتُمُوا الشَّهَادَةَ ۚ

(मुसलमानो) तुम गवाही को न छिपाओ

وَمَنْ يَكْتُمْهَا فَإِنَّهُ آثِمٌ قَلْبُهُ ۗ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ عَلِيمٌ

और जो छिपाएगा तो बेशक उसका दिल गुनाहगार है

और तुम लोग जो कुछ करते हो ख़ुदा उसको ख़ूब जानता है

284

لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ

जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है (ग़रज़) सब कुछ खुदा ही का है

وَإِنْ تُبْدُوا مَا فِي أَنْفُسِكُمْ أَوْ تُخْفُوهُ يُحَاسِبْكُمْ بِهِ اللَّهُ ۖ

और जो कुछ तुम्हारे दिलों में हे ख्वाह तुम उसको ज़ाहिर करो या उसे छिपाओ ख़ुदा तुमसे उसका हिसाब लेगा,

فَيَغْفِرُ لِمَنْ يَشَاءُ وَيُعَذِّبُ مَنْ يَشَاءُ ۗ وَاللَّهُ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

फिर जिस को चाहे बख्श दे और जिस पर चाहे अज़ाब करे,

और ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

285

آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنْزِلَ إِلَيْهِ مِنْ رَبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ ۚ

हमारे पैग़म्बर (मोहम्मद) जो कुछ उनपर उनके परवरदिगार की तरफ से नाज़िल किया गया है उस पर ईमान लाए और उनके (साथ) मोमिनीन भी

  كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِنْ رُسُلِهِ ۚ

(सबके) सब ख़ुदा और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाए

(और कहते हैं कि)

हम ख़ुदा के पैग़म्बरों में से किसी में तफ़रक़ा नहीं करते

وَقَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ

और कहने लगे ऐ हमारे परवरदिगार हमने (तेरा इरशाद) सुना और मान लिया

परवरदिगार हमें तेरी ही मग़फ़िरत की (ख्वाहिश है) और तेरी ही तरफ़ लौट कर जाना है

286

لَا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۚ

ख़ुदा किसी को उसकी ताक़त से ज्यादा तकलीफ़ नहीं देता

 لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا اكْتَسَبَتْ ۗ

उसने अच्छा काम किया तो अपने नफ़े के लिए और बुरा काम किया तो (उसका वबाल) उसी पर पडेग़ा

رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَا إِنْ نَسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا ۚ

ऐ हमारे परवरदिगार अगर हम भूल जाऐं या ग़लती करें तो हमारी गिरफ्त न कर

 رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِنَا ۚ

ऐ हमारे परवरदिगार हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा हमसे अगले लोगों पर बोझा डाला था,

رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِ ۖ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا ۚ

और ऐ हमारे परवरदिगार इतना बोझ जिसके उठाने की हमें ताक़त न हो हमसे न उठवा

और हमारे कुसूरों से दरगुज़र कर और हमारे गुनाहों को बख्श दे और हम पर रहम फ़रमा

أَنْتَ مَوْلَانَا فَانْصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ

तू ही हमारा मालिक है तू ही काफ़िरों के मुक़ाबले में हमारी मदद कर

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

Lahore, Pakistan

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