Quran Hindi Translation

Surah Al Baqarah

Translation by Mufti Mohammad Mohiuddin Khan



In the name of Allah, Most Gracious,Most Merciful


 
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जो लोग खुदा के एहदो पैमान को मज़बूत हो जाने के बाद तोड़ डालते हैं

और जिन (ताल्लुक़ात) का खुदा ने हुक्म दिया है उनको क़ताआ कर देते हैं

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और हर फरीक़ के वास्ते एक सिम्त है उसी की तरफ वह नमाज़ में अपना मुँह कर लेता है

 

तुम जहाँ कहीं होगे ख़ुदा तुम सबको अपनी तरफ ले आऐगा

बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है

149.

और (ऐ रसूल) तुम जहाँ से जाओ (यहाँ तक मक्का से) तो भी नमाज़ मे तुम अपना मुँह मस्ज़िदे मोहतरम (काबा) की तरफ़ कर लिया करो 

और बेशक ये नया क़िबला तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से हक़ है

और तुम्हारे कामों से ख़ुदा ग़ाफिल नही है

150.

और (ऐ रसूल) तुम जहाँ से जाओ (यहाँ तक के मक्का से तो भी) तुम (नमाज़ में) अपना मुँह मस्ज़िदे हराम की तरफ कर लिया करो 

और (ऐ रसूल) तुम जहाँ कही हुआ करो तो नमाज़ में अपना मुँह उसी काबा की तरफ़ कर लिया करो

(बार बार हुक्म देने का एक फायदा ये है)

ताकि लोगों का इल्ज़ाम तुम पर न आने पाए मगर उन में से जो लोग नाहक़ हठधर्मी करते हैं

(वह तो ज़रुर इल्ज़ाम देगें)

तो तुम लोग उनसे डरो नहीं और सिर्फ़ मुझसे डरो

और (दूसरा फ़ायदा ये है) ताकि तुम पर अपनी नेअमत पूरी कर दूँ और (तीसरा फायदा ये है) ताकि तुम हिदायत पाओ 

151.

मुसलमानों ये एहसान भी वैसा ही है जैसे हम ने तुम में तुम ही में का एक रसूल भेजा

जो तुमको हमारी आयतें पढ़ कर सुनाए और तुम्हारे नफ्स को पाकीज़ा करे और तुम्हें किताब क़ुरान और अक्ल की बातें सिखाए 

और तुम को वह बातें बतांए जिन की तुम्हें पहले से खबर भी न थी

152.

पस तुम हमारी याद रखो तो मै भी तुम्हारा ज़िक्र (खैर) किया करुगाँ

और मेरा शुक्रिया अदा करते रहो और नाशुक्री न करो

153.

ऐ ईमानदारों मुसीबत के वक्त सब्र और नमाज़ के ज़रिए से ख़ुदा की मदद माँगों

बेशक ख़ुदा सब्र करने वालों ही का साथी है

154.

और जो लोग ख़ुदा की राह में मारे गए उन्हें कभी मुर्दा न कहना

बल्कि वह लोग ज़िन्दा हैं मगर तुम उनकी ज़िन्दगी की हक़ीकत का कुछ भी शऊर नहीं रखते

155.

और हम तुम्हें कुछ खौफ़ और भूख से और मालों और जानों और फलों की कमी से ज़रुर आज़माएगें

और (ऐ रसूल) ऐसे सब्र करने वालों को ख़ुशख़बरी दे दो

156.

कि जब उन पर कोई मुसीबत आ पड़ी तो वह (बेसाख्ता) बोल उठे

हम तो ख़ुदा ही के हैं और हम उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं

157.

उन्हीं लोगों पर उनके परवरदिगार की तरफ से इनायतें हैं और रहमत

 

और यही लोग हिदायत याफ्ता है

158.

बेशक (कोहे) सफ़ा और (कोह) मरवा ख़ुदा की निशानियों में से हैं

पस जो शख्स ख़ानए काबा का हज या उमरा करे उस पर उन दोनो के (दरमियान) तवाफ़ (आमद ओ रफ्त) करने में कुछ गुनाह नहीं

(बल्कि सवाब है)

और जो शख्स खुश खुश नेक काम करे तो फिर ख़ुदा भी क़दरदाँ (और) वाक़िफ़कार है

159.

बेशक जो लोग हमारी इन रौशन दलीलों और हिदायतों को जिन्हें हमने नाज़िल किया उसके बाद छिपाते हैं

जबकि हम किताब तौरैत में लोगों के सामने साफ़ साफ़ बयान कर चुके हैं

तो यही लोग हैं जिन पर ख़ुदा भी लानत करता है और लानत करने वाले भी लानत करते हैं

160.

मगर जिन लोगों ने (हक़ छिपाने से) तौबा की और अपनी ख़राबी की इसलाह कर ली और जो किताबे ख़ुदा में है साफ़ साफ़ बयान कर दिया पस उन की तौबा मै क़ुबूल करता हूँ

और मै तो बड़ा तौबा क़ुबूल करने वाला मेहरबान हूँ

161.

बेशक जिन लोगों नें कुफ्र एख्तेयार किया और कुफ़्र ही की हालत में मर गए उन्ही पर ख़ुदा की और फरिश्तों की और तमाम लोगों की लानत है

162.

हमेशा उसी फटकार में रहेंगे

न तो उनके अज़ाब ही में तख्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न उनको अज़ाब से मोहलत दी जाएगी

163.

और तुम्हारा माबूद तो वही यकता ख़ुदा है 

उस के सिवा कोई माबूद नहीं जो बड़ा मेहरबान रहम वाला है  

164.

बेशक आसमान व ज़मीन की पैदाइश में

और रात दिन के रद्दो बदल में

और क़श्तियों जहाज़ों में जो लोगों के नफे क़ी चीज़े (माले तिजारत वगैरह दरिया) में ले कर चलते हैं

और पानी में जो ख़ुदा ने आसमान से बरसाया फिर उस से ज़मीन को मुर्दा (बेकार) होने के बाद जिला दिया (शादाब कर दिया) 

और उस में हर क़िस्म के जानवर फैला दिये

और हवाओं के चलाने में और अब्र में जो आसमान व ज़मीन के दरमियान ख़ुदा के हुक्म से घिरा रहता है

(इन सब बातों में) अक्ल वालों के लिए बड़ी बड़ी निशानियाँ हैं

165.

और बाज़ लोग ऐसे भी हैं जो ख़ुदा के सिवा औरों को भी ख़ुदा का मिसल व शरीक बनाते हैं (और) जैसी मोहब्बत ख़ुदा से रखनी चाहिए वैसी ही उन से रखते हैं 

और जो लोग ईमानदार हैं वह उन से कहीं बढ़ कर ख़ुदा की उलफ़त रखते हैं

और काश ज़ालिमों को (इस वक्त) वह बात सूझती जो अज़ाब देखने के बाद सूझेगी कि

यक़ीनन हर तरह की क़ूवत ख़ुदा ही को है और ये कि बेशक ख़ुदा बड़ा सख्त अज़ाब वाला है

166.

(वह क्या सख्त वक्त होगा) जब पेशवा लोग अपने पैरवो से अपना पीछा छुड़ाएगे

और (ब चश्में ख़ुद) अज़ाब को देखेगें और उनके बाहमी ताल्लुक़ात टूट जाएँगे

167.

और पैरव कहने लगेंगे कि अगर हमें कहीं फिर (दुनिया में) पलटना मिले तो हम भी उन से इसी तरह अलग हो जायेंगे जिस तरह एैन वक्त पर ये लोग हम से अलग हो गए  

यूँ ही ख़ुदा उन के आमाल को दिखाएगा जो उन्हें (सर तापा पास ही) पास दिखाई देंगें

और फिर भला कब वह दोज़ख़ से निकल सकतें हैं

168.

लोगों जो कुछ ज़मीन में हैं उस में से हलाल व पाकीज़ा चीज़ (शौक़ से) खाओ और शैतान के क़दम ब क़दम न चलो 

वह तो तुम्हारा ज़ाहिर ब ज़ाहिर दुश्मन है

169.

वह तो तुम्हें बुराई और बदकारी ही का हुक्म करेगा

और ये चाहेगा कि तुम बे जाने बूझे ख़ुदा पर बोहतान बाँधों

170.

और जब उन से कहा जाता है कि जो हुक्म ख़ुदा की तरफ से नाज़िल हुआ है उस को मानो

तो कहते हैं कि नहीं बल्कि हम तो उसी तरीक़े पर चलेंगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओं को पाया

अगरचे उन के बाप दादा कुछ भी न समझते हों और न राहे रास्त ही पर चलते रहे हों

171.

और जिन लोगों ने कुफ्र एख्तेयार किया उन की मिसाल तो उस शख्स की मिसाल है जो ऐसे जानवर को पुकार के अपना हलक़ फाड़े जो आवाज़ और पुकार के सिवा सुनता (समझता ख़ाक) न हो 

ये लोग बहरे गूँगे अन्धें हैं कि ख़ाक नहीं समझते

172.

ऐ ईमानदारों जो कुछ हम ने तुम्हें दिया है उस में से सुथरी चीज़ें (शौक़ से) खाओं

और अगर ख़ुदा ही की इबादत करते हो तो उसी का शुक्र करो

173.

उसने तो तुम पर बस मुर्दा जानवर और खून और सूअर का गोश्त और वह जानवर जिस पर ज़बह के वक्त ख़ुदा के सिवा और किसी का नाम लिया गया हो हराम किया है 

पस जो शख्स मजबूर हो और सरकशी करने वाला और ज्यादती करने वाला न हो (और उनमे से कोई चीज़ खा ले) तो उसपर गुनाह नहीं है

बेशक ख़ुदा बड़ा बख्शने वाला मेहरबान है  

174.

बेशक जो लोग इन बातों को जो ख़ुदा ने किताब में नाज़िल की है छिपाते हैं

और उसके बदले थोड़ी सी क़ीमत (दुनयावी नफ़ा) ले लेतें है ये लोग बस अंगारों से अपने पेट भरते हैं

और क़यामत के दिन ख़ुदा उन से बात तक तो करेगा नहीं और न उन्हें (गुनाहों से) पाक करेगा

और उन्हीं के लिए दर्दनाक अज़ाब है

175.

यही लोग वह हैं जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही मोल ली और बख्यिय (ख़ुदा) के बदले अज़ाब

पस वह लोग दोज़ख़ की आग के क्योंकर बरदाश्त करेंगे

176.

ये इसलिए कि ख़ुदा ने बरहक़ किताब नाज़िल की

और बेशक जिन लोगों ने किताबे ख़ुदा में रद्दो बदल की वह लोग बड़े पल्ले दरजे की मुख़ालेफत में हैं

177.

नेकी कुछ यही थोड़ी है कि नमाज़ में अपने मुँह पूरब या पश्चिम की तरफ़ कर लो

बल्कि नेकी तो उसकी है जो ख़ुदा और रोज़े आख़िरत और फ़रिश्तों और ख़ुदा की किताबों और पैग़म्बरों पर ईमान लाए 

और उसकी उलफ़त में अपना माल क़राबत दारों और यतीमों और मोहताजो और परदेसियों और माँगने वालों और लौन्डी ग़ुलाम (के गुलू खलासी) में सर्फ करे 

और पाबन्दी से नमाज़ पढे और ज़कात देता रहे 

और जब कोई एहद किया तो अपने क़ौल के पूरे हो 

और फ़क्र व फाक़ा रन्ज और घुटन के वक्त साबित क़दम रहे

यही लोग वह हैं जो दावए ईमान में सच्चे निकले और यही लोग परहेज़गार है

178.

ऐ मोमिनों जो लोग (नाहक़) मार डाले जाएँ उनके बदले में तुम को जान के बदले जान लेने का हुक्म दिया जाता है 

आज़ाद के बदले आज़ाद और ग़ुलाम के बदले ग़ुलाम और औरत के बदले औरत

पस जिस (क़ातिल) को उसके ईमानी भाई तालिबे केसास की तरफ से कुछ माफ़ कर दिया जाये तो उसे भी उसके क़दम ब क़दम नेकी करना और ख़ुश मआमलती से (ख़ून बहा) अदा कर देना चाहिए 

ये तुम्हारे परवरदिगार की तरफ आसानी और मेहरबानी है

फिर उसके बाद जो ज्यादती करे तो उस के लिए दर्दनाक अज़ाब है

179.

और ऐ अक़लमनदों क़सास (के क़वाएद मुक़र्रर कर देने) में तुम्हारी ज़िन्दगी है (और इसीलिए जारी किया गया है ताकि तुम ख़ूंरेज़ी से) परहेज़ करो

180.

(मुसलमानों) तुम को हुक्म दिया जाता है कि जब तुम में से किसी के सामने मौत आ खड़ी हो बशर्ते कि वह कुछ माल छोड़ जाएं तो माँ बाप और क़राबतदारों के लिए अच्छी वसीयत करें 

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Zahid Javed Rana, Abid Javed Rana,

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